एस के कपूर "श्री* *हंस"।बरेली।

*बस प्रीत की रीत हो।*
*मुक्तक।*


न ही किसी की  हार और
नहीं किसी की जीत हो।


बस हर दिल में  बसी एक
दूजे   के  लिए  प्रीत  हो।।


सद्भावना,  स्नेह, प्रेम  की
रस धार बहे  हर  दिल  में।


स्वर्ग  सी  इस   दुनिया  में
बस यही एक ही  रीत हो।।


*रचयिता। एस के कपूर "श्री*
*हंस"।बरेली।*
मो  9897071046
      8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।बरेली।।

*क्यों नफरत के रास्ते जा है आदमी।*
*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।*


बाग को  तो अब    बागवान 
ही     खा     रहा    है।


क्यों   आदमी    जिंदगी    में
नफरत   ला    रहा  है।।


अपनी   करनी    से  ही   तो
बनती जिंदगी स्वर्ग नर्क।


जाना था प्रेम की गली  जाने
कौन   राह   जा  रहा है।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


राजेंद्र रायपुरी

👨‍👧‍👧👨‍👧‍👧   एक गीत   👨‍👦‍👦👨‍👦‍👦


   (होरी आवन को है सखी री)


होरी आवन को है सखी री, 
                  आए नहीं बलमुआ मोरे।
डर लागे ये गाल गुलाबी, 
                   रह जाएं मत कोरे कोरे।


रंग न भाए कोई मोहें, 
            बिन साजन के मान सखी री।
सच कहती हूॅ॑ अपने जैसे, 
           तू मुझको मत जाना सखी री।
नींद आज- कल खुल जाती है,
              आधी रात, बिहिनिया भोरे।
होरी आवन को है सखी री, 
                  आए नहीं बलमुआ भोरे।


कैसे उनसे बात करूॅ॑ मैं,
                 कहते उनसे बात डरूॅ॑ मैं।
सरहद पर वो आज खड़े हैं,
            क्यों मन में कुछ पीर भरूॅ॑ मैं।
मन में संशय रोज़ अनेकों, 
                   मार रहे हैं सखी हिलोरे।
होरी आवन को  है सखी री, 
                  आए नहीं बलमुआ मोरे।


मन में अगर उमॅ॑ग नहीं तो,
            फिर क्या होरी बोल सखी री।
पियवा जब है संग नहीं तो, 
            फिर क्या होरी बोल सखी री।
बंद किवाड़ रखूॅ॑गी मैं तो, 
               आ मत जाएॅ॑ गाॅ॑व के छोरे।
होरी आवन को है सखी री, 
                  आए नहीं बलमुआ मोरे।


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

श्रीराधे कृष्ण की परमज्योति
मेरे हृदय समाय रही है
वह बन करके जीवन सुरभि
हिय चमन महका रही है


आनन्द कन्द गिरिधर गोविन्द
तुम्ही हो राह जिन्दगी की
तुम्हारी कृपा से कृतार्थ हुआ
अब परवाह न बन्दगी की


करुणाधार की करुणा सदा ही
आप्लावित मुझे करती रहे
सत्य की अभिव्यक्ति नारायण
राधे कृष्ण ही जपती रहे।


जय जय श्रीराधे कृष्णा🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


 


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *" मंगल"*
"मंगलमय हो जीवन सारा,
प्रभु का मिलता-
जो पग पग सहारा।
अपनत्व की धरती पर साथी,
साथी-साथी-
साथी अपनो से ही हारा।
स्वार्थ की धरती पर साथी,
कब- तक संग चलता-
मन से वो भी हारा।
बिन प्रभु कृपा में साथी,
मिलता नहीं कुछ भी-
कैसे- होगा मंगल तुम्हारा?
सत्य-पथ पर चलकर ही,
मिलता सच्चा साथी-
बनता जीवन का सहारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

नव संकल्प ले
************
नये - नये  संकल्प लें
नई - नई आशाये,
नये स्वप्न हम रोज बुन चलें,
नई -नई धारायें।


यह जीवन केवल,
अपने लिए नहीं है,
अपना यह जीवन
देश सेवा के लिए भी हो।


स्वार्थ का त्याग करें,
अर्पित कर दें हम,
राष्ट्र को अपना तन-मन,
तभी है जीवन सुखमय।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


अखण्ड प्रकाश कानपुर

आखर आखर जोड़ कर 
शब्द हुए साकार|
अनुपम रचना लिख रहे,
हिन्दी रचनाकार||
हिन्दी रचनाकार,
भरें भावों का चन्दन|
पढ़ते सुनते झूम उठे,
लोगो के तन मन||
कह अखण्ड है छन्द बन्द,
कविता का सागर|
बूँद बूँद कल्लोल कर रहे,
आखर आखर||


प्रखर दीक्षित

(कन्नौजी रसरंग)


*हो री होरी*


*होरी में अवसर तकें , कुछ रसिया मुँहजोर।*
*नौनी अंगना भीड़ में ढूँढें रस की पोर।।*
*    *    *
रंग घोर घेलना चौक धरो, हाय अबीर गुलाल भरे झोरी।
रंग डारी करी सरबोर सखी, सखि राह के बीच करै बरजोरी।।
कंचुकि लंहगा चुनरी टपटप, करे गाल गुलाल भई फचफच,
मग आंगन गैल अटा घेरी, हुरियारे कहैं  भौजी होरी।।



रतनारे नयन काजर आंजो मुरकीं अलकैं कच श्याम बरन।
मुसकानि अधर नथ मोती दपै कटि तिलरी कंगन की खनखन।।
इत निकसी पनघट कौं तिय हा!तकि मारी धार रंगी मोहन ,
तुम छैल सताओ न नार नवल काय डोलौ रंग भरि    घरन घरन।।


 


कजरारे नयन उरझी अलकैं लब सुरुचि महावर पांयन में।
मनमोहनि छबि वपु गौर बरन मिसरी सी घुरै लय गायन में।।
सखि पंक गलिन बगिरो बगिरो अंधियारी निशा बिजुरी कौंधै 
किमि जाइए श्याम बुलावैं भटू हाय आग लगे जा साउन में।।


श्याम कुँवर भारती (राजभर) गीतकार /कवि /लेखक  ढोरी ,बोकारो ,झारखंड 

जोगिरा 
केवन देश मे जनम लिए घनश्याम |
केवन देश मे जनम लिए राम भगवान |
जोगिरा सारा रा रा रा रा |
गोकुला मे जनम लिए घनश्याम |
अयोध्या नगरी जनम लिए राम भगवान |
जोगिरा सारा रा रा रा रा |


केवन देश के नेता गरजे करे ऐलान |
थर थर काँपे दुशमन बचावे आपण जान | 
जोगिरा सारा रा रा रा रा |
भारत देश के नेता गरजे करे ऐलान |
पड़ोसी देश के दुश्मन बचावे आपन जान |
जोगिरा सारा रा रा रा रा |


केवन देश के झण्डा फहरे ऊंचा आसमान |
केतना रंग मे रंगल देशवा करे गुमान |
जोगिरा सारा रा रा रा रा |
हिन्द देश के झण्डा फहरे ऊंचा आसमान |
तीन रंग मे रंगल तिरंगा देशवा करे गुमान |
जोगिरा सारा रा रा रा रा |


श्याम कुँवर भारती (राजभर)
गीतकार /कवि /लेखक 
ढोरी ,बोकारो ,झारखंड 
मोब -9955509286


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माता का मान बढ़ाना"*
      (कुकुभ छंद गीत)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""'"'""""
विधान- 16 - 14 पर यति के साथ प्रतिपद 30 मात्रा, पदांत $$, युगल पद तुकांतता।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
¶सेवा करते सत्कर्मों से, माता का मान बढ़ाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
न्योछावर कर जीवन अपना, तुम वीर-प्रसूत कहाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।


¶क्रन्दन करती-मातु बिलखती, अपनी ही संतानों से।
शर्मिंदा है भारत माता, उत्छृंखल-मनमानों से।।
अब तो सीधा राह चलो रे, मानव का धरम निभाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।


¶मोह बहुत निज जीवन से है, पर पर-प्राणों का प्यासा।
करनी पर अति गर्व न करना, देर नहीं पलटत पासा।।
तम क्यों घिरता है नैनों में, हो जब-जब प्राण-लुटाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।


¶लुटती लाज यहाँ जब-जब है, हा! मानवता रोती है।
देख दशा को दया न आती, नैन-झरे नित मोती है।।
सोच तनिक तो कभी कुकर्मी, निज करनी पर शर्माना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
¶तत्पर सीमा की रक्षा को, सैनिक जैसे होते हैं।
काँपे कपटी-कुटिल-कुचाली, रिपु-गण रण में रोते हैं।
"नायक" अर्पण शीश करे जो, सीख वही तुम अपनाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""""""'"'""""""""""""""""""""""""""""""""""


नूतन लाल साहू

बचत का तरीका
मैंने अपने,पत्नी से कहा
पैसे बचाने की आदत
अच्छी है, डियर
पुरानी साड़ी को फाड़कर
सीती हो,मेरा अंडर वियर
मेरा कुर्ता भी, अपनी
रेशमी साड़ी से,निकाल दो
साड़ी के किनारी,वाला हिस्सा को
आस्तीन और गले पर, डाल दो
साड़ी चल चुकी हैं,दस साल
कुर्ते भी कुछ साल,चल जाएंगे
बचत का ये तरीका है आसान
एक दिन बात की बात में
बात बढ़ गई
मेरी घरवाली,हमसे ही लड़ गई
वो बोली, जो कमा कर खिलाते हो
सभी खिलाते हैं
तुमने आदमी,नहीं देखे है ऐसे
झूले में झुलाते है
मैंने भी कहा
उनके घर,जाकर देखना
पति के लिए झगड़ा नहीं
आरती सजाते हैं
उस दिन,खाना नहीं बना
मैंने कहा,चलो एक दिन का
खाने का खर्चा,बच गया
पर ये तरीका,आप मत अपनाना
क्योंकि बचत का ये अंदाज
है सबसे बड़ा,खतरनाक
मैंने कहा,माना कि मै बाप हूं
तुम भी तो, मां हो
बच्चो के जिम्मेदार
तुम भी तो,हाफ हो
बच्चे हो गये,आठ आठ
अभी एक रुपया किलो में
चावल मिल रहा है
बिहान योजना से
जिन्दगी चल रहा है
जिस दिन होगी,अधिक तंगी
पुराना पेटीकोट
जो तुम कमर में बांधती हो
मै गले में,बांध लूंगा
सारा तन,उसी में ढांक लूंगा
इससे बढ़कर बचत का और
क्या हो सकता है,अलौकिक उपाय
बचत का ये तरीका है,सबसे आसान
नूतन लाल साहू


 


 


मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

*कुण्डलियां छंद*


कैसे दिल्ली जल रही, किसका है यह काम।
जाति धर्म के नाम पर,कब तक ये संग्राम।
कब तक ये संग्राम, बताएगा भी कोई।
बढ़े सियासतदार, वहीं बस जनता रोई।
*मधु* कहती यह बात, करोगे कब तक ऐसे?
नेह बने जल धार, जले तब दिल्ली कैसे।। 
*©मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


