एस के कपूर* *श्री हंस

*ईश्वर एक है।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।*


राग  द्वेष    भेद     भाव   की
गिर   जाये  हर  इक   दीवार।


भाषावली से ही मिट जाये हर
शब्द  जो   लाता हो तकरार।।


"ईश्वर एक है"भावना बस जाये
हर   दिल   में    सबके   लिए।


धरती  पर  तब    बन  जायेगा
स्वर्ग   से  ही  सुन्दर    संसार।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब   9897071046   ।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस

*बुनियाद का आधार।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


नींव का   पत्थर  कभी
नज़र  आता  नहीं    है।


शीर्ष की शिला  को ही
सराहा जाता  वहीं  है।।


कभी न  भूलना चाहिए
बुनियाद के  महत्व को।


इसी पर  तो  हर   मकां 
आधार   पाता  यहीं  है।।


*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।*
मोब  9897071046।।
8218685464।।।।।।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे युगलछवि मेरे जीवन में भरदो मोद प्रमोद
बनी रहे कृपा आपकी भरे खुशियों से गोद


हे बृषभानु सुता ठाकुर से कहना हमारी पीर
कोई भय व्यापै नहीं रहूँ तुम्हारे लिए गंभीर


अदभुत और अनन्त छवि अदभुत भाव प्रभाव
हे अनादि परमेश्वर तुम्ही हो भवसागर की नाव


युगलरूप परम् ज्योति से फैला जीवन आलोक
श्री राधे कृष्ण दया से मिट जायेंगे सभी शोक।


श्रीराधे कृष्ण🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🎍🌷दोहे🌷🎍
********************
मानव धन का दास है,
धन न किसी का दास।
जो समझा इस राज को,
वही प्रभु  का  खास।
       🎍
यौवन जाता देख कर,
मन में   उठे   विचार।
जीवन में कुछ कर चलो,
होगा   बेड़ा   पार।।
       🎍
बात - बात  में बात हो,
अगले क्षण हो विवाद।
सब बातों का एक हल,
मौन    रहो  निर्विवाद।।
        🎍
कथनी करनी एक सी,
जिस दिन होगी  जीव।
धरती पर आनन्द की,
वृष्टि   होगी  अतीव।।
      🎍
पाती है जब आत्मा ,
सन्तो   का  सत्संग।
तब आता सद् आचरण,
बदल जायें  सब रंग।।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २२५
दिनांक: २२.०२.२०२०
वार: शनिवार
विधा: कविता
शीर्षक: शिवशंकर मैं नमन करूं
हे   कैलाशी असुर विनाशी  बैद्यनाथ  शिव  मैं  नमन  करूं। 
हे   उमापति  चैतन्य  महाप्रभो   नंदीश्वर   मैं   नमन   करूं।
महाकाल  विकराल परंतप  शिव  महादेव  मैं  नमन   करूं।
अविनाशी  त्रिपुरारी  शंकर  विश्वंभर  शिव  मैं  नमन  करूं।
शूलपाणि  डमरूधर  नटवर  शिव रावणेश  मैं  नमन करूं।
भष्मराग  तनु  कण्ठहार  अहि  जय  भोले  मैं नमन  करूं।
हे उमेश गिरिजेश त्रिलोचन बाघम्बर शिव  को नमन  करूं।
आनंद  कंद   परब्रह्म  सनातन  चतुर्वेद  शिव  नमन  करूं।
कार्तिकेय  स्कन्ध   पिता  प्रभु  नागनाथ शिव नमन  करूं।
पिनाकी  मरघट  के  वासी काशी  विश्वनाथ मैं नमन करूं।
ओंकारेश्वर जय नीलकण्ठ शिव हे सोमनाथ मैं नमन करूं।
पंचानन पशुपति  परमेश्वर पावन रामेश्वर शिव नमन  करूं।
हो  प्रसीद  दिगम्बर  निर्मल  शिव शंकर  शंभू  नमन करूं।
देव  पूजित  दानव  से वन्दित ज्ञानेश्वर मैं  नित नमन करूं।
हे  त्रिदेव  वाणासुर  नाशक  त्र्यम्बकेश  प्रभु  नमन  करूं।
घुश्मेश्वर  भीमेश्वर  सादर  जग प्रतिपालक मैं नमन  करूं।
भष्मासुर  वरदायक  नाशक संन्यासी शिव मैं नमन करूं।
प्रलयंकर शंकर नटराजन  वृषवाहन  को  मैं  नमन  करूं।
जय सतीश भुवनेश पुरातन अमरेश सदाशिव नमन करूं।  
दूं भांग धतुर बम भोले बाबा दे विल्वपत्र शिव नमन करूं।
गुणागार  गौरीश   महातम  अर्द्धनारीश्वर  मैं  नमन  करूं।
गणाधीश गणपति  जगदीश्वर  चन्द्रमौलि  मैं  नमन  करुं।
दुष्टदलन दानव खल नाशक रुद्राक्षमाल शिव नमन करूं।
हरो  आपदा  दो सुख वैभव जग अडरंधर  मैं नमन करूं। 
गंगाधर भागीरथ हरिहर भवानीश महारुद्र मैं  नमन करूं।
जटाजूट    हालाहल    शम्भु  अपर्णेश  शिव  नमन करूं।
विश्वम्भर  कामेश्वर पूजन शैलश्वर  शिव नित  नमन करूं।
त्रिभुवनेश्वर हैं अरिमर्दक शिव उमारमण शत्  नमन करूं।
शरणागतवत्सल देवेश्वर ओंकार शान्ति शिव  नमन करूं।
खिले चमन भू सुखद मधुर समरस निकुंज मैं नमन करूं।
प्रीति रीति नटराज गुणेश्वर पालक शिवशंकर मैं नमन करूं।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 

भोजपुरी देश भक्ति होली गीत -5 सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा |
हम तोडब तोहरो गुमनवा हो  |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
बेरी बेरी करेला काहे हमसे तू झगड़ा |
हम फोरब कपार तोहार पाकिसतनवा हो | 
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
चिनवा सहकावल तू घमन्ड खूब करेला |
होलिया मे गोलीया से खेलब दुशमनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
अँखिया देखवा जनी हमरे भारत देशवा |
 फागुन मे फाड़ डेब तोहरो सिनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
हम हिन्दुस्तानी हमके ललकारा जनी बाबू |
 खुनवा से रङ्गब टोहरों फगुनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
अबो त सुधार जा माना हमरो बतिया |
 घुसी घरवा उजाडब तोर मकनवा हो |
सिमवा पर ठाड़ हम जवनवा | 
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पेश ए ख़िदमत हैं इक नई  ग़ज़ल


ये  मोहब्बत  इतनी  भी  आसान  नही थी।
इसकी  हमकों  भी  पूरी पहचान  नही थी।


अब   तो   मानूँगा  सारी   ग़लती  मेरी  हैं।
वैसे  वो  भी  तो  इतनी  नादान  नही  थी।


ठीक ज़रा भी होता ये दर्द ए दिल जिससे।
उस  नुस्ख़े  की  भी कोई  दूकान नही थी।


वो महलों की जीनत हैं उन्हें क्या मालुम।
ये इज्ज़त कोई बिकता  सामान नही थी।


खूब खिला रहता था हर रुख का नूर यहाँ।
पहले  ये  बस्ती  इतनी  सुनसान  नही थी।


मुफ़लिस हूँ पर इक दिन सब दुरुस्त कर दूँगा।
झोपड़ियाँ   कोई   मुक़र्रर  मकान   नही  थी।


हर रोज़ 'अभय' शिद्दत  से सम्हाला इसको। 
ये  जिंदगी  कोई  उनकी  एहसान  नही थी।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

इक मतला दो शेर


ये  मोहब्बत  इतनी  भी  आसान  नही थी।
इसकी  हमकों  भी  पूरी पहचान  नही थी।


अब   तो   मानूँगा  सारी   ग़लती  मेरी  हैं।
वैसे  वो  भी  तो  इतनी  नादान  नही  थी।


ठीक ज़रा भी होता ये दर्द ए दिल जिससे।
उस  नुस्ख़े  की  भी कोई  दूकान नही थी।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PNDIT

श्री राम चरित मानस अनुसार कलयुग के प्राणियों का वर्णन


जे जनमे कलिकाल कराला।
करतब बायस बेष मराला।।
चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े।
कपट कलेवर कलिमल भांडे।।
बंचक भगत कहाइ राम के।
किंकर कंचन कोह काम के।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जिनका जन्म कठिन कलियुग में हुआ है, जिनकी करनी कौवे के समान है और वेश हँस का है, जो वेदमार्ग को छोड़कर कुमार्ग पर चलते हैं, जिनका कपट का ही शरीर है और कलियुग के पापों के पात्र हैं।जो प्रभुश्री रामजी के भक्त कहलाकर लोगों को ठगते हैं और जो लोभ( स्वर्ण अर्थात धन ),क्रोध और काम के दास हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
   कलियुग को अन्य तीनों युगों से अधिक कठिन व कराल कहा गया है।गो0जी ने उत्तरकाण्ड में कलियुग के अवगुणों का विस्तृत वर्णन किया है।दोहा सँ0 97 से 101 तक।यथा,,
कलि केवल मल मूल मलीना।
पाप पयोनिधि जन मन मीना।।
सो कलिकाल कठिन उरगारी।
पाप परायन सब नर नारी।।
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन।
कोउ नहिं मान निगम अनुसासन।।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी।
कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।।
जो कह झूँठ मसखरी जाना।
कलिजुग सोइ गुनवन्त बखाना।।
 करतब बायस बेष मराला कहने का तात्पर्य यह है कि वेशभूषा तो हँस अर्थात सज्जनों की है और कार्य कौवे अर्थात दुर्जनों के हैं।यही कपट है और चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े यही कलिमल है।वेशभूषा से वंचक अर्थात ठगों को भी समाज में सम्मान मिल जाता है लेकिन अन्त में भेद खुलने पर उनका पतन ही होता है।यथा,,,
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ।
बेष प्रताप पूजिहहिं तेऊ।।
उघरहिं अंत न होइ निबाहू।
कालनेमि जिमि रावन राहू।।
  वेशभूषा से तो वे रामभक्त बनने का स्वाँग करते हैं परन्तु वास्तव में वे लोभ,काम व क्रोध के दास हैं।काम क्रोध लोभ व मोह  का दास होना ही कलियुग के प्रपंच है।कवितावली में गो0जी कहते हैं---
साँची कहौं कलिकाल कराल मैं ढारो बिगारो तिहारो कहा है।
काम को कोह को लोभ को मोह को मोहि सों आनि प्रपंच रहा है।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


अतिवीर जैन पराग, मेरठ

महाशिवरात्रि :-


ओम जय भोलेभंडारी,
महिमा तुम्हरी अपरम्पार,
सुर असुर,देव नर किन्नर,
सब गावे महिमा न्यारी.


शिव,शंकर, भोले,त्रिपुरारी,
भस्म लपेट,बाघम्बर पहना,
गौरी को ब्याहने चले,
कर बसहा पर सवारी.
ओम जय भोले भंडारी.


उमा का तप आज रंग लाया,
अघोरी आज ब्याहने आया,
भूत पिशाचों की बारात है लाया,
महाशिवरात्रि पर्व मनाया.
ओम जय भोले भंडारी.


पार्वती संग जब आप विराजौ,
छवि लगती अति प्यारी,
गणेश कार्तिकेय मध्य बिराजे,
आप सब जग के पालनहारी.
ओम जय भोले भंडारी.


स्वरचित,अतिवीर जैन पराग, मेरठ


सुरेन्द्र मिश्र

महाशिवरात्रि के पावन दिवस पर भगवान शिव के चरणों में,भजन के रूप में श्रद्धा सुमन।
 प्रातकाल ईश्वर सुमिरन कर धरती मां को करो प्रणाम।
प्रारम्भ करो अपनी दिनचर्या लेकर पावन शिव का नाम।
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
आशुतोष शिव मूर्ति बिठा ले प्राणी अपने मन के अंदर
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
भोले शंकर हे चन्द्रभाल है नील कंठ में ब्याल माल।
हर हर शम्भू महादेव देव लोक मानस मराल
आक पुष्प अर्पित चरणों में हे परमेश्वर हे जगदीश्वर।
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर
मल्लिकार्जुन हे वैद्यनाथ श्री सोमनाथ हे विश्वनाथ।
भीमशंकर जय रामेश्वर महाकालेश्वर केदारनाथ
ओंकारेश्वर त्रयम्बकेश्वर जय घृष्णेश्वर जय नागेश्वर।
        जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
द्वादश ज्योतिर्लिंग तुम्हारे नष्ट करें पातक अघ सारे।
आशुतोष प्रभु औघड़ दानी तुम को सारे भक्त पुकारे।
जय बम-भोले जय त्रिपुरारी जय त्रिनयन सृष्टि प्रलयंकर
          जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
नाम सदाशिव अतिशय पावन मुक्ति प्रदायक पाप नसावन।
हे गौरी पति हे त्रिशूल पति भोलेनाथ भक्त मनभावन।
सुर नर असुर यक्ष गंधर्वा विल्व पत्र पूजित गंगाधर।
         जय शिवशंकर जय शिवशंकर।
               सुरेन्द्र मिश्र


चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र " राय बरेली उ० प्र०

त्रिभंगी छंद 



जय जय शिव शंकर,जय प्रलयंकर, जय अभ्यंकर, नग वासी !
हे अज विश्वेश्वर, जगत महेश्वर, हे कालेश्वर, सुख राशी !!
हे त्रिगुणातीता, परम पुनीता ,करहु अभीता,भय हारी !
धरि शीश सुधाकर,हे करुणाकर, भस्म रमाकर, सुख कारी !!


कर भस्म अनंगा ,सिर धरि गंगा,भंग तरंगा, त्रिपुरारी !
गौरी पति शंकर ,प्रभु प्रलयंकार, रूप भयंकर, शिव धारी !!
नागन उर माला ,कटि मृगछाला,दीन दयाला, वृषभ चढ़े !
नाचहिं वैताला, होहिं निहाला ,भूत कराला ,चलत बढ़े !!


चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली उ० प्र०


डा० भारती वर्मा बौड़ाई

वेब पोर्टल में प्रकाशनार्थ 


डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 
9759252537



#महाशिवरात्रि#


शिव को
अपनाना हो 
जीवन में अपने 
तो सर्वप्रथम उनकी 
सरलता अपनाइए 
जैसे हैं 
जीवन में 
वैसे ही बन कर 
हर क्षेत्र में अपना 
कर्तव्य निभाइए 
आडंबर से
रहें दूर सदा 
सबको अपना मान
उन्हें ही बस अपना 
अलंकार बनाइए 
सबके
हृदय में बस 
सुख सारे बाँट कर 
दुख समेट विषपायी
नीलकंठ बन जाइए 
अहंकार 
सारा छोड़ कर 
मन के द्वंद्व भूल कर 
सत्य के प्रकाश में 
दमकते जाइए 
उपवास हो 
मनोयोग से 
सत्य भक्ति भाव से 
मन मंदिर में आज 
शिवरात्रि मनाइए।
————————
 डा० भारती वर्मा बौड़ाई


नवीन कुमार भट्ट नीर ग्राम मझगवाँ पो.सरसवाही जिला उमरिया मध्यप्रदेश

शिव


बैठे शिव कैलाश पे,नीर लगाकर ध्यान।
नंदी भी बैठे यहाँ, बाँट रहे है ज्ञान।।


शिव का सुमिरन कीजिए,शिव जी बडे महान।
इनके कारण ही टिक,सारा नीर जहान।।


भोले लगते है सदा,रखिये मन विश्वास।
शिव करते हर कामना,वाणी रखें मिठास।।


शिव बैठे कैलाश पे,नीर लगाये ध्यान।
इनकी लीला है अजब,नीर रहे अनजान।।


हर पत्तों पे शिव बसे,महिमा बड़ी अपार।
मन में शिव आराधना,लाये सदा बहार।।


शिव को पूँजे राम है,लेकर मानव रूप।
शिव को सदा मनाईये,इनकी कृपा अनूप।।


भाँग धतूरा चरस सम,गाँजा दारू संग।
अर्पण शिव को कीजिए, पुष्पित रंग बिरंग।।


नीलकण्ठ शिवरूप हैं,शिव ही भोलेनाथ।
जो जैसी करनी करे,वैसे देते साथ।।


साँप विराजे कंठ में,बिच्छू कुंडल कान।
भूत प्रेत संग दोस्ती,करते विष का पान।।


सच्चे दिल से कीजिए,शिव मंत्र का जाप।
हर राहों पे जीत हो,जग में बढ़िये आप।।


नवीन कुमार भट्ट नीर
ग्राम मझगवाँ पो.सरसवाही जिला उमरिया मध्यप्रदेश


डॉ शेषधर त्रिपाठी'शेष'                    पुणे, महाराष्ट्र

सभी कविवरों को महाशिवरात्रि की असीम शुभकाना


       भोला भंडारी
      --------------------
मेरा भोला है भंडारी,
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी
होके नंदी पर सवार
करे भक्तों की रखवारी।मेरा भोला है भंडारी।।


