सुनीता असीम

है काम ख्वाब का आँखों में सिर्फ पलने का।
फसा जो इनमें तो दिल वो रहा मचलने का।
***
नहीं किसी का रहा ये कभी जमाने में।
ये वक्त रहता हमेशा ही नाम ढलने का।
***
बेआसरा जो किया यार ने किसी को तो।
कि सिलसिला ए उदासी नहीं ये टलने का।
***
बहुत हुईं ये पुरानी परम्पराएँ भी।
हुआ है वक्त हमारा अभी बदलने का।
***
कि बालकों को दें चेतावनी सही हम तो।
नहीं है वक्त अभी उनका तो फिसलने का।
***
सुनीता असीम
१५/१/२०२०


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" हांसी ,  जिला हिसार , हरियाणा ।

वफादारी के सांचे में समाए हूं मैं ,
भार वादों का अभी तक तो उठाए हूं मैं ।


नींद तुझको अब नहीं आती सुना है मैंने , 
इसलिए कल रात से खुद को जगाए हूं मैं ।


सह सकूं हर एक गम तेरा , खुदा कर दे ऐसा ,
लोहे सा मजबूत इस दिल को बनाए हूं मैं ।


प्यार खातिर है लड़ाई हार जाऊं बेशक , 
ये कदम मैदान में साथी जमाए हूं मैं ।


मौत आ जाए अजी बेशक मुझे हंस-हंस कर , 
गम नहीं है ईद-दिवाली मनाए हूं मैं ,


लोग कहते हैं कि धोखा है , छलावा है तू ,
जिंदगी भर के लिए दिल को दिल को लगाए हूं मैं ।


जान कर तेरी हकीकत क्या करूं ? मुझको बता ,
"टेंपो" बेखुद बहुत खुद को बनाए हूं मैं ।


रचित --- 18 - 09 - 09


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

जीवन ही अब भार मुझे
*******************
मेरा अपना इस जग में ,
आज़ अगर प्रिय होता कोई।


मैंने प्यार किया जीवन में,
जीवन ही अब भार मुझे।
रख दूं पैर कहां अब संगिनी,
मिल जाए आधार मुझे।
दुनिया की इस दुनियादारी,
करती है लाचार मुझे।
भाव भरे उर से चल पड़ता,
मिलता क्या उपहार मुझे।
स्वप्न किसी के आज उजाडूं,
इसका क्या अधिकार मुझे।
मरना -जीना जीवन है,
फिर छलता क्यों संसार मुझे।


विरह विकल जब होता मन,
सेज सजाकर होता कोई।


विकल, बेबसी, लाचारी है,
बाँध रहा दुख भार मुझे।
किस ओर चलूं ले नैया,
अब सारा जग मंजधार मुझे।
अपना कोई आज हितैषी,
देता अब पुचकार मुझे।
सहला देता मस्तक फिर यह,
सजा चिता अंगार मुझे।
सारा जीवन बीत रहा यों,
करते ही मनुहार मुझे।
पागल नहीं अबोध अरे,
फिर सहना क्या दुत्कार मुझे।


व्यथा विकल भर जाता मन,
पास खड़ा तब रोता कोई।


फूलों से नफ़रत सी लगती,
कांटों से है प्यार मुझे।
देख चुका हूं शीतलता को,
प्रिय लगता है अंगार मुझे।
दुख के शैल उमड़ते आयें,
सुख की क्या परवाह मुझे।
भीषण हाहाकार मचे जो,
आ न सकेगी आह मुझे।
नहीं हितैषी कोई जग में,
यही मिली है हार मुझे।
ढूँढ चुका हूँ जी का कोना,
किन्तु मिला क्या प्यार मुझे।


पग के छाले दर्द उभरते,
आँसू से भर धोता कोई।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


नूतन लाल साहू

पल
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में महीनों, बीत जाते है
पल का पालन करने वाले
पल पल आगे,बढ़ जाते है
सूरदास,तुलसी, काली,कबीरा
अपने समय के,थे वो हीरा
जग में नाम, कमा कर गये
महादेवी और मीरा
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में,महीनों बीत जाते है
पल का पालन करने वाले
पल पल आगे बढ़ जाते है
क्या किसान, क्या ब्यापारी
क्या नेता, क्या अधिकारी
पल ही करता है,सबका बेड़ापार
जो पल का सदुपयोग,नहीं किया
उनके जीवन में, अंधियार ही अंधियार
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में,महीनों बीत जाते है
पल का पालन करने वाले
पल पल आगे बढ़,जाते है
जलिया वाला, बाग न भूलो
मत भूलो,भगत सिंह की फांसी को
देश भक्ति को,छोड़ चले हम
स्वार्थ की,भक्ति समाई है
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में,महीनों बीत जाते है
पल का पालन,करने वाले
पल पल आगे बढ़,जाते है
वक्त से लड़कर, जो नसीब बदल लेे
इंसान वहीं, जो अपनी तकदीर बदल दे
कल क्या होगा,कभी मत सोचो
क्या पता कल,वक्त खुद
अपनी तस्वीर, बदल ले
नूतन लाल साहू


रामनाथ साहू " ननकी "                                 मुरलीडीह

आज की कुण्डलिया ~
15/02/2020



          ★■◆● तामस ●◆■★


 तामस स्वभाव त्याग दे ,
                           कर सबसे अनुराग ।
थोड़ी सी है जिंदगी ,
                            नहीं लगा तू दाग ।।
नहीं लगा तू दाग ,
                          इसे कोरा ही रखना ।
कालिख तू मत पोत ,
                      नयापन कायम रचना ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                         मूल में आजा वापस ।
दुख के ये सब हेतु ,
                       तमोगुण उपजे तामस ।।


   


                   ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                                मुरलीडीह


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कन्या"* ("क" आवृतिक आनुप्रासिक वर्गीकृत दोहे)
****************************
*कन्या कानन की कली, कल्प-कलित कुल-कंज।
कुहुकत कोकिल कुंज की, किलकत कुलक-करंज।।1।।
(11गुरु, 26लघु वर्ण, बल दोहा)


*किस-किस को कब-कब कहाँ, करना कन्यादान।
कैसे किस्मत को कहें, किस कर कहाँ कमान??2??
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*करके क्यों कुविचार को,  करते करम-कुवेश?
काटो कालिख-कुटिलता, कुवचन कपट-कलेश।।3।।
(11गुरु, 26लघुवर्ण, बल दोहा)


*कन्या की कर कामना, करना कुल-कल्याण।
कलुषित कसमें काटना, कन्या का कर त्राण।।4।।
(15गुरु, 18लघु वर्ण, नर दोहा)


*करके कम क्यों कोसते? कन्या कुल-कलद्यौत।
कपिला-कौस्तुभ-कौशिकी, कुंकुम-कलश-कठौत।।5।।
(13गुरु, 22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कोकिल-कूकना, कानन-किलक-कुरंग।
काट कपट कटु-कोर को, काटे कुटिल-कुसंग।।6।।
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कंचन कीमती, कल्याणी कलधाम।
काटे कुटिल-कलेश को, करती कितने काम।।7।।
(16गुरु, 16लघु वर्ण, करभ दोहा)


*कन्या कविता काव्य की, कुलकित कुलक करार।
कौशल-कौतुक-कौमुदी, कुहुकत कूल कछार।।8।।
(12गुरु, 24लघु वर्ण, पयोधर दोहा)


*कन्या कांता-कामिनी, कुल-केतन कनहार।
कुंजी-कांति-कुलेश्वरी, कामधेनु-करतार।।9।।
(16गुरु, 16लघुवर्ण, करभ दोहा)


*कन्या कणिका कनक की, कोष-कुंभ-कलदार।
कंचन-कुंडल कर्ण का, कल-कल कुल-कासार।।10।।
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कजरी-काकली, क्वणन-कर्ण किलकाय।
कोकिल-कूजन कुटप की, क्यों कुलिंग कुम्हलाय??11??
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कांक्षा-काशिका, कुल-कगार-किलवार।
कुसुमित केतक-कोकनद, कुसुम-कली-कचनार।।12।।
(12गुरु, 24लघुवर्ण, पयोधर दोहा)
*****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
*****************************


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २६७
दिनांक: १४.०२.२०२०
वार: शुक्रवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: ,💋हठ करती प्रिय राधिका💌
लिये    हाथ    बांसुरिया , कृष्ण    चन्द्र  मुस्कान।
हठ   करती   प्रिय  राधिका , श्रवण  बांसुरी तान।।१।।
सुन   राधे    धीरज   धरो , खाऊं   मैं      नवनीत।
चलें   पुन:   मधुवाटिका , सुन   मुरली      संगीत।।२।।
मातु    यशोदा   हैं   खड़ी , हाथ   लिये   नवनीत।
हठ   मत  कर   राधे  प्रिये , देखो   ममता    प्रीत।।३।।
पिता   नंद   आशीष     लूं , गैया   करूं   प्रणाम।
ग्वाल   बाल   सब  साथ लूं , प्रिय राधे अभिराम।।४।।
दाऊ   खड़े  हैं   देखते , कुछ   तो  कर   संकोच।
उतावली   मत  बन  प्रिये , कुछ  मेरी  भी   सोच।।५।।
बड़ी    बावली   चंचला , तू   राधे    प्रिय   श्याम।
राग   न   कर   अनुराग  मन , मुरलीधर  तू  वाम।।६।।
सुन  लाला  मैं   तो  चली , छोड़  तुझे  निज  गेह।
चाल  तेरी   मैं  समझती , तू   नटखट   हूं     हेय।।७।।
लाख   बहाने   कर   रहे , है  तेरे   दिल  में  खोट।
रे   कान्हा   मुरली   बजा , करो  न  सजनी  चोट।।८।।
तू   प्रियतम   मैं   चन्द्रिका , तू    मुरली  मैं  तान।
यमुनाजी   के  तट  चलें ,  गाएं   मधुरिम    गान।।९।।
नंदलाल   गोपाल    सुन, श्याम   सलोने    मीत ।
दीवानी   मुरली   मधुर , तू   जीवन  मैं       प्रीत।।१०।।
बनी   रागिनी   फिर  रही , दामोदर  हिय  ध्यान।
कमलनैन   कान्हा  प्रियम , रखो   प्रीत  सम्मान।।११।।
ग्वाल  बाल  सह   गोपियां , उड़ा  रहे   उपहास।
लाल   हो   रही  लाज से , तनिक करो आभास।।१२।।
मनमोहन  चल  साथ  में , करें   मनोहर     रास।
लखि निकुंज जीवन सफल,राधा कृष्ण विलास।।१३।।
रुष्ट  हुई  लखि  राधिका  , मन हर्षित  घन श्याम।
सुन  राधे   मुरली   मधुर , प्राणप्रिये !   सुखधाम।।१४।।


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कैलाश , दुबे ,

खो गई क्यों माँ की ममता ,


और पिता का प्यार भी खो गया ,


हाय रे हाय नसीब जाने कहाँ सो गया ,


पत्नि भी बैठी आस लेकर अभी तक ,


पूरा एक साल भी अब हो गया ,


विधि रचा स्वांग ये कैसा 19 में ,


पुलवामा में भारत माँ का सपूत शहीद हो गया ,


खनखनाती चूड़ियों की खनक अब बन्द है ,


माँग से सिंदूर हमेंशा  को धुल गया ,


क्षण भर में नम हुई कजरारी अँखियाँ ,


दो दिलों के बीच में लो काल बैरी हो गया ,


कैलाश , दुबे ,


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*बस आदमी आज एक* 
*इंसान हो।।।मुक्तक।।।*


आदमी  की  हर बात  का
बस इत्मीनान हो। 


इंसानियत ही बस  आदमी
का   ईमान    हो।।


नहीं चाहिए खुदा सी सीरत
आज आदमी की।


बस   आदमी   आज    एक
अच्छा  इंसान   हो।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल
9897071046
8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली*

*रामायण (हाइकु)*



दिया वचन
मर्यादा पुरुष थे
वन गमन


वानर भेष
अहंकारी लंकेश
बचा न शेष


जटायु प्राण 
लगा दी पूरी जान
काम महान


भरत जैसा
कोई भाई नहीं है
करे जो ऐसा


वीर रावण
ज्ञान नहीं विवेक
मृत्यु धारण


माता जानकी
दी थी अग्नि परीक्षा
स्त्री के मान की


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मोबाइल
9897071046
8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली

*बस करनी रह जाती है याद*
*सबकी।।।।।।।मुक्तक।।।।।*


मिट्टी  से बना  खिलौना
अपना    शरीर   है  यह।


टूट जाता  सबका  कोई
भी राजा या फ़क़ीर यह।।


मिट जाती हस्ती सबकी 
करनी   याद  रहती    है।


विधाता  की  लिखी  हुई
पत्थर की लकीर  है यह।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मो 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


निशा"अतुल्य"

सायली छंद
1,2,3,2,1
15 /2 /2020


नजर
उठा कर
देखना यूँ तेरा
कर गया
उदास


पूछा
जब उससे
हंसा खिलखिला कर
छुपा उदासी
मुझसे


बिछड़ने
का दर्द
होता है सबको
वो समझा
नही


उदास
मैं भी
पर दिखलाया नही
उसे कभी
मैंने।


उम्मीद
पर टिकी
हसरतों की दुनिया
समझाऊं कैसे 
उसे।


रहो
खुश सदा
मिलना बिछड़ना है
रंग जीवन
के ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


संजय जैन (मुम्बई)

*मोहब्बत ने लिखना सीखा दिया*
विधा : कविता


मेरी मोहब्बत ने मुझे,
लिखना सीखा दिया।
लोगो के मन को,
पढ़ना सीखा दिया।
बहुत कम होंगे जो मुझे,  
 पढ़ने की कोशिस करते होंगे।
वरना जमाने वालो ने तो,
मरने को छोड़ दिया था।


न धोका हमने खाया है,
न धोका उसने दिया है।
बस जिंदगी ने ही एक,
नया खेल खेला है।
जो न कह सकते है,
और न सह सकते है।
बस बची हुई जिंदगी को,
जीनेकी कोशिस कर रहे है।।


चिराग जलाया करते थे, 
अंधेरों में रोशनी के लिए।
तभी तो जिंदगी ने अब,
अंधेरा कर दिया।
देखकर रोशनी को,  
अब हम डर जाते है।
की कही अंधेरों से भी,  
 नाता न छूट जाये।।


जय जिनेन्द्र देव की 
संजय जैन (मुम्बई)
15/02/2020


राजेंद्र रायपुरी

एक ग़ज़ल - 
( 122-122-122-122)


न मसलों कभी  यार कच्ची कली को।
खिलेगी तो ख़ुशबू  ही  देगी गली को।


न  कोई  सहारा  है उसका  जहां  में, 
मदद को उठे हाथ लड़की भली  को।


मुक़द्दर  की  मारी  है  कहते सभी ये,
सताओ न तुम यार  नाज़ो  पली  को।


न बातें  करो  तुम  मुहब्बत की  यारों, 
लगेगा बुरा सच में उस दिल जली को।


है चाहत  सभी की हो गोरी ही बीबी, 
न चाहे सुना कोई  उस  साँवली  को।


ख़ुदा ने  है  मारा  न  मारो  उसे  तुम,
चहकने  दो थोड़ा तो उस बावली को।


हैं कहते सभी का वो रखवाला है फ़िर,
ये ही  याद आई  न क्यूँ उस अली को।


              (राजेंद्र रायपुरी)


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"सुख और शांति"*
"कोई नहीं चाहता साथी,
जीवन में-
अपने अशांति।
न ही चाहत कोई कभी,
जीवन में अपनें-
आये दु:ख-दर्द।
सभी की चाहत यही साथी,
जीवन में हो-
सुख और शांति।
-फिर भी,
क्यों -दु:खी होता ये मन,
क्यों-जीवन में रहती-
अशांति।
जब तक जीवन मे साथी अपने,
सुख-दु:ख में होगा नहीं समभाव-
कैसे-मिलेगी शांति?
जहाँ अपनत्व का जीवन में,
होगा मान-सम्मान-
वही होगी सुख और शांति।
कोई नहीं चाहता साथी,
जीवन में -
अपने अशांति।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         15-02-2020


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.............तन्हा तन्हा था.............


आपके आने तक , तन्हा तन्हा था।
जिंदगी  थी , पर  तन्हा  तन्हा था।।


जुस्तजू थी , राह में  हमसफ़र की ;
खुशी  थी ,  पर  तन्हा  तन्हा  था।।


यूं तो ऐशोआराम की कमी न थी ;
व्यस्तता थी, पर तन्हा तन्हा  था।।


थे रिश्तेदार  बहुत  से  दुनिया  में;
गहमागहमी थी,पर तंहा तंहाथा।।


हर शाम यारों के साथ कटती थी;
दोस्ती था , पर  तन्हा  तन्हा  था।।


तांता  लगा  रहता था  लोगों  का;
कमी नहीं थी,पर तन्हा तन्हा था।।


जिंदगी की सुबह अब हुई"आनंद"
गुजरती रही,पर तन्हा  तन्हा था।।


-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मां शारदा


तेरी कृपा पाकर वीणापाणि ,
जग में कौंन न निहाल हुआ।
तुमसे विलग हुआ जग में,
वो तो निश्चय ही बेहाल हुआ।।


स्वेत वसन हे!ज्ञानदायिनी,
माता तेरे है अनंत उपकार।
तेरा ज्ञान पीयूष पाकर मां,
हुआ कृतार्थ सारा संसार।।


दैदीप्यमान मुखमंडल माते,
अवर्चनीय गुणों की हो धाम।
ज्ञान ज्योति से आलोकित,
नर को मिला दिव्य मुकाम।।


वरद हस्त कर पुस्तक साजे,
अवगुण तमस देख मां भाजे।
तुलसी सूर कालिदास आदि,
तव प्रसाद पा जगत में राजे।।


मैं अज्ञान अनाड़ी मूरख मां,
जग आदि व्याधि से है त्रस्त।
आ गया हूं मां शरण आपकी,
भव तापो से कर दो आश्वस्त।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय🌺🌺


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" हांसी ,  जिला हिसार , हरियाणा

यादों में नहीं**


तुझे याद करते-करते , 
रात-रात भर जगना , 
हो गया है , 
मेरी आदत में शुमार सजना ,
कितना बदल गया है , 
किया तेरा करार , 
और कितना खो गया है , 
मेरा करार ।
खत्म होने का नाम नहीं लेता , 
तेरे आने का इंतजार , 
बातें बहुत करनी है , 
तुम्हें बतलाना है , 
सही हुई दूरियों की , 
तकलीफों को ।
बेचैनी भरे पल-पल का , 
मेरा यह संदेश , 
काश ! 
तुम तक पहुंचा देती , 
ये चलती हवाएं , 
मचलती घटाएं , 
और तुम लौट आते , 
यादों में नहीं , 
हकीकत में रूबरू , 
हल करने को , 
बढ़ी हुई सारी समस्याएं ।


रचित --- 24 - 05 - 2017


कालिका प्रसाद सेमवाल    रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड

अपने घर में प्रेम का दीप जलाएं
  🙏🌹🙏🌹🙏🌹  ********************
  चलो, आज कुछ अच्छा
   काम कर लें।
    किसी की दुआ से
    अपनी झोली भर लें।


     चलो हम कल्पना करें
     यहां धरा पर ऐसी दुनिया हो
     जहां शांति के हो सागर
     और प्रेम के पहाड़ हो।


      हम बनायेंगे ऐसा घर
      जिसकी दीवारें बुद्धि की ईंटों से हो,
      विवेक के सीमेंट से
      प्रेम और त्याग की सुगंध घर में हो।


      मेरी लड़ाई किसी से नहीं,
      सिर्फ बुरे विचारों से है,
      भय मुक्त समाज हो
      मजहब ही जिनका इन्सानियत हो,


चलो हम  अपने घर में,
प्यार और त्याग से ऐसा बनाएं,
एक दूसरे का दर्द समझ पाएं,
अपने घर में प्रेम का दीप जलाएं।।
********************
  कालिका प्रसाद सेमवाल
   रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*

*ये कलाम... पुलवामा शहीदों के नाम*


हमारी रक्षा में गुजरती हैं जिनकी सुबह-शाम,
*अजनबी *का आज का दिन उनके नाम।
आज के दिन पुलवामा में हुए शहीदों को,
मेरा शत -शत  नमन और कोटिश प्रणाम।


गैर ने नहीं किसी अपनो ने ही किया था ये काम ,
आखिर क्यों दिया उन्होंने इस हमले को अंजाम।
वो क्यो भूल जाते हैं आज़ाद, भगतसिंह के नाम,
जिन्होंने हँसते हँसते कर दी अपनी जान कुर्बान।


जो करते हैं सच्ची सेवा अपने वतन की,
वो नहीं करते परवाह तन,मन और धन की।
छोड़ जाते हैं आशियाना परिवार का अधूरा,
इज्जत रखना सदा उनके पत्नी,बेटी,पुत्र रत्न की।


उन वीरो की याद में मनाओ वेलेंटाइन,
रूह व तबीयत भी हो जाएगी आपकी फाइन।
मत करो जाति-पाति,ऊँच-नीच,धर्म का ड्रामा,
उनसे खत्म हो जायेगी आतंकी, घुसपैठ की ड़ाइन।


हे पुलवामा के शहीदो आपको सलाम मेरा,
आज आपके ही नाम है ये कलाम मेरा।
हमेशा ही ये तिरंगा झंडा ऊँचा रहे हमारा,
हे भारत  माता लेना  ये पैगाम मेरा ।


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" दिल्ली

विषय: मातृ पितृ पूजन दिवस
दिनांकः १४.०२.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः उजड़ा है कलि बागवां


कलियुग में बस स्वार्थ सब, मातु पिता कहँ मान।
श्रवण  कहाँ या  राम  सम , पाएँ  कहँ   सन्तान।।१।।


कहँ  पाएँ    सम्वेदना , कहँ  ममता  का लाज।
निर्माणक   संघर्ष   क्या , जाने  पूत      समाज।।२।।


सींच पौध कुसमित चमन , सुन्दर फलित सुगन्ध।
चढ़े   देव  नेता    शिरसि , भूले   सब   अनुबन्ध।।३।।


तरुणाई   के  ज्वार   में , भूले    सभी     अतीत।
मातु  पिता  गुरु अर्थ क्या , जिसने   दी  नवनीत।।४।।


दाने   दाने   चूनकर , बना   महल   निज    पूत।
वही आज  मोहताज़  बन , याचक  बने   कुपूत।।५।।


चाह   प्रबल  औलाद   का , मन्नत   भटके बाप। 
वही  चढ़े  उन्नत  शिखर , बाप   बने  अभिशाप।।६।।


रखी   कोख  नौ मास तक , दी जीवन भू जात।
सींच  पयोधर   पान   से , करे  मातु    आघात।।७।।


छाया  दे  आँचल  तले , दी  ममता  नित   नेह।
अश्क  नैन  निर्मल किया , वही मातु बिन  गेह।।८।।


पूत  आज  उत्थान पर , मातु  पिता    सोपान। 
वृद्धाश्रम या सड़क पर , भटके सह   अपमान।।९।।


पाला   शिक्षित   अहर्निश ,संजोए     अरमान। 
छोड़  जरा   ये  पूत  पथ , एकाकी   अवसान।।१०।। 


उजड़ा है कलि बागवां , बन पतझड़ माँ  बाप। 
है   कुपूत बिन   श्रेष्ठतर , जीवन  बिन संताप।।११।।


मानवता  नैतिक  पतन , क्या  श्रद्धा दायित्व। 
लखि निकुंज नर लालची , निर्दयता व्यक्तित्व।।१२।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कुमार कारनिक  (छाल,रायगढ़,छग) """""'''


  मनहरण घनाक्षरी
  *देश के जवान*
   """""""""""""""""'"
देश  के  जवान  वीर,
जैसे भाला  शमशीर,
निज  मन   धर  धीर,
    देश को बचाते हैं।
🇮🇳🌸
निज शौक  पाटते  हैं,
तलवे   न   चाटते  हैं,
या तो सिर  काटते हैं,
    शहीद हो जाते हैं।
🏵🇮🇳
पुलवामा  पर  किया,
पीठ पीछे वार किया,
जात शर्मसार  किया,
     घुसपैठी आते हैं।
🇮🇳🌺
सदा है फैलाते जाल,
जयचदें   बन   काल,
करके भी बुरा  हाल,
      नही शरमाते हैं।
🌸🇮🇳



🇮🇳पुलवामा  के  वीर -
शहीदों को श्रद्धांजलि💐
                   *******


सीमा शुक्ला

भारत मां के सच्चे सपूत तुम अमर हो गये बलिदानी।
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
वे कायर थे जो पीछे से 
छिपकर के तुम पर वार किये।
भारत माता के बेटो का 
बेदर्दी से संहार किये।
है आज सिसकती ये धरती,
 रो रहा आज है नील गगन,
जो किये लहू से तुम सिंचित ,
है आज बहुत गमगीन चमन।
निज प्राणो की देकर आहुति 
ध्वज नीलगगन है लहराया,
सर्वस्व निछावर हुआ मगर,
 ये देश नही झुकने पाया।
हे लाल शहादत मे तेरी  गम मे है हर  हिन्दुस्तानी
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
हो गई मांग ओ भी सूनी ,
कल ही जो गई  सजाई थी,
 बेरंग हो गई चूनर,मेहदी,
 चूड़ा सजी कलाई थी।
नन्हे अबोध बेटा-बेटी,
 पापा कहने को तरसेंगें,
राखी आयेगी बहनो की ,
आंखो से आंसू बरसेगे।
हर रिश्ते टूटे बिखर गये,
 किसकी कितनी मै कथा लिखूं ?
अनकहा दर्द का मंजर है,
 कैसे कितनी मै व्यथा लिखूं?
बलिदान देश हित देख यहां बस आंख बह रहाहै पानी।
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
हे नीतिनियंता बंद करो सब,
 दर्द जरा देखो उनका।
जो खोये अपना लाल वही,
 बस एक सहारा था जिनका।
पूछो उस मां  दर्द तिरंगे मे जिसका बेटा आया,
सोंचा था सेहरा बांधूगी पर,
 बदन कफन लिपटा आया।
हो गई पूज्य  ओ माता जिसका
 लाल देश को अर्पित है ,
है नमन उन्हे भारत माता को 
 जिनका लहू समर्पित है।
लिख गये अमिट इतिहास धरा ये वीरो की है दीवानी।
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
 सीमा शुक्ला।


डॉ राजीव पाण्डेय

*पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि में एक वर्ष पूर्व लिखी कविता* 


रुधिर बहाया है शेरों का, केशर वाली माटी में।
चीख चीख मानवता रोयी,स्वर्ग सरीखी घाटी में।


जिनका यौवन को खिलना था उनकी कलियां मुरझाईं। 
गहरे दुख में डूबा भारत , आंखे  आँसू भर लायीं।


 गणनायक दन्त शावकों के, मुख पर एक तमाचा है।
शेषनाग के फन पर आकर,आतंकी स्वर नाचा है।


अधरों से मुरली त्याग करो,उंगली चक्र चलानाहै।
वीर सपूतों की ललना को ,धीरज आज बंधाना है।


मातम के सागर में डूबा ,  उच्च स्वरों में गाता है।
पूजित वह जननायक होता ,काट शीश दस लाता है।


शंकर जी त्रिनेत्र खोलकर  तांडव सीमा पार करो।
दहशतगर्दी कमर तोड़ दो, भारत का उद्धार करो।


मांगों में सिंदूर नहीं है ,और धधकती ज्वाला है।
रक्षा सूत्रीय अरमानों को, बिल्कुल ही धो डाला है।


 आँसू छिपकर बैठ गए हैं ,नौनिहाल के बस्तों में ।
 बूढ़ों की लाठी टूट गयी , अंधकार के रस्तों में।


बहुत पतंगे उड़ा चुके हो ,और कबूतर छोड़ लिए।
नामर्दो ने घर में घुसकर , सारे बंकर तोड़ दिए।


बहुत लुटा ली है बिरियानी,आज तलक महमानो पर।
आज तलक ना जूँ रेंगा है, उनके बिल्कुल कानों पर।


ढांढस नहीं बंधा सकते हो,केवल कोरी बातों से।
भूत  हमेशा   ही माने हैं ,   लातों  वाले लातों से।


करोड़ सवा सौ की शक्ति है, आज आपके हाथों में।
बिल्कुल भी मत देर करो अब,करने को प्रतिघातों में।


सब्र का प्याला छलक चुका है,अब हमको तुम माफ करो।
या तो गद्दी  मोह छोड़  दो,या दुश्मन को साफ करो।


जय हिन्द
डॉ राजीव पाण्डेय


उमेश प्रकाश , राजाजी पुरम, लखनऊ--

एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ l मैं यह बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति समय के बीतने साथ-साथ जाने-अंजाने बहुत कुछ खोता जाता है l अंजाने में खोये हुए रिश्तों/यादों/सुखों को वह ज़िन्दगी भर खोजता  रहता है जो कभी भी ..…...…..


**ढूँडे नहीं है मिलता**
     ---------------------
पिता की वो झूटी फटकार,
माँ की थपकी-लोरी-प्यार l 
वो सोंधे रिश्ते प्यार-दुलार,
वो अपनापन अपनों का प्यार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


मीठे रिश्तों की मनुहार,
दादी-बाबा करें दुलार l 
नाना-नानी प्रेम बहार,
अपना खुशियों का संसार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


बुआ से मिलता निश्छल प्यार,
चाचा देते सब कुछ वार l 
मामा-मौसी का परिवार,
होता प्रेम का पारावार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


गिल्ली-डन्डा-लट्टू यार,
चरखी-फिरकी की भरमार  l 
होती क्षणभ्रंगुर तकरार,
झूटे गुस्से में जो प्यार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


सोंधी मिट्टी धूल-गुबार,
बहती सावन शीत-बयार l 
रिमझिम बूंदों की बौछार,
तीनों मौसम के उपकार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


"उमेश" ये करते सदा विचार ,
प्रेम का कैसे हो परचार l 
धरती प्रेम का ही सार,
होवें सबके यही विचार  ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....
       ----------
              ----उमेश प्रकाश ,
  एफ-2136 राजाजी पुरम,
          लखनऊ--226017
      मोब--9616135035


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