🙏🌹सुप्रभात🌹🙏
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
नये नये संकल्प लें
नये स्वप्न हम रोज बुन चलें
नये लक्ष्य हो नयी भित्तियां
ध्येय पंथ पर बढ़ चले
मन को अपने स्वच्छ करें,
सभी स्वच्छ हो जाय
कलुष अगर मन में रहे तो
पूरा जीवन ही तमस हो जाय।
+++++++++++++++
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्यख्याता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIYA PANDIT
राम चरित मानस कठोर नही अपितु अत्यंत कोमल है व्याख्या
बन्दउँ मुनि पद कंज रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि मैं उन श्रीबाल्मीकिजी के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है और जो खर(राक्षस)सहित होने पर भी खर(कठोर)से विपरीत बड़ी कोमल और सुन्दर है तथा जो दूषण(राक्षस)सहित होने पर भी दूषण अर्थात दोषों से रहित है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
श्री करुणासिन्धु जी के अनुसार श्री गो0जी इस दोहे में श्री बाल्मीकिजी की स्वरूपाभिनिवेश वन्दना करते हैं जिससे मुनिवाक्य श्रीमद्रामायणस्वरूप हृदय में प्रवेश करे।नमस्कार करते समय जब स्वरूप,प्रताप,ऐश्वर्य व सेवा मन में समा जाते हैं तो उस नमस्कार को स्वरूपाभिनिवेश वन्दना कहते हैं।
इस दोहे में गो0जी ने श्लेष व विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है।यथा,,
सखर शब्द का एक अर्थ कठोरता व कर्कशता युक्त होता है और दूसरा अर्थ खर नामक राक्षस के सहित है।इसी प्रकार दूषण का एक अर्थ दोष सहित व दूसरा अर्थ दूषण राक्षस से है।अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।पुनः गो0जी का भाव यह है कि इस रामायण में कठोरता व कर्कशता नहीं है।कठोरता के नाम से केवल खर नामक राक्षस ही मिलेगा।दूसरे यह रामायण दोष रहित है क्योंकि दोष के नाम से इसमें दूषण नामक राक्षस ही मिलेगा।पुनः यह रामायण सखर होते हुए भी सुकोमल है और दोषरहित होते हुए भी दूषण सहित है।अतः इस वर्णन में विरोधाभास अलंकार है।
श्रीअयोध्याधामजी के महान सन्त व रामायणी,मानस तत्वान्वेषी,वेदान्तभूषण,साहित्यरत्न पं0 श्री रामकुमारजी के मतानुसार श्रीबाल्मीकिजी की रामायण काव्य के समस्त दोषों से सर्वथा रहित है क्योंकि इसमें असत्य नहीं है किन्तु इसमें अप्रिय सत्य तो अवश्य है जो दोष तो नहीं है किन्तु दूषण तो अवश्य ही कहा जा सकता है।मनुस्मृति में कहा गया है,,,
सत्यं ब्रूयात् प्रियम ब्रूयात् न ब्रूयात्सत्यमप्रियम।
श्रीरामचरितमानस में भी गो0जी ने कहा है--
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी।
श्रीबाल्मीकिजी ने अपनी रामायण में कई स्थलों पर अप्रिय अथवा कटु सत्य कहा है।जैसे श्रीलक्ष्मणजी का वनवास के समय पिता के लिए कठोर वचन कहना,माँ सीताजी द्वारा मारीच वध के समय श्री लक्ष्मणजी को मर्म अथवा कटु वचन कहना, प्रभुश्री रामजी द्वारा माँ सीताजी को अग्निपरीक्षा के समय दुर्वाद कहना आदि।
गो0जी ने इन अप्रिय सत्यों को स्पष्ट न कहकर अपने काव्य को दूषण रहित कर दिया।जैसे,,
लखन कहेउ कछु बचन कठोरा।
मरम बचन जब सीता बोला।
तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद।
उपरोक्त स्थलों पर गो0जी ने सत्य का निर्वाह तो कर दिया परन्तु अपनी कविता में अप्रियतारूपी दूषण न आने दिया।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश
गीत
मन पंछी बन उड़ जाऊ
मन मेरे पंछी बन उड़ पाऊँ,
जहाँ नगरिया श्याम सुन्दर की,
दौड़ी दौड़ी आऊँ
मन मेरे -----------
काम क्रोध का छोड़ के जामा
श्याम गगन तक उड़ान भरूँ मै,
दरस श्याम सुन्दर के पाऊँ
मन मेरे-----------
या मन की देखो गति अनन्य है।
मिल जाये जो श्याम संग मे
निर्मल गति मै पाऊँ ।
मन मेरे------------
सारा जग सखी भटक रहा है ।
माया मोह मे उलझ रहा है।
मिल जाये जो बाँके बिहारी
धन्य धन्य हो जाऊँ ।
मन मेरे-------------
सारे जग के नाते रिश्ते।
जैसे है काटों के हार।
कृष्ण कन्हैया के रिश्ते से जीवन सहज बनाऊं ।
मन मेरे-------------
मै अनाथ तुम नाथ जगत के।
इस भटके मन को मै कान्हा
बार बार समझाऊँ ।
मन मेरे--------------।
स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली
पद्मश्री रेणु : मेरी स्मृति के स्वर्णिम पन्ने
मेरी स्मृति के स्वर्णिम पन्ने,
मचा था उथल पुथल चहुँओर,
सितम्बर माह की पच्चीस तारीख,
यादगार था सन् पचहत्तर
उबल रहा था आक्रोश लोकतंत्र का,
तानासाही निरंकूश सत्ता की खिलाफ़त,
बज चुका था बिगुल महाक्रान्ति का,
हो रहा था दक्षिणपंथी समाजवादी मधुरिम मिलन,
तज रहे थे अपने साथ विद्रोही बने ,
न्याय गेह के कटघरे में फँसी सत्ता,
लाठियों की बरसात के खुल गयी थी तकदीर,
क्या नेता, कवि, लेखक,अभिनेता ,
बच्चे, युवा ,वृद्ध नर, नारी सब चले साथ,
मानो फिर से गुलामी की जंजीरों को
तोड़ने की नौबत आ पड़ी थी।
महानायक बन पुरोधा लोकनायक,
कोटि कोटि जन के साथ जयप्रकाश ,
मैं पूर्णिया जिले के रानीगंज के
लालजी हाई स्कूल का छात्र था,
सरकार विरोधी जुलूस में
स्कूली बच्चों को चलना था,
मेरे हिन्दी शिक्षक कविवर अमोघनारायण झा ,
आ खड़े हुए कक्षा में अचानक ,
साथ में घुंघराले बालों से सुशोभित,
कुरता पैजामा पहने समाजवादी नेता,कवि लेखक
भारत की निरंकूश सत्ता के विरोधी,
अजेय संकल्पित संघर्षक साधक यायावर,
भारत माँ के मैला आँचल को
करने को आतुर निर्मल पावन नित उर्वर,
तीसरी कसम ली परिवर्तन का
तानासाही क्रूर फ़रमानी हुकूमत की ख़िलाफ़त का,
अमोघ बाबू ने कहा हमसे
मेरे मित्र फणीश्वर नाथ रेणु जी आये हैं,
आप सबसे मिलने, मैला आंचल के प्रणेता,
मैंने तीसरी कसम कहानी पढ़ी थी उनकी,
बहुत अच्छी ग्रामीण परिवेश की
व्यथा कथा से गुम्फित मनभावन लेखन,
खुशी का ठिकाना न रहा ,
सामने देख अप्रतिम ग्रामीण क्रान्तिकारी
लेखक चिन्तक या कहूँ निडर सबल नेता,
सबसे मिले ,बातें की, ,चलना था जुलूस में
कर्पूरी ठाकुर जी आनेवाले थे विद्यालय में,
दुःखी भी थे, क्लान्त थे
देश की हिटलरी व्यवस्था से,
रेलमंत्री ललित बाबू मारे गये थे,
समस्तीपुर की सभा में सन् पचहत्तर ,
साथ रहे उस दिन हम सब छात्र
तीन घण्टे से अधिक रेणू जी के,
सौभाग्य था कर्पूरी ठाकुर,
रामसुन्दर दास जैसे सरीखे नेता
आगवानी कर रहे थे जुलूस की ,
गीदड़ गफूर मूर्दावाद ,
कांग्रेस के ये तीन दलाल,
इन्दिरा संजय बंशीलाल ,
के नारों से गुंज रहे थे आसमान,
सिगरेट के धूओं के आगोस में,
सिमटा हुआ रेणु जी का मुखमण्डल,
मानो काली घटा छा गई हो चारों तरफ़,।
बहुत पीते थे सिगरेट अहर्निश
मानों मनप्रीत हो जिंदगी का।
अमोघ बाबू की मित्रता के कारण
अक्सर आते थे हमारे विद्यालय में रेणू जी,
बन गये थे स्कूली जीवन में
प्रेरणास्रोत लेखन के अमिट ,
मेधावी था ,जिज्ञासु था मैं,
सुपात्र बना था उनके स्नेहाशीष का,
मुखर साहसी निर्भय वक्ता फनकार थे रेणु,
सामाजवादी साधक अदम्य प्रखर
सामन्तवादी सोच आलोचक थे रेणु ,
सौम्य सदय मृदुभाषी
आंचलिक बोलियों ,अन्तर्वेदनाओं,
दलितों पीडितों के पैरोकार थे रेणु ,
आंचलिक उपन्यास के प्रस्तोता होता थे रेणु,
सम्पूर्ण क्रान्ति के पूर्णिया प्रमंडल के
नेता, जेता , प्रणेता उद्गाता थे रेणु।
भाग्य था मेरा आशीष था उनका,
बना रेणु तन मण्डित पुलकित मन,
आज भी मेरी स्मृति के स्वर्णिम पन्ने ,
श्री पद्मासन फणीश्वर नाथ रेणु हिन्दीवर,
अविरल निश्छल संकल्पित सारस्वत,
रथी सारथी जीवन रथ संघर्षक यायावर,
है निकुंज नमन श्रद्धा सुमन अर्पण विनत।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
यशवंत"यश"सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग
यश के दोहे
विश्व युद्ध यश है लगे,कोरोना की घात।
जिसे लगे बचते नहीं, बता रही औकात।।
सारे आयुध तुच्छ है,कोरोना के पास।
थरथर काँपे देश यश,रखने अपनी साँस।।
सर्दी खाँसी से रहो,दो मीटर यश दूर।
नित-नित साबुन से करो,काया साफ जरूर।
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
कुमार कारनिक
मनहरण घनाक्षरी
*हाथी से परेशान*
"""""''""""'"""""""""""""
हाथियों से परेशान,
है फसल नुकसान,
होते सब हलाकान,
फसल बचाईये।
🌳🦍
जंगल से आते गांव,
चुपके से दबे पांव,
दशहत मे है जान,
जिंदगी बचाईये।
🦍🌴
नित पेड़ कट रहा,
वन नही बच रहा,
वो जाएं तो जाएं कहां,
जंगल बचाईये।
🌲🦍
अभ्यारण्य बनाना है,
पशुओं को बचाना है,
वनों से है जिनगानी,
स्वयं को जगाईये।
*कुमार🙏🏼कारनिक*
(छाल, रायगढ़, छग)
©®१८११/१८
●छग के वन ग्रामों में हाथियों
का दशहत आम हो चला है,
जिससे जान माल का नुकसान
हो रहा है। इस समस्याओं को
उकेरने की कोशिश किया है।
🌳🦍🌸
*******
निशा"अतुल्य"
लो चल पड़ी क़लम
4 /3 /2020
ताँका विधा
चीत्कार तेरी
देख दुनिया हुई
मौन क्यों कर
खो गई थी राह जो
वो उसने ढूढ़ ली
भीगे नयन
उलझे से जज़्बात
चीर हरण
रुन्दति है अस्मिता
नारी की कभी कहीं।
तो चल पड़ी
कलम लिखने को
मुखर मौन
जो है बहुत बड़ा
दिखता नगण्य क्यों।
लेखनी तुम
न होना मौन कभी
चला जाता है
जग रसातल में
जब तू होती मौन ।
शंखनाँद हो
एक यलगार हो
प्राण फूँक दे
निर्जीव जो प्राण हो
उठाये शस्त्र ख़ुद ।
कर चेतन
नारी को इस बार
दिखे संजीव
वो नारी बन दुर्गा
स्वयं को जो भूली हो।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
अपना मुझे बना लो राम
🌷🥀🌻🎋🎍🌹🍁
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तुम ही हो,
जन, जन के तुम प्राणाधार,
युगों युगों से अखिल विश्व के,
तुम ही हो संचालन राम।
श्री हनुमान जी परम कृतार्थ हो गये,
नाथ तुम्हारी सेवा कर,
सब पूजन अर्चन करने को,
रहते है तत्पर सुर नर मुनि जन।
होगा तभी सार्थक नर तन,
जब मुझको अपना बना लो राम,
करता हूं सर्वस्व समर्पित,
अपना मुझे बना लो राम।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान समारोह खण्डवा 2020 कार्ययोजना एवम सूची
*काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान 2020*
8 मार्च को खण्डवा म0प्र0 में होने वाले नारी रत्न सम्मान समारोह में निम्न महिलाओं का चयन किया गया आप सभी को बहुत बहुत बधाई।कार्यक्रम का संयोजन जय श्री तिवारी जी अपने समूह महिला शशक्तिकरण समूह वुमेन्स पावर क्लब के साथ कर रही है काव्य रंगोली परिवार संयोजन में सहयोग करने वाले सभी महानुभावो का हार्दिक आभारी है
कार्यक्रम में
*मुख्य अतिथि के रूप में माननीय विधायक देवेंद्र वर्मा जी खण्डवा, विशिष्ट अतिथि आदरणीया मीना भट्ट जी पूर्व जिला जज एवम लोकायुक्त जबलपुर मप्र रहेंगे*
*विशेष अतिथि-नगर निगम कमिश्नर हिमांशु सिंह,डॉक्टर गीताली सेन गुप्ता, संतोष बंसल, ममता बोरसे जी होंगे*
इस अवसर पर एक पुस्तक का भी प्रकाशन लोकार्पण विमोचन हो रहा है *(भारत की संघर्षरत एवम प्रगतिशील महिलाएं भाग 1 )* रहेंगी
कार्ययोजना
सभी को क्राउन, श्रीफल शाल,स्मृति चिन्ह,प्रमाणपत्र से सम्मानित किया जायेगा
जलपान भोजन की व्यवस्था है।
8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
सम्मानित होने वाली महिला प्रतिभागियों की सूची
1 श्रीमती सीता जोशी
2 हेमलता त्रिपाठी गुड़िया जर्नलिस्ट लखनऊ
3 डॉ0 आभा माथुर जी पूर्व प्रधानाचार्य डायट
4 " भारती पाराशर
5 "प्रमिला शर्मा
6" संतोष बंसल
7"अनीता सिंह चौहान
8 "जय श्री तिवारी
9"उषा तिवारी
10 "राजमाला आर्य
11 " मधुबाला शेलार
12"प्रियंका मालवी
13दीपमाला पांडे
14"वैशाली आनंद
15 स्वप्निल जैन
16 " प्रतिमा अरोरा
17. "लीना भारद्वाज
18 कल्पना गढ़वाल
19 "हर्षा जिंदल
20 "संगीता सोनवणे
21 " रजनी शर्मा
22"मनीषा पाटिल
23 कविता शरद
24 पिंकी राठौड़
25अनीता पाराशर
26"किरण शर्मा
27 "शहनाज अंसारी
28,अर्चना कटारे
29,श्रीमती कमला रावत
30,श्रीमती अनीता पिल्ले
31 डॉ दुर्गेश नन्दिनी हैदराबाद
32 डॉ0 माधवी गणवीर राजनांदगांव छग
*क्रमांक 33 से 51 तक काव्यरंगोली रिजर्व जो वर्ष भर में विशिष्ट महिलाओं को प्रदान किये जाते है।*
सहभागिता सम्मान विभिन्न संस्थाओं की प्रमुख को
आरती जैन भाभी
1)Udaan Jagriti Manch
2)PRANAM DHARA pariwar
3)Ashadeep bahu Mandle
4)Mahila mandal
5)Jai jinendra mahila mandal
6)Digamber jain social group
7)Jain social group
8)Prabuddh porwad manch
स्वप्निल जैन दीदी
1)त्रिशला मण्डल
2)मुमक्ष मंडल
3)जैन लाइफ
4)रामनगर महिला मंडल
गौर भाभी
1)Gour mahila mandal
कृष्णा भाभी
1)अग्रवाल महिला मंडल
2)अग्रवाल प्रगति महिला मंडल
3)अग्रवाल बहु मण्डल
4)सुंदरकांड परिवार
5) creative Queens club
6)वैश्य महासम्मेलन मप्र जिला महिला इकाई खण्डवा
डिंपल भाभी
1)शिव शक्ति महिला मंडल आदर्श नगर
2)महालक्ष्मी महिला मंडल लाल चौकी
3)दादा जी भजन मण्डल कैलाश जीन
ज्योति दुबे भाभी
1)शिवप्रिया मंडल एल आई जी कॉलोनी
भारती भाभी पाराशर
1)नार्मदीय महिला मंडल खंडवा
प्रतिमा अरोरा भाभी
1)सर्वशक्ति महिला मंडल खंडवा
दीपा तिवारी भाभी
1)मोती बाबा माली महिला मंडल
नीतू श्रीवास्तव भाभी
1)कायस्थ महिला मंडल
माया मेहता भाभी
1)खण्डेलवाल महिला मंडल
आरति चौहान 1)तेजस्विनी महिला मंडल
2)ताम्र कार कसेरा महिला मडल
3)गुरवा समाज महिला मडल
4)महाराष्ट्रियन महिला मडल
5)सृजल गायत्री महिला मडल
रेखा मंगल भाभी
1)मंगलम महिला मंडल
मंजू यादव दीदी
1)भूमिजा महिला मंडल
नीतू जैन
1)इनरव्हील क्लब
अनिता काले
1)दधिची महिला मंडल
रचना तिवारी
1)मिशन ग्रीन
दीपाली व्यास जी
1)नागर समाज महिला मंडल
संतोष जीजा राठौड़
