नूतन लाल साहू

बसंत ऋतु
परसा फूल ह झाकत हे
खोखमा ह हांसत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
पीयर पीयर चुनरी ओढ़े
खेत में सरसों आबाद हे
लाखडी अउ चना के होरा
गजब के स्वाद हे
परसा फूल ह झांकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
खाय में दाल भात
चटनी में धनिया मिर्चा पताल हे
भाजी में लाल भाजी
चौलाई अउ पालक के कमाल हे
परसा फूल ह झांकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
झूम झूम के मयूर ह नाचे
कोयली गाना गावत हे
धोवा लुगरा पहिने चंदा
जग म अंजोर बगरावत हे
परसा फूल ह झांकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
छत्तीसगढ़ के रहईया ल
कहिथे सबले बढ़िया
सुख अउ शांति से रहना है तो
झन बनव शहरिया
परसा फूल ह झाकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
नूतन लाल साहू


नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर

बासंती रंग है, बासंती मौसम और बसंत का चढ़ा खुमार।
ऋतुराज बसंत ने वैलंटाइन के नाम पर कैसा चढ़ाया बुखार।
हर कोई टेडी वेडी,चॉकलेट, और गिफ्ट को लिए घूम रहा।
कोई सामने वाली को स्टाइल मार रहा कोई अपनी वाली को ढूंढ रहा।
कोई अपने ही घर में चोरी चोरी चुपके से घूम रहा।
कोई अम्मा बापू के सामने खुद की नजरें चुरा रहा।
कोई नयनों की चितवन चला रहा तो कोई व्हाट्स एप पे लगा हुआ।
कोई हाथ मे  नकली लाल दिल लिए बगीचे में महबूबा को मना रहा।
कोई गुलाब की एक एक पत्ती संग आने न आने की मना रहा।
तो कोई मन ही मन अपनी वैलंटाइन देवी को मना रहा।
..........................
हा हा हा, बस इस ड्रामे की ज्यादा पोल पट्टी नहीं खोलूंगी।
क्योंकि एक साहित्यकारा हूँ,इस नौटंकी पे कुछ न कुछ तो बोलूंगी।


आप सभी का आज का दिन आप सभी के हिसाब से आपके अनुकूल हो इस शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🍫🍫🍫🍫🌹🌹🌹🌹
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर🙏😃👌


किशनू झा "तूफान"

*पुलवामा हमले में शहीद हुये जवानों को विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि...............* 


सिंहासन सैनिक के प्रति ,
जब संवेदनहीन हुआ ।
सूरज ,चंदा, तारे ,धरती ,
अम्बर भी गमगीन हुआ।
पुलवामा की धरती भी,
मन ही मन अश्क बहाती है।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 


जब मां के दिल का टुकडा़,
केवल टुकडे़ में आता है ।
किसी सुहागिन का सुहाग,
जब टुकडो़ं में बट जाता है ।
पुलवामा में पीडा़ जब ,
पीडा़ से अश्क बहाती है ।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 


 


शादी की तैयारी जब घर ,
के आंगन में होती है ।
कोई लड़की जब शादी के,
 मीठे स्वपन सजोती है।
और सुहागिन होने से पहले  ,
 विधवा हो जाती है।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 


चित्रेश बिना जब आंगन का,
चित्र उजड़ सा जाता है ।
किलकारी भरती बेटी को ,
पिता देख ना पाता है ।
श्रृंगार शोक से रोता है ,
हिन्दी भी अश्क बहाती है ।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 



                      रचयिता 
               किशनू झा "तूफान"
                 8370036068


पंकज अंगार

आज की शाम पुलवामा के बलिदानी बेटों को श्रद्धासुमन समर्पित करने के लिए भाई अमित खरे के आदेश पर सेवढा जिला दतिया मध्यप्रदेश में ।।


अपने दिल मे इंकलाब की एक नई बुनियाद रखें ।
सबसे पहले देश रखें हम खुद को उसके बाद रखें।
सुख में हमे बसाने पंकज जिनके जीवन उजड़ गए।
एक मुहल्ला हम यादों में उनका भी आबाद रखें।।


पंकज अंगार
8090853564


पुष्पा अवस्थी "स्वाति"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 सुप्रभात


लाल चुनरिया ओढ़ के निकली घर से भोर 
पंछी  देने  लगे  बधाई  गूंज  उठा  है  शोर 
कलियों ने आंखें खोलीं तुम भी खोलो द्वार
"स्वाती" ले के आ गई खुशियों की बौछार 


पुष्पा अवस्थी "स्वाति"


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


नवल सुधांशु

पुलवामा में शहीद अपने घर बेटों को नवल सुधांशु का प्रणाम.



गोद  माँ की, घर  तुम्हारा  पथ निहारे


लोरियों  का  स्वर तुम्हारा पथ निहारे


लौटकर  आये  नहीं  तुम  गांव अपने


ॐ  का   पत्थर  तुम्हारा  पथ निहारे।



तितलियां  पाँखें  तुम्हारा  पथ  निहारें


पेड़  की  शाखें   तुम्हारा  पथ  निहारें


नींव घर की अब तलक खाली पड़ी है


बाप  की  आंखें  तुम्हारा  पथ  निहारें



पीर  बरसाती   तुम्हारा  पथ   निहारे


देह  की  पाती  तुम्हारा  पथ   निहारे


लौटकर आये  नही  तुम  गांव अपने


अधजली बाती  तुम्हारा  पथ  निहारे



द्वार की  चौखट  तुम्हारा  पथ निहारे


लाज का घूंघट  तुम्हारा  पथ  निहारे


लौटकर आये नहीं   तुम  गांव अपने


पास का पनघट तुम्हारा  पथ निहारे।



मन महावर तन  तुम्हारा  पथ  निहारे


किलकता आंगन तुम्हारा  पथ निहारे


लौट कर आये  नही  तुम  गांव अपने


प्यार का सावन  तुम्हारा पथ  निहारे।



वेद  की  पाटी  तुम्हारा  पथ निहारे


गुरु  की   साटी  तुम्हारा पथ निहारे


देश की माटी गले अब लग चुकी है


जन्म की माटी  तुम्हारा पथ निहारे।


                            -नवल सुधांशु


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"पतझड़"*
"देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।
बेबस सोचता रहा हर पल,
कब-थमेगी साथी-
जीवन की घुटन।
प्रतीक्षा में मधुमास की,
साथी बढ़ती रही-
जीवन में कुढ़न।
बढ़ती रही पीड़ा पतझड़ की,
साथी मिला नहीं-
मधुमास का संग।
भौरो की गूँजन से साथी,
जीवन में-
मोह हुआ भंग।
चाहत में मधुमास की साथी,
हो गया जीवन में-
प्रतीक्षा का अंत।
देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         14-02-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

नहीं भूल सकते हम ऐसे वीरों की कुर्बानी



राष्ट्र यज्ञ में आहूत हुए समिधा बनी जवानी
नहीं भूल सकते हम ऐसे वीरों की कुर्बानी


दाम्पत्य सुख को त्याग सांसों में बसी रवानी
छोड़ की सारी चाहत वंदे मातरम की वाणी


प्रण पण से हम करेंगे रक्षा झुके न कभी तिरंगा
राष्ट्र प्रेम अमर रहे हिय में सदभावों की गंगा


पावस शीत और तपन में भी भारत का ध्यान
तेरे अन्न जल से ही जीवन माँ तुझको ही कुर्बान


सरहद के रखवालो तुम्हें कोटिशः करूँ प्रणाम
आज तुम्ही से रक्षित और जीवन है अभिराम।


भारत माता के सपूतों को कोटिशः नमन एवं वन्दन🌸🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


हलधर जसवीर

शोक गीत - पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि
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कैसे कहूँ व्यथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।
घात लगा दुश्मन  ने मारा घुसा वक्ष में शूल ।।


दो कुंतल बारूद भरा था ऐसा था विस्फोट ,
भारत माता के सीने पर इतनी गहरी चोट ,
बोटी बोटी बिखर गए हैं अस्थि कलश के फूल ।
कैसे कहूँ व्यथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।1


देश की खातिर वीर हमारे गए निशानी छोड़ ,
थमा गए इक प्रश्न देश को जीवन बंधन तोड़ ,
नींद उड़ा दो अब दुश्मन की हिले पाक की मूल ।
कैसे कहूँ व्यथा  वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।2


