दिनांक: २०.०२.२०२०
वार: गुरुवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
विषय: मर्यादा
शीर्षक: जीओ मर्यादित विनत
झंझावातों से सजा , है जीवन संसार।
रखो धैर्य बन साहसी , आए प्रीत बहार।।१।।
सदा चलो तुम नेक पथ , रखो स्वयं विश्वास।
अंत मिलेगी सफलता , मधुरिम सच आभास।।२।।
आएंगी चोटें ज़ख़्म , टूटोगे सौ बार।
पर मानो न हार तुम , बनें रहो खुद्दार।।३।।
मर्यादा तोड़ो नहीं , जो जीवन आचार।
चलो सत्य परहित मना , राष्ट्र धर्म आधार।।४।।
वारिश होंगी लांछना , डगमग होंगे लक्ष्य।
दुख विषाद ढाए कहर , किन्तु सत्य संरक्ष्य।।५।।
राम राज्य परिकल्पना , सत्य न्याय सम्मान ।
त्याग शील गुण कर्म में , मर्यादा रख ध्यान।।६।।
शान्ति प्रेम सद्भावना ,मर्यादित अभिव्यक्ति।
हो समाज या राष्ट्र हित , बनती जीवन शक्ति।।७।।
जीओ मर्यादित विनत , रहो वतन के साथ।
करो समादर आपसी , सहयोगी हो हाथ।।८।।
मर्यादित हो आचरण , हो मर्यादा क्रान्ति।
आहत न पर भावना , मत फैलाएं भ्रान्ति।।९।।
बन निर्माणक राष्ट्र का,हों जन गण सुखधाम।
मर्यादित निरपेक्ष नर , हो पुरुषोत्तम राम।।१०।।
मर्यादित जीवन सफल , राम चरित सद्भाव।
जाति धर्म भाषा वतन , मत बांटो दे घाव।।११।।
तोड़ो मत इस देश को , रच न शाहीन बाग।
साथ चलो मिलकर वतन , लोकतंत्र अनुराग।।१२।।
मर्यादित सम्बन्ध हो , चाहे देश समाज।
निर्मल मन भारत चमन , रामराज्य आगाज़।।१३।।
मर्यादित हो लेखिनी , प्रेरक युवजन चित्त।
बनें आईना प्रगति का , प्रीति अमन आवृत्त।।१४।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली
श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
महाशिवरात्री के अवसर पर
हिन्दी शीव भजन-14-तू है भोला भण्डारी
जन्मो जन्म से शिव तेरा मै पुजारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
कालो के काल तुम्ही हो |
अनाथों के नाथ तुम्ही हो |
देवो मे महादेव तू है त्रिपुरारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
चरण मे छोड़ शिव बोलो कहा जाऊ|
तेरे शिवा जग किसी कुछ न पाऊँ |
तेरी कृपा परूँ होगी कमाना हमारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
गौरा के स्वामी तुम हो |
जगत अंतर्यामी तुम हो |
जनम मरण रहती हाथो तुम्हारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
ब्र्म्हा ने पूजा तुमको है |
विष्णु ने पुजा तुमको है |
तुमको पूजे शिवदानी सारा संसारी |
कर दो कृपा तू है भोला भण्डारी |
श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286
प्रिया सिंह लखनऊ
कुछ जान बूझ कर तो कुछ अनजाने में हो गई
बहुत शारी गलतियाँ मुझसे समझाने में हो गई
अपनों ने एक- एक कर साथ छोड़ दिया मेरा
मुझे बहुत देर शायद उनको मनाने में हो गई
मोहब्बत यूँ तो खुलेआम ज़हर का व्यापार है
बहुत बड़ी ख़ता दाम उनका लगाने में हो गई
इश्क में शब-बे-दारी तो जायज है मेरे दोस्तों
ये क्या रात पूरी उनसे सच जताने में हो गई
ऐसे क्यों तुम खंगालती हो रोज मय को "प्रिया"
कैसी सरेआम बेइज्ज़ती मेरी मयखाने में हो गई
Priya singh
परिचय कुसुम सिंह 'अविचल' कानपुर
नाम--डॉ०कुसुम सिंह 'अविचल'
पता--1145-एम०आई०जी०(प्लॉट)
रतनलाल नगर
कानपुर-208022
मो०-8318972712
9335723876
कविता--
"नमन राष्ट्र के प्रहरी को"
नत है मस्तक सैनिकों के लौह से व्यक्तित्व दृढ़ को,
व्योम से जो उतर भू पर धन्य धरती कर गए है।
दी है दस्तक मृत्यु ने भी डर पे आ के,बन मृत्युंजय
शौर्य से अपने उसे भी मात देने को अड़ गए हैं।
दुश्मनों के घात पर प्रतिघात करने की मनाही,
आदेश की करते प्रतीक्षा,तन को घायल कर गए हैं।
हार न मानी कभी भी,विकट हों या विषम स्थितियां,
बन के आंधी दुश्मनों के दांत खट्टे कर गए हैं।
है जिनका चट्टानी वो सीना, तन तना हिमगिरि के जैसा,
बन खड़ा बौना हिमालय जब वो उसपर चढ़ गए हैं।
तड़तड़ाते टैंक तोपें,आग उगले गन मशीनें,
निडर सैनिक दुश्मनों के दर पे जाके भिड़ गए हैं।
फट गए ज्वालामुखी से,लावा फूटा छू गया नभ,
चिंगारियां बिखरी धरा पर,आग में वो तप गए हैं।
फौलादी सैनिक आग उगले, भय भी उनसे डर गया है,
काल बनके दुश्मनों पर कहर बरपा कर गए हैं।
रणभूमि से भागे कभी न,पीठ पर गोली न खाई,
रौंदते दुश्मन को अपना सीना छलनी कर गए हैं।
धराशायी भी हुए यदि नाम होगा आसमान तक,
शत्रु के स्मृतिपटल पर नाम अपना जड़ गए हैं।
अवनि अम्बर गम में नम हैं,दसों दिशाएं रो रही हैं,
सैन्य वाहनों पर शव शहीदी,लिपट तिरंगे में आ गए हैं।
माँ के आंचल से दुग्ध धारा,आंख से बहता सिंधु खारा,
पथरा गयी आंखे पिता की,लाल उनके सो गए हैं।
प्रकृति भी गमगीन सी है,कुसुम शाखों से झर रहे हैं,
झुक गया है राष्ट्र ध्वज,अंतिम नमन को कह गए हैं।
शौर्यता की अमर गाथा,गाएंगी सदियां युगों तक,
भारती के लाल जो अद्भुत कहानी गढ़ गए हैं।
शब्द कविता अँजुरी में भावना बनकर भरे हैं,
श्रद्धांजलि उनको समर्पित,बलि की वेदी जो चढ़ गए हैं।
इतिहास साक्षी बन कहेगा,त्याग की गाथा निरन्तर,
अनुकरण होता रहेगा,प्रेरणा जो बन गए हैं।
मांग का लालित्य बिलखा,रो पड़ी सब राखियां हैं,
लोरियां क्रंदन में डूबी,बाजू भाई के कट गए हैं।
गाँव रोता,होता गर्वित, गाँव का बेटा गया है,
देश की माटी की खातिर,उत्सर्ग अपना कर गए हैं।
जयहिन्द,वन्दे मातरम
रचनाकार--कुसुम सिंह 'अविचल'
मो०8318972712 1145-एम०आई०जी०(प्लॉट)
9335723876 रतनलाल नगर
कानपुर-208022(उ०प्र०)
कुमार कारनिक (छाल, रायगढ़, छग)
मनहरण घनाक्षरी
(शिल्प-८,८,८,७=31वर्ण
युगल पद तुकांत अंत गुरू)
----------------
*शिव महिमा*
----------------
बम भोले शिव नाथ
डमरू त्रिशूल हाथ
मिलेगा शंभु का साथ
भोले जी भंडारी हैं।
🌼🌹
काल रूप महादेव
तुम देवों के हो देव
औघटदानी है बाबा
शिव त्रिपुरारी हैं।
🌻🌼
जग का पालनहार
पापी का करे संहार
भव का खेवनहार
तू प्रलयंकारी हैं।
🌼🌻
प्रभु सुन ले विनय
दूर होत है अनय
देवे सबको आशीष
जग हितकारी हैं।
*ओम् नमः शिवाय*
******************
सीमा शुक्ला अयोध्या
ऊं नमः शिवाय!
