शारदा शतक से
"अक्षर का श्रृंगार"
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वीणा वादिनि आज तुम्हारा,
करने बैठा हूं अभिनंदन।
अक्षर अक्षर नव प्रसून और,
भव्य वन्दना अक्षत चंदन।।
अ से अब आ से आओ मां,
इ से इक्षा पूरी कर दो।
ई से ईश रूप जगदम्बे,
उ से उर में भक्ती भर दो।।
ऊ से ऊंचा उठूं गगन सम,
चाह रहा है यह मेरा मन।
अक्षर अक्षर नव प्रसून और,
भव्य भावना अक्षत चंदन।।
ए से एक तुम्हीं हो माता,
हैं ऐश्र्वर्य शक्तियां तेरी।
ओ से ओज की औढर किरपा,
बुद्धि विमल कर देगी मेरी।।
अं से अंगीकार करो मां,
अ: समर्पित है यह जीवन।
अक्षर अक्षर नव प्रसून और,
भव्य भावना अक्षत चंदन।।
क से कुछ ख से खोजूं मां,
ग से गाऊं गीत तुम्हारे।
घ से घिसक घिसक कर माता
आऊंगा(ड़) मैं पास तुम्हारे।।
यह कवर्ग का पुष्प हार लो,
मैं करता तेरा अभिनंदन।
अक्षर अक्षर.......
च से चरण छ से छू लुंगा,
ज से जिस क्षण दर्शन पाऊं।
झ से झंकृत होगा तन मन,
अयं (ञ) ह्री क्लीं मंत्र सुनाऊं।।
यह चवर्ग का पुष्प गुच्छ लो,
रखता हूं मैं तेरे चरणों।
अक्षर अक्षर........
ट से कहीं टूट न जाऊं,
ठ से ठिठका हुआ खड़ा हूं।
ड से डमरू ढ से ढोल बन,
शरण तुम्हारी इन पड़ा हूं।।
ण से कण कण इस शरीर का,
करूं समर्पित अपना तन मन।
अक्षर अक्षर.......
त से तन थ से थकता है,
द से दान दया का दीजै।
ध से धैर्य धरा सम पाऊं,
न से नवल शक्ति भर दीजै।।
तेरे दिये कार्य करने है,
कहता है मैया मेरा मन।
अक्षर अक्षर........
प से पाप किए जो मैने,
फ से फल जो भी बन पावे।
ब से बड़ी कृपा हो मैया,
भ से भुक्तमान हो जावे।।
म से मैया करो कृपा अब,
विचलित होता है मेरा मन।
अक्षर अक्षर.......
य से यम से डर लगता है,
र से रक्षा मेरी कीजै।
ल से लक्ष प्राप्त कर पाऊं,
मन को व से वीरता दीजै।
पार करूं भव सागर मैया,
सत्य अहिंसा मय हो जीवन।
अक्षर अक्षर...........
श से शक्ति कुछ ऐसी दीजै,
ष से षट् विकार ते पाऊं।
स से हो संतोष प्राप्त जब,
ह से हे मां दर्शन पाऊं।।
श्रृद्धा और विश्वास फलित हों,
कण कण में तेरा अवलम्बन।
अक्षर अक्षर..........
क्ष से क्षणिक न सुख चाहूं मैं,
मैं चाहूं सामीप्य तुम्हारा।
त्र से त्राहि त्राहि जग जननी,
ज्ञ से चाहूं ज्ञान तुम्हारा।।
हरो तमस अब दो "प्रकाश",
हे मैया चाह रहा मेरा मन।
अक्षर अक्षर.......
स्वरचित। डॉ अखण्ड प्रकाश
कानपुर