एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*।।।।।।।।।।।*
*चंद्रशेखर आजाद जी के बलिदान दिवस * *27 फरवरी पर श्रद्धांजलि अर्पित।*


*मुक्तक माला*
*1............*
आज़ाद     की गाथा  तो  है
आज भी प्रेरणा की कारण।


आज़ादी के लिए हँसते हँसते
किया  था मृत्यु को धारण।।


पराधीनता सपनेहुँ सुख नाही
चढ़  गए  वह  सूली  पर।


गुलामी    में     नहीं     किया
कभी  भी  वंदना  चारण।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,*
जालियाँ  वाला  बाग का समय
और समय  उसके  बाद।


भारत की स्वाधीनता को बेताब
थे भगत सिंह और आजाद।।


प्राण   किये     न्यौछावर   और
हो    गए    वह   शहीद ।


आज सब भारत वासी कर रहे
नम  आँखों  से   याद ।।
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।*
मोब।।।।9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा

मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


सुबह से शाम तक करती हूं मैं काम 
एकपल भी नहीं करती आराम
अपनों का रखती हूं हरदम ख्याल 
भूलकर अपना ही होश और हाल
मजबूत जिसकी डोर ऐसी मैं पतंग 
मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


कितनी ही भूमिकाएँ मैंने अदा की
माँ, पत्नी, बहन, बेटी
पर मेरी जरूरत इतनी ही क्या
बनाऊ मैं बस दो वक्त की रोटी
कब मिलेगी मुझे आजादी मेरे जीने का ढंग 
मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


जीजाबाई का मातृत्व मुझमे लक्ष्मी सी आग
राधा का समर्पण मुझमे सीता सा त्याग
गंगा की पवित्रता मुझमे दुर्गा सा शौर्य 
उर्वशी की चंचलता मुझमे धरती सा धैर्य
समुंदर भी सहम जाए ऐसी मैं तरंग 
मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


वैष्णवी पारसे


डॉ सुलक्षणा अहलावत

मुझसे ना किया करो ये धर्म मजहब की बातें,
सुनो! मेरे ईश्वर औऱ तुम्हारे उस रब की बातें।
तुम्हें कुरान प्यारी है और मुझको मेरी गीता,
तुम्हें कट्टरता की, मुझे पसंद अदब की बातें।


देखो छिड़ जाएगी किसी दिन अपनी भी जंग,
मत किया करो तुम मुझसे बेमतलब की बातें।
सच तुमसे सहन नहीं होगा और झूठ मुझसे,
अपने तक रखो मियाँ अपनी अजब की बातें।


इतिहास के पन्नों को पलटकर देखना कभी,
फिर आकर करना तुम मुझसे तब की बातें।
बस हवाई किले बनाते हो तुम बरगलाने को,
दुनिया जानती है नहीं की तुमने ढब की बातें।


वक़्त के साथ खुद को भी बदलना सीखो तुम,
"सुलक्षणा" दिखा आईना करती अब की बातें।
कोई नतीजा नहीं निकलना अपनी बहस का,
आओ अपनी अपनी छोड़ करें सब की बातें।


©® डॉ सुलक्षणा


मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

होली गीत
नैनों में रखती मधुशाला
तुम वो छैल छबीली हो।
*रंग भरी पिचकारी लेकर,*
*लगती बड़ी रसीली हो।।*


तुमसे सारे रंग जहाँ के,
रंग भरी रंगशाला हो।
बातों में रस ऐसे घोलो,
जैसे प्रेम पियाला हो।
तुमको देखूँ खुद को भूलूँ,
ऐसी बनी नशीली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला.......।।


पिचकारी के प्रेम रंग से,
तुमने मुझे भिगा डाला।
जान सकूँ रंगों की भाषा,
ऐसा ज्ञान करा डाला।।
सतरंगी अम्बर सी लगती,
मोहक बड़ी सजीली हो।
नैनों में रखती मधुशाला........।।


लाल रंग प्रेमी का होये,
दुल्हन रूप सजाता है।
हरा,गुलाबी पीला रंग भी,
अन्तर्मन बहकाता है।
पास कहूँ या दूर तुम्हें मैं,
लगती सदा पहेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला.......।।


उड़े हुए रंगों से मिलकर
नया रंग बन जाती हो।
भूल सदा तुम बैर भाव को,
प्रीत की रीत चलाती हो।
बाहों में भर लूँ मैं तुमको,
ऐसी नार नवेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला .....।।


अपने रंगों में रंग डालो,
मैं तेरा दीवाना हूँ।
दहन होलिका से करवा दो,
मैं तेरा परवाना हूँ।
तुमसे साँसे तुमसे धड़कन,
मधु जीवन  की बेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला........।।


कान्हा की मुरली में तुम हो,
शिव के डमरू में तुम हो।
नारद के करतल में बसती,
वीणा की धुन में तुम हो।
सुर सरगम का सार तुम्हीं से,
मधु तुम बहुत सुरीली हो।।


नैनों में रखती मधुशाला
तुम वो छैल छबीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


मधु शंखधर 'स्वतंत्र'* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*विषय -- प्रेम*


◆ *प्रेम* कृष्ण की बाँसुरी,राधा का अनुराग।
मीरा की वीणा बजी,अन्तर्मन में त्याग।
प्रेम सुदामा का अटल, सहज सखा सम भाव।
दीन सुदामा जब मिले ,गया प्रेम तब जाग।।


◆प्रेम भक्ति के भाव में, दर्शन की बहु प्यास।
माता की ममता यही, पिता ह्रदय में खास।
प्रेम बिना बंधन नहीं, मिथ्या सारे भाव,
प्रेम ईश का रूप है, प्रेम अटल विश्वास।।


◆प्रेम शब्द पूरा नहीं, जाने सकल समाज।
त्याग बिना है प्रेम क्या? महज मनुज का काज।
अहम् भावना से सदा, प्रेम का होता नाश,
प्रेम त्याग का रूप है, *मधु* जीवन का राज।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹


सुधा मोदी तरू

हिमालय
———-
गीत
——
सामने तन के हर पल खड़ी हो गयी।
ये दुल्हन हिमशिखर से बड़ी हो गयी।
देके अपना सजन,करके माटी नमन
बन सुमन हिन्द की मंजरी हो गयी।


वेदना की धवल बिजलियाँ छा रही।
पर सघन बादलों से किरण आ रही।
शिव की गंग बनी जलझड़ी हो गयी।
ये दुल्हन हिमशिखर से बड़ी हो गयी।


सरहदों पे तिरंगा जो लहरायेगा।
 सत्यघोष हिमालय भी दोहरायेगा।
भारती के लिये  खुश  घड़ी हो गयी।
ये दुल्हन हिमशिखर से बड़ी हो गयी।
               सुधा मोदी तरू


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु बाढ़ - पटना

गीतिका 


छुपा लो सर अब अपना कहीं ये कट न जाए
जयचन्दों  से  हिन्दुस्तान कहीं ये बट न जाए।


तुम अपने ही घर आग लगाना अब छोड़ दो 
बम  ये  बारुद तुम्हारे सर कहीं फट न जाए।


भीतर  घात बहुतों कर लिए तुम नाकाब में
रखिये  गहरी नज़र इस पे कहीं हट न जाए।


चुन - चुन कर मार दो गोली बंदूक तानकर
रहो  सभी तैयार जब तक ये निपट न जाए।


फांसी   दो   उन  सबको  जो  गद्दारी  करते  हैं
चैन से कहाँ सोना जब- तक ये सिमट न जाय।


क्यों  खोते अस्तित्व लालच के चक्कर में तुम
ये  वतन  तेरा  है  भाई  कसम  मिट  न  जाए।


देख   लो   सीमा  पर  कितने  वीर  शहीद  हुए
अपनी तो रक्षा कर कहीं दुश्मन लिपट न जाय।


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु
बाढ़ - पटना
9661065930


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डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, '"प्रेम"