है गंगधार शोभित कपाल,
कर से संहार त्रिशूल करे।
लिपटी भुजंग की माल कंठ
भोलेशंकर सब शूल हरे।
मुख चन्द्र भाल ,तन ढके छाल,
अद्भुत श्यामल शिव की काया।
दर्शन से जाता दूर काल,
जग मे फैली शिव की माया।
जग सुनता तेरी महिमा को,
करते हो जब तुम शंखनाद।
सागर की लहरे झूम झूम,
कल कल करती रहती निनाद।
देवों के हो तुम महादेव
तुम अजर अमर हो अविनाशी
हे दयावान कैलाश पती,
नभ जल थल के घट घट वासी।
ये धरती अम्बर डोल उठा,
थर थर कांपा हिम का आलय।
जब नयन तीसरा खोले हो
तब तब आई है महाप्रलय।
मुख मंडल से छूकर तुमको
पावन गंगा का पानी है।
हे महादेव महिमा तेरी
युग युग मे गई बखानी है।
जग भर को देकर दान सुधा,
निज कंठ गरल का पान किया।
जब जब चरणो मे शीश झुका,
जग जीवन का कल्यान किया।
सीमा शुक्ला।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
महाशिवरात्रि- 2020
छंद - मत्तगयंद सवैया (वार्णिक छंद )
शैल सुता मनुहार करे प्रभु संत दिगंबर धूनि रमाये ।
शंभु शिवा द्वय एक हुए शुभ पर्व महा शिवरात्रि कहाये ।
कंत महेश उमा अति पावन फागुन मास विशेष बनाये ।
धूम मची बम बं लहरी चहुँ आज सखी शिव व्याहन आये।
रूप अनूप त्रिनेत्र धरे भुज दण्ड कमंडल शूल उठाये ।
भाल त्रिपुंड ललाट महा मृगछाल सजा तन भस्म लगाये।
भूत पिशाच बरातिन सेवक से गण मीत समाज बनाये ।
गाल फुला सब शंख बजा चहुँ ओर दिगंतर धूम मचाये।
नाम जटाधर गंग बहे शशि शेखर से मन भृंग लुभाये ।
मातु सती वरमाल लिए पितु शंकर भाल सुहाग सजाये।
लाल महावर पाँव रचा जब नूपुर के धुन मंगल गाये ।
दक्ष सुता अभिसार करे शुभ संग सजे त्रिपुरारि सुहाये ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश-----
भोला शंकर औघड़दानी ब्रह्माण्ड का पालन कर्ता ।।
जीव जीवन आत्मा का परमात्मा ।।
कराल विकराल महाकाल शिवा सत्य सत्यार्थ।।
तन में भस्म लगाये पहने मृगछाला।।
मुकुट भाल का चाँद जटाओ से बहती पतित पावनि गंगा की निर्मल निर्झर अविरल धरा।।
कर सोहे डमरू त्रिशूल गले में नाग की माला।।
भांग धतूर ही भावे जगत कल्याण को विष पान कर नीलकंठ कहलाये।।
पर्वत पर रहते महल अटारी ना भावे पत्ता कन्द मूल भाव से जो मिल जाए भाये भक्तन को छप्पन भोग पकवान खिलावे।।
सती सत्य का सत्कार हिम हिमालय की बाला पार्वती अंकिकार।।
रूद्र रौद्र घोर घनघोर सत्य का साक्ष्य सत्य अनंत निराकार निर्विकार ।।
आग अंगार नीर छीर समीर अवनि आकाश तत्व तथ्य मूल सम्पूर्ण।।
ग्रह नक्षत्र काल की चाल भुत प्रेत पिचास नंदी भैरों गण ऋतुएँ मौसम की काल चाल मुंकार ।।
ब्रह्माण्ड का न्यासी सन्यासी स्वायम्भू शाश्वत शम्भू ओंकार।।
दीन् दुखियों के दाता आनाथन के नाथ शिव साक्षात् करालम महाकाल ।।
करालं कृपालं त्रिनेत्र धारी महापालक महापरलय प्रधान।।
तांडव रौद्र रूप शंकर मोक्ष मार्ग ।श्मशान के देवता आदि मध्य अवसान देवोँ के देव महादेव की महिमा अपरम्पार।।
अशुभ अन्धकार मुंड माल तपसी मनीषी सतोगुणी रजोगुणी का निश्चय निर्वाण।।
सर्व व्यापी सर्वेश्वर वेद् पुराण शुभ मंगल गजानन षडानन के जन्मदाता विघ्न विनाशक मंगलकर्ता।।
ज्ञान वैराग्य के ईश नामामिशम गिरीश।।
जय जय शिव शंकर बम बम भोले हर हर महादेव।।
आई शिव रात्रि आई वसंत की वहार शिव पार्वती की बरात लाई।।
दूल्हा शिव दुल्हिन पार्वती का मिलन स्वर्ग में अप्सरा नाचे देव दुन्दभि बाजे हिमालय द्वारे बाजे शहनाई।।
शिव रात्रि आई ब्रह्माण्ड में बधाई सखिया सहेलिया करत अठखेलिया वर बौराहवा पावा ।।
मैना हुई अचेत वर देख ब्रह्मा विष्णु ने मैना को समझावा त्रिपुरारी भुवंस्वामी वर वरण सौभाग्य त्याग तपश्या से पार्वती ने पावा।।
सृष्टि का निर्माता भाग्य विधाता का दर्शन पावन युग युग जन्म जन्म जप तप सद्कर्म कर फल ।।
सोई शिव शंकर चंद्र्शेखर जामाता तुमरे द्वारे आवा।।सुन मैना नस्वर संसार में देव दानव का प्यारा अर्धनारीश्वर दामाद तुम्हारा।।
पार्वती जगत जननी जगत कल्याणी माता।।
शुभ शिव रात्रि
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश-----
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
भोजपुरी पारंपरिक होली गीत 6- जागा जागा हे महादेव |
जागा जागा हे महादेव अइले फागुन के महीनवा |
लगावे लोगवा भोला रंगवा अबिरवा |
जागा जागा हे महादेव |
पार्वती जगावे संग कार्तिक गणेश जगावे |
नंदी जगावे जोरी जोरी करवा |
जागा जागा हे महादेव |
ब्र्म्हा विष्णु अइले ,विनवा बजावत नारद अइले |
गाई गाई फगुआ नारद थकी गइले गरवा |
जागा जागा हे महादेव |
फू फू फूहकारी भोला नाग देव जगावे |
डम डम बाजत डीम डमरू जी जगावे |
ठाड़े ठाड़े त्रिशूलवा दबावे भोला गोड़वा |
जागा जागा हे महादेव |
जटवा उतरी गंगा भोला गोड़वा पखारे |
चम चम चमकी चन्दा मथवा निहारे |
तबों नहीं जागे भोला बीते फागुन के महीनवा |
जागा जागा हे महादेव |
हारी थकी देवलोग भांग पिसे लागल |
केहु लिआवे धतूरा केहु गाँजा लेवे भागल |
सबकर भक्ति देखि शिव खुल गइले नयनवा |
जागा जागा हे महादेव अइले फागुन के महीनवा |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286
अंजना कण्डवाल 'नैना'
*""""""'''शिवरात्रि""""""""*
पंचभूत को मिला इसी दिन
सृष्टि का निर्माण किया।
विराट रूप लिया यहाँ फिर
अग्निलिंग अवतार लिया।
अमर तत्व की चाह में जब
समुद्र का मंथन किया।
सर्व प्रथम कालकूट विष तब,
जलधि से बाहर निकला।
कालकूट विष के कारण जब
पूरा ब्रह्माण्ड आकुल हुआ।
पिया हलाहल विश्वहित के लिए,
नीलकंठ तब नाम हुआ।
शिव भक्तों ने फिर पूरी रात्रि में,
शिव के साथ जागरण किया।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का दिन,
शिवरात्रि नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इसी दिवस पर शिव ने एक दिन,
माँ पार्वती से विवाह किया।
