कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(रचना) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २७०
दिनांक: १९.०२.२०२०
वार: बुधवार
विधा: दोहा
छन्द : मात्रिक
शीर्षक: 🇮🇳लहरे ध्वजा तिरंग🇮🇳


दौलत  है   ऐसी  नशा , क्या  जाने  वह  पीर।
इंसानी    मासूमियत , आंखों    बहता    नीर।।१।।


निज सत्ता सुख सम्पदा , मानस बस अनुराग।
प्रीत    न  जाने  राष्ट्र  की, करता  भागमभाग।।२।।


बड़बोला   बनता   फिरा ,अहंकार  मद   मोह।
छलता  खु़द की जिंदगी , दुखदायी    अवरोह।।३।।


राम  नाम   अन्तर्मिलन , भक्ति   प्रेम   संयोग।
शील त्याग परमार्थ  ही , जीवन  समझो भोग।।४।। 


जीवन है सरिता सलिल ,लेकर सुख अवसाद।
ऊंच  नीच  संघर्ष  पथ ,  बहता  है     निर्बाध।।५।।


जीता नर  अभिमान  में , चाहता  है   सम्मान।
वैभव  के  उन्माद  में ,  करें  अपर   अपमान।।६।।


मददगार जीवन सफल , सेवा   समझो   ईश।
जीवन  अर्पित राष्ट्र हित , लक्ष्य राम   वागीश।।७।।


उद्यत हो बलिदान  नित , भारत  मां   दरबार।
अमर सिंह बन शौर्य का , जीऊं बन    खुद्दार।।८।।


वसुधा हो नव पल्लवित ,खिले प्रगति के फूल।
खुशबू  महके  अमन  की , समरसता हो मूल।।९।।


अविरल  धारा प्रेम का , प्रवहित  चित्त  उदार।
सहयोगी   जनता  वतन , मानवता     आधार।।१०।।


भूलें सब निज नफ़रतें , राग  कपट  मन  द्वेष।
जुटें साथ उन्नति वतन, सफल सबल परिवेश।।११।।


दीपक बन सद्ज्ञान पथ , चढ़ें  कीर्ति सोपान।  
तजे  राष्ट्र  से   द्रोह   मन , जुटें  देश  उत्थान।।१२।।


लोकतंत्र   भारत   वतन , लहरे  ध्वजा  तिरंग।
हरित शौर्य सच शान्ति भू , बढ़े  प्रीति  नवरंग।।१३।।


कूजे नवरस काकिली,जन मन गण  सुखधाम।
कवि निकुंज विरुदावली,जय भारत अभिराम।।१४।।


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(रचना)
नयी दिल्ली


डॉ प्रतिभा कुमारी'पराशर'         हाजीपुर बिहार

जल जीवन हरियाली
एक गीत
16,11


जल से ही जीवन संभव है ,जीवन से संसार ।
हरियाली से इस धरती का , होता है शृंगार ।।


पंचतत्व में एक नीर है , बिल्कुल सत्य सुजान ।
इसके बिन जीवन - सागर तो ,भरता नहीं उफान ।।
जीवन रहे सुरक्षित सबका , करिये सोच विचार ।
हरियाली से.......



चलो बचाएँ हरियाली को ,पेड़ लगाएँ चार ।
इनसे मिलती है औषधियाँ , होता है उपचार ।।
अंत समय में लकड़ी ही तो , जोड़े सब परिवार ।
हरियाली से........।।



जल से धरती उर्वर होती , होता गेहूँ - धान ।
साग-पात के जैसे शोभे ,धरती का परिधान ।।
मिल जुलकर सब इसे बचाएँ ,जल जग का आधार ।
हरियाली से इस ......



पेड़ नहीं होंगे तो सोचो , कैसे लेंगे साँस ।
जलविहीन हो जाय धरती , नहीं बुझेगी प्यास ।।
फल- फूलों से भरी टोकरी , देंगे हम उपहार ।
हरियाली से ......


       
       डॉ प्रतिभा कुमारी'पराशर'
        हाजीपुर बिहार


नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर

शादियों का मौसम है, यहाँ जाइये या वहाँ जाइये।
सारी की सारी स्टाल्स खाइये या भर भर प्लेट खाइये।
सारा का सारा माल एक प्लेट मे ही गड़बड़ फैलाइये।
और जो ना खा सकें तो खुशबू ले ले कर कचरे पात्र में डालिये।
..........................
तो शादी के समारोह के नाम पर अन्न का इतना अपमान।
अरे नहीं खा सकते हो तो किसी जरूरतमंद को ही खिला दो श्रीमान।


हम अगर इस मुद्दे पर भी सोचे तो बहुत कुछ कर सकते है।कुछ पहल करके इस अन्न का उपयोग भी कर सकते है।शायद भविष्य मे कुछ ऐसा नया हो इसी शुभकामनाओं के साथ।
🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🍫🍫🍫🍫
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर🙏😃👌


सत्यप्रकाश पाण्डेय

एक अजब सी अनुभूति,
मेरे हृदय में रहती है।
अपने अतीत के अनुभव,
मुझसे कहती रहती है।।


कुछ भी सार नहीं जग में,
क्यों भ्रमित है नर यहां?
ईश्वर ही है सत्य जगत में,
फिर भटक रहा तू कहां।।


न जाने कितने यहां आये,
और कितने ही चले गये।
दुनियां की मोह माया में,
वह तो केवल छले गये।।


झूठा दंभ है बसा हृदय में,
तू उन्मादी ऐसा हो गया।
बड़ा समझ रहा खुद को,
विवेक तेरा कहां खो गया।।


न भूखे को भोजन दीन्हा,
न प्यासे को दीन्हा पानी।
कहां गयी मानवता तेरी,
और गया आंखों का पानी।।


जग कल्याण के काम कर,
तू कर ईश्वर में विस्वास।
कह रही अनुभूति मुझसे,
क्यों बना इन्द्रियों का दास।।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


रामबाबू शर्मा"राजस्थानी"*    *दौसा (राज.)*

*ओस की बूँद*
           .................
💦💧💦💧💦💧💦💧💦
आओ कुछ सीखें,सीख आज, 
 ओस बिंदु से पावनता ।
मनभावन मोती है ,छू लें,
मानव मानस मानवता ।।


धरा पुत्र भी चहक उठा है,
 फसलों पर लगते मोती ।
आओ हम अभिनंदन करलें,
 ओस शान कुदरत होती।।
💦💧💦💧💦💧💦💧💦
ओस  बूँद  जीवन माया है,
परहित मंगल गाना है ।
अगवानी हम करें ओस की,
खुद मिटकर जग जाना है।।
💦💧💦💧💦💦💧💦💧💦
करें प्रतिज्ञा पेड़ लगालें,
 फैलेगी महिमा शबनम ।


समय किसी  का नही,सगा है,
सीखें ओस बूंद जम जम।।
💦💧💦💧💦💧💦💧💦💧
सूरज की अगवानी  करते 
ओस कणो सें , सीखें हम ।
त्याग और बलिदान रखें मन,
कभी न मन के दीखे गम ।।



खुद  मिटकर  भी  भूख मिटादें
ओस बूँद पर हितकारी ।
स्वेद किसानों, मजदूरों का
सैनिक भू का उपकारी ।।



   💦💧💦💧💦💧💦💧💦


*रामबाबू शर्मा"राजस्थानी"*
   *दौसा (राज.)*


चंचल पाण्डेय 'चरित्र'

*••••••••••••सुप्रभातम्••••••••••*
                 *रुप घनाक्षरी छंद*
सोख लेत तम भ्रम दम्भ सब भक्तन  के|
               हृदय भक्ति के सुर सरिता उतार देत||
करें जो गुमान दैत्य सुर नर मुनि गण| 
                ग्रीष्म ऋतुराज के गुमान सब झार  देत||
सूर्य के भीषण ताप चाल महासागरों के|
                     रूप शीत चन्द्रमा के क्षण में ही गार  देत||
प्रेम से खिलाये प्रभु छिलका भी पान करें|
                      एक एक चावल पै स्वर्ग तक वार देत||
                  चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


प्रियव्रत कुमार बांका (बिहार)

प्रियतम
==========


मुझे ठुकरा प्रियतम चली
अपने साजन के संग में,
जा प्रियतम तू खुश रहना 
अपने साजन के आँगन में।


हम तो जी लेंगें प्रियतम
तुम्हें देख कर शीशे में,
तू भी जी लेना प्रियतम
हमें देख अपने साजन में।


शायद मैं रहूं या न रहूं
प्रियतम तुम्हारे खयालों में,
पर तुम्हें देखा करता हूँ प्रियतम
मैं अपने दिल के टुकड़ों में।


जब याद तेरी आती प्रियतम
हमें इस तन्हा जीवन में,
पी जाता हूँ सारा मैखाना
 देख तुम्हारा चेहरा बोतल में।


अचानक मैखाना बोलती प्रियतम
तू नहीं अब उसके यादों में,
फिर बोतल लिये क्यूँ पड़ा प्रिय
बेबफा खातिर दलदल के आँगन में।


बेबफा कह नहीं सकता प्रियतम
तुम्हें मैं अपने पुरे जीवन में,
क्या मजबूरी थी तेरे संग प्रियतम
जो गिराया मुझको इस दलदल में।


आपका:--
प्रियव्रत कुमार
बांका (बिहार)
9102356951
Priybrat813202@gmail.com


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा )

चाहत ना मिली...... 



ज़माने में उसे मोहब्बत ना मिली. 
 सलीके की कभी सोहबत ना मिली. 
लोग तो मिले चलते सरे -राह, 
मगर अपने जैसी कोई आदत ना मिली. 


बचपन जाकर कहीं छिप गया. 
बड़े हुए तो कोई शरारत ना मिली. 
कमाने की मजबूरियां बनती गयी, 
कठिनता में कहीं रियायत ना मिली. 


सोचा रब से वास्ता जरुरी है, 
मंदिर में देखा तो मूरत ही मिली. 
था बियाबान जीवन की पगडंडियों पर, 
किसी इंसान की सूरत ना मिली. 


खामोशियों में रहा सफ़र अपना. 
जज़्बातों में भी आहट ना मिली. 
दूर तक आकाश खाली था, 
परिंदों की सुगबुगाहट ना मिली. 


जिसे लफ़्ज़ों में ढ़ाल लेता, 
ैएसी कोई कहावत ना मिली. 
लेखन तेरी आदत रहा "उड़ता ", 
किसी को नज़्मों की चाहत ना मिली. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


              किशनू झा तूफान 

बाधाओं से टकराकर के, 
जो आगे बड़ जाते हैं !
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं।


 



कष्टों को सहकर के जो, 
जीकर भी मर लेते हैं। 
बनकर दिनकर घोर तिमिर को, 
वो हरदम हर लेते हैं। 
पर्वत बनकर तूफानों के,
सम्मुख जो अड़ जाते हैं। 
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं ।


 


शूल बिछे हो राहों में पर, 
तुमको चलना होगा। 
तम को हरने की खातिर, 
दीपक बन जलना होगा ।
बन उजियारा अंधियारों से, 
जो अक्सर लड़ जाते हैं। 
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं।


 



कहे जमाना कुछ भी पर तुम, 
सच्चाई की बात करो। 
मंजिल की मुश्किल पर तुम भी, 
मेहनत से आघात करो।
लोग महनती बनकर तारे, 
अम्बर में जड़ जाते। 
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं।


 


                        रचयिता 
              किशनू झा तूफान 
               8370036068


डॉ प्रतिभा कुमारी'पराशर'     हाजीपुर बिहार

गीतिका


गली - गली में यही कहानी ।
कहीं नहीं है सही नहानी।।


जलाशयों में कहीं न पानी 
सड़ी पड़ी है कहीं निशानी ।


नहीं सुनो अब गलत बयानी 
वही सुनी जो रही पुरानी ।


नहीं सुनेगा कभी जमाना 
किसे सुनाऊँ वही कहानी ।


धरा रही है सजी सुहानी
चली हवा तो बही रवानी ‌


       डॉ प्रतिभा कुमारी'पराशर'
    हाजीपुर बिहार


डा० कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ

एक पुजारन'''''


मैनें अपने मन-मंदिर में
तुमको ही नित् देखा है..
अपनी मर्यादा के अन्दर,तुमको 
उस मंदिर का देवता देखा है...


...............भावो के फूल चढ़ाती हूँ...
...............खुद श्रद्धा पे इतराती हूँ..
...............तेरी दासी बनकर मैं...
................तेरे ही गीत बस गाती  हूँ.


तू मुझमें अब, मैं तुझमें
दोनों की एक ही काया है
राधा -कृष्ण में,या कृष्ण राधे में..
ये भेद तो बस भरमाया है..


...................सो जाते हो मूंद पलक जब..
...................मैं चुपके से चली आती हूँ..
..................मीठे सपने से तुम लगते ..
..................मैं जब-जब ऑख लगाती हूँ..


....मैं ,तुम दोनोम 'हम 'हो गये
...सपनें अब सब एक हुए..
...दोनों एक दूजे में समर्पित 
. दोनों ही अब सत्य में अंकित 


डा० कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नया मुक्तक


सफर  कटता  नही  हैं  मंजिलें  भी रास ना आती।
हमें मिलता नही अब चैन जब तक पास ना आती।
कई मसलों पर फ़क़त वो रुठी हमसे अभी तक है।
मग़र  देखे बिना उनको नज़र की  प्यास ना जाती।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


  डॉ प्रताप मोहन "भारतीय   बद्दी

वेबसाइट पर प्रदर्शन हेतु
** बेवफा ज़िन्दगी **
ज़िंदगी तू बता
एक बात
कब तक रहेगी
मेरे साथ ?
कहते है
तू बेवफा है
तूने जिससे
नाता जोड़ा
हमेशा उसका
साथ छोड़ा
तू आज तक
किसी की
नहीं हो पाई
क्योंकि तुम्हारी
फितरत में है 
हमेशा बेवफाई 
   लेखक -
          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205      (H P)
  मोबाइल - 9736701313
Email - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा

रात बरसाती.... उड़ता 


मौसम तो बदल गया है, 
बरसाती रात घिर आएगी. 
एक बौछार तन को छुएगी, 
शीतल हवा खिड़की से घुस आएगी. 
दिशाओं में सोंधी महक है, 
चेहरों पर मुस्कान आ जाएगी. 
टप -टप  झम -झम नीर बरसेगा, 
एक बदली सी घिर आएगी. 


कभी खाट पर चू पड़ेगी, 
कभी एक दूसरे से लडेंगी. 
सर्र एक बंधती मालूम पड़ेगी, 
इस अकेलेपन को दूर ले जाएगी. 
पेड़ -तरु सब पुलकित होंगे, 
बारिश पत्तों को हिला जाएगी. 
संवेदना जो सोयी पड़ी थी, 
बरसाती रात एहसास जगा जाएगी. 


