स्वतंत्र रचना सं. २७८
दिनांकः २९.०२.२०२०
वारः शनिवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः होली दे संदेश
माघ फाग अहसास बन, आयी मादक संग।
पर खूनों की होलिका , की होली बदरंग।।१।।
नफ़रत की पिचकारियाँ , भर खूनों का रंग।
छायी दहशत की नशा , मार काट हुरदंग।।२।।
घर दूकान वाहन सब , चढ़े होलिका भेंट।
जले ज्वाल दंगा अनल,स्कूली परिणय सेट।।३।।
बैठ होलिका गोद में , प्रेम शान्ति प्रह्लाद।
जली आग इन्सानियत,निर्ममता अवसाद।।४।.
हालाहल दुर्भाव में , जलता देश समाज।
मिली कपट हिंसा घृणा,भांग फाग आगाज।।५।।
आतंकी साजीश सच,हिरण्यकशिपु अनेक।
घोल रहे हिंसक बने , घृणा रंग अतिरेक।।६
बन गुलेल पिचकारियाँ , पत्थर रंग फुहार।
बने शस्त्र पेट्रोल बम , मौत फाग उपहार।।७।।
मिटी फाग सारी खुशी, खोकर अपने लोग।
छा मातम जन मन वतन,फँसे नफ़रती रोग।।८।।
नग्न नृत्य जब मौत की , तब चेती सरकार।
छूट मिली रक्षक वतन , रोक थाम गद्दार।।९।।
अपनों को खोकर मनुज,शोकाकुल है मौन।
है प्रश्न मानस निकुंज , सोचो दोषी कौन।।१०।।
बने मीत हम प्रीत फिर ,भरे घृणा मन खाई।
रहे शान्ति एका वतन , हम सब भाई भाई।।११।।
आओ मिल मन्नत करें , जले होलिका द्वेष।
प्रीत नीति बन फागुनी , होली दे संदेश।।१२।।
भूलें हम सब गम सितम,बढ़े पुन: नव जोश।
रंगे रंग उत्थान पथ , रह जाग्रत नित होश।।१३।।
नवजीवन नवरंग बन ,अधर सुखद मुस्कान।
बिना भेद सबकी प्रगति, हो सबको सम्मान।।१४।।
सर्व धर्म सद्भावना , होली हो त्यौहार।
फिर निकुंज आहत चमन,सजे प्रीति शृङ्गार।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली