मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*मदद*
मदद किए हनुमान जी, सीता जी को खोज।
राम कृपा भी देखती, हिय में बसता ओज।
मदद भावना से बने, मानव ईश समान,
इसी भाव से मिल सके, भूखे जन को भोज।।


मदद ह्रदय से दीन की, सच्चा है इक दान।
सहज ह्रदय से वह धरे,इस जीवन का मान।
दूजों का दुख देख के, जो जन विचलित होय,
ईश्वर की संतान वो, वो ही हैं इंसान।।


शहर जला कर देखते, धुँआ उठा किस ओर।
स्वयं चाहते बैर बस, करे व्यर्थ में शोर।
एक लिए संकल्प जो, मदद भावना दीन,
वही मनुज बस श्रेष्ठ हैं, रात्रि साथ *मधु* भोर।।
मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज


गायत्री सोनू जैन मन्दसौर

इंसान हो इंसानो वाली अच्छी सी आदत रखो,


शर्मो हया की थोड़ी ही सही मग़र नज़ाकत रखो,



अपने तो अपने गैर भी तुम्हारे हो जायेंगे,


घमण्ड की जगह थोड़ी तो तुम शराफ़त रखो,



कोई नही हरा सकता जिसके बुलन्द हो हौसले,


तुम शेर हो गिद्धों के बीच थोड़ी तो हिम्मत रखों,



कभी हमसे भी आइये मीठी चार बातें करने,को


खुद के न सही मग़र दोस्तो के लिए थोड़ी तो फुर्सत रखो,



न उलझो तूम जमाने भर की बेकार सी बातों में,


बस दिल मे अपने सभी के लिए भाव रफाकत रखों,



जैसा करनी वैसी भरनी निश्चित ही होती है,


बस वक्त के साथ सच्ची और पक्की सोहबत रखो।



गायत्री सोनू जैन मन्दसौर


स्वरचित मौलिक रचना✍


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी

................ख्वाहिशों के गांव में................


मनपसंद चीजें मिलते हैं,ख्वाहिशों के गांव में।
अपने  करीब  होते हैं , ख्वाहिशों के  गांव में।।


जब  कभी भी अपनों  का  दीदार  हो  जाता ;
मन में खुशियां होते हैं , ख्वाहिशों के गांव में।।


नहीं  होता  किसी  तरह   का  गलत  अंदाज ;
दिल से दिल मिलते हैं , ख्वाहिशों के गांव में।।


चारों   तरफ   दिखते   हैं  ,  हरे - भरे   मंज़र ;
जब  कदम  पड़ते  हैं , ख्वाहिशों  के गांव में।।


कहीं  से  कोई  किसी की  बदनियती न दिखे;
ऐसे  उम्मीद  होते  हैं , ख्वाहिशों  के गांव में।।


जैसे  भी  हो  ठीक  से  गुजर  जाए जिन्दगी ;
ऐसे ख्वाहिश होते हैं , ख्वाहिशों  के गांव में।।


जब  तब  जैसे  कटता , कट  जाता"आनंद" ;
अंत ठीक से गुजरते हैं,ख्वाहिशों के गांव में।।


-------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी


"


वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा

दिल में उठे सवाल, खुबसूरत से ख्याल, आया एक पल ऐसा, हो गई दिवानी मैं। 


 उसमे ही खोई खोई , हरपल रहती हूं , मोह भरी दुनिया से ,हो गई बेगानी मैं।
 
दिल में वो बस गया, रंग में वो रंग गया, ऐसा एक नशा छाया, हो गई सयानी मैं।


चाहती हूं बस यही, साथ रहे हरदम, तू है मेरा बाजीराव, तेरी हूँ मस्तानी मैं।


वैष्णवी पारसे


कालिका प्रसाद सेमवाल    मानस सदन अपर बाजार    रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

विरह गीत
-??????
हृदय को जगा दूं
***************
धरा को सुला दूं,
गगन को जगा दूं
प्रिय , चांदनी में
विरह गीत गाऊं  मैं।


बहुत है उदासी हृदय में हमारे,
बहुत खल रही है मुझे जिन्दगानी,
बहुत  हैं सरस भाव उर में हमारे,
बहुत खल रही है मुझे यह जवानी।


अभी चांदनी मुझ से,
की खेल रचना रही है,
तुम्हें याद करके,
जरा मैं भी गुनगुनाऊं।


बहुत सोचता हूं तुम्हें मैं सुहागिनि,
कि जाती बची है तुम्हारी निशानी,
कठिन भाव जागे, गया कल शयन को,
उमड़ती रही आंसुओं की रवानी।


बहुत है उदासी,
मिलन चाहता हूं,
मगर आज तुमको,
कहां प्राण पाऊं।


दिया दर्द तुमने बुझाये न बुझता,
कहां कब रूकेगा, नयनों का ये पानी,
तुम्हारे लिए दीप के हर किरण में,
जलेगी हमारी शलभ सी जवानी।


नयन को सुला दो,
हृदय को जगा दो,
सपन बन तुम्हें अब,
जरा सा हंसाऊं।।
*********************
   कालिका प्रसाद सेमवाल
   मानस सदन अपर बाजार
   रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
    पिनकोड 246171
**********************


संजय जैन(मुम्बई)

*मिलन*
विधा : कविता


जब हम होंगे, तुम्हारे पास तो।
कयामत निश्चित ही,
तुम्हारे दिलमें आएगी।
धड़कने दिलों की,
मानो थम जाएगी।
जब चांदनी रातमें,
होगा दिलोंका संगम।
तो दिलों के,
बाग लहरा उठेंगें।
और अमन चैन, 
के फूल खिलेंगे।
तो मचलते दिलको, 
जरूर शांति मिलेगी।।


दिल की यही, 
खासियत होती है।
जब वो मचलता, 
या पिघलता है।
तब दिन रात, 
नहीं देखता है ।
बस उसी के बारे, 
में सोचता है।
जिस पर उसका, 
दिल आता है।
तभी तो धड़कनों में, 
शमा जाता है।।


मोहब्ब्त में कामयाब, 
वो ही होते है।
जो छोड़कर वासना,
चहात दिलमें रखते है।
और अपने प्यारको,
दिलसे अपनाते है।
तभी प्यार जैसे, 
पवित्र रिश्ते को।
जिंदगी भर दिलसे,
निभा पाते है।
और स्नेह प्यार, 
अपनो का पाते है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन(मुम्बई)
28/02/2020


विवेक दुबे"निश्चल रायसेन

हो गये गुनाह फिर कुछ ।
सो गये बे-गुनाह फिर कुछ ।
चकाचौंध दिन उजियारो में ,
स्याह लिये पनाह फिर कुछ ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


सुप्रभात:-


जब शेर आराम से सोता  रहता    है;
तब गीदड़भी मांद में घूमता रहता है।
जब शेर सावधान हो जाग  जाता  है;
तब गीदड़ जंगल छोड़भाग जाता है।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*रिश्ते और दोस्ती(हाइकु)*


नज़र फेर
वक्त वक्त की बात
ये रिश्ते ढेर


दिल हो साफ
रिश्ते टिकते तभी
गलती माफ


दोस्त का घर
कभी  दूर  नहीं ये
मिलन कर


मदद करें
जबानी जमा खर्च
ये रिश्ते हरें


मिलते रहें
रिश्तों बात जरूरी
निभते रहें


मित्र से आस
दोस्ती का खाद पानी
यह विश्वास


मन ईमान
गर साफ है तेरा
रिश्ते तमाम


मेरा तुम्हारा
रिश्ता चलेगा तभी
बने सहारा


दूर या पास
फर्क नहीं रिश्तों में
बात ये खास


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*तन नहीं मन है परख आदमी की।*
*मुक्तक*


आदमी के दिल और जमीर
में     सीरत    टटोलिये।


मत  शक्ल और  लिबास में
उसकी कीरत टटोलिये।।


ज्ञान ,नियत और  भावना हैं
गुण अच्छे  आदमी के।


हो सके  तो  उसके   अंतर्मन
का  तीरथ    टटोलिये।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो 9897071046
     8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।* मो        

*बस आदमी इंसान बने*
*मुक्तक*


पत्थर  से बने    देवता 
न   कि   शैतान   बने।


आदमी  बने   इंसान न
कि   वो    हैवान  बने।।


सृष्टि  का  चक्र  चलता
मानवता  की  धुरी पर।


बस  आदमी इंसानियत
पर जरा  मेहरबान  बने।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली

*न जाने कौन सी राह चल रहे।*
*मुक्तक।*


जाने हम  कहाँ  से  कहाँ 
अब आ  गये  हैं।


ईर्ष्या की   दौलत को हम
आज पा गये हैं।।


सोने के  निवालों से  अब
अरमान  हो  गए।


आधुनिकता में भावनायों
को ही खा गए हैं।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
            8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरे मन के आनन्द और हर्ष हो तुम ही जीवन के
हे मेरे बांकेबिहारी तुम ही सुख मेरे अन्तर्मन के
नहीं जग संताप की चिंता तेरे विरह की तड़पन है
नहीं गम जग जीवन मरण का उर में तेरा स्पंदन है
छोड़ न देना साथ तू मेरा बिन तेरे न रह पाऊंगा
जिंदगी की डगर में एक पल बिन तेरे न चल पाऊंगा
हे माधव एक अरदास है तुझसे मझधार में छोड़ न देना
भक्ति पथ से विचलित न हो जाऊं ऐसा वरदान मुझे देना।


श्रीकृष्णाय नमो नमः 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता;-
    *" खामोशी"*
"तूफान से पहले की खामोशी,
प्रलय ले आती है-
साथी जीवन मेंं।
मन में उठते बवंडर को,
रोक न पायेगे-
साथी जीवन में।
बढ़ती रहे जो कटुता मन में,
शांत रहेगा न कभी-
साथी जीवन में।
खामोश रह कर भी तो,
सब कुछ कह देते नैन-
साथी जीवन में।
खामोशी अच्छी नहीं जब,
संग साथी हो-
साथी जीवन में।
संग चल कर भी खामोश रहे,
क्यों -पाली नफरत इतनी-
साथी जीवन मे।
तूफान से पहले की खामोशी,
प्रलय ले आती है-
साथी जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

😌  विनय सभी से है यही  😌


विनय सभी से है यही,
                    छोड़ो वाद-विवाद।
व्यर्थ करो मत ज़िंदगी, 
                    तुम अपनी बर्बाद।


करना ही कुछ है अगर, 
                   करो सभी से प्यार।
गले मिलो तुम प्रेम से, 
                 भर सबको अॅकवार।


चार दिनों की ज़िंदगी, 
                    फिर काहे तक़रार।
जियो इसे तुम इस तरह, 
                       याद करे संसार।


शूल कहो भाता किसे,
                   फूल बनो तुम यार।
आॅ॑धी जैसा मत बनो,
        ‌ ‌            बनो बसंत बयार।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌺माँ  शारदे------🌺
     शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे ।
शब्द दे अनुभूतियों को, भाव को विस्तार दे।
      शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे ।



दें हमें शक्ति जिससे सृष्टि का दुख-दर्द पी लें।
मुस्करायें कष्ट में भी, शूल में बन फूल जी लें।
लोकरंजन कल्पना को गीत का संसार दे ।
      शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे ।


पूर्णता की आस बाँधे कामना के पंख लेकर।
हर दिशा में गूंज भरते, जागरण का शंक लेकर।
ज्ञान-मन्दिर में सृजन से नमन काअधिकार दे।
      शारदे माँ शारदे, शारदे माँ शारदे।


🌻🥀🌻🥀🌻🥀🌻🥀🌻
  कालिका प्रसाद सेमवाल
🌾🍂🌾🍂🌾🍂🌾🍂🌾


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

...............मेरे ख़्वाबों में..............


मेरे ख़्वाबों  में बस  तुम ही  तुम हो।
मेरे ख्यालों में बस  तुम ही तुम हो।।


यूं तो दुनियां में रिश्तों की कमी नहीं;
पर तसव्वुरों में बस तुम ही तुम हो।।


राह- ए- जिंदगी में,मिले,बिछुड गए;
मेरी  नज़रों में बस  तुम ही तुम हो।।


तेरी इन अदाओं का  कद्रदान  हूं मैं ;
मेरी दुआओं में बस तुम ही तुम हो।।


ये नहीं,मुहब्बत की जुबां नहीं होती;
मेरी जुबानों में बस तुम ही तुम हो।।


दिल कीधड़कन से कुछ निकले गर;
हर धड़कनों में बस तुम ही तुम हो।।


सब छोड़ कब निकल जाता"आनंद"
मेरी  सांसों में बस  तुम ही तुम हो।।


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*।।।।।।।।।।।*
*चंद्रशेखर आजाद जी के बलिदान दिवस * *27 फरवरी पर श्रद्धांजलि अर्पित।*


*मुक्तक माला*
*1............*
आज़ाद     की गाथा  तो  है
आज भी प्रेरणा की कारण।


आज़ादी के लिए हँसते हँसते
किया  था मृत्यु को धारण।।


पराधीनता सपनेहुँ सुख नाही
चढ़  गए  वह  सूली  पर।


गुलामी    में     नहीं     किया
कभी  भी  वंदना  चारण।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,*
जालियाँ  वाला  बाग का समय
और समय  उसके  बाद।


भारत की स्वाधीनता को बेताब
थे भगत सिंह और आजाद।।


प्राण   किये     न्यौछावर   और
हो    गए    वह   शहीद ।


आज सब भारत वासी कर रहे
नम  आँखों  से   याद ।।
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।*
मोब।।।।9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा

मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


सुबह से शाम तक करती हूं मैं काम 
एकपल भी नहीं करती आराम
अपनों का रखती हूं हरदम ख्याल 
भूलकर अपना ही होश और हाल
मजबूत जिसकी डोर ऐसी मैं पतंग 
मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


कितनी ही भूमिकाएँ मैंने अदा की
माँ, पत्नी, बहन, बेटी
पर मेरी जरूरत इतनी ही क्या
बनाऊ मैं बस दो वक्त की रोटी
कब मिलेगी मुझे आजादी मेरे जीने का ढंग 
मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


जीजाबाई का मातृत्व मुझमे लक्ष्मी सी आग
राधा का समर्पण मुझमे सीता सा त्याग
गंगा की पवित्रता मुझमे दुर्गा सा शौर्य 
उर्वशी की चंचलता मुझमे धरती सा धैर्य
समुंदर भी सहम जाए ऐसी मैं तरंग 
मेरे कितने ही रुप मेरे कितने ही रंग


वैष्णवी पारसे


डॉ सुलक्षणा अहलावत

मुझसे ना किया करो ये धर्म मजहब की बातें,
सुनो! मेरे ईश्वर औऱ तुम्हारे उस रब की बातें।
तुम्हें कुरान प्यारी है और मुझको मेरी गीता,
तुम्हें कट्टरता की, मुझे पसंद अदब की बातें।


देखो छिड़ जाएगी किसी दिन अपनी भी जंग,
मत किया करो तुम मुझसे बेमतलब की बातें।
सच तुमसे सहन नहीं होगा और झूठ मुझसे,
अपने तक रखो मियाँ अपनी अजब की बातें।


इतिहास के पन्नों को पलटकर देखना कभी,
फिर आकर करना तुम मुझसे तब की बातें।
बस हवाई किले बनाते हो तुम बरगलाने को,
दुनिया जानती है नहीं की तुमने ढब की बातें।


वक़्त के साथ खुद को भी बदलना सीखो तुम,
"सुलक्षणा" दिखा आईना करती अब की बातें।
कोई नतीजा नहीं निकलना अपनी बहस का,
आओ अपनी अपनी छोड़ करें सब की बातें।


©® डॉ सुलक्षणा


मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

होली गीत
नैनों में रखती मधुशाला
तुम वो छैल छबीली हो।
*रंग भरी पिचकारी लेकर,*
*लगती बड़ी रसीली हो।।*


तुमसे सारे रंग जहाँ के,
रंग भरी रंगशाला हो।
बातों में रस ऐसे घोलो,
जैसे प्रेम पियाला हो।
तुमको देखूँ खुद को भूलूँ,
ऐसी बनी नशीली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला.......।।


पिचकारी के प्रेम रंग से,
तुमने मुझे भिगा डाला।
जान सकूँ रंगों की भाषा,
ऐसा ज्ञान करा डाला।।
सतरंगी अम्बर सी लगती,
मोहक बड़ी सजीली हो।
नैनों में रखती मधुशाला........।।


लाल रंग प्रेमी का होये,
दुल्हन रूप सजाता है।
हरा,गुलाबी पीला रंग भी,
अन्तर्मन बहकाता है।
पास कहूँ या दूर तुम्हें मैं,
लगती सदा पहेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला.......।।


उड़े हुए रंगों से मिलकर
नया रंग बन जाती हो।
भूल सदा तुम बैर भाव को,
प्रीत की रीत चलाती हो।
बाहों में भर लूँ मैं तुमको,
ऐसी नार नवेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला .....।।


