एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।*


वंश बढ़ना
पुत्र नहीं पुत्री भी
नाम करना


वीरान दिल
अवसाद का घर
सबसे मिल


कर आबाद
नया करके दिखा
रखेंगें याद


नारी की लज्जा
उसका     आभूषण
नारी की सज्जा


बेह्तरीन
समोसा अच्छा लगे
ये नमकीन


जय जवान
भारत का नारा ये
जय किसान


एक दुकान
कठिन परिश्रम
हैं सौ सामान


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली

*विषय।।।।।।पिता।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक माला।।।।।*


माँ ममता की मूरत तो पिता
अनुशासन की डोर है।


दोनों के स्नेह  प्रेम  का नहीं
कोई   ओर   छोर  है।।


माँ करती पालन पोषण और
पिता    धन   अर्जित।


माँ देती  चाँद  सी   शीतलता
पिता सूरज की भोर है।।


 


माँ प्रेम  की  वर्षा  तो  पिता
संकट करे   जज्ब  है।


बिगड़ ना जाये  बच्चा पिता
बनता कठोर  लफ्ज़ है।।


सिर पर   ममता  का   स्पर्श
और पिता  का   साया।


यूँ जान लो  संतान  के  लिए
पिता सांसों की नब्ज है।।


 


जन्म दाता  पिता  संतान के
लिए दुःख भी सहता है।


गम सीने में दफन कर के भी
उफ  नहीं    कहता  है।।


पितृ   ऋण  से   संतान  कभी
मुक्त हो  नहीं   सकती।


वही होता सफल सर पर हाथ
जब पिता का रहता है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


संजय जैन (मुम्बई)

*भाग जाते है वो*
विधा: कविता


लगाकर आग वो, 
अक्सर भाग जाते है।
कहकर अपनी बात,
अक्सर भाग जाते है।
बिना जबाव के भी,
क्या वो समझ जाते है।
तभी तो बार बार आकर,
मुझसे वो कुछ कहते है।।


लगता है उन्हें प्यार हो गया।
दिल की धड़कनों में,
शायद में बस गया।
तभी तो हंस हंसकर, 
आंखों से तीर छोड़ते है।
शायद मेरे दिल को,
दूर से ही पढ़ लेते है।।


अब ये दिल भी उनकी, 
 हंसी का आदि हो गया है।
निगाहें मिलाने को तरसता है।
तभी तो सुबह होने का,
रोज इंतजार करता है।
की कब हँसता हुआ 
चेहरा उनका देखूं।।


जिस तरह वो बैचैन, 
 मिलने को रहते है।
हमारा मन भी उनसे, 
मिलने को तड़पता है।
तभी दोनों इधर उधर,
देखते रहते है।
निगाहें मिलने पर,
मानो एक हो जाते है।।


भले ही वो मुझे,
कुछ न कहे मुंह से।
पर दिल उनकी आंखों को,
पढ़कर सब समझता है।
हंसते हुए होठों से मानो, 
 कोई गुलाब खिलता है।
सामने खड़ा भंवरा भी,
गुलाब को पसंद करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
18/02/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरे जीवन के क्षण क्षण में
माँ वसुन्धरा के कण कण में


श्री मुरलीधर तेरा ही वास है
कृष्णा सत्य का ये विश्वास है


शोभित है तुमसे जड़ चेतन
हर प्राणी के हृदय निकेतन


कोई साध नहीं मेरी जग में
तव आशीष पाऊँ मैं भव में


तेरी ज्योति से रहूँ प्रकाशित
तेरी सुरभि से रहूं सुवासित।


मुरलीधर घनश्याम की जय🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी।

एक ग़ज़ल, 
             आपकी नज़र  - - 


थी नहीं हमको ख़बर कुछ कब गए वो छोड़कर।
हैं  वो  मेरे  साथ  हम  ये  सोच कर  चलते  रहे।


वाकया  वो  याद  हमको  ये न कहना  झूठ  है।
चल दिए सपने  दिखाकर  हाथ  हम  मलते रहे।


वो  न  आए   करके  वादा  मानिए   मेरा  कहा,
आएँगे  वो  सोचकर  हम  बन  शमा जलते रहे।


क्या  ख़बर  थी  भूल  जाएँगे हमें वो  इस तरह,
याद  में  उनकी   हमेशा  मोम   सा  गलते  रहे।


