सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर (हरियाणा )

दो और दो पाँच.... 


सरकारी स्कूल की आँच 
जैसे बच्चों के भविष्य काँच 
एक दिन इंस्पेक्टर करने आए जाँच 
एक छात्र  से पूछा 
"दो और दो कितने हुए "? "
छात्र ने कहा पाँच 
मास्टर आगे आया 
पीठ थपथपा छात्र को बैठाया
इंस्पेक्टर बोला 
"अरे ओ सत्यानाशी  
गलत गणित पर देता शाबाशी "
मास्टर मिमियाने लगा 
"क्यों होते हो नाराज़ "? "
बतला दूंगा आपको इस छात्र का राज. 
कल जब आप नहीं आए थे 
तब दो और दो छः बतलाये थे
आज बतलाये पाँच, 
प्रगति करता जाएगा 
कल हुजूर यह स्वतः
चार पर आ जाएगा. 
अगर यही हाल रहा "उड़ता "
तो समाज कहाँ चला जाएगा. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर (हरियाणा )

जाना चाहा... 


जब उसने मुझसे दूर जाना चाहा. 
दिल ने उसे रोककर, कुछ कहना चाहा. 


उसने हंसकर कह दिया जो अलविदा, 
दिल ने अकेले में आँसू बहाना  चाहा. 


उसके बिछुड़ने का सबब दर्द दे रहा, 
दिल कुछ सोचकर बहुत घबराया. 


छोड़ कर चला गया साथ वो मेरा, 
जैसे मेरी पूरी ज़िन्दगी ले गया. 


उसका वही अक्स हर वक़्त मेरे सामने, 
उसके जाते -जाते मैंने हाथ हिलाना चाहा. 


नज़रें उसे ओझल होते देख थक गयी, 
मैंने फिर भी एक बार मुस्कुराना चाहा. 


मत रोक जाने वाले को "उड़ता ", 
तुमने लफ़्ज़ों को जोड़ नज़्म बनाना चाहा.


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


श्याम कुँवर भारती [राजभर]  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

हिंदी गजल- अब सफा कीजिये |
टूटे रिश्तो मे जान बाकी हो अगर ,
प्यार से सींचकर अब सफा कीजिये |
काँच के जैसा होता है दिल का रिस्ता यहा |
टूट न जाये दील अब बचा कीजिये |
लाखो मिल जाएँगे सबको सबकी जवानी मे |
ढल जवानी हमसफर अब ढूंढा कीजिये | 
तेरी दौलत के खातिर है चाहने वाले कई |
करता कौन मोहब्बत अब पता कीजिये |
हुशनों जवानी के है सब भूखे यहा |
जल जाये जवानी जुल्मो न खता कीजिए |
दिल की बात दिल मे न रखिए जनाब |
गर हो शिकायत कोई अब रफा कीजिये |
मिल गया जो दिल का रिश्ता उसे कबुल करो |
गर हो गई भूल कोई अब दफा कीजिये |
टूटे रिश्तो मे जान बाकी हो अगर ,
प्यार से सींचकर अब सफा कीजिये |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"स्त्री बड़ी महान"*
"गरीब के चलते वो तो,
निकली घर से-
करने मज़दूरी का काम।
कड़ी धूप में सिर पर बोझा,
होठो पर है-मुस्कान-
ये स्त्री बड़ी महान।
मुस्कान के पीछे छिपी 
खुशी,
मिलेगा इससे अन्न जल -
फिर करेगी वो आराम।
थक भी जाये वो तो भी,
गरीबी से होगी न परेशान-
होठो पर बनी रहेगी मुस्कान।
गरीबी के चलते वो तो,
निकली घर से-
करने मज़दूरी का काम।।"
     सुनील कुमार गुप्ता


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "

सुप्रभात:-


विश्वास और कड़ी मेहनत असफलताओं को हटाती है।
जिंदगी में हमें नए-नए द्वार सफलताओं  के दिखाती है।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।बरेली

*बस प्रेम का इज़हार हो तेरे किरदार में।*
*।।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


बस    महोब्बत का  ही  पैगाम
हो   तेरे  सरोकार से।


बस  अच्छी  बातों  का  बखान
हो  तेरे  इज़हार   से ।।


सवाल जिंदगी से  मत करो कि
क्या   दिया   है  उसने।


बस बनो  तुम  सबके  मेहरबान
हो सके तेरे किरदार से।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*विविध हाइकु।।।।।।*


ये पहचान 
अच्छे दोस्तों की है
होते कुर्बान


सफर जारी
चलना हिम्मत से
ये है तैयारी


जो हम बोते
पाते वैसा ही हम
हंसे या रोते


ये तकदीर
तेरे अपने हाथ
बने तस्वीर


हिचकी आना
बुला रहा कोई है
दूर न मकां


बुरा कोई ना
नज़रों का फेर है
एक सा समां


हाथ का खेल
पत्थर    बदनाम
मन की रेल


कैसा जमाना
करे पर    भरे ना
ऐसा जमाना


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*जीवन//यूँ ही जीने का नाम नहीं है।*
*मुक्तक*


जीवन एक कर्म शाला  कोई
ऐशो   आराम  नहीं  है।


है ये संघर्ष का  तपोवन  कोई
जंग का  मैदान नहीं  है।।


मत पलायन  से  बदनाम कर
इस अनमोल  जीवन  को।


बिन पूरे करे सरोकारों को प्रभु
का उतरता एहसान नहीं है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो      9897071046
         8218685464


संजय जैन (मुम्बई)

*क्यो बुला रहे हो*
विधा : कविता


दिल की गैहराईयों,
से मुझे देखो।
सामने में नजर आऊंगा।
चाँद को पाने के लिए, 
कही भी आ जाऊंगा।
बस दिलसे एक बार,
आवाज़ दो हमें।
मैं खुद तुम्हारे समाने, 
हाजिर हो जाऊंगा।।


न हम गलत है,
और न हमारी सोच।
न तुम गलत हो और,
न ही में समझता हूँ।
ये तो दिल की बातें है,
 जो हम दोनों करते है।
जब प्यार हुआ है तो,
निभाएंगे भी हम दोनों।
और जब मिलेंगे तो,
दिलके अरमान लुटाएंगे भी।।


होठों पे आज कल, 
बहुत हंसी है।
तेरे दिल में भी 
बहुत खुशी है।
कुछ तो तेरे दिल में,
हलचल मच रही है।
तभी मेरे को मिले को,
 तुम बुला रही हो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
26/02/2020


राजेंद्र रायपुरी

सिंह बिलोकित छंद पर एक मुक्तक ----


धन के बल जिनको वोट मिले।
उनके  मन  में  ही  खोट  मिले।
होती   है   उनकी   चाह   यही,
दस  के  बदले  सौ  नोट  मिले।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
   *"पर्यावरण"*
"इतने लगाये वृक्ष,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहे वन।
प्रात:भ्रमण को मिले,
सार्थकता-
तृप्त हो नयन।
शुद्ध हो वातावरण,
कम हो प्रदूषण-
शांतिपूर्ण हो शयन।
महकता रहे जीवन में,
उपवन सारा-
सुगन्धित हो सुमन।
मिलते रहे फल- फूल-औषधी,
सार्थक हो जीवन-
बलिष्ठ हो तन-मन।
भटके न नभचर कही,
आसरा मिले उनको-
सार्थक हो पर्यावरण।
इतने लगाये वृक्ष,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहे वन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः      सुनील कुमार गुप्ता

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः


सत्यप्रकाश पाण्डेय

काहे का गरूर करे तू काहे अभिमान है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


रूप रंग सौंदर्य देख के जो तू इतराबें है
ढल जाये जवानी फिर काम न आबें है
बन्द आँखों से देख चहुओर सुनसान है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


आये बलशाली बहुत धूल में मिल गये
नामोनिशा न शेष जीवन उनके गल गये
हरि को तू भजले बन्दे होगा निर्वाण है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


यहां नहीं कोई तेरा मतलब का संसार है
जीते जी के रिश्ते सारे और न आधार है
राधे कृष्ण रट ले मानव होगा कल्याण है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है।



श्रीराधे कृष्ण🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे करूणानिधान दया करो
********************
हे करूणानिधान अपनी कृपा बरसाओं
हमें सत्य की राह बताओ
कभी किसी को सताये नहीं
ऐसी सुमति हमें देना प्रभु।



हे करूणानिधान दया करो
अपनी कृपा बनाए रखें
हम अज्ञानी  तेरी शरण में
हमें सही राह बताना प्रभु।


ये जीवन तुम्ही ने दिया है
राह भी तुम्हें बताओ प्रभु
हो  गई है भूल कोई तो
राह सही बताओ प्रभु ।


कभी किसी बुरा न करुं
दया भाव हो हृदय में
मस्तक तुम्हारे चरणों में हो
ऐसी बुद्धि दे दो प्रभु।


हे करूणानिधान दया करो
जग में न कोई किसी जीव को
पीड़ा कभी न पहुंचाएं प्रभु
ऐसी सब की बुद्धि कर दो।
**************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कैलाश , दुबे होशंगाबाद

ऐ गम के बादलों तुम दूर चले जाओ ,


वहीं खड़े रहो अभी मेरे नजदीक न आओ ,


जो लिखा हो मेरे नसीब में लिखा रहे ,


पर पहले से मेरे नजदीक तो न आओ ,


कैलाश , दुबे


भुवन बिष्ट                     रानीखेत( उत्तराखंड

*प्रभात वंदन*
नव दीप जले हर मन में, 
अब तो भोर हुई हुआ उजियारा। 
    लगे विहग धरा में चहकने, 
    रवि किरणों से जग सजे सारा।। 
बहे पावन सरिता का जल, 
हिमशिखरों पर लालिमा छायी। 
     बनकर ओस की बूँदें छोटी,  
     जल मोती यह मन को भायी ।।
भानू की अब चमक देखकर,
छिप गये तारे हुआ उजियारा।
       सजाया है जग निर्माता ने, 
       नभ जल थल सुंदर प्यारा।।
                       ......भुवन बिष्ट
                    रानीखेत( उत्तराखंड)


वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा

आँखो में भर आया पानी 
बेटी जीवन की यही कहानी 
रो रोके हो गया बुरा हाल 
बाबुल की बिटियाँ चली ससुराल 
नन्ही से चिड़ियाँ चली ससुराल  



कल तक तो खेली इस आँगन में 
तितली बन मंडराई  उपवन में 
पीछे छुट गई है बगिया
मेरी सारी सहेली सखियाँ
 टुकटुक मैं जिनको रही निहार ।
बाबुल की बिटिया चली ससुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल । 


छोटी छोटी बातों पे रुठना मनाना
बाबा तेरे संग में वो हँसना हँसाना
माँ की वो मीठी लोरी
संग में तेरे खेली होरी
यादों का उठा हैं  भूचाल ।
बाबुल की बिटिया चली ससुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल  ।


जिस आंचल में पली वो हो रहा पराया 
छूट रहा सर से अपनो का साया  
कैसी आई ये घडि़या 
पल भर में बीती  सदियां
दिल में घिरे कितने सवाल ।
बाबुल की बिटिया चली ससुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल  ।


वादा है मै सबका मान बढाऊंगी 
रिश्तो को सारे मन से निभाऊंगी।
 तेरी ही सिखाई बाते 
याद रखूंगी दिन राते
रखूंगी सबका दिल से ख्याल ।
बाबुल की बिटिया चली सुसुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल  ।


वैष्णवी पारसे


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

 


तमाम  इल्म जानता  हैं  फ़क़त खूब अदीब है वो।
रहे  चाहें   दूर  मुझसे  मगर  बहुत  करीब  है  वो।


बदौलत उसके सभी सुख मयस्सर अब भी हमें हैं।
खुदा  का  हैं  नूर रुख पर मिरा रोज  नसीब है वो।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कैलाश , दुबे होशंगाबाद

यूं चिराग जलते रहे रात भर ,


हम उजाले कै तरसते रहे रात भर 


यूं ही सहमे बैठे रहे हम रात भर ,


जब हवा का झोंका आता वहां ,


डरते रहे और सहमते रहे रात भर ,


कोई न अपना था वहां पर ,


बैठे रहे हम उजाले को तरसते रात भर , 


कैलाश , दुबे


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना‌: मौलिक स्वरचित नई दिल्ली

 दोहा: “🌦️पत्थर की बरसात"🌦️
दंगाई   चारों   तरफ़ , मचा  हुआ     कोहराम।
शुभ प्रभात क्या नमन हो,चहुंमुख रोड विराम।।१।।
पत्थर   की  बरसात में , घायल  हैं     जनतंत्र।
लाचारी    सरकार    में , वोटबैंक       षड्यंत्र।।२।।
जला  रहे  जन सम्पदा , सार्वजनिक   संसाध।
निर्भय     दावानल      बने ,  दंगाई     निर्बाध।।३।।
बची जान कल किसी तरह , फंस दंगाई फांस।
अमन चमन वीरान सा , रुकी  हुई  थी   श्वांस।।४।।
मत   कोसों   रक्षक  वतन , पोषो  मत  गद्दार।
पा    सुकून  हो  सो  रहे ,  गाली   देते    यार।।५।।
पूछो हम पे क्या बीतती , बना  आज मज़बूर।
दंगा   से  घायल  पथी , हूं    घर  से   मैं  दूर।।६।।
तोड़ो फोड़  व आगजनी , सौदागर बन मौत।
दहशत का आलम कुटिल,साजीशें बन सौत।।७।।
बेशर्मी    बन    बेहया , नेताओं   की   फ़ौज। 
भड़काते   उन्माद  को , घर  में  सोतेे   मौज़।।८।। 
शरणागत  पर  गेह   में , बना  आज मैं मीत।
शैतानी  अवरोध  से  , पड़ दहशत  भयभीत।।९।।
सरकारी सब महकमा , पड़ा   सोच में आज। 
बदनामी   दोनों  तरफ़ , गिरे  मौन  बन गाज़।।१०।।
पता  नहीं  कबतक  जले , मानवता सम्मान।
कवि  निकुंज विरुदावली ,गाएं समरस गान।।११।। 
कुर्बानी  जनता  वतन , चढ़ा  भेंट  सरताज।
रतन लाल तज जिंदगी,  बचा देश का लाज़।।१२।।
पत्थरबाजी     बारिशें ,  भारत     लहूलूहान।
समरसता  प्रीति   दफ़न , मुस्काता    शैतान।।१३।। 
मौतें   होती   एकतरफ़ , सजे  चौकड़ी  मंच।
ओछी चर्चा  पटल  पर , करें  न्याय   सरपंच।।१५।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना‌: मौलिक स्वरचित
नई दिल्ली


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"अग्निस्तान"
""""""""""""""""""
कभी कश्मीर तो कभी गुजरात जला
कभी असम तो कभी केरल जला
कभी राजस्थान तो कभी महाराष्ट्र जला
कल यू.पी. तो आज दिल्ली जला
ये कैसी आग है.....?
कभी अराजकता के नाम से...
तो कभी सियासत के नाम से जला
डर है मुझे इस बात की.....
कही पूरे हिंदुस्तान ना जल जाए
शांति का सन्देस देने वाला...
कही अग्निस्तान में ना बदल जाए ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


श्याम कुँवर भारती (राजभर )  कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 

भोजपुरी पारंपरिक होली गीत 5 -स्वंबर रचावे जनक जी 
सिया दिहली मलवा राम गले डाली , 
खूब भावे जनकपुर |
स्वंबर रचावे जनक जी |
बड़े बड़े राजा जुटले जनकपुर |
ज़ोर लगाई न तोड़ले धनुषवा जनकपुर |
रावण भी हारी सिर नवावे जनकपुर |
स्वंबर रचावे जनक जी |
मुनि विश्वामित्र संगवा राम-
 लक्षमन मिथिला मे अइले |
फुलवा लोढ़त भेंट सिया 
राम मिथिला मे भईले  |
दोनों नैना से नैना लड़ावे जनकपुर |
स्वंबर रचावे जनक जी |
जनकनंदनी सिया शिव पारवती के पूजे |
बगिया से चुनी चुनी फूल मलवा  मे गूँथे |
मिलिहे राम वर उनके हाथ 
जोड़ी मनावे जनकपुर |
स्वंबर रचावे जनक जी |
गुरु के चरणीया मे सिरवा झुकाई |
शिव ध्यान करी राम लिहले धनुषवा उठाई |
तोडी धनुषवा राम शिव गोहरावे जनकपुर |
स्वंबर रचावे जनक जी |
अइले फगुनवा खेल होली राम अयोध्या |
रंग अबीर लेई खेले भरत तोडी तपस्या |
लखन बजरंगी संगी होलिया खेलावे जनकपुर |     
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
 कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

...........जाने क्या चुपके से...........


जाने क्या चुपके से आपने कह दिया।
आपने  कह दिया वो मैंने सह लिया।।


आपने मुझे तो दिल से निकाल फेंका;
एक कोने में  आपके मैंने  रह लिया।।


बेतरतीब सी हो गई थी जिन्दगी मेरी ;
किसी हाल में जिंदगी मैंने गह लिया।।


न किसी का साथ,न ही कोई भरोसा ;
जैसे बहाया वक़्त ने,मैंने बह  लिया।।


दिल के मारे हम बेचारे हैं प्यारे दोस्त;
मन के अंदर गुस्से को मैंने दह लिया।


हमेशा आपसे सुलह की कोशिश में ;
आपने जो कह दिया मैंने वह किया।।


उम्मीद तो है कभी तो मिलेंगे"आनंद";
इसलिए ख्यालों को मैंने  तह किया।।


----- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


अभिलाषा देशपांडे

माँ


-दुआये
दुआये माँ की , कम नहीं होती
माँ तो माँ , खुदासे कम नहीं होती!
माँ कल खुदासे जबाबतलबी करती रही
मुश्किले क्यों मेरे बेटे कि कम नहीं होती!
एक दिन मेरा बेटा भी सिकंदर बनेगा
माँ की उम्मीदे कभी कम नहीं होती!
मेरा पहला गुनाह और माँ का वो थप्पड
सबक देनेमें माँ को शरम नहीं होती!
मेरा दावा हैं कि, दुनिया में कोई भी चीज
माँ के दिल से ज्यादा नरम नहीं होती!
स्वरचित
अभिलाषा


इन्दु झुनझुनवाला जैन बंगलौर

होरी लोकगीत


मन की बतियां ,कांसे कहूँ सखी री ।
पिया तो सुनत ,नाही कोई बतियां ।


हम तो सखी री, देखे नाही दुनिया।
पिया तो हमारे भएल परेदेसिया।
मन की बतियां -----


प्यार की भाषा अँखियाँ करे सखी,
बोले तो कैसे, बोले ऐसी बतियाँ।
मन की बतियां -----


हमरे पियाजी अंगरेजी मा बोले,
समझ परे नाही मोहे उनकी पतियाँ।
मन की बतियां -----


चाकी पिसत सारी उमर गुजारी रे,
हमसे चलत अब नाही फटफटिया।
मन की बतियां -----


पाउडर लिपिसटिक कबहुँ ना जानो,
कईसे रिझाउँ ,बनढन के सजनिया।
मन की बतियां ---'


अब तो सखी री,आँख नाही लागे,
 विरहा की आग मे, जलूँ सारी  रतिया।
मन की बतियां -----


होरिया के रंग में  भीजे मोरा तन सखी,
प्रीत के रंग में तोहे  रंग दूँ सजनवा।
मन की बतियां---------


इकबार साजन गलवा लगा ले रे,
उमर भर ना माँगे कछु और मनवा।
मन की बतियां ---
इन्दु झुनझुनवाला जैन 


इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’

हिन्दी चित्रपटीय गीतों में छंद


साहित्य, किसी वाङमय की समग्र सामग्री का नाम है। इस नश्वर संसार में जितना भी साहित्य मिलता है उनमें सर्वाधिक प्राचीनतम ’ऋग्वेद’ है और ऋग्वेद को छंदोबद्ध रूप में ही रचा गया है है। यह इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि उस समय भी कला व विशेष कथन हेतु छंदो का प्रयोग होता था। छंद को यदि पद्य रचना का मापदंड कहें तो किसी प्रकार की अतिशयोक्ति न होगी। एक बात और है कि बिना कठिन साधना के कविता में छंद योजना को कदापि साकार नहीं किया जा सकता।


*वैदिकच्छन्दसां प्रयोजनमाह आचार्यो वटः –*
*स्वर्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वृध्दिकरं शुभम् ।*
*कीर्तिमृग्यं यशस्यञ्च छन्दसां ज्ञानमुच्यते ॥ इति*


हमारी हिन्दी फिल्मों के अत्यंत कर्णप्रिय व मधुर गीत बरबस ही हम सबका मन मोह लेते हैं, एक प्रश्न उठता है कि वस्तुतः उनके कर्णप्रिय होने का राज क्या है? इसका सटीक उत्तर है कि वे किसी न किसी छंद पर आधारित होते ही हैं | यह भी आवश्यक नहीं है कि वे सिर्फ एक ही छंद विशेष में ढले हों अपितु उनके स्थायी व अंतरा में अलग-अलग छंदों का प्रयोग भी देखने को मिलता है | गीतों की यही छंदबद्धता उनमें आकर्षण उत्पन्न करते हुए उन्हें गेय बनाती है | अधिकतर यह पाया गया है कि पुराने फ़िल्मी गीतों का प्रारंभ अधिकतर एक दोहे से हुए करता था जो कि हमारे मन को आह्लादित कर दिया करता था | यथा चंद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा गीत में उसका आरम्भ ‘सब तिथियन का चन्द्रमा जो देखा चाहो आज | धीरे धीरे घूँघटा सरकाओ सरताज|| वाले दोहे से ही हुआ है |


अब विधाता या शुद्धगा छंद आधारित फ़िल्मी गीतों पर एक दृष्टि डालते हैं....


*विधाता छंद' की परिभाषा:*
(यगण +गुरु) x४
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा
यमाता दीर्घ चारों हों विधाता छंद हो जाये
जहां चारों मिलें साथी वहाँ आनंद हो जाये||


: विधाता या शुद्धगा छंद का सूत्र है यगण+गुरुx४ अर्थात ‘यमाता गा यमाता गा यमाता गा यमाता गा’ (यहाँ पर ‘गा’ का तात्पर्य गुरु से ही है) या १२२२ १२२२ १२२२ १२२२.  उर्दू में इसे बहर-ए-हज़ज़ मुसम्मन सालिम भी कहते हैं जिसके अरकान होते हैं ...मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन. इस छंद पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं.


(१)     बहारों फू/ल बरसाओ/ मेरा महबू/ब आया है |
(१२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२)
(२)  किसी पत्थर/ की मूरत से/ मुहब्बत का/ इरादा है |
(३)  भरी दुनियां/ में आके दिल/ को समझाने/ कहाँ जाएँ|
(४)  चलो इक बा/र फिर से अज/नबी बन जा/एँ हम दोनों |
(५) ये मेरा प्रे/म पत्र पढ़ कर/ , कि तुम नारा/ज ना होना|
(६)  कभी पलकों/ में आंसू हैं/ कभी लब पे/ शिकायत है |
(७) ख़ुदा भी आ/समां से जब/ ज़मीं पर दे/खता होगा |
(८)  ज़रा नज़रों/ से कह दो जी/ निशाना चू/क ना जाए |
(९)  मुहब्बत ही/ न समझे वो/ जो जालिम प्या/र क्या जाने |
(१०) हजारों ख्वा/हिशें इतनी/ कि हर ख्वाहिश/ पे दम निकले |
(११) बहुत पहले/ से उन क़दमों/ की आहट जा/न लेते हैं |
(१२)  मुझे तेरी/ मुहब्बत का/ सहारा मिल/ गया होता |
(१३) सुहानी चां/दनी रातें/ हमें सोने/ नहीं देतीं | 
(१४) कभी तन्हा/ईयों में भी/ हमारी या/द आएगी |  


यह तो हुई विधाता या शुद्धगा छंद आधारित गीतों की बात.... अब एक दृष्टि छंद ‘गीतिका’ आधारित फ़िल्मी गीतों पर डालते हैं. इसके लिए पहले यह जानना होगा कि गीतिका आखिर है क्या? पिन्गलशास्त्र के अनुसार गीतिका एक छंद है जिसका विधान निम्नलिखित है...


गीतिका में ही छंद गीतिका की परिभाषा:


(गीतिका : चार चरण, १४ पर यति देते हुए प्रत्येक में १४-१२ के क्रम से २६ मात्रा तथा तीसरी ,१०वीं ,१७वी,२४वी मात्रा अनिवार्यतः लघु, कम से कम प्रथम दो व अंतिम दो चरण समतुकांत अंत में गुरु-लघु/रगण, कर्णमधुर.)


चार चरणी छंद मात्रिक, अंत लघु-गुरु 'गीतिका'.
योग है छब्बीस मात्रा, प्रति चरण, सुर प्रीति का.
तीन दस सत्रह व चौबिस, चाहिए लघु मात्रिका..
शेष बारह चौदवीं यति, तुक मनोहर वीथिका.


गीतिका का शिल्प सूत्र: ‘गीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका’ है व इसका गणसूत्र: ‘राजभा गा राजभा गा राजभा गा राजभा’ अर्थात २१२२ २१२२ २१२१ २१२ होता है| यहाँ पर भी ‘गा’ का तात्पर्य गुरु से ही है |  का उर्दू विधान में इसे बहर-ए-रमल मुसम्मन महजूफ़ भी कहते हैं| जिसके अरकान फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन होते हैं


इस छंद पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं ....


(१)     दिल ही दिल में/ ले लिया दिल/ मेहरबानी/ आपकी 
२१२२/ २१२२/ २१२१/ २१२


(२) ‘आपकी नज/रों ने समझा/ प्यार के का/ बिल मुझे’ (स्थायी) उपरोक्त गीत के अंतरे में निम्नलिखित प्रकार से शिल्प आंशिक रूप से परिवर्तित हो रहा है।


जी हमें मं/ जूर था/ आपका ये/ फैसला (राजभागा राजभागा राजभागा राजभा)
कह रही है/ हर नजर/ बंदापरवर/ शुक्रिया (राजभागा राजभागा राजभागा राजभा)
तद्पश्चात उपरोक्त गीत पुनः मूल शिल्प में आ जाता है 
हँस के अपनी/ ज़िन्दगी में/ कर लिया शा/मिल मुझे
(३)दिल के टुकड़े/ टुकड़े करके/ मुस्कुरा के/ चल दिए
(४)   चुपके चुपके/ रात दिन आँ/सू बहाना/ याद है
(५)हुस्नवालों/ को खबर क्या/ बेखुदी क्या/ चीज है
(६)यारी है ई/मान मेरा/ यार मेरी/ ज़िंदगी
(७)मंज़िलें अप/नी जगह हैं/ रास्ते अप/नी जगह
(८)सरफरोशी/ की तमन्ना/ अब हमारे/ दिल में है
(९)ऐ गम-ए-दिल/ क्या करूँ ऐ/ वहशत-ए-दिल/ क्या करूँ |


आजकल हमारे कुछ विद्वान् हिन्दी ‘ग़ज़ल’ को ‘गीतिका’ भी कह देते हैं जबकि मेरे विचार में इसमें कहे गए मतले और मकते को छोड़कर हिन्दी ‘ग़ज़ल’ विभिन्न छंदों पर आधारित एक ऐसी विधा है जिसमें कहे गए अधिकांशतः शेरों के में प्रति शेर एक मुक्त पंक्ति का प्रयोग होता ही होता है संभवतः इसी लिए आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी ने ‘हिन्दी ग़ज़ल’ को ‘मुक्तिका’ नाम दिया है यद्यपि उनके इस कथन में हमारी पूर्ण सहमति है तथापि आज गीतिका विधा सर्वमान्य हो गयी है |


अब आते हैं भुजंगप्रयात छंद पर तो इस छंद पर आधारित निम्नलिखित गीत की छटा ही निराली है इसका गणसूत्र ‘यमाता यमाता यमाता यमाता’ १२२ १२२ १२२ १२२ व उर्दू में अरकान ‘फईलुन फईलुन फईलुन फईलुन’ है इसका गण विन्यास निम्न प्रकार से है |


तेरे प्या/र का आ/सरा चा/हता हूँ
१२२/ १२२/ १२२/ १२२


वफ़ा कर/ रहा हूँ/ वफ़ा चा/हता हूँ
दुपट्टे/ के कोने/ को मुँह में/ दबा के
ज़रा दे/ख लो इस/ तरफ मुस/कुराके
हमें लू/ट लो मे/रे नजदी/क आ के
के मैं आ/ ग से खे/ लना चा/हता हूँ
वफ़ा कर/ रहा हूँ/ वफ़ा चा/हता हूँ


अत्यंत लोक प्रचलित छंद मत्त सवैया या राधेश्यामी छंद जिस पर पंडित राधेश्याम ने राधेश्याम रामायण रची है की बात ही निराली है| अपने बचपन में हम, गाँवों में बच्चे-बच्चे को राधेश्यामी रामायण गाते हुए देखा करते थे |


हमारे द्वारा रची गयी 'मत्त सवैया' में ही 'मत्त सवैया' की परिभाषा  निम्न प्रकार से है.....


*कुल चार चरण गुरु अंतहि है, सब महिमा प्रभु की है गाई.*
*प्रति चरण जहाँ बत्तिस मात्रा, यति सोलह-सोलह पर भाई.*
*उपछंद समान सवैया का, पदपादाकुलक चरण जोड़े.*
*कर नमन सदा परमेश्वर को, क्षण भंगुर जीवन दिन थोड़े..*


प्रायः ऐसा देखा गया है कि चार चरण से युक्त 'मत्त सवैया' छंद में प्रत्येक पंक्ति  में ३२ मात्राएँ होती हैं जहाँ पर १६, १६ मात्राओं पर यति व् अंत गुरु से होता  है | जब से पंडित राधेश्याम ने इस लोकछंद पर आधारित राधेश्याम रामायण रची थी तब से इसे 'राधेश्यामी छंद' भी कहा जाने लगा है!