माथे पे चंदा सोहे,
भक्तों को खूब मोहे।
कंठ में भुजंग धारे
नीला-नीला कंठ मोहे
सिर पर अमृत गंगा वारी।
मेरा भोला है भंडारी।
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी
होकर---------------------
------------------रखवारी।


आया सावन का महीना
झूमे शंकर का दीवाना
पूजे सारे देवी देवा शम्भूनाथ को
भोलेनाथ को।
डम-डम डमरु हाथ बिराजे
संग में पार्वती हैं प्यारी।मेरा भोला है भंडारी।
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी।
होकर ---------------------
--------------------रखवारी।।


सारे जग का है वो देवा,
करते निशदिन उसकी सेवा।
करते नैय्या सबकी पार,
शम्भूनाथ हो,भोलेनाथ हो।
वो तो भस्म, त्रिनेत्र हैं धारी
जिसकी सुंदर छवि है न्यारी
मेरा भोला है भंडारी,
जिसकी दुनिया न्यारी-न्यारी।
होकर -----------------------
--------------------रखवारी।
मेरा भोला है भंडारी-------।।
         ©डॉ शेषधर त्रिपाठी'शेष'
                   पुणे, महाराष्ट्र


अभिलाषा देशपांडे लघुकथा

घाव 
    एकबार  मथुरा में  दो अजनबी एक दुसरे से फेसबुकपर मिले और देखते देखते जान पहचान बढी! एक दुसरे से रोजाना बाते करना और मिलनेका सिलसिला शुरु हो गया! 
     महक राजन पर अंधविश्वास करती थी! राजन भी उसको हर बात बताने लगा! ऐसेही एक दिन वे दोनो मिले और उनमें एक अनचाही बात होती हैं!
      उसके बाद राजन का फोन बंद  आता हैं! महक उसको मँसेज करती हैं, पर वे उसका रिप्लाय नहीं देता हैं! 
      ईधर  महक की जीवन में तुफान आता हैं! वो प्रेगनंट हो जाती हैं! उसके माता पिता को कुछ समझनहीं आता की क्या करे? मा पिता उसे पुछताछ करते हैं , वे कुछ बता नहीं पाती हैं! क्योकि राजन ने अपना नंबर बदल दिया होता हैं! 
महक अपना ख्याल नहीं रख पाती हैं , और.अपने बच्चे को खो देती हैं! 
इस घटना से उसके दिमागपर असर होता हैं! उसके माता- पिता उसे इलाज के म्हैसुर  शहर ले जाते हैं! वहा मोहन नामका डाँक्टर उसका इलाज करता हैं!  
मोहन को वो अच्छी लगने लागती हैं! 
     मोहन की भी बिवी की मौत हुई होती हैं!  महकके हालत सुधरने लगती हैं, और मोहन उसे प्यार करने लगता हैं! मोहन महक के माता- पितासे महक का हात माँगता हैं! उसके माता- पिता हामी भर देते हैं! महक भी उसे चाहने लगती हैं , लेकिन उसके साथ जो  हो चुका होता हैं उससे वे सांशक होती हैं! वे अपनी बात सबके सामने रखती हैं! मोहन उसके हर सवाल का  जवाब देता हैं, और वे शादी के लिये हामी भर देती हैं! 
     दोनो को एक दुसरेमें दोस्त मिल जाता हैं, जो हर हाल में साथ दे सकता हैं! 
      तो दोस्तो इस कहानी से मैंने लोगोकी नियत और सच्चे प्यारको पहचाननेकी  नजर यह दिखानेकी कोशिश की हैं!©®
अभिलाषा.देशपांडे 


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जीवन परिचय *** डॉ प्रताप मोहन "भारतीय" 