दिल दिया हमने  जिन्हें था तोड़ उनने ही दिया।
तुम  हमारी  जान  हो  कहकर हमें  छलते  रहे।


बेरहम   हमने  न  देखा  ऐ  ख़ुदा  ऐसा   कभी,
ये न  पूछा  अश्क़  क्यूँ  ये आँख से  ढलते रहे।


चाह  मेरी   थी  कि  सारे  ख़्वाब  पूरे  हों  मगर,
ज़िदगी  भर  ख़्वाब  मेरी  आँख  में  पलते  रहे।


                      ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"रैन"*
"मौन रहकर जीवन में वो,
क्यों-हरती मन का चैन?
कह सके व्यथा तन-मन की,
कब-आयेगी वो रैन?
ढलती शाम धीरे-धीरे ,
छाई अंधेरी रैन।
थम गई जीवन आशाएं,
कब-देखे भोर ये नैन?
भूल गया जीवन अपना,
खोई सपनो में रैन।
सच हो जीवन सपना यहाँ,
पा जाये सुख ये नैन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

अपना मुझे बना लो राम
🌷🥀🌻🎋🎍🌹🍁
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तुम ही हो,
जन, जन के तुम प्राणाधार,
युगों युगों से अखिल विश्व के,
तुम ही हो संचालन राम।
श्री हनुमान जी परम कृतार्थ हो गये,
नाथ तुम्हारी सेवा कर,
सब पूजन अर्चन करने को,
रहते है तत्पर सुर नर मुनि जन।
होगा तभी सार्थक नर तन,
जब मुझको अपना बना लो राम,
करता हूं सर्वस्व समर्पित,
अपना मुझे बना लो राम।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


शोध लेख फ्री प्रकाशित करवाइये

साहित्य सेवा के क्षेत्र में सभी कार्य सम्मान निःशुल्क सम्पादन होने के बाद काव्यरंगोली परिवार की सौगात अगर आप या आपका कोई परिचित शोधार्थी है तो केवल 2 शोधपत्र अधिकतम 2000 शब्दो मे हिंदी में भेजे यह शोध लेख का प्रकाशन उक्त पत्रिका के अप्रैल अंक में निःशुल्क प्रकाशन होगा जल्दी कीजिये प्रथम आओ प्रथम पाओ के आधार पर पत्रिका को rni पंजीकरण एवम issn प्राप्त है
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निर्मल जैन "नीर"

नया रास्ता....
******************
मंजिल पाता~
नित नये रास्तों को
जो अपनाता

सुहानी भोर~
रच तू इतिहास
बदला दौर

क्यों घबराना~
नये रास्तों पे ख़ुद
को आजमाना

थकना नही~
नये रास्ते पे तुम
रूकना नही

बढ़ते जाना~
नये ख्वाबों को तुम
गढ़ते जाना

******************
  💦निर्मल नीर💦


हरिओम "भारतीय"

दर्द किसानों का जो सह ले वो ही इक इंसान है l
धूप में तपते हैं जो दिनभर वो अपना सम्मान हैं l
वो जय जय जय जवान है,वो जय जय जय किसान है l


बंजर भूमि को बच्चों कि तरहा पाला करते हैं l
भूमि को अपनी मां कहते और उसको संभाला करते हैं l देश चलाने वाले क्या देश चलाने लायक हैं l
देश चलाने वाला देखो केवल एक किसान है l
वो जय जय जय जवान है,वो जय जय जय किसान है l


अधिकाधिक बेटे फ़ौज में हैं हाँ अपने इन्हीं किसानो के l मिट्टी कि सेवा कि ख़ातिर हाँ फूंक दिए अरमानों को l लेकिन परवाह नहीं उनकी न कोई पहचान है l
कहने को वो हैं किसान पर भारत के दिनमान हैं l
वो जय जय जय जवान है,वो जय जय जय किसान है l


लगा जी. एस. टी. से कुछ होगा उसमें भी वो ठगे गये l अपनों के संग रहे मगर वो अभिमन्यु सा फसे रहे l किसान योजना चलती हैं कितनी उनको मिल पाती हैं l माना कि क़र माफ़ किया उनका तो क्या कोई
अहसान है l
वो जय जय जय जवान है,वो जय जय जय किसान है l