हायकु


 धूम्र कहर।
प्रदूषित प्रहर।
धुत्त शहर


 नशे में चूर।
सागर की लहर।
रेत का घर।


 गर्व का हल।
विचारों की  चुहल।
हवा महल


 विष को घोल।
सियासत में झोल।
तौल के बोल।


दंगे दमन।
अमन का चमन।
सत्य वचन।


शासन चंगा।
नंगे का नाच नंगा
दिल्ली का दंगा



मार से जाग।
अराजक ओ नाग।
अशान्ति भाग।


शान्ति या सत्ता ।
भिन्नता में एकता।
ओ,मानवता



झूठ की चाँदी।
जन जन की आँधी
महात्मा गांधी


 
 चाय की प्याली।
खयालों का खयाली।
हवा हवाई।


 हायकु
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, '"प्रेम"
स्व््


कौशल महंत "कौशल"

,      *जीवन दर्शन भाग !!४१!!*


★★★
ममता का आँचल वही,
            वही पिता का प्यार।
पढ़लिख वापस आ गया,
            अपना घर संसार।
अपना घर संसार,
            सभी को लगता प्यारा।
यह ही है वह धाम,
            जहाँ मन रहे हमारा।
कह कौशल करजोरि,
            वहीं रहती है समता।
प्रेम पिता का पुण्य,
           मातु की वह ही ममता।
★★★
चाहत मन में है यही,
            संग बँटाये हाथ।
सुधारने घर की दशा,
            चले पिता के साथ।
चले पिता के साथ,
            आय अर्जित करनी है।                                                 धन बिन बनी विशाल,
            रिक्त खाई भरनी है।
कह कौशल करजोरि,
             रहे क्यों जीवन आहत।
सुखमय हो घरबार,
            पूर्ण हो सबकी चाहत।।
★★★
जाता है निष्काम मन,
            स्वयं ढूँढने काम।
जो करते संसार के,
            सब जनमानस आम।
सब जनमानस आम,
             जरूरत करने पूरी।
कर कोई व्यापार,
           करे कोई मजदूरी।
कह कौशल करजोरि,
            तभी है घर चल पाता।
घर का जिम्मेदार,
           काम करने जब जाता।।
★★★


कौशल महंत "कौशल"


,


नूतन लाल साहू

पुरानी यादें
जब गाड़ी,चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
पलकों में,नींद न आती थी
सफ़र रात का हो या दिन का
प्रकृति की तस्वीरे,आती जाती थी
सुबह हो गया या शाम हो गया
इसकी आवाज बताती थी
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
छुन छून करे,जलेबी सी
यादे,आंनद के रस में डूब जाती थी
कुत्ते, भौं भौं कर चिल्लाते
खिड़कियां,सब खुल जाती थी
कितना सुन्दर था,उच्चारण
मानो मिसरी,सी घुल जाती थी
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
ऐसा करेंट सा लगा हमें
किस्मत का लड्डू फुट गया
आधुनिकी करण के चक्कर में
पुराना आंनद, सब भुल गया
किन शब्दों में, व्यक्त करें, उन यादों को
जो अतीत में,कहीं गुम हो गया
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
नूतन लाल साहू


नूतन लाल साहू

सलाह
हे पिंजरे की,ये मैना
यदि चाहता है,परम सुख तो
राम नाम,अनमोल रतन है
गया समय,नहीं आयेगा
फिर पाछे पछताएगा
भजन कर ले,राम नाम का
भवसागर पार हो जायेगा
तू महल बना,अटारी बना
कर कर जतन, सामान सजा
पल में वर्षा, आय गिरावेे
हाथ मसलत,रह जायेगा
भाई बन्धु,कुटुंब कबीला
सब संपत्ति,यही रह जायेगा
मतलब का सब खेल जगत में
पाप पुण्य ही,साथ जायेगा
हे पिंजरे की, ये मैना
यदि चाहता है,परम सुख तो
भजन कर ले, राम नाम का
भवसागर पार हो,जायेगा
तेरी दो दिन की,जिंदगानी है
काया माया तो, बादल जैसा छाया है
हरिनाम परम पावन,परम सुंदर
परम मंगल,चारो धाम है
राम नाम के,दो अक्षर में
सब सुख शांति, समाया है
जिसने भी,राम नाम गुण गाया
उसको लगे न,दुःख की छाया
हे पिंजरे की,ये मैना
यदि चाहता है,परम सुख तो
राम नाम,अनमोल रतन है
गया समय,नहीं आयेगा
फिर पाछें,पछताएगा
भजन कर ले,राम नाम का
भवसागर पार हो,जायेगा
नूतन लाल साहू


भरत नायक"बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सपना"* (ताटंक छंद गीत)
----------------------------------------
विधान-१६+१४=३०मात्रा प्रति पद, पदांत SSS , युगल पद तुकबंदी।
...........................................


*नींद उड़ा दे जो आँखों की, मति को भी उकसाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।।
सच्चा-साधक सत्कर्मो से, सपनों को पा जाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।। 


*उच्चाकांक्षा पाल रखे जो, धुन में कब सो पाता है?
होता आराम हराम सदा, कोलाहल मच जाता है।।
सतत चुनौती स्वीकारे जो, सपने सच कर जाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो,
'सपना' वह कहलाता है।।


*जब भी देखो ऊँचा देखो, सपना बडा़ सुहाता है।
पूर्ण करे जी जान लगा जो, कर्मठ वह कहलाता है।।
पावक-पथ को पार करे जो, नव इतिहास बनाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो,
'सपना' वह कहलाता है।।


*दम पर अपने नभ को नापे, पंख पसारे जाता है।
भरे बुलंदी जो नित निज में, शुचि-संदेश जगाता है।।
करता सपना जो वह पूरा, जग उसको दुहराता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।।
...........................................
भरत नायक"बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
..........................................


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग)

*"महती महिमा मातु की"*
 (कुण्डलिया छंद)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
★महती महिमा मातु की, सीख सकल संसार।
सच्ची शुचि संवेदना, परम पुलक परिवार।।
परम पुलक परिवार, नेह की ज्योति जलाती।
देकर शुभ आशीष, मातु देवी कहलाती।।
कह नायक करजोरि, स्रोत प्रेमिल बन बहती।
सींचे सारी सृष्टि, मान माँ महिमा महती।।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह,रायगढ़ (छ.ग.)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग)

*शारदे! शुभ वरदान दे*
(गगनांगना छंद)
--------------------------------------------
विधान- १६+ ९= २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS,  युगल पद तुकांतता।
-------------------------------------------
*शब्दों के संयोजन को माँ! सरगम-तान दे।
अतुल-अमल-अवधान शारदे! शुभ वरदान दे।।
साथ साधना के हिय सच्चा, भावन-भान दे।
घन-तम-अज्ञान नाश कर माँ! प्रभा-प्रतान  दे।।


*स्वर- सुर समृद्ध सदा होवे, वर विश्वास दे।
शुचि-तुंग-तरंग-उमंग नयी, नित आभास दे।।
जड़ता का कर विनाश मन से, उर-उल्लास दे।
माता! हरकर संताप सभी, हृदय-हुलास दे।।


*बहा ज्ञान-गंगा कल्याणी, कर कल्याण दे।
संसार सकल सुखमय कर दे, भय से त्राण दे।।
जीवन का पथ आलोकित हो, ज्योति-प्रमाण दे।
जग-जीवन-धुन अनुरागित हो, पुलकित प्राण दे।।


*पुस्तक प्रतीक पुण्य-पाठ का, है तव हाथ में।
वीणा की धुन संदेश सदा, सुखकर साथ में।।
ज्ञान-विवेकी नीर-क्षीर का, भर दे माथ में।।
डोले जब धीरज तो देना, संबल क्वाथ में।।


*वेद-शास्त्र-उपनिषद सर्जना, ग्रंथ महान दे।
श्लोक-सूक्ति कल्याणी-कविता, नित नव गान दे।।
बुद्धि-प्रखर कर, हंसवाहिनी! परिमल ज्ञान दे।
परिपूरित झिलमिल तारों से, व्योम-वितान दे।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग)
****************************


डॉ सुलक्षणा अहलावत

कुपत्री औलाद


एक बार भी नहीं पूछी उसने खैरियत मेरी,
जब भी पूछी तो उसने पूछी वसीयत मेरी।
अब पछतावा होता है मुझे मेरी नादानी पर,
किसके लिए बर्बाद कर दी शख्सियत मेरी।


जिसे अपने सीने से लगाकर नाजों से पाला,
कमाकर चँद कागज पूछता है हैसियत मेरी।
देखो! एक कोने में रोती रहती है माँ उसकी,
सोचती है क्यों नहीं पूछता वो तबियत मेरी।


गलती उसकी भी नहीं है खता मुझसे हो गई,
घर सौंपकर उसे मैंने घटा ली अहमियत मेरी।
बेटी बेटी कहते जिसे थकी नहीं जुबान कभी,
उस बहु को खराब नजर आती है नीयत मेरी।


सच कहती थी "सुलक्षणा" मत ऐतबार करो,
मुझे नहीं बस वो चाहता था मिल्कियत मेरी।
पर क्या करता, पुत्र मोह में घिरा बाप था मैं,
लूट गया आशियाना, यही है असलियत मेरी।


©® डॉ सुलक्षणा


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

शब्द ब्रह्म है
************
शब्द से ही पीड़ा
शब्द से ही गम
शब्द से ही खुशी
शब्द से ही मरहम


शब्द से प्रेम
शब्द से दुश्मन
शब्द से दोस्ती
शब्द से ही प्यार


शब्द से ही समृद्धि
शब्द से ही दीनता
शब्द से निकटता
शब्द से ही दूरियाँ


शब्द से ही अर्पण
शब्द से ही समर्पण
शब्द से ही अमृत 
शब्द ही विष


शब्द से ही नजदीकी
शब्द से ही दूरियाँ
शब्द से ही शीतलता
शब्द से ही उष्णता


शब्द ही बह्म है
शब्द ही कर्म है
शब्द ही जीवन है
शब्द ही मृत्यु है


*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
*********************


कुमार कारनिक  छाल रायगढ़ छग        

मनहरण घनाक्षरी
  गौ माता
      
यह   हमारी  गौ  माता,
दूध  दही   घी  मिलता,
सेवा से मुक्ति  मिलता,
      गाय भैंस पालिए।


चरें   गाय   कहाँ   पर,
कब्जा   हर  जहाँ  पर,
बंधे   पशुओं  के   पैर,
      चारागाह छोड़िए।


देव   रूप  पूजी  जाती,
अमृत   दूध   दे  जाती,
घर   घर   बाटी  जाती,
     शुद्ध दुग्ध पीजिए।


ग्वाल  बाल  बन   कर,
गौ माता की सेवा कर,
बंधु   चारा  दान   कर,
     गाय गोद लीजिए।
                 


             
                    ******


यशवंत"यश"सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



🥀यश के दोहे🥀



🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂


रहा नहीं यश मोल कुछ,कौढ़ी हुईं जुबान।
करना वाणी पर नहीं, कहाँ सबूत सुजान।।


🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂


होते सज्जन सब नहीं, अपने सम इंसान।
पल पर पल में पलट यश,भूल चले ईमान।।


🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग


संजय जैन (मुम्बई)

*साथ चाहिए..*
विधा : कविता


तुझे देखे बिना अब,
मुझे चैन पड़ता नही ।
बोले बिना अब मैं,
तेरे से रह सकते नही।
कुछ तो बात है तुममें,
तभी तो संजय तेरा है।
जिंदगी के सफर में, 
बहुत आये और गये।
परन्तु तेरे जैसा दोस्त,
कम ही मिलता है।
जिसके साथ रहने से,
जिंदगी में कमल खिलते है।।


बहुत देखा जिंदगी में,
बहुतों के साथ रहकर।
बहुत सहा जिंदगी में,
लोगो के साथ रहकर।
कसम से कहता हूं में,
तेरे जैसा मिला ही नहीं।
तभी तो जिंदगी हसीन, बन गई तेरे आने से।
वरना गांव के बाहर का कुछ देखना ही नही था।।


जाने आने में ही आधी,
जिंदगी गमा दी हमने।
अब जो बची है जिंदगी,
उसे तेरे संग जीना है।
जो अब तक नही मिला
उसे तेरे साथ रहकर पाना है।
और जिंदगी का लुप्त,
हँसी खुशी से उठाना है।
अब तेरा क्या इरादा है,
मुझे अब तू बता दे।
और जिंदगी जीने का, 
तरीका अपना बता दे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
27/02/2020


निशा"अतुल्य"

आज भारत के महान सपूत चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर 
श्रद्धांजलि नमन 
        🙏🏻


नमन देश के वीरों को
नई परिभाषा लिख डाली
दे प्राणों की आहुति
आजादी की नींव जिन्होने डाली
नतमस्त है हम उनके आगे
जीने की सही वजह बता डाली


नमन श्रद्धांजलि 🙏🏻
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"गम"*
"छट जायेगी गम की बदली,
होगी खुशियों की -
जीवन में बरसात।
खिलेगा का जीवन में साथी,
अपनत्व का इन्द्रधनुष-
मिट जायेगा गम का साया।
साथी साथी होगा जो साथी,
चलेगा संग देगा हर पल -अपनत्व का अहसास।
मिटेगी कटुता जीवन से,
महकेगी जीवन बगिया-
छायेगा मधुमास।
होगी न गम छाया कही,
जीवन में पग पग -
गहरायेगा विश्वास।
छट जायेगी गम की बदली,
होगी खुशियों की-
जीवन में बरसात।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
            सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मुझे चरणों में जगह दो ओ बंशी वाले
मुझे अपना बनालो ओ श्याम मतवाले


हृदय बसी तेरे मूरत तुम्हें भूल न पाऊँ
सोते जगते स्वामी बस तेरे गुण गाऊं
मिले आशीष तेरा घेरें न बादल काले
मुझे चरणों में जगह दो ओ बंशी वाले


ऋणी हूँ भगवन तेरा मानव देह पाई
अपना अपना चाहा किन्ही न भलाई
जैसा भी हूँ दीन हीन तुम्ही रखवाले
मुझे चरणों में जगह दो ओ बंशी वाले।


श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेवा🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस।बरेली

*तेरा कल ही तेरा काल बन*
*जायेगा।मुक्तक।*


मत दो तुम नफरत से जवाब
तेरा ही सवाल  बन  जायेगा।


तेरा  अहम  का  घेरा  ही तेरे
लिये इक बवाल बन जायेगा।।


बो  कर  बबूल  का  पेड़  तुम 
आम  की उम्मीद मत  रखना।


जान लो तेरा आने वाला कल
ही  तेरा    काल  बन  जायेगा।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो               9897071046
                   8218685464


एस के कपूर श्री हंस।बरेली

*बचपन(हाइकु)*


नानी का घर
छुट्टी में मौज मस्ती
न कोई डर


महंगे सस्ते
चंदा मामा दूर के
पास लगते


फिक्र की बात
दूर   तक  चिंता न
ये है सौगात


खेल खिलौना
बचपन   यूँ  बीते
हँसना रोना


रूठो मानना
बचपन  खजाना
न है हराना


ये बचपन
पाते बच्चे सभी का
अपनापन


ये बच्चे सारे
मात पिता के तारे
बहुत प्यारे



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*दिया बनो,दियासलाई नहीं*
*मुक्तक*


कुछ लोगों का  काम ही है
दुर्भावना में  जलते  रहना।


दूसरों   को   संताप   देकर
स्वयं  ही     मचलते  रहना।।


घृणा  को   पालना  पोसना
अधिकार   बनता   उनका।


किसी और को  उठाना नहीं
नर्क में स्वयं भी ढलते रहना।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


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