होली गीत
नैनों में रखती मधुशाला
तुम वो छैल छबीली हो।
*रंग भरी पिचकारी लेकर,*
*लगती बड़ी रसीली हो।।*
तुमसे सारे रंग जहाँ के,
रंग भरी रंगशाला हो।
बातों में रस ऐसे घोलो,
जैसे प्रेम पियाला हो।
तुमको देखूँ खुद को भूलूँ,
ऐसी बनी नशीली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला.......।।
पिचकारी के प्रेम रंग से,
तुमने मुझे भिगा डाला।
जान सकूँ रंगों की भाषा,
ऐसा ज्ञान करा डाला।।
सतरंगी अम्बर सी लगती,
मोहक बड़ी सजीली हो।
नैनों में रखती मधुशाला........।।
लाल रंग प्रेमी का होये,
दुल्हन रूप सजाता है।
हरा,गुलाबी पीला रंग भी,
अन्तर्मन बहकाता है।
पास कहूँ या दूर तुम्हें मैं,
लगती सदा पहेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला.......।।
उड़े हुए रंगों से मिलकर
नया रंग बन जाती हो।
भूल सदा तुम बैर भाव को,
प्रीत की रीत चलाती हो।
बाहों में भर लूँ मैं तुमको,
ऐसी नार नवेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला .....।।
अपने रंगों में रंग डालो,
मैं तेरा दीवाना हूँ।
दहन होलिका से करवा दो,
मैं तेरा परवाना हूँ।
तुमसे साँसे तुमसे धड़कन,
मधु जीवन की बेली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला........।।
कान्हा की मुरली में तुम हो,
शिव के डमरू में तुम हो।
नारद के करतल में बसती,
वीणा की धुन में तुम हो।
सुर सरगम का सार तुम्हीं से,
मधु तुम बहुत सुरीली हो।।
नैनों में रखती मधुशाला
तुम वो छैल छबीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*