सच्चे श्रद्धा सुमन मांगते मेरे वीर जवान ,
ऐसा हो प्रहार करारा बने पाक शमशान ,
शोणित नदियां बहे पाक में बैरी फांके धूल ।
कैसे कहूँ व्यथा वीरों  शब्द नहीं अनुकूल ।।3


केशर घाटी सुलग रही है बीते सत्तर साल ,
भारत माता ने खोये है अपने लाखों लाल ,
अब बारी बदला लेने की "हलधर"करों न भूल ।
कैसे कहूँ  व्यथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।4


        हलधर -9897346173


अंजना कण्डवाल *नैना*

.
      *'गुल'*


बसन्त ऋतू में हुआ आगमन
पुलकित हुआ सारा मधुवन
खिल गये मन प्राण मेरे
खिल उठा मेरा गुलशन।


'गुल' तुम मेरे आँगन की
तुम महकता मेरा चमन।
ज्योति बन आई हो तुम
तुम से रोशन मेरा जीवन।


मिला ममत्व खिल गई मैं,
लिया जब तुमको हाथों में।
सज़ा आँखों में ख़्वाब नये,
हर पल निहारूँ तेरा आनन।


मैं माली एक उपवन की
सँवार रही थी बगिया को
छोड़ दिया ननिहाल तुझे
देख न पाए तेरा बचपन


नानी के संग पली बढ़ी,
बन गई माँ की परछाई।
नानी ने खूब लाड़-लड़ाया
तेरी यशोदा मैय्या बन।


चंचल हो कन्हैया जैसी
नन्ही सी ये गुड़िया मेरी।
कब छोटी से बड़ी हो गई,
कब गुज़रा तेरा बचपन।


मेरे गुलशन में मुस्कओ
फूल हारश्रृंगार सा बन।
बन कोकिला मेरे घर की,
गुँजित करो तुम ये मधुवन।


उड़ो सपनो के आसमाँ में,
खोल कर अपने पँखों को।
सफलता की सीढ़ियाँ चढ़,
छू लो तुम ऊँचा गगन।


रहूँगी सदा साथ मैं तेरा
बनकर तेरा पथ-प्रदर्शक।
तुम गुल मैं बगवान हूँ तेरा,
महकाओ मेरा घर आँगन।
©®


अंजना कण्डवाल *नैना*


सुनीता असीम

ये मुहब्बत भी तो कांटों का ही सफ़र लगता है।
छू नहीं सकते जिसे पाने में डर लगता है।
***
हर नजारा तेरी फ़ुरकत का मजा है देता।
पर गगन में तो खिला आधा क़मर लगता है।
***
हर कदम सिर्फ मुसीबत का लगा है डेरा।
चाहतों का नहीं नफरत का नगर लगता है।
***
जिन्दगी सिर्फ बनी आग की होली उसकी।
नींव से टूटा हुआ वो तो शज़र लगता है।
***
है नहीं कोई खुशी आज बची है इसमें।
ये दरकती दिवारों वाला घर लगता है।
***
सुनीता असीम
१३/२/२०२०


कवि सुनील चौरसिया 'सावन' निवास- ग्राम- अमवा बाजार पोस्ट- रामकोला जिला कुशीनगर, उत्तर प्रदेश    

कविता- कुहू- कुहू बोले रे कोयलिया...


कदम्ब की डाल पर डोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।



सुख - दुख में शुभ गीत गाने वाली।
थके मादे लोगों को झुमाने वाली।।


इस डाल से उस डाल पर डोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।


नीरस पल में भी रस पाने वाली।
ऋतुराज के संदेश को पहुंचाने वाली।।


रसाल फल देख चोंच खोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।



पतझड़ की महफिल में लाती बहार।
'सावन' सरस भाव से भावनाओं का भार-


कंठ के तराजू पर तौलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।



पीपल की डाल पर डोलती कोयल है।
 पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।


कवि सुनील चौरसिया 'सावन'
निवास- ग्राम- अमवा बाजार पोस्ट- रामकोला जिला कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
       प्रवक्ता,
       केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली, अरूणाचल प्रदेश।
मोबाइल-9044974084, 8414015182


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.............तेरी बेकरारी.............


तेरी बेकरारी से मुझे  करार नहीं।
तेरी खुशियों से मुझे इंकार नहीं।।


तुमसे सुनता हूं,जीवन  के संगीत;
तेरे बगैर पसंद,मुझे झंकार नहीं।।


मुद्दतें हो गई है , तुमसे  युदा हुए ;
तेरे सिवा कोई,मुझे इंतजार नहीं।


मिले कई तुमसे पहले , बाद भी ;
कोईभी,मन से मुझे इकरार नहीं।


बहुत उम्र गुजार ली,कुछ बाकी ;
ख्वाहिश अब,मुझे बेशुमार नहीं।


जो भी हैं,साथ रहें ओ आगे बढ़ें;
कोई दिल में, मुझे दुत्कार नहीं।।


इस बात से वाकिफ हूं"आनंद" ;
विवाद से , मुझे सरोकार  नहीं।।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


   डा.नीलम अजमेर

*मैं अलग होऊँगी*
*********////********
राम से पहले सीता कह लो
कृष्ण से पहले राधा
पर शिव-शंकर से पहले
सती और पार्वती नाम नहीं आता


वर्तमान में मैं भी कितने
व्रत- उपवास रख,निर्जल
रहलूं,फिर भी पुरुष-समाज की सदियों से मैं बनी रही परछाई


अब मिथक मैं तोडू़गीं
बनकर सबला 
नारीत्व की अबलता से
मैं अलग होऊँगी


रिश्ते-नाते खूब निभाए
घर की चार-दीवारी में
मेरे मैं को खोया मैने अस्तित्व भी भूली चूल्हे- चक्की में


घूँघट की ओट में चेहरा छिपाए
जिस्म की जलालत झेली
कोख मशीन बना डाली
इक चिराग़ की ख्वाहिश में


स्वीकार करती हूँ मैं भी
शामिल हूँ नारीत्व की बर्बादी में
प्रण लेती हूँ इस कुकृत्य से अब मैं अलग होऊँगी


सदियों से झेला जुल्म मैने
अब ना सहन करुँगी मैं
है मेरा भी वजूद जहां में दुनिया को मैं बताऊँगी


अन्याय- अनीति,अनाचार, अतिसार की दुनिया से मैं अलग जहान बनाऊँगी,  हर बुराई से *मैं अलग होऊँगी।* 


       डा.नीलम


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मुक्तिका


प्रखरोक्ति


कुछ मन की
=========
(1)
गिले शिकवे बहुत होंगे नहीं होगा तो वश अपना।
मुजाहिर सा फकत जीवन यहाँ दिन रात बस खटना।।
आज चर्चों का दौर बस उनका जो करें सौदे जमीरों के,
प्रखर दो जून की रोटी , उन्हें अब भी लगे सपना।।


(2)


कलियों में घुली रंगत गमकती खुश्बू ए गुलशन।
बहारों में नशा वल्लाह   पाँखुरी रूप ज्यों चंदन।।
नहायी ओस में सुबहो , ओढे शीत का कोहरा, अरी ऋतुराज दर आया,चलो कर लें सखी परछन।।


(3)


सकुचायी तिय कछु लजरायी कांति अरी  अरूणिम निखरी।।
भुईं पाँव धरै हौले होले , अल्हड अलकें उरझीं बिखरी। ।
नैना खंजन आंजे अंजन कटि चुंबित वेणी मादा अहि सी,
अधर रक्त बिहंसे पिय लख सत बसंत को काम विकट सखी री।।


========


कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना मौलिक (स्वरचित)  नयी दिल्ली