इस जगत की रचना में फिर
अर्धनरेश्वर अवतार लिया।
महाशिवरात्रि का पर्व ये पवन,
करें हम शिव की आराधना।
शिव की भक्ति करता जो मन से,
उसको वांछित वरदान मिला।
शिव होने की भी इस जग में
है बहुत ही कठिन राह।
विश्व कल्याण के लिए जिसने,
हलाहल का पान कर लिया।
©®
अंजना कण्डवाल 'नैना'
डा.नीलम अजमेर
*शिव-ब्याह*
आज नशा भांग का
कुछ ऐसा चढ़ा
देवाधिदेव महादेव का
विवाह जो है रचा
भूत,प्रेत,पिशाच,किन्नर
बन बाराती साथ चले
भस्म रमाए जिस्म पे
कालन के काल महाकाल पार्वती ब्याहन चले
हवाओं ने साज छेड़े
पातन ने छेड़े सुर हैं
बिजली के पाँव थिरके
लहरों में रवानी आई
देख अनोखी बारात
दक्ष विचलित हुए
द्वार-पूजन खड़ी मात् के भी
नयन अचरज भरे
गलियन में मे शोर मचा
शिवजी पार्वती ब्याहन चले।
डा.नीलम
सत्यप्रकाश पाण्डेय
ख्वाबों में तू भावों में तू
तू ही दिल की धड़कन में
स्वांस स्वांस रोम रोम में
तू मेरे मन की पुलकन में
जकड़ा जकड़ा सा रहता
नहीं रहती हो मेरी दृष्टि में
रोमांचित पल पल लगता
रहूँ तेरी यादों की वृष्टि में
दिलजुबा तू दिलवर मेरी
दिल पर डाला डाका तूने
दिल दिखा दिलदार मेरी
किया प्रभात भी राका तूने
दिशा दिशा में दृष्टि लगाये
दिकभ्रमित सा होता रहता
दिख जाये दिल के करीब
मैं तुझमें दिल लगाये रहता
द्रवित हुआ सा दीन बना
चातक को दिनकर की चाह
सत्य बना दीवाना दिलकश
बस तेरे दीदार की परवाह।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
संदीप कुमार विश्नोई दुतारांवाली अबोहर पंजाब
जय माँ शारदे
हर हर महादेव
चतुष्पदी छंद
शिव शंकर भोले , मम मन डोले , दया करो त्रिपुरारी।
मैं दर पर आया , शीश नवाया , कष्ट हरो त्रिपुरारी।
गल मुण्डन माला , नैन विशाला , रूप चतुर्भुज धारी।
जन जन सुखदायक , सदा सहायक , भक्तन के हितकारी।
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
संजय जैन (मुम्बई)
ॐ नमः शिवाय
*महाशिवरात्रि*
विधा: कविता
शिव है सबके कर्ताधर्ता।
शिव देते है भक्तों के
वरदानकर्ता।
तभी तो पाते सुख शांति हम सब।
शिव के बिना जग है सुना सुना।
इसलिए हर कोई कहता
सुबह शाम ॐ नमशिवाय।।
जो रखते है महाशिवरात्रि का व्रत,
और करते शिवजी की पूजा।
तो हो जाती उनकी सारी इच्छाएं पूरी।
शिव जैसा दयालु जग में कोई नही है दूजा।
इसलिए पूजते जाते
विश्व के घर घर में।।
नाम यदि शिव के साथ
न लिया जाये मां पार्वती का।
तो महाशिवरात्रि का अर्थ
है अधूरा।
क्योंकि भक्तों की सिपरिश कर्ता सदा ही मां पार्वती होती है।
इसलिए सबसे ज्यादा
महिलाये पूजे शिव पार्वती को है।।
सभी पाठकों और मित्रो को महाशिवरात्रि की बहुत बहुत बधाई और शुभ कमानाएँ ।
ॐ शिव नमः
संजय जैन (मुम्बई)
21/02/2020
विवेक दुबे"निश्चल रायसेन
ध्यान क्या है ।
विचार क्या हैं ।
ध्यान शिवतत्त्व ।
विचार वासना ।
विचार शून्यता ,
वासना की समाप्ति ।
शांत चित्त ,
शिव सी भक्ति ।
........
वासना ही तो समाप्त होती है ।
तभी शिवत्व की उत्पत्ति होती है ।
-----विवेक दुबे"निश्चल"@....
देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
----------------महाशिवरात्रि----------------
ओ भोलेबाबा कब से करूँ मैं इंतज़ार।
तुझसे मिलने को मेरा मन है बेकरार।।
अवढरदानी कहाते , भांग पीते-पिलाते ;
शिव-पार्वती गीत गाते , चलते व्रती धार।।
काशीनाथ,सोमनाथ,वैद्यनाथ,ज्येष्ठगौरनाथ;
रुद्राभिषेक की सर्वत्र , परम्परा है अपार।।
भँवर में फंसा है सब , अज्ञान बनकर ;
अब तो लगा दे सबका , तू ही बेड़ापार।।
ढूंढे "आनंद" अपनी , मन की गहराई में;
अब तो मिला दे इससे , तू ही बारम्बार।।
-------------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
एस के कपूर श्री हंस* *बरेली
*महाशिवरात्रि।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।*
महादेव ने नृत्य तांडव से किया
अत्याचार का दमन है।
नील कंठ ने संसार के उद्धार
को पिया विष गमन है।।
हर भक्त को भोलेनाथ पूजन का
मिलता है अद्धभुत फल।
महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर
भगवान शंकर को नमन है।।
*महा शिवरात्रि की अपार शुभकामनायों*
*सहित।*
*आपका।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब।।।।। 9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"जीवन-पथ"*
"मंज़िल नहीं मेरी कोई,
यूँही बढ़ते जाना है।
थक न जाये मन साथी यहाँ,
तन को साथ निभाना है।।
दुर्गम जीवन पथ है-साथी,
फिर भी चलते जाना है।
माने न माने मन ये यहाँ,
कर्म तो करते जाना है।।
साथ मिले उनका जीवन में,
ये तो भूल जाना है।
मिले जीवन पथ पर साथी,
पल-पल साथ निभाना है।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली
*क्या बनते जा रहे हैं हम*
*मुक्तक*
गमों में रोना ही ओ सुखों
की चाह चाहते हैं।
आह की बात नहीं बस
हम वाह चाहते हैं।।
परवाह नहीं हमें किसी
जीवन मूल्य की।
जाने हम चलना कौन सी
राह चाहते हैं।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो। 9897071046
8218685464
एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली
*बनो तुम मानव बस ये एक*
*ख्वाब चाहिए।मुक्तक।*
प्रभु ने दिया है जीवन
उसको जवाब चाहिए।
तेरे भीतर छिपा यह
नकली रुआब चाहिए।।
ईश्वर ने बनाई तेरी मूरत
किसी सरोकार के लिए।
उसको तुझमें एक अच्छा
इंसान नायाब चाहिए।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो। 9897071046
8218685464
एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली
*इश्क ,,,प्यार,,,,महोब्बत*
*हाइकु*
कितना प्यार
सितारों की गिनती
है बेशुमार
माने न दिल
यह रस्मे जग की
जाने न दिल
दुआ देते हैं
हमारी उम्र लगे
ये कहते हैं
ये प्रेम रोग
मिलन ही है दवा
न चाहें लोग
दिल के जख्म
तेरे पास ही तो है
ये मरहम
नहीं हो जुदा
जी कर भी जिये न
ए मेरे खुदा
हम सफर
बंधी जीवन डोर
हैं हर दर
ये महोब्बत
हम साथ साथ हैं
एक रंगत
*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मो 9897071046
8218685464
राजेंद्र रायपुरी
🔔 महाशिवरात्रि पर विशेष 🔔
जय-जय, जय हो जय त्रिपुरारी।
जय-जय जय हो, डमरूधारी।
जय-जय जय हो,जय शिवशंकर,
जय-जय जय हे, गंगाधारी।
भस्म शरीर लगाने वाले।
भाँग - धतूरा खाने वाले।
भक्तों के तुम हो हितकारी,
जय-जय जय हे, गंगाधारी।
हाथ त्रिशूल, कमर मृगछाला।
लिपटा नाग गले में काला।
नंदी करते सदा सवारी।
जय -जय जय हे, गंगाधारी।
भक्त तुम्हारे, जग में सारे।
करते बम-बम के जयकारे।
उनपर रहती कृपा तुम्हारी,
जय-जय जय हे, गंगाधारी।
संत तुम्हें निश दिन हैं ध्याते।
ब्रम्हा - विष्णू शीश नवाते।
कह-कह जय भोले -भंडारी,
जय-जय जय हे, गंगाधारी।
हम भी आए द्वार तिहारे।
लगा रहे बम के जयकारे।
लगती काशी नगरी प्यारी,
जय-जय जय हे, गंगाधारी।
धन्य कहें हम भाग्य हमारे।
पहुँच गये जो द्वार तुम्हारे।
मनसा पुरवहु नाथ हमारी,
जय-जय जय हे, गंगाधारी।
।।राजेंद्र रायपुरी।।
सत्य प्रकाश पाण्डेय
तुम्ही बंधु और मीत हमारे
तुम्ही हो जीवन के रखवारे
स्वांत बून्द को तरसे चातक
माँ की ममता को ज्यों जातक
वैसे दरस परस को स्वामिन
है यहां व्याकुल प्राण हमारे
तुम्ही बंधु..........
तुम्ही हो ...........
फसल को है बरसा की चाहत
जल पाकर मछली को राहत
मझधार डूबती नैया को प्रभु
जैसे तिनका बन जाएं सहारे
तुम्ही बंधु.........
तुम्ही हो...........
अज्ञ हिय को वेदों की वाणी
जैसे पावस सबको लगे सुहानी
अंधकार सा घिरा यह जीवन
बनो आशा की किरणें प्यारे
तुम्ही बंधु .......
तुम्ही हो........
अलंकारों से काव्य अलंकृत
संस्कृति से संस्कार सुसंस्कृत
तेरी परम् ज्योति से स्वामी
अब हृदय मण्डित होंय हमारे
तुम्ही बंधु.........
