गान राष्ट्र का गाता हूँ
मुक्त मैं उन्मुक्त स्वर में,
गान राष्ट्र का गाता हूँ,
मैं भारत, भारत मेरा है,
शान्ति दूत बन जाता हूँ।
राग बदल अनुराग बनूँ,
प्रगति पथी बन जाता हूँ,
खिले खुशी मुस्कान मुखी,
नवजीवन का उद्गाता हूँ।
मानव हूँ रक्षक मानवता,
नीति प्रीति उन्नायक हूँ ,
मर्यादित मर्यादापुरुषोत्तम,
मुक्तिबोध बन जाता हूँ।
मन निर्मल गंगा सम पावन ,
समरस शीतल नेह बहाता हूँ,
रवि शशि सम बिन भेद भाव के
सहयोगी बन जाता हूँ।
नद निर्झर गिरि बन सरिता मैं,
अविरल परहित गीत सुनाता हूँ ,
मानव हूँ ममता की मूरत ,
करुणाकर बन जाता हूँ।
बनूँ ज्ञान विज्ञान परंतप,
रण महावीर बन जाता हूँ ,
जीवन दे निज राष्ट्र भक्ति में ,
बलिदानी बन जाता हूँ।
मानदण्ड भारत सीमा का
राष्ट्र मुकुट बन जाता हूँ,
शील कर्म गुण त्याग मनुज मैं,
भारत का गान सुनाता हूँ।
धर्म अर्थ और काम मुक्ति का,
जीवन रस निर्माता हूँ,
मानव हूँ नैतिकता पोषक,
लोकतंत्र बन जाता हूँ ।
नया पौध मैं कोमल किसलय,
पुष्पित सुरभित बन जाता हूँ,
मानव हूँ नित फलित सुयश फल,
अभिराम राष्ट्र बन जाता हूँ।
ऋषि मुनियों की पूजित धरा
देवलोक बन जाता हूँ,
मानव हूँ निर्माणक जग का,
सुख शान्ति गीत मैं गाता हूँ।
बन विहगवृन्द उन्मुक्त गगन में,
जय भारत माँ संगीत सुनाता हूँ।
मानक मैं उत्थान वतन का,
पालक किसान बन जाता हूँ,
निर्भय नित सबला नारी मैं
महाशक्ति प्रलय बन जाता हूँ।
नर हूँ मैं नारायण नित पल,
सत्यं शिव सुन्दर बन पाता हूँ,
हरित भरित उर्वर वसुधा मैं
भूमि भरत कहलाता हूँ।
स्वाभिमान मैं संवाहक यश का,
अमर गीत बन जाता हूँ,
मानव हूँ यायावर चिन्तक,
मधुरिम जीवन गीत सुनाता हूँ।
मुक्त सदा उन्मुक्त व्योम में
तिरंग ध्वजा लहराता हूँ ,
जय भारत जय हिन्द गीत मैं
वन्दे मातरं संगीत सुनाता हूँ।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली