एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*दिया बनो,दियासलाई नहीं*
*मुक्तक*


कुछ लोगों का  काम ही है
दुर्भावना में  जलते  रहना।


दूसरों   को   संताप   देकर
स्वयं  ही     मचलते  रहना।।


घृणा  को   पालना  पोसना
अधिकार   बनता   उनका।


किसी और को  उठाना नहीं
नर्क में स्वयं भी ढलते रहना।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*क्रोध और अहंकार(हाइकु)*


क्रोध अंधा है
अहम  का  धंधा  है
बचो गंदा है


अहम क्रोध
कई   हैं  रिश्तेदार
न आत्मबोध


लम्हों की खता
मत  क्रोध  करना
सदियों सजा


ये भाई चारा
ये क्रोध है हत्यारा
प्रेम दुत्कारा


ये क्रोधी व्यक्ति
स्वास्थ्य सदा खराब
न बने हस्ती


क्रोध का धब्बा
बचके     रहना   है
ए   मेरे अब्बा


ये अहंकार 
जाते हैं यश धन
ओ एतबार


जब शराब
लत लगती यह
काम खराब



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मो    9897071046
        8218685464


राजेंद्र रायपुरी

😌😌  सबसे बड़ा सवाल  😌😌


दिल्ली तेरे दिल दिखें, 
                        गहरे-गहरे घाव।
नादानों ने कर दिया, 
                    जाने क्यों पथराव।


भाई-चारे का किया, 
                       नादानों ने त्याग।
चारों तरफ लगा रहे, 
                      हमने देखा आग।


दहशतगर्दों ने किया, 
                        कैसा तेरा हाल।
ऐसा लगता आ गया, 
                        जैसे हो भूचाल।


व्यथित सभी का मन हुआ, 
                      देख बुरा ये हाल।
किसको इससे क्या मिला, 
                   सबसे बड़ा सवाल।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

......................माहजबी......................


आशिक़ के लिए माशूका माहज़बी होती है।
भले ही गैरों के लिए वो अजनबी  होती है।।


हम देखते हैं सबको अलगअलग नज़रों से;
जो दिल के करीब हो वो हमनशी होती है।।


ज़माना  जो  जी  चाहे  कहे , परवाह नहीं ;
दोनों  एक  दूसरे   की  जिंदगी   होती  है।।


प्रेम  का  एहसास  एक  नायाब  जज्बा है ;
दोनों के एक  दूसरे  से  दिल्लगी  होती है।।


प्रेम भरोसा और विश्वास पर टिका होता है;
जरा भी  डगमगाए  तो  दुश्मनी  होती  है।।


प्रेम को  कभी भी  पैसे  से न  तौला  जाए ;
ऐसा करना बहुत  बड़ी  दरिंदगी  होती है।।


इस बात  के  तो  हम  कायल  हैं "आनंद" ;
सच्चा प्यार तो सबसे बड़ी बंदगी होती है।।


------------ देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


महेश राजा महासुमन्द छग

मेरा जन्मदिन 
आज जन्मदिन था।अच्छा गुजरा दिन। सभी परिवार जन,आत्मीय जनों की शुभकामनाएं प्राप्त होती रही।
एक मित्र ने कहा,-"क्या जन्मदिन मनाना,जीवन का एक बरस कम हो गया।एक दार्शनिक महोदय भी लिख गये है।


मैं थोडा अलग सोचता हूँ।कि जीवन में अनुभवों के एक बरस का ईजाफा हुआ।


जीवन के बांसठ बसंँत देख लिये।अब तो सब कुछ बोनस जैसा ही है।


सेवानिवृत हुए दो बरस हो गये।दो तीन माह बैचेनी मे कटे,पर अब एक आत्मिक सुकून महसूस होता है।
 पहले जीने के लिये समय कम पडता था।अब समय ही समय है।अपने आपसे मिल पाने का सुख।अध्यात्म से जुड पाने का सुख।और सबसे अच्छी बात लिखने के लिये समय ही समय।बिंदास लिख रहा हूँ।लोगो को पसंद भी आ रहा है।


    जिम्मेदारी या सारी पूर्ण है।बच्चें सुख से है।कभी बैंगलोर कभी गुजरात।
आज दिन भर हनुमानजी  के सानिध्य मे बीता।सबके लिये सुख ही मांगा।
हां,देश मे एक बडी घटना हो रही है,मन विचलित है।पर जो होनी है,अवश्यंभावी है।उसे कोई नहीं रोक सकता।
    पीछे मूड़कर देखता हूँ तो लगता है,बहुत कुछ पीछे छूट गया।बहुत कुछ खो गया।फिर मन कहता है,जो पास है,साथ है उसे समेट संभाल कर रहो।


   बच्चों ने बहुत कोशिश की खुश रखने की।ढ़ेर सारे गिफ्ट, केक आदि भेजे।पर,सब साथ न थे तो अकेलापन महसूस हुआ।
    
 कुश से फोन पर बात हुई अच्छा लगा।पूछा,बड़े होकर क्या गिफ्ट दोगे तो वह मासूमियत से बोला,"दादा कार।फिर तुरन्त बोला,अरे दादा,आप कार कहाँ चला पाओगे ,मैं ही चला कर मंदिर ले चलूंगा।


सब कुछ अच्छा ही लग रहा है।जीवन की दिशा तो स्वयं ही चुननी है।क्या खोया,क्या पाया वाले भाव उठते रहते है।पर मेरा पोता  हमेंशा कहता है ,-"सब बढिया है...सचमुच सब बढिया ही तो है।


हांँ बीते दिनों को आदरणीय हरिवंशराय बच्चन के शब्दो मे कुछ यूं प्रस्तुत कर अपनी वाणी को विराम देता हूंँ।


सोचा करता बैठ अकेले
गत जीवन के सुख-दुःख झेले
दंँशनकारी सुधियों से मै उर के छाले सहलाता हूँ।


ऐसे मे मन बहलाता हूँ।
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम।
उर के घावों को आंसू के छालों से नहलाता हूं।
ऐसे मैं मन बहलाता हूं*।
महेश राजा महासुमन्द छग


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  झज्जर (हरियाणा )

बस यूं ही..... 


जब तन्हा हुआ 
अपनी रोज़ाना की दिनचर्या से 
कुछ भी महसूस ना हुआ 
जैसे संवेदना क्षीण हो गयी 
सेहर मे मगन रहा 
दोपहर में गुम रहा 
आयी जो शाम तो 
फिर मुझसे रुका ना गया 
चला गया ऊँची किसी छत पर 
और निहारने लगा चाँद -तारों को 
मन में सवाल उठा 
जैसे मानव सोच का कोई अंत नहीं 
वैसे ही आकाश का कोई अंत नहीं 
दूर तलक चाँद रूपी मानव 
और बाकी तारों भरी दुनियादारी 
वही रात -ए -निशा 
वही ज़िन्दगी 
और सुकून ढूंढ़ते लोग 
लेकिन ये सच है "उड़ता "
मनुष्य रहता है अकेला तमाम  उम्र. 



✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
झज्जर (हरियाणा )


मासूम मोडासवी

क्या  दिलमे  है ये  बात बताइ नहीं जाती 
बस इतनी हकिकत भी जताइ नही जाती


अब तेरे सीवा किससे निभायेंगे वफा हम
धडकन जो मेरे दिल की सुनाइ नहीं जाती


युं  छाये  से  रहते हो  खयालों  मे मेरे तुम
हमसे तो  अब ये  बात  छुपाई नही  जाती


इक  तुम  हो  जमाने मे हमे  अपने लगे हो
चाहत  है  ये  अयसी जो दबाई नही जाती


मासूम हमें  आज  नजर  अंदाज  किया  है
दिलसे  हमारे  उसकी  खुदाई  नही  जाती


                            मासूम मोडासवी


बलराम सिंह यादव पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PANDIT. धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानंद पर धामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कृत नाना।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो परमेश्वर एक हैं, जिनके कोई इच्छा नहीं है, जिनका कोई रूप और नाम नहीं है,जो अजन्मा,सच्चिदानन्द और परमधाम हैं और जो सबमें व्यापक एवं विश्वरूप हैं, उन्हीं भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके नाना प्रकार की लीला की है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  इन पंक्तियों में गो0जी ने ईश्वर के दस विशेषण वर्णित किये हैं।यथा,,
1--एक अर्थात अकेले ही सर्वत्र होने से परमेश्वर एक अथवा अद्वितीय है।मानस में भी कहा गया है--
जेहि समान अतिशय नहिं कोई।
2--अनीह अर्थात इच्छा या चेष्टा रहित,सदा एकरस अथवा अनुपम।
3--अरूप अर्थात जिसका कोई रूप नहीं है।अथवा जो सभी रूपों में व्याप्त है।
4--अनामा अर्थात जिसका कोई नाम नहीं है अथवा जिसके अनन्त नाम हैं।और जो राशि,लग्न,योग,नक्षत्र, मुहूर्त्त एवं सर्वक्रियाकाल से रहित है।
5--अज अर्थात जो अजन्मा है अथवा जो जन्ममरण से रहित है।वह कभी जन्म नहीं लेता है, बल्कि प्रकट होता है।यथा,,
विश्वरूप प्रगटे भगवाना।
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसिल्या हितकारी।
6--सच्चिदानन्द अर्थात सत्य,चेतन और आनन्द से परिपूर्ण।सत अथवा सत्य अर्थात जिसका कभी नाश नहीं होता है।चेतन अर्थात सर्वज्ञ अथवा सब कुछ जानने वाला।आनन्द अर्थात सभी दुखों से रहित।अथवा पूर्णरूपेण हर्ष व शोक से रहित सदा सर्वदा एकरस अखण्ड आनन्दरूप।
7--परधामा अर्थात दिव्यधाम वाले अथवा जिनका धाम सबसे परे है और जो सबसे श्रेष्ठ, तेजस्वी व प्रभाव वाला है।
8--व्यापक अर्थात जो परमाणु व अणुरूप से समस्त ब्रह्माण्डों के सभी प्राणियों में व्याप्त है।
9--विश्वरूप अर्थात जो विराटरूप से सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है।यथा,,
विश्वरूप रघुबंसमनि करहु बचन बिस्वास।
लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु।।
पद पाताल सीस अज धामा।
अपर लोक अंग अंग बिश्रामा।।
भृकुटि बिलास भयंकर काला।
नयन दिवाकर कच घन माला।।
जासु घ्रान अश्विनीकुमारा।
निसि अरु दिवस निमेष अपारा।।
श्रवन दिसा दस बेद बखानी।
मारुत स्वास निगम निज बानी।।
अधर लोभ जम दसन कराला।
माया हास बाहु दिगपाला।।
आनन अनल अम्बुपति जीहा।
उतपति पालन प्रलय समीहा।।
रोमराजि अष्टादस भारा।
अस्थि सैल सरिता नस जारा।।
उदर उदधि अधगो जातना।
जगमय प्रभु का बहु कलपना।।
अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान।
मनुज बास सचराचर बिश्वरूप भगवान।।
10--भगवान अर्थात सभी की उतपत्ति, पालन और सँहार करने वाला,सभी ऐश्वर्यों से युक्त, सम्यक वीर्यवान,यशवान,श्रीवान,
ज्ञानवान व गुणवान तथा वैराग्यवान।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

मुझको मत ठुकराना प्रिये
********************
जीवन की मादक घड़ियों में,
मुझको मत ठुकराना प्रिये,


नव ऊषा लेकर आएगी,
जब मधुमय जीवन लाली,
कुहू- कुहू कर बोलेगी,
जब कोयलिया काली -काली।
नव  रस से भर जाएगी,
जब बसन्त की डाली -डाली,
लहरेगी किसलय-किसलय,
पावन यौवन की हरियाली,
ऐसी मधुमय घड़ियों में,
तुम विरह गीत न गाना  प्रिये।


छोटी -छोटी मन -रंजन,
और हरी -हरी द्रुम लतिकाएँ,
प्रातः मोती के चमकीले कण,
सलाज से भर लाएँ,
मादक यौवन में जब भौंरे
उन पर गुन-गुन कर खाएँ।
लहर -छहर कर प्रकृति विचरती,
हो जब कोमल रचनाएं,
तब ऐसी मधुमय में,
पल भर तुम मुस्काना  प्रिये,


चूम धरा जब हंसती हो,
नटखट बदली सावन वाली।
नाचें मयूरी देख घटाएँ,
अम्बर में घिरती काली,
पी-पी के स्वर में चातक ,
जब दे उंडेल स्वर की प्याली,
ऐसी सुखदायी घड़ियों में पास तनिक तुम आना प्रिये।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर (हरियाणा )

दो और दो पाँच.... 


सरकारी स्कूल की आँच 
जैसे बच्चों के भविष्य काँच 
एक दिन इंस्पेक्टर करने आए जाँच 
एक छात्र  से पूछा 
"दो और दो कितने हुए "? "
छात्र ने कहा पाँच 
मास्टर आगे आया 
पीठ थपथपा छात्र को बैठाया
इंस्पेक्टर बोला 
"अरे ओ सत्यानाशी  
गलत गणित पर देता शाबाशी "
मास्टर मिमियाने लगा 
"क्यों होते हो नाराज़ "? "
बतला दूंगा आपको इस छात्र का राज. 
कल जब आप नहीं आए थे 
तब दो और दो छः बतलाये थे
आज बतलाये पाँच, 
प्रगति करता जाएगा 
कल हुजूर यह स्वतः
चार पर आ जाएगा. 
अगर यही हाल रहा "उड़ता "
तो समाज कहाँ चला जाएगा. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर (हरियाणा )

जाना चाहा... 


जब उसने मुझसे दूर जाना चाहा. 
दिल ने उसे रोककर, कुछ कहना चाहा. 


उसने हंसकर कह दिया जो अलविदा, 
दिल ने अकेले में आँसू बहाना  चाहा. 


उसके बिछुड़ने का सबब दर्द दे रहा, 
दिल कुछ सोचकर बहुत घबराया. 


छोड़ कर चला गया साथ वो मेरा, 
जैसे मेरी पूरी ज़िन्दगी ले गया. 


उसका वही अक्स हर वक़्त मेरे सामने, 
उसके जाते -जाते मैंने हाथ हिलाना चाहा. 


नज़रें उसे ओझल होते देख थक गयी, 
मैंने फिर भी एक बार मुस्कुराना चाहा. 


मत रोक जाने वाले को "उड़ता ", 
तुमने लफ़्ज़ों को जोड़ नज़्म बनाना चाहा.


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


श्याम कुँवर भारती [राजभर]  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

हिंदी गजल- अब सफा कीजिये |
टूटे रिश्तो मे जान बाकी हो अगर ,
प्यार से सींचकर अब सफा कीजिये |
काँच के जैसा होता है दिल का रिस्ता यहा |
टूट न जाये दील अब बचा कीजिये |
लाखो मिल जाएँगे सबको सबकी जवानी मे |
ढल जवानी हमसफर अब ढूंढा कीजिये | 
तेरी दौलत के खातिर है चाहने वाले कई |
करता कौन मोहब्बत अब पता कीजिये |
हुशनों जवानी के है सब भूखे यहा |
जल जाये जवानी जुल्मो न खता कीजिए |
दिल की बात दिल मे न रखिए जनाब |
गर हो शिकायत कोई अब रफा कीजिये |
मिल गया जो दिल का रिश्ता उसे कबुल करो |
गर हो गई भूल कोई अब दफा कीजिये |
टूटे रिश्तो मे जान बाकी हो अगर ,
प्यार से सींचकर अब सफा कीजिये |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"स्त्री बड़ी महान"*
"गरीब के चलते वो तो,
निकली घर से-
करने मज़दूरी का काम।
कड़ी धूप में सिर पर बोझा,
होठो पर है-मुस्कान-
ये स्त्री बड़ी महान।
मुस्कान के पीछे छिपी 
खुशी,
मिलेगा इससे अन्न जल -
फिर करेगी वो आराम।
थक भी जाये वो तो भी,
गरीबी से होगी न परेशान-
होठो पर बनी रहेगी मुस्कान।
गरीबी के चलते वो तो,
निकली घर से-
करने मज़दूरी का काम।।"
     सुनील कुमार गुप्ता


