एस के कपूर* *श्री हंस। बरेली

*जिन्दगी को जानदार बना*
*मुक्तक*


वृक्ष   सा  फलदार  तू
बना   अपने   को।


नदिया   सा   दिलदार
तू  बना अपने को।।


बन  के   दिखा  इंसान
शानदार जिंदगी में।


सूरज  सा   किरदार  तू
बना   अपने    को।।


*रचयिता ।एस के कपूर*
*श्री हंस। बरेली*।
मो     9897071046
         8218685464


कालिका प्रसाद सेमवाल             रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे शेरावाली
***********
हे मां शेरावाली
अन्दर ऐसा प्रेम जगाओ
जन जन का उपकार करूं,
प्रज्ञा की किरण पुंज तुम
हम तो निपट  अज्ञानी है।


हे मां पहाड़ा वाली
करना मुझ दीन पर कृपा तुम
निर्मल करके तन-मन सारा
मुझ में विकार मिटाओ मां
इतना तो उपकार करो।


हे मां अम्बे
पनपे ना दुर्भाव ह्रदय में
घर आंगन उजियारा कर दो
बुरा न करूं -बुरा सोचूं,
ऐसी सुबुद्धि  प्रदान करो।


हे मां भुवनेश्वरी
इतना उपकार करो
निर्मल करके मन मेरा
सकल विकार मिटाओ दो मां
जो भी शरण तुम्हारी आते
उसे गले लगाओ मां।।
***************************
🙏✡ कालिका प्रसाद सेमवाल
            रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
*****************************


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर (हरियाणा

सोचो दूर तक.... 


निकली है बात मुख से जाएगी दूर तक. 
कुछ सच, कुछ भ्रान्ति फैलाएगी दूर तक. 
हर कोई सुनाने को बेताब होगा, 
दुनिया की सच्चाई नज़र आएगी दूर तक. 


बात छोटी थी मगर मतलब अनेक निकले. 
डर है न कहीं सियासत, 
बन जाएगी दूर तक. 
रिश्तों में क्यों अकसर दरार आती है, 
कुछ कसक फिर भी सताएगी  दूर तक. 


क्या होता जो कुछ पल ख़ामोशी में बीतते. 
अब होके अक्ल बे -आबरू  समझाएगी दूर तक. 
हालात किसी तरह सँभालने होंगे, 
आवारगी लबों से कहलवायेगी दूर तक. 


क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं होता, 
एक उम्मीद की किरण दौड़ाएगी दूर तक. 
गलतियां इंसान से हो जाती है, 
तेरी याचना तेरी विजय फहराएगी दूर तक. 


एैसा कुछ नहीं जिसका समाधान ना हो, 
कुछ सोचो समझदारी की मिसाल बन जाएगी दूर तक. 
कैसे भी ज़िन्दगी को मत  रुकने दो "उड़ता ", 
कभी तेरी नज़्में किसे पसंद आएगी दूर तक. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक श्रृंगारिक घनाक्षरी छंद



अलसाई  शाम  हुई, भरे  हुए  जाम  हुई,
डगमग  पगो  से  वो ,गोरी  बलखाती है।
अधरो को खोल कर, मीठे बोल बोल कर,
जब  देखो   तब  चुप, चुप   इठलाती  है।
निज  तिरछी  नजर, और  बाली उमर से, 
आते  जाते  राहो  पर, नैन  झलकाती  है,
केश लट को  गिरा के, निज नजर चुरा के,
और  मृदु  मुसका  के, सबसे  शर्माती  है।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

होली गीत 3-मस्त फागुन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा |
तुझे रंग लगाऊँगा मै हर हाल मे |
होली खूब खेलूँगा आज मै |
चलो मनाए फागुन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा |
बागो बहारों कलियाँ खिलने लगी |
फागुन महीने गोरी मचलने लगी |
गोरी तू अन्जान मत बन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा |
तेरी अंगड़ाई मन बहकने लगा है |
खेलूँगा होली दिल मचनले लगा है |
संतोष भारती है तेरा सजन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा | 


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक वियोग शृंगार सवैया


फागुन   रंग  चढ़ो  सब  पे चहुँओर  बसंती समीर सुहाती।
कंत बिना हिय चैन नही अखियाँ अँसुयन से रोज नहाती।
कोयल  कूक  लगै  प्यारी मन भीतर विरह अनल दहाती।
बीते दिन रैन प्रिय सुधि में सब लाज तजी दीवानी कहती।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


डा.नीलम

कुछ यूं ही.......


वार पर वार वो करते रहे हमें मिटाने को
हम भी हर वार सहते रहे उन्हें जिताने को


उनको रुसवा कर कैसेहँसने देता जमाने को
जख्मों को छिपा हँसता रहा
उन्हें हँसाने को


मरहम हँसी की जख्मों पे लगाता रहा
आँखों को भी समझा दिया
उन्हें रिझाने को


उन्हें मिले हर खुशी जमाने भर की
कतरा-कतरा लहू भी बेचा  उन्हें बचाने को


सजदे में सदा रब की झुक दुआ माँगता रहा 
दुनियां की हर खुशियां
उन्हें दिलाने को।


       डा.नीलम


डा.नीलम

कुछ पल यूं ही......


आज फिर एक रात मायूसी में गुज़र गई
मचली-कुचली चादर की सिलवटें रह गईं


ख्वाब आधे-अधूरे बिखरे-बिखरे तारों से रहे
नींद जुल्फों से उलझती रही
पलकों में उतरी नहीं


इक गुबार ग़म का दिल का फेरा लगाता रहा
बिन बरसे बादल की तरहा तन्हा भटकता रहा


मुस्कान पता लबों का भूल गई
काजल आँखों के लिए तरसता रहा।


      डा.नीलम


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

............... कल रहें न रहें..............


आज ही  की बात हो , कल रहें न रहें।
न बांकी जज़्बात हो , कल रहें न रहें।।


वर्तमान  ठीक,भविष्य  किसने  देखा?
अभी की ही बात हो , कल रहें न रहें।।


भविष्य की चिंता हो, पर कुछ न छोड़ें;
भविष्य की न बात हो,कल रहें न रहें।।


जिसे शुरू किया,उसे जल्द ख़तम करें;
दिन हो या रात हो , कल  रहें  न  रहें।।


जो अब संभव,उसे कल पर क्यों छोड़ें?
कब प्रलय की बात हो,कल रहें न रहें ?


जैसे भी हो , सलीके  से ही  निबटा लें ;
पांच हो या सात हो , कल  रहें न  रहें।।


कल परभरोसा मत किया कर "आनंद"
अंधेरी,चांदनी रात हो,कल रहें न रहें।।


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सुनीता असीम

नाराजगी में दिख रहीं खंजर तेरी आँखें।
ससुराल में आईं नजर नैहर तेरी आँखें।
***
मैं हूँ नदी में खिल रही कोमल कमलपुष्पी।
मुझको बहारों का दिखें मँजर तेरी आँखें।
***
बादल भिगोता है मुझे बदली समझकर के।
मुझको बचाती हैं तभी गिरकर तेरी आँखें।
***
खुद पदमिनी समझूँ तुम्हें राणा समझ लूंगी।
कूदूँ इन्हींमें मैं समझ जौहर तेरी आँखें।
***
जब पास आते हो तो शहनाई बजे दिल में।
तब नेह से देखें मुझे भरकर तेरी आँखें।
***
सुनीता असीम
19/2/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कोई सोते से जगाता और दिल में समा जाता है
अपने हुश्न की खुशबू से मन को महका जाता है
वह चाहत कोई मेरी या फिर मन का भ्रम है
मैं जाना चाहता हूँ दूर वह पास चला आता है।


अपराजित समझता रहा और कब हार गया
चलाया कैसा तीर उसने जो दिल के पार गया
मत करना भरोसा सत्य इन रूप सौदागरों पर
चला गया रूप मदिरा पिला और हमें मार गया।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


बलराम सिंह यादव अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पण्डित राम चरित मानस रहस्य

राम चरित सर बिनु अन्हवाए।
सो श्रम जाइ न कोटि उपाये।।
कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी।
गावहिं हरि जस कलि मल हारी।।
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना।
सिर धुनि गिरा लगति पछिताना।।
  ।श्रीरामचरितमानस।
  श्रीसरस्वतीजी की यह दौड़कर आने की थकावट रामचरितरूपी सरोवर में नहलाये बिना दूसरे करोड़ों उपायों से भी दूर नहीं होती।कवि और पण्डित अपने हृदय में ऐसा विचारकर कलियुग के पापों को हरने वाले श्रीहरि के यश का ही गण करते हैं।संसारी अथवा साधारण मनुष्यों का गुणगान करने से सरस्वतीजी सिर पीट कर पछताने लगती हैं कि मैं क्यों उसके बुलाने पर आ गई।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---श्री रामचरित रूपी सरोवर में सरस्वती जी का स्नान करना श्री सरस्वतीजी के मुख से श्रीसीतारामजी के सुयश का गान करना है।ब्रह्मभवन को छोड़कर पृथ्वी पर वेगपूर्वक आने से सरस्वती जी को जो श्रम हुआ वह श्रीरामचरित के प्रेमपूर्वक कथनरूपी अमृतकुण्ड में स्नान किये बिना कैसे छूट सकता है।विद्वज्जन ऐसा विचारकर प्रभु के गुणों का गान करते हैं।श्री सरस्वती जी किसी कवि की मिथ्या स्तुति जानने पर पाश्चाताप करने लगती हैं।प्रभुश्री राम गिरापति हैं।श्रीसरस्वतीजी कठपुतली के समान हैं और भगवान राम अंतर्यामी हैं और उस कठपुतली को सूत्रधार की तरह नचाने वाले हैं।प्रभुश्री रामजी अपना भक्त जानकर जिस कवि पर कृपा कर देते हैं उसके हृदयरूपी आँगन में वे सरस्वतीजी को नृत्य कराते हैं अर्थात सरस्वती जी उस कवि के अनुसार काव्य रचना करवाने लगती हैं।यथा,,,
तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी।
सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी।।
सारद दारुनारि सम स्वामी।
राम सूत्रधर अंतरजामी।।
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी।
कबि उर अजिर नचावहिं बानी।।
  सांसारिक लोगों की प्रशंसा में कही गई कविता प्रायः अत्युक्ति और मिथ्या बातों से भरी हुई होती है।जैसे किसी के मुख की उपमा चन्द्रमा से और स्तनों की उपमा स्वर्ण कलश से दी जाती है जो पूर्णरूपेण असत्य है।ऐसी कविता की रचना से सरस्वती जी अपना सिर पीट कर पछिताने लगती हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


परिचय डा . प्रतिभा कुमारी'पराशर

डा . प्रतिभा कुमारी'पराशर'
     एम.ए.(हिन्दी), पीएच - डी.
जन्म- स्थान _ ग्रा.+पोस्ट_ बसाँव
जिला _ सीवान । बिहार
वर्तमान पता _ साँचीपट्टी , विराट नगर , वार्ड _06
हाजीपुर
पोस्ट -- अंजान पीर
जिला - वैशाली बिहार
844103


विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित


विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त
दूरदर्शन पटना , बिहार से कार्यक्रम


प्रकाशित पुस्तकें --- 


1  कितलयिका (कहानी संग्रह )
2  अंतर्व्यथा शूर्पणखा की' ( खण्डकाव्य ) 
3 आधुनिक हिंदी साहित्य में शब्दचित्रों का उद्भव और विकास : एक सर्वेक्षण ( शोध - प्रबंध ) 


शीघ्र प्रकाश्य 


1   सीपी में सागर ( काव्य - संग्रह )
2  कंटकों में कराहता समय (  कहानी - संग्रह )
3 जीवन के विविध आयाम ( स्मरण एवं संस्मरण )
4  त्रिपथगा   ( आलेख - संग्रह )
5  काव्यावतंस ( काव्य - संग्रह )
6  आख्यायिका अर्णव
7 शराब का तासीर ( नाटक )
8 दोहा शतक 


         भोजपुरी साहित्य


1  सतरंगी ( काव्य एवं गीत )
2 चलती के नाम गाड़ी ह  ( कहानी - संग्रह ) 
3  दहेजखउका ( नाटक )


ईमेल  pratibha1967kumari@gmail.com
Mob. 9798414628


संजय जैन (मुम्बई)

*तेरी यादों में...*
विधा : कविता 


तेरी यादों को अभी तक,
दिल से लगाये बैठा हूँ।
की तुम लौटकर आओगे। 
मेरे लिए नहीं सही तो, 
परायें के लिए ही सही।
तभी आप की धरोहर, 
आप को सौप देंगे।
और इस मतलबी दुनियाँ से,
कुछ कहे बिना ही निकल जाएंगे।।


इसलिए कहता था तुमसे की,
दिलके इतने करीब मत आओ,
की लौटना मुश्किल हो जाए।
दिल मे यदि कोई मैल हो तो,
उसे थोड़ा बाहर निकले दो।
क्योकिं हम तो अपना दिल ,
पहले ही तुम्हें दे चुके है।
बस अब तुम्हरी बारी है।।


क्योंकि दिल अब सुनता नही,
किसी ओर के लिए।
नाम तेरा रटता रहता है,
हर धड़क धड़कने में।
अब तुम्ही बताओ मुझे,
करे तो क्या करे।
या तो दिल की धड़कने मिटाए,
या फिर खुद ही .......।।


सोचता हूँ जाने से पहले,
कि कुछ ऐसा करके जाऊं।
और अपनी मेहबूबा की, 
याद में कुछ तो बनबाऊं।
जिसे देखकर प्रेमी युगल,
ताजमहल को भूल जाये।
और पुराने इतिहास को,
नई मोहब्बत के साथ पढ़े।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
19/02/2020


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली

*सबकी दुआएं आप पाईये।।*


*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*
देकर देखिये सुख सबको और
खुशियाँ   लेकर   आईये।।


जीतिए  सब  के     दिलों   को
और दुआएं सबकी पाईये।।


कोई  काम  और   नहीं   अच्छा
है    इससे   संसार       में।


बनायें शख्सियत ऐसी  कि सब
के      दिल में उतर जाईये।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046  ।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।*


अपना पन
स्नेहील आशीर्वाद
जीवन धन


डूबे किश्ती
अहम भरी हुई
और हस्ती


ये सब्ज बाग
मत  देख   इनको
काम खराब


विचार वान
तो उत्तम व्यक्तित्व
पाता सम्मान


ये खुशी मस्ती
सब  दिल  से पाते
होतीं हैं सस्ती


प्यार क्या होता
जो   रूह में  उतरा
वो प्यार होता


क्षणिक क्रोध
आवेश खोना नहीं
ये अवरोध


सद भावना 
सर्वहित कामना
ये हो भावना


लम्हों की खता
सूझ बूझ से काम
सदियों  सजा


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।*


पूर्ण उत्साह
यही है जीत मन्त्र
पूर्ण हो चाह


वाणी गहना
साफ स्पष्ट कहना
सुखी रहना


चलायमान
मन की सोच तीव्र
है गतिमान


मेरा तुम्हारा
एक ही संसार है
बहुत न्यारा


मेरा भारत
सारे जग से न्यारा
प्यारा भारत


कठिन काम
परिश्रम से हल
होता आसान


जीवन आशा
होता यदि विश्वास
दूर निराशा


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।।*



क्षणिक क्रोध
आवेश खोना नहीं
ये अवरोध


सद भावना 
सर्वहित कामना
ये हो भावना


लम्हों की खता
सूझ बूझ से काम
सदियों  सजा


सृष्टि   हर्षाये
फागुन का महीना
होली जो आये


ब्रह्म मुहूर्त
स्वर्णिम होती भोर
नई सूरत


कटे जंगल
प्रकर्ति चेताती है
ये अमंगल


अभिनंदन
मात पिता वंदन
बन चंदन



बदलें सोच
नये आयाम चुने
नवीन खोज


अच्छा चरित्र
तो व्यक्ति श्रेष्ठ बने
हों खूब मित्र


तीरथ यात्रा
मन    पवित्र   बने
गुणों की मात्रा


इश्क ओ मुश्क
छिपते   नहीं  कभी
करें हैं रश्क


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मो    9897071046
       8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*यह जीवन बेहिसाब देता है।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


ये जीवन बड़ा विचित्र कभी 
कांटे ओ गुलाब देता है।


इन  आँखों  को   बहुत  सारे
सुनहरे   ख्वाब  देता है।।


हार कर    मत    बैठना इस 
जिन्दगी की  बाज़ी  में।


जीवन  समुंदर सा कम नहीं
बेहिसाब        देता   है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


राजेंद्र रायपुरी

😁😁 -   दागी हैं राजा बनें   - 😁😁


दागी   ही    राजा    बनें,   बेदागी  हैं   दास।


यारो   मेरे   देश   की,  यही   बात  है  खास।


यही   बात  है  खास,  बने  हैं  वही  सिकंदर।


जिनके  होते   पाँव,  अक्सर  जेल  के  अंदर।


चिंतित  है  कविराय,  बनें  यदि  दास  बेदागी,


फिर क्या करना आस, कभी  कम होंगे दागी।


                     ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"तड़पन"*
"घुटन मन की जीवन में यहाँ,
कब-तक संग रह पाती है?
पा कर नेह का आँचल फिर,
क्यों-सभी कुछ कह जाती है?
मान मर्यादा जीवन की,
साथी जो अक्षुण रख पाते है।
दुर्गम जीवन पथ पर वही,
पल-पल संग चल पाते है।।
अपने नहीं जग में फिर भी,
जो अपने बन जाते है।
अपनत्व के अहसास से फिर,
अपनो को तड़पाते है।।"


    सुनील कुमार गुप्ता


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌻सरस्वती वन्दना🌻
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
शब्द के कुछ सुमन है समर्पित तुम्हे,
बस चरण में इन्हें अब शरण चाहिए ।
कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,
गीत- गंगा में गोते लगता रहूँ।
स्वर लहर में रहे भीगते तेरे तन वदन,
शारदा मां भजन में लगन चाहिए ।
मिट सके तम के साये प्रखर ज्योति दो,
हंस वाहिनी शुभे शत् शत् नमन।
मां मेरी तुम से है यही  प्रार्थना कि
ध्यान में डूबकर गीत तेरे मैं गाता रहूं।
साधना की डगर हो सुगम मां यहां
तम विमल मन मगन गुनगुनाता रहूँ।
कल्पना के क्षितिज में नये बिम्ब हो,
चित्र जिनसे नये नित सजाता रहूँ।
*************************
🙏🏻🌹कालिका प्रसाद सेमवाल


उत्तम मेहता "उत्तम"

वज़्न    -   2122  1212  22 
काफ़िया -  आ स्वर
रदीफ़     - नहीं होता।


बेख़ुदी में रहा नहीं होता।
हुस्न पर गर फ़िदा नहीं होता।


वक्त पर जो सँभल गये होते।
साथ ये हादसा नहीं होता।


दर्द से दोस्ती अगर होती 
आंसुओं ने छला नहीं होता।


ज़ख्म पर ज़ख्म दे रहे हो कयूं।
प्यार करना सज़ा नहीं होता।


ज़ख्म चाहे मेरे कुरेदो तुम।
दर्द मुझको ज़रा नहीं होता।


मिल के उस गमगुसार को अब तो।
दर्द दिल का ज़रा कम नहीं होता।


आसमां भी कदम तले होगा
हौसला हो तो क्या नहीं होता।


कोशिशें लाख की मगर उत्तम।
कम मगर फासला नहीं होता।


©@उत्तम मेहता "उत्तम"


सुनीता असीम

तेरी निगाह दिल में मेरे यूँ उतर गई।
धरती पे चाँदनी लगा आकर बिखर गई।
***
कैसे पहाड़ सी ये गुजारी है ज़िन्दगी।
छाया हमारी आज हमें छोड़ कर गई।
***
कुछ भी नहीं है ठीक दिले बेकरार का।
बिखरा लगे सभी ये नज़र तो जिधर गई।
***
तुझसे लगाव होने लगे देख लूं तुझे।
यूँ इक नज़र भी तेरी बड़ा काम कर गई।
***
जो वज्न था हिला तो हिला काफिया तभी।
अरकान भी हिले व ग़ज़ल की बहर गई।
***
सुनीता असीम
18/2/2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

दोहे
🌹🌹
कैंची नहीं सुई बनो,
क्षण क्षण सिलती कन्थ,।
टूटे दिल जो जोड़ दे,
वही सन्त का पन्थ।


वन में देखा वृक्ष को,
जिस पर फल ना फूल।
ऐसे भी कुछ नर दिखें,
जिनका जीवन शूल।


मन की पीड़ा मन रखो,
मुख से कहो न मीत।
सुनकर इस संसार में,
लोग हंसे विपरीत।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


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पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...