जन्म -15 जून1962 को कटनी (म.प्र.) 
पिता का नाम - श्री गोविन्दराम मोहन
माता का नाम - श्रीमती ईश्वरी देवी
शिक्षा - बी. एस. सी., आर. एम. पी.,एन. डी., बी. ई. एम. एस. , एम. ए.,एल. एल. बी.,सी. एच. आर.,सी. ए. एफ. ई.,एम. पी.ए.
सम्प्रति - दवा व्यवसायी
संपर्क - 308,चिनार ए - 2,ओमेक्स पार्क  वुड,चक्का रोड , बद्दी - 173205(हि. प्र.)
चलित दूरभाष-9736701313,9318628899 ,
अणू डाक - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM
लेखन की विधाए - क्षणिका ,व्यंग्य लेख , गजल , साहित्यक गतिविधीयाँ - राष्ट्रीय स्तर के पत्र , पत्रिकाओ में रचनाओ का प्रकाशन
प्रकाशित कृतियां - उजाले की ओर (व्यंग संग्रह)
पुरस्कार एंव सम्मान
(1) साहित्य परिषद् उदयपुर राजस्थान द्वारा "काव्य  कलपज्ञ" की उपाधि से सम्मानित
(2) के.बी. हिन्दी साहित्य समिति बदांयू ((उ. प्र.) द्वारा "हिन्दी भूषण श्री" 2019 की उपाधि से सम्मानित
(3) नालागढ़ साहित्य कला मंच हि. प्र. द्वारा "सुमेधा श्री 2019" सम्मान प्राप्त ।


काव्य रँगोली नेह सनेह ऑनलाइन प्रतियोगिता परिणाम 2020

नेह -सनेह प्रतियोगिता में प्रविष्ट सभी रचनाओं के गहन अवलोकन के बाद, रँगोली टीम द्वारा चयनित रचनाकारों की सूची के गहन अध्यन के उपरांत आदरणीय कवि समाजसेवी विक्रम कुमार जी निवासी वैशाली बिहार द्वारा दस सम्माननीय रचनाकारों की एक सूची तैयार की गयी है । चूंकि, प्राप्त रचनाओं में अधिकांश रचनाएं त्रुटिपूर्ण एवं मात्रादोष युक्त पाईं गईं । इस लिए उन रचनाओं को नजर अंदाज कर दिया गया है । परन्तु उनमें सारगर्भित रचनाओं का समावेशन भी देखने को मिला । वैसे रचनाकार जिनकी रचनाएं सारगर्भित, संदेशपरक एवं भावपूर्ण थीं तथा जिनमें कोई त्रुटि न थी , वैसे शीर्ष दस लोगों की रचनाएं निम्नांकित हैं हमारा उद्देश्य शुद्ध लेखन का है अतः पुरस्कृत होना न होना प्रतिष्ठा से न जोड़कर अच्छा टंकण त्रुटि से मुक्त लेख का प्रयास करे- 
मुख्य निर्णायक
कवि विक्रम कुमार
 वैशाली बिहार 
मो0 +919709340990
काव्य रँगोली टीम-----
1. डॉ . शोभा दीक्षित " भावना"
2. भरत नायक " बाबूजी"
3. सुरेश चंद्र "सर्वहारा"
4. नीलम मुकेश वर्मा 
5. सुरेंद्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक ati कानपुर
6. चंद्रपाल सिंह
7. अभिजित त्रिपाठी
8. अनामिका श्रुति सिंह
9. विजय कनौजिया
10. सीमा शुक्ला अयोध्या


 


प्रदीप कुशवाह आत्मानन्द अतिविशिष्ट सम्मान से होंगे सम्मानीति

उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 1 लाख रुपये नकद एवम अति विशिष्ट सम्मान ।कवयत्री महादेवी वर्मा पुरस्कार हेतु श्री कुशवाह जी का चयन उनकी पद्य कृति अमृतांगन के लिए 15 मार्च 2020 को यशपाल सभागार उ0प्र0 हिंदी संस्थान में प्रदान किया जायेगा।श्री प्रदीप कुशवाह जी काव्य रंगोली से संस्थापन के समय से जुड़े हुए है । आप वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कृषि निदेशक कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके है।एवम आप ने अपना सम्पूर्ण समय शिक्षा साहित्य और समाजसेवा को अर्पित कर दिया है तथा आज के समाज मे प्रेरणा स्रोत के रूप में उदीप्तमान हो रहे है।