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "

सुप्रभात:-


विश्वास और कड़ी मेहनत असफलताओं को हटाती है।
जिंदगी में हमें नए-नए द्वार सफलताओं  के दिखाती है।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।बरेली

*बस प्रेम का इज़हार हो तेरे किरदार में।*
*।।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


बस    महोब्बत का  ही  पैगाम
हो   तेरे  सरोकार से।


बस  अच्छी  बातों  का  बखान
हो  तेरे  इज़हार   से ।।


सवाल जिंदगी से  मत करो कि
क्या   दिया   है  उसने।


बस बनो  तुम  सबके  मेहरबान
हो सके तेरे किरदार से।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*विविध हाइकु।।।।।।*


ये पहचान 
अच्छे दोस्तों की है
होते कुर्बान


सफर जारी
चलना हिम्मत से
ये है तैयारी


जो हम बोते
पाते वैसा ही हम
हंसे या रोते


ये तकदीर
तेरे अपने हाथ
बने तस्वीर


हिचकी आना
बुला रहा कोई है
दूर न मकां


बुरा कोई ना
नज़रों का फेर है
एक सा समां


हाथ का खेल
पत्थर    बदनाम
मन की रेल


कैसा जमाना
करे पर    भरे ना
ऐसा जमाना


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*जीवन//यूँ ही जीने का नाम नहीं है।*
*मुक्तक*


जीवन एक कर्म शाला  कोई
ऐशो   आराम  नहीं  है।


है ये संघर्ष का  तपोवन  कोई
जंग का  मैदान नहीं  है।।


मत पलायन  से  बदनाम कर
इस अनमोल  जीवन  को।


बिन पूरे करे सरोकारों को प्रभु
का उतरता एहसान नहीं है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो      9897071046
         8218685464


संजय जैन (मुम्बई)

*क्यो बुला रहे हो*
विधा : कविता


दिल की गैहराईयों,
से मुझे देखो।
सामने में नजर आऊंगा।
चाँद को पाने के लिए, 
कही भी आ जाऊंगा।
बस दिलसे एक बार,
आवाज़ दो हमें।
मैं खुद तुम्हारे समाने, 
हाजिर हो जाऊंगा।।


न हम गलत है,
और न हमारी सोच।
न तुम गलत हो और,
न ही में समझता हूँ।
ये तो दिल की बातें है,
 जो हम दोनों करते है।
जब प्यार हुआ है तो,
निभाएंगे भी हम दोनों।
और जब मिलेंगे तो,
दिलके अरमान लुटाएंगे भी।।


होठों पे आज कल, 
बहुत हंसी है।
तेरे दिल में भी 
बहुत खुशी है।
कुछ तो तेरे दिल में,
हलचल मच रही है।
तभी मेरे को मिले को,
 तुम बुला रही हो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
26/02/2020


राजेंद्र रायपुरी

सिंह बिलोकित छंद पर एक मुक्तक ----


धन के बल जिनको वोट मिले।
उनके  मन  में  ही  खोट  मिले।
होती   है   उनकी   चाह   यही,
दस  के  बदले  सौ  नोट  मिले।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
   *"पर्यावरण"*
"इतने लगाये वृक्ष,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहे वन।
प्रात:भ्रमण को मिले,
सार्थकता-
तृप्त हो नयन।
शुद्ध हो वातावरण,
कम हो प्रदूषण-
शांतिपूर्ण हो शयन।
महकता रहे जीवन में,
उपवन सारा-
सुगन्धित हो सुमन।
मिलते रहे फल- फूल-औषधी,
सार्थक हो जीवन-
बलिष्ठ हो तन-मन।
भटके न नभचर कही,
आसरा मिले उनको-
सार्थक हो पर्यावरण।
इतने लगाये वृक्ष,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहे वन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः      सुनील कुमार गुप्ता

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः


सत्यप्रकाश पाण्डेय

काहे का गरूर करे तू काहे अभिमान है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


