सत्यप्रकाश पाण्डेय

खुद को देखता हूँ आईने मैं,
तुम्हारी सूरत नजर आती है।
यह मेरा भ्रम है या हकीकत,
कि तेरी मूरत नजर आती है।।


वह क़ातिलाना अंदाज तेरा,
और ये घूर कर देखना मुझे।
मैं समा जाऊँगा आगोश में,
फिर बुरा क्यों लगता तूझे।।


तितली नहीं भौरे है हम तो,
आदी है हुश्न के रसपान के।
पियेंगे अधरों से जाम प्रिय,
हे प्रियतमा यौवन खान के।।


अनुभूति तुम मेरे ह्रदय की,
अजनबी नहीं तुम्हारे लिए।
क्यों अनजानी सी हो जाती,
जब जीवन ही तुम्हारे लिए।।


कष्ट होता तुम्हें आह हमारी,
क्यों दर्द का अहसास नहीं।
हमदर्द बने क्यों न सत्य की,
क्यों करती तू विश्वास नहीं।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


         पहचान बदल जाती है
दिनाँक       17/ 2/ 2020


वक़्त बदलता है जब
इंसान चला जाता है 
कहलाता था जो शरीर 
वो मिट्टी कहलाता है।


मिलकर पंचभूत में 
पहचान बदल जाती है।
कल जो चलता था शरीर
तस्वीर बदल जाती है।


होता था जो खुश 
पहन गले में हार 
देख तस्वीर पर उसे 
ज़िन्दगी आँख चुराती है।


अज्जब गज्जब सी रवायतें है
कहाँ कुछ कहती सुनती है
निकलती सांस शरीर से 
नाता सबसे तोड़ जाती है।


तिनका-तिनका जोड़ 
बनाया था एक जहां
एक पल न लगा उसे
छोड़ जाने कहाँ चली जाती है।


समय गुज़रता है जब जैसे
सूरते हालात बदल जाती है 
बनकर मिट्टी शरीर की
पहचान बदल जाती है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुनीता असीम

फेसबुक की महिमा न्यारी।
प्यार मुहब्बत सबपे तारी।
***
अपनी देखें मुंह बनाए।
गैर की बीबी लगती प्यारी।
***
घर गिरस्थी बोझ लगे अब।
सूख रही घर की फुलवारी।
***
बढ़ती उम्र में खेल रचाया।
बुड्ढों की बुड्ढी से .. यारी।
***
इधर से पकड़ा बीबी ने जब।
उधर से भी पड़ती है गारी।
***
परनारी का शौहर पकड़े।
मैसेंजर पे बात हो सारी।
***
दूजी दिल जितना बहला दे।
अन्त में अपनी लगती प्यारी।
***
इस यारी ने घर हैं तोड़े।
गलती है यारो ये भारी।
***
ये समस्या खूब बढ़ी है।
इक फतवा इस पर हो जारी।
****
सुनीता असीम
१७/२/२०२०


संजय जैन (मुम्बई

*श्रोता बन गया आशिक*
विधा : कविता


मिले हम अपनी कविता, 
गीतों के माध्यम तुमसे।
परन्तु ये तो कुछ, 
और ही हो गया।
पढ़ते पढ़ते मेरी गीतों के, तुम प्रसन्नसक बन गये।
और दिल ही दिल में,
हमें चहाने लगे।
और अपने कमेंटो से,
हमें लोभाने लगे।।


दिल से कहूँ तो मुझे भी, 
पता ही नही चला इसका।
और हम भी तेरे कमेंटों, के दीवाने हो गए।
अब तो तेरा मेरा हाल,
कुछ इस तरह का है।
जो एकदूसरे को देखे बिना।
हम दोनों अब रह सकते नहीं।।


कितना दिल से तुमने हमें
पढ़ा।
ये तेरे चेहरे से समझ आता है।
दिल की गैहराइयों से देखे तो।
तुम में हमें मोहब्बत नजर आती है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
17/02/2019


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*आह और  वाह।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


गति  ओ  प्रवाह    का   दूसरा
नाम ही तो जीवन है।


सहयोग ओ परवाह का दूसरा
नाम ही तो जीवन है।।


कर्म की धारा और  विवेक की
पतवार मिल कर चले।


आह और    वाह    का  दूसरा
नाम ही तो   जीवन है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*कुछ अच्छे अहसास तुम बांटो*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


नफरत     का   विष  नहीं,
आस  तुम  बांटों।


बन     कर के  एक   दिया,
प्रकाश तुम  बांटों।।


ये जो जीवन मिला  तुमको,
कुछ अर्थ हैं इसके।


पूरी हो किसी की  मुराद वो,
विश्वास   तुम बांटों।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब नॉ   9897071046
8218685464।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*प्रभु की अदालत में हर कर्ज़*
*चुकाना पड़ता है।मुक्तक।।।*


विधाता   की    अदालत  में
हर  दर्द   सुनाना  पड़ता  है।


 निभाये   नहीं   जो     फ़र्ज़
उनको  बताना     पड़ता  है।।


बिन   कागज़  कलम   ईश्वर
रखता हर कर्म   का हिसाब।


ऊपर उसके  दरबार  में  तुझे
हर  कर्ज़  चुकाना   पड़ता है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाईल
9897071046
8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"आधार"*
"सत्य-पथ पर चलकर ही यहाँ,
संग मन भरता विश्वास हैं।
मिल साथी अपनो को जग में,
बाकी यही पल पल आस हैं।।
प्रेम-सेवा-त्याग में ही फिर,
भरा इस जीवन का सार हैं।
पाते समरसता सुख दु:ख में,
यही तो जीवन आधार है।।
भटकन ही भटकन जग में जब,
बढ़ता स्वार्थ अंहकार हैं।असीम सुख की अभिलाषा में,
मिलता दु:खो का भण्डार हैं।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः         17-02-2020


राजेंद्र रायपुरी

🤣 नेताओं की नई कहानी 🤣


नेताओं  की  नई   कहानी।
  सुन लो  यारो कहूँ ज़ुबानी।
    ये वो काले नाग न जिनका,
      काटे  कभी  माँगता  पानी।


वादों   के  उस्ताद  यही  हैं।
  जन-धन से आबाद यही हैं।
    इनका कहा न मानो यदि तुम,
      करते  फिर  बर्बाद  यही  हैं।


गिरगिट  जैसा  रंग  बदलते।
  हर  साँचे  में   ये  हैं   ढलते।
    पल-पल  में  देखे  हैं   हमने,
      डंडा-झंडा   सभी   बदलते।


कहते  हम   करते  जनसेवा।
   जग  ज़ाहिर  खाते  हैं  मेवा।
    सुनें तभी  ये  बात किसी की,
      मिल जाए  जब इन्हें कलेवा।


"तुम"से हटकर"आप"कहें ये।
  खा  लो  आलू-चाप  कहें  ये।
    आए  जब  चुनाव  तब  भैया,
      गदहे  को  भी  बाप  कहें  ये।


बचकर   रहना   इनसे   भाई।
  नेता   ना   ये  सभी   कसाई।
    झूठ   न   मानो   बातें    मेरी,
      सच   कहता  हूँ  राम  दुहाई।


                  ।।राजेंद्र रायपुरी।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २६८
दिनांक: १६.०२.२०२०
वार: रविवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: 🌦️कण कण से बनता महल🌅


नस   नस   में   बहता      रुधिर , देता  जीवन   दान। 
कण   कण  से बनता   महल , जन  जन भारत शान।।१।।


दस्यु        कहते     मरा    मरा , राम  नाम  सत् नाम। 
वही     आदिगुरु    वाल्मीकि , रामायण     सुखधाम।।२।।


सत्य   कर्म    सह   न्याय मिल , त्याग शील परमार्थ। 
उन्नति   होता   जन   वतन , मिल   अक्षर    शब्दार्थ।।३।।


सुख   दुख    से   जीवन  भरा , खुशी गमों का सार। 
मूल्यवान   हर     वक्त   है , चले     वक्त       संसार।।४।।


धर्म   अर्थ    भाषा   विविध , नीति     प्रीति  संगीत।
शील    धीर   गंभीर   सत् , मिल   जीवन   नवनीत।।५।।


खिले   काव्य   की   मधुरिमा , रीति     गुणालंकार।
नवरस।  गुण   शब्दार्थ।  नित , कविता का आधार।।६।।


काम   क्रोध   मद  लोभ  से , भटक  रहा   इन्सान।
चलें  झूठ  छल  कपट   पथ , हिंसक  जग  शैतान।।७।।


जन जन मन बनता वतन , अलग अलग मति एक।
खिले प्रकृति पादप  कुसुम , हो निकुंज  कृति नेक।।८।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ

मेंहदी( मंदाक्रांता छंद)
222 2111112 212 2122


गोरे  हाथों पर पिय लिखा, मेंहदीं से सजाई | 
गोरी जोहे प्रियतम कि राहें ,अभी है जुदाई |


काहे को साजन भुल गये ,याद आती तिहारी | 
राधा ढ़ूढे  मधुबन गली, छूप जाओ बिहारी|


राधे राधे🙏🌹🌹


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*स्वाभिमान*


◆स्वाभिमान के बिन कहाँ,होता है सम्मान।
मानव होता पशु निरा,जो सहता अपमान।
स्वाभिमान जो निज धरे, देशप्रेम के नाम,
सदा सुखद अहसास से, बने देश की शान।।


◆कठिन घड़ी विश्वास से,जाए निः संदेह।
सुखद धरा वह ही करे,छोड़ चले जब देह।
देश प्रेम के भाव से, होता है अभिमान,
स्वाभिमान ऐसे बसे,जो भर दे नव  नेह।।


◆माया बंधन है सुखद, कष्ट मूल वैराग।
भटक रहा जो मोह में, पाये वह अनुराग।
स्वाभिमान जीवन छले,गर हो झूठी आस,
सत्य भाव जिस मन बसे, गाता वो *मधु* राग।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


प्रिया सिंह मिष्ठी लखनऊ

इस देश का हर शहर गुलाबी है 
बचपन का हर पहर गुलाबी है


आंचल माँ का है तो क्या बात
आंचल पर हर दहर गुलाबी है 


बहते नदियों का क्या जिक्र करूँ 
मेरे जमीं का हर नहर गुलाबी है 


संगीत सब के नब्स में शूमार है
यहाँ भाषा में भी बहर गुलाबी है 


हमें शान अपनी जान तिरंगे पर है...
आसमां में ध्वज का फहर गुलाबी है 


 


Priya singh


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना 
दिनांक: १६.०२.२०२०
वार: रविवार
विधा: कविता
शीर्षक: 🌹🙏दी श्रद्धांजलि मां भारती🙏🌹


साश्रु    राष्ट्र   है   कृतज्ञ,
शहीद धीर  वीर  साहसी,
दी कुर्बानियां जो देश पर,
दी श्रद्धांजलि  मां भारती। 


फिर दंगाई उफन रहा ,
देश द्रोह   कर  रहा,
सीमान्त जांबाज वीर पे,
घृणित तोहमतें लगा रहा।


गद्दार है जो  वतन
तान फन इन्द्रजाल,
पुलवामा शहीद  पे
प्रश्न  फिर उठा रहा।


तोड़ने  तुला  वतन,
झूठ लूट छल यतन,
वोटबैंक  राजनीति,
आतंक साथ दे रहा।


भारतीय  कुपूत  जो 
नापाक राग गा  रहा,
मस्त पस्त पाक फिर,
गीदड़ भभकियां दे रहा।


लांघी मर्यादाएं सभी ,
देश धर्म सम्मान  आन,
स्वार्थ सिद्धि संलिप्त नित
बदजुबां पाक साथ दहशती।


सिसक रही प्रजा यहां ,
शहीद जो  वतन  हुए ,
आन  बान  शान  जो ,
उन्हीं  पर वे  हंस रहे।


विलख रही मां भारती , 
गद्दार  निज कपूत पर,
कोसती  है  कोख  को,
क्यूं जन्मा खल पातकी।


है  शून्यता  संवेदना , 
राष्ट्र  विरुद्ध भावना ,  
अमन  चैन  देश का, 
लूट सैनिकों को कोसता।


तन मन धन जीवन वतन
जो जवान अर्पित किया,
पर,देशद्रोही दुश्मन वतन,
उस वीरता को  कोसता। 


नित   विरोध  देश   का ,
कर   रहे  खल    बेहया,
खा  रहे  जिस  देश  का, 
उसे ही दे रहें हैं गालियां। 


लानत  नफ़रत   हरकतें ,
वतन   विरुद्ध   साजीशें , 
नापाक साथ  नित  खड़े ,
नेता कुछेक स्वार्थ सेंकते।


जन्मा ,संवरा जीता वतन,
पर  नहीं  राष्ट्र  सम्मान है,
देश   द्रोह  जलाता वतन,
खल  मिला पाक शैतान है।


आशंका  हर   बात   में , 
है दिया   दोष   सरकार,
हर  शहीद  सीमा  वतन,
नित अपमान करे गद्दार।


पुलवामा के बलिदानियों ,
लिखा स्वर्णाक्षर  में नाम,
ऋणी आपके जन वतन,
शत्  श्रद्धा पुष्प  प्रणाम।। 


नत निकुंज  कवितावली , 
देती   साश्रु  नैन  सम्मान,  
हे  सपूत तुम अमर   रहो,
युग युग रहो तिरंगा शान। 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


निधि मद्धेशिया कानपुर

वेब पेज पर प्रकाशनार्थ


 


