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*** मकान ***
खुद के घर को
घर कहते है
किराये के घर को
मकान कहते है
यदि घरवाली हो घर में
तो घर घर लगता है
बिना घरवाली के
अपना घर भी
मकान लगता है
घरवाली है घर की जान
उसके बिना है घर बेजान
जान ही जान का
अहसास कर पायेगी
बेजान क्या हमारा
दर्द समझ पायेगी
लेखक -
डॉ प्रताप मोहन "भारतीय 308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205 (H P)
मोबाइल - 9736701313
Email - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ प्रताप मोहन "भारतीय - बद्दी -
सुबोधकुमार शर्मा शेरकोटी , गदरपुर उधम सिंह नगर
विह्ववल होता अंतर्मन ,,,,,
.........................................
विह्ववल होता अंतर्मन,अविरल होती आंखे नम
कैसे धीर बधाएँ उनको ,देखे जो हत्या निर्मम।।
हाथों की अभी मेहंदी न छुटी
पहले ही कलाई - चूड़ियां टूटी।
स्वप्न सारे टूट गये क्षण भर में
माता - ममता रण ने लूटी।।
द्रवित हुआ अब पिता महा है
मातृभूमि को इक लाल दिया है
दूसरा लाल क्यो नही दिया ईश्वर
धैर्य ,विवेक की धारा अब टूटी
कैसे चुकाऊँ मै माँ का ऋण।
विह्ववल होता अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,1
नन्ही गुड़िया गुड़िया ले देखे
नये नये खिलोने इकटक देखे
स्व परितः चीत्कार देख कर
हाथ से सभी खिलोने फेंके।।
मॉ के गले लिपट रो रो पूछे
क्यो शोर हुआ है घर बाहर।
आज पिता को घर आना था
क्यो बेचैन हुआ ये मेरा मन।।
विह्ववल होता मेरा मन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,2
कंगन ,टीका,बिंदिया कुमकुम
पायल की मधुरिम रुन झुन
कलाई भाई की राखी तरसे
चहुँ दिशि क्यो लगती गम सुम।
मॉ की आँखे ललना को देखे
पत्नी लाल का पलना देखे
भाई मन मे यह निश्चय करता
पूर्ण करूँगा में तेरा प्रण ।
विह्ववल होता अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,,,,,3
सुबोधकुमार शर्मा शेरकोटी ,
गदरपुर उधम सिंह नगर
उत्तराखंड मो न0 9917535361
अविरल शुक्ला लखीमपुर-खीरी* 8081001989
*शहीद के बेटे का पिता के नाम पत्र*
जब से गये हो पापा घर छोड़ के,
अपने भी चले जाते मुंह मोड़ के।
कोई भी खिलौने नये लाता नहीं है,
रूठने पे गले से लगाता नहीं है।
कहते हैं सब मम्मी सोती रहती हैं,
पर वह छिप छिप कर रोती रहती हैं।
बाबा के पास में दवाई नहीं है,
दादी को देता अब दिखाई नहीं है।
बोलती मां फल हैं पुराने पाप के,
हम अब कहें जाते बिना बाप के।
हंसती थी दुनिया जो सोयी हुई है,
दिखता हमारा अब कोई नहीं है।
आंखें हैं तरसती तरसते कान हैं,
आपके बिना न कोई सम्मान है।
मांगता हूं पापा कुछ आज दे दो ना,
एक बार द्वार से आवाज दे दो ना।
©️ *अविरल शुक्ला लखीमपुर-खीरी*
8081001989
डॉ0 धारा बल्लभ पाण्डेय, अध्यापक एवं लेखक, कर्नाटक पुरम, मकेड़ी, अल्मोड़ा,
⭐हम भारतीय⭐
युद्ध नहीं है धर्म हमारा,
हम तो शांति पुजारी हैं।
छेड़ा अगर किसी ने तो, हम नहीं छोड़ने वाले हैं।।
चिंगारी को छेड़ोगे तो,
बन अंगार मिटा देंगे।
यदि हम से टकरावोगे तो,
चूर-चूर कर डालेंगे।।
अरे दुष्ट! तेरी यह हरकत,
कभी सफल नहीं होगी।
तेरी सारी गीदड़ हरकत,
डर डर कर थर्राएगी।।
चौदह फरवरी को धोखे से,
चालिस वीर शहीद हुए।
पुलवामा की इस घटना को,
सुनकर सभी स्तब्ध हुए।।
नहीं भुला हम हैं सकते
दुश्मन की इस बर्बरता को।
दिया जवाब मिटा आतंकी,
ध्वस्थ किया रिपु के गढ़ को।।
बलुवाकोट का किला और,
भी कई ठिकाने मिटा दिये।
कुर्बानी के बदले तेरे-
किले जहन्नुम बना दिये।।
मिराज दो हजार ने जब,
घमंडी आका भस्म किये।
बम बरसाकर आतंकी के,
कई ठिकाने ध्वस्त किए।।
बारह मिराज ने इक्कीस मिनट में
सौवों आतंकी किए खलाश।
अगर नहीं फिर भी सुधरा तो,
तेरी जमीं गिरेंगी लाश।।
सांप पालकर दूध पिलाया,
देख लिया अब इनको भी।
इसी देश में पलकर जो,
पत्थर फेंकें बन आतंकी।।
अभी हिसाब बहुत बाकी है,
हाफिज सईद अजहर मसूद।
आतंकी नेता छिपे हुए,
करना इनको भी जमींदोज।।
अभिनंदन ने सूझ शौर्य से,
किया ध्वस्थ तेरा विमान।
छक्के छुड़ा दिए सब तेरे,
मार भगाये और विमान।।
सीमा पार उतर अंदर घुस,
जो दहाड़ कर गरजा था।
होश उड़ा गीदड़ दल के वह,
अपने घर लौट आया था।।
अभिनंदन, अभिनंदन का,
अभिनंदन तेरे गौरव का।
उन वीर शहीदों का भी है,
अभिनंदन नमन पराक्रम का।
जय भारत जय भारत धरती,
जय सेना जल, नभ, थल की।
हे मातृभूमि तेरी जय जय,
जय जय राष्ट्र तिरंगे की।।
स्वरचित कविता-
डॉ0 धारा बल्लभ पाण्डेय,
अध्यापक एवं लेखक,
कर्नाटक पुरम, मकेड़ी, अल्मोड़ा, पिन-263601,
उत्तराखंड।
मोबाइल नं- 9410700432
छात्र एव युवा साहित्यकार
पुलवामा शहीदों पे लिखी मेरी रचना ~
~~~ऐ पाकिस्तान बेहाया ~~~
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~
तुझे भारत ललकार रहा है ,
पुलवामा में हमला करके ,
बेशर्मी दिखाने वालों ,
नीच, निर्लज्ज, बेहया.......
अब तुम न बच सकोगे ,
और न तुम जी सकोगो ,
हो साथ तुम्हारे कोई भी,
अमेरिका या चीन ,
तुम मिट जाओगे ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
तुम कुत्ते की मौत मारे जाओगे ,
नही मिलेगी तुझे कब्र भी,
और न मिलेगी एक धूर जमीन ,
नही कोई देगा तुम्हारा साथ ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
अब न कोई दोस्ती चलेगी ,
अब न कोई रिश्ता - नाता,
अब होगी गोलियो की बरसात ,
फिर होगी सर्जिकल स्ट्राइक ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
भूल जा कश्मीर तू,
अब लाहौर, कराची भी हमारा होगा ,
चालीस के बदले चालीस हजार लेंगे ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
~ रुपेश कुमार©️
छात्र एव युवा साहित्यकार
मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*
पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप..........🌹🇮🇳
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
प्यार भरा दिल हम रखते हैं,सबको अपना माने।
अपनों की खातिर जीना तो, मरना भी हम जाने।
गद्दारों की ओछी हरकत,भर देती है ज्वाला,
उनको देने को प्रतिउत्तर बनते हैं परवाने।।
निहत्थे निर्दोष सैनिकों पर, था बम यूँ बरसाया,
पुलवामा को याद कर रहे,आज सभी पैमाने।।
प्रेम भरा दिन याद कराता, प्रेमी सभी शहीदों का ,
भारत माँ की गोद में सोए,लाल कई मस्ताने।।
एक वर्ष बीता है कैसे, उनके घर जा पूछो,
बेवा, बच्चे,माँ, की पीड़ा, समझो तो अनजाने।।
देश की रक्षा की खातिर, सीमा पर बैठे हैं,
उनकी जां को दाँव लगाकर, हम गाते हैं गाने।।
भूल भला कैसे सकते हैं, भारत माँ के वीरों,
गाथा वीरों की कहती यह,कीमत को पहचाने ।।
🌹
एक फूल बस उन शहीद के, नाम धरा पर रख दो,
वेलेन्टाइन डे उनका मधु, हो देश के जो दिवाने।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
यशवंत"यश"सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
आज की विषय पर मेरी रचना
💐💐💐💐💐💐💐💐
तुम एक क्या आवाज दो?
हम दस आएंगे।
हो जाएंगे वतन पर निछावर,
शहीद कहला जाएंगे।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
इस जवानी के लहूँ को,
आनायास मत समझो।
जिस दिवस ये उबल उठे,
टूटे हुए शीशे जोड़ जाएंगे।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
हम जाए या हमारे खून जाए,
नहीं है परवाह जान की।
दे देंगे प्राण हम,
झुकने न देंगे,तिरंगे शान की।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
हम मरेंगे सौ आएंगे,
तेरे आतंक से न घबराएंगे।
जहर को अमृत सम पीकर यश
सहस्रौ उग्रवादियों में
वंदे मातरम कह जाएंगे।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
आशा जाकड़
पुलवामा के शहीदों उर की वीणा रो रही
शरीर दिव्य हो गया आवाज मौन हो गई
वीरता बर्फ में दर्ज ,सदा को अमर हो गई
वतन के शहीदों की सर्वत्र अर्चना हो रही
पुलवामा के शहीदों उर की वीणा रो रही
मौन है प्रकृति मौन पुलवामा की च़ोटियाँ
मौन है ये आस्माँ ,मौन है अब सारा जहाँ
मौन होकर वसुन्धरा भी अश्रुपूरित हो रही
पुलवामा के शहीदों उर की वीणा रो रही ।।
आशा जाकड़
जया मोहन प्रयागराज
श्रद्धांजलि
आज तिरंगा फिर खून से नहा रहा है
आतंकियों के हाथों जवान मौत पा रहा है
लोग मन रहे मोहब्बत का दिवस
कितने परिवारों के दिन हो गए तमस
हमे सुकून की नींद सुलाने को
वतन का रखवाला लुटा जा रहा है
आज।।।
मन मे दुख की ज्वाला धधक रही है
वीर सपूतों की शहादत का बदला मांग रही है
बहुत हुई शांति अम्न की बाते
अब सहन शक्ति का दामन छूटा जा रहा है
आज।।।
उठाओ हथियार काटो इन सियारो को
खोजो अपने आस पास छिपे हुए गद्दारो को
देश तुमसे शहीदों का हिसाब मांग रहा है
आज।।
उठो जागो आपस की द्वेष भावना जाओ भूल
देश की रक्षा करने में हो जाओ मशगूल
शपथ खाओ काट दोगे ऐसे हाथो को
जो आतंकी गद्दारो को संवार रहा है
आज।।।
ऐसी माता पिता के चरणों मे शीश झुक जाते है
जिनके बेटे हमारे लिए जान गंवाते है
आंखों से झर झर आँशु बहते
वाणी थम जाती है
क्या देश केवल इनकी ही थाती है
अंतरात्मा से कर्तव्य बोध ललकार रहा है
आज तिरंगा
डॉ शिव शरण "अमल "
घर का प्रणाम ,परिवार का प्रणाम तुम्हे,
गांव,गली ,खेत,खलिहान,का प्रणाम है ।
राह में रुके नही,और फर्ज से भी डिगे नही ,
मरते हुए भी किया ध्वज को प्रणाम है ।
हौसले बुलन्द है ,शहादत के नाम आज,
रक्त वही धन्य आये देश के जो काम है ।
मातृ भू की आबरू में आँच नही आई जरा,
शौर्य के प्रतीक सारे राष्ट्र का प्रणाम है ।।
डॉ शिव शरण "अमल "
एस के कपूर श्री हंस।।।।।।* *बरेली
*हमारे अमर शहीद जवान।*
*।।।।मुक्तक।।।।माला।।।।।*
1,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*जवानों से सुरक्षित देश।।।।*
नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।
वतन के लिए देकर जान
वो बे जुबान हो गए ।।
उनके प्राणों की कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।
उठ कर जमीन से ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।
*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*आतंकवाद को उत्तर।देना है।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*
अब आर हो या पार हो,
बंद नरसंहार हो।
हर वार का जवाब वार,
अब लगातार हो।।
मिट जाये नक्शे से ही,
नाम आतंक का।
कुछ ऐसा कठोर प्रहार,
अबकी बार हो।।
*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
3,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*अमर वीर सपूतों की शहादत*
*व्यर्थ नहीं जायेगी।*
पुलवामा, उरी में दिखा कर
ऐसी ये अराजकता।
मत खुश हो कि शर्मसार
करके तू मानवता।।
नहीं जायेगा व्यर्थ कभी ये
बलिदान शहीदों का।
होगा ऐसा प्रहार कि ना
दिखा पायेगा दानवता।।
*एस के कपूर श्री हंस।।।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*मोबाइल* 9897071046
8218685464
कौशल महंत"कौशल"
, *जीवन दर्शन भाग !!३०!!*
★★★
पढ़ना चाहा ध्यान से,
साँझ दुपहरी प्रात।
पर होते जो मनचले,
करते हैं उत्पात।
करते हैं उत्पात,
विध्न करते पढ़ने में।
आता है आनंद,
सदा इनको लड़ने में।
कह कौशल करजोरि,
कहाँ आता है गढ़ना।
इनको अपना भाग्य,
नही चाहें यह पढ़ना।
★★★
शिक्षा का मंदिर वही,
जहाँ मिले नित ज्ञान,
शिष्य भक्त बन कर रहें,
गुरुवर ज्यों भगवान।
गुरुवर ज्यों भगवान,
पढ़ाते ध्यान लगाकर।
करे जगत-निर्माण,
शिष्य का भाग्य जगाकर।
कह कौशल करजोरि,
दिला कर कठिन परीक्षा।
इस जीवन का सार,
तभी जब पायें शिक्षा।।
★★★
बोले निज कर जोड़कर,
सब मित्रों के बीच।
धार ज्ञान की बह रही,
तन-मन को लो सींच।
तन-मन को लो सींच,
सभी मिल धरम निभायें।
राग-द्वेष को त्याग,
प्रेम से पढ़ें पढायें।
कह कौशल करजोरि,
सभी की आँखें खोले।
नहीं रखे मन-मैल,
सीख की बातें बोले।।
★★★
कौशल महंत"कौशल"
,
सत्यप्रकाश पाण्डेय
बड़भागी हम नाथ मिलों सानिध्य तुम्हारों
परमब्रह्म संग रास रचायें सौभाग्य हमारों
दरस पाय पावन हुई देह धन्य हुईं जगदीश
छूटों जीवन नेह हृदय स्मरण करें तुम्हारों
जग अघ से मुक्त हुईं हम पुण्य उदित हमारे
सुदबुध भूल गईं स्वामी पाकर स्नेह तुम्हारों
पूर्व जन्म के सुकृत कहें या प्रारब्ध श्री कृष्ण
हुओं है श्रीपरम् ज्योति से यहां मिलन हमारों।
श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कुमार नमन लखीमपुर-खीरी
गीत- सुनो सुहागन!
अभी बुलाती हैं हमको सरहद पर माई,
सुनो सुहागन आ जाऊंगा जल्दी ही मैं,
सुनो सुहागन!
शादी के जो पूर्व थे, हमने सपने देखे,
उन सपनों को सच करने जल्दी आऊँगा।
अश्रु न तुम अपने नयनो में भरो रूपसी,
माँ होती हैं चिंतित मैं जल्दी आऊँगा।
सुनो सुहागन रखना तुम खुद का ख़्याल भी,
वादा हैं कि आ जाऊंगा जल्दी ही मैं।
सुनो सुहागन!