रूप रंग सौंदर्य देख के जो तू इतराबें है
ढल जाये जवानी फिर काम न आबें है
बन्द आँखों से देख चहुओर सुनसान है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


आये बलशाली बहुत धूल में मिल गये
नामोनिशा न शेष जीवन उनके गल गये
हरि को तू भजले बन्दे होगा निर्वाण है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है


यहां नहीं कोई तेरा मतलब का संसार है
जीते जी के रिश्ते सारे और न आधार है
राधे कृष्ण रट ले मानव होगा कल्याण है
चार दिन की जिंदगी काहे का गुमान है।



श्रीराधे कृष्ण🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे करूणानिधान दया करो
********************
हे करूणानिधान अपनी कृपा बरसाओं
हमें सत्य की राह बताओ
कभी किसी को सताये नहीं
ऐसी सुमति हमें देना प्रभु।



हे करूणानिधान दया करो
अपनी कृपा बनाए रखें
हम अज्ञानी  तेरी शरण में
हमें सही राह बताना प्रभु।


ये जीवन तुम्ही ने दिया है
राह भी तुम्हें बताओ प्रभु
हो  गई है भूल कोई तो
राह सही बताओ प्रभु ।


कभी किसी बुरा न करुं
दया भाव हो हृदय में
मस्तक तुम्हारे चरणों में हो
ऐसी बुद्धि दे दो प्रभु।


हे करूणानिधान दया करो
जग में न कोई किसी जीव को
पीड़ा कभी न पहुंचाएं प्रभु
ऐसी सब की बुद्धि कर दो।
**************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कैलाश , दुबे होशंगाबाद

ऐ गम के बादलों तुम दूर चले जाओ ,


वहीं खड़े रहो अभी मेरे नजदीक न आओ ,


जो लिखा हो मेरे नसीब में लिखा रहे ,


पर पहले से मेरे नजदीक तो न आओ ,


कैलाश , दुबे


भुवन बिष्ट                     रानीखेत( उत्तराखंड

*प्रभात वंदन*
नव दीप जले हर मन में, 
अब तो भोर हुई हुआ उजियारा। 
    लगे विहग धरा में चहकने, 
    रवि किरणों से जग सजे सारा।। 
बहे पावन सरिता का जल, 
हिमशिखरों पर लालिमा छायी। 
     बनकर ओस की बूँदें छोटी,  
     जल मोती यह मन को भायी ।।
भानू की अब चमक देखकर,
छिप गये तारे हुआ उजियारा।
       सजाया है जग निर्माता ने, 
       नभ जल थल सुंदर प्यारा।।
                       ......भुवन बिष्ट
                    रानीखेत( उत्तराखंड)


वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा

आँखो में भर आया पानी 
बेटी जीवन की यही कहानी 
रो रोके हो गया बुरा हाल 
बाबुल की बिटियाँ चली ससुराल 
नन्ही से चिड़ियाँ चली ससुराल  



कल तक तो खेली इस आँगन में 
तितली बन मंडराई  उपवन में 
पीछे छुट गई है बगिया
मेरी सारी सहेली सखियाँ
 टुकटुक मैं जिनको रही निहार ।
बाबुल की बिटिया चली ससुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल । 


छोटी छोटी बातों पे रुठना मनाना
बाबा तेरे संग में वो हँसना हँसाना
माँ की वो मीठी लोरी
संग में तेरे खेली होरी
यादों का उठा हैं  भूचाल ।
बाबुल की बिटिया चली ससुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल  ।


जिस आंचल में पली वो हो रहा पराया 
छूट रहा सर से अपनो का साया  
कैसी आई ये घडि़या 
पल भर में बीती  सदियां
दिल में घिरे कितने सवाल ।
बाबुल की बिटिया चली ससुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल  ।


वादा है मै सबका मान बढाऊंगी 
रिश्तो को सारे मन से निभाऊंगी।
 तेरी ही सिखाई बाते 
याद रखूंगी दिन राते
रखूंगी सबका दिल से ख्याल ।
बाबुल की बिटिया चली सुसुराल ।
नन्ही सी चिड़ियाँ चली ससुराल  ।


वैष्णवी पारसे


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