                   हरिओम "भारतीय"


आनंद पाण्डेय "केवल"

सतत पटल पर,,,,


कहती थी जो नानी कहानी,
बात हुई वो तो बड़ी पुरानी,
देख आज का चलन लगा के
बात मोहब्बत हुई बेमानी,,,,,
मुफ्त की चीजों के क्यों आगे
दिल्ली हो रही बड़ी दीवानी
राष्ट्रवाद को हरा के मूर्खो ने
दे दी है गद्दारी की निशानी,,,,,
मुश्लिम कौम की एकता देखी
जग ने देखी जहरीली बानी
हिन्दू राष्ट्र नवनिर्माण के हेतु
अब तो जागो हिंदुस्तानी,,,,,


आनंद पाण्डेय "केवल"


 


रामबाबू शर्मा, राजस्थानी, दौसा(राज.)

🌱हाइकु🌱
                  
                 चांदनी रात
              टिमटिमाते तारे
                 मन हर्षाये ।
            🌕🌙🌕🌙🌕
            ⭐✨⭐✨⭐✨


                  दुखी जीवन
              फिसले मुट्ठी रेत
                   करे प्रयास ।
                  
                 जल अमृत
              मन से सोचे सब
                  बचें जरूर ।
            🌧🌧🌧🌧🌧🌧
            💦💦💦💦💦💦


                 अनुशासन
             जीवन उपयोगी
                  बढे कदम ।
            🏃🏃🏃🏃🏃🏃
            🕉🕉🕉🕉🕉🕉
             ©®
              रामबाबू शर्मा, राजस्थानी, दौसा(राज.)


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

🌴पर्यावरण संरक्षण🌴
      जितने भी है,सज्जन सारे,
      सबको शीश झुकाता हूँ ।
      पर्यावरण चेतना के भाव,
      मै आज,गीत में गाता हूँ।।
      
      अगर,कुछ गलती हो तो ,
       माफ मुझे कर देना ।
      याद रहे कर्तव्य हमारे,
      शपथ आज तुम ले लेना।।


       हम स्वार्थ के अन्धे ,भूले,
       जीवन के अहसासों को ।
       हमने भौतिक धर्म सजाकर,
       जकड़ा,उडती साँसों को ।।


       उठती आज वेदना मन में,
       देख धरा के सीने को ।
       कटते वृक्ष ,बचाने प्रकृति,
       लालायित हैं जीने को ।।


       हाल रहा,यदि यही तो ,
      प्रकृति ऐसा नाच दिखाएगी।
      भौतिकवादी सत्ता पल में,
     तहस- नहस हो जायेगी ।।


      सदियों से सुनते आये हम,
      वृषा पेड बुलाते है ।
      फिर भी काट- काट कर हम,
      इनकी देह जलाते है ।।
   
     धुआं,शोर, शराबा  इससे ,
     हमकों नित बचना होगा ।
     प्रदुषण के इस पिशाच को,
     अब, वस मे करना होगा ।।


     चलो करें हम आज प्रतिज्ञा,
     करे ,जैव संरक्षण हम ।
     ताकि नहीं भविष्य में पायें,
     कोई मनुज रंज-ओ-गम ।।
         रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)


नूतन लाल साहू

कविता
कविता धरती के गर्भ से
जन्म लेने वाले पौधे की
कोमल डाली है
कविता,आदमी को आदमी से
प्यार करना,सिखाती है
कविता कांटो के बीच
गुलाब पैदा करती है
कविता प्रसाद का,वह आंसू है
जो गागर को सागर बना देती है
कविता आदमी को आदमी से
प्यार करना सिखाती है
कविता में प्रभु राम के
बालपन की छबि होती है
जिसे देखकर, मां कौशिल्या का
आंचल,दूध से भर जाती है
कविता,कृष्ण की किलकारी है
जिसे सुनकर, मां यशोदा
मठा,बिलोना भुल जाती है
सर को साधना और
साधना को शक्ति बना देती है
कविता आदमी को आदमी से
प्यार करना,सिखाती है
कविता तार तार को शब्द और
शब्द को तीर,बना देती है
कविता,मीरा की लगन है
कबीर का,भजन है
कविता, एक कल्पना है
मै सच कहता हूं,मित्रो
कविता,सत्यम,शिवम्, सुंदरम है
कविता,धरती के गर्भ से
जन्म लेने वालेे,पौधे की
कोमल डाली है
कविता,आदमी को आदमी से
प्यार करना,सिखाती है
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"गुंजन"* (दोहे)
-------------------------------------------
*वन-वन उपवन उल्लसित, मद-मधुरिम मधुमास।
अलि-गुंजन आलाप-लय, प्रगटे पुलक-प्रभास।।