अपने रंगों में रंग डालो,
मैं तेरा दीवाना हूँ।
दहन होलिका से करवा दो,
मैं तेरा परवाना हूँ।
तुमसे साँसे तुमसे धड़कन,
मधु जीवन  की बेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला........।।


कान्हा की मुरली में तुम हो,
शिव के डमरू में तुम हो।
नारद के करतल में बसती,
वीणा की धुन में तुम हो।
सुर सरगम का सार तुम्हीं से,
मधु तुम बहुत सुरीली हो।।


नैनों में रखती मधुशाला
तुम वो छैल छबीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


मधु शंखधर 'स्वतंत्र'* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*विषय -- प्रेम*


◆ *प्रेम* कृष्ण की बाँसुरी,राधा का अनुराग।
मीरा की वीणा बजी,अन्तर्मन में त्याग।
प्रेम सुदामा का अटल, सहज सखा सम भाव।
दीन सुदामा जब मिले ,गया प्रेम तब जाग।।


◆प्रेम भक्ति के भाव में, दर्शन की बहु प्यास।
माता की ममता यही, पिता ह्रदय में खास।
प्रेम बिना बंधन नहीं, मिथ्या सारे भाव,
प्रेम ईश का रूप है, प्रेम अटल विश्वास।।


◆प्रेम शब्द पूरा नहीं, जाने सकल समाज।
त्याग बिना है प्रेम क्या? महज मनुज का काज।
अहम् भावना से सदा, प्रेम का होता नाश,
प्रेम त्याग का रूप है, *मधु* जीवन का राज।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹


सुधा मोदी तरू

हिमालय
———-
गीत
——
सामने तन के हर पल खड़ी हो गयी।
ये दुल्हन हिमशिखर से बड़ी हो गयी।
देके अपना सजन,करके माटी नमन
बन सुमन हिन्द की मंजरी हो गयी।


वेदना की धवल बिजलियाँ छा रही।
पर सघन बादलों से किरण आ रही।
शिव की गंग बनी जलझड़ी हो गयी।
ये दुल्हन हिमशिखर से बड़ी हो गयी।


सरहदों पे तिरंगा जो लहरायेगा।
 सत्यघोष हिमालय भी दोहरायेगा।
भारती के लिये  खुश  घड़ी हो गयी।
ये दुल्हन हिमशिखर से बड़ी हो गयी।
               सुधा मोदी तरू


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु बाढ़ - पटना

गीतिका 


छुपा लो सर अब अपना कहीं ये कट न जाए
जयचन्दों  से  हिन्दुस्तान कहीं ये बट न जाए।


तुम अपने ही घर आग लगाना अब छोड़ दो 
बम  ये  बारुद तुम्हारे सर कहीं फट न जाए।


भीतर  घात बहुतों कर लिए तुम नाकाब में
रखिये  गहरी नज़र इस पे कहीं हट न जाए।


चुन - चुन कर मार दो गोली बंदूक तानकर
रहो  सभी तैयार जब तक ये निपट न जाए।


फांसी   दो   उन  सबको  जो  गद्दारी  करते  हैं
चैन से कहाँ सोना जब- तक ये सिमट न जाय।


क्यों  खोते अस्तित्व लालच के चक्कर में तुम
ये  वतन  तेरा  है  भाई  कसम  मिट  न  जाए।


देख   लो   सीमा  पर  कितने  वीर  शहीद  हुए
अपनी तो रक्षा कर कहीं दुश्मन लिपट न जाय।


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु
बाढ़ - पटना
9661065930


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डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, '"प्रेम"

हायकु


 धूम्र कहर।
प्रदूषित प्रहर।
धुत्त शहर


 नशे में चूर।
सागर की लहर।
रेत का घर।


 गर्व का हल।
विचारों की  चुहल।
हवा महल


 विष को घोल।
सियासत में झोल।
तौल के बोल।


दंगे दमन।
अमन का चमन।
सत्य वचन।


शासन चंगा।
नंगे का नाच नंगा
दिल्ली का दंगा



मार से जाग।
अराजक ओ नाग।
अशान्ति भाग।


शान्ति या सत्ता ।
भिन्नता में एकता।
ओ,मानवता



झूठ की चाँदी।
जन जन की आँधी
महात्मा गांधी


 
 चाय की प्याली।
खयालों का खयाली।
हवा हवाई।


 हायकु
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, '"प्रेम"
स्व््


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...