मासूम मोडासवी

फितरत बदलने वाले इशारे नहीं देखे
रंगत को निगलते ये नजारे नहीं देखे


मिलजुल के जीने के करते रहे अरमां
गीरते हुवे गर्दिश के सितारे नहीं देखे


कुरबत की हसरत लिये निकले तो हो लेकिन
सागर से मगर दो दुर किनारे नहीं देखे


वो पासमें आजाये तो हो दुर शिकायत
धडकन में  उबलते  हैं शरारे नहीं देखे


मासूम मशक्कत से  कभी पीछे नरहें आप
उलजे  हुवे तकदीर  के वो  मारे  नहीं देखे


                        मासूम मोडासवी


डॉ नीलम अजमेर

*वो मेरा है*


वो प्यार की हर हद से
गुजरता है
मेरी हर स्वास में उतर, दिल में धड़कता है


आँख के पानी में मीन सा तड़पता है
लबों पे रुकी हुई कोई बात सा थिरकता है


थाम कर मेरे ख्वाबों का दामन मुझमें जागता है
कारी बदरी- सा,मेरे काँधे पे ठहरता है


तनहाई में साए-सा मुझसे लिपट-लिपट जाता है
हवाओं -सा मेरे इर्द-गिर्द मंडराता है


वो मेरा अक्श है *नील* मुझमें ही समाया है
वो है रुह मेरी, वही मेरा सरमाया है।


      डा.नीलम


अतुल मिश्र अमेठी

अन्जान हूँ, मैं,
कि वो कौन है।
जिसने छीना मेरा,
सुकून, चैन है।
आंखों ने देखा नही जिसे,
फिर दिल महसूस करे किसे।
दिल कह रहा, बस एक ही बात,
तुम करना, बस इंतजार।
वो आंयेंगे, जब तुम्हारे पास,
एक नया होगा, एहसास।
सोंच रहे हो, न तुम,
क्या खास होगी, उसमें बात।
वक्त थम जायेगा तेरा,
जब उससे होगी तेरी, मुलाकात।
पूरी दुनिया सिमटी सी होगी,
बस वही एक नयी, दुनिया होगी।
खुशी का वो पल, आसमान छूता है,
पहला प्यार, जब पहली बार होता है।।........ 


💐अतुल मिश्र 💐❤️❤️


प्रखर दीक्षित

(वेब पोर्टल हेतु)


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


मुक्तक
(कन्नौजी रस रंग)
*माँ पूत*


पौढ़ाए पूत पलोटति माँ, विहंसै  मनहीं लोरी गावै ।
द्वै  बूँद री! तेल कमाल करै, 
 रोवै कनुआ माँ दुलरावै।।
लखि गौर सलोनो मुख मण्डल, हरषाय कन्हैया कहि टेरै,
जुग जियऊ लला  पढ़िऊ लिखिऊ, पद मान प्रतिष्ठा घन पावै।।


धन भाग हमार जरा संभरीं , घर चहकै जग उडियार करौ।
लकुटी बनि अम्मा बाबू की, दुष्वृत्ति विषय संहार करौ।।
सतवादी सत पथ गहौ पूत, परहित जीवन सतचरित उच्च,
तोतर बानी मनमोहक छवि, मम लाल सपन साकार करौ।।


प्रखर दीक्षित

प्रखर दीक्षित
फर्रु


मुक्तिका द्वय
=========
आंगन सी तुलसी
*****************


रक्तिम माँग सुहावन पावन, हों प्रणयी खन निर्द्वंद प्रिये।
रोरी चंदनमय वपु आभा, तुम पूनौ का शुभ चंद प्रिये।।
रोम रोम सुरभित मद सुभगे, नखशिख भरण महावर रोचक,
आरोह वयस का अल्हड़ झोंका, तुम प्रणयन का मकरंद प्रिये ।।


मिला ताल से ताल माधुरी, बनो वारुणी गीत प्रिये।
संग सुगंधा अमृत बेला, बिछुड़न में विरही भीत प्रिये।।
तुम आंगन की तुलसी पावन, सम्पूरक जीवन की अनघा,
सप्तपदी की शपथ प्रखर शुभ, तुम्हीं अघोषित जीत प्रिये।।


प्रखर दीक्षित


डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून, उत्तराखंड  9759252537

 


इश्क़ 
———-
उन्हें इश्क़ 
था वतन से 
शहीद हो गए
सूखा नहीं है 
पानी पानी आँख का 
जिनके लाल सरहद पर 
शहीद हो गए,
रुकेंगे कैसे अश्रु 
जिस घर के लाल थे वे 
सूना है उनका आँगन 
जहाँ खेले-बढ़े थे वे,
सुदृढ़ आधार हैं सैनिक 
तभी देश हँसता है 
सरहद पर जागते हैं 
देश तब चैन से सोता है,
शत-शत नमन है इनको 
बारंबार नमन है इनको 
जो लौट के घर न आए 
जो तैनात है सरहद पर....!!!!
——————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार

मातृभूमि
अमृत सम जिसके रज में,
लोट पोट कर बड़े हुए हैं।
जिसकी आंचल में बीता था,
हर्षयुक्त अतिसुखद बालापन मेरा।


ऐसी पावन मातृभूमि को,
बारम्बार हो नमन मेरा।


जिसकी गोद में सोऊं जब मैं,
परमानंद सम अनुभव हो।
अति प्रसन्न रहें मन मेरा,
अलौकिक सुख का अनुभव हो।


प्रकृति से भरा जिसका आंचल,
गंगा यमुना की पहचान हो।
विदेशी खिलौना मन नहीं भावे,
बस प्रकृति से ही प्यार हो।


हे नाथ! एक विनती मुझसे,
पूरन हो अभिलाषा मेरा।
जब भी मरूं तो तेरे गोद में,
हे मातृभूमि ! बस यही इच्छा मेरा।
 (मेरी काव्य संग्रह अखण्ड भारत से)
        निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार
7250087926


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड

🥀मां🥀
*******
मां
एक विश्वास है
एहसास है
प्यार का
दुलार का
जिसे पाते ही
हम भूल जाते है
अपने सारे
दुःख दर्द
जिसने दिया ही दिया 
बदले में
कुछ भी नहीं लिया।


मां 
परिवार की धुरी होती है
जिसकी
छत्र छाया में
हम फलते फूलते है।


 मां सच्चाई है
जो केवल 
देती ही देती है
बदले में
नहीं लेती कुछ
देखती है
केवल एक ही सपना
हमारे बडे होने का
घर बसाने का
तथा  अपने को 
दादी होने बनने का।


मां को खुश रखना है
यही काम ,
हर बच्चे को अपनी मां के लिए करना  है।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड


देवानंद साहा*आनंद अमरपुरी*

शुभप्रभात -


माता-पिता की कृतियों में , अनुपम संतान होते हैं।
उम्र-पूर्व उन्हें मिटाने बाले निकृष्टतम हैवान होते हैं।


-----देवानंद साहा*आनंद अमरपुरी*


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*

*वही पत्थर भगवान होता है*।
*मुक्तक।*


एक ही पत्थर से आसन ओ
मूरत  का  निर्माण  होता  है।


हर पत्थर  पूजा   जाये  यही
उसका   अरमान    होता  है।।


पर  यूँ ही   नहीं   हर   पत्थर
पूजा जाता श्रद्धा के भाव से।


जो सहता दर्द तराशे जाने का
वही जाकर भगवान होता है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मोबाइल
9897071046
8218685464


एस के कपूर*  *श्री हंस।बरेली*

*यकीन पर यकीन नहीं रहा*
*अब।मुक्तक।*


सच से   दूर हर  बात  में
नई   सजावट आ गई है।


रिश्तों में  कुछ नकली सी
अब    बनावट आ  गई है।।


मन भेद  मति  भेद  आज
बस    गये हैं  भीतर तक।


कैसे करें यकीं कि  यकीन
में भी मिलावट आ  गई है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री* 
*हंस।बरेली।*
मोबाइल। 9897071046
              8218685464


एस के कपूर*  *श्री हंस।बरेली*

*विषय।।।प्यार का इज़हार*
*शीर्षक रचना।।*
*हम और तुम पास पास हों।*
*विधा । छंद मुक्त( तुंकान्त)*
*भाव।  प्रेम व श्रृंगार।*


*हम और तुम पास पास हों।।*


हम और तुम पास पास हों।
साथ में बस   अहसास हों।
वोह पल बहुत ही खास हों।।


*हम और तुम पास पास हों।।*


साँसे एक मन एक हो जायें।
जन्नत सा स्वप्न हम जगायें।
प्रेम की दास्तां नई बनायें।।


*हम और तुम पास पास हों।।*


गम नहीं हमारे आस पास हों।
हर शब्द   भरा  विश्वास     हों।
हर सुख की भरी आस हो।।


*हम और तुम पास पास हों।।*


कभी न मध्य हमारे विन्यास हो।
बस मिलन की   ही आस हो।
बस महोब्बत का ही वास हो।।


*हम और तुम  पास पास हों।।*


हरी भरी    हर   शाख   हो।
फूलों       की  बरसात  हो।
और    कोई   न  बात   हो।।



*हम और तुम पास पास हों।।*
*हम और तुम आस पास हों।।*



*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली(ऊ प)*
मोबाइल         9897071046
                     8218685464


एस के कपूर*  *श्री हंस।बरेली*

*विविध हाइकु।।।।।।।।*


किस्मत मौका
सफल है कर्म से
लगाता चौका


नहीं आराम
व्यस्त रहो काम में
मगन काम


शायर आह
कलम में भी आह
सुने हैं वाह


जो है जिंदगी
भाग्य नहीं कर्म से
है ये बंदगी


सुनो सबकी
और सोचो समझो
करो मन की


प्यार  है  क्या
बताना मुश्किल है
आँखों से बयां


अभाव देखो
तभी निर्णय लेना
भाव को देखो


कर्म गागर
भाग्य लकीरें बनें
सुख सागर


*रचयिता।एस के कपूर* 
*श्री हंस।बरेली*
मोबाइल
9897071046
8218685464


निशा"अतुल्य"

*कान्हा खेलन गए थे होली* 
16 /2 /2020


बरसाने में खेलूं होली
राधा तू तो मेरी हो ली
फंस गया आकर नँद का लाला
नीचे आजा खेलें होली।


छुप छुप कर मैं था आया
मोर पंख ने पता बताया
प्रीत रंग में रंग गया मैं तो
नहीं चढ़े कोई रंग बताया।


सखियों को ले तू समझाये
बात मान जा गिरधर आये
खेलेंगे मिल कर हम होली
प्रीत रंग में रहे भिगोये ।


बरसाने का रंग निराला
चढ़े अगर फिर उतर न पाये
राधा तुझमें प्राण बसे हैं
प्रीत की रीत निभाये होली ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"जीवन-साथी"*
"अग्नि-पथ यही जीवन सारा,
क्यों-साथी जीवन से हारा?
हर हार में साथी फिर यहाँ,
ढूँढ़ ले जीत का सहारा।।
ठहरे न कदम जीवन-पथ पर,
जब तक साथी साथ तुम्हारा।
रोक ही लेते कदम साथी,
मिलता न तुम्हारा सहारा।।
बसती न नफरत मन में यहाँ,
भटकता न कदम फिर तुम्हारा।
साथ निभाते जीवन साथी,
जीवन ही होता तुम्हारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          16-02-2020


राजेंद्र रायपुरी

अरिल्ल छंद पर 
          एक मुक्तक  - - 
🤣🤣🤣🤣🤣🤣


खाना पीना  रोज  उथारी।
सुविधा देंगे मफलर धारी।
देने की यदि चाह न हो तो,
कहना  देंगे  कृष्ण  मुरारी।


          ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे जगदीश मुदित हूँ तेरी भक्ति में
न पूजा न अर्चन मैं तो प्रेम पुजारी
सारा जग निहित है तेरी शक्ति में
नहीं शब्द न भाव कैसे भजूं मुरारी


तेरा सानिध्य बना जीवन सहारा
मुरलीधर तुम्हें देख देख हरषाऊँ
न जानूँ वन्दन और अभिनन्दन
मैं तो निशदिन तेरे ही गुण गाऊं


असुर निकन्दन हे राधा बल्लभ
कभी मोय जग तृष्णा नहीं व्यापै
सत्य हृदय के हार श्री गोविन्द
मेरों मन सदा राधे कृष्णा जापै।


श्री युगलरूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🕉💦 सुप्रभात💦🕉
********************
      जीवन बगिया
********************
जीवन बगिया में
कुछ
ऐसे फूल खिलाओ,
जिससे आसपास का वातावरण
मंगलमय हो,
सभी प्राणियों में
खुशियों का संचार हो
और
मां प्रकृति की गोद
दृष्टि-गोचर हो
हरी-भरी,
***************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


भुवन बिष्ट              रानीखेत (अल्मोड़ा)                     उत्तराखंड

*रचना-प्रभात वंदन*


खुशियां फैले जग में सारी,
फैले मानवता का प्यार।
          प्रेम भाव हो चहुँ दिशा में,
           मानवता की हो जयकार।
नमन करूं भारत माता को,
मिटे जगत से अत्याचार।
            राग द्वेष की बहे न धारा,
            हिंसा मुक्त हो जगत हमारा।
मानवता व प्रेम भाव का ,
करें आपसी हम व्यापार।....
            खुशियां फैले जग में सारी,
             फैले मानवता का प्यार।
प्रेम भाव हो चहुँ दिशा में,
मानवता की हो जयकार।...
            ..........भुवन बिष्ट 
            रानीखेत (अल्मोड़ा) 
                   उत्तराखंड


125 साल पुरानी मैलानी नानपारा रेलवे ट्रैक हमेशा के लिए बन्द

आज सुबह आठ बजे मैलानी से नानपारा जाने बाली ट्रेन 55058 के 55 रेल यात्रियों के साथ आखरी बार रवाना होते ही इतिहास वन गयी 127 वर्ष पुरानी मैलानी बहराइच  मीटर गेज रेल सेवा
    और इसी के साथ आज से बढ़ गया मैलानी ,भीरा,पलिया,  दुधवा नेशनल पार्क के अंदर भारत नेपाल सीमा पर बसे लगभग चौवालीस थारु जनजातीय गांवों के लगभग साठ हजार नागरिकों की मुसीबतें जिनके शेष भारत व जिला मुख्यालय आने जाने का एक सस्ता सुलभ साधन थी यह मीटर गेज रेल सेवा और दुधवा रेलवे स्टेशन व बेलरायां , तिकोनिया ,खरैटिया के उन छात्रों छात्राओं की भी मुश्किलें अब आरम्भ हो गयी जो इन ट्रेनों के जरिए रोज अपने घर से पलिया के स्कूल कालेजों में पढ़ने जाते थे अब उनका दस रुपये और डेढ़ घंटे बाला सफर सौ रुपये और तीन घंटे में बदल गया 
काफी बड़ी संख्या में अब शायद छात्र बोर्ड की परीक्षाएं भी न दे पाये शारदा, कौड़ियाला, मुहाना नदी की बाढ़ और कटान जैसी आपदाओं के मारे गरीबों के बच्चों की पढ़ाई को भी लग सकता है बिराम इस सेवा के बंद होने से पांच लाख लोगों पर पड़ेगा  सीधा असर
बताते चलें भारत नेपाल सीमा के करीब से होकर गुजरने बाली मीटर गेज रेल लाइन का बिस्तार तत्तकालीन ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1880 में रुहेल खंड व कुमायूं रेलवे कंपनी ने प्रारम्भ किया था और सबसे पहले बरेली काठगोदाम पीलीभीत को मीटर गेज रेल से जोड़ा 
इसके बाद 1891 में पीलीभीत मैलानी तक बिस्तार किया गया 1अप्रेल 1891 को मैलानी में पहली बार एक इंजन के साथ दो सफारी बोगियों की ट्रेन स्टेशन पर आयी 
फिर मैलानी भीरा ,पलिया, दुधवा के रास्ते सोनारी पुर 
तक रेल लाइन बनाई गयी और मैलानी स्टेशन से 18 अगस्त 1894 को पहली ट्रेन जो कि मालगाड़ी के लकड़ी लादने वाले पांच ट्रालो के साथ पहुंची थी 
सोनारीपुर स्टेशन पर ,लेकिन वह सोनारी पुर स्टेशन भी अब कयी वर्षों पूर्व  समाप्त किया जा चुका है
फिर दुधवा से चंदन चौकी के लिये 1903 में ट्रेन चलने लगी इसके बाद गौरीफंटा बार्डर तक ट्रेन चलने लगीं थीं पर आज से कुछ वर्षो पूर्व यह सब स्टेशन बंद किये जा चुके हैं  
वन उपज के दोहन व अंग्रेज अधिकारियों के शिकार मनोरंजन  के लिये अंग्रेजी सरकार द्वारा शुरु की गयी 127 वर्ष पुरानी मीटर गेज सेवा को आज 15 फरबरी 2020 को  वनों व वन्य जीवों की सुरक्षा के नाम पर कोर्ट के आदेश पर  बंद किये जाने के साथ ही इतिहास वन कर दर्ज हो गयी


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा

मुक्तक... 



हम रहे तो महफ़िल रही 
बातें सदा दिल मिल रही 
था सफ़र मुश्किल जरा
मगर मंज़िल मिलती रही. 


कुछ लोग मिले, कुछ छूट गए 
गैर हुए अपने, कुछ रूठ गए 
बुरे दौर भी आए ज़िन्दगी में 
कश्मकश में कुछ सपने टूट गए. 


बढ़ते जाना मज़बूरी था 
चलते जाना जरुरी था 
रवायतें ना बदलनी थी 
कर्म ही श्रद्धा - सबूरी था. 


अच्छे - बुरे एहसास थे 
कुछ लम्हे मेरे पास थे 
कुछ मेरी जीत से ख़ुश थे 
और कुछ लोग उदास थे. 


नींद का सिलसिला छूटा 
दर्द का सैलाब फूटा 
तुझे एक सलाम है "उड़ता "
कि तेरा हौसला कभी ना छूटा. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नया मुक्तक 


अमलतास से नयन  तुम्हारे  होंठ  फूलों  की शबनम हैं। 
तन कपास है, मन पावन है, ये रूप महकता गुलशन हैं।
केश राशि ऐसे  लगती  हैं  जैसे  घटाएं  सावन  की  हो।
बहुत स्वच्छ तस्वीर  तुम्हारी  रूप  स्वयं  ही  दरपन  हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


सुनीता असीम

है काम ख्वाब का आँखों में सिर्फ पलने का।
फसा जो इनमें तो दिल वो रहा मचलने का।
***
नहीं किसी का रहा ये कभी जमाने में।
ये वक्त रहता हमेशा ही नाम ढलने का।
***
बेआसरा जो किया यार ने किसी को तो।
कि सिलसिला ए उदासी नहीं ये टलने का।
***
बहुत हुईं ये पुरानी परम्पराएँ भी।
हुआ है वक्त हमारा अभी बदलने का।
***
कि बालकों को दें चेतावनी सही हम तो।
नहीं है वक्त अभी उनका तो फिसलने का।
***
सुनीता असीम
१५/१/२०२०


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" हांसी ,  जिला हिसार , हरियाणा ।

वफादारी के सांचे में समाए हूं मैं ,
भार वादों का अभी तक तो उठाए हूं मैं ।


नींद तुझको अब नहीं आती सुना है मैंने , 
इसलिए कल रात से खुद को जगाए हूं मैं ।


सह सकूं हर एक गम तेरा , खुदा कर दे ऐसा ,
लोहे सा मजबूत इस दिल को बनाए हूं मैं ।


प्यार खातिर है लड़ाई हार जाऊं बेशक , 
ये कदम मैदान में साथी जमाए हूं मैं ।


मौत आ जाए अजी बेशक मुझे हंस-हंस कर , 
गम नहीं है ईद-दिवाली मनाए हूं मैं ,


लोग कहते हैं कि धोखा है , छलावा है तू ,
जिंदगी भर के लिए दिल को दिल को लगाए हूं मैं ।


जान कर तेरी हकीकत क्या करूं ? मुझको बता ,
"टेंपो" बेखुद बहुत खुद को बनाए हूं मैं ।


रचित --- 18 - 09 - 09


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

जीवन ही अब भार मुझे
*******************
मेरा अपना इस जग में ,
आज़ अगर प्रिय होता कोई।


मैंने प्यार किया जीवन में,
जीवन ही अब भार मुझे।
रख दूं पैर कहां अब संगिनी,
मिल जाए आधार मुझे।
दुनिया की इस दुनियादारी,
करती है लाचार मुझे।
भाव भरे उर से चल पड़ता,
मिलता क्या उपहार मुझे।
स्वप्न किसी के आज उजाडूं,
इसका क्या अधिकार मुझे।
मरना -जीना जीवन है,
फिर छलता क्यों संसार मुझे।


विरह विकल जब होता मन,
सेज सजाकर होता कोई।


विकल, बेबसी, लाचारी है,
बाँध रहा दुख भार मुझे।
किस ओर चलूं ले नैया,
अब सारा जग मंजधार मुझे।
अपना कोई आज हितैषी,
देता अब पुचकार मुझे।
सहला देता मस्तक फिर यह,
सजा चिता अंगार मुझे।
सारा जीवन बीत रहा यों,
करते ही मनुहार मुझे।
पागल नहीं अबोध अरे,
फिर सहना क्या दुत्कार मुझे।


व्यथा विकल भर जाता मन,
पास खड़ा तब रोता कोई।


फूलों से नफ़रत सी लगती,
कांटों से है प्यार मुझे।
देख चुका हूं शीतलता को,
प्रिय लगता है अंगार मुझे।
दुख के शैल उमड़ते आयें,
सुख की क्या परवाह मुझे।
भीषण हाहाकार मचे जो,
आ न सकेगी आह मुझे।
नहीं हितैषी कोई जग में,
यही मिली है हार मुझे।
ढूँढ चुका हूँ जी का कोना,
किन्तु मिला क्या प्यार मुझे।


पग के छाले दर्द उभरते,
आँसू से भर धोता कोई।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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