लखनऊ बाराबिरवा रायबरेली रोड पर निवास करने वाले महनीय व्यक्तित्व आप ने षटपद नामक हिंदी को एक नई विधा तो दी ही अनेक ग्रन्थों की भी रचना की जो कि हिंदी साहित्य में मिल का पत्थर है।आप ने धर्म और आध्यात्मिक शिक्षक बूते अपने हजारो शिष्यों की जीवन का सार बतलाते हुए उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु पथ प्रदर्शन कर रहे है ।


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प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 1 लाख रुपये नकद एवम अति विशिष्ट सम्मान ।कवयत्री महादेवी वर्मा पुरस्कार हेतु श्री कुशवाह जी का चयन उनकी पद्य कृति अमृतांगन के लिए 15 मार्च 2020 को यशपाल सभागार उ0प्र0 हिंदी संस्थान में प्रदान किया जायेगा।श्री प्रदीप कुशवाह जी काव्य रंगोली से संस्थापन के समय से जुड़े हुए है । आप वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कृषि निदेशक कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके है।एवम आप ने अपना सम्पूर्ण समय शिक्षा साहित्य और समाजसेवा को अर्पित कर दिया है तथा आज के समाज मे प्रेरणा स्रोत के रूप में उदीप्तमान हो रहे है।


लखनऊ बाराबिरवा रायबरेली रोड पर निवास करने वाले महनीय व्यक्तित्व आप ने षटपद नामक हिंदी को एक नई विधा तो दी ही अनेक ग्रन्थों की भी रचना की जो कि हिंदी साहित्य में मिल का पत्थर है।आप ने धर्म और आध्यात्मिक शिक्षक बूते अपने हजारो शिष्यों की जीवन का सार बतलाते हुए उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु पथ प्रदर्शन कर रहे है ।


काव्य 


 


 


प्रदीप कुमार कुशवाह आत्मानन्द लखनऊ सम्मानीति होंगे।

प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 1 लाख रुपये नकद एवम अति विशिष्ट सम्मान ।कवयत्री महादेवी वर्मा पुरस्कार हेतु श्री कुशवाह जी का चयन उनकी पद्य कृति अमृतांगन के लिए 15 मार्च 2020 को यशपाल सभागार उ0प्र0 हिंदी संस्थान में प्रदान किया जायेगा।श्री प्रदीप कुशवाह जी काव्य रंगोली से संस्थापन के समय से जुड़े हुए है । आप वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कृषि निदेशक कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके है।एवम आप ने अपना सम्पूर्ण समय शिक्षा साहित्य और समाजसेवा को अर्पित कर दिया है तथा आज के समाज मे प्रेरणा स्रोत के रूप में उदीप्तमान हो रहे है।


लखनऊ बाराबिरवा रायबरेली रोड पर निवास करने वाले महनीय व्यक्तित्व आप ने षटपद नामक हिंदी को एक नई विधा तो दी ही अनेक ग्रन्थों की भी रचना की जो कि हिंदी साहित्य में मिल का पत्थर है।आप ने धर्म और आध्यात्मिक शिक्षक बूते अपने हजारो शिष्यों की जीवन का सार बतलाते हुए उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु पथ प्रदर्शन कर रहे है ।


काव्य रंगोली टीम


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

...........तन्हाइयों के शहर में.............


तन्हाइयों के शहर में दोस्त नहीं मिलते।
स्वार्थियों केशहर में दोस्त नहीं मिलते।।


हर शहर है आततायिओ के गिरफ्त में ;
इनलोगो केशहर में दोस्त नहीं मिलते।।


जिधर देखें,एहसान फरामोश पटे पड़े ;
ऐसों के शहर  में  दोस्त  नहीं  मिलते।।


हर शहर में गद्दारों का ही है बोलबाला;
गद्दारों के शहर  में दोस्त  नहीं मिलते।।


आए दिन दगाबाजी  से रहते  हैं  त्रस्त ;
दगाबाजों केशहर में दोस्त नहीं मिलते।


हर तरफ कमिनापनी में आपाधापी है ;
कमीनों के शहर में दोस्त नहीं मिलते।।


अब तो उठा ले ऊपरवाले ऐ "आनंद" ;
बेईमानों के शहर में दोस्त नहीं मिलते।


------- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


   डा.नीलम

*मैं बावरी हो गई*
*******************
सारी बातें खत्म हुईं
जब मेरी धड़कन
तेरी धड़कन हुई,