इस पर आधारित गीत है ‘आ जाओ तड़पते हैं अरमां,  अब रात गुज़रने वाली है.’ (मात्राएँ १६,१६) |


उपरोक्त के ‘जाओ’ शब्द में ‘ओ’ का उच्चारण लघुवत है |


अब आते हैं ‘वाचिक द्विभक्ति’ छंद पर जिसका गणसूत्र है


ताराज यमातागा ताराज यमातागा


२२१ १२२२ २२१ १२२२


मफ़ईलु मफाईलुन मफ़ईलु मफाईलुन  


इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से हैं |


        (१) सौ बार/ जनम लेंगे/ सौ बार/ फ़ना होंगे |
        (२) हंगामा/ है क्यों बरपा/, थोड़ी सी/ जो पी ली है |
        (३) हम तुमसे/ जुदा होके/ मर जायें/गे रो रो के |
        (४) जब दीप/ जले आना/ जब शाम/ ढले जाना |
        (५) साहिल से/ खुदा हाफ़िज़/ जब तुमने/ कहा होगा |
        (६) इक प्यार/ का नगमा है/, मौजों की/ रवानी है |
        (७) हम आप/की आँखों में/ इस दिल को/ बसा दे तो |
        (८) ‘बचपन की/ मुहब्बत को/ दिल से न/ जुदा करना,
          जब याद/ मेरी आए/ मिलने की/ दुआ करना. (स्थायी)


   अंतरा:


         घर मेरी/ उम्मीदों का/ अपना कि/ ये जाते हो


         दुनिया ही/ मुहब्बत की/ लूटे लि/ए जाते हो


         जो गम दि/ए जाते हो/ उस गम की/ दवा करना


यहाँ पर सबसे विशेष बात यह है कि चूँकि फ़िल्मी गीतों की धुन सहज ही कंठस्थ हो जाती है अतः इन धुनों को सहारा लेकर इन धुनों में ही छंद रचना अत्यंत सहज हो जाता है| इसके बाद जब हम मात्राओं व गणों की गणना करते हैं तो वह तत्संबंधित छंद पर एकदम खरी ही उतरती है |


इस प्रकार से हिन्दी चित्रपटीय गीतों जिनती भी विवेचना की जायेगी अर्थात हम जितने ही गहरे उतारते जायेंगें हमें उनमें निहित छंदों से उतनी ही अधिक आनंद की अनुभूति होगी | इति |


(नोट उपरोक्त सभी गीतों में लघु-गुरु का निर्धारण उनके उच्चारण के अनुसार ही किया गया है)


                              लेखक:


-- इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
९१, आगा कालोनी सिविल लाइन्स सीतापुर, उत्तर प्रदेश,
मोबाइल, ९४१५०४७०२०


*साहित्यकार का परिचय:
_________________________
*नाम: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
*पिता का नाम: स्व० श्री राम कुमार श्रीवास्तव
*माता का नाम: श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव
*पता: ९१, आगा कालोनी सिविल लाइंस सीतापुर
*ईमेल: ambarishji@gmail.com


*व्यवसाय: आर्कीटेक्चरल इंजीनियर
*शिक्षा: स्नातक, भूकंपरोधी डिजाइन इंजीनियरिंग कोर्सेज (आई० आई० टी० कानपुर)
*व्यावसायिक सदस्यता: भारतीय भवन कांग्रेस, भारतीय सड़क कांग्रेस, भारतीय पुल अभियंता संस्थान, भारतीय गुणवत्ता वृत्त फोरम, भारतीय तकनीकी शिक्षा संघ, अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स, आर्कीटेक्चरल इंजीनियरिग संस्थान (अमेरिका) आदि.
*संपर्क: मोबाइल : ९४१५०४७०२०, ८८५३२७३०६६, ८२९९१३२२३७, दूरभाष: ०५८६२-२४४४४०


http://www.worldlibrary.in/articles/eng/Ambarish_Srivastava


*काव्य संग्रह :
(१) ‘जो सरहद पे जाए’
(२) ‘राष्ट्र को प्रणाम है’


*प्राप्त सम्मान व अवार्ड:
(१) इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड २००७
(२) सरस्वती रत्न सम्मान
(३) अभियंत्रण श्री सम्मान


* शौक: बाँसुरी वादन व कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ.


सादर धन्यवाद।


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