स्वतंत्र रचनाः
दिनांकः २८.०२.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः उन्मुक्त छन्द(कविता)
विषयः अमर शहीद चन्द्र शेखर आज़ाद
शीर्षक: श्रद्धाञ्जलि गीत
अति साहस धीरज था भुजबल
भारत माँ का लाल,
इतराती आजाद पूत पा
आँसू भर माँ नैन विशाल।
पराधीन निज मातृभूमि को ,
विचलित था वह बाल ,
कसम लिया लोहा लेने का ,
करने अंग्रेजों को बदहाल ।
कूद पड़ा परवान वतन ,
वह शौर्यवीर आज़ाद,
आतंकित भयभीत ब्रिटिश वह ,
जनरल डायर था बेहाल।
महावीर चल पड़ा अकेला ,
यायावर पथ बलिदान ,
चन्द्र शिखर बन भारत माँ का ,
बस ठान मनसि अरमान।
बना अखाड़ा युद्ध क्षेत्र अब,
अल्फ्रेड पार्क प्रयाग ,
महाप्रलय विकराल रौद्र वह,
आज़ाद हिंद अनुराग।
घबराया जनरल डायर अब ,
घेरा पार्क सैन्य चहुँओर ,
चली गोलियाँ छिप छिप कर ,
ले ओट वृक्ष दूहुँ ओर ।
ठान लिया जीवित नहीं मैं ,
पकड़ा जाऊँगा आज ,
श्वांस चले जबतक जीवन का,
मैं बनूँ वतन शिर साज ।
मरूँ राष्ट्र पर सौ जन्मों तक ,
मम जीवन हो सौभाग्य ,
आज मरोगे खल डायर तुम ,
फँस आज स्वयं दुर्भाग्य।
तोड़ वतन परतंत्र शृंखला ,
दूँ भारत स्वतंत्र उपहार,
कण्ठहार बन खु़द बलि देकर ,
बनूँ मैं भारत माँ शृङ्गार।
रे डायर कायर बुज़दिल तुम,
होओ अब मरने को तैयार ,
यह गोली तेरा महाकाल बन ,
देगी मौत बना उपहार ।
हुआ भयानक वार परस्पर ,
चली गोलियों की बौछार ,
जांबाज़ वतन आज़ाद हिंद वह ,
कायर डायर बना लाचार।
दावत देता वह स्वयं मौत को ,
था डर काँप रहा अंग्रेज ,
महाबली वह बन प्रलयंकर ,
आजाद था देशप्रेम लवरेज।
दुर्भाग्य राष्ट्र बन वह पल दुर्भर ,
बची अग्निगोलिका एक ,
चला उसे धर स्वयं भाल पर ,
किया राष्ट्र अभिषेक ।
रक्षित संकल्पित निज जीवन
तन रहूँ बिना रिपु स्पर्श ,
दे जीवन रक्षण माँ भारति!
चन्द्र शेखर आज़ादी उत्कर्ष।
काँप रहा था हाथ पास लखि
पड़ा शव शिथिल देह बलिदान ,
आशंकित मन कहीं उठे न ,
वह आजा़द वतन परवान ।
गुंजा भारत जय हिन्द शेर बन
आजाद़ वतन सिरमौर,
अमर शहीद प्रेरक युवजन का ,
पावन स्मृति बन निशि भोर।
शत् शत् सादर नमन साश्रु हम ,
श्रद्धा सुमन अर्पित तुझे आज़ाद,
ऋणी आज तेरी बलि के हम,
राष्ट्र धरोहर रखें सदा आबाद।
अमर गीति बन स्वर्णाक्षर में
लिखा वीर अमर इतिहास ,
युग युग तक गाया जाएगा ,
चन्द्र शेखर आजा़दी आभास।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली