कौशल महंत "कौशल"

,      *जीवन दर्शन भाग !!४१!!*


★★★
ममता का आँचल वही,
            वही पिता का प्यार।
पढ़लिख वापस आ गया,
            अपना घर संसार।
अपना घर संसार,
            सभी को लगता प्यारा।
यह ही है वह धाम,
            जहाँ मन रहे हमारा।
कह कौशल करजोरि,
            वहीं रहती है समता।
प्रेम पिता का पुण्य,
           मातु की वह ही ममता।
★★★
चाहत मन में है यही,
            संग बँटाये हाथ।
सुधारने घर की दशा,
            चले पिता के साथ।
चले पिता के साथ,
            आय अर्जित करनी है।                                                 धन बिन बनी विशाल,
            रिक्त खाई भरनी है।
कह कौशल करजोरि,
             रहे क्यों जीवन आहत।
सुखमय हो घरबार,
            पूर्ण हो सबकी चाहत।।
★★★
जाता है निष्काम मन,
            स्वयं ढूँढने काम।
जो करते संसार के,
            सब जनमानस आम।
सब जनमानस आम,
             जरूरत करने पूरी।
कर कोई व्यापार,
           करे कोई मजदूरी।
कह कौशल करजोरि,
            तभी है घर चल पाता।
घर का जिम्मेदार,
           काम करने जब जाता।।
★★★


कौशल महंत "कौशल"


,


नूतन लाल साहू

पुरानी यादें
जब गाड़ी,चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
पलकों में,नींद न आती थी
सफ़र रात का हो या दिन का
प्रकृति की तस्वीरे,आती जाती थी
सुबह हो गया या शाम हो गया
इसकी आवाज बताती थी
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
छुन छून करे,जलेबी सी
यादे,आंनद के रस में डूब जाती थी
कुत्ते, भौं भौं कर चिल्लाते
खिड़कियां,सब खुल जाती थी
कितना सुन्दर था,उच्चारण
मानो मिसरी,सी घुल जाती थी
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
ऐसा करेंट सा लगा हमें
किस्मत का लड्डू फुट गया
आधुनिकी करण के चक्कर में
पुराना आंनद, सब भुल गया
किन शब्दों में, व्यक्त करें, उन यादों को
जो अतीत में,कहीं गुम हो गया
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
नूतन लाल साहू


नूतन लाल साहू

सलाह
हे पिंजरे की,ये मैना
यदि चाहता है,परम सुख तो
राम नाम,अनमोल रतन है
गया समय,नहीं आयेगा
फिर पाछे पछताएगा
भजन कर ले,राम नाम का
भवसागर पार हो जायेगा
तू महल बना,अटारी बना
कर कर जतन, सामान सजा
पल में वर्षा, आय गिरावेे
हाथ मसलत,रह जायेगा
भाई बन्धु,कुटुंब कबीला
सब संपत्ति,यही रह जायेगा
मतलब का सब खेल जगत में
पाप पुण्य ही,साथ जायेगा
हे पिंजरे की, ये मैना
यदि चाहता है,परम सुख तो
भजन कर ले, राम नाम का
भवसागर पार हो,जायेगा
तेरी दो दिन की,जिंदगानी है
काया माया तो, बादल जैसा छाया है
हरिनाम परम पावन,परम सुंदर
परम मंगल,चारो धाम है
राम नाम के,दो अक्षर में
सब सुख शांति, समाया है
जिसने भी,राम नाम गुण गाया
उसको लगे न,दुःख की छाया
हे पिंजरे की,ये मैना
यदि चाहता है,परम सुख तो
राम नाम,अनमोल रतन है
गया समय,नहीं आयेगा
फिर पाछें,पछताएगा
भजन कर ले,राम नाम का
भवसागर पार हो,जायेगा
नूतन लाल साहू


भरत नायक"बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सपना"* (ताटंक छंद गीत)
----------------------------------------
विधान-१६+१४=३०मात्रा प्रति पद, पदांत SSS , युगल पद तुकबंदी।
...........................................


*नींद उड़ा दे जो आँखों की, मति को भी उकसाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।।
सच्चा-साधक सत्कर्मो से, सपनों को पा जाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।। 


*उच्चाकांक्षा पाल रखे जो, धुन में कब सो पाता है?
होता आराम हराम सदा, कोलाहल मच जाता है।।
सतत चुनौती स्वीकारे जो, सपने सच कर जाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो,
'सपना' वह कहलाता है।।


*जब भी देखो ऊँचा देखो, सपना बडा़ सुहाता है।
पूर्ण करे जी जान लगा जो, कर्मठ वह कहलाता है।।
पावक-पथ को पार करे जो, नव इतिहास बनाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो,
'सपना' वह कहलाता है।।


*दम पर अपने नभ को नापे, पंख पसारे जाता है।
भरे बुलंदी जो नित निज में, शुचि-संदेश जगाता है।।
करता सपना जो वह पूरा, जग उसको दुहराता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।।
...........................................
भरत नायक"बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
..........................................


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग)

*"महती महिमा मातु की"*
 (कुण्डलिया छंद)
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★महती महिमा मातु की, सीख सकल संसार।
सच्ची शुचि संवेदना, परम पुलक परिवार।।
परम पुलक परिवार, नेह की ज्योति जलाती।
देकर शुभ आशीष, मातु देवी कहलाती।।
कह नायक करजोरि, स्रोत प्रेमिल बन बहती।
सींचे सारी सृष्टि, मान माँ महिमा महती।।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह,रायगढ़ (छ.ग.)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग)

*शारदे! शुभ वरदान दे*
(गगनांगना छंद)
--------------------------------------------
विधान- १६+ ९= २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS,  युगल पद तुकांतता।
-------------------------------------------
*शब्दों के संयोजन को माँ! सरगम-तान दे।
अतुल-अमल-अवधान शारदे! शुभ वरदान दे।।
साथ साधना के हिय सच्चा, भावन-भान दे।
घन-तम-अज्ञान नाश कर माँ! प्रभा-प्रतान  दे।।


*स्वर- सुर समृद्ध सदा होवे, वर विश्वास दे।
शुचि-तुंग-तरंग-उमंग नयी, नित आभास दे।।
जड़ता का कर विनाश मन से, उर-उल्लास दे।
माता! हरकर संताप सभी, हृदय-हुलास दे।।


*बहा ज्ञान-गंगा कल्याणी, कर कल्याण दे।
संसार सकल सुखमय कर दे, भय से त्राण दे।।
जीवन का पथ आलोकित हो, ज्योति-प्रमाण दे।
जग-जीवन-धुन अनुरागित हो, पुलकित प्राण दे।।


*पुस्तक प्रतीक पुण्य-पाठ का, है तव हाथ में।
वीणा की धुन संदेश सदा, सुखकर साथ में।।
ज्ञान-विवेकी नीर-क्षीर का, भर दे माथ में।।
डोले जब धीरज तो देना, संबल क्वाथ में।।


*वेद-शास्त्र-उपनिषद सर्जना, ग्रंथ महान दे।
श्लोक-सूक्ति कल्याणी-कविता, नित नव गान दे।।
बुद्धि-प्रखर कर, हंसवाहिनी! परिमल ज्ञान दे।
परिपूरित झिलमिल तारों से, व्योम-वितान दे।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग)
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डॉ सुलक्षणा अहलावत

कुपत्री औलाद


एक बार भी नहीं पूछी उसने खैरियत मेरी,
जब भी पूछी तो उसने पूछी वसीयत मेरी।
अब पछतावा होता है मुझे मेरी नादानी पर,
किसके लिए बर्बाद कर दी शख्सियत मेरी।


जिसे अपने सीने से लगाकर नाजों से पाला,
कमाकर चँद कागज पूछता है हैसियत मेरी।
देखो! एक कोने में रोती रहती है माँ उसकी,
सोचती है क्यों नहीं पूछता वो तबियत मेरी।


गलती उसकी भी नहीं है खता मुझसे हो गई,
घर सौंपकर उसे मैंने घटा ली अहमियत मेरी।
बेटी बेटी कहते जिसे थकी नहीं जुबान कभी,
उस बहु को खराब नजर आती है नीयत मेरी।


सच कहती थी "सुलक्षणा" मत ऐतबार करो,
मुझे नहीं बस वो चाहता था मिल्कियत मेरी।
पर क्या करता, पुत्र मोह में घिरा बाप था मैं,
लूट गया आशियाना, यही है असलियत मेरी।


©® डॉ सुलक्षणा


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

शब्द ब्रह्म है
************
शब्द से ही पीड़ा
शब्द से ही गम
शब्द से ही खुशी
शब्द से ही मरहम


शब्द से प्रेम
शब्द से दुश्मन
शब्द से दोस्ती
शब्द से ही प्यार


शब्द से ही समृद्धि
शब्द से ही दीनता
शब्द से निकटता
शब्द से ही दूरियाँ


शब्द से ही अर्पण
शब्द से ही समर्पण
शब्द से ही अमृत 
शब्द ही विष


शब्द से ही नजदीकी
शब्द से ही दूरियाँ
शब्द से ही शीतलता
शब्द से ही उष्णता


शब्द ही बह्म है
शब्द ही कर्म है
शब्द ही जीवन है
शब्द ही मृत्यु है


*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
*********************


कुमार कारनिक  छाल रायगढ़ छग        

मनहरण घनाक्षरी
  गौ माता
      
यह   हमारी  गौ  माता,
दूध  दही   घी  मिलता,
सेवा से मुक्ति  मिलता,
      गाय भैंस पालिए।


चरें   गाय   कहाँ   पर,
कब्जा   हर  जहाँ  पर,
बंधे   पशुओं  के   पैर,
      चारागाह छोड़िए।


देव   रूप  पूजी  जाती,
अमृत   दूध   दे  जाती,
घर   घर   बाटी  जाती,
     शुद्ध दुग्ध पीजिए।


ग्वाल  बाल  बन   कर,
गौ माता की सेवा कर,
बंधु   चारा  दान   कर,
     गाय गोद लीजिए।
                 


             
                    ******


यशवंत"यश"सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



🥀यश के दोहे🥀



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रहा नहीं यश मोल कुछ,कौढ़ी हुईं जुबान।
करना वाणी पर नहीं, कहाँ सबूत सुजान।।


🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂


होते सज्जन सब नहीं, अपने सम इंसान।
पल पर पल में पलट यश,भूल चले ईमान।।


🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग


संजय जैन (मुम्बई)

*साथ चाहिए..*
विधा : कविता


तुझे देखे बिना अब,
मुझे चैन पड़ता नही ।
बोले बिना अब मैं,
तेरे से रह सकते नही।
कुछ तो बात है तुममें,
तभी तो संजय तेरा है।
जिंदगी के सफर में, 
बहुत आये और गये।
परन्तु तेरे जैसा दोस्त,
कम ही मिलता है।
जिसके साथ रहने से,
जिंदगी में कमल खिलते है।।


बहुत देखा जिंदगी में,
बहुतों के साथ रहकर।
बहुत सहा जिंदगी में,
लोगो के साथ रहकर।
कसम से कहता हूं में,
तेरे जैसा मिला ही नहीं।
तभी तो जिंदगी हसीन, बन गई तेरे आने से।
वरना गांव के बाहर का कुछ देखना ही नही था।।


जाने आने में ही आधी,
जिंदगी गमा दी हमने।
अब जो बची है जिंदगी,
उसे तेरे संग जीना है।
जो अब तक नही मिला
उसे तेरे साथ रहकर पाना है।
और जिंदगी का लुप्त,
हँसी खुशी से उठाना है।
अब तेरा क्या इरादा है,
मुझे अब तू बता दे।
और जिंदगी जीने का, 
तरीका अपना बता दे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
27/02/2020


निशा"अतुल्य"

आज भारत के महान सपूत चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर 
श्रद्धांजलि नमन 
        🙏🏻


नमन देश के वीरों को
नई परिभाषा लिख डाली
दे प्राणों की आहुति
आजादी की नींव जिन्होने डाली
नतमस्त है हम उनके आगे
जीने की सही वजह बता डाली


नमन श्रद्धांजलि 🙏🏻
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"गम"*
"छट जायेगी गम की बदली,
होगी खुशियों की -
जीवन में बरसात।
खिलेगा का जीवन में साथी,
अपनत्व का इन्द्रधनुष-
मिट जायेगा गम का साया।
साथी साथी होगा जो साथी,
चलेगा संग देगा हर पल -अपनत्व का अहसास।
मिटेगी कटुता जीवन से,
महकेगी जीवन बगिया-
छायेगा मधुमास।
होगी न गम छाया कही,
जीवन में पग पग -
गहरायेगा विश्वास।
छट जायेगी गम की बदली,
होगी खुशियों की-
जीवन में बरसात।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
            सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मुझे चरणों में जगह दो ओ बंशी वाले
मुझे अपना बनालो ओ श्याम मतवाले


हृदय बसी तेरे मूरत तुम्हें भूल न पाऊँ
सोते जगते स्वामी बस तेरे गुण गाऊं
मिले आशीष तेरा घेरें न बादल काले
मुझे चरणों में जगह दो ओ बंशी वाले


ऋणी हूँ भगवन तेरा मानव देह पाई
अपना अपना चाहा किन्ही न भलाई
जैसा भी हूँ दीन हीन तुम्ही रखवाले
मुझे चरणों में जगह दो ओ बंशी वाले।


श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेवा🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस।बरेली

*तेरा कल ही तेरा काल बन*
*जायेगा।मुक्तक।*


मत दो तुम नफरत से जवाब
तेरा ही सवाल  बन  जायेगा।


तेरा  अहम  का  घेरा  ही तेरे
लिये इक बवाल बन जायेगा।।


बो  कर  बबूल  का  पेड़  तुम 
आम  की उम्मीद मत  रखना।


जान लो तेरा आने वाला कल
ही  तेरा    काल  बन  जायेगा।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो               9897071046
                   8218685464


एस के कपूर श्री हंस।बरेली

*बचपन(हाइकु)*


नानी का घर
छुट्टी में मौज मस्ती
न कोई डर


महंगे सस्ते
चंदा मामा दूर के
पास लगते


फिक्र की बात
दूर   तक  चिंता न
ये है सौगात


खेल खिलौना
बचपन   यूँ  बीते
हँसना रोना


रूठो मानना
बचपन  खजाना
न है हराना


ये बचपन
पाते बच्चे सभी का
अपनापन


ये बच्चे सारे
मात पिता के तारे
बहुत प्यारे



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*दिया बनो,दियासलाई नहीं*
*मुक्तक*


कुछ लोगों का  काम ही है
दुर्भावना में  जलते  रहना।


दूसरों   को   संताप   देकर
स्वयं  ही     मचलते  रहना।।


घृणा  को   पालना  पोसना
अधिकार   बनता   उनका।


किसी और को  उठाना नहीं
नर्क में स्वयं भी ढलते रहना।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*क्रोध और अहंकार(हाइकु)*


क्रोध अंधा है
अहम  का  धंधा  है
बचो गंदा है


अहम क्रोध
कई   हैं  रिश्तेदार
न आत्मबोध


लम्हों की खता
मत  क्रोध  करना
सदियों सजा


ये भाई चारा
ये क्रोध है हत्यारा
प्रेम दुत्कारा


ये क्रोधी व्यक्ति
स्वास्थ्य सदा खराब
न बने हस्ती


क्रोध का धब्बा
बचके     रहना   है
ए   मेरे अब्बा


ये अहंकार 
जाते हैं यश धन
ओ एतबार


जब शराब
लत लगती यह
काम खराब



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मो    9897071046
        8218685464


राजेंद्र रायपुरी

😌😌  सबसे बड़ा सवाल  😌😌


दिल्ली तेरे दिल दिखें, 
                        गहरे-गहरे घाव।
नादानों ने कर दिया, 
                    जाने क्यों पथराव।


भाई-चारे का किया, 
                       नादानों ने त्याग।
चारों तरफ लगा रहे, 
                      हमने देखा आग।


दहशतगर्दों ने किया, 
                        कैसा तेरा हाल।
ऐसा लगता आ गया, 
                        जैसे हो भूचाल।


व्यथित सभी का मन हुआ, 
                      देख बुरा ये हाल।
किसको इससे क्या मिला, 
                   सबसे बड़ा सवाल।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

......................माहजबी......................


आशिक़ के लिए माशूका माहज़बी होती है।
भले ही गैरों के लिए वो अजनबी  होती है।।


हम देखते हैं सबको अलगअलग नज़रों से;
जो दिल के करीब हो वो हमनशी होती है।।


ज़माना  जो  जी  चाहे  कहे , परवाह नहीं ;
दोनों  एक  दूसरे   की  जिंदगी   होती  है।।


प्रेम  का  एहसास  एक  नायाब  जज्बा है ;
दोनों के एक  दूसरे  से  दिल्लगी  होती है।।


प्रेम भरोसा और विश्वास पर टिका होता है;
जरा भी  डगमगाए  तो  दुश्मनी  होती  है।।


प्रेम को  कभी भी  पैसे  से न  तौला  जाए ;
ऐसा करना बहुत  बड़ी  दरिंदगी  होती है।।


इस बात  के  तो  हम  कायल  हैं "आनंद" ;
सच्चा प्यार तो सबसे बड़ी बंदगी होती है।।


------------ देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


महेश राजा महासुमन्द छग

मेरा जन्मदिन 
आज जन्मदिन था।अच्छा गुजरा दिन। सभी परिवार जन,आत्मीय जनों की शुभकामनाएं प्राप्त होती रही।
एक मित्र ने कहा,-"क्या जन्मदिन मनाना,जीवन का एक बरस कम हो गया।एक दार्शनिक महोदय भी लिख गये है।


मैं थोडा अलग सोचता हूँ।कि जीवन में अनुभवों के एक बरस का ईजाफा हुआ।


जीवन के बांसठ बसंँत देख लिये।अब तो सब कुछ बोनस जैसा ही है।


सेवानिवृत हुए दो बरस हो गये।दो तीन माह बैचेनी मे कटे,पर अब एक आत्मिक सुकून महसूस होता है।
 पहले जीने के लिये समय कम पडता था।अब समय ही समय है।अपने आपसे मिल पाने का सुख।अध्यात्म से जुड पाने का सुख।और सबसे अच्छी बात लिखने के लिये समय ही समय।बिंदास लिख रहा हूँ।लोगो को पसंद भी आ रहा है।


    जिम्मेदारी या सारी पूर्ण है।बच्चें सुख से है।कभी बैंगलोर कभी गुजरात।
आज दिन भर हनुमानजी  के सानिध्य मे बीता।सबके लिये सुख ही मांगा।
हां,देश मे एक बडी घटना हो रही है,मन विचलित है।पर जो होनी है,अवश्यंभावी है।उसे कोई नहीं रोक सकता।
    पीछे मूड़कर देखता हूँ तो लगता है,बहुत कुछ पीछे छूट गया।बहुत कुछ खो गया।फिर मन कहता है,जो पास है,साथ है उसे समेट संभाल कर रहो।


   बच्चों ने बहुत कोशिश की खुश रखने की।ढ़ेर सारे गिफ्ट, केक आदि भेजे।पर,सब साथ न थे तो अकेलापन महसूस हुआ।
    
 कुश से फोन पर बात हुई अच्छा लगा।पूछा,बड़े होकर क्या गिफ्ट दोगे तो वह मासूमियत से बोला,"दादा कार।फिर तुरन्त बोला,अरे दादा,आप कार कहाँ चला पाओगे ,मैं ही चला कर मंदिर ले चलूंगा।


सब कुछ अच्छा ही लग रहा है।जीवन की दिशा तो स्वयं ही चुननी है।क्या खोया,क्या पाया वाले भाव उठते रहते है।पर मेरा पोता  हमेंशा कहता है ,-"सब बढिया है...सचमुच सब बढिया ही तो है।


हांँ बीते दिनों को आदरणीय हरिवंशराय बच्चन के शब्दो मे कुछ यूं प्रस्तुत कर अपनी वाणी को विराम देता हूंँ।


सोचा करता बैठ अकेले
गत जीवन के सुख-दुःख झेले
दंँशनकारी सुधियों से मै उर के छाले सहलाता हूँ।


ऐसे मे मन बहलाता हूँ।
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम।
उर के घावों को आंसू के छालों से नहलाता हूं।
ऐसे मैं मन बहलाता हूं*।
महेश राजा महासुमन्द छग


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  झज्जर (हरियाणा )

बस यूं ही..... 


जब तन्हा हुआ 
अपनी रोज़ाना की दिनचर्या से 
कुछ भी महसूस ना हुआ 
जैसे संवेदना क्षीण हो गयी 
सेहर मे मगन रहा 
दोपहर में गुम रहा 
आयी जो शाम तो 
फिर मुझसे रुका ना गया 
चला गया ऊँची किसी छत पर 
और निहारने लगा चाँद -तारों को 
मन में सवाल उठा 
जैसे मानव सोच का कोई अंत नहीं 
वैसे ही आकाश का कोई अंत नहीं 
दूर तलक चाँद रूपी मानव 
और बाकी तारों भरी दुनियादारी 
वही रात -ए -निशा 
वही ज़िन्दगी 
और सुकून ढूंढ़ते लोग 
लेकिन ये सच है "उड़ता "
मनुष्य रहता है अकेला तमाम  उम्र. 



✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
झज्जर (हरियाणा )