🌷रचनाकार मंच🌷


विषय: स्वैच्छिक
दिनांक: १३.०२.२०१९
वार: गुरुवार
विधा: दोहा
जनरल: मात्रिक
शीर्षक: 🇮🇳प्रेमगीत मां भारती🇮🇳
लिखता   हूं   मनमीत   मैं , देता    हूं      संगीत। 
प्रेमगीत  मां    भारती , मधुर   सरस     नवनीत।।
हरित भरित कुसुमित धरा,हो सुरभित अभिराम।
उड़े   तिरंगा  व्योम  में , हो   विकास   अविराम।।
कण्ठहार जन मन वतन, जय भारत जय  हिन्द।
आयें  मिल  हम  साथ में , खिले वतन अरविन्द।।
महके  खुशबू  प्यार के , खुशियां कोकिल  गान।
चमन   वतन   गुलज़ार हो , बढ़े  राष्ट्र    सम्मान।। 
देश  बचे  तो    हम   बचें , करें   सुरक्षित   देश।
करें    प्यार   सेवा   वतन , दें   समरस    संदेश।। 
नैन  लड़ाऊं   देश   से ,  करूं   प्रेम    अठखेल।
सुखद मधुर अहसास नित ,वासन्तिक  घुलमेल।। 
राष्ट्र प्रेम  महफ़िल सजी , गुंजित  समरस गान ।
सजी सुभग मां भारती, पुलकित सुन  यशगान।।
वीर  धीर  उन्नत अभय ,जन  गण मन पा प्रीति।
लोकतंत्र   सुन्दर   सफल , भारत   मां  उद्गीति।।
करें   समर्पण   जिंदगी , हो   भारत  सुखधाम।
निभा साथ जन्मों तलक ,अमर प्रेम  अभिराम।।
देश प्रेम  निर्मल सरित , प्रमुदित  मन अवगाह।
रत निकुंज कवितावली,सफल राष्ट्र बस  चाह।। 
कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना मौलिक (स्वरचित) 
नयी दिल्ली


गनेश रॉय" रावण" भगवानपाली,मस्तूरी,बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"हम एक हैं"
""""""""""'"""""
ना तुम हिन्दू हो
ना तुम मुस्लिम
ना तुम सिख हो
ना तुम ईसाई
फिर कैसे मान लिए तुम
ये धर्मो को अपना भाई
मेरे नजर से तुम देखो 
हर कोई है इंसान
जिससे बनता है मेरा
प्यारा हिंदुस्तान


सदा जागने वाले हो तुम
सदा जगाने वाले हो तुम
तेरे काँधे पर बोझ है देश की
सदा उठाने वाले हो तुम
कितनी मुशीबत आई देश मे
फिर भी, डटे रहते हो तुम
कभी गांधी कभी अम्बेडकर
कभी शिवा कभी महाराणा 
कभी आजाद कभी भगत सिंह
बनकर दिखलाते हो तुम


काँधे से काँधे तुम मिलाते
कदम ताल की तुम गीत सुनाते
एक साथ आवाज लगाकर 
यही बात तुम दोहराते .......
आवाज दो....
हम एक हैं
आवाज दो....
हम एक हैं
आवाज दो....
हम एक हैं
आज फिर से कहो
हम एक हैं
आज फिर से कहो....
हम एक हैं
आज फिर से कहो....
हम एक हैं
आवाज दो.....
हम एक हैं ।।


गनेश रॉय" रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी,बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


जनार्दन शर्मा (आशु कवि,हास्य व्यंग)

जनार्दन शर्मा (आशुकवि हास्य व्यंग)
इन्दौर मध्य प्रदेश 


वैलेंटाइनडे कोई त्यौहार नहीं है यह तोबड़े स्तर का सुनियोजित बिजनेस इवेंटहै यह इज्जतदार लडकियों के विरुद्ध षड्यंत्र है ।


"वेलेंटाइनडे पर एक कविता"


अंग्रेजो के चौचलो को सीखकर,अपने ही देश का ह्रास किया। 
आज कि युवा पीढ़ी ने,संस्कारों का कैसा विनास किया।
हे वेलेंटाइन डे बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,,,


गली,गली,चौराहे चौराहे,अब ,प्रेम के परवान चढ़ते हैं।
आशीको के जोड़े देखो,खुले आम सड़को पे नचते है
शर्म हया सब छोड़ के देखो, रिश्तो का उपहास किया।
हे वेलेंटाइन डे बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,


प्रेम कि दुकानो से देखो,कैसा बाजारसजता है।
प्रेम,प्यार का ये धंधा,सबकि जेबे भरता है।
झुठे प्यार के बंधनो का,कैसा ये आभास दिया,,,,,, 
हे वेलेंटाइन डे बाबा देस का सत्यानास किया


जिस देश में आज भी नारी को,देवी सा पूजा जाता हैं।
हर मां के आंचल से निकल के,सैनिक सीमा पे जाता है।
उनके बलिदान से नही सीखा कुछ, भूला कर प्रेम का एसा रास किया
हे वेलेंटाइन बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,,,