अभिलाषा देेेशपांडे मुंबई

विषय-पिता
शिर्षक- फर्ज
पापा हर फर्ज निभाते हैं, 
जीवनभर कर्ज चुकाते हैं!
बच्चे के एक खुशी के लिये
अपने सुख भूल जाते हैं!
फिर क्यों ऐसे पापा के लिये
बच्चे कुछ करही नहीं पाते!
ऐसे सच्चे पापा को  क्यों,
पापा कहने भी सकुचते!
पापा का आशिष बनाता हैं,
बच्चे का जीवन सुखदाई,
पर बच्चे भूल ही जाते हैं, 
यह कैसी आँधी हैं आई!
जिससे सब कुछ पाया हैं,
जिसने सबकुछ सिखलाया हैं!
कोटि नमन ऐसे पापा को ,
जो हरपल साथ निभाया हैं!
प्यारे पापा के प्यार भरे, 
सीनेसे जो लग जाते हैं!
सच कहती हूँ विश्वास करो, 
जीवन में सदा सुख पाते हैं!
स्वरचित
अभिलाषा देेेशपांडे मुंबई


 


 


कवि अतिवीर जैन "पराग " मेरठ,उ प्र

सभी को नमन
ग़म :-


जितना ग़म है साथी,
प्यार बढ़ ही जाता है,
ऐसे जीने पे अपने, 
हमको तरस आता है.



मय भी पीता हूँ मैं,
ग़म भी भुला लेता हूँ,
फिर भी बेहोशी का आलम,
तेरे नाम से ही आता है.


तेरा प्यार वादा है क्या, क्यों इतना तड्फाता है? जितना ग़म है साथी,
प्यार बढ़ ही जाता है.


कवि अतिवीर जैन
"पराग "
मेरठ,उ प्र


अनुरंजन कुमार "अंचल"        अररिया, बिहार

बादल आया (बाल कविता)


 


बादल आया, बादल आया
बहते हुए तो बादल आया 
नीले - नीले  आसमान  में
स्याह रंग का बादल आया।


आओ  बादल , काले  बादल
किधर - किधर जाता है बादल
कितने   आगे  ओर   जाएगा
यहां तो बरस  जाओ बादल।


बादल लगता  छाया जैसा
प्रकृति से  बना  माया जैसा
कभी कभी हम सब को लगते
बादल  में शिव  सोया जैसा ।


बादल में पानी आयेंगे
हम सब पानी में कूदेगें
हम सभी मस्ती से डूबेगें
हम सभी झूम के नाचेगें।


 अनुरंजन कुमार "अंचल"
       अररिया, बिहार


चंचल पाण्डेय 'चरित्र'

😁हास्य😆
*कवित्त छंद*
दिन भर टिक टॉक,
                         हैलो हाय जिट जॉट|
फटे जीन्स घुटना पे,
                         कॉर्न सिल्क बाल है||
जिगजैग चले चाल, 
                         माने खुद बेबी डॉल|
कोन जैसा तीखे भाल 
                         पॉप कोर्न  गाल है||
कान खजुराहो नाक, 
                         नागफनी  जैसे लगे|
कर्ण लटकाए गिरि,
                          होंठ सुर्ख लाल है||
गिरिवा सुराही कटि,
                         सेतु बंध सम लगे|
नैन कजरारे हील, 
                       मानो नैनीताल है||
                  चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


प्रीति शर्मा "असीम " नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

किताब पढ़ना 


पढ़ना............ किताब
 हर किसी के ,
बस की बात नहीं। 


यह आधार ....है ।
जिंदगी का,


 डिजिटल होती ,
सोच के भी बस नहीं।‌।


 पढ़ना .......किताब 
हर किसी के ,
बस की बात नहीं ।


किताब ....किताब है ।
जिंदगी का असली लिबास है।


 नेटवर्क  जाते ही ,
सब...... बेकार है ।


तब किताब ही,
 जिंदगी की ,
असली पहचान ,
याद आती है ।


यह तो पोटली है ...जादू की 
पन्नों से कितने राज खोल जाती है।
स्वरचित रचना
 प्रीति शर्मा "असीम "
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


अंजू प्रजापति सहारनपुर

तमाम पापा के लिए


ये पापा भी कितने अजीब होते हैं
पहले तो बेटी के आने की खुशी में आंसू बहाते हैं


ओर जब बेटी बड़ी हो जाती है
उसकी विदाई पर आंसू बहाते हैं
ये पापा सच में बड़े अजीब होते हैं


