देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

...........जिंदगी में ये कौन आया.............


मेरी  अंधेरी   जिंदगी   में  ये  कौन  आया ।
मेरी  बिगड़ती  जिंदगी  में ये  कौन आया।।


हर  तरफ   से  हो   चुका  था  मैं   निराश ;
मेरी  बहकती  जिंदगी  में ये  कौन आया।।


मेरी कोशिश थी किसी  तरह संवर जाऊं ;
मेरी भटकती  जिंदगी  में ये  कौन आया।।


ज़फा  की  आग  में   जलता  रहा  हूं   मैं ;
मेरी  सुलगती  जिंदगी में ये  कौन आया।।


वफादारी  का अब तक  मिला नहीं सिला;
मेरी  गुजरती  जिंदगी  में ये  कौन आया।।


अब तक नहीं जगी थी उम्मीद की किरण;
मेरी बिलखती जिंदगी  में ये कौन आया।।


अंत समय  में दिखा  है  उम्मीद "आनंद" ;
मेरी  संवरती  जिंदगी  में  ये कौन आया।।


---------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


 


काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान 2020 खण्डवा mp

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च2020
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
काव्य रंगोली महिला टीम खंडवा  द्वारा आयोजित किया जा रहा विशेष कार्यक्रम 💐💐 काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान 2020  *काव्यरंगोली भारत की संघर्षरत एवं प्रयत्नशील महिलाएं" भाग1* पुस्तक का विमोचन किया जाएगा ।
*स्नेहिल भाव भरा आमन्त्रण🙏🏻*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
 *(8/3/2020) दिन-रविवार*
*समय-12-5 pm, स्थान-गौरी कुंज ऑडिटोरियम,  सिविल लाइन ,खंडवा (मध्य प्रदेश)*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
अन्तराष्ट्रीय  महिला दिवस पर काव्य रांगोली समाज कि वो महिलाये जिसने साहित्य और सामाजिक क्षेत्र मे अपना योगदान  दे समाज को पल्लवित करने मे अपनी विशिष्ट सहभागीता दी है उनको नारी रत्न सम्मान से 👸🏻👸🏻सम्मानित  किया जायेगा ।
 साथ ही देश विदेश की सम्मानित नारियो को जो महिलाओं  की किसी ना किसी रुप में 👩‍🌾👩‍🏭👩‍🎓👩‍✈️ सेवा,सहयता,उपचार, मार्गदर्शन कर रही है उनको भी नारी सशक्तिकरण 👸🏻👸🏻👸🏻👸🏻 का सम्मान  दिया जायेगा!!
🏮मुख्य आकर्षण 🏮
कार्यक्रम मे महिला सशिक्तकरण
💃💃💃💃💃💃की थीम से आप अपनी प्रस्तुति दे सकते है मात्र *8* प्रस्तुतीया को ही मान्यता प्रदान कि जायेगी.
आपके नियम निम्न होगे👇👇👇👇
1. आप को थीम अनुसार ड्रेस कोड 👭


2.  नृत्य नाटिका मंचन 


3. एक मंचन मे 5 को ही मान्यता 


4.  अपनी समान कि व्यवस्था खुद को करना है 👩‍👦‍👦


5. सभी को महिला सशिक्तकरण  प्रमाण पत्र 🥇🥇🥇🎀🎀


*6 निर्णायक मंडल का निर्णय अन्तिम एवम सर्वमान्य होगा🎤🎤*


*7 सम्मान समारोह   आभार* 🙏
🎉🎉🎉🎉🎉🎉
  
🎊🎊🎊🎊🎊🎊
*विशेष  आकर्षण : प्रतियोगीताये*🥇🥇🥇🥈🥉
*1:सुन्दर महेन्दी रची हुई* 🤲🤲


*2:फूलो से किया श्रंगार  गहने पहने* 🌺🌺


*3:रंगोली प्रतियोगिता* 🏵🏵🏵🏵🏵🏵


*4:सुन्दर सजी हुई आज का सितारा*✨🌟👸🏻


*5:लकी ड्रा*🎁🎁🎁🌹🌹🌹🌹🌹


  *आयोजक प्रायोजक  🤝आप और हम🤝*
📣📣📣📢📢📢📢 तो फिर देर किस बात की🙏🙏🙏🙏प्रतियोगीता  मे  भाग लेने के लिये कृप्या सम्पर्क करें📞📞📞
समाज में ऐसी महिलाएं जो सामाजिक ,शैक्षणिक, साहित्यिक एवं विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। कृपया इस नंबर पर संपर्क कर सूचित करें ।📞☎☎📞📞☎


9919256950
 9827314419
8839565789
7999662192


निशा'अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


सागर
3 /3 /2020 


सागर से गहरा प्रेम है मेरा
तू समझे ना समझे कान्हा
प्रेम चुनरिया काली कर ली
नाम तेरे की रटली माला कान्हा।


बन मीरा गिरधर को रिझाऊं
बन द्रौपदी गुहार लगाऊं
बन जाऊं मैं कभी भी राधा 
कान्हा तुझ को सँग मैं पाऊँ


प्रेम भावना गहरी ऐसी
भव सागर से मैं तर जाऊं
आओ दर्शन दे दो कान्हा
और ना कुछ तुमसे मैं चाहूँ।


लागा मुझको रोग प्रेम का
कैसे उसको रहूँ छुपाये--- कान्हा
डूब डूब मैं प्रेम सागर में
पा जाऊंगी यहीं किनारा।


मुझको कान्हा अंग लगालो
अब मुझको ख़ुद में ही समालो
बोझिल होती मेरी साँसे
प्रभुवर मुझको तुम ही संभालो।


स्वरचित
निशा'अतुल्य"


संजय जैन (मुम्बई)

*एकतरफा प्यार*
विधा : कविता


दिलसे जिसे याद करते है,
वो हमें याद करती नहीं।
हम जिस पर मरते है,
वो और पर मरती है।
बड़ी विचित्र स्थिति है,
मोहब्बत करने वालो की।
जो एक दूसरे लिए, 
 बिल्कुल अजनबी है।।


दिल में मोहब्बत के,
दीये तो जल रहे है।
और उस अजनबी को,
एकतरफा दिल दे बैठे है।
जबकि उसे मोहब्बत का,  
अतापता ही नहीं है।
जो दिलसे चाह रहा उसे,
उस पर उसका ध्यान नहीं।।


किसीसे दिल लगाना, 
या लग जाना।
ये तो आंखों का खेल है,
जिससे प्यार हो जाता है।
और दिल की तड़प को,
दिन प्रतिदिन बढ़ाता है।
और एकतरफा मोहब्बत, 
अपने दिल में पनपता है।
जिसे हम प्यार मोहब्बत,
कह नही सकते।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
03/03/2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां वीणा धारणी
***************
हे मां शुभ्र वस्त्रधारिणी,
दिव्य दृष्टि निहारिणी,
 हे मां वीणा धारणी ,
पाती में वीणा धरै,
तू कमल विहारिणी।


पवित्रता की मूर्ति तू,
सद् भाव की प्रवाहिनी,
हे मां सुमति दायनी,
ज्ञान का वरदान दे,
मैं प्रणाम कर रहा हूँ।।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


 


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*अनुमान*
पूर्वानुमान जो करे,देता वह संदेश।
मिले सदा संज्ञान से,जीवन को परिवेश।
सत्कर्मों की राह में, मनुज बढ़ाए शान,
मिल जाए मंजिल उसे,बनता वो अखिलेश।।


बैरी भी माने उसे, जो करता अनुमान।
पूर्वनियोजित बात से, करता है संज्ञान।
होती हो गर कल्पना, रुक जाता नुकसान,
जीत दिलाता है सदा, साहस ही पहचान।।


शक्ति जीत इक साथ हो, तब आता विश्वास।
जो जीवन अनुमान से,करता नव आभास।
सहज सफल वो ही बने,बन जाता है मान,
मानव *मधु* वो श्रेष्ठ है, वो है सबसे खास।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
🌹🌹सुप्रभातम्🌹🌹