अच्छा है धरा सूखी नहीं, 
कोई भ्रम होगा तो लौट जायेगा. 
बच्चों की किलकारी का, 
शौर कहीं सुना जायेगा. 
कागज़ की नाव चलेगी, 
माहौल हरा - भरा हो जायेगा. 
बरसाती रात खुश कर देगी, 
मन मगन हो गाएगा. 
तुझे मौका मिल गया "उड़ता ", 
तू बरसती रात पर नज़्म बनाएगा. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


प्रतिभा द्विवेदी उर्फ मुस्कान© सागर मध्यप्रदेश

💟प्रतिभा उवाच💟
   💟💟💟💟💟💟
एक सवाल
वो कौन सा स्कूल है ???
वो कौन सा समाज है???
वो कौन से माता-पिता हैं????
वो कौन सा पड़ोस है???
वो कौन सा सोशल मीडिया है????
वो कौन सा फुटपाथ है????
वो कौन सा प्रिंट मीडिया है???
वो कौन सी किताब है???
वो कौन सा शिक्षक है????
वो कौन सा इलाका है???
वो किसकी परवरिश है????
जो दरिंदगी सिखाती है????
भारत जैसे शांति प्रिय देश में...
कैसे मासूम बच्चों की ....
निर्मम हत्या कर दी जाती है???
सच कहूँ "प्रतिभा" को ऐसे देश में..
रहने में बड़ी शर्म आती है!!!
क्योंकि दरिंदगी की जड़ कहाँ है???
"प्रतिभा" पकड़ नहीं पाती है!!!
लाचारी और विवशता को....
कागज पर लिखकर ही बस रह जाती है ..
लिखकर ही बस रह जाती है ....!!
लेखिका --प्रतिभा द्विवेदी उर्फ मुस्कान©
सागर मध्यप्रदेश ( 09 जून 2019 )
मेरी यह रचना पूर्णता:स्वरचित मौलिक व प्रमाणिक है ।इसके सर्वाधिकार लेखिका के हैं इसके व्यवसायिक उपयोग के लिए लेखिका की लिखित अनुमति अनिवार्य है धन्यवाद


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक लावणी छंद
सादर समीक्षार्थ


बड़ा मनमीत, वह हिय पुनीत,
देखत  ही   सुख,   करते   हैं।
प्रीत की  रीत, सदा  निबाहति,
हिय   पीर   तुरत,   हरते   हैं।
मन   मंदिर   में,   रहते  हमरे,
कर   शीश   सदा,  धरते   हैं।
'अभय' उस रूप, के बोलन से,
नित   खिले  सुमन,  झरते  हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


गीत
18/ 2/ 2020



आओ कान्हा होली खेलें तुमको रंग लगाऊँगी
आ गई सखियों की टोली कैसे तुम्हे बचाऊंगी ।


आओ कान्हा खेले होली


भर पिचकारी तुमने मारी
तुम कैसे बच पाओगे
रंग सांवरे मैं भी रंगूँगी 
तुमसे प्रीत निभाऊंगी


आओ कान्हा खेले होली


भीगी साड़ी भीगी चोली
तुझको अंग लगाऊँगी
थिरक रही है पग में पायल
तुम को नाच दिखाऊँगी।


आओ कान्हा खेले होली


थरथर थरथर कांप रहीं हूँ
आकर अंग लगा लो तुम
मैं बन जाऊं मुरली तेरी
मुझको अधर लगालो तुम ।


आओ कान्हा खेले होली 


प्रीत मेरी है निपट बावरी
तुझ बिन कुछ न दिखता है
आओ कान्हा कदम्ब के नीचे
सुरताल वहीं बस मिलता है ।


आओ कान्हा खेले होली तुमको रंग लगाऊंगी


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


प्रवीण शर्मा ताल*

*सलाह*



सुनो सबकी पर करो मन की,
सलाह जन की  मानो मन की।


सलाह होती बुरी और अच्छी,
सँवरे जीवन तो बड़ी है अच्छी।


अंतर्मन जो हमे गवाह दें,
सलाह वो जो हमे हवा दें।


सलाह होती एक सुझाव है,
 चलती जीवन की नाव है।


अगर नाव में छेद है,
कुछ सुझाव में भेद है


भेद सुझाव में न पाँव है,
लंगड़े जीवन पर घाव है।


सलाह हमे सीधे जहाँ ले चले,
वो निराशा के ऊपर बहाव है।


जो बिगड़े  जीवन सँवार दें,
वो सलाह हौसलो का भाव है।


 ताल जिंदगी की सलाह जान है
 यह निःस्वार्थ सेवा की पहचान है ।


*✒प्रवीण शर्मा ताल*
,


श्याम  कुँवर भारती

गजल - ज़िंदगानी से प्यार क्या करे  
जब तुझे आना ही नहीं तेरा इंतजार क्या करे |
वादा करके निभाना ही नहीं तेरा एतवार क्या करे |
जिंदगी गुजारी है मैंने अंधेरों मे ,
अब उजालों से प्यार क्या करे |
दिल की बात छुपाने की आदत बन गई ,
अब उनको राजदार क्या करे |  
खाई है चोट मैंने अपनो  से,
अब उन्ही पे दिल निसार क्या करे |
कत्ल किया है मेरा वफ़ादारों ने ,
अब वार ये तलवार क्या करे |
लाकर छोड़ दिया है मजधार मे मुझे,
अब कस्ती- ए- जस्ती पार क्या करे| 
मौत से ही मैंने दोस्ती कर ली ,
अब जिंदगानी से प्यार क्या करे |  
श्याम  कुँवर भारती


रघुनंदन प्रसाद दीक्षित " प्रखर"  फतेहगढ  फर्रूखाबाद(उ.प्र.)

माँ वाणी स्तवन
===========
दो शुद्ध वृत्ति बुद्धि निर्मल ज्ञानधन माँ शारदे।
हो शुभम् वरदा कृपा कर पाथेय बन माँ शारदे।।
हे वीणापाणि मराल वाहिनि लेखनी शुभदा गिरा ,
पद्मासनी माँ सरस्वती मोहे ज्ञान माँ शारदे।।


मृणालिनी प्रकाशिनी ,लेखनी माँ शारदे ।
वीणपाणी हंसवाही , सरस्वती माँ शारदे।।
कर माल पुस्तक अभय वीणा धारती,
हे स्वरा  दी जो कला सत ज्ञानदा माँ शारदे।।



✍🏻 रघुनंदन प्रसाद दीक्षित " प्रखर"
 फतेहगढ  फर्रूखाबाद(उ.प्र.)


सन्दीप सरस, बिसवाँ

🔵 सपनों का मर जाना अच्छा🔵


सपने तो सपने होते हैं लाखो हों चाहे इकलौता,
जो सपना सच हो न सके उस सपने का मर जाना अच्छा।।


क्या चिड़ियो के उड़ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
क्या सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
उन कलियों की व्यथा टटोलो जिन्हें कंटकों ने ही छेड़ा,
क्या पुष्पों के मुरझाने से उपवन नहीं मरा करता है।


हाँ, कुछ पुष्प हुए उपवन में जिनमें रची सुवास नहीं है,
ऐसे पुष्पों का खिलने से पहले ही मुरझाना अच्छा।।


मन की पीड़ा कहें अधर ना, यह भी कोई बात हुई है।
जीवन हो जीवन्त अगर ना, यह भी कोई बात हुई है।
टुकड़ा-टुकड़ा जीने को मैं जीना कैसे कह सकता हूँ,
थोडा जीना थोडा मरना यह भी कोई बात हुई है।


बूँद-बूँद से तृप्ति मिली तो प्यास बहुत अपमानित होगी,
तो उस प्यासे का पनघट से प्यासा ही घर आना अच्छा।।


शब्द शब्द से संवादों का गठबंधन अच्छा लगता है।
सच कहता हूँ कविताओं का अपनापन अच्छा लगताहै।
मेरे गीतों में जीवन का आँसू-आँसू अभिमन्त्रित है,
वेदों के मन्त्रों से ज़्यादा गीत मुझे सच्चा लगता है।