सही कहा है किसी ने
बेटी का बाप होना आसान नहीं
एक छोटे-से पौधे को पेड़ बनाकर विदा करना पड़ता है
अपने कलेजे के टुकड़े को दिल से
 जुदा करना पड़ता है


पहले अपनी बेटी को एक शहजादी की तरह पालते हैं
फिर एक दिन उसी शहजादी को दूसरे के हवाले कर देते हैं
ये पापा भी बड़े अजीब होते हैं


अपनी बेटी के खातिर दुनिया से लड़ जाते हैं उसकी खुशी के खातिर आंसू अपने छीपाते है
फिर भी पता नहीं अपनी बेटी को 



 विदा कर  इतना बड़ा गम सह लेते हैं पता नहीं क्यों ये पापा इतने पत्थर दिल हो जातें हैं
ये पापा सच में बड़े अजीब होते हैं


देखो इन पापा लोगों को
बेटी के सामने मुस्कुराता हुआ चेहरा कैसे दिखाते हैं
फिर बेटी की विदाई पर आंसू सारा दर्द बयां कर देते हैं
ये पापा भी बड़े अजीब होते हैं


कैसे बयां करुं पापा को शब्दों में
ये पापा तो सच में बड़े अजीब होते हैं


ये अपनी नन्ही गुड़िया को पाल-पोस कर पता नहीं कैसे अपने से जुदा कर देते हैं
ये पापा सच में बड़े अजीब होते हैं


ये पापा सच में बड़े अजीब होते हैं



अंजू प्रजापति


आलोक मित्तल रायपुर

मुक्तक
*******


आज हम सबको डराता कौन है।
अपनी ताकत यूँ दिखाता कौन है।
क्या मरी इंसानियत उनकी अभी।
देश मेरा ये जलाता कौन है।।


 


कभी दर्द अपना बताती नही है।
नदी तो किसी को डराती नहीं है।
भले आड़ी टेडी वो बहती जमीं पर
कभी भी किसी को सताती नहीं है।


** आलोक मित्तल **


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पहली मुलाकात पर पेश हैं दो छंद


पहली  मुलाकात  में, और भीगती रात में,
वो गोरी बोली हमसे, क्यों राह में खड़े हो।
कब से मैं देख रही, आते जाते  मुझको तू,
देखता  हैं  घूर - घूर, यूँ  पीछे क्यों पड़े हो।
बात  मान  नही  रहे, कुछ  ध्यान  नही  रहे,
अब पीछा मेरा छोड़ो, क्यों जिद पे अड़े हो।
तेरे  जैसे  दीवाने  भी,  देखे  हैं   बहुत  मैंने,
किसी के न हाथ  आयी, क्या उनसे बड़े हो।


 


 


पहली  मुलाकात  में, ऐसी बाते सुनकर,
मेरे  हाथ  पाँव  झन्न, झन्न   करने  लगे।
साहस  बटोरकर, मैंने  कहा  प्रिये  सुनो,
जब  से   देखा  तुमको, हम  मरने  लगे।
मुलाकात आपसे जो, ऐसे रोज होती रही,
पीर  दिल  की  हमारे,  सारी  हरने  लगे।
ये सुनकर  मुस्काई, वो  पलकें  झुकाकर,
अब  तो   बोलने  पर,   फूल  झरने  लगे।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

CAA का धरना..... 


एैसी आग लगी ना जाने, कितने लाल निगले हैं. 
अब भी जूं ना रेंगी, 
नेता झांके क्यों बगलें है. 


हिन्दू -मुस्लिम की शक्ल में, 
जल उठी दिल्ली. 
पता नहीं हैं कौन से पिछले, 
और कौन से अगले हैं. 


CAA,NRC का अर्थ पता नहीं,
 चले धरने को. 
या तो वो समझदार बहुत हैं, 
या फिर सब पगले हैं. 


