प्रिया सिंह लखनऊ

शहर की सड़कों पर वो अदाकारी दिखाती है 
पतली सी रस्सी पर वो कलाकारी दिखाती है


नाजुक से पैरों में उसके छाला मोटा दिखता है
मासूमियत के पीछे से वो होशियारी दिखाती है


चढ़ कर रस्सी पर आसमान छूने का हौसला है
नज़ाकत बेच कर यहाँ वो रोजगारी दिखाती है


छिप छिपा कर कभी पढ़ते भी देखते हैं  उसे
भविष्य के साथ अपने ईमानदारी दिखाती है 


गंवार भले है वो दुनिया भर की नजरों में आज
नन्हें कदमों से चल कर दुनियादारी दिखाती है 


 


Priya singh


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांक: २४.०२.२०२०
वार: सोमवार
विधा: गीत
विषय: नीर
शीर्षक: मैं आंखों का नीर हूं
मैं आंखों का नीर हूं,
मैं जीवन का सार हूं,
नित अविरल निर्मल बहता जल,
ममता मधुरिम प्रीत बहार हूं।
अश्क नैन बनकर निर्झर मैं
प्रीत मिलन इज़हार हूं,
विरह राग अनुराग बिम्ब बन ,
साजन मन उपहार  हूं। 
हरित भरित वसुधा कर सिञ्चित,
काली घटा जलधार हूं।
नीर नैन रसधार सुधा बन,
ग़म खुशियों का एतवार हूं,
जीवन हूं मनमीत बना मैं ,
तन जीवन संचार हूं।
नीर नयन मां पूत प्यार का,
बन गंगा पावन  स्नान हूं। 
भींगी पलकें  नीर नैन से ,
चाह मनौती मनहार हूं,
निश्चल नित अन्तस्तल भावित
स्नेहिल अपनापन साथ हूं।
रागी मैं अनुरागी हम दिल,
कशिश इश्क अहसास हूं ,
नीर बना मैं दुख का बदला, 
मानवता  आधार हूं।
बच्चों की आंखों का मोती ,
इच्छापूरक  हथियार हूं,
वशीकरण प्रियतम भावुक मन ,
नीर चक्षु बन करुणाकर अवतार हूं। 
मिलन प्रीत अरमान बना मैं ,
कामुकता  प्रतीकार हूं , 
विरहानल तपती ज्वाला रति ,
प्रिय कामदेव  अभिसार हूं।
परिधानों से सजी अलंकृत,
नैन अश्क कजरार हूं ,
मादक मैं मोती की बूंदे ,
उर त्रिवली का जलधार हूं।
भींगी कंचुकी मिलन आस में ,
नित चारु  हृदय  उद्गार  हूं , 
मानक हूं मनमीत प्रेम का ,
धवल  चन्द्र    शृंगार हूं। 
नीर क्षीर सागर सरिता जल,
पय तोय उदक जीवन समझो,
सप्त सरित् का पूत सलिल मैं , 
बह श्रान्त क्लान्त सुखसार  हूं । 
माध्यम नित पीड़ित अवसीदित, 
मझधार  नीर पतवार हूं।
खुशियों का मुस्कान बना मैं ,
माध्यम प्रकटन प्रतिहार हूं। 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


सुनील चौरसिया'सावन' प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली, पश्चिम कमेंग, अरूणाचल प्रदेश।

 


कविता- फिसल गयी जिंदगी...


समय की रेत पर फिसल गयी जिंदगी।
देखते ही देखते में ढल गयी जिंदगी।।


करवटें बदल-बदल सोया निशदिन,
अंत में करवट बदल गयी जिंदगी।।


दुल्हन जस सजाकर रखा था इसे,
हाथों से यूं ही निकल गयी जिंदगी।।


हवा से बचा कर रखा था सुरक्षित ,
रखे-रखे बर्फ जस गल गयी जिंदगी।।


मौत के ताप से तप कर 'सावन',
मोम जस यूं ही पिघल गयी जिंदगी।।


हर पल जिंदगी को छलता रहा,
अंत में मुझको ही छल गयी जिंदगी।।


समय की रेत पर फिसल गयी जिंदगी।
देखते ही देखते में ढल गयी जिंदगी।।


          - सुनील चौरसिया 'सावन'
            अमवा बाजार, रामकोला,
            कुशीनगर, उत्तर प्रदेश।
            9044974084, 
            8414015182


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"परछाई"* (दोहे)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
●अंतर्मन का बोध है, परछाई-प्रतिभास।
मौन लगे संकेत यह,
जाल-जगत परिवास।।


●मान कलाकृति प्रकृति की, परछाई भव-भान।
साथ सुसज्जित सर्वदा, मूर्त रूप सम जान।।


●परछाई क्षण भूत सम, होता है आभास।
व्यापित भय हिय हो कभी, दूर कभी कब पास।।


●परछाई लगती कभी, गुप्त भाव गढ़-गूढ़।
उत्साहित करती हिया, लागे कब मन-मूढ़।।


●परछाई पहचान बन, दे कब सुख कब शोक।
छाया-प्रतिछाया छले, जागृत जैविक लोक।।


●मेरी परछाई कभी, मुझसे करे सवाल।
कौन कहाँ तुम और मैं? जानो जग-जंजाल।।


●मेरी परछाई लगे, मुखरित मानस मौन।
अन्य किसी का भान-भय, हावी मुझ पर कौन??


●पति-पत्नी हैं साथ में, छाया-पूर्ण-प्रमाण।
 पूरक दोनो आप हैं, एक लगें दो प्राण।।


●परछाई में है लगे, संचित अद्भुत भाव।
संशय सह संभावना, चालित जीवन-नाव।।


●पूर्ण ब्रह्म परछाइयाँ, जीवात्मा जग जान।
पूरक पाये पूर्णता, मानव मन मनु मान।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" एतिहासिक नगरी हांसी , हिसार , हरियाणा ।

गज़ल


दिल में पल-पल जो समाया जाए ।
फिर खुदा उसको बताया जाए ।।


बस चुका है दिल की धड़कन में जो ,
किस तरह से उसको भुलाया जाए ।


चैन आए साथ से गर तुझको ,
खूब अपनापन जताया जाए ।


जी वो तो है तैयार मरने को ,
खुद को भी तो आजमाया जाए ।


कारगर हो गर दुआ इस दिल की ,
क्यों नहीं फिर सर झुकाया जाए ।


शाम जैसे हो चली , पीने का ,
बस बहाना फिर बनाया जाए ।


कर चुके तोबा नहीं पिएंगे ,
कौन मुंह से कब उठाया जाए ।


*रचित* ---- 08 - 09 - 2009 
मो. 09992318583


नूतन लाल साहू

अन्तिम सत्य
स्वीकार करो,प्रभु की सत्ता को
मानव तू, सर्वशक्तिमान नहीं है
सदा करो,भक्ति प्रभु की
धुन में हो जा,मतवाला
मस्त हुये,प्रहलाद को देखो
खंभे में ईश्वर को दिखा डाला
स्वीकार करो प्रभु की सत्ता को
मानव तू,सर्वशक्तिमान नहीं है
समझा मन को,मीठा बोल
वाणी का, बाण बहुत बुरा है
दीनानाथ दयानिधि स्वामी
भक्तो का दुख़, हर लेता है
स्वीकार करो प्रभु की सत्ता को
मानव तू,सर्वशक्तिमान नहीं है
मस्त हुए तुलसी को देखो
रामायण को,रच डाला
मस्त हुए हनुमान को देखो
उर में राम को,दिखा डाला
स्वीकार करो,प्रभु की सत्ता को
मानव तू सर्वशक्तिमान नहीं है
अति दुर्लभ,मानव तन पाकर
खो मत जाना, स्वारथ के संसार में
प्यारे प्रभु से,यदि प्रीति करे तो
हो जायेगा, भव सागर पार
स्वीकार करो,प्रभु की सत्ता को
मानव तू,सर्वशक्तिमान नहीं है
जगत में जीवन है, दिन चार
सुमिरन कर ले,हरिनाम
सत्य धर्म से करो कमाई
तेरा होगा,सूखी संसार
स्वीकार करो प्रभु की सत्ता को
मानव तू,सर्वशक्तिमान नहीं है
नूतन लाल साहू


     कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)


     कुमार कारनिक
 (छाल, रायगढ़, छग)
""""""""
     मनहरण घनाक्षरी
       *मेरी परछाई*
        """""""'"""''"""""
मेरी     परछाई    यहां,
बैठ     सुखदाई   यहां,
देता  फूल - फल  सब,
       सुकून मिलता है।
🌳
बीज   से   पेड़  तैयार,
बन   जाओ  होशियार,
मुझसे  ही  तो  दुनियां,
     सासों मे बसता है।
🌴
नही   काटो  बंधु  मुझे,
मेरे  लिए  क्यों  उलझे,
मुझसे   ही  आसियानें,
        जंगल कहता है।
🌳
है पति पत्नी की छाया,
है सब रिश्तों की माया,
तेरी     मेरी     परछाई,
        मन में बसता है।


              🙏🏼
                 *******


रेनू द्विवेदी लखनऊ

"गीत"


वेदना संवेदना तुम,बंदगी परमार्थ हो तुम! 
वायु हो तुम प्राण हो तुम, प्रेम का भावार्थ हो तुम !


लिख रही हूँ मै तुम्हे ही,
मुक्त होकर बन्धनों से!
पढ़ रही हूँ मै तुम्हे ही,
लो सुनो खुद धड़कनो से!


शब्द के ब्रह्माण्ड में प्रिय, दिव्य सा शब्दार्थ हो तुम !
वायु हो तुम प्राण ------


काव्य की निज साधना में,
 प्रेम है प्रियतम तुम्हारा!
मृत्यु का अब भय नही है,
मिल गया मुझको किनारा!


प्रेम पथ पर चल पड़ी हूँ, जिंदगी के पार्थ हो तुम !
वायु हो तुम प्राण की--------


प्रेम ही है प्राण -धन औ,
धर्म  का भी सार है ये!
प्रेम जीवन में नही यदि,
तो वृथा संसार है ये!


स्वार्थमय है यह सकल जग, सिर्फ प्रिय निस्वार्थ  हो तुम !
वायु हो तुम प्राण --------


भूमि से लेकर गगन तक,
प्रेम का वातावरण है!
अब प्रणय के गीत गूंजे,
प्रेम का ही व्याकरण है!


जो पढ़े उसको विदित हो, सृष्टि का निहितार्थ हो तुम!
वायु हो तुम प्राण ------- 


    "रेनू द्विवेदी"


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक (स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना 
दिनांक: २४.०२.२०२०
वार: सोमवार
विषय: आराधना
विधा: गीत 
शीर्षक: 🌹आराधना मां भारती 🌹
आराधना  नित  साधना  सुंदर  सुभग  मां  भारती,
स्वप्राण  दे  सम्मान  व  रक्षण   करें  बन   सारथी। 
समरथ बने  चहुंओर  से जयगान  गुंजित यह धरा,
हो श्यामला कुसमित फलित नित अन्नदा भू उर्वरा।
आराधना नित साधना ....


जीवन वतन बन शान हम अरमान हैं  नित राष्ट्र के,
उत्थान हो विज्ञान का अनुसंधान नव कृषि भारती।
शिक्षा सदा सब जन सुलभ नैतिक सबल मानव बने,
समरस सुखी अस्मित मुखी प्रमुदित करें मां आरती।
आराधना नित साधना .... 


निर्भेद नित समाज हो बिन जाति धर्म भाषा विविध,
चलें प्रीति सब सद्नीति पथ संकल्प दृढ़ संकल्पना।
सीमा सतत् रक्षण यतन तन मन समर्पित  हो वतन,
रूहें कंपे  द्रोही वतन आतंक पाप खल नर वासना।
आराधना नित साधना ....


दुर्गा समा निर्भय सबल महाशक्ति बन विकराल  हो,
नारी  सतत  बहुरूपिणी जगदम्ब  वधू भगिनी सुता।
सम्पूज्य नित आराध्य जग चिर देव दानव मनुज हो,
कोमल हृदय भावुक प्रकृति ममता मनोहर भाषिता। 
आराधना नित साधना ....


न दीन हो बलहीन जग सब शिक्षित सबल सुख सम्पदा
निर्भीत मन निज  कर्म रथ चल निज ध्येय पथ पर  बढ़े।
मर्यादित विनत सदाचार युत संस्कार  शुचि जीवन  बने।
श्रवण चिन्तन मनन भावन वाणी प्रकटिता स्नेहिल प्रदा।
आराधना नित साधना .... 


धारा बहे  अविरल  वतन  नित  सद्भाव  समरस  निर्मला,
हो नाश  सब  विभ्रान्त जन  विद्वेष  लालची मन  बावला।
जीवन बने भारत उदय सद्भक्तिमय लक्ष्य  स्नेहिल सर्वदा,
आएं मिलें जन-गण-वतन पूजन करें आराधना मां भारती।।
आराधना नित साधना .... 


जनतंत्र  हो  गुंजित  जगत  जय  मां   भारती  जयगान  से।
मानक बने सौहार्द का नीति सबल सुख सम्पदा उत्थान से। 
शक्ति भक्ति युक्तिपथ सह विवेक परहित बने जन  चिन्तना,
सत्य शिव सुन्दर मनोरम तिरंगा वतन मां भारती आराधना।
आराधना नित साधना ....
डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

भोजपुरी होली 9 – कारी केसिया के झार |
बहे लागल फागुनी बयार |
मह मह महके अमवा मोजरवा |
छन छन छनके महुआ के कोचवा |
अईले नाही सईया तोहार |
गोरिया कारी केसिया के झार |
पियर सरसो फुला गईली |
हरियर मटर गदराई गईली |
झीनी झीनी बहे पुरवा बयार | 
गोरिया कारी केसिया के झार |
बैरी पवनवा दरदिया बढ़ावे बदनवा |
महुआ के कोचवा चुएला मदनवा |
सजनी चले अचरा के उड़ाय |
गोरिया कारी केसिया के झार |
फुलवा फुला गईले भवरा लोभाई गईले |
चढ़ते फगुनवा सजनवा कोहाई गईले |
सजनी करेली सोरहो सिंगार |
गोरिया कारी केसिया के झार |
बहे लागल फागुनी बयार |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ

नीर:: नैनों से नीर न बहने दो,
          दिल की दिल में,ना रहने दो,


तुम नीर क्षीर विवेकी बन,
नामुमकिन को मुमकिन कर दो,


आशाओं को अपना बल दो,
हौसलों को उड़ाने भरने दो,


हर मुश्किल का हल बनकर,
पंखों को परवाज़ पर चढ़ने दो,


पथ तेरा नभ सा उज्व्वल हो,
मन तेरा नीर सा निर्मल हो,


जनमत का तुझको संबल हो,
परास्त तेरे सब खल दल हों,


तू आगे आगे नित बढ़ता जा ,
बंजर में भी तू फूल खिला,


मत कम होनें दे तू लगन अपनी,
  है गगन अपना धरती अपनी,


तू लांघ जा पर्वत की दरारों को,
अब फांद ले ऊंची मिनारों को,


इतिहास नया तू रचता जा,
बाधाओं से तू लड़ता जा,


तन तेरा तपकर तब सोना होगा ,
तेरा वह रुप सलोना होगा ,


तू देश का लाल कहलायेगा,
 जब शहीद का दर्जा पायेगा| 


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक अनुप्रासिक घनाक्षरी
सादर समीक्षार्थ