लबों पे थिरकती 
आँखों में तैरती ही
रह गयी
तुझसे कुछ 
कहने की चाहत,
लब मेरे ,तेरे लबों से
जब छुए


थिर हो गये
ख्वाब सारे
कदम लड़खड़ाए मेरे
इक सुरुर-सा
रुह पर छाने लगा
जबसे मेरी साँसे
तेरी साँसों में गुम हुई।


मैं बावरी हो गई
ओढ़ चुनरिया
तेरे नाम की।


     डा.नीलम


सुनीता असीम

बुराई की अकेले ही खिलाफत क्यूँ नहीं करते।
अगर शिकवा किसी से हो शिकायत क्यूँ नहीं करते।
***
नहीं जालिम अगर राजा तो उसका साथ भी देना।
बगावत की आवाजों पे मलामत क्यूं नहीं करते।
***
सभी का है वतन अपना चमन इसको बना देंगे।
मुहब्बत है वतन से तो मुहब्बत क्यूँ नहीं करते।
***
नहीं है फायदा कोई यूँ आपस में झगड़ने का।
अगर सम्मान है इसका जियारत क्यूँ नहीं करते।
***
सही क्या है गलत क्या है डगर सच की बताकर यूँ।
सभी माँ-बाप बच्चों को हिदायत क्यूँ नहीं करते।
***
सुनीता असीम
२०/२/२०२०


कालिका प्रसाद सेमवाल        मानस सदन अपर बाजार        रूद्रप्रयाग(उत्तराखंड)

मधुर स्मृति
*********
      आज मैं तुम्हें न पा सका,
      इसलिए न गीत गा सका।
बहार फूल तो खिले मगर,
मिले उसे भ्रमर न हो‌ अगर,
तो आश क्या कि फूल की उमर,
हंसे नियति हिलोर में लहर।


        जोहता रहा तुम्हे सदा,
         उठी कसक न मैं भगा सका।


लगी आज टकटकी  उधर,
चली गई थी रूठकर जिधर
हुआ हताश आज मैं मगर,
रहे न याद प्यार के प्रहर,


      ‌ रही सदा सुदूर प्राण, तुम
       इसीलिए तुम्हें न पा सका।


पी रही हैं जिन्दगी जहर,
घिर रही है वेदना घहर,
कट रही है व्यर्थ ही उमर,
निराश दीप जल रहा लहर,


       कुविघ्न पर कुविघ्न झेलता,
       पुकारता तुम्हें न पा सका।।
****************************
      कालिका प्रसाद सेमवाल
       मानस सदन अपर बाजार
       रूद्रप्रयाग(उत्तराखंड)
        पिन 246171


_प्रखर दीक्षित*    *फर्रुखाबाद

गीत


गीत


_आज फिर........_ 


आज फिर देर थी, वो रूठी लगी।
मीठे ताने सुने, वो अनूठी लगी।
 _आज फिर........_ 


थी शरद रात पूनम, चंद्रमा नॉन खिला।
मौन था जब मुखर, चैन दिल को मिला ।।
होंठ कंपन बढ़ा, सुर्ख रंग भी चढ़ा,
बाद बरसों के  वो, नव वधूटी लगी।।
_आज फिर........_ 


कभी जेठ तपती कभी मधुमय अमिय।
कभी हमदम बने, कभी प्रेमिल सा पिय।।
वो संवारे सदा, पूर्ण करती वदा,
प्रेम प्रस्ताव पाकर अनूठी लगी।।
_आज फिर........_ 


वो सहारा सलाहकार साथी परम।
प्राण प्रण से निभाती गृहस्थी धरम।।
कोई कुछ भी कहे, फूल कांटे सहे,
तिय समर्पण में दुनियाँ झूठी लगी ।।
_आज फिर........_ 


बन के पूरक रहे कट गया यूँ सफर।
मन मयूरा सुहाना वो तारे डगर।। 
कभी मैंने कहा, कभी उसने कहा।
कभी नमकीन प्रेयसी मीठी लगी।।
_आज फिर........_ 



 *_प्रखर दीक्षित*
   *फर्रुखाबाद*_


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