तुम्ही हो जीवन ............।।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
महाशिवरात्री के अवसर पर दूसरा
हिन्दी शिव भजन -10 -आया हूँ बाबा |
आया हूँ बाबा शरण तुम्हारे |
गिरा पड़ा हूँ चरण तुम्हारे |
आया हूँ बाबा शरण तुम्हारे |
तेरे बिना ना रहेंगे बाबा |
अकेले रहेंगे ना संसार मे |
कोई नहीं है मेरा बाबा |
सुध बुध खोया मैंने |
ठोकर खाया हर बार मे |
तेरे बिना दिन हम कैसे गुजारे |
आया हूँ बाबा शरण तुम्हारे |
कहते है लोग तुझको |
तू है बड़ा दानी |
औघड़ दानी भोला तुम हो |
ठहरा मै अज्ञानी |
रोई रोई भारती बाबा तुझको पूकारे |
आया हूँ बाबा शरण तुम्हारे |
किरीपा करोगे ना तुम तो
भला अब कौन करेगा |
सब ओर भटका हूँ अब तों |
ठिकाना कौन मुझको देगा |
नइया मेरी लगा दो अब तो किनारे |
आया हूँ बाबा शरण तुम्हारे |
श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली
रचना सं. : २७२
दिनांक: २१.०२.२०२०
वार: शुक्रवार
विधा: दोहा
छन्द : मात्रिक
शीर्षक: 🙏 द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तुति🙏
सोमनाथ सौराष्ट्र में , करुणाकर अवतार।
चारु चन्द्र धर शिखर शिव , गंगाधर संसार।।१।।
उच्च शिखर श्रीशैल पर , प्रमुदित देव निवास।
बाघम्बर मल्लिकार्जुन , पूजन पति कैलाश।।२।।
अकालमृत्यु रक्षक प्रभु , मोक्ष प्रदाता सन्त।
महाकाल उज्जैन में , महिमा नमन अनंत।।३।।
कावेरी नर्मद मिलन , पावन निर्मल धार।
ओंकारेश्वर शिव करे , भवसागर से पार।।४।।
चिताभूमि पूर्वोत्तरी , सदा वास गिरिजेश।
देवासुर पूजित मनुज , बैद्यनाथ परमेश।।५।।
आभूषण सज्जित प्रभु , दक्षिण क्षेत्र सदंग।
भक्ति मुक्ति दाता स्वयं , नागेश्वर अर्धाङ्ग।।६।।
बसे सदा केदार तट , नीलकंठ केदार।
मुनि देवासुर यक्ष अहि , पूजित शिव संसार।।७।।
दर्शन दे पातक हरे , सह्यशिखर उत्तुंग।
बसे त्र्यम्बकेश्वर प्रभु ,मानस शिव जय गुंज।।८।।
सेतु बना निज बाण से , उच्छल जलधि तरंग।
रामेश्वर शिव स्थापना , राम भक्ति नवरंग।।९।।
भूत प्रेत सेवित सदा , नमन करूं करुणेश।
डाकशाकिनी वृन्द में , भीमशंकर जटेश।।१०।।
विश्वनाथ शरणं व्रज , काशीपति भगवान।
हरो पाप पातक मनुज, शरणागत वरदान।।११।।
ज्योतिर्मय भगवान् प्रभु , इलापुरी रनिवास।
घृष्णेश्वर समुदार शिव, करूं नमन उपवास।।१२।।
पूजन विधि पूर्वक करूं,धतुर भांग बेलपत्र।
थाल सजा शिव आरती , गाऊं मंगल मंत्र।।१३।।
कर ताण्डव विकराल बन,धर त्रिशूल अरि नाश।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग शिव , त्रिपुरारी जन आश।।१४।।
सत्य शिवम नित सुन्दरम् , सुखमय हो संसार।
महाकाल गौरीश तव , महिमा अपरम्पार।।१५।।
फिर सीता आहत विकल ,कलि रावण दुष्कर्म।
रक्षण कर शिव द्रौपदी , सती लाज रख धर्म।।१६।।
संकट में मां भारती , क्लेशित निज गद्दार।
प्रलयंकर शंकर विभो , करो दनुज संहार।।१७।।
दुश्शासन करता हरण , भरी सभा निर्लाज।
ठोक रहा निज जांघ को , दुर्योधन आवाज।।१८।।
पुन: उठाओ पाशुवत् , हे त्रिनेत्र भु्वनेश।
नंदीश्वर तारक दमन , महादेव हर क्लेश।।१९।।
शूलपाणि जगदीश शिव , हरो जगत संताप।
कर निकुंज कुसमित सुरभि,जलता ख़ुद मन पाप।।२०।।
आज महाशिवरात्रि में , रख पूजन उपवास।
परिणय गौरी - शिव प्रभो , दर्शन मन अभिलाष।।२१।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
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