झरना सी झरकति, झाँकति झरोखा खूब,
झलकावति    चूनर,  बड़ी    सतरंगी   है।
मुसकान  मृदु  मंजु, मुसकावै  गोरी  खूब, 
कोटिन  मनोज  मानौ, बजावै  सारंगी है।
लहर  सी  लहकि  के,  लट  लहरावति है,
ललाट  पर    चमक,  छायी   बहुरंगी  है।
हइ  हिय  हर्षावति,  हलावै  हवा मा हाथ,
देखति  है  ऐसे  जैसे, जनमो  से  संगी है।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


बेटियाँ
24 /2 /2020



जीवन का श्रृंगार बेटियाँ,
जिद्द की मनुहार बेटियाँ
बन माँ ख़ुद से हमारी,
जीना सिखलाती बेटियाँ।


कर श्रृंगार लुभाती बेटियाँ
छोड़ बाबुल का घर 
पी घर जाती बेटियाँ,
आँगन सुना कर जाती बेटियाँ।


नित नए आयाम बनाती बेटियाँ,
नही कोई काम ऐसा जो 
ना कर पाती बेटियाँ
कहीं रेल चलाती कहीं देश बेटियाँ
बाबुल का दिल धड़काती बेटियाँ।


माँ का स्वाभिमान 
पिता का गरूर होती हैं बेटियाँ
भाई का बन अभिमान
मान बढ़ाती हैं बेटियाँ।


चमन में बहार आती जब
 खिलखिलाती हैं बेटियाँ
भंवरों की गुंजार तितलियों सी
कोमलांग होती हैं बेटियाँ


करो सम्मान इनका सदा
प्यार का सागर है बेटियाँ
करना न तिरस्कार कभी
सृष्टि का करती हैं निर्माण बेटियाँ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

अभी गीत की पंक्तियां शेष हैं
******************
अभी उम्र वाकी बहुत है प्रिये,
तुम न रूठो, अभी ज्योति मेरे नयन में।


इधर कल्पनाओं के सपने  हम सजाते,
उधर भाव तेरे मुझे हैं बुलाते,
यहाँ प्राण , मेरी न नैया रूकेगी,
बहुत बात होंगी न पलकें झुकेंगी,
अभी राह मेरी न रोको सुहानी,
तुम्हीं रूठती हो, नहीं यह जवानी।


अभी गीत की पंक्तियाँ शेष हैं,
रागिनी की मधुर तान मेरे बयन में।


हँसी से न रूठो, हँसी में न जाओ,
विकल आज मानस न हमको रूलाओ,
कहीं तुम न बोलो, क़हीं मैं न बोलूं,
कहीं तुम न जाओ, कहीं मैं न डोलूं,
तुम्हीं रुपसी हो, तुम्हीं उर्वशी हो,
तुम्हीं तारिका हो, तुम्हीं तो शशी हो।


तुम्हें पूजता हूं लगाकर हृदय को,
तुम्हीं रशिम की ज्योति मानस गगन में।


तुम्हें भूलना प्राण सम्भव नहीं है,
तुम्हें पूजना अब असम्भव नहीं है,
प्रिये, तुम नहीं जिन्दगी रूठती है,
कलम रूक रही है, कल्पना टूटती है
न रूठो प्रिय, यह कसम है हमारी,
पुनः है बुलाती नयन की खुमारी।


सजनि, पास आओ हँसो मन मरोड़ो,
सभी साधना-तृप्ति तेरे नमन में।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


एस के कपूर श्री* *हंस

*जरा प्रेम परोस कर तो देखिये।*
*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


रिश्ते  भी  भूखे   होते   हैं
प्यार जता कर तो देखिये।


मिठास  चाशनी  की  जरा
फैला   कर   तो   देखिये ।।


रंग भर  जायेगा  इस  सूख
चुकी      दुनियादारी    में ।


बेवक्त  बेवजह किसी  को
गले लगा कर  तो देखिये ।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मो 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*वसुधैव कुटुम्बकम जैसे*
*संसार की जरूरत है।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।*


तकरार  की  नहीं   परस्पर
प्यार  की  जरूरत  है।


हर बात  पर मन भेद  नहीं
इकरार की जरूरत है।।


मिट जाती हस्ती किसीऔर 
को मिटाने  वाले  की।


वसुधैव   कुटुम्बकम    जैसे
संसार की  जरूरत है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब नॉ  9897071046।।
8218685464।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*विविध हाइकु।।।।।*


तेरा ये रोना
मन के दर्द धोना
बन तू सोना


चाहे न गम
ये दिल मांगे मोर
चाहे न कम


डायरी पन्ना
सुख दुःख तमन्ना
यह रवन्ना


कोयला साथ
कालिख भी लायेगा
जलाये हाथ


पाँव में छाले
मेहनत     मजूरी
खाने के लाले


ये अदाकारी
बाहर का ये चूना
न वफ़ादारी


वक़्त बदले
चेहरे     पलटते
रिश्ते छलके


आराम नहीं
काम में लो आनन्द
थकान नहीं


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*सपने देखोगे तभी तो पूरे होंगें।*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


खुली   आँखों  से   तुम  जरूर
कुछ  ख्वाब   देखो।


दुनिया में अच्छा  ही  और मत
तुम  खराब   देखो।।


बुद्धि   और   सोच   मिल  कर
कर सकते चमत्कार।


पूरे करने को फिर हर मुश्किल
का   जवाब   देखो।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल*       9897071046
                   8218685464


संजय जैन (मुम्बई)

*शर्मिंदा हूँ*
विधा : कविता


मिजाज कुछ बदला बदला सा,
नजर आ रहा है।
मानो दिल में कोई,
तूफान सा छा रहा है।
जो तेरी नजरो में, 
मुझे नजर आ रहा है।
लगता है पूरी रात,
तुम सोये नही हो।
तभी तो चेहरा मुरझाया 
हुआ आज दिख रहा है।।


कोई बात तेरे दिल में,
उथल पुथल मचा रहा है।
जो तेरी दिलकी धड़कनों
को, 
तेजी से बढ़ा रहा है।
जिससे तेरे चेहरे की,
रंगत आज उड़ी हुई है।
जो मेरी बैचेनी को,
भी बढ़ा रहा है।।


माना कि तुम कुछ दिनों से, 
नाराज चल रही हो।
और मिलने से भी, 
अब डर रही हो।
एक बार क्या में,
मिलने नही आ सका।
जिसकी इतनी बड़ी सजा,
खुद को दे रहे हो।
और मुझे खुदकी नजरो में 
शर्मिदा कर रहे हो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
24/02/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"जीवन का सवेरा"*
"सूना जीवन सारा साथी,
सूख गया नेंह का डेरा।
आशाओ के अंबर में भी,
पाया न कोई सवेरा।।
 छाई गम की घटा काली,
क्यों-साथी गम से हारा?
पल पल संग चल रे साथी,
मन पा जायेगा किनारा।।
मिट जाये अंधेरे सारे,
जब होगा भोर का डेरा।
खिल उठेगी कलियाँ सारी,
महके जीवन का सबेरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
        सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

शक्ति और प्रकृति से मिलके
हुआ सृष्टि का श्रृंगार
राधे से कृष्णा कृष्णा से राधे
दो जीवन के आधार


नर नारी दोनों जीवन रथ के
सुन्दर से है दो चक्र
अस्त व्यस्त हो जायें यदि ये
जीवन हो जाये वक्र


एक दूजे के पूरक बनकर ही
करते जीवन का संचार
अर्धनारीश्वर श्री मुरलीधर का
सदा रहे सत्य से प्यार।


अर्धनारीश्वर भगवान आपको जीवन की सारी खुशियां प्रदान करें🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌 फांसी के फंदे का दर्द 😌 


फांसी का फंदा कहे,
                    कैसा ये खिलवाड़।
सभी दरिंदे बच रहे,
                     ले  कानूनी  आड़।


कैसा ये कानून जो,
                  दिला सके ना न्याय।
इसे बनाया है उसे, 
                   लगे कहीं मत हाय।


बदलो-बदलो आज ही, 
                       बदलो ये कानून।
अब तो सारे देश का,   
                     खौल रहा है खून।


मां के  आॉसू  पूछते, 
                 कब तक होगा न्याय।
हर दिन खोजें जा रहे, 
                      बचने नये उपाय।


खाली बैठा मैं यहां, 
                    झोंक रहा हूं भाड़। 
अगर नहीं लटका सको,    
                     दो ज़िंदा ही गाड़। 


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल


हमारे राम
*********
जन जन  के नायक है 
हमारे राम
दीन दुखियों के तारक है
हमारे राम
सबके कल्याण कर्ता है
हमारे राम
सब को सद् बुद्धि देते है
हमारे राम
सब के दुखहर्ता है
हमारे राम
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कालिका प्रसाद सेमवाल


संजय जैन (मुम्बई)

*ऋतुओं का महत्व*
विधा: गीत


प्रकृति की देन ये देखो
तीन ऋतुओं से इसे भरा।
गर्मी सर्दी और बरसात
सबका अपना अपना है महत्व।


सबसे पहले बात हम करते,
गर्मी महारानी की।
इस ऋतु में सब फसलों को,
पका देती अपनी इस गर्मी से।
इसी ऋतु में सबसे ज्यादा,
फल हमे खाने को मिलते है।
जितने खा सकते है खाते,
बाकी सुखाकर रख लेते है।
और उन्हें फिर पूरे साल, हम सब खाते रहते हैं।
इसलिए गर्मी ऋतु का 
बहुत महत्व होता है।।


अब हम आगे बात करते, 
बर्षा महारानी का।
इसका काम बहुत कठिन
और दुखदायी भी है।
जो भूमि के पानी को गर्मी
भाप बनकर उड़ाती है।
इसी मौसम में वो पानी को
वर्षा ऋतु गिरती है।
और गर्मी से भूमि और लोगो को ठंडक पहुंचती है।
और भूमि के अंदर से 
हरियाली को लहराती है।
यदि ज्यादा वर्षा हो जाये तो
विनाश सब कुछ हो जाता है।
और यदि कम हो जाये तो
भी विनाश होता है।।


अब हम आगे बात करते 
सर्दी महारानी की।
जो देती लोगो के जीवन मे
बहुत बड़ी खुशाली को।
सब कुछ शांति भाव से
इस ऋतु में सब चलता।
इंसान और प्राणीओ को,
ये ऋतु बहुत भाती हैं।
इसलिए इस ऋतु में 
फल बीज आदि बोये जाते है।
जिसका फल हम सभी को
गर्मियों की ऋतु में मिलता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
23/02/2020


प्रवीण शर्मा ताल

*मोहब्बत की फिर से हम सरिता बहाएँ*


रूठो मत चलो मेरे साथ ,,
पकड़ो तो सही मेरा हाथ।
प्रकृति के तराने में,
हम फिर से * गुनगुनाएँ*
मोहब्बत की सरिता
 हम फिर से  बहाएँ।।


उजड़े चमन में,
 खुशी के फूल,
 मुरझा जाते हैं।
डाली डाली पर 
ये भँवरे  दूर
चले जाते हैं।
चलो इनको हम 
फिर से बुलाएँ
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


चार दिन की चाँदनी में 
क्या रहेगा खुश सवेरा ,
 चुनकर तिनका- तिनका
बनाएँ फिर हम बसेरा,
देकर दाना-पानी,
 बेजुबान पँछी को
 फिर से हम सहलाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


 तुम्हरा पहले हँसना बिंदास रहा,
तुम पर मेरा हमेशा  विश्वास रहा,
आस के गोते में जरा डूबकर 
चिकनी चुपड़ी  हम भूल जाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


हिन्द देश के भारत में
प्रीत की डोर चलाएँ,
बाँध कर भीनी- भीनी 
माटी को केसर की
 क्यारी में महकाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।



*✒प्रवीण शर्मा ताल*


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