मासूम मोडासवी

क्या  दिलमे  है ये  बात बताइ नहीं जाती 
बस इतनी हकिकत भी जताइ नही जाती


अब तेरे सीवा किससे निभायेंगे वफा हम
धडकन जो मेरे दिल की सुनाइ नहीं जाती


युं  छाये  से  रहते हो  खयालों  मे मेरे तुम
हमसे तो  अब ये  बात  छुपाई नही  जाती


इक  तुम  हो  जमाने मे हमे  अपने लगे हो
चाहत  है  ये  अयसी जो दबाई नही जाती


मासूम हमें  आज  नजर  अंदाज  किया  है
दिलसे  हमारे  उसकी  खुदाई  नही  जाती


                            मासूम मोडासवी


बलराम सिंह यादव पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PANDIT. धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानंद पर धामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कृत नाना।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो परमेश्वर एक हैं, जिनके कोई इच्छा नहीं है, जिनका कोई रूप और नाम नहीं है,जो अजन्मा,सच्चिदानन्द और परमधाम हैं और जो सबमें व्यापक एवं विश्वरूप हैं, उन्हीं भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके नाना प्रकार की लीला की है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  इन पंक्तियों में गो0जी ने ईश्वर के दस विशेषण वर्णित किये हैं।यथा,,
1--एक अर्थात अकेले ही सर्वत्र होने से परमेश्वर एक अथवा अद्वितीय है।मानस में भी कहा गया है--
जेहि समान अतिशय नहिं कोई।
2--अनीह अर्थात इच्छा या चेष्टा रहित,सदा एकरस अथवा अनुपम।
3--अरूप अर्थात जिसका कोई रूप नहीं है।अथवा जो सभी रूपों में व्याप्त है।
4--अनामा अर्थात जिसका कोई नाम नहीं है अथवा जिसके अनन्त नाम हैं।और जो राशि,लग्न,योग,नक्षत्र, मुहूर्त्त एवं सर्वक्रियाकाल से रहित है।
5--अज अर्थात जो अजन्मा है अथवा जो जन्ममरण से रहित है।वह कभी जन्म नहीं लेता है, बल्कि प्रकट होता है।यथा,,
विश्वरूप प्रगटे भगवाना।
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसिल्या हितकारी।
6--सच्चिदानन्द अर्थात सत्य,चेतन और आनन्द से परिपूर्ण।सत अथवा सत्य अर्थात जिसका कभी नाश नहीं होता है।चेतन अर्थात सर्वज्ञ अथवा सब कुछ जानने वाला।आनन्द अर्थात सभी दुखों से रहित।अथवा पूर्णरूपेण हर्ष व शोक से रहित सदा सर्वदा एकरस अखण्ड आनन्दरूप।
7--परधामा अर्थात दिव्यधाम वाले अथवा जिनका धाम सबसे परे है और जो सबसे श्रेष्ठ, तेजस्वी व प्रभाव वाला है।
8--व्यापक अर्थात जो परमाणु व अणुरूप से समस्त ब्रह्माण्डों के सभी प्राणियों में व्याप्त है।
9--विश्वरूप अर्थात जो विराटरूप से सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है।यथा,,
विश्वरूप रघुबंसमनि करहु बचन बिस्वास।
लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु।।
पद पाताल सीस अज धामा।
अपर लोक अंग अंग बिश्रामा।।
भृकुटि बिलास भयंकर काला।
नयन दिवाकर कच घन माला।।
जासु घ्रान अश्विनीकुमारा।
निसि अरु दिवस निमेष अपारा।।
श्रवन दिसा दस बेद बखानी।
मारुत स्वास निगम निज बानी।।
अधर लोभ जम दसन कराला।
माया हास बाहु दिगपाला।।
आनन अनल अम्बुपति जीहा।
उतपति पालन प्रलय समीहा।।
रोमराजि अष्टादस भारा।
अस्थि सैल सरिता नस जारा।।
उदर उदधि अधगो जातना।
जगमय प्रभु का बहु कलपना।।
अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान।
मनुज बास सचराचर बिश्वरूप भगवान।।
10--भगवान अर्थात सभी की उतपत्ति, पालन और सँहार करने वाला,सभी ऐश्वर्यों से युक्त, सम्यक वीर्यवान,यशवान,श्रीवान,
ज्ञानवान व गुणवान तथा वैराग्यवान।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

मुझको मत ठुकराना प्रिये
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जीवन की मादक घड़ियों में,
मुझको मत ठुकराना प्रिये,


नव ऊषा लेकर आएगी,
जब मधुमय जीवन लाली,
कुहू- कुहू कर बोलेगी,
जब कोयलिया काली -काली।
नव  रस से भर जाएगी,
जब बसन्त की डाली -डाली,
लहरेगी किसलय-किसलय,
पावन यौवन की हरियाली,
ऐसी मधुमय घड़ियों में,
तुम विरह गीत न गाना  प्रिये।


छोटी -छोटी मन -रंजन,
और हरी -हरी द्रुम लतिकाएँ,
प्रातः मोती के चमकीले कण,
सलाज से भर लाएँ,
मादक यौवन में जब भौंरे
उन पर गुन-गुन कर खाएँ।
लहर -छहर कर प्रकृति विचरती,
हो जब कोमल रचनाएं,
तब ऐसी मधुमय में,
पल भर तुम मुस्काना  प्रिये,


चूम धरा जब हंसती हो,
नटखट बदली सावन वाली।
नाचें मयूरी देख घटाएँ,
अम्बर में घिरती काली,
पी-पी के स्वर में चातक ,
जब दे उंडेल स्वर की प्याली,
ऐसी सुखदायी घड़ियों में पास तनिक तुम आना प्रिये।।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


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