जो बापू को पता नही,वो हिसाब सुनो तुम,
माँ से कह देना वो, बापू से करवा देंगी।
यदि तुम होना कभी भयभीत यहाँ पर,
माँ से कहना भय से तुमको लड़वा देंगी।
सुनो सुहागन तेरे हाथ पर लिखें नाम के,
वादा हैं मिटने से आऊँगा पहले ही मैं।
सुनो सुहागन!
लगता हैं फिर से माँ पर ओ घात हुई हैं,
अब हमको उस दुष्ट शत्रु से लड़ना होगा।
सुनो प्रिये तुम मेरे जाने पर रोना मत यूं,
वीर सुहागन हो तुमको अब लड़ना होगा।
सुनो सुहागन कहो कि क्या उपहार मैं लाऊ,
वादा हैं की युद्ध जीत आऊँगा जल्दी ही मैं।
सुनो सुहागन!
लगा महावर देख हमारे पैरों में वह,
सब मित्र हमारे हमको दिनभर छेड़ेंगे।
जब होकर उदास मैं बैठूंगा कही अकेला,
तो हमको भाभी-भाभी कह कर छेड़ेंगे।
सुनो सुहागन मेरे पैर में लगा महावर,
वादा हैं छुटने से आऊँगा पहले ही मैं।
सुनो सुहागन!
-कुमार नमन
लखीमपुर-खीरी
डॉ. शेषधर त्रिपाठी'शेष' पुणे, महाराष्ट्र
मोहताज
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भारत- भू की संस्कृति में,पावन प्रेम आख्यान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
नल-दमयंती,हीर-राँझा,ये बड़े प्रेम उपमान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
कृष्ण-सुदामा मित्र भाव ये सुंदर समाज परिधान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
सीताराम औ राधाकृष्ण ये जग में पूजित नाम हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
पनपा पवित्र प्रेम भारत में,लोग हुए अनजान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
प्यार छिछोरे का संग्राहक,ये कैसा इंसान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
मर्यादा से हो बँधा प्यार, तनिक न इसका भान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
कितना पावन प्रेम हमारा, मर्यादा का आधार है,
फिर भी क्यों हम आज हुए,इस नकली प्रेम के मोहताज हैं।
नकली से असली संस्कृति का होता बंटाधार है,
उत्कृष्ट संस्कृति को त्याग रहे, अब निकृष्ट के मोहताज हैं।
उच्श्रृंखलता सिखा रही, ये समाज अभिशाप है,
फिर भी क्यों हम आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
मर्यादा को दे तिलांजलि, करते प्रेम इजहार हैं,
फिर भी क्यों हम आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
पुलबामा के शहीदों को समर्पित दिन आज है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
देशप्रेम ये अमर प्रेम है, इस पर हमको नाज है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
©डॉ. शेषधर त्रिपाठी'शेष'
पुणे, महाराष्ट्र
10/02/2020
मो.नं.-9860878237
संजय जैन (मुम्बई)
*वतन से मोहब्बत निभा गए*
विधा : कविता
सारी दुनिया से अपनी,
पहचान मिटाकर चले गए,
भिगोकर खून में वर्दी,
कहानी दे गए अपनी।
मोहब्बत वाले दिन,
वतन पर जान लुटा गए,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥
अपनी सारी खुशियाँ और,
अरमान लुटाकर चले गए,
मोहब्बत मुल्क की सच्ची,
निशानी दे गए अपनी।
इसलिए वो हिन्दुस्तां पर,
जान लुटाकर चले गए,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥
तम्मन्ना थी दिल में कि,
मेरा भारत खुशहाल रहे,
इसलिए मनाते रह गए,
वेलेंटाइन-डे यहाँ हम-तुम।
और वहाँ कश्मीर में सैनिक,
जवानी दे गए अपनी…,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥
शांति वार्ता से अब तक,
क्या हमको है मिला,
क्या पाया-क्या खोया,
देशवासियों को वो बता गए।
माँ-बाप,बीबी-बच्चों को,
वतन के हवाले छोड़ गए,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥
में दिल से उन शहीदों को नमन करता हूँ और
श्रृध्दांजली आज मोहब्बत दिवस पर वो सच्ची मोहब्बत वतन से निभा गये।
जय हिंद
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
14/02/2019
ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली 9837753290.
14 फरवरी के शहीदों के नाम
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अमर। बलिदानी
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यह तिरंगा शान से यूं ही अब लहरायेगा,
जो बढ़ेगा इस तरफ वह धूल में मिल जाएगा।
गांधी नेहरू गौतम नानक इस धरा के पूत थे,
प्रेम के थे वह पुजारी शांति के वह दूत थे।
मन में ले आदर्श उनका दोस्ती के वास्ते,
खोलने चाहे थे हमने बंद थे जो रास्ते।
पुलवामा में कारवां में जा रहे इंसान थे,
बदले में सीमा पर अपनी आ रहे हैंवान थे।
खूब बदला दोस्ती का पाक ने हमसे लिया,,
आड़ लेकर दोस्ती की कारवां पर हमला किया।
देश के खातिर मिटे जो देश की खातिर जिए,
वीर सेनानी हमारे अंतिम सफर पर चल दिए।
धन्य है वह वीर ऐसे धन्य ऐसी
माएं हैं,
शत्रुओं का काल बन जो शत्रुओं पर छाए हैं।
गोद सूनी हो गई और मिट गया सिंदूर है,
बहन से बिछड़ा है भाई काल कितना क्रूर है।
लाल अपने रक्त से हिम पर्वतों को कर दिया,
पर तिरंगे को कहीं पर भी नहीं झुकने दिया।
लड़ते-लड़ते शत्रुओं से जो सदा को सो गए,
आज करते हैं नमन उनको अमर जो हो गए।
ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली
9837753290.
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"यौवन"*
"यौवन की दहलीज़ पर,
रखे जो कदम-
मन मयूरी नाच उठा।
देखने लगे दिन मे सपने,
मन मधुर मिलन के-
गीत गा उठा।
यौवन में लगता हैं यही,
सपनो का राजकुमार-
यही कही छिपा बैठा।
मधुमास छाया है जीवंन में,
पतझड़ की उदासी-
साथी भूला बैठा।
यौवन की मस्ती में साथी,
जीवन के संस्कार-
यहाँ भूला बैठा।
यौवन की दहलीज़ पर ,
रखे जो कदम-
मन मयूरी नाच उठा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः 14-02-2020
सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश अभी हारा नही
बर्फीली हवाओं में हो झमाझम वारिश।
या हो हाड़ कप कपाती शीतल शरद ।
जिस्म जला दे वह लू की हो लपटें ।
मेरे वतन का नौ जवा अभी हारा नही है।
अपने सारे सुखो की वह देकर आहुति।
मेरे घरों को वह सुखचैन की नींद देता।
कहीं कोई दुश्मन न सीमा के पास आए।
रात रात भर वह सीमा पर पहरा देता।
मेर वतन का सिपाही अभी हारा नही है।
अपने परिवार को छोड़कर अकेला अदम्य
वह करता मेरे वतन की धरा को धन्य ।
दीवाली दशहरा होली और राखी।
बैठ कर सीमा पर सबको मनाया
मेरे वतन का सिपाही अभी हारा नहीं है।
अपने रक्त की एक एक बूँद से सींचता।
वो फौजी सिपाही मेरे वतन का गुलशन।
राष्ट्रप्रेम अपने हृदय में भीचता ।
कभी हारा नही है वो अभी हारा नही है।
श्याम कुँवर भारती (राजभर )- कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
फुलवाम शहीदों को नमन
हिन्दी गीत –अपना वतन चाहिए
न सोहरत न दौलत मुझे अपना वतन चाहिए |
फलता फूलता और मुझे खिलता चमन चाहिए |
न हो दुश्मन कोई न हो अड़चन कोई |
मर सकूँ मै वास्ते वतन तिरंगा कफन चाहिए |
खून शहीदो सींचकर हरा किया गुलशन |
शहीद होने न दे भारत ऐसा नव रतन चाहिए |
अपनी धरती की मिट्टी माथे लगायेंगे हम |
सह सके वार दुश्मन फ़ौलादी बदन चाहिए |
न हो पतझड़ कभी और बहारे मुस्कुराए सदा |
हरी धरती मे बहती गंगा बाँकपन चाहिए |
बढ़े भाईचारा यंहा लोग सारे मिलके रहे |
देश तेरा न मेरा सबका ऐसा मन चाहीए |
न हिन्दू मुस्लिम कोई सब बनके भाई रहे |
न हो दंगा कही देश शांति औ अमन चाहिए |
मै रहूँ न रहूँ हिन्द जिंदाबाद रहे |
शान तिरंगा रहे भारती हिन्द नमन चाहिए |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )-
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286
रत्ना वर्मा धनबाद झारखंड
तिथि- 14/02/2020
दिन- शुक्रवार
नमन भारत - अभिनंदन वंदन प्रणाम संग
सभी को सुप्रभात ....
मेरी कलम से ....
" नतमस्तक हूँ पुलवामा "
ये सोच कर सैनिक थें चले,
खैरियत वतन का रहे ।
कारवां चली ही थी कि हाय ,
साँस शोर कर उठी ....सिसकियों भर उठी !!
और हम लुटे -लुटे वक्त से पिटे- पिटे
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ......
कारवां गुजर गया आसमान देखते रहें ...
धूप भी खिली न थी,
कि हाय शहर धुआँ-धुआँ हुआ
लाशें पर लाशें पटी ...ये कैसा हादसा हुआ!
दुश्मनों की चाल का ये कैसा सिलसिला हुआ....
क्या शबाब था कि , लहू-लहू पिघल उठा ....
स्वप्न सारे ढेर हुए, आसमां बिलख उठा...
और हम लुटे -लुटे वक्त से पिटे- पिटै
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ....
कारवां गुजर गया आसमान देखते रहें!!
नज़र -नज़र को थी आंक रही
हाय ये किसकी नज़र लगी ....
दुश्मनों को इनकी कैसै ख़बर लगी !
यहाँ चल रही थी देशद्रोहियों की निति!
ईमानदारी में शंका हुई, भाईचारे में हो गई क्षति..
और हम लुटे लुटे वक्त से पिटे-पिटे ...
विक्षिप्त प्राण देखते रहें .....कारवां गुजर गया
हम आसमान देखते रहें ....
वो कैसी घड़ी थी कि ....
जिस्म के टुकड़े टुकड़े हुए ...
किसी के सर किसी के हाथ पाँव
के चिथड़े हुए ...
प्रिय न प्रिय को देख सकी...
हाय भाव में गहन रहे .....
पिता की गर्व से फूली छाती ,
माँ ने कहा - आज हम धन्य हुए ....
और हम लुटे लुटे वक्त से पिटे-पिटे
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ...कारवां गुजर गया
आसमान देखते रहें ....
भारत माँ के वीर सपूतों को
शत- शत नमन जय हिंद!!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
204अम्बिका अपार्टमेंट
धनबाद झारखंड
भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.
पुलवामा हमले पर लिखी तत्कालीन रचना
*"पुलवामा न भुलाना है"*
(ताटंक छंद गीत)
..................................
विधान-१६+१४=३०मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, दो दो पद तुकबंदी।
..................................
*सन् उन्नीस चौदह फरवरी,
"पुलवामा न भुलाना है" ।
नापाक पाक की करनी का,
सच जग को दिखलाना है।।
*शेरों को श्वानों ने काटा,
बदला हमें चुकाना है।
छल से छलनी करते हैं जो,
नर्क उन्हें पहुँचाना है।।
शहीद चवालीस के बदले,
पापी सहस गिराना है।
नापाक...................।।
*छल से उछल रहे छलियों को,
नाकों चने चबाना है।
पाक कहीं फिर डंक न मारे,
उसको धूल चटाना है।।
झंडा गाड़ पाक में उसके,
साहस आज दिखाना है।
नापाक...................।।
*छुपे हुए गद्दार देश में,
उनको मार भगाना है।
आस्तीन पले साँपों का भी,
हर फन कुचला जाना है।।
भूत लात का बात न माने,
इनको सबक सिखाना है।
नापाक....................।।
*माँ-ममता सिंदूर मांग का,
राखी को न भुलाना है।
बना बहाने कब तक कितने,
बच्चों को बहलाना है??
खुशियों में जो आग लगाते,
उनको आज जलाना है।
नापाक..................।।
*जैसा को तैसा ही देंगे,
और न धोखा खाना है।
चुन चुनकर पापों के अड्डे,
भेज मिराज उड़ाना है।।
अब आतंकी आकाओं को,
गिन गिन मार गिराना है।
नापाक..................।।
*हे भारत के वीरों जागो,
ऋण देश का चुकाना है।
बजा गगनभेदी रणभेरी,
पौरुष निज दिखलाना है।।
अब तो आतंकी शोणित से,
धरती को नहलाना है।
नापाक...................।।
.................................
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
.................................
प्रियव्रत कुमार
आज का दिन हम कुछ यूँ मना रहे थे।
सभी अपने प्यार में खुशियाँ मना रहे थे
हम दुश्मनों के संग गोलियाँ चला रहे थे,
हमें तो वतन से प्यार था इस कदर
जहाँ सभी एक-दूजे से प्यार जता रहे थे
वहीं हम वतन पर अपनी जान लूटा रहे थे।
प्रियव्रत कुमार
पुलवामा हमला में शहीद सभी वीर जवानों को में शत् शत् नमन।
🙏🏻🌹🙏🏻
कवि नितिन मिश्रा'निश्छल' रतौली
जाने कैसे फूट फूट माँ का आँचल रोया होगा । वो छाती रोयी होगी जिसने बेटा खोया होगा ॥ जाने कितने ही गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी होंगी । औ कितने ही नई नवेली सी माँगे उजड़ी होंगी ॥ जाने कैसे राखी का हर इक धागा टूटा होगा । और अस्क से जाने कितना ही काजल छूटा होगा ॥ भूल गये हम उन्हे आज के दिन थे जो बलिदान हुये । प्रेम दिवश के दिन जाने कितने सैनिक कुर्बान हुये ॥ मैं उनके चरणों मे निज तन मन धन अर्पित करता हूँ । निश्छल मन से उनको श्रद्धाँजली समर्पित करता हूँ ॥ चला गया जो सरहद पर अबतक वो प्यार नहीं लौटा । एक वर्ष हो गया है राखी का त्यौहार नहीं लौटा ॥ होली मे आँशू छलके चेहरे पर लाली न आयी । देखो पापा चले गये अबकी दीवाली ना आयी ॥ याद नहीं जो कफन बाँध कर के सरहद पर चले गये । याद नहीं जिनके शोंणित से अबतक दीपक जले गये ॥ हम अपने परिवारों के संग खुशियों मे यूं झूल गये । जो कुर्बान हुये पुलवामा में हम उनको भूल गये ॥ मैं उनके चरणों मे यह जीवन भी अर्पित करता हूँ । निश्छल मन से उनको श्रद्धाँजली समर्पित करता हूँ ॥
कवि नितिन मिश्रा'निश्छल' रतौली सीतापुर8756468512
कवि रामबाबू शर्मा ,राजस्थानी,दौसा
👮🇮🇳 *जय जवान* 🇮🇳👮
भारत माँ के सच्चे प्रहरी,
वीर जवानों अभिनंदन ।
मर मिटने से कभी न डरते ,
आओ उनका करले वंदन।।
चिंता नहीं, सर्दी गर्मी की ,
वर्षा में भी, अडिग खडें।
बर्फ पिघल करती अगवानी,
सैनिक सीमा पार अडे।।
घर से ज्यादा देश की चिंता ,
पावन बंधन है हितकारी।
गंगा जमुना सी ये पावनता,
वीरों ने, हिम्मत कब हारी।।
देश की खातिर प्राण तज दिए,
मानवता की , पहरेदारी।
नहीं डरा, बम गोली से भी,
बस सीमा की रखवाली।।
आन बान की लाज बचा दी ,
लगी हो,प्राणों की भी बाजी ।
करें आरती वीर जवां की ,
जय बोलो भारत माँ की।।
🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏
*कवि रामबाबू शर्मा ,राजस्थानी,दौसा*
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