जीवन की अनुभूति हमारे गीतों में अभिव्यक्त न हो तो,
फिर जीवन के हर पन्ने का कोरा ही रह जाना अच्छा।।


🔵 *सन्दीप सरस, बिसवाँ*


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

फूल तुम पर मैं बिखराऊं
********************
आओ मेरी प्रेयसी!जी भर मैं दुलराऊं।
तेरा रूप मनोहर मेरे मन की ज्वाला,
तुम कुछ इतनी सुंदर ज्यों फूलों की माला,
तेरे चलने पर यह धरती मुस्काती,
देखकर रूप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं,
तुम जिस दिन आई थी, मन में मैं सकुचाया,
लेकर छाया -चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,


आओ पास हमारे फूल तुम पर मैं बिखराऊं।
चंचल सूरज की किरणें धरती रोज सजाती,
सिन्धु लहरियां तक से बेखटके टकरातीं,
उड़ -उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,
खिल खिल पड़ती कलियां सुन भौंरों का गाना,
तुम लहराओ लाजवंती सा अपना आंचल,
मुझ पर करते छाया नभ के कोमल बादल,
छूकर कनक अंगुलियां जगती से टकराऊं,


तेरे नयनों से जब मैंने नयन मिलाये,
उस दिन चांद-सितारे धरती पर झुक आये,
बोल गयी थी कोमल कोमल कोमल भाषा,
देखो, जी मुस्काओ, आई मन्जुल आशा,
तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ,
तेरी मानस-शोभा इस पर तुम लुट जाओ।


दे-दो अपना आंचल जी भर के फहराऊं।
वह चन्दन की गलियां जिसके नीचे छाया,
उस दिन तुमको जाने क्यों मैंने शरमाया,
अंचल छोर उठा जब दांतों तले दबाया,
नत नयनों से देखा मन मन मैं मुस्काया,
दुनिया क्या कहती है उसको यों ठुकराया,
जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,
आओ लेकर तुमको नभ में मैं उड़ जाऊं।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अर्धांग नहीं सर्वांग हो तुम
तुमसे मिली पूर्णता मुझको
तुमसे मैं हूँ मुझसे हो तुम
है नहीं कोई रिक्तता मुझको


जो अभाव थे जीवन में
तुमको पाकर वह पूर्ण हुए
बीतेंगे सुखमय दिन मेरे
अब हम इतने सम्पूर्ण हुए


जीवन कश्ती ले निकला
भवसागर धारा में व्याकुल
तुम जैसी पतवार मिली
अब न तट के प्रति आकुल


तरे जा रहा हूँ धारा को
लेकर आँखों में सपने प्यारे
झंझावात शान्त हो रहे
लक्ष्य निर्धारित हो रहे सारे


तरल तरंगित भावों का जल
संस्कारों की उठती लहरें
मन पक्षी उड़ने को आतुर
मिलकर बाधा पार करें


सत्य जीवन की बागडोर
है प्रिया तुम्हारे हाथों में
हुई हयात स्वर्गमय अपनी
जब हाथ तुम्हारे हाथों में।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*कैसे रिश्तों को मजबूत*
*बनाना चाहिए।मुक्तक*


हो कोई   गाँठ  रिश्तों  में 
तो सुधार  लाना  चाहिये।


किसी के दर्द   में  जरूर
तुम्हें काम आना चाहिये।।


सद्भावना  सबके    लिए
बसे   दिल    में   तुम्हारे।


गर जंग अपनों से हो  तो
हमें  हार  जाना   चाहिये।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*पानी का बुलबुला सा जीवन*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


कागज़ की कश्ती और  पानी
का बुलबुला सा जीवन।


कब   पल भर   में  मिट जाये
है  गुलगुला सा  जीवन।।


कुछ अच्छे काम जरूर करना
वक़्त रहते आज ओ अभी।


फिर वक्त मिले  न तुझको कि
बहुत चुलबुला  है जीवन।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


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