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज

कुण्डलियां


◆आँधी ऐसी है चली,सब करते हैं शोर।
छूट रही हर हाथ से,निश्चित कच्ची डोर।
निश्चित कच्ची डोर, मनुज अन्तर घबराता।
रहा किनारा पास, डूब फिर भी वह जाता।
मधु कहती यह बात, बनो अब भी सब गाँधी।
सत्य अहिंसा साथ, कहाँ फिर आए आँधी।।


◆बाधा सारी तोड़ के, जो नर जाता जान।
सारे धन से श्रेष्ठ है, जीवन पथ का ज्ञान।
जीवन पथ का ज्ञान, यही संज्ञान कराए।
थकने से है हार, शक्ति नव राह सजाए।
मधु कहती यह बात,जिओ मत अब तुम आधा।
शक्ति पताका साथ,तोड़ दे सारी बाधा।।
*©मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*03.03.2020*
🌹🌹सुप्रभातम्🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्रेम के दो शब्द क्या लिखे
सर्वत्र प्रेम उमड़ रहा है
प्रेम की हवा जो वह रही है
प्रेम पीयूष बरस रहा है
प्रेम की शक्ति को पहचाना
प्रेम पुलकित कर रहा है
थी आपस की जो दूरियां
प्रेम उन्हें दूर कर रहा है
प्रेम रूप है ईश्वर का दूजा
आज पहचान हो गई
प्रेम से प्रेम जो टकराया तो
नफरत मजबूर हो गई
बढ़ रहा करवा देखो प्रेम का
जीवन प्रेममय हो गया
खो गया था जो अस्तित्व मेरा
आज कृष्णमय हो गया।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"यात्रा"*
"सुखद हो यात्रा जीवन की,
साथी नित दिन-
ऐसा हो प्रयास।
मधुर हो संबंध जीवन में,
अपनत्व का पल पल-
जीवन में हो आभास।
महकती रहे जीवन बगिया,
सद्कर्मो संग साथी-
सद्-संस्कारो का हो विकास।
साधना-अराधना-उपासना संग,
जीवन में साथी-
प्रभु में हो दृढ़ विश्वास।
बढ़ते रहे प्रगति पथ पर,
मिले सफलताएं-
छुए आकाश।
सुखद हो यात्रा जीवन की,
साथी नित दिन-
ऐसा हो प्रयास।।"
        सुनील कुमार गुप्ता


एस के कपूर श्री* *हंस बरेली

*सब ही एक जैसे इन्सान हैं।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


सब की एक ही  जमीन
एक  सा आसमान है।


रगो में बहता  लाल  लहू
एक  जैसा  इंसान  है।।


जब देखेंगे प्रेम की नज़र
से हर इक   इंसान को।


फिर सब में  दिखाई  देगा   
ऊपर वाला भगवान है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*


मोब 9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*नारी( हाइकु)*


सृष्टि जननी
रचना जग की है
और संगिनीय


प्रभु   मूरत
ईश्वर   ने   बनाई
स्त्री की सूरत


घर  ये  तेरा
स्त्री ही बनाती इसे
सुखी बसेरा


नारी का मान
परिवार   सम्मान
घर  की आन


जीवन साथी
माँ पत्नी बन कर
घर बसाती


पत्नी बहन
माँ भाभी नारी रूप
त्याग सहन


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो   9897071046
      8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।

*खामोशी की अपनी एक*
*जुबां होती है।मुक्तक।।।*


खामोशी की  अपनी एक
अलग  तहजीब  होती है।


संस्कारों  की  ही  यह भी
एक   तजवीज़  होती  है।।


बनती एक  तस्वीर  उनकी
हर   दिल   के   आईने  में।


बात उनकी फिर बन जाती
हर दिल  अज़ीज़   होती है।।


*रचयिता।  एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*अधिकार और कर्त्तव्य(हाइकु)*


पहले काम
फिर मिले ईनाम
यही ईमान


अनुपालना
करे जो पाये वही
बने धारणा


दें तो जवाब
पाये तभी खिताब
ये हो हिसाब


एक ही नारा
अधिकार बाद में
कर्त्तव्य सारा


कर्त्तव्य बोध
प्रथम आत्म सात
ये अनुरोध


पाना चाहते
सीखे प्रथम हम
देना चाहते


कर्तव्य बिन
कुछ नहीं होता है
पूर्ण हो ऋण



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


राजेंद्र रायपुरी

😌😌 एक बाल- गीत 😌😌


मुर्गे  ने  जब   बाॅग  लगाई।
   बिल्ली  दौड़ी  दौड़ी  आई।
    मुर्गा  उड़कर  छत जा बैठा,
       बिल्ली  बोली  आ जा भाई।


तेरा  नहीं  शिकार  करूॅ॑गी। 
  आजा तुझसे प्यार करूॅ॑गी।
    कुत्ते  से  भी  मत तू  डरना, 
      कुत्ते  पर  मैं   वार  करूॅ॑गी।


बातें  सुन  मुर्गा  जब  आया।
  बिल्ली  ने  उसको  दौड़ाया।
    दिया  वचन  था  मुर्गे  को जो,
       बिल्ली  ने  ना  उसे  निभाया।


मुर्गा  भागा  जान  बचाकर। 
  किया गलत था नीचे आकर।
    पीछे-पीछे    बिल्ली    दौड़ी,
      पेट  भरूॅ॑गी  इसको  खाकर।


लेकिन उसको पकड़ न पायी।
  जा  बैठा  फिर   ऊपर   भाई।
    धोखे-बाजों    से    बचना   है।
      मुर्गे     ने    ये    शिक्षा   पायी।


तुम भी उनसे बचकर रहना।
  मेरी  नानी  का   है   कहना।
    जो  लालच में  आ  जाता है,
      उसे  कष्ट  पड़ता  है  सहना।


मीठी  बातों  में  मत  आना।
  बुरा बहुत  है  आज ज़माना।
    उनसे  तुम  बचकर ही रहना,
      जो  चाहें  तुमको  फुसलाना।


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ अखण्ड प्रकाश                               कानपुर

शारदा शतक से
"अक्षर का श्रृंगार"
###########
वीणा वादिनि आज तुम्हारा,
करने बैठा हूं अभिनंदन।
अक्षर अक्षर नव प्रसून और,
भव्य वन्दना अक्षत चंदन।।
अ से अब आ से आओ मां,
इ से इक्षा पूरी कर दो।
ई से ईश रूप जगदम्बे,
उ से उर में भक्ती भर दो।।
ऊ से ऊंचा उठूं गगन सम,
चाह रहा है यह मेरा मन।
अक्षर अक्षर नव प्रसून और,
भव्य भावना अक्षत चंदन।।
ए से एक तुम्हीं हो माता,
हैं ऐश्र्वर्य शक्तियां तेरी।
ओ से ओज की औढर किरपा,
बुद्धि विमल कर देगी मेरी।।
अं से अंगीकार करो मां,
अ: समर्पित है यह जीवन।
अक्षर अक्षर नव प्रसून और,
भव्य भावना अक्षत चंदन।।


क से कुछ ख से खोजूं मां,
ग से गाऊं  गीत  तुम्हारे।
घ से घिसक घिसक कर माता
आऊंगा(ड़) मैं पास तुम्हारे।।
यह कवर्ग का पुष्प हार लो,
 मैं करता तेरा अभिनंदन।
अक्षर अक्षर.......
च से चरण छ से छू लुंगा,
ज से जिस क्षण दर्शन पाऊं।
झ से झंकृत होगा तन मन,
अयं (ञ) ह्री क्लीं मंत्र सुनाऊं।।
यह चवर्ग का पुष्प गुच्छ लो,
रखता हूं मैं तेरे चरणों।
अक्षर अक्षर........
ट से कहीं टूट न जाऊं,
ठ से ठिठका हुआ खड़ा हूं।
ड से डमरू ढ से ढोल बन,
शरण तुम्हारी इन पड़ा हूं।।
ण से कण कण इस शरीर का,
करूं समर्पित अपना तन मन।
अक्षर अक्षर.......
त से तन थ से थकता है,
द से दान दया का दीजै।
ध से धैर्य धरा सम पाऊं,
न से नवल शक्ति भर दीजै।।
तेरे दिये कार्य करने है,
कहता है मैया मेरा मन।
अक्षर अक्षर........
प से पाप किए जो मैने,
फ से फल जो भी बन पावे।
ब से बड़ी कृपा हो मैया,
भ से भुक्तमान हो जावे।।
म से मैया करो कृपा अब,
विचलित होता है मेरा मन।
अक्षर अक्षर.......
य से यम से डर लगता है,
र से रक्षा मेरी कीजै।
ल से लक्ष प्राप्त कर पाऊं,
मन को व से वीरता दीजै।
पार करूं भव सागर मैया,
सत्य अहिंसा मय हो जीवन।
अक्षर अक्षर...........
श से शक्ति कुछ ऐसी दीजै,
ष से षट् विकार ते पाऊं।
स से हो संतोष प्राप्त जब,
ह से हे मां दर्शन पाऊं।।
श्रृद्धा और विश्वास फलित हों,
कण कण में तेरा अवलम्बन।
अक्षर अक्षर..........
क्ष से क्षणिक न सुख चाहूं मैं,
मैं चाहूं सामीप्य तुम्हारा।
त्र से त्राहि त्राहि जग जननी,
ज्ञ से चाहूं ज्ञान तुम्हारा।।
हरो तमस अब दो "प्रकाश",
हे मैया चाह रहा मेरा मन।
अक्षर अक्षर.......
     स्वरचित।  डॉ अखण्ड प्रकाश
                              कानपुर


नूतन लाल साहू

प्रजातंत्र
जनता दर्द का खजाना है
आंसुओ का समंदर है
जो भी उसे लूट ले
वहीं मुकद्दर का सिकंदर है
क्योंकि भारत में प्रजातंत्र है
सरकार भी क्या करे
किस किस को पकड़े
धर्मात्मा दान,खा रहा है
बेईमान, ईमान खा रहा है
जिसे देखो,वहीं
कुछ न कुछ खा रहा है और
जिसे कुछ नहीं मिला
वो आपके कान,खा रहा है
क्योंकि भारत में प्रजातंत्र है
हमारे देश का, प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमे हर बीमारी स्वतंत्र है
बाजार में,जासूसी उपन्यास
रामायण से ज्यादा बिक रहा है
क्योंकि भारत में प्रजातंत्र है
गीता में भगवान,कृष्ण ने कहा है
कर्म करो और फल मुझ पर छोड़ दो
पर क्या बताये मजबूरी
हिंदुस्तान में पैदा हुये थे
कब्रिस्तान में जी रहे है
जब से मां का दूध छोड़ा है
आंसू पी रहे हैं
भगवान जाने
देश की जनता का,क्या होगा
आंसू को मोती और
वेदना को हीरा
समझने वाला,कोई नहीं मिल रहा है
जनता दर्द का,खजाना है
आंसुओ का समंदर है
जी भी उसे लूट ले
वहीं मुकद्दर का सिकंदर है
क्योंकि भारत में प्रजातंत्र है
नूतन लाल साहू


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित)  नयी दिल्ली

🌹कुण्डलियाँ फागुन के✍️
कण्ठहार   प्रिय पास , हर्षित   सजन इतराए।
प्रिया  धरे प्रिय  हाथ , प्रियतम मधुर मुस्काए।।१।।
गाता  फागुन   गीत , पी भांग नशा   मदमाते।
मिलन प्रिया मनप्रीत , मुदित सजन  शरमाते।।२।।
मलती  गाल  गुलाल , नैन  नशीली  नटखटें । 
रोमांचित  तन  सजन, मचल रहा ले  करवटें।।३।।
व्याकुल रति अभिसार,बनी अधीरा प्रियतमा।
खींच रही प्रिय हाथ ,बोल लोल वह मधुरिमा।।४।।  
मीन सम   सजल नयन, काली वेणी लहराए।
बिम्ब लाल स्मित अधर,पतली कमर लचकाए।।५।।
रंजित मानस निकुंज , रंगों   से  फागुन  सजे।
लगा प्रीत      सतरंग , प्रेमयुगल  लेते     मजे।।६।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित) 
नयी दिल्ली


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"हे भारत महान!"* (गीत)
****************************
*हे भारत महान! हे भूमि की शान! तुमको है लाखों प्रणाम।
तुमको है लाखों प्रणाम।।
माटी है चंदन, करते हैं वंदन, पावन तुम्हारा है नाम।
तुमको है लाखों प्रणाम।।


*ममता की मूरत, समता की सूरत, बहे सरिता पवित्रता की।
शांति का संदेश, है साधु सम वेश, मिसाल है मित्रता की।।
भाव भरे मन में, जोश जगे तन में, अल्लाह का हुस्न, रूप-राम।
तुमको है लाखों प्रणाम।।


*लगे प्यारा वतन, है सुहाना चमन, यह पुष्पों से भरी क्यारी।
झरने हैं झरते, वन मन को हरते, है शोभा यहाँ की न्यारी।।
निधियों का स्थान, हरा हिंदुस्तान, स्वर्ग तुम्हारा है धाम।
तुमको है लाखों प्रणाम।।


*अटल चट्टान बन, काल का काल बन, हम तोड़ेंगे सबका भरम।
चमकायें भाग्य, भगायें दुर्भाग्य, हम खाते तुम्हारी कसम।।
करेंगे कुर्बान, जान पर हम जान, होने न देंगे स्याह-शाम।
तुमको है लाखों प्रणाम।।
****************************
मरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


बलराम सिंह यादव धर्म एवं अध्यात्म शिक्षक

कविता की आध्यात्मिक व्याख्या


सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान।।
सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  चतुर पुरुष उसी कविता का आदर करते हैं जो सरल हो और जिसमें निर्मल चरित्र का वर्णन हो तथा जिसे सुनकर शत्रु भी स्वाभाविक बैर को भूलकर सराहना करने लगें।ऐसी कविता निर्मल बुद्धि के बिना सम्भव नहीं और मेरी बुद्धि का बल बहुत कम है।इसीलिए मैं आपसे बार बार निहोरा करता हूँ कि हे कवियों!आप कृपा करें,जिससे मैं प्रभुश्री हरि का वर्णन कर सकूँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सरल कविता वह है जिसे सरलता से समझा जा सके क्योंकि कठिन और प्रभुश्री रामजी की कीर्ति से रहित कविता का सन्तजन सम्मान नहीं करते।यथा,,
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ।
रामनाम बिनु सोह न सोऊ।।
रामनाम जस अंकित जाही।
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही।।
सहज बैर उसे कहते हैं जो अकारण ही होता है जैसे चूहे-बिल्ली का, सर्प-नेवले का,गौ-सिंह का आदि।जो बैर किसी कारण से होता है उसे कृत्रिम बैर कहते हैं जो उस कारण के समाप्त होने से छूट जाता है।गो0जी के मतानुसार प्रभुश्री हरि के सुयश से युक्त सरल काव्य सहज बैर को भी समाप्त कर देता है।अतः वे अन्य सभी कवियों से कृपा करने की बात करते हैं क्योंकि वे अपनी काव्यशक्ति को प्रभुश्री हरि के सुयश कथन करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम नहीं मानते हैं।गो0जी की इसी महान भावना ने श्रीरामचरितमानस को सम्पूर्ण विश्व में प्रशंसनीय बना दिया।निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना करने वाले, अवतारवाद के कट्टर विरोधी, वैष्णव सम्प्रदाय के घोर विरोधी तथा अन्य धर्मों के मतावलंबियों को भी किसी न किसी रूप में श्रीरामचरितमानस की प्रशंसा करते हुए देखा जा सकता है।यही सहज या स्वाभाविक बैर का त्याग करना है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


सुनीता असीम आगरा

चोट लगती है मुहब्बत में किसी दिल को जो।
आशिकी के ऐसे अंजाम पे रोना आया।
***
रोज बढ़ती ही रही सिर्फ ये महंगाई है।
चीजों के बढ़ते रहे दाम पे रोना आया।
***
रोशनी सबको नहीं जो दे सके दुनिया में।
उस सितारों से भरे बाम पे रोना आया।
***
आपने कर्म किए थे ऐसे दुनिया में आ।
आपके नाम ए बदनाम पे रोना आया।
***
बस बुराई की सभी की ही जमाने में तुमने।
हर तुम्हारे जो किए काम पे रोना आया।
***
सुनीता असीम
2/3/2020


संजय जैन (मुम्बई)