जिस देश में राधाकृष्ण के प्रेमगीत,आज भी गाये जाते हैं।
मीराबाई के त्याग के,पद आज भी सुनाये जाते हैं।
उसी देश के नौजवानो ने,अब ये कैसा इतिहास दिया ।
हे वेलेंटाइन के बाबा मेरे देस का कैसा सत्या नास किया,,,,


जिस देश में नर,नारी के मिलन में,गहरे परिवारों का वास था
जिन आपसी रिश्तो में मिठास जीवनभर, साथ रहने का विश्वास था
उन रिश्तो को भूलाकर,"ब्रेकअप"से हलके शब्दो का अहसास दिया।
हे वेलेंटाइन बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,
स्वरचित
जनार्दन शर्मा (आशु कवि,हास्य व्यंग)


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना
दिनांक: १३.०२.२०२०
वार: गुरुवार
विषय: प्रेम
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: तरस रही आंखें सजन
मादकता    नवयौवना, उफन   रही    है  प्यार। 
गोरी   खोयी  आश  में ,प्रीत  मिलन    उपहार।।१।।
महक रहा तन मन वदन,कुसमित पा मधुमास।
लाल गुलाबी होंठ नित ,आस्वादन   अभिलास।।२।।
आलिंगन  अभिलाष प्रिय, अलिगुंजन नवप्रीत। 
कोस रही ऋतुराज को , कहां  छिपा  मन मीत।।३।।
नदी   किनारे  पनघटी , रख  सजनी रत सोच ।
कब  आएगा  बालमां , मिलूं  सजन    संकोच।।४।।
तरस  रहीं  आंखें  सजन, दरश रूप अभिराम।
अश्क वक्ष  भींगे सजन, निशिवासर  रतिकाम।।५।।
माला  गूंथी  प्रीत  की , सजन मिलन  गलहार।
क्या गलती  मुझसे बलम, तड़प रही अभिसार।।६।।
ख्वाबों की बन  मल्लिका , लुटे सभी सुख चैन।
तन मन धन अर्पण तुझे , बरस  रही  नित  नैन।।७।।
छोड़े  सब  रिश्ते  यहां , चली सजन मन  प्रीत। 
सरगम बन  मैं साज़ना , गाऊं मधुरिम     गीत।।८।।
अमर प्रेम नवलेख से , करूं काव्य शृंगार। 
विलसित मन प्रेमी युगल , दूं निकुंज उपहार।।९।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक अवधी गीत का एक बंध
पूरा गीत आपकी प्रतिक्रियाओं के बाद


हमैं तुमरे  बिना सइयां  न  भवाइ  फगुनवा।
हमरो  जियरा  जरावइ  यह  वैरिन पवनवा।
यह मस्ती मा  घूमइ  औरु  घुँघटा  उठावइ।
हमका दरपनु न भावति हइ  सुनो अंगनवा।
हमैं तुमरे  बिना सइयां  न  भवाइ  फगुनवा।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


रामनाथ साहू " ननकी "                            मुरलीडीह

आज की कुण्डलिया ~
12/02/2020


            ---- अनुपथ ----


अनुपथ हे प्रिय भामिनी ,
                            बना रहे यह संग ।
परिशोधन आपस करें ,
                       निखरे उज्ज्वल रंग ।।
निखरे उज्ज्वल रंग ,
                           पूर्णता दोनों पायें ।
मंजिल हो आसान ,
                    सरलता अनुभव गायें ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                     बनें हम नव भागीरथ ।
मिला सुखद आधार ,
                     एक दूजे के अनुपथ ।।



               ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                           मुरलीडीह


हलधर जसवीर

ग़ज़ल ( हिंदी )
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इस चुनावी जंग का तो व्योम तक एलान है ।
जीत के इन आंकड़ों से  विश्व  भी  हैरान है ।।


हर धरम आज़ाद है हर कौम का सम्मान है ।
रोज दीवाली  यहां पर  रोज ही  रमजान है ।।


देश को कमजोर करती सब जमातें थक गई ।
वो अभी समझीं नहीं यह मुल्क हिंदुस्तान है ।।


गालियों ने तोड़ दी सीमा सभी संवाद की ।
वो सियासी खेल में बच्चा अभी नादान है ।।


भाषणों से एक उल्लू का पता मालूम हुआ ।
वह  कमीना  पाक  का  एजेंट  है  शैतान है ।।


खून से लतपथ मिला वो चीथड़े पहने हुए ।
लोग कहते है उसे वो  चीन का  दरवान है ।।


जो कुराने पाक में आतंक को ढोता रहा ।
नाम पूंछो तो  बताया मुल्क पाकिस्तान है ।।


आँख कोई भी दिखाए अब नहीं मंजूर है ।
 यार का है यार"हलधर" गैर को तूफान है  ।।


         हलधर -9897346173


गोपाल बघेल ‘मधु’ , ओन्टारियो, कनाडा 

काल चक्र घूमता है !
(मधुगीति २००२१२ अग्ररा ) ०१:३८


काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो; 
भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! 


कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;
इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए !


सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;
ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही !


पार्थ सूक्ष्म पथ हैं चलते, रहते कृष्ण सारथी;
दग्ध होते क्षुद्र क्षणों, प्रबंधन विधि पातकी !


पाण्डवो तुम मोह त्यागो, साधना गहरी करो;
‘मधु’ के प्रभु की झलक को, जीते जगते झाँक लो ! 


✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’


रचना दि. १२ फ़रवरी २०२० रात्रि 
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा 
www.GopalBaghelMadhu.com


प्रवीण शर्मा ताल*

*घूँघट में चाँद*


घूँघट में चाँद छिपाए बैठी हो,
छत पर बेताब टहलाएं बैठी हो


क्या खता की  क्या भूल हुई जो,,,,,
इश्क हमसे गैर की पायल पहनाएं बैठी
 हो।


अमावस्या की रात कहां है ,,
पूनम सा चहेरा मुरझाए बैठी हो


घूँघट थोड़ा उठाओ जरा,,,,
तीखी नजरों से तीर चलाएं बैठी हो।


पलको से चाँदनी का दीदार होगा ,,,
बादलो के पीछे ठहराए बैठी हो।


क्यो रूठी हो  चाँदनी हमसे ,,,,,
ताल  का दामन तोड़ाए बैठी हो।


मैं जमीं से निहारता रहा चाँदनी तुझे
तू  घूँघट में चाँद को छिपाए  बैठी हो।



✒प्रवीण शर्मा ताल


प्रवीण शर्मा ताल*

*कान्हा*


कान्हा तेरी लीला की है पुकार,
 तुम ले लो फिर धरा पर अवतार।


 सब करते अब पीछे धना धन ,
फूल रहे है यहां- वहाँ   दुर्योधन।


कान्हा तू लेकर आया था एक सन्देशा,
 करते यहाँ धरा पर लोग पैसा- पैसा।


कान्हा तुमने केवल पांच गाँव मांगे,
सन्तोष नही , रिश्वत के पीछे भागे।


नारी की दुर्दशा ऐसी कैसी यहां ,
कोई द्रोपदी तो सूर्पणखा यहां।।


कान्हा  सभा में विकराल रूप बताया,
अब  देखो यहाँ डोंगी बाबा की माया।


कान्हा तुमने द्रोपदी का चीर बढ़ाया
अब बेशर्म  अध वस्त्र पैशन छाया।


कान्हा तुम वन में जाकर चराई गैया,
लुप्त बैलगाड़ी भटकी बछिया, गैया ।


न्याय पर बंधी है नयनों में यहाँ पट्टी,
गांधारी सी सत्ता लोकलुभावन सस्ती।


डसते आंतकी यहाँ जहरीला क्रंदन
आजाओ कान्हा फिर  करो मन्धन।


सत्य ,असत्य पाप पुण्य का है तोल,
मंदिरों में चढ़ता इसका यहां है मोल।


तुमने गरीबी से प्रेम से निभाई दोस्ती
जिसके पास पैसा उससे यहां दोस्ती।


भले यह युग नही  वंशी ले चले आओ
फिर से गीता का ज्ञान उपदेश सुनाओ


अब तो आओ देवकी नंदन द्वारकाधीश
मूर्ख ताल पड़ा चरणों मे दे दो आशीष।


 


*✒प्रवीण शर्मा ताल*


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