*रंगित कुंजन रंग नव, स्वर्णिम बौर रसाल।
पहल-पुलक पिक पीकना, मधुकर-गुंजन ताल।।


*ताम्र-पीत तन श्याम छवि, गुनगुन गुंजित गान।
कनक कुसुम किसलय कली, विकसे विटप-वितान।।


*नित नवरंग निकुंज उर, अलि-मन कर गुंजार।
प्राणित पल प्रतिप्राण है, अभिनव गुंजन सार।।


*संचय नव मधु मुकुल-उर, महक मदिर मग वास।
मौन मुग्ध गुंजन गहन, नृत्य नित्य रम रास।।
------------------------------------------
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
------------------------------------------


कौशल महंत"कौशल"

,      *जीवन दर्शन भाग !!३३!!*


★★★
माता समझाने लगी,
            सुने ध्यान से पुत्र।
सरल सहज पाने लगा,
            इस जीवन का सूत्र।
इस जीवन का सूत्र,
            जटिल है पालन करना।
पर जो करे प्रयास,
            सरल संचालन करना।
कह कौशल करजोरि,
            समय ही मार्ग दिखाता।
बरसाती निःस्वार्थ,
            छाँव आँचल से माता।
★★★
बाबू जी ने प्यार से,
            दिया सिखावन सीख।
जग मतलब तक चूसता,
            फिर फेंके ज्यों ईख।
फिर फेंके ज्यों ईख
            नहीं मतलब का होता।
जग में सदा बगास,
            पड़ा कूड़े में रोता।
कह कौशल करजोरि,
           करे जो मन पर काबू।
जग में करता नाम,
            उच्च पद का बन बाबू।।
★★★
धारण करता जा रहा,
             मात-पिता का त्राण।
जीवन में होने लगा,
            नव-युग का निर्माण।
नव-युग का निर्माण,
            उजाला भर जीवन में।
त्यागे सभी विकार,
            स्वतः ही अपने मन में।
कह कौशल करजोरि,
            सत्य का हो संचारण।
मानवता का भाव,
            हृदय जो करले धारण।।
★★★


कौशल महंत"कौशल"
,


सीमा शुक्ला

आया है फिर से ये बसंत ........
मुस्कान सभी के अधरों पर हो
 जीवन मे खुशिया अनंत, 
अनुराग का राग लिए हिय मे 
आया है फिर से ये बसंत ।..............
पतझड़ के वीराने उपवन 
हो गये पल्लवित सारे वन, 
धरती की अनुपम छटा देख 
हो उठा तृप्त ये अन्तर्मन ।
हरियाली ने कर दिया आज 
धरती का सुन्दर अलंकार 
मन मुदित हो रहा देख यहां
अवनी का अतुलित ये सिंगार ।
खिलखिला रहे खेतो के बीच, 
पीले पीले सरसो के फूल, 
सबके मन मे उम्मीद जगी, 
सब गये हृदय के शूल  भूल ।
खिल उठे ठूंठ से पेड़ो मे, 
बासंती सुन्दर से पलास
कह रहे छुपा अपने अंदर 
मत करो कही सुख की तलाश ।
ऋतुराज कह रहा हे मानव 
अब उठो हुआ हर दुख का अंत 
अनुराग का राग लिए हिय मे
 आया है फिर से ये बसंत ..................
हो गई ठिठुरती ठंड खतम 
गुनगुनी धूप से साज हुआ, 
भर दे उमंग जो सतरंगी 
उस फागुन का आगाज हुआ।
बौरों से है लद गई झुकी 
आमों के पेड़ो की डाली, 
बन हार धरा का शोभित है 
लड़ियो मे सरसो की बाली।
कानो मे मिश्री घोल रहा 
मीठे सुर मे कोयल का राग, 
चहुंओर सुगन्धित वायु चले, 
महकाये मन उड़-उड़ पराग।
मदमस्त हवाओ का झोंका, 
आकाश बीच उड़ती पतंग, 
जो नही पास है उन्हे बुलाने 
की मन मे जागी उमंग ।
मन लगे झूमने मस्ती मे, 
जब महक उठे ये दिग- दिगंत
अनुराग का राग लिए हिय मे 
आया है फिर से ये बसंत .............
           सीमा शुक्ल


कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग) """""


   मनहरण घनाक्षरी
           *भूख*
            """"""
भूख   से  बेहाल  लोग,
हुए     तंगहाल    लोग,
सपने     संजोए    हुए,
       कहना जरूरी है।
🌸🌼
पेट की  आग  के लिए,
मासूम  बच्चों  के लिए,
जिस्म  नीलम  हो रही,
         मेरी मजबूरी है।
🏵😌
सीख  देते   सारे  जहां,
काम   लेते  यहां  वहां,
हे   नजरों   से   देखते,
       बात जरा बूरी है।
💫🌸
खून   पसीना   बहाएं,
इज्ज़त की रोटी खाएं,
ईश्वर   के   गुन   गाएं,
       चिंतन जरूरी है।
          
             🙏🏼
                 *******


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"गाँव का ईश्क़"
""""""""""""""""""""
चोरी-चोरी चुपके-चुपके
गलियों से जब गुजरती थी
आँखों में शर्म होठों पे लाली
जब श्रृंगार वो करती थी


दूर से देखती और शर्माती
नैन चार वो करती थी
जब भी कहती कोई बात मुझसे
पैरों की, उँगलियाँ दिखाया करती थी
जब भी मिलता उनसे कभी
वो सीने से लिपट जाया जाती थी
एक शब्द भी नहीं निकलता मेरा
जब उँगली अपने ...
मेरे होठ पर रख देती थी


वो गाँव का ईश्क़ है साहिब
जो आज भी करने को मन करता है
चोरी-चोरी चुपके-चुपके
वही नैन चार करने को मन करता है


मिलने की चाहत में 
आज भी दीवार फांदने को मन करता है
रखके सर आँचल में उसके सोने को मन करता है
ये गाँव का ईश्क़ है साहिब
क्यो बार - बार करने को मन करता है ।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा )

लौटने का सबब.... 


एक दिशा से मिलेगी 
जीवन की मंज़िल कहीं. 
चलते -चलते 
कितनी दूर निकल आए 
कहीं पहुँचने की उम्मीद लेकर 
आए तो राहें दिख रही थी 
लौटने का कोई रास्ता नहीं 
बीच बाग, सब्ज़ -पत्ते 
सब हुए खामोश 
जैसे उनसे कोई वास्ता नहीं 
पानी को ठहरा देखा 
कई बार पीछे मुड़कर देखा 
नदी से भी रास्ता बूझा 
मेरा सवाल उससे रहा 
उसने कहा
 "मैं किसी से भी नहीं बूझती
बस बहती जाती हूँ 
तुम भी बस बढ़ते चलो 
कुछ ढलान आएँगी 
कहीं फ़िसलन आएगी 
पहाड़ी रास्ते खुरदरे होंगे". 
और मुझे एक हौसला मिला 
उम्मीद से भरा सिला मिला 
और मैं चलता गया 
इस एक ज़िन्दगी में "उड़ता "
यही सबब अपना था. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


श्याम कुँवर भारती

कविता  माँ दे दो दो रुपया  
“दो रूपया”  प्रकाशित काव्य संकलन से साभार 
माँ दे दो दो रुपया इंटेरबियू मे जाना है |
बिना टीकेट ट्रेन से चला जाऊंगा ,
दिन भर भूखा रह लूँगा,
माँ चप्पल है टूटी ,
किस्मत है फूटी ,
सिलानी है चप्पल ,
माँ दे दो दो रुपया इंटेरबियू मे जाना है |
चलाकर रिक्सा पिताजी ने ,
बीए पास करा दिया है ,
मै न चलाऊँगा रिक्सा ,
साहब बनूँगा ,
माँ मैंने फार्म भर दिया है ,
तू भूखी रही है |
मेरी किताबों के लिए ,
घरो मे बर्तने धोती रही है |
माँ दे दो आशीर्वाद ईंटरबियू  मे जाना है |
जब बनूँगा साहब ,
तुझे बर्तन धोने न दूंगा ,
पिताजी को रिक्सा चलाने न दूंगा |
उनकी टीवी का इलाज करवाऊँगा ,
ला दूंगा तुझे पावर चशमा ,
बनवा दूंगा टूटी छत ,
टूटी चारपाई भी न रहेगी ,
साड़ी मे पेबन्द मत लगाना 
महाजन के कर्जे भी चुका दूंगा,
माँ दे दो दो रुपया इंटरबियू मे जाना है |
श्याम कुँवर भारती


सुनीता असीम

लग रहे ख्वाब सभी तबसे ही ख़ारों की तरह।
हो गए जबसे तुम्हीं गुम हो सराबों की तरह।
***
तुम रहो अपने महल अपने ही चौबारों में।
अपने ही घर में हम भी रहें नबाबों की तरह।
***
इक नज़र देख लिया करना झरोखों से तुम।
शर्म से गाल खिलेंगे ये गुलाबों की तरह। 
***
जब उठा दिल में सवालों का समन्दर कोई।
सामने आईं तभी तुम तो जबाबों की तरह।
***
हर्फ दर हर्फ तुझे पढ़ती रहूँ हर पल मैं।
चेहरा तेरा लगा मुझको किताबों की तरह।
***
सुनीता असीम
१७/२/२०२०


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २६८
दिनांक: १७.०२.२०२०
वार: सोमवार
विधा:दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: तड़प रही प्रियतम मिलन
नव    रंगों    से    सजा , आया    फागुन    मास। 
इतराती   रति     रागिनी ,  इठलाती     मृदुभास ।।१।।
जुगनू  बन  निशि साजना , आंख  मिचौली  रास।
तड़प रही  प्रियतम  मिलन , वासन्ती  अभिलाष।।२।।
फूलों  से   कुसमित  चमन , भंवर  मत्त  मधुपान। 
रंगीली   तितली    प्रिये , मिलन   प्रीत   अरमान।।३।।
चन्द्रमुखी   अस्मित    अधर , पैनी   कजरी  नैन।
वासन्ती   रति   रागिनी , प्रीत   विरह  कहं   चैन।।४।।
मना   रही  पिक  गान से ,मधुरिम  अलि  संगीत।
धवल ओस  नैनाश्रु से , रच  सजनी  निशि  प्रीत।।५।।
मन विकार  प्रिय  राग  सब , मिटे  रंग  मुख मेल।
फागुन रस  मन  मधुरिमा , प्रेम सरित्   अठखेल।।६।।
महक रहे तरुवर रसाल , कुसुमित  मुकुल पराग।
बनी  अधीरा  प्रियतमा , मिलन  सजन  अनुराग।।७।।
शीतल मन्द समीर नित , जाग्रत  रति  मन  भाव।
विहंसि चांद लखि चांदनी ,मदन बिद्ध चित  घाव।।८।।
नीलाम्बर   छायी    निशा , सज   सोलह   शृंगार। 
शरमाती   लखि चांदनी , सजन  चन्द्र  अभिसार।।९।।
मन्द मन्द   मुस्कान से ,मना   रहा   निशि   चन्द। 
देख   रागिनी   चांदनी , हर्षित   मन     मकरन्द।।१०।।
जले होलिका विरह की , खिल सरोज मन   नेह।
सुरभि   मनोहर  माधुरी ,  प्रीत  गीत  हर     गेह।।११।। 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक फागुन का अवधी छंद...


बरसति   रंग  बड़ा, भीगति हैं  संग  बड़ा,
आऔ  है  फागुन  बहे, पछुआ सुहानी है।
गावति   बसंत  गीत, सबको   है  मनमीत,
आइने  को  देख  देखो, गोरी  हरसानी है।
निज  रुप  निहारिके, घूँघट  मुख  डारिके,
चलति  है  ऐसे  जैसे, पति  सो रिसानी हैं।
आँख कारी रेख खीच, कोमल अधर बीच,
रोज  चुपके  से दबी, मुस्कान मुस्कानी है।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कैलाश , दुबे ,

जो मेरा कातिल है ,
बो मेरे पास रहता है ,


कहता नहीं मुझसे कुछ ,
पर आसपास कहता है ,


बड़े जतन से पाया है मैंने उसे ,
अब मेरे पास हमेशा रहता है ,


कैलाश , दुबे ,


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