शाहीन बाग की आड़ में, 
हो रहे कु-कृत्य भी, 
बेसुरी सी ताल पर, 
रात-दिन बज रहे तबले हैं. 


जिनसे तीन-तलाक लेते थे, 
उनको हथियार बना लिया, 
अब वो शेरनी हो गयी, 
जो कल तक रहे अबले हैं. 


सरकार क्यों बेबस हुई, 
नहीं कुछ कर सकती. 
विपक्ष सारा एक हो गया, 
हर बात में झमले हैं. 


फ्री की आदत लगी लोगों को, 
क़ानून लचर है "उड़ता ", 
ये वोट -बैंक की राजनीति 
और चलने वाले मेले हैं. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली

 गान राष्ट्र का गाता हूँ
मुक्त मैं उन्मुक्त स्वर में, 
गान  राष्ट्र  का  गाता हूँ,
मैं भारत, भारत मेरा है,
शान्ति दूत बन जाता हूँ। 
राग बदल अनुराग बनूँ,
प्रगति पथी बन जाता हूँ,
खिले खुशी मुस्कान मुखी,
नवजीवन का उद्गाता हूँ। 
मानव हूँ रक्षक मानवता,
नीति  प्रीति उन्नायक हूँ ,
मर्यादित मर्यादापुरुषोत्तम,
मुक्तिबोध  बन जाता हूँ। 
मन निर्मल गंगा सम पावन ,
समरस शीतल नेह बहाता हूँ,
रवि शशि सम बिन भेद भाव के 
सहयोगी बन जाता हूँ।
नद निर्झर गिरि बन सरिता मैं,
अविरल  परहित गीत सुनाता हूँ , 
मानव हूँ ममता की मूरत ,
करुणाकर बन जाता हूँ।
बनूँ ज्ञान विज्ञान परंतप,
रण महावीर  बन जाता हूँ ,
जीवन दे निज राष्ट्र भक्ति में ,
बलिदानी  बन  जाता  हूँ।
मानदण्ड भारत सीमा का
राष्ट्र मुकुट बन जाता हूँ,
शील कर्म गुण त्याग मनुज मैं,
भारत का गान सुनाता हूँ।
धर्म अर्थ और काम मुक्ति का,
जीवन रस निर्माता हूँ,
मानव हूँ नैतिकता पोषक,
लोकतंत्र बन  जाता हूँ । 
नया पौध मैं कोमल किसलय,
पुष्पित सुरभित बन जाता हूँ,
मानव हूँ नित फलित सुयश फल,
अभिराम राष्ट्र बन जाता हूँ। 
ऋषि मुनियों की पूजित धरा 
देवलोक  बन  जाता  हूँ,
मानव हूँ निर्माणक जग का,
सुख शान्ति गीत मैं गाता हूँ।
बन विहगवृन्द उन्मुक्त गगन में,
जय भारत माँ संगीत सुनाता हूँ।
मानक मैं उत्थान वतन का,
पालक किसान बन जाता हूँ,
निर्भय नित सबला नारी मैं
महाशक्ति प्रलय बन जाता हूँ।
नर हूँ मैं नारायण नित पल,
सत्यं शिव सुन्दर बन पाता हूँ,
हरित भरित उर्वर वसुधा मैं  
भूमि  भरत   कहलाता हूँ।
स्वाभिमान मैं संवाहक यश का,
अमर  गीत बन जाता हूँ,
मानव हूँ यायावर चिन्तक,
मधुरिम जीवन गीत सुनाता हूँ। 
मुक्त सदा उन्मुक्त व्योम में 
तिरंग ध्वजा  लहराता  हूँ ,
जय भारत जय हिन्द गीत मैं 
वन्दे मातरं संगीत सुनाता हूँ।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती [राजभर]  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी

हिन्दी गीत- क्यो हुआ 
मुझे पहली बार प्यार हुआ |
यार क्यो हुआ |
झूठा ही कोई दिलदार हुआ |
यार क्यो हुआ |
मैंने चाहा नहीं मैंने सोचा नहीं |
हुआ क्या मुझको पता नही |
क्यो उसका मुझे इंतजार हुआ |
यार क्यो हुआ |
था मै बेपरवाह कितना मजा था |
होगी उसकी चाह किसको पता था |
मै क्यो इतना लाचार हुआ | 
यार क्यो हुआ |
धड़कने नाम उसका लेती है |
बिना उसके न जागती न सोती है |
मै उसका बड़ा तलबगार हुआ |
यार क्यो हुआ |
हर जगह हर शय वो दिखता है |
हर पल दिल मेरे वो रहता है |
काया मुझे उससे प्यार हुआ |
यार क्यो हुआ |
मुझे पहली बार प्यार हुआ |
यार क्यो हुआ |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


प्रखर दीक्षित*. *फर्रुखाबाद

*~एक प्रयास~*
*कोरा कागज लाल हो गया*


तार-तार मानवता सिसके, घृणित दृश्य विकराल हो गया।
आतंकी कुंठा प्रतिशोधी, सहमा सब्र हलाल हो गया।।


सिसक रही थीं धर्मध्वजाऐं, आर्तनाद क्रंदन घर-घर।
निर्ममता चंड़ाल हो गयी, निरीह वेदना कांपी थर थर।।
     समझ सका न वक्त कुचालें, 
              भय का मंज़र काल हो गया ।।
*सहमा सब्र हलाल.......*


कहीं सिसकता माँ सा आंचल , कहीं राखियाँ मौन हुईं ।
संतति कहीं अनाथ हो गयी, परिणीता कहिं  पौन हुई।।
     ह्रदय विचारक दृश्य रुलाते,
           शर्मसार नत भाल हो गया।।
*सहमा सब्र हलाल.......*


उठो आर्य कर लायक साधो, अब मात भारती रही पुकार।
विध्वंस करो नफरत दीवारें, करो कुमति का  द्रुत संहार ।।
     मिलें खाक में नियति दोगली,
          शंका भय तत्काल हो गया।।
*सहमा सब्र हलाल.......*


मुट्ठी भर नाखून विषैले, क्या अमन चैन का हरण करेंगे।
विस्तारवाद को झूठे मंज़र, क्या गंग ओ जमन का मरण करेंगे।।
      प्रखर भारती यही सोचती,
            क्यों कोरा कागज लाल हो गया।।
*सहमा सब्र हलाल.......*


*प्रखर दीक्षित*.
*फर्रुखाबाद*


नूतन लाल साहू

इंतजार
समय के खेल आय
अंधियार मिट जा ही
अंजोर बगर जा ही
सबो दिन एके सही,नइ होय
इंतजार कर इंतजार कर
सरसो के फुल, अामा के मंजरी
लट लट ले, फुल जा ही
डेहरी म बइठे रददा जोहत रह
बर बिहाव, के नेवता आ ही
बने शुभ घड़ी,महुरत मा
बसंत ऋतु,ह आ जाही
सबो दिन एके सही, नइ होय
इंतजार कर इंतजार कर
रतिहा कुलुप,अंधेरी हे
त का होइस संगी
बिहनिया सुरुज आ जा ही
हिम्मत झन हार,भरोसा ल राख़
रोग राई संकट, दुरगत म
जब कोनो नइ रहय,आंछु पोछइया 
तब माता पिता गुरु के आशीष ह
नवा रददा दिखा जा ही
सबो दिन एके सही,नइ होय
इंतजार कर इंतजार कर
घुरुवा के दिन ह, बहुरथे
तोर छितका कुरिया ह
महल अटारी बन जा ही
साधू के भेष म, कतको शैतान हे
सोझ के पुछंता नइये
लबरा के सान हे
पर मौत के अगोरा म अटके
ओखर परान हे
समय के खेल आय
अंधियार मिट जा ही
अंजोर बगर जा ही
सबो दिन एके सही,नइ होय
इंतजार कर इंतजार कर
नूतन लाल साहू


 


 


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