राजेंद्र रायपुरी

*परीक्षा*


परखने तुझे,
होगी परीक्षा तेरी,
कदम-कदम पर,
कहते जिसे,
इम्तहान।
ऐ नादान,
डर मत।
बढ़ा कदम,
करके हौसला,
तभी उड़ पाएगा,
ऊॅ॑ची उड़ान।
जो डर गया,
सो मर गया।
रख ये जुमला,
ज़हन में,
तभी,
राह होगी,
आसान।
और होंगे पूरे,
तेरे अरमान।


।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां वीणा धारणी
***************
हे मां शुभ्र वस्त्रधारिणी,
दिव्य दृष्टि निहारिणी,
पवित्रता की मूर्ति हो
हे मां वीणा धारणी।


पाती में वीणा धरै,
तुम कमल विहारिणी,
ज्ञान की देवी हो मां,
हे मां वीणा धारणी।


ज्ञान का वरदान दे,
दया का भाव दे मां,
कुपथ पर कभी न चलूं,
हे मां वीणा धारणी।


देश प्रेम भाव नित्य हो,
सरल सदाचारी बनूं ,
करूणा हृदय में रहे,
हे मां वीणा धारणी।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ. शेषधर त्रिपाठी                    पुणे, महाराष्ट्र

खंडहर बसंत(आज की नजर में
---------------------


वीरानियों पर टसुए बहाता,
जो उजड़ा हुआ चमन है।
बुलबुलों की चहक नदारद
अब खंडहर हुआ बसंत है।
दिलजलों ने दिल जलाकर,
खाक गुलशन कर दिया।
अब रहनुमा बन कह रहे हैं,
वाह जी!मैंने क्या किया।
होश में कब आएगी इंसानियत,
जो इंसान को ही रौंदती है।
लगा दी आग आशियाने में,
जो रह रह के दिलों में कौंधती है।
कैसा गुबार था ये घिनौना,
जो तेरा जमीर सिसकता भी नहीं,
तेरे कद का जो इंसान था,
अब हैवानियत से हो गया बौना।
इंसां जो भी गुबार है तेरे दिल में,
उस पर नफरतों का मुलम्मा न चढ़ा।
रहमो अमन से अब सीख रहना,
बस इंसान बनकर इंसानियत बढ़ा।
        © डॉ. शेषधर त्रिपाठी
                   पुणे, महाराष्ट्र


   डॉ शिव शरण "अमल"

राजनीतिक शुचिता की महती आवश्यकता
     गुरु गोविंद सिंह जी हमेशा एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला की बात करते थे,
आज के समय में माला का अर्थ है धर्म और भाला का अर्थ है राजनीति,जब तक दोनों में समन्वय नहीं होगा,तब तक सम्पूर्ण क्रांति नहीं हो सकती,
      जिस तरह चाणक्य और चन्द्रगुप्त,राम और विश्वामित्र,कृष्ण और अर्जुन,शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास,की युति से ही सम्पूर्ण क्रांति हुई थी उसी तरह आज भी जरूरी है ।
   धर्म के क्षेत्र में तो काफी काम हो रहा है ,अंध विश्वास खत्म हो रहा है,विज्ञान भी धर्म को मानने लगा है,   लेकिन राजनीतिक शुचिता के कोई प्रयाश नहीं हो रहे है,सभी पार्टियां सिर्फ वोट की राजनीति कर रही है,भाई_भतीजा वाद,जातिगत आरक्षण,अल्पसंख्यक और दलित तुष्टिकरण,पैसे का खेल ही चल रहा है, देश हित की चिंता किसी को भी नहीं है ।
     अधिकांश बुद्धिजीवी,चिंतक साहित्यकार राजनीति को अछूत मानते है, जबकि वास्तविकता यह है कि बिना राजनीतिक शुचिता के व्यक्ति,परिवार,समाज एवं राष्ट्र का कल्याण संभव नहीं है,अस्तु अब समय आ गया है कि धर्म सत्ता से राम,कृष्ण,चन्द्रगुप्त,शिवाजी,और अर्जुन निकले तथा देश की बागडोर सम्हाले ।
     इस विषय में  वेदमुर्ती, तपोनिष्ट,गायत्री सिद्ध,पंडित श्री राम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित "वांग्मय क्रमांक 64"  (राष्ट्र समर्थ एवं शसक्त कैसे बने ) के सूत्रों का आधार लिया जा सकता है ।
     हमारा देश कालांतर मै जगत गुरु इसीलिए था क्योंकि उस समय राजनीति पर धर्म का मार्गदर्शन था,हरिश्चंद्र,दशरथ,राम,कृष्ण, चन्द्रगुप्त,शिवाजी,आदि सभी धर्म के अनुसार राजनीति करते थे ।
   अगर अच्छे लोग राजनीति में भाग नहीं लेंगे सिर्फ आलोचना ही करते रहेंगे तो भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता ।
       
   डॉ शिव शरण "अमल"


कुमार कारनिक   (छाल, रायगढ़, छग)


   मनहरण घनाक्षरी
       *सच/सत*
        -------------
सच  में   कितने   लोग,
उम्र   भर   किये  भोग,
लग   गया   झूठा  रोग,
      फर्ज तो निभाईये।
0
सत  बात   बोल   तुम,
मन  आपा खोल  तुम,
सच्चाई  को   पहचान,
         धरम निभाईये।
0
कांटों मे  चलना  होगा,
हंस  के  टालना  होगा,
परीक्षा   लेती  सच्चाई,
         राह तो बनाईये।
0
कदम    आगे   बढ़ाना,
आप  न  डग - मगाना,
सच   के  खातिर  तुम,
         न लड़खड़ाईये।



                    *****


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

इक मुक्तक


कई  गम दफन  हैं  दिल  में  कई  अरमान घायल हैं।
हमे कहीं और न भरमाओ हम तुम पर ही कायल हैं।
हमारे दिल को अब तो  कोई  भी सुर ही  नही  भाता।
जिसकी छम-छम से मिलता चैन वो तेरी ही पायल हैं।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


नूतन लाल साहू

अलौकिक दुनिया
कैसा खेल रचा,मेरे दाता
तेरी महिमा, कोई समझ न पाया
जब जब आती है,विपदा जगत में
थरथर कांपे, सारी दुनिया
अभिमान लोगो का, चुरचुर हो जाता है
सहम जाती है,कैसे ये दुनिया
कैसा खेल रचा, मेरे दाता
तेरी महिमा,कोई समझ न पाया
खुद को विधाता,समझ गया था
माया में अंधा, हो चला था
सबको लुटने में, जो लगा था
अकल ठिकाने,अब आने लगी है
कैसा खेल रचा, मेरे दाता
तेरी महिमा,कोई समझ न पाया
इतना अहंकार,क्यों करता है प्राणी
भगवान से भी तू,क्यों नहीं डरता है
जब जब पतन हुआ,मानवता का
पल में नाश हुआ है,जीवन का
कैसा खेल रचा,मेरे दाता
तेरी महिमा, कोई समझ न पाया
युगों युगों से, ये होता आया है
फिर भी तू,समझ न पाया है
छोड़ के तू अपनी,सारी चतुराई
भजन कर तू,चरण कमल अविनासी
कैसा खेल रचा, मेरे दाता
तेरी महिमा, कोई समझ न पाया
सुमिरन कर हरिनाम,सुबह शाम
मानुष जनम,नहीं मिलना है बार बार
माता पिता गुरु, की सेवा कर ले
वो ही है प्राणी,जगत में सार
कैसा खेल रचा,मेरे दाता
तेरी महिमा,कोई समझ न पाया
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"ऋतु"* (वर्गीकृत दोहे)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
◆चलता रहता वर्ष भर, छः ऋतुओं का चक्र।
लगता कभी सुहावना, लगे कभी कुछ वक्र।।१।।
(१४गुरु, २०लघुवर्ण, हंस/मराल दोहा)


◆एक-एक करके सभी, आते ऋतु प्रतिवर्ष।
सबका निज आनंद है, भरें हृदय में हर्ष।।२।।
(१४गुरु, २०लघुवर्ण, हंस/मराल दोहा)


◆उष्मा, वर्षा, शरद ऋतु, आये ऋतु हेमंत।
शिशिर, वसंत यथासमय, लेते लहर अनंत।।३।।
(१३गुरु, २२लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


◆दाघ-निदाघ प्रचंड कब, बहे कभी जलधार।
शरद सुखद कब, ठंड कब, कभी वसंत बयार।।४।।
(१०गुरु, २८लघुवर्ण, पान दोहा)


◆भिन्न-भिन्न ऋतु भिन्नता, धरा करे शृंगार।
सबकी महती भूमिका, अनुकूलित संसार।।५।।
(१५गुरु, १८लघुवर्ण, नर दोहा)


◆ईश रचित संसार में, सुख देते ऋतु सर्व।
सबकी निज पहचान है, होता जिस पर गर्व।।६।।
(१३गुरु, २२लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


◆मन-मौसम बदलो नहीं, रखो सदा आबाद।
रचना कभी न त्रासदी, करना मत प्रतिवाद।।७।।
(१३गुरु, २२लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


◆ऋतुओं से सीखो सभी, परिवर्तन का पाठ।
आना-जाना है लगा, हर दिन रहे न ठाठ।।८।।
(१६गुरु, १६लघुवर्ण, करभ दोहा)


◆ऋतुओं का स्वागत करो, इनको हितकर जान।
विधि का मानव को दिया, मौसम है वरदान।।९।।
(१३गुरु, २२लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


◆हर मौसम अनुकूल हो, करना मत अपकार।
हर पल नीयत नेक रख, करो विमल व्यवहार।।१०।।
(९गुरु, ३०लघुवर्ण, त्रिकल दोहा)
"""""''''""""""""""'"""""""""""''""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""'"''''"""""""""""""""""""""""""""""""""""""


मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*मदद*
मदद किए हनुमान जी, सीता जी को खोज।
राम कृपा भी देखती, हिय में बसता ओज।
मदद भावना से बने, मानव ईश समान,
इसी भाव से मिल सके, भूखे जन को भोज।।


मदद ह्रदय से दीन की, सच्चा है इक दान।
सहज ह्रदय से वह धरे,इस जीवन का मान।
दूजों का दुख देख के, जो जन विचलित होय,
ईश्वर की संतान वो, वो ही हैं इंसान।।


शहर जला कर देखते, धुँआ उठा किस ओर।
स्वयं चाहते बैर बस, करे व्यर्थ में शोर।
एक लिए संकल्प जो, मदद भावना दीन,
वही मनुज बस श्रेष्ठ हैं, रात्रि साथ *मधु* भोर।।
मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज


गायत्री सोनू जैन मन्दसौर

इंसान हो इंसानो वाली अच्छी सी आदत रखो,


शर्मो हया की थोड़ी ही सही मग़र नज़ाकत रखो,



अपने तो अपने गैर भी तुम्हारे हो जायेंगे,


घमण्ड की जगह थोड़ी तो तुम शराफ़त रखो,



कोई नही हरा सकता जिसके बुलन्द हो हौसले,


तुम शेर हो गिद्धों के बीच थोड़ी तो हिम्मत रखों,



कभी हमसे भी आइये मीठी चार बातें करने,को


खुद के न सही मग़र दोस्तो के लिए थोड़ी तो फुर्सत रखो,



न उलझो तूम जमाने भर की बेकार सी बातों में,


बस दिल मे अपने सभी के लिए भाव रफाकत रखों,



जैसा करनी वैसी भरनी निश्चित ही होती है,


बस वक्त के साथ सच्ची और पक्की सोहबत रखो।



गायत्री सोनू जैन मन्दसौर


स्वरचित मौलिक रचना✍


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी

................ख्वाहिशों के गांव में................


मनपसंद चीजें मिलते हैं,ख्वाहिशों के गांव में।
अपने  करीब  होते हैं , ख्वाहिशों के  गांव में।।


जब  कभी भी अपनों  का  दीदार  हो  जाता ;
मन में खुशियां होते हैं , ख्वाहिशों के गांव में।।


नहीं  होता  किसी  तरह   का  गलत  अंदाज ;
दिल से दिल मिलते हैं , ख्वाहिशों के गांव में।।


चारों   तरफ   दिखते   हैं  ,  हरे - भरे   मंज़र ;
जब  कदम  पड़ते  हैं , ख्वाहिशों  के गांव में।।


कहीं  से  कोई  किसी की  बदनियती न दिखे;
ऐसे  उम्मीद  होते  हैं , ख्वाहिशों  के गांव में।।


जैसे  भी  हो  ठीक  से  गुजर  जाए जिन्दगी ;
ऐसे ख्वाहिश होते हैं , ख्वाहिशों  के गांव में।।


जब  तब  जैसे  कटता , कट  जाता"आनंद" ;
अंत ठीक से गुजरते हैं,ख्वाहिशों के गांव में।।


-------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी


"


वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा

दिल में उठे सवाल, खुबसूरत से ख्याल, आया एक पल ऐसा, हो गई दिवानी मैं। 


 उसमे ही खोई खोई , हरपल रहती हूं , मोह भरी दुनिया से ,हो गई बेगानी मैं।
 
दिल में वो बस गया, रंग में वो रंग गया, ऐसा एक नशा छाया, हो गई सयानी मैं।


चाहती हूं बस यही, साथ रहे हरदम, तू है मेरा बाजीराव, तेरी हूँ मस्तानी मैं।


वैष्णवी पारसे


कालिका प्रसाद सेमवाल    मानस सदन अपर बाजार    रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

विरह गीत
-??????
हृदय को जगा दूं
***************
धरा को सुला दूं,
गगन को जगा दूं
प्रिय , चांदनी में
विरह गीत गाऊं  मैं।


बहुत है उदासी हृदय में हमारे,
बहुत खल रही है मुझे जिन्दगानी,
बहुत  हैं सरस भाव उर में हमारे,
बहुत खल रही है मुझे यह जवानी।


अभी चांदनी मुझ से,
की खेल रचना रही है,
तुम्हें याद करके,
जरा मैं भी गुनगुनाऊं।


बहुत सोचता हूं तुम्हें मैं सुहागिनि,
कि जाती बची है तुम्हारी निशानी,
कठिन भाव जागे, गया कल शयन को,
उमड़ती रही आंसुओं की रवानी।


बहुत है उदासी,
मिलन चाहता हूं,
मगर आज तुमको,
कहां प्राण पाऊं।


दिया दर्द तुमने बुझाये न बुझता,
कहां कब रूकेगा, नयनों का ये पानी,
तुम्हारे लिए दीप के हर किरण में,
जलेगी हमारी शलभ सी जवानी।


नयन को सुला दो,
हृदय को जगा दो,
सपन बन तुम्हें अब,
जरा सा हंसाऊं।।
*********************
   कालिका प्रसाद सेमवाल
   मानस सदन अपर बाजार
   रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
    पिनकोड 246171
**********************


संजय जैन(मुम्बई)

*मिलन*
विधा : कविता


जब हम होंगे, तुम्हारे पास तो।
कयामत निश्चित ही,
तुम्हारे दिलमें आएगी।
धड़कने दिलों की,
मानो थम जाएगी।
जब चांदनी रातमें,
होगा दिलोंका संगम।
तो दिलों के,
बाग लहरा उठेंगें।
और अमन चैन, 
के फूल खिलेंगे।
तो मचलते दिलको, 
जरूर शांति मिलेगी।।


दिल की यही, 
खासियत होती है।
जब वो मचलता, 
या पिघलता है।
तब दिन रात, 
नहीं देखता है ।
बस उसी के बारे, 
में सोचता है।
जिस पर उसका, 
दिल आता है।
तभी तो धड़कनों में, 
शमा जाता है।।


मोहब्ब्त में कामयाब, 
वो ही होते है।
जो छोड़कर वासना,
चहात दिलमें रखते है।
और अपने प्यारको,
दिलसे अपनाते है।
तभी प्यार जैसे, 
पवित्र रिश्ते को।
जिंदगी भर दिलसे,
निभा पाते है।
और स्नेह प्यार, 
अपनो का पाते है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन(मुम्बई)
28/02/2020


विवेक दुबे"निश्चल रायसेन

हो गये गुनाह फिर कुछ ।
सो गये बे-गुनाह फिर कुछ ।
चकाचौंध दिन उजियारो में ,
स्याह लिये पनाह फिर कुछ ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


सुप्रभात:-


जब शेर आराम से सोता  रहता    है;
तब गीदड़भी मांद में घूमता रहता है।
जब शेर सावधान हो जाग  जाता  है;
तब गीदड़ जंगल छोड़भाग जाता है।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*रिश्ते और दोस्ती(हाइकु)*


नज़र फेर
वक्त वक्त की बात
ये रिश्ते ढेर


दिल हो साफ
रिश्ते टिकते तभी
गलती माफ


दोस्त का घर
कभी  दूर  नहीं ये
मिलन कर


मदद करें
जबानी जमा खर्च
ये रिश्ते हरें


मिलते रहें
रिश्तों बात जरूरी
निभते रहें


मित्र से आस
दोस्ती का खाद पानी
यह विश्वास


मन ईमान
गर साफ है तेरा
रिश्ते तमाम


मेरा तुम्हारा
रिश्ता चलेगा तभी
बने सहारा


दूर या पास
फर्क नहीं रिश्तों में
बात ये खास


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*तन नहीं मन है परख आदमी की।*
*मुक्तक*


आदमी के दिल और जमीर
में     सीरत    टटोलिये।


मत  शक्ल और  लिबास में
उसकी कीरत टटोलिये।।


ज्ञान ,नियत और  भावना हैं
गुण अच्छे  आदमी के।


हो सके  तो  उसके   अंतर्मन
का  तीरथ    टटोलिये।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो 9897071046
     8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।* मो        

*बस आदमी इंसान बने*
*मुक्तक*


पत्थर  से बने    देवता 
न   कि   शैतान   बने।


आदमी  बने   इंसान न
कि   वो    हैवान  बने।।


सृष्टि  का  चक्र  चलता
मानवता  की  धुरी पर।


बस  आदमी इंसानियत
पर जरा  मेहरबान  बने।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली

*न जाने कौन सी राह चल रहे।*
*मुक्तक।*


जाने हम  कहाँ  से  कहाँ 
अब आ  गये  हैं।


ईर्ष्या की   दौलत को हम
आज पा गये हैं।।


सोने के  निवालों से  अब
अरमान  हो  गए।


आधुनिकता में भावनायों
को ही खा गए हैं।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
            8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरे मन के आनन्द और हर्ष हो तुम ही जीवन के
हे मेरे बांकेबिहारी तुम ही सुख मेरे अन्तर्मन के
नहीं जग संताप की चिंता तेरे विरह की तड़पन है
नहीं गम जग जीवन मरण का उर में तेरा स्पंदन है
छोड़ न देना साथ तू मेरा बिन तेरे न रह पाऊंगा
जिंदगी की डगर में एक पल बिन तेरे न चल पाऊंगा
हे माधव एक अरदास है तुझसे मझधार में छोड़ न देना
भक्ति पथ से विचलित न हो जाऊं ऐसा वरदान मुझे देना।


श्रीकृष्णाय नमो नमः 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता;-
    *" खामोशी"*
"तूफान से पहले की खामोशी,
प्रलय ले आती है-
साथी जीवन मेंं।
मन में उठते बवंडर को,
रोक न पायेगे-
साथी जीवन में।
बढ़ती रहे जो कटुता मन में,
शांत रहेगा न कभी-
साथी जीवन में।
खामोश रह कर भी तो,
सब कुछ कह देते नैन-
साथी जीवन में।
खामोशी अच्छी नहीं जब,
संग साथी हो-
साथी जीवन में।
संग चल कर भी खामोश रहे,
क्यों -पाली नफरत इतनी-
साथी जीवन मे।
तूफान से पहले की खामोशी,
प्रलय ले आती है-
साथी जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

😌  विनय सभी से है यही  😌


विनय सभी से है यही,
                    छोड़ो वाद-विवाद।
व्यर्थ करो मत ज़िंदगी, 
                    तुम अपनी बर्बाद।


करना ही कुछ है अगर, 
                   करो सभी से प्यार।
गले मिलो तुम प्रेम से, 
                 भर सबको अॅकवार।


चार दिनों की ज़िंदगी, 
                    फिर काहे तक़रार।
जियो इसे तुम इस तरह, 
                       याद करे संसार।


शूल कहो भाता किसे,
                   फूल बनो तुम यार।
आॅ॑धी जैसा मत बनो,
        ‌ ‌            बनो बसंत बयार।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌺माँ  शारदे------🌺
     शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे ।
शब्द दे अनुभूतियों को, भाव को विस्तार दे।
      शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे ।



दें हमें शक्ति जिससे सृष्टि का दुख-दर्द पी लें।
मुस्करायें कष्ट में भी, शूल में बन फूल जी लें।
लोकरंजन कल्पना को गीत का संसार दे ।
      शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे ।


पूर्णता की आस बाँधे कामना के पंख लेकर।
हर दिशा में गूंज भरते, जागरण का शंक लेकर।
ज्ञान-मन्दिर में सृजन से नमन काअधिकार दे।
      शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे।


🌻🥀🌻🥀🌻🥀🌻🥀🌻
  कालिका प्रसाद सेमवाल
🌾🍂🌾🍂🌾🍂🌾🍂🌾


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

...............मेरे ख़्वाबों में..............


मेरे ख़्वाबों  में बस  तुम ही  तुम हो।
मेरे ख्यालों में बस  तुम ही तुम हो।।


यूं तो दुनियां में रिश्तों की कमी नहीं;
पर तसव्वुरों में बस तुम ही तुम हो।।


राह- ए- जिंदगी में,मिले,बिछुड गए;
मेरी  नज़रों में बस  तुम ही तुम हो।।


तेरी इन अदाओं का  कद्रदान  हूं मैं ;
मेरी दुआओं में बस तुम ही तुम हो।।


ये नहीं,मुहब्बत की जुबां नहीं होती;
मेरी जुबानों में बस तुम ही तुम हो।।


दिल कीधड़कन से कुछ निकले गर;
हर धड़कनों में बस तुम ही तुम हो।।


सब छोड़ कब निकल जाता"आनंद"
मेरी  सांसों में बस  तुम ही तुम हो।।


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


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