*भूल जाते है....*
विधा : कविता


किस बात पर गम करे,
और किस बात पर हँसे।
इंसान की सोच है तो,
कुछ तो वो करेगा ही।
वैसे ज्यादातर लोग तो,
जख्मो पर नमक लगाएंगे ।
और उसके एहसानों को, 
अच्छे दिनों में भूल जाएंगे।।


इंसान की फिदरत होती है

जो बुरे वक्त में,
साथ देने वाले होते है।
उन्हें अक्सर भूल जाते है।
और अपने फायदे के लिए,
दुश्मनों को गले लगाते है।
और अपनों का दिल,
वो जरूर दुखाते है।।


इस तरह से कितने लूट गये, 
अपनो के हाथों से।
और कितने अभी, 
लूटने को बाकी है।
जो उनका नहीं हुआ,
जिन्होंने उसे बचाया था।
उसकी डूबती हुई नैया को,
किनारे लगवाया था।
अब कलयुग का जमाना है,
इंसान ही इंसान को खाता है।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
02/03/2020


प्रवीण शर्मा ताल*

*विषय -तन्द्रा*


*मालवी रचना*


मु तो हवेरा -हवेरा तन्द्रा खोली,
 देखन तावड़ो की भर भर आई झोली।


तन्द्रा खोली न मुंडो कण्णी को देख्यो
हामे जो पेला वण्णी को मुंडो देख्यो।


तावड़ो देखिन आँगन में कुकड़ो बोल्यो
गली- गली में हगरा की तंद्रा खोल्यो।


आँगन में धमक सी कई  हुन्यो कि
 कोई आयो अखबार जोर ती नाक्यो।


एक -एक पन्ना पर तन्द्रा फेरीन,
अखबार उठाईन  खबरा वाच्यो।


फटाफट वाचता -वाचता खबरा,
मारी लुगाईन ने  गर्म चा लादी,


थोड़ी देर में कई देख्यो कि कोई
हाटा फूटा वारो आवाज लगा दी।


मारी तन्द्रा देखिन वण्णी की ओर
ध्यान में मगन- मगन ती सुहादी.।



*😁✒प्रवीण शर्मा ताल*


 


 


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

..............कविता(रचना)...............


कविता नहीं है सिर्फ शब्दों का खेल।
अच्छी रचना है भावनाओं का मेल।।


सही   रचना   वही   कर   सकते  हैं;
जो आगे बढ़ते परेशानियों को झेल।।


रचनाओं में पैदा,  दर्द तब  हो पाता ;
जब अनुभव हो परिस्थिति के जेल।।


जो  रचनाएं  पाठकों  को भा  जाए ;
उन्हें लोकप्रिय बना  देते हैं  वे ठेल।।


कुछ रचनाएं होते हैं स्वांतः सुखाय ;
कुछ भक्ति,देशभक्ति देते हैं उड़ेल।।


कल की रचना आज के लिए दर्पण;
आज की रचना कल के लिए बेल।।


रचना में जो गहरे डूबा है "आनंद" ;
अब अच्छा नहीं लगता कोई खेल।।


-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।*

*कम न हो महक रिश्तों की।*
*मुक्तक।*


रिश्ते चंदन से बने चाहे
टुकड़े    रहे      हज़ार।


महक कम न हो इनकी
ये  भरी   रहे घर द्वार।।


दिल से दिल का लगाव
हो  मन  से   मन    का।


हो दुःख सुख  कैसा भी
दुआयों का रहे अम्बार।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो 9897071046
    8218685464


।एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली।

*होली के रंग(हाइकु)*


होली के रंग
राग  द्वेष  मिटे  ये
गुजिया संग


रंग गुलाल 
सब कुछ धो डाले
मन मलाल


होली दहन
नफरत जला दे
साफ जहन


रंग बरसे
आसमान रंगीन
मन हरषे


रंग चिपटे
लाल नीले पीले ये
गले लिपटे


घृणा दीवार
भरभरा   गिरे ये
गिले हज़ार


सब रंग लो
तन मन दोंनों ही
प्रेम भर लो


होली का पर्व
हर आदमी खेले
भारत  गर्व


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो 9897071046
     8218685464


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