घर-आँगन सूना कर विदा हुई बिटियाँ
न हटाओ घोंसला कहाँ जाएँगी चिरिया
नइहर-पीहर के लिए करेंगी प्रार्थना
बदली जलवायु, दर बदला, बदली गुड़िया।


5:35
16/2/2020
निधि मद्धेशिया
कानपुर
उत्तर प्रदेश
भारत


सुनील चौरसिया 'सावन' प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश।

कवि सुनील चौरसिया 'सावन'
प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश।
ग्राम -अमवा बाजार, पोस्ट- रामकोला, जिला- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश।


कविता-ताजमहल


नल के जल को भी गंगाजल समझिए।
भूलकर भी न दुश्मन को निर्बल समझिए।।


जो हो गया सो हो गया, मत रोइए,
मिले हुए हर फल को कर्मफल समझिए।।


सवालों के शूल से दिल घायल न हो,
इक सवाल को दूसरे का हल समझिए।।


'सावन' सुख से सोइए  सूखे बिस्तर पर,
फटे पुराने चादर को मखमल समझिए।।


खाली है हथेली तो हवेली कहां,
उजड़े छप्पर को ताजमहल समझिए।।


सुनील चौरसिया 'सावन'
प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश।
ग्राम -अमवा बाजार, पोस्ट- रामकोला, जिला- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश।
90 44 97 4084
84 14015182


श्रीमती राधा चौधरी।

बहुत की चाह
++±+++++++++++++++++++
हर रास्ते पे काटे हैं बहुत ।
हर दामन पे दाग है बहुत।
            हर दिल पे जख्म हैं बहुत।
             हर दिल पे दर्द है बहुत।
हर दिल पे ख़ुशीया है बहुत।
हर मन में इच्छायें है बहुत।
          हर लम्हों का इंतजार है बहुत।
          हर किसी को यादों में जीने 
            की आदत है बहुत।
हर किसी को आने वाले कल 
            की इंतजार है बहुत।
               बहुतों की आदत हो गई है बहुत।
              बहुतों में समायें है बहुत ।


                                       श्रीमती राधा चौधरी।


नूतन लाल साहू

ओम जय जगदीश हरे
नया साल या पर्व आते ही
शुरू हो जाता है
एस एम एस द्वारा
बधाई देने का सिलसिला
पता नही उसे सामने वाला
पढ़ा या नहीं पढ़ा
कई अजीबो गरीब
संदेश आए,पढ़कर चकराए
पर मोबाईल,कंपनी की जेब भरे
ओम जय जगदीश हरे
अपुन के पास
कुछ संदेश आया
एक डाक्टर मित्र ने फरमाया
नए साल में,खांसी जुकाम नहीं
कोरोना से भी बढ़कर
बीमारी आयेगा
मरीज जिये अथवा मरे
अपुन की जेब भरे
ओम जय जगदीश हरे
एक वकील साहब ने
मैसेज किया
नये साल में भाईचारा
भाड़ में जाए
मुजरिम तख्त की आड़ में आए
मुकदमा जीते चाहे हारे
नोट मिल जाए, खरे खरे
ओम जय जगदीश हरे
एक पुलिस वाले का
मैसेज आया
नये साल में चोरी हो या डकैती हो
झगड़ा हो या फसाद हो
मामला चाहे, जो भी हो
अपुन की जेब भरे
ओम जय जगदीश हरे
नया साल या पर्व आते ही
शुरू हो जाता है
एस एम एस द्वारा
बधाई देने का सिलसिला
पता नही उसे,सामने वाला
पढ़ा या नहीं पढ़ा
मोबाईल कंपनी की जेब भरे
ओम जय जगदीश हरे
नूतन लाल साहू


गंगा प्रसाद भावुक

किसानों का देश,
अरमानों का देश,
गरीबी से त्रस्त
जवानों का देश,
बेरोजगारी सुरसा
है मुह बाये,
हुक्मरानों को
कौन बताये,
सेना की भर्तियों में
जाते हैं ग़रीब,
कब कहां सेना में
जाते हैं अमीर,
कुछ अपवादों को
छोड़ दें,
किसी ने कभी देखा है,
या किसी ने सुना है,
क्या कभी किसी नेता
की औलादें गयी
सेना में,
फिर क्यों जाये ?
या क्या कभी कोई
नेता मरा है दंगों में,
ऐसा कभी नही होता,
अकाल मौत को हम
गरीब बनें हैं,
ये सब तो सुख
सुविधाओं में
सनें हैं,
दंगों की,
आतंकी हमलों की
ख़ुराक सिर्फ हम
ग़रीब बने हैं,
ये बेशर्म हमारी
लाशों पर भी
राजनीतिक रोटियां
सेंकते हैं,
यहां सेना में भर्ती
एक जुनून है,
यहां जाति धर्म
का कोई नही कानून है,
फिर भी दोगले नेता
हमारी शहादत को
जाति धर्म भाषा
क्षेत्रवाद में बांटते हैं,
अपनी सत्ता के लिए
हमें जलती आग में
झोंकते हैं,
ये सदियों से चला
आरहा है,
अभी और कब तक
चलेगा,
हमारा देश आखिर
कब तक पुलवामा
जैसी घटनाओं में
जलेगा,
आओ अपने बीच
छिपे गद्दारों दलालों
का पर्दाफाश करें,
जो पुलवामा
की पवित्र आहुति में
फायदे का जिक्र करे
उन्हें तिरस्कृत करें,
मानवता का
साथ दें,
देश हित का
शिलान्यास
करें।।।।
भावुक


हलधर जसवीर

कविता - झरोखा 
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लिख रहा आज मैं कविता ,सपने की एक कहानी ।
भारत माता रो रो कर ,आंखों भर  लायी पानी ।।


भारत माता ने पूछा ,खोया है वैभव सारा ।
गलियों में है चिंगारी,सड़कों पर है अंगारा ।।


मैं बोला मैया तेरा , वैभव अवश्य आएगा ।
मतलब कुनबे का जग को ,भारत ही समझाएगा ।।


मैया मेरा क्या मैं तो ,निज देश चला जाऊंगा ।
जिंदा छंदों के द्वारा ,मैं देश राग गाऊंगा ।।


कविताएं मेरी तब भी ,जग का आव्हान करेंगी ।
गंगा की उठती लहरें ,धरती में रंग भरेंगी ।।


मैं स्वयं चिता में जलकर ,नव ज्योति जला जाऊंगा ।
सपनो की इस धरती पर ,जाने फिर कब आऊंगा ।।


आयेंगे अलि कुंजन से ,छंदों पर मंडराने को ।
पर मैं न रहूंगा जग में ,मां तेरे गुण गाने को ।।


तब कुशल क्षेम को मेरी ,नभ से राही आयेंगे ।
कविता मेरी मंचों पर ,सजधज कर वो गाएंगे ।।


कविता जो भी गाएगा ,छंदों का रूप बदल कर ।
सपने में आ जाएंगे ,उसको समझाने दिनकर।।


मैंने भी तो गाया है ,बीते युग के गायन को ।
मुगलों के राजतिलक को ,अंग्रेजी वातायन को ।।


गौतम के कर्म देखकर ,मैं मन ही मन अकुलाता ।
तब सत्य अहिंसा मग में ,डूबी थी भारत माता ।।


घावों पर नमक लगाने ,फिर एक पुजारी आया ।
बापू कहकर जनता ने ,उसको भी गले लगाया ।।


बटबारे में मां तुझको ,कुछ ऐसे घाव मिले थे।
लाशों से धरा पटी थी ,पत्थर रो रो पिघले थे ।।


सब छोड़ पुरानी बातें ,हमने यह देश संवारा ।
चोरी से घर घुस बैठा ,अलगाव वाद का नारा ।।


देखा दिल्ली में जाकर ,यमुना कैसे रोती है ।
यम की बहना कलयुग में ,कैसे मैला ढोती है ।।


गंगा की करुण कहानी ,कैसे जग को बतलाऊं ।
प्रदुषित गंगा जल को ,देवों को पिला न पाऊं ।।


आतंकवाद ने घेरा ,धरती का वैभव सारा ।
इस्लाम खोज नहिं पाया ,इन दुष्टों से छुटकारा ।।


रोता घायल मन मेरा ,कैसे अब धीर बधाऊं ।
शमशान बनी है धरती ,कैसे यह स्वर्ग बनाऊं ।।


धरती का रूप देखकर ,रोते है नभ के तारे ।
विस्फोट रोज होते है ,उठते खूनी फब्बारे ।।


मंदिर मस्जिद से उठती ,कौमी मजहब दीवारें ।
यह देख देवता रोते ,रोती सुनसान मजारें ।।


रोजाना नारे लगते ,मजहब के नाम सदन में ।
सुनकर के क्रोध जागता ,लगती है आग बदन में ।।


छोटी बातों को लेकर ,तूफान खड़ा हो जाता ।
सड़कों पर जलती गाड़ी ,ऐलान बड़ा हो जाता ।।


सपने में दिनकर बोले ,छोड़ो यह राग पुराना ।
मैंने भी समझाया था , मजहब है पागलखाना ।।


जीवन का मकसद भाई ,कुछ कर के ही जाना है ।
दो घर है इसके जग में,कुछ खोना या पाना है ।।


मदिरा छंदों की ज्यादा ,छोटा सा घट का प्याला ।
इसमें क्या आ पाएगी ,यह व्योम गंग की हाला ।।


इतिहास पूछता मुझसे ,अब मेरी क्या है गलती  ।
वो वर्तमान की ज्वाला ,मेरे घर में आ जलती  ।।


धरती पर आकर मैंने ,जीवन का सच यह देखा ।
राजे महराजों से भी , नहिं मिटा भाग्य का लेखा ।।


हर मानस का धरती पर ,जीवन होना नश्वर है ।
जो काम भले कर जाए ,उसका ही नाम अमर है ।।


दिनकर बोले अब "हलधर" ,मेरे पीछे मत भागो ।
अपनी कविता में गाओ , जागो रे भारत जागो ।।


हलधर - 9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*" ज्योति "* (दोहे)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
¶होता सूर्य-प्रकाश से, जगमग जगत उजास।
परम-प्रभा पत-पुंज से, प्रगटे सृष्टि-सुहास।।१।।


¶दिव्य-चित्त की ज्योति से, उन्नत जीवन-पंथ।
होता कर्म महान है, बन जाता सद्ग्रंथ।।२।।


¶हरपल रखना दीप्त ही, ज्ञान-ज्योति भरपूर।
घन-तम तब अज्ञान का, मन से होगा दूर।।३।।


¶दीपक बन जा धैर्य का, भरकर पावन-स्नेह।
ज्योति जले सद्भाव की, मिटे तमस मन-गेह।।४।।


¶आडंबर से लोक में, अहंकार का राज।
सज्जन सुकर्म-ज्योति से, द्योतित करे समाज।।५।।


¶सतत् प्रभासित जो रखे, कर्म-ज्योति-प्रतिमान।
दिव्य-चक्षु भव-भान से, मानव बने महान।।६।।


¶परमारथ के पंथ पर, पनपे पुण्य-प्रकाश।
ज्योतिर्मय धरती रहे, कलुष कटे घन-पाश।।७।।


¶ज्योति मिले जब ज्योति से, ज्योति-परम कहलाय।
जग-जीवन जगमग करे, धरा स्वर्ग बन जाय।।८।।


¶ज्योतिर्मय हर प्राण हो, ज्योतिर्मय हो कर्म।
ज्योति-परम हरपल जले, रहे यही बस धर्म।।९।।


¶प्रेम-प्रकाश प्रदीप्त कर, करना जग-आलोक।
'नायक' सार्थक कर्म हो, मन में रहे न शोक।।१०।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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काव्यरंगोली नेह सनेह प्रतियोगिता 2020 सम्पूर्ण सामग्री

नेह सनेह प्रतियोगिता 2020
मुख्य निर्णायक
कवि विक्रम कुमार वैशाली बिहार
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव ऑनलाइन 2020


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माधवी गणवीर
छत्तीसगढ़
राजनांदगांव
9685505911
*काव्य रंगोली  नेह कव्योत्सव*
कहते है आज प्रेम दिवस है
पर......प्रेम के लिए दिवस
प्रेम किसी दिवस का मोहताज नहीं
प्रेम तो हर इंसान में है
प्रेम अहसास है, रूह है,आत्मा है
बिना  इसके जीवन निराधार है।
हा....प्रेम है मुझे अपने मुझे
माता पिता से
जिन्होंने मुझे आकर दिया
रूप, रंग अनुभूति दी,
ज्ञान दिया,प्राण दिया, दुनिया दी।
हां......प्रेम है मुझे
अपने दोस्तो से जिन्होंने
हर वक़्त संभाला अच्छा
बुरा वक़्त साथ बिताया
आगे बढ़ने का हौसला दिया।
हां...... प्रेम है मुझे
अपने जीवन साथी से
जो प्राण है, धड़कन है
जिनका मिला साथ बना
सुख दुख का आधार
गर्व और विश्वास
हां......प्रेम है मुझे
मेरे बच्चो से
जिन्होंने मेरा वजूद बनाया
मेरे "मै" होने का हक दिलाया
मेरी खुशी और यश के
आधार स्तम्भ।
हां.....प्रेम है मुझे
अपने वतन की माटी से
जिसमें रच बस कर
जिनका अन्न जल खाकर
जीवन को पूर्ण से सम्पूर्ण बनाया।
आज प्रेम  दिवस पर
समर्पित करती हूं
उन तमाम सम्बन्धों को
जो दिन तिथि में बन्धे न होकर
प्रतिदिन खुशियां ओर प्रेम देते है
जीवन प्रतिफल आनंदित करते है
आज प्रेम दिवस पर उनको
मेरा आत्मीय नमन। 🙏🏻


*********************
9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


  वेलनटाइन डे           अतुकांत


  इज़हार करो
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
करते हो प्यार , इज़हार करो
कहूँ मै तुमसे प्यार करो
अधूरा जीवन प्यार बिना
अधूरा प्यार इज़हार बिना
कहाँ है पूरा इक़रार बिना
स्वीकार करो , कहो तुम भी कि प्यार करो ।
प्यार करो बस , इज़हार करो
जीवन भर का इक़रार करो
सात जन्मों तक याद रखेंगे
प्यार का त्योहार करो ।
********************


जनार्दन शर्मा (आशुकवि हास्य व्यंग)
इन्दौर मध्य प्रदेश 


वैलेंटाइनडे कोई त्यौहार नहीं है यह तोबड़े स्तर का सुनियोजित बिजनेस इवेंटहै यह इज्जतदार लडकियों के विरुद्ध षड्यंत्र है ।


"वेलेंटाइनडे पर एक कविता"


अंग्रेजो के चौचलो को सीखकर,अपने ही देश का ह्रास किया*। 
आज कि युवा पीढ़ी ने,संस्कारों का कैसा विनास किया*।
हे वेलेंटाइन डे बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया*,,,,,,,


गली,गली,चौराहे चौराहे,अब ,प्रेम के परवान चढ़ते हैं* ।
आशीको के जोड़े देखो,खुले आम सड़को पे नचते है*।
शर्म हया सब छोड़ के देखो, रिश्तो का उपहास किया*।
हे वेलेंटाइन डे बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया*,,,,,,


प्रेम कि दुकानो से देखो,कैसा बाजारसजता है*।
प्रेम,प्यार का ये धंधा,सबकि जेबे भरता है*।
झुठे प्यार के बंधनो का,कैसा ये आभास दिया*,,,,,,, 
हे वेलेंटाइन डे बाबा देस का सत्यानास किया*


जिस देश में आज भी नारी को,देवी सा पूजा जाता हैं*।
हर मां के आंचल से निकल के,सैनिक सीमा पे जाता है*।
उनके बलिदान से नही सीखा कुछ, भूला कर प्रेम का एसा रास किया*।
हे वेलेंटाइन बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया*,,,,,,,,


जिस देश में राधाकृष्ण के प्रेमगीत,आज भी गाये जाते हैं*।
मीराबाई के त्याग के,पद आज भी सुनाये जाते हैं*।
उसी देश के नौजवानो ने,अब ये कैसा इतिहास दिया* ।
हे वेलेंटाइन के बाबा मेरे देस का कैसा सत्या नास किया*,,,,,


जिस देश में नर,नारी के मिलन में,गहरे परिवारों का वास था*।
जिन आपसी रिश्तो में मिठास जीवनभर, साथ रहने का विश्वास था*।
उन रिश्तो को भूलाकर,"ब्रेकअप"से हलके शब्दो का अहसास दिया*।
हे वेलेंटाइन बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया*,,,,,
स्वरचित* 
जनार्दन शर्मा (आशु कवि,हास्य व्यंग)


**********************************
मधु गुप्ता "महक"*
गीत*
           *माँ*


कभी गरम कभी शीतल
     कभी छाँव तो कभी धूप,
ये माँ मुझे भाता है,
      तेरा यह सारा रुप।
ये माँ..................


धीरज कितना रखती माँ,
        देवी दुर्गा कहलाती हो।
अपने बच्चों की खातिर माँ,
    कभी काली बन जाती हो।
समान प्यार पुत्रों से करती,
    चाहे सुंदर या हो कुरूप
ये माँ................


घर तुमसे ही घर कहलाता,
         घर को स्वर्ग बनाती हो।
तुमसे ही उज्ज्वल होता
       तुम दीया संग बाती हो।
घर की पालनहारी माँ,
       तुम हो लक्ष्मी स्वरूप।
ये माँ..................


*********************
अरुणा अग्रवाल लोरमी
छग
मेरा वेलेंटाइन मेरा देश भारत
-:जग सिर मौर भारत :-


घन विपिन में  नृत्यरत  मोर,
कानन सुंदरी करती विभोर,
हिरनी हलचल मचाई,धीमी शोर,
दिव्य छटा धात्री अलौकिक भारत मोर।


वव्योयमें  खग गाती लहराती सुर
तितली रंगीली बागन में करती विभोर,
भ्रमर भीनी,-भीनी नाद करता धंधोर,
अपूर्व प्रकृति- रानी धात्री भारत मोर।


तारिणी गंगा पाप हरिणी करती कल शोर,
सुरभि कामधेनु ब्रजलाल करता माखनचोर,
कृष्ण संग राधा वल्लभ खुशी अपार,
अभूत पूर्व नजारा धात्री भारतवर्ष मोर।


आगरा में भव्य ताजमहल बना संगमरमर,
सात आश्चर्य में दर्शनीय करता जनमानस विभोर,
द्वारिका, पुरी,बद्रीनाथ,और रामेश्वर धाम चार,
अनुपम भारत-वर्ष जगसिर मौर ।


सभ्यता संस्कृति में चमत्कारी देश मोर,
  अनेकता में एकता निराला यही गोचर,
होली,दीपावली,ईद पर्व देता खुशी अपार,
अलबेली मनचली भारत-वर्ष मोर ।


जननी जन्मभूमि गरीयसी मोर,
वंदे मातरम राष्ट्रगान,तिरंगा करता विभोर,
श्री राम,श्री कृष्ण का अवतारी देश भारत मोर,
लव, कुश, प्रहलाद का जननी भी भारत मोर।


रामायण,महाभारत,उपनिषद मोर,
गायत्री मंत्र का ओमकार ध्वनि,शोर,
हर-हर महादेव गाता भक्त करता विभोर,
अतुलनीय,नन्दनीय जगसीर भारत मौर।


********************
जगदीश्वरी चौबे
वाराणसी
" तुम "


एक दो रोज़ की मुलाक़ात नहीं थी ।
एक दो रोज़ की पहचान नहीं थी ।
एक छोटी सी मुलाक़ात हुई थी ,
और शुरू हुआ था सिलसिला बातों का ।


तुम्हारी मुस्कुराने की आदत थी
और हमारी ,
तुम्हें मुस्कुराते देखने की ।
लगा था ज़िन्दगी बस ,
यूं ही गुज़र जाएगी ।


तब कहां पता था ,
एक दिन अचानक ,
बिना कुछ बोले ,
यूं रास्ता बदल दोगे तुम
और छोड़ जाओगे हमारे लिए ,
सिर्फ यादें ।


अभी पिछली मुलाक़ात में ही तो
वादा किया था मिलने का ।
होली के रंगों के साथ ,
रंग जाना था मुझे तुम्हारे  रंग में।


मगर ये क्या हुआ ?
किसने खेली ये खून की होली
तुम्हारे  साथ ?
वो कौन था ,
जिसने तोड़ दिया ,
सारे सपनों को ।


अब कहां ढूंढूं तुम्हें ?
कैसे पाऊं तुम्हें ?
किससे पूछूं तुम्हारा पता ?
वतन तुम्हारा पहला प्यार था।
तिरंगा तुम्हें जान से प्यारा था ।


जब देखा तुम्हें तिरंगे में लिपटे हुए ।
आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा ।
हमारा मिलना कितना सुखद होता ।


मगर जब देखा ,
तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा ,
तब समझी
ये मुस्कुराहट थी ,
पहले प्यार पर मर मिटने की ।


सबकी होली रंगों से सजी रहे ,
इसलिए
झेल गए तुम खून की होली ।
हां , याद तो तुम बहुत आओगे ।
मगर आसूं  नहीं बहाना है
क्यूंकि ,
मेरी होली के रंग
भले ही फीके हो गए ,
मगर कल
जब पूरा देश होली मनाएगा ,
तब उसकी वजह तुम होगे ।


मेरी मांग नहीं सजी
तो क्या हुआ
कई सुहागिनें मांग भर सकेंगी ,
तब उसकी वजह तुम होगे ।


गर्व है मुझे "तुम "  पर
याद तो तुम बहुत आओगे ।
दिल भी ये बहुत रोएगा ।
मगर जब भी देखूंगी
अपने चारों ओर ,
चैन से सोती मांएं ,
खिलखिलाते बच्चे ,
तब ख़ुशी होगी
क्यूंकि ,
इसकी वजह " तुम " होगे ।


********************
जयप्रकाश चौहान * अजनबी*
जिसने मुझे इस दुनिया में लाया,
पहला  प्यार  मैंने  माँ का पाया।
मुझपे रहती हैं उनके आँचल छाया,
ये सच्चा प्रेम हैं बाकी सब मोहमाया।


आगे बताते हैं हम आपको बात,
मेरे  भगवान हैं सिर्फ मेरे तात।
बस उनकी हैं ये सारी करामात,
उनके पदचिन्ह से बनी मेरी छाप।


बहुत प्रेम करती हैं  मेरी तीनों बहना,
वो हैं हमारे परिवार लिए अनमोल गहना।
घर सम्भालती हैं अब वे तीनो अपना,
परिवार बढ़े आगे उनका यही सपना।


जीजाजी मिले मुझे गौरीसहाय, विकास, गजानंद,
तीनो बहना रहती हैं सुख-चैन से,करती हैं आनंद।
ससुराल में मान बढ़ाकर पीहर का करती हैं उजियारा,
हम भी यही अरदास करे खुशीयों से बीते जीवन सारा।


अब मैं बात बताता हूँ अपने हसीन यारो की,
धरती के गुलाब व आसमां के चाँद-सितारों की।
उनके प्यार, मोहब्बत, जज्बात साथ सारो की,
खुशियां रहे हमेशा महक जीवन में फूल हजारों की।


*********************


शिवाँगी मिश्रा
लखीमपुर-खीरी


परिवार
...............


प्रेम का नाम आये तो तुम ही दिखे ।
प्रेम के पुष्प उर में तुम्हीं से खिले ।।
प्रेम का अंश क्या रूप क्या प्रेम का ।
देखने को नयन माँ तुम्हीं से मिले ।।


धूप में जो बने वो छाया प्रतिरूप हो ।
तेरी छाया तले सुख की ही धूप हो ।।
तुमसे ही खिलखिलाता ये आँगन मेरा ।
तुम जनक हो मेरे तुम मेरे भूप हो ।।


प्यार का है जुडा तुमसे नाता मेरा ।
मुस्कुराओ जो तुम दुख है जाता मेरा ।।
प्यार का इक अनोखा सा बन्धन है ये ।
प्यार की है कीमती देन भ्राता मेरा ।।


आज दिन मैं तुम्हारे लिए क्या लिखूँ ।
लिख सकूँ जो तुम्हें अपना सब कुछ लिखूँ ।।
माँ,पिता,भाई बन्धु के जैसी हो तुम ।
तुम में मिल जाऊँ ऐसे तुम्हीं में दिखूँ ।।


मेरा सम्बल हो तुम शक्ति हो प्रेम हो ।
अग्रजा मैं तुम्हारी ही छाया बनूँ ।।


मनाना क्या भला ये ऐसे वेलेंटाइन डे का प्यार ।
टिके जो सप्ताह भर भला किस काम का वो प्यार ।।


हमारे प्यार का आधार है हमारे प्यार का संसार ।
भरा है प्यार के सागर से मेरा  प्यारा सा परिवार ।।
********************
राजश्री शर्मा
विनायक कहान नगर
इंदौर रोड खंडवा


तुम चले आओ बनकर
एक अजनबी
मेरे कमरे में यूँ ही
इक लहर सी


सूझी है
इक शरारत यूँ ही


गैर करेंगे इशारे
चर्चे होंगे आम हमारे
हम मुंह छुपायेंगे
बनकर अनजान यूँ ही


आसमां के रौशनदान से
पूरा चांद झांकेगा
रौशन कर सपने हंसी
याद जवानी को कर
हंस देंगे हम बरबस यूँ ही।


********************
         
डा. निशा माथुर
जयपुर 
                                                                                                                                                         "पिता"
छंदमुक्त - स्वतंत्र


कन्या के जन्म लेते ही पिता, ऐसा पिता बन जाता है।
पल पल बङते उसके रूपों संग, उसका रूप ढल जाता है।


अपनी तनया को गोदी लेते ही वो मां जैसा बन जाता है,
अपने सीने से लगा प्यार से, थपकाकर उसे सुलाता है।


उसके रोने, उसकी सिसकी पर, जब वो लोरी बन जाता है,
पलको की कोरो पर अश्को के मोती, बीन बीन कर लाता है।


नन्हें नन्हे उसके कदमों संग, हरपल वो बच्चा बन जाता हैं,
अपनी बेटी की तुतलाती बोली में अपना बचपन जी जाता है।


तितली सी खिलती तनूजा का, फिर ऐसा साथी बन जाता है,
उसकी मुस्कान, हंसी खुशी के लिये, कैसे यारीयां निभाता है।


स्वप्न सजाती  वैदेही के लिये जब वो जनक बन जाता है,
अपने अनुभव और सामथ्र्य से बेहतर का, राम ढूंढकर लाता है।


ससुराल विदा होती आत्मजा का,  जब वो बाबुल बन जाता है,
अपने अंश वंश को भीगे नयनों संग,कैसे डोली में बैठाता है ?


आंगन में उङती फिरती चिङिया का, जब सूनापन छा जाता है,
अपनी उम्र उसे लगा,जीवन को हार, मन्नतें मांगता रह जाता है।


*********************
नरेश मलिक


हमारे  रहो  आरज़ू  है  हमारी
रही हर जुबां गुफ्तगू है हमारीl


रहे  साथ  तेरा  ये  चाहा  हमीं ने
यही आखिरी जुस्तजू है हमारीl


सदा तुमको पूजा खुदा से भी ज्यादा
इबादत  मेरी  जान  तू  है  हमारीl


वफ़ा ही वफ़ा हम करेंगें ये मानो
तेरा  साथ  दें  जुस्तजू है हमारीl


दिया कौल हमने निभायेंगे भी हम
न  समझो  जुबां  फालतू है हमारी


छुपाया न कुछ भी कभी हमने तुमसे
रही   जिन्दगी  रुबरू   है  हमारीl


कहा जो मलिक ने किया शान से वो,
कि  प्यारी  हमें  आबरू  है  हमारीl


*******************
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


  देश प्रेम
-----------------
देश मेरा हैं  सर्वोपरि
यही हैं मेरा पहला प्यार
इस धरा को करती नमन,
इसके बाद मात -पिता।


पत्ते -पत्ते में बसी
मेरी जान हैं
हैं मेरी अमानत
और मेरी शान हैं।

ललकार आज तिरंगा रहा देश के दुश्मनों को,
भारत माँ भी गर्व कर रही
देख के देश भक्त संतानों को।


ली मैंने यहाँ की साँस और
किया जलपान ग्रहण यहाँ का,
देश सुरक्षित रहे मेरा
यही अंतिम भावना।


रहे जो मेरे देश में ईमानदारी
और सच्चाई  से,
करती हूँ शत -शत नमन
बहुत आदर और सम्मान  से।


**********************
गरिमा
डिंडोरी
मध्यप्रदेश


मेरे बच्चे


मेरे बच्चे मेरी
जिंदगी है
मेरी हर खुशी है


उनके बिना
मेरे जीवन
में एक कमी
सी थी


मेरी आँखों
में नमी थी
जो उनके
आने से पूरी
हो गई है


मेरी काँटो से भरी
जिंदगी में मेंरे बच्चे
फूलो का सुकून
लेकर आते है


मेरी मायूसी से
भरी जिंदगी को
खुशियों की
रोशनी से रोशन
कर जाते है
मेरे बच्चें
*******************
डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


विषय - " देश का फौजी"


अपनी जान की परवाह कब है
सीमा रक्षक  फौजी  को...।
डिग्री माइनस हिम में गलना
भारत देश के  फौजी  को.।।


इनका मजहब देश की रक्षा
मां  का  मान  बढ़ाते  हैं ।
पैटन  टैंक  उड़ाने  वाले
अब्दुल हमीद ही भाते  हैं।।


होली हो चाहे ईद, दिवाली
शादी की  हो ऋतु सुहानी।
इनका जज्बा सुन मेरी आलि
वंदेमातरम  की  जवानी।।


गोला - बारूद  बंदूकें  ही
गुलाल और पिचकारी हैं।
हंसते- हंसते, रक्त- रंग में
धन्य- धन्य हितकारी हैं।।


देख उन्नति मेरे  देश की
बन बैठे जो  जानी दुश्मन।
उनको सबक सिखाकर आया
हाँ राजदुलारा *अभिनंदन*।।


वह बब्बर शेर हैं भारत के
वह माता के रखवाले हैं ।
धड़कन सवा सौ करोड़ों की
सब  देशप्रेम  मतवाले  हैं ।।


अपनी जान की परवाह कब है
भारत देश के  फौजी  को......

*********************
डॉ0 शोभा दीक्षित 'भावना',
निजी सचिव, ग्रेड-3,
/ संपादक, अपरिहार्य
मो0 9454410576


मेरी प्रथम वेलेंटाइन माँ
- बाबू जी के श्रीचरणों में  नमन की चार पंक्तियों के साथ-


यह जीवन संचरण इसमें कहाँ विश्राम आता है।
कहाँ संघर्ष में अपना हमेशा काम आता है।
जो तेरे काम आये हो बिना कुछ चाह कर तुझसे-
अकेला बस अकेला उनमें माँ का नाम आता है।।


पिता


तुझे खुश देखकर जलता तबाही देख सकता है।
ज़माना रोशनी में भी, सियाही देख सकता है।
तू किस भगवान के कदमों में अपना सर झुकाता है-
तुझे खुद से बड़ा केवल पिता ही देख सकता है।।


********************
डर0मृदुला शुक्ल
काव्यरंगोली सखी संसार प्रमुख


वैलेन्टाइन डे पर मेरी बड़ी बहिन सुश्री उर्मिला शुक्ला दीदी को मेरे कुछ छंद–


"निर्मल, विमल,मृदु की उर्मिल
प्यारी हो"
------------------------------------


कचनार-कली जैसी सुकुमारी उर्मिल,
शीतल शरदचन्द-सम वपु तेरा है।
काले-काले केश तेरे मन्द-मन्द बोली मृदु,
गोरे-गोरे गाल मृदु गोरा बदन तेरा है।।
चिन्तन-मनन तुम करती रहती हो सदा,
विद्या में निपुण बहुमुखी ज्ञान तेरा है।
अग्रजा बना के भेजा विधि के विधाता ने ही,
मृदुल, कठोर दोनों,हृदय ये तेरा है।।


हो परमप्रिय तुम हम सभी बहिनों की,
माता-पिता की तो तुम सदा अति प्यारी हो।
धीर,गम्भीर, तुममें गुरुत्व समाया हुआ,
शान हम सभी की हो तुम अति प्यारी हो।।
मस्तक है तेजोमय आनन ये दीप्तिमान,
निर्मल, विमल, मृदु की उर्मिल प्यारी हो।
ज्ञान औ वैराग्य-कान्ति तुममें झलकती है,
शक्ति,भक्ति,साहस की ज्योति उर्मि प्यारी हो।।


धर्म,कर्म,निष्ठा में है आस्था अटूट तेरी,
पूजा-पाठ भगवान की सेविका प्यारी हो।
देवी-देवताओं को न बिसराती
कभी तुम,
ऋषि-मुनियों के सम वैरागिनी प्यारी हो।।
जग के प्रपंचों में न होती कभी लिप्त तुम,
शारदा, भवानी की माँ सुता प्यारी-प्यारी हो।
सागर की गहराई तेरे उर की है उर्मि,
अन्नपूर्णा, लक्ष्मी और दुर्गा तुम प्यारी हो।।


*******************
जितेन्द्र"जीत"भागड़कर
      कोचेवाही, लाँजी
जिला-बालाघाट,म.प्र.


        प्यार की समझ
हसीन ख़्वाब देखे हैं तुमने,
प्यार के
संजोकर रखना,
मन-हृदय-पलकों में।
आँखे चार ज़रा
सोचकर करना
दुनिया बिन बोले
शब्द भान लेता है,
बिन खोले
राज़ जान लेता है।
कहना नही फिर कि
ज़माना चोर है।
आँख-कान खुले रखने की,
सलाह देंगे लोग
पर कुछ बोलने
मौन रहने कहेगें
क्योंकि इस राह
उनको भी चलाना जोर है।


********************
काव्य रंगोली नेह स्नेह प्रतियोगिता 2020


डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड
9759252537


तुम्हीं से......


तुम्हीं से....
—————
मेरे दिन और रात
शुरू होते हैं तुम्हीं से
मेरे जीवन के हर तार
जुड़े हैं तुम्हीं से,
सृष्टि के कण-कण में
हर ओर दिखाई देते
जहाँ धूप दिखाई देती
वहाँ छाया कर देते,
जब भी देखूँ मैं तुमको
लगे खड़ा है विधाता!
आकुल-व्याकुल मन मेरा
तेरे आँचल से लिपटा जाता,
तेरे यादों के मोती से
माला अनुपम गूँथी है
आधार यही अब मेरा
निधि मेरी अनूठी है,
कुछ ऐसा कर सकूँ जो
तेरे दूध का मोल निभाऊँ
कुछ स्वप्न रहे जो अधूरे
उनको पूरा कर पाऊँ,
जब भी जन्म मिले इस भू पर
मेरे मात-पिता ही बनना
अपनी बेटी को फिर से
अपने जीवन में चुनना,
मेरी माँ! मेरे पापा!
उस पार तुम खड़े हो
इस पार मैं खड़ी हूँ
हर दिवस है तुम्हारा
प्रेम-अर्ध्य लिए खड़ी हूँ.....!!!
*********************


डाँ अंजुल कंसल"कनुप्रिया


  ऐ मां तुम्हारे पदरज की धूल अति पावन है
  पीली सरसों से रचा बसा हर्षित बसंत है
   हे पिता हम पर है कृपा अपरम्पार
   आपकी सुरभि से सुरभित जीवन है
   मां का वंदन पिता का अभिनंदन है
   पुलवामा के शहीदों आज करते हैं
   बारम्बार नमन अश्रु पूरित नमन है
   वसुंधरा के शहीदों करते प्रणाम हैं।
"


*******************
भूपसिंह 'भारती',
आदर्श नगर नारनौल (हरियाणा)


"वेलेंटाइन डे"


(1)
मिलने की आई घड़ी,  रहे   खुशी  म्ह  झूम।
वेलेंटाइन दिवस की,  खूब    माचरी     धूम।
खूब   माचरी   धूम,  झूमकै   कसमें   खावै।
एक  दूजे  नै   खूब,  प्यार  तै   गलै  लगावै।
कहै  'भारती'  लगे,  गुलाबी  सपने  खिलने।
प्रेम दिवस पर सभी,  प्यार से  लागे  मिलने।
           


(2)
वेलेंटाइन  डे  बणा,  आज दिवस ये खास।
जनता इसमै ढूंढती,  प्यार  और   विश्वास।
प्यार और विश्वास,  आस  यो  नई  जगावै।
बणा रहै यो प्यार,  सार  जीवन म्ह  ल्यावै।
कहै भारती प्यार,  सुरग को  सीधो  दगड़ो।
नफरत नै दो छोड़,  प्यार की  राही पकड़ो।
*********************


भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
*" प्रेम "*
(प आवृत्तिक अनुप्रासिक दोहे)- भाग- १
..................................
*पाकर प्रेम पवित्रता,
     पुलक प्रगट प्रतिमान।
प्लावित प्रहसित पग परे,
    प्राग पथिक पहचान।।१।।


*प्रेमी पावस प्रीत पा,
         प्रेमिल पंख पसार।
पूरित पावन प्रेरणा,
        पुलकित पारावार।।२।।


*परवश प्रभुता पाहुना,
    पल-पल पटल पुकार।
प्रेम परात पखारना,
        प्रीत-पाग पइसार।।३।।


*पाकर पावन प्रेरणा,
           पसरे प्रीत पसंद।
प्रखर प्रचुरता पाक पर,
           पावत परमानंद।।४।।


*प्रेम पहेली परमसुख,
       पग-पग पनपे प्यार।
परसत प्रेम पसीजता,
        पालक पालनहार।।५।।


*पाहन पिघले प्रेम पर,
            पावन प्रेमालाप।
परिजन पीड़ा परिहरे,
  पालन पन परताप।।६।।


*परिजन पुरजन पसरता,
       प्रीत पतन परिगान।
पीति प्रपोषक पालता,
   परचम प्रेम प्रतान।।७।।


*पंकिल पथ पर पग पड़े,
        प्राणी पालक-प्राण।
पान प्रीत पीयूष पय,
         पहचानो परमाण।।८।।


*प्रेम पुजारी पूजता,
        पारस परस प्रहास।
पातन पातक पाँवरी,
  प्रोष पतन प्रतिवास।।९।।


*पंख पसारे पाँखुड़ी,
         पसरे पुण्य प्रभात।
प्रेमामृत पिक पीकना,
       परिहरि प्रेम प्रघात।।१०।।


********************
अर्चना कटारे
        शहडोल (म.प्र)
*न करो छिछोरी हरकत*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
पहला फूल माँ की चरणों जिन्होंने जन्म दिया
🌹
दूजा फूल पिता के चरणों मे जिन्होंने दुनिया दिखाई
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तीसरा फूल गुरू के चरणों में जिन्होंने शिक्षा की ज्योति जगाई
🌹🌹🌹
चौथा फूल भाई बहन को जिन्होंने रिस्ते में मजबूती लायी
🌹🌹🌹🌹
पाँचवा फूल मेरे पति को जिन्होंने दुनिया की रौनक दिखाई
🌹🌹🌹🌹🌹
छठवां फूल मेरे सासू माँ और ससुर जी को
जिन्होंने माता समान प्यार दिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सातवां फूल मेरे फूल से बच्चों को
जिन्होंने हमें माँ का दर्जा दिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आंठवा फूल मेरे देश के सैनिकों को जिन्होंने हमें चैन दिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नवमाँ फूल मेरी मात्रृभूमि को जहां हमने जन्म लिया
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
दसवां फूल मेरे मंदिर के भगवान को
जिन्होंने हमें प्राण दिये
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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उमेश प्रकाश,                              🥀एफ-2136 राजाजी पुरम,                                     🌀लखनऊ--226017                                   ⏩मोब:-9616135035
-::-🌹हैप्पी-वेलेंन-टाइन डे
           
प्रीत करो तुम मात से, पिता-बहन और भ्रात से l
प्रीत करो सम्बन्धों से, प्रभु के मिलते साथ से ll


प्रीत करो हर जीवन से, प्रभु से पाये इस धन से l
प्रीत करो तुम ईश्वर से, इस धरती के जन-जन से ll


प्रीत करो हर फूल से, अपनी धरती-धूल से l
खेतों और खलियानों से, अपने जीवन-मूल से ll


प्रीत करो हर व्यक्ति से, अपने देश की भक्ति से l
विश्व प्रेम भण्डार करो, देश की बढ़ती शक्ति से ll


प्रीत करे जो सब कुछ दे, प्रेम लुटाये कुछ न ले l
प्रीत! को कर के सभी समर्पण, हैप्पी-वेलेंन-टाइन डे ll
              🎇🎇🎇🎇
                                                
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काव्य रंगोली वेलेन्टाइन डे या मातृ-पितृ पूजन दिवस के लिए


सीमा निगम
रायपुर छत्तीसगढ़


"पहला प्यार "


कौन हो तुम,
मेरा बरसों से संजोया अरमान
मेरे अतंस में छिपा तुम्हारा नाम
या मेरा पहला पहला प्यार ..


प्रेमिल हृदय की की आस
मेरे धड़कनो की पुकार
नए उमंग नए एहसास
तुम्हारी हदय की तड़फन


कभी आंखों में आंसू
कभी चेहरे में मुस्कान
मेरी मासूम विवशता
तुम्हारी मादक मनुहार


काश, कर देती मैं
तुमको सर्वस्य समर्पण
कर लेती कबूल
तुम्हारे सब अर्पण


पर बात दिल की जुबा
ने कभी कहीं नहीं
जिस रास्ते तुम मिलो
वहां कदम पड़े नहीं


कह न पाए कभी पर
दिल ने किया स्वीकार 
तुम हो, हाँ तुम ही हो
मेरा पहला पहला प्यार.|
*********************
गीता सिंह
प्रयागराज
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव ऑनलाइन 2020 हेतु


तिलक बनी माथे पर मेरे,
मातृ भूमि की मिट्टी होगी ।
माँ के रक्षण हेतु हमारी ,
लहू में भीगी वर्दी होगी ।।
     जाग रही हैं मेरी आँखें ,
     नींद तुम्हारी पूरी होगी ।
     अडिग हिमालय सा हूँ प्रहरी,
     चाहे जितनी ठंडी होगी ।।


********************
संतोष अग्रवाल
सागर म प्र


प्यार बांटते चलो
सबको मित्र बनाकर चलो
जो सबसे अच्छा हो
  माता पिता को प्यार  करो
माता पिता  मना कर  चलो
इस दुनिया में सबसे बड़े हैं
माता पिता   के पैर दबाकर चलो
माता पिता गुरु अच्छे हो
यह सफर अच्छा कट जाएगा
वैलेंटाइन डे का  सार यही है

*********************
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, विकास क्षेत्र- लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज)
'पेड़ों का संसार कहाँ है'


पेड़ों का संसार कहाँ
प्रकृति का श्रृंगार कहाँ है
सूखे से है त्रस्त वसुन्धरा
पानी का भण्डार कहाँ है।
पेड़ों का..................
शरद की तो चाँदनी है पर
वह झल-मल नीहार कहाँ है
उजड़ रहे हैं वन-उपवन सब
फूलों का अम्बार कहाँ है।
पेड़ों का....................
वह सुन्दर सा सर कहाँ है
कमल के ऊपर भ्रमर कहाँ है
जीवन का आधार कहाँ है
वह अपनापन प्यार कहाँ।
पेड़ों का...................
क्षण-क्षण चित्त चुरा ले जो
वह   चितवन वह सार कहाँ है
यूँ तो तार अनेकों हैं पर
वीणा का झंकार कहाँ है।
पेड़ों का..................


**********************


सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"
  3 फ 22 विज्ञान नगर,
कोटा - 324005 (राज.)
  मो 9928539446
पिता
______
चले साथ में जब पिता, मेरी उँगली थाम।
दूर दूर तक था नहीं, तब चिंता का नाम।।
               *
लगता है जैसे पिता, घर की चारदिवार।
आ पाती ना आँधियाँ, जिसको करके पार।।
              *
सब सोते हैं चैन से, भर मन में उल्लास।
जब तक घर में है पिता, डर ना आते पास।।
              *
जीवन भर ढोते रहे, खुद कर्जों का भार
मुस्काए फिर भी पिता, पालन में परिवार ।।
             *
टूट न जाएँ हम कहीं, पड़ें नहीं कमजोर।
अतः पिता रोए नहीं, सह पीड़ाएँ घोर।।
             *
रहे पिता के स्वर भले, मधुर रसों से दूर।
लेकिन इनमें थी छुपी, मंगल धुन भरपूर।।
              *
अपने से ज्यादा रहा, जिनको प्रिय परिवार।
कर्त्तव्यों के रूप ही, रहे पिता साकार।।
              *
       -


********************
नाम--सुरेन्द्र पाल मिश्र
पता---ग्राम व पोस्ट जेठरा जिला लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश २६२७२२
मोबाइल नं-- ८८४०४७७९८३
स्नेह तथा ममता की प्रतिमा--मां
    मैया तू ममता का बादल
    प्यार दुलार बरसता हर पल
    कोख में तेरी जीवन पलता
   नव प्रकाश का दीपक जलता
  तेरी नाभि सरोवर में ही
   नव जीवन का शतदल खिलता
   तू जननी है परम पूज्य तू
  सतत स्रजन की सरिता अविरल
  मैया तू ममता का बादल
  तन का अमृत पान कराये
  शिशु को पुचकारे दुलराये
  और चाह ना कोई तेरी
बस मेरा शिशु कष्ट नपाये
  सुख सम्पत्ति स्वर्ग से बढ़कर
   तेरी गोदी तेरा आंचल
मैया तू ममता का बादल
पकड़े उंगली जब मैं चलता
तेरा मुख गुलाब सा खिलता
कभी पांव में लगे शूल यदि
मुझसे पहले तुझको चुभता
तेरा प्यार दुलार स्नेह मां
शरद चंन्द्रिका से भी निर्मल
मैया तू ममता का बादल
बड़े हो गए बीता बचपन
मुरझाया शैशव का उपवन
बेटा गया बहू के संग में
    बेटी ब्याही सूना आंगन
    बिन वरदान तपस्या तेरी
    सतत प्रतीक्षा तेरा सम्बल
    मैया तू ममता का बादल
    बांह के झूले स्वप्न हो गए
    स्वर लोरी के लुप्त हो गए
    तेरे संग ही मेरी मैया
     स्नेह प्यार के दीप बुझ गये
      मेरा शीतल कल तू मैया
     आज है मेरा तपता मरुथल
     मैया तू ममता का बादल
    कर दे क्षमा मुझे मेरी मां
   मैं तो कुछ भी कर ना पाया
   तेरे दूध का कर्जा़ मैया
   मैं शतांश भी चुका न पाया
   अपने स्वार्थी नयनों से मां
    मैं हूं अविरल बहता काजल
    मैया तू ममता का बादल
    रिश्ते रचे अनेक विधाता
    सबसे ऊपर मां का नाता
    मां की गोदी का सुख पाने
    ईश्वर भी धरती पर आता
    तू देवी है कामधेनु है
    मां तू ही पावन गंगा जल
    मैया तू ममता का बादल
   प्यार दुलार बरसता हर पल
(काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव आनलाइन २०२०)
*********************
नाम- नीलम मुकेश वर्मा
हिंदी में स्नातकोत्तर
झुंझुनू राजस्थान
Mob : 8094699141


प्रणय दिवस पर,मेरे प्रणय देव को समर्पित एक प्रणय गीत----


ख्वाहिश कोई और न दिल में,मांगूँ रब से एक इशारा।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।


           ख़्वाब सजाने का अँखियों को,
           तुमने ही अधिकार दिया है।
           आस न थी कतरे की जिसको,
           सागर जितना प्यार दिया है।


चाहूँ ऐसे हरदम तुमको,.............जैसे चाहे मौज किनारा।
हाथ कभी जब उठे दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।


             अँधियारा इस क़दर घिरा था,
             लाल,सफ़ेद दिखें सब काले।
             थी घनघोर घटाएं गम की,
             दूर-दूर तक थे न उजाले।।।


रोशन करने आँगन मेरा,...........रब ने पूरा चाँद उतारा।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।


            अरमानों की उजड़ी बस्ती,
            आज हुई आबाद तुम्हीं से।
            बरसों की पथराई अँखियाँ,
            पिघल उठी हैं आज ख़ुशी से।


तेरे बिन इन अँखियों को मेरी,भाए न कोई और नज़ारा।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आए लब पर नाम तुम्हारा।।
पाठ वफ़ा का सीखा तुमसे,..
हो तुम वेलेंटाइन मेरे,
हाथ लिया जब से हाथों में,
मन में दीप जले बहुतेरे।।


नीलम ने अब लिख डाला है, नाम तुम्हारे जीवन सारा।।
हाथ उठें जब कभी दुआ में,आये लब पर नाम तुम्हारा।।
                                     


*********************
चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली, उ० प्र०
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव


गीतिका


तुम मेरी मधुमय प्रीत प्रिये !
मम जीवन का संगीत प्रिये !


नहीं बिलग हो मुझसे प्रियवर,
कह दूँ  कैसे  नवनीत  प्रिये !


तुम्हीं रुबाई तुम्हीं गीतिका,
लगती  जैसे  नवगीत  प्रिये !


मेरी  खुशियों में  सुख माना,
दुख में लगती भयभीत प्रिये !


कभी भूल से  रूठ गया यदि,
लेती  मेरा  दिल  जीत  प्रिये !


स्वास स्वास में बसी हुई हो,
तुम शब्द हीन अनुभूति प्रिये !


कह दूँ  तुमको  वैलेन्टाइन,
क्या तब होगी मनमीत प्रिये !


********************
सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर
वेलेन्टाईन डे


हाथ में गुलाब सुर्ख लाल,
होंठ हँसी लिए कमाल ।
चल दिए हम सज धज कर,
डे वेलेंटाईन के पर्व पर ।
आज कहेंगें दिल की बात ,
दिखाएगें अपने जज्बात।
हम तेरे प्रेम में डूबे है ,
नयन तिहारे हृदयतार छुए है।
कहने को दिल की ,
घर की उसके राह पकडी़।
आज दिल की बात कहेंगें,
पूरा जीवन साथ रहेंगें।
पहुँचें घर इसी विचार में ,
मन डोल रहा था प्यार में।
घर के कोने में बैठी थी ,
हमने भी धड़ से इंट्री की ।
थोडा़ संकुचा रही थी,
जैसे कुछ कहना चाह रही थी।
देख गुलाब मुस्कुरा दी,
बोली भैया तुमने लाटरी लगा दी।
गुलाब हुआ  है महँगा ,
बाजार में नही मिला ।
दे दो मुझे उसे दे आऊँ ,
प्रेम को अपने आगे बढाऊँ।
सुनकर शब्द  ये भाई ,
छूटी मेरी अब रुलाई।
गुलाब उसे दे दिया ,
राखी में आने का वादा किया।
जिसने छीनी है मेरी लुगाई ,
कसम से भ ईया करूँगा पिटाई।
ये वेलेन्टाईन हमें न मनाना ,
बजरंगी हमें अपना भक्त बनाना।


********************
शशि कुशवाहा
लखनऊ,उत्तर प्रदेश


तुझसे मेरा रिश्ता कुछ यू जुड़ गया ,
प्रेम का धागा और भी गहरा हो गया ।
खुशियों से जिंदगी मेरी रोशन हो गयी ,
मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया।


आज भी याद हैं वो पहली मुलाकात ,
रिमझिम बरसती वो सावन की बरसात।
देख कर मैं तुझे डर से सहम सी गयी थी ,
धड़कने मेरी बेतहासा बढ़ सी गयी थी ।


समझ गए थे तुम मेरी बेबसी को ,
अँधेरी रात मुझे सहमा हुए देख के ।
पास आकर फिर एहसास दिलाया ,
हर इंसान गलत नही ये समझाया।


नयनो से नैना जो टकरा गई थी,
पलके मेरी झट झुक सी गयी थी ।
बारिश से बचने को छाता मेरे ऊपर लगाया था,
पहले प्यार का पहला एहसास कराया था।


मेरी नजरें उसको ही  के देख रही थी,
उसकी नजरें सड़क को चीर रही थी।
थमते ही बारिश के घर मुझे पहुँचाया था,
मोहब्बत का एहसास दिल में जगाया था।


उस दिन शुरू हुई खामोश मोहब्बत,
आज भी पल पल बढ़ती जा रही हैं ।
तेरे संग हर पल जीने मरने की ,
ख्वाहिशें दिल में बढ़ती जा रही हैं।


मोहब्बत तो एक एहसास है,
जो जीवन का हर पल महकाता हैं।
कभी हँसाता तो कभी रुलाता,
दिल में उतर रूह में समा जाता है।


*********************
कवयित्री प्रशंसा श्रीवास्तव


जब आया वेलेंटाइन तो हंगामा हो गया,
अंग्रेजों ने बनाया नया एक ड्रामा हो गया,
लड़के ने जब इज़हार किया बड़े प्यार से,
शिव सैनिक हर लड़की का मामा हो गया।
   
********************
अभिजित त्रिपाठी "अभि"
पूरेप्रेम, अमेठी,
उत्तर प्रदेश,
भारत
मो. - 7755005597
काव्यरंगोली
नेह स्नेह काव्योत्सव
मातृ-पितृ पूजन दिवस परचंद मुक्तक


दर दर भटके वो मानुष पत्थर ही जिसको प्यारा है।
वो जाएं दरगाहों पर मुर्दों का जिन्हें सहारा है।
मां ही मंदिर, मां ही मस्जिद, माँ ही तो गुरुद्वारा है।
भंवर बीच जब भी हूँ फंसता माँ ही बनी किनारा है।
मां की समता केवल मां है, उसके जैसा कौन है दूजा?
मंदिर - मस्जिद मैं ना भटकूं, मैं करता हूँ माँ की पूजा।
                         


किसी को ये ज़मीं दे दो, किसी को आसमां दे दो।
अधर मुस्काएं अब सबके, सभी को वो शमां दे दो।
बाँटनी ही है गर तुमको, आज बुनियाद इस घर की।
तो सबकुछ ले लो हिस्से में, मुझे बस मेरी माँ दे दो।
               


समंदर चाह ले कितना पर आगोश में भर नहीं सकता।
जहर का पी भी लूं प्याला तो भी मैं मर नहीं सकता।
मेरे सिर पर सदा उसकी दुवा का हाथ रहता है।
मेरी माँ जी रही मेरा कोई कुछ कर नहीं सकता।
              


मेरी खातिर खुद व्रत रखती, लेकिन मुझे खिलाती है।
कभी शाम तक घर ना लौटूं, बहुत अधिक घबराती है।
गलती पर मेरी मुझको जमकर के डाँट लगाती है।
पर पापा जब कभी डाँटते माँ ही मुझे बचाती है।


काव्यरंगोली
नेह काव्योत्सव


अभी दिल भिगोना भी बाकी है, दाग धोना भी बाकी है।
तुम्हें पाना भी बाकी है, तुम्हें खोना भी बाकी है।
दिल पर पड़ा पत्थर या पत्थर का ही दिल पूरा।
अभी हंसना भी बाकी है, अभी रोना भी बाकी है।
हमसफ़र चुनना भी बाकी है, ख्वाब बुनना भी बाकी है।
बहुत कहना भी बाकी है, बहुत सुनना भी बाकी है।
तेरे दिल में मेरा आना, अभी आना भी बाक़ी है।
दिल तोड़ मेहमा बन लौट जाना भी बाकी है।
दर्द की आँच पर तपकर, जाम-ए-गम पीना भी बाकी है।
अभी मरना भी बाकी है, अभी जीना भी बाकी है।


********************
सत्य प्रकाश पाण्डेय


हे प्रेम के पुजारी
तुमसे अधिक प्रेम को
किसने जाना
हे प्यार के उपासक
किया प्रेम को परिभाषित
और उसे पहचाना
फिर क्यों न तुम्हारा जन्मदिन
प्रेम दिन के रुप में मनाएं
तुम्हारी प्यार कहानी
क्यों न जग को बताएं
कि प्रेम वासना नहीं
दो दिलों का परस्पर समर्पण है
प्रेम में छल नहीं
कलुषित भावों का तर्पण है
प्रेम अंर्तमन के स्रोतों से
निसृत पीयूष है
प्रेम से मिलती खुशी
न होता कोई मायूस है
प्रेम वस्तु नहीं
जिसे खरीदा जा सके
या फिर मुझे प्यार है
कहकर
किसी पर लादा जा सके
वर्तमान परिवेश ने
इसे व्यापार बना दिया
जीवन मूल्यों का ह्रास
आधुनिकता का चोला पहना दिया
अरे प्रीति ही करो तो
मेरे कान्हा जैसी हो
हर दिन हर रात फिर
वेलेंटाइन डे सी हो।


*********************
स्वर्ण ज्योति
पॉण्डिचेरी


वेलेंटाइन दिन के लिए
हम होंगे
अक्षरों और शब्दों से बने वाक्य होंगे
बोलों और धुनों से सजे गीत होंगे
तेरे-मेरे बीच बंधे सब बन्धन
समय के पन्नों पर अंकित होंगे


हर तरफ खूबसूरत फ़िज़ा होगी
दिल के साज़ पर गूंजती सदा होगी
तेरे-मेरे प्यार का चाहे जो हो अंजाम
मोहब्बत की दास्तां हमेशा जवां होगी


तुझसे बिछड़ जाऊं इसका ग़म तो होगा
पर मेरे बाद मेरी वफाओं का संग होगा
तेरी मुस्कुराहट का वही गज़ब ढंग होगा
कि मेरे प्यार का उसमें घुला गहरा रंग होगा


ज़मी से फ़लक तक तेरा नाम होगा
मेरी भी यादों का पैग़ाम होगा
जाने वो कैसा मुक़ाम होगा
जब ज़मी पर फिर आशियाँ न होगा


कि तेरे-मेरे बीच बंधे सब बन्धन
समय के पन्नों पर अंकित होंगे


*********************


डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची, झारखंड
वैलेंटाइन सप्ताह
......................
रोज़ डे
जीवन के कांटों के बीच
मुस्कुराना नहीं है आसान,
हंसाने वाले चेहरे होते हैं
"रोज़ डे"की पहचान।


प्रपोज़ डे
अपनी गलतियों का सिर
ईश चरणों में झुकाऊं
चढ़ा कर क्षमा के पुष्प
"प्रपोज डे"मनाऊं।


चाकलेट डे
अहं का पर्दा उतार
कभी अपनो के पास जाना
"चाकलेट डे"पर
रिश्तों में मिठास भर आना।


टेडी डे
खेलना अच्छा नहीं जज़्बातों से,
उन्हें टेडी समझकर,
"टेडी डे"मनाओ
किसी के अश्क पोंछकर।


प्रामिस डे
इरादा रखते हो गर नेक
बनना चाहते हो महान्
खुद से करो"प्रामिस"
पहले बनोगे इंसान।


हग डे
उपेक्षित बुजुर्गों को"हग"कर
कुछ बातें कर लें,
ठंडी हवाओं के झोंकों से
मुलाकातें कर लें।


किस डे
शहर की आपाधापी से चलो
थोड़ी दूर जाएं
गांव की मिट्टी को
"किस डे"पर चूम आएं।


वैलेंटाइन डे--
सिर्फ वैलेंटाइन डे पर नहीं
हर दिन करें सभी से प्यार
क्योंकि प्यार तो है अनंत
खुशबू है दिग-दिगंत
डूबकर इस सागर में देखें
रोम-रोम हो जाएगा संत।


*********************
देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
जन्म दायिनी मां.............


जन्म   दायिनी   मां ,  दुख  निवारिणी   मां ।
तेरे दम  से दुनियां  देखी , स्नेह पालिनी मां।।


तेरी गोद  लगे  ज़न्नत , मांगी मेरे  लिए मन्नत;
तेरा आँचल लगे प्यारा,शीतल प्रदायिनी मां।।


रखती ध्यान तू सबका,सुनती सबके मन का;
बिन तेरे बेकार सारा , कर्तव्य परायिनी  मां।।


चाही हरदम  प्रगति, टालती रही  हर विपत्ति;
तेरे जैसा कोई न दूजा,जीवन संवारिणी मां।।


करता रहूँ  तेरी  सेवा , संग ही  देश की सेवा;
ऐसे उतारूँ दोनो  कर्ज़,"आनंद"दायिनी मां।।


-
*********************
आशीष मिश्रा 'बागी'
9984964849


प्रेमदिवस (वैलेंटाइन डे स्पेशल ) काव्य रंगोली नेह सनेह प्रतियोगिता 2020 ..एक छंद ..अनुप्रास का प्रयास


प्रेम परमात्मा को पाने  का है प्रथम पग ,
प्रेम  ही  प्रतीति  प्रीति  और परवाह  है ।
प्रेम  परम   पावन   पवित्र   व  प्रसंनीय ,
प्रेम  प्रतिपल  प्रिय प्रीतमा  की चाह है ।
उद्धव से पंडित को पागल  बनाता प्रेम,
प्रेम ही प्रकृति  का  पवित्रतम् प्रवाह है ।
प्रेम नहीं पैजनिया प्राण प्रिय के पैरो की ,
प्रेम तो प्रभू को पाने की प्रधान राह हैं ।
                 
**********************
शिवानी मिश्रा
(प्रयागराज)
काव्य रंगोली नेहकाव्य उत्सव,


प्यार का रंग(मुक्तक)


प्यार है सच्चा, प्यार है गहरा,
प्यार का हर रंग है पक्का,
जीवन का हर सार है प्यारा,
समझ कर इसको जो पा जाये,
किस्मत का धनवान वह कहलाये,
इस प्यार के होते रंग अनेक,
माँ का प्रेम होता निराला,
पिता का प्रेम अद्भुत सारा,
बहन होती शैतानी की पुड़िया,
भाई-भाई हिम्मत की दवा कहलाये,
पति बन जाये हमसफर,कदम कदम
पर राह दिखाये,
परिवार मिले तो जग मिल जाये,
ऐसा अद्भुत प्यार हम और कहा से पाये,
वेलेंटाइन तो सिर्फ दिन है एक,
हम तो ठहरे भारतवासी,
सदा प्यार बरसाते हैं,दिन हो चाहे साल,सबको गले लगाते है।


********************
नाम-रीतु देवी"प्रज्ञा"
पता-करजापट्टी, दरभंगा, बिहार
रचना-माँ प्यार तुम्हारा


ढूंढू मैं पलपल जहां सारा,
वो है माँ प्यार तुम्हारा।
मैं हूँ तेरी आँखों का तारा,
जन्म दिया फाटक तोड़ अनेको कारा।
ईश्वर से माँगी ,सर्वत्र तीर्थस्थल आँचल फैलाकर
की पैरों पर खड़ा ,सहस्त्र रोड़े हटाकर।
ढूंढू  मैं पलपल जहां सारा,
वो  है  माँ  प्यारा तुम्हारा।
मिलता नहीं माँ मुझे जब कहीं सहारा ,
अपने तट मेरी नाव लगाती किनारा।
स्वार्थी रिश्तों से जुड़ती चली जाती,
सिर्फ तू ही  मुझे  निस्वार्थ चित्त बसाती।
ढूंढू मैं पलपल जहां सारा,
वो है माँ प्यार तुम्हारा।
          
*********************
अर्चना कटारे
शहडोल (म.प्र.)
नेह सनेह
*मेरे चारों धाम*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*मात -पिता ही होते असली चारों धाम*
*इनके चरणों तले ही रहते जग के चारों धाम*


*परिवार के लिये ही समर्पित रहते*
*सहते कष्ट महान*
*परिवार और बच्चों की खातिर देतेे अपना जीवन दान*


*दिन रात मेहनत करते रहते*
*करते नहीं आराम*
*मजदूर सा काम करते रहते*
*लेते नहीं विश्राम*


*हाँथ जोड विनती करूँ लेते रहें तेरा नाम*
*मात पिता तेरे चरणों में हैं  अनेकों सुख महान*


*वंदन ,करूँ ,स्तुति करूँ, जपूँ तेरा नाम*
*तेरे चरणों की छाया है तो जग में स्वर्ग समान
            
***********************


नाम: खुशबू कुमारी
पता: राँची
हैप्पी वैलेंटाइन


दुनिया मे जब आयी,
तो माँ ने हंसकर गोद लिया,
पिता ने जी भर लाड़ किया,
दादाजी ने मन भर दुलार किया,
दादीजी ने नम आँखों से प्यार किया,
यही तो है प्यार, जिससे बनता है हमारा प्यारा परिवार।


स्कूल में जब आयी,
शिछ्को ने साथ दिया,
दुनिया भर का ज्ञान दिया,
सही गलत की परख बताई,
दुनिया मे जीने की रीत सिखलाई,
दोस्तो का संग खिला,
जिंदगी जीने का ढंग मिला,
सबने स्कूल में थामा हाथ,
बढ़कर गुरुओं दोस्तों ने, दिया साथ,
ये है प्यार, जहाँ मिला ज्ञान की बौछार,
जहाँ मिली दोस्तो की यारी,
जहाँ समझ आयी करियर की जिम्मेवारी,
और इसने बनाया हमारा तीसरा परिवार।


फिर कदम पड़े कॉलेज में,
जहाँ मिले हम जिगरी यारों से,
बन गए जहाँ ग़ैर, अपनो से,
जहाँ मिले हम, अपने सपनों से,
जहाँ ख़्वाहिशें उड़ान भरते गयी,
जहाँ जिंदगी, ख्वाबों को सलाम करते गयी,
यहीं तो मिला हमे, जिंदगी जीने का सलीका,
और जिंदगी जैसे गुरु से, मिलने का मौका,
यही तो है प्यार, जो बनाता है हमारा अगला परिवार,
जहाँ सीखते है हम,
पूरे विश्व को जहाँ, पढ़ते है हम।


अब आयी अनजाने रिश्ते की बारी,
जहाँ दिल चल दिया, ढूंढ़ने प्यार की अनजानी सवारी,
मिला, वो कुछ था, अपने जैसा,
जैसा दिल ने चाहा,
मिला जीवनसाथी बिल्कुल वैसा,
अब दिल तो परिंदा बन गया,
अनजाने रिश्तों को, अपना कर गया,
अब तो दिल परिंदा बन गया,


ये है प्यार,
जिनसे बना हमारे जीवन का, हर परिवार,
जिनसे बने हमारे, रिश्ते और रिश्तेदार,
जिससे बना हमारा, दोस्ती का किरदार,
जिससे मिले हमारे, गुरूओ का ज्ञान,
जिससे बना हमारे, जीवनसाथी का सम्मान,
असली वैलेनटाइन तो ये बना है,
क्योंकी हर रिश्तों में, प्यार अपना है,
ये बना मेरा वैलेनटाइन,
मेरे हर रिश्तों को


*******************
रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
शीर्षक - मैंने प्यार कर लिया


देकर गुलाब प्यार का इकरार कर लिया
मैने सनम से ईश्क़ का इज़हार कर लिया।


भर  दी  मिठास  प्यार  में  चॉकलेट  से
बाहों में उसको अपने गिरफ्तार कर लिया।


वादा किया कि साथ ना छोड़ूंगा ऊम्र भर
उसने भी मेरे प्यार को स्वीकार कर लिया।


जब चूम लिया प्यार से माथे को सनम के
फिर झूम कर सनम ने भी इज़हार कर दिया।


हम सात दिन में जी गये हैं सात जनम को
मुझको भी हुआ प्यार मैने प्यार कर लिया।
**********************


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
भारतमाता


मातृभूमि की मृदा सुपावन, स्वागत परछन सत अभिनंदन ।
पालक पोषक मात भारती, नेह वत्सला सत सत वंदन।।
किरीट हिमालय शुभ्र मनोरम ,सागर की उत्ताल तरंगें,
ध्वजा तिरंगा ऊर्ध्व गगन रुख, सुरभित माटी पावन चंदन ।।


यही अस्मिता आन बान मम, यही संस्कृति दिव्य धरोहर ।
यही सत्व जीवन का कारक, रग रग रमती प्रकृति मनोहर।।
कलकल नद्या  हरित बाग वन, धान्य पूर्णा भूमि उर्वरा,
जिसकी संतति कर्मठ ज्ञानी, समष्टि परायण बोले हरहर।।


जिसका आँचल परचम बनकर, ऊँचे लक्ष्य प्रमान छुए ।
जिसका अर्चन जन जन करता, द्रोह बैर अविलम्ब खुए।।
जिसकी सीमा सुफल साधना, प्रखर  उऋण  न हो पाएगा,
प्रथम प्रेम की वह अधिकारी, जिस पर सुत बलिदान हुए।।
*********************
नित्या नंदिनी शर्मा
देवास
प्रेम


प्रेम जगत का है आधार..
प्रेम  बिना सब निराधार
प्रेम ईश्वर का है वरदान..
प्रेम सृष्टी का सृजनकार
प्रेम की रित है सबसे अनोखी..
प्रेम की नीति है सबसे अनूठी
प्रेम ही शब्द है प्रेम ही अर्थ है
प्रेम ही तो है साकार मूरत-सा
प्रेम ही तो है निराकार ब्रह्म -सा
प्रेम सदा सर्वदा निष्छल
प्रेम सदा सर्वदा निर्मल
प्रेम सदा सर्वदा पावन
प्रेम सदा सर्वदा कोमल
देता मन को शीतलता
प्रेम मात है प्रेम पिता है
प्रेम ही कृष्ण..प्रेम ही राधा
प्रेम ही अश्रु ...प्रेम ही धारा
प्रेम त्याग है प्रेम समर्पण
प्रेम हर रिश्ते का आधार
प्रेम मधु है, प्रेम सुधा है
प्रेम ही जीवन की ज्योति
प्रेम ही दीपक, प्रेम ही बाती
प्रेम तपिश है, प्रेम कशिश है
प्रेम बिना ये जग है सूना
प्रेम बिना हर जीव अधूरा
प्रेम ही पूजा प्रेम सर्मपण
प्रेम ही तप है, प्रेम साधना II


*********************


मीना विवेक जैन
वारासिवनी
*काव्य रंगोली नेह सनेह प्रतियोगिता 2020*


साथ तुम्हारा प्रियेवर मेरे
जीवन में रस घोल रहा है
प्रेम प्रीत की डोर पकडकर
मनवा मेरा ढोल रहा है
अनजानी राहों पर साथी
थाम लिया है हाथ तुम्हारा
जीवन भर ये सफर सुहाना
कभी न छूटे साथ हमारा


*********************
एस के कपूर श्री हंस बरेली
मोब   9897071046
8218685464


*विषय।।।प्रेम।।
*शीर्षक।बनना पड़ेगा हमें प्रकर्ति प्रेमी।।*
*।।।।।।मुक्तक माला।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।1 ।।।।।।।*


सर्दी की ठिठुरन में मैंने तापमान
का दरवाजा खटखटाया।


कांपते  थरथराते  होठों  से  मैंने
उसको   कुछ   फरमाया।।


और  कितना  नीचे  गिरोगे  शर्म
नहीं आती है तुमको कभी।


फिर  कुछ  अपने  ही अंदाज़  में
प्रेम से उसको  हड़काया।।
*।।।।।।।।।।।।।2।।।।।।।।*
तापमान ने  बड़े  ही  ठंडे  दिमाग
से     कुछ       बतलाया।


बोला मैं प्रक्रति का दास  हूँ उसने
ही मुझको  है सिखलाया।।


हे मनुष्य तेरी भांति मैं अपने कर्ता
का   दोहन  नहीं  करता।


यही मेरे   संचालक ने   वर्षों   वर्ष
है   मुझको   दिखलाया।।
*।।।।।।।।।।।।।3।।।।।।।।।*
हे प्राणी अभी भी समय  है   बोलो
तुम  प्रकर्ति  की  बोली।


प्रकर्ति सृष्टि की रचनाकार है पूज्य
जैसे अक्षत चंदन रोली।।


यदि बचना है  तुझको  प्रकर्ति  के
प्रचंड   रूप     प्रकोप  से।


तो बनो तुम अभी से ही प्रकर्ति के
एक सच्चे प्रेमी हमजोली।।


**********************
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सम्पादक निर्णायक
काव्यरंगोली


Happy velentane day-- ----तू ही है नाज़, तू ही है ताज ,है  जमीं तू ही यकीं आकाश तुझे क्या नाम दूं  जानम।।
तू ही है जान ,तू ही पहचान , है तू दींन तू ही ईमान ,तू ही अल्ला है तू ईश्वर तू ही  कायनात है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
चाहतो की है तू  चाहत, तू है मोहब्बत कि मल्लीका ,मैं दीवाना तेरा ,तू मेरे मन के आँगन की काली मैं भौरा हूँ परवाना।।
तू चाँद और चांदनी है, है  सावन की घटाए तू, तू ही मधुमास की मस्ती है ,है यौवन की बाला तू ।।
तू ही बचपन, है जंवा जज्बा, तू ही जूनून, तू है ग़ुरूर ,तू ही हाला ,तू ही प्याला तू ही मधुशाला जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।                                     तू ही ख्याबो की ख्वाहिस है,है तू ही ख्वाबो की शहजादी।।
तू ही आगाज़ ,है तू अंदाज़  ,तू ही अंजाम है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
तू ही जाँ तू ही जहॉ तू ही जज्बा तू ही जज्बात है जानम।।
तू ही सांसे ,तू ही धड़कन, तू ही आशा, तू ही निराशा की आशा  विश्वाश जिंदगी का जानम।।
तू ही है प्रीत ,तू ही मनमीत ,तू ही संगीत है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
तू ही स्वर हैं ,तू ही सरगम ,तू ही सुर संगीत है जानम तुझे क्या नाम दूँ जानम।।
तू है खुशियां है तू ख़ुशियों की खुशबु है तू ही मुस्कान है जानम।।
सुबह सूरज की तू लाली तू ही, प्यार यार का मौसम प्यारी  ,तू ही लम्हा , है तू ही सुबह और शाम जानम।।                              तुझे क्या नाम दू जानम ,तू दिल के पास है इतनी ,तू दिल की दासता दस्तक, तू दिन रात है जानम।।                                तू दिल का आज है जानम ,कभी ना होना कल  जानम, तू ही है जिंदगी का सच दर्पण जानम।।
तू ही हसरत की हस्ती है, तू ही मकसद की मस्ती है ,तू ही मंज़िल कारवाँ है जानम।।                    तू ही मांझी तू ही कश्ती तू ही मजधार तू ही पतवार तू ही शाहिल है जानम।।
तू ही है अक्स ,तू ही है इश्क तू ही है हुस्न तू ही दुनियां का है दामन जानम।।                                 तू है शमां  रौशन अंधेरों की उजाला  तू है चमन की बहार बहारों का श्रृंगार है जानम।।
तू ही है झील ,तू ही झरना, तू है दरिया  समन्दर जानम  ।।           तू ही शबनम है तू शोला तू है बूँद बादल जानम।।
तेरी नजरों से दुनियां है ,तेरी नज़रों में दुनिया है ,तेरे साथ जीना तेरे संग मरना तू ही है आदि अंत जानम।।


*********************
अनामिका श्रुति सिंह
नागपुर


यह मेरे दिल के उद्गार हैं जो
शीर्षक -- प्यार


प्यार बहुत ही पाया मैंने ,
अपने पूरे बचपन में ।
नानी- दादी की थी दुलारी,
मम्मी के थी धड़कन में ।


दादा को न देखा मैंने ,
नाना की थी राजदुलारी ।
नटखटपन की बेला बीती ,
पापा के संरक्षण में ।


भाई बहन का प्यार मिला,
क्योंकि मैं सबसे छोटी थी ।
अपनी प्यारी बातों से ,
सबके दिलों में मिश्री घोली थी ।


बचपन बीता आई जवानी ,
प्यार का रूप भी बदला था ।
जो चाहा वह मिला मुझे ,
मैं बड़ी भाग्यशाली थी ।


दिया बहुत कुछ दाता ने ,
अब लौटाने की बारी है ।
सीखा मैंने बचपन से ,
प्यार ही सबसे न्यारी है।


***********************
निशा"अतुल्य"
देहरादून
माँ
14 /2/2020


माँ लिखने पर भावना बह जाती है
कलम ख़ुद वंदन में झुक जाती है
जीवन दिया दुःख सह कर जिसने
गुणगान उसका न कर पाती है ।


सोती रही गीले में खुद ही
मुझको न मालूम चला है
क्या होती है सर्दी गर्मी
माँ ने खुद ही सदा सहा है ।


मुझको सदा भरपूर है चाहा
नेह संचित संसार रहा है
कुछ कर्तव्य बताये मुझको
उपवन मेरा रहा खिला है ।


माँ ही मेरी प्रथम गुरु है
चलना उसने सिखलाया है
जीवन की कठनाई से लड़ना
उसने मुझको बतलाया है।


नत मस्तक मैं सदा रहूँगी
उनके क्या गुणगान है
मात पिता तो सृष्टि सारी
चला उनसे ही संसार है।


भूमि सा ठहराव है उसमें
नदियां सी बहती रहती है
जीवन धारा वो जीवन की
हरदम हँसती रहती है।


प्रथम वेलेंटाइन मात पिता है
जिन्होंने मुझको जन्म दिया है
शिश झुका कर मात पिता को
जीवन ख़ुद का सफल किया है ।
**********************


प्रिया सिंह मिष्ठी
लखनऊ
मेरा पहला और आखिरी प्यार मेरी डियर डायरी
हर साल रहता है तेरा इन्तजार मेरी डियर डायरी


वेलेंटाइन डे.... पर मेरे सिर्फ तेरा ही अधिकार है
मुझे सिर्फ तुझसे ही है प्यार....मेरी डियर डायरी


मेरे ख्वाबों का आसमान जिन्दगी का मुकाम है
हाँ तेरे लिए ही है मेरा इजहार मेरी डियर डायरी


मेरी नाकामियों मेरी नादानियां सब मंजूर तुम्हें
कहाँ हमारी होती है टकरार मेरी डियर डायरी


अब कह देती हूँ प्यार-प्यार-प्यार है हमें तुझसे
अब बस दिल में तेरा है खुमार मेरी डियर डायरी


*********************


विजय कनौजिया
काही अम्बेडकरनगर
मो0-9818884701


यही तो प्रेम है अपना
अभी तो पूर्ण जीवन का
नहीं सपना हुआ अपना
चलेंगे साथ मिलकर हम
यही अनुबंध है अपना..।।


नहीं है सरल जीवन पथ
सहज इसको बनाना है
नहीं होंगे कभी विचलित
निभाना साथ है अपना..।।


कभी विपरीत जीवन में
अगर हो जाएं स्थितियां
रहेंगे हम अडिग पथ पर
यही तो साथ है अपना..।।


सुहाना हर सफ़र होगा
खिलेंगे पुष्प जीवन में
यही अभिलाषा मेरी है
यही तो प्रेम है अपना..।।
यही तो प्रेम है अपना..।


**********************
सीमा शुक्ला
अयोध्या
वैलेंटाइन डे पर विशेष.......


प्यार का ये पक्ष है या पक्ष भर का प्यार है।
झूमकर आया विदेशी प्यार का त्योहार है।
आ गई ये रीति कैसी ?
हो गई ये प्रीति कैसी?
रंग बदला ठंग बदला
चार दिन मे संग बदला
एक दिन का प्यार कैसा?
ये नया त्योहार कैसा?
चार दिन की है बहारें
कौन फिर किसको पुकारे
रूप का फैला  भंवर है
प्यास से व्याकुल भ्रमर है
प्यार की कीमत बढे जितना बड़ा उपहार है
प्यार का ये पक्ष है या पक्ष भर का  प्यार है।
प्यार की कैसी नुमाइश?
हो रही हद पार ख्वाहिश
चार दिन गुल  खिल रहे हैं
प्यार मे दिल मिल रहे है।
रश्म वादों की निभायें
साथ मे कसमें भी खाये
जब तलक है चाद तारे
हम रहेगे बस तुम्हारे
देखता संसार जिसको
नाम दे क्या प्यार उसको ?
हो रही नीलाम इज्जत अब सरे बाजार है ।
प्यार का ये पक्ष है या पक्ष भर का प्यार है।
प्यार के क्या बोल समझे ?
न इसे अनमोल समझे?
प्रीति की क्या शर्त होती?
ये सदा वेशर्त होती
प्रेम की भाषा न होती
कुछ मिले आशा न होती।
प्यार है या खेल है ये ?
रूह का न मेल है ये
हो रही बदनाम चाहत
हम कहें कैसे मुहब्बत?
देखकर यह रूप मन धिक्कारता सौ बार है ।
प्यार का यह पक्ष है या पक्ष भर का प्यार है।


**********************


रश्मिलता मिश्र
बिलासपुर छग
प्रेम दिवस पर मेरा प्यार


मुझे इश्क है वतन से
मेरी जान है तिरंगा
मैं तो चाहूँ भारतमाता
तेरा रूप रंग-बिरंगा।
तेरी गंगा प्यारी पावन
है हिमालय मनभावन।
दक्षिण में सागर है प्यारा,
उत्ताल तरंगे, कहाँ किनारा?
मुझको प्यारे मेरे प्रहरी
जिनकी बदौलत सुरक्षा ठहरी।
इश्क मुझे प्यारे मौसम से
शिशिर,हेमन्त शरद बसंत से
हर ऋतुओं की बयार मस्तानी
कभी खिले धूप कभी गिरे पानी
धूप से इश्क छाँव से इश्क
शहर से इश्क गाँव से इश्क
मुझे इश्क मेरे रब से जो
  बनाया हिन्दू बन्दा।
मैं तो चाहूँ भारतमाता
तेरा रूप रंग- बिरंगा


**********************
संजय जैन
(मुम्बई)
मोहब्बत अंधी और सच्ची होती है
विधा : कविता


न दिल में गम है आज,
न ही गीले और सिखवे।
जब साथ हो तेरा,
तो क्या गम क्या सिखबे।
इसलिए तो दिल से,
तुम्हें चाहते है हम।
मेरी धडकनों में अब,
तुम ही तुम बसते हो।।


क्या तेरा है पैमाना,
मुझे आंक ने का।
तेरी मार्किंग ने मुझे,
दिये कितने अंक।
हो कितनी पारदर्शी तुम,
समझ आयेगा अंको से।
की कितना तुम हमें,
अबतक जान पाये हो।।


माना कि मन बहुत,
हमारा चंचल होता है।
जो दिलकी धड़कनों को,
जल्दी पढ़ नहीं पाता।
और बिना समझे ही वो,
मोहब्बत करने लगता है।
फिर ऐसी मोहब्बत के,
परिणाम अच्छे नही आते।।


आज के दिन प्रेमों को,
संजय देता है दुआ।
की सफल हो जाओ,
अपनी अपनी मोहब्बत में।
कुछ ऐसा करो आज,
की मोहब्बत परवान चढ़े।
और इतिहास के पन्नो में,
नाम तुम्हारा भी लिखा जाए।।


**********************
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती [उत्तर प्रदेश]
मोबाइल 7355309428


★प्रेम जीवन का आधार★


प्रेम दूजे के प्रति मनुहार है,
माँ का बेटे के प्रति दुलार है।
प्रेम ही जग में शाश्वत सत्य,
प्रेम जीवन का आधार है।। 


प्रेम  में हम  करते  हैं त्याग,
सीने में जलती है इक आग।
प्रेम में होता है अजीब जुनून,
निज स्वार्थ का है परित्याग।।


प्रेम कण कण में विद्यमान है,
सृष्टि में सर्वत्र विराजमान है।
प्रेम के बिना जीवन है अधूरा,
प्रेम में ही दिखे भगवान है।।


प्रेम कृष्ण के मुरली की तान,
प्रेम में छुपा  है ज्ञान विज्ञान।
प्रेम ही आदि और आरम्भ है,
प्रेम में  जीवन की  मुस्कान।।


प्रेम खिली हुई प्यारी सी धूप,
प्रेम जीवन का  इक स्वरूप। 
माँ, बहन, बेटी,पत्नी, प्रेमिका,
प्रेम के दिखते ढेर सारे रूप ।।


प्रेम में है जीवन की है आशा,
मन में  जगती है  अभिलाषा।
जीवन में  लगता ख़ूब आनंद,
छंट जाती जीवन की निराशा।।
   **********************
प्रतिभा गुप्ता
भिलावां,आलमबाग
लखनऊ
मो-8601546171
*******************
साथी जबसे मुझको तेरा प्यार मिला,
सुखमय जीवन जीने का आधार मिला।
*********
मुरझाई बगिया फिर देखो आज खिली,
चूड़ी,बिंदिया का मुझको श्रृंगार मिला।
********
जिन नैनों को हरदम कोई आस रही,
उन नैनो को सपनों का उपहार मिला।
********
जबसे पाया मैंने तेरा  साथ
प्रिये,
मुझको जैसे नित नूतन त्योहार मिला।
**********
दुनियाँ की मुश्किल राहें आसान हुईं,
मुझको जब प्रियतम का घर संसार मिला।


सच कहती हूँ प्रतिभा मैं यह बात सखी,
पति में मुझको ईश्वर का अवतार मिला।
*********************


नीतेश उपाध्याय


प्रेम एक दिन एक उत्सव का रुप नहीं
प्रेम तो जीवनोपरांत भी जीवनत्व  रहता है


प्रेम एक अलंकरण आभूषण नहीं अपितु
प्रेम तो ईश्वर प्रदत्त उपहार सदैव रहता है


प्रेम एक परिभाषा नहीं यह तो एक पुराण ग्रंथ है
जिसका हर एक अध्याय में वर्णनत्व रहता है


प्रेम एक जग में उपहास नहीं अपितु इतिहास का रचियता है
जिसे सदैव सँभालकर रखना हमारा दायित्व रहता है


परिवर्तन माना संसार के अनुकूलनों में होता है
लेकिन प्रेम में सदैव स्थायित्व रहता है


प्रेम के प्रति किसी की कोई भी भावना रही हो
किंतु प्रेम का एक सा ही महत्व रहता है
**********************
अवनीश त्रिवेदी "अभय'
वैलेंटाइन डे स्पेशल
गीतिका


मेरी   हर  तरक़्क़ी    में   तेरी  सब   इनायत   है।
तुझमें  है   जहाँ   मेरा   तू  ही  तो    इबादत   है।


तुमसे  ही   मुक़म्मल  है   मेरी  ज़िन्दगी  अब  तो।
लफ़्ज़ों  में  तिरे  अब  तो  झलके इक नज़ाकत है।


अब दहलीज़ इस दिल की तुम भी लाँघ कर देखों।
तेरी   चाहतों   से  तो   मुझमें   यह   नफ़ासत   है।


जीने  का  सलीक़ा  भी  पाया   यह  तुझी  से  है।
हैं  इक  अदब  लहज़े  में  ज़ेहन   में  शराफ़त  है।


रौशन  आपसे   हैं   यह  मेरी   ज़िन्दगी  अब  तो।
तुम्हारा   बनूँ   मैं  अब    क्या   तेरी  इजाज़त  है।


दुनिया  से  कहूँ   क्यो  मैं दिल के आज अफ़साने।
अब  तो  बस  तिरी  हाँ  ही  मेरे  लिए ज़मानत  है।


हर   महफ़िल   तिरे   कारण    रंगारंग   होती   हैं।
अब   भूलूँ  "अभय"   कैसे  तू   मेरी   मुहब्बत  है।


**********************
रासबिहारी नागेश
मु.पो.तेतलखुटी
गरियाबंद (छ. ग.)


          होगी प्यार की जीत


दिल में बसाया दिल से चाहा ।
यादों को तेरी भुल न पाया ।
सारी रातें बस तेरी ही बातें ।
चाह कर भी तुझे बता ना पाया ।
कैसे बताऊं  मनमीत ।
होगी प्यार की जीत।


सारी रातें करवटें बदलते रहना।
दिन भर खयालों में खोए रहना।
पास मिले तो कुछ ना कहना।
छुप-छुप कर देखते रहना।
क्या यही है दिल की प्रीत?
होगी प्यार की जीत।


मेरी महबूब मेरी जानेमन।
ऐसी लगी है दिल में अगन।
तु रुपवन्ती प्यार का सागर।
बाहों में आजा नखरा ना कर।
आजा संग मिल गाए गीत।
होगी प्यार की जीत।


बस इतनी सी आरजू।
मुझको है तेरी जुस्तजू।
इतना कर तू मेहरबां।
बन जा तू मेरी दिलरुबा।
हृदय में "रास" अपरिमित।।
होगी प्यार की जीत।
*********************
सभी को बहुत बहुत बहुत बधाई एवम आभार


आज वैलेन्टाइन डे प्रेम दिवस या मातृ पितृ पूजन दिवस पर- -


निज मातु पिता के चरणों का, वंदन मैं बारम्बार करूँ।
उनकी स्मृतियो संदेशो को जीवन में स्वीकार करूँ।
इस प्रेम दिवस के अवसर पर,वासनामुक्त जीवन होवै,
नीरज के वैलेन्टाइन तुम को अमित अलौकिक प्यार करूँ।।
आशुकवि नीरज अवस्थी मो0-9919256950


वैलेन्टाइन डे पर एक सन्देशपरक हास्य गीत देखे और शेयर करे।


मेरे मोबाईल पर आती कम्पनियों की काल।
मेरी सीधी सादी बीबी ने रिसीव की काल।
मेरा नाम लिया कॉलर ने आँखे हो गयी लाल।
पूछा तुम हो कौन कहाँ की क्यूँ करती हो काल।
मोहतरमा बोली नीरज से अभी कराओ कॉल।
मेरी कम्पनी से उधार मंगवाया था कुछ माल।
फोन पटक कर मेरी पत्नी ने कर दिया बवाल।
वेलेंटाइन उसको समझा जिसने की थी काल।
बोल चाल सब बन्द हो गयी फुला लिए है गाल।
मोबाईल की कॉल बन गयी जी का है जंजाल।
ऐसे वेलेंटाइन डे पर मन में हुआ मलाल।
रिश्तों में विश्वास बनाये रखना जी हर हाल।


आपसी रिश्तों में विश्वास कभी भी खोने न दे।अपनी पत्नी माँ पिता भाई बहन मित्र एवम सभी सम्बन्धियो से रिश्तों का विश्वास हमेशा बनाये रखे।इससे बड़ा कोई वेलेंटाइन नही
आशुकवि नीरज अवस्थी
मो0-9919256950
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*********************


डा0विद्यासागर मिश्र "सागर" सीतापर/लखनऊ उत्तर प्रदेश

मेरे देश में
भारत की भूमि पर बलिदान देने हेतु,
देश भक्तो की खड़ी कतार मेरे देश में।
जिसने भगाया था फिरंगियों को भारत से,
उस झांसी रानी की कटार मेरे देश में
देश के सपूत जोरावर व फतेह सिंह,
जैसे बलिदानी सरदार मेरे देश में।
हिन्द पूत शत्रुओं को जड़ से मिटाने हेतु,
बन जाता रुद्र अवतार मेरे देश में।।
रचनाकार
डा0विद्यासागर मिश्र "सागर"
सीतापर/लखनऊ
उत्तर प्रदेश


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा )

तुम करो  इश्क़िया...... 


ज़माने में दौर सा बहा इश्क़. 
दबी ज़ुबाँ सभी ने कहा इश्क़. 


देख उन्हें खुद से होने लगा इश्क़, 
हाँ दिलरुबा से मिलने लगा इश्क़. 


खुल कर जीना कहीं मुश्किल हुआ, 
यादों में रहने लगा बस इश्क़. 


ढूंढ़ने से नहीं मिल रहा था खुदा, 
खुद में झाँका तो महसूस हुआ इश्क़. 


हर एहसास अंदर दबा लिया हमने, 
करी लाख कोशिश ना मिटा इश्क़. 


सीख लिया जो  बोलना कभी उनसे, 
बस हमेशा कहेँगे मेरे लब इश्क़. 


नफरतों की आँधी थमने लगेगी, 
एक बार जो तुम करलो इश्क़. 


जिसे चाहते हो और दिल दिया है, 
कभी तो करोगे किसी पल इश्क़. 


तेरी ज़िन्दगी तो दौड़ती रही "उड़ता ", 
यूं ही जीने का ढंग बता देगा इश्क़. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


मासूम मोडासवी

फितरत बदलने वाले इशारे नहीं देखे
रंगत को निगलते ये नजारे नहीं देखे


मिलजुल के जीने के करते रहे अरमां
गीरते हुवे गर्दिश के सितारे नहीं देखे


कुरबत की हसरत लिये निकले तो हो लेकिन
सागर से मगर दो दुर किनारे नहीं देखे


वो पासमें आजाये तो हो दुर शिकायत
धडकन में  उबलते  हैं शरारे नहीं देखे


मासूम मशक्कत से  कभी पीछे नरहें आप
उलजे  हुवे तकदीर  के वो  मारे  नहीं देखे


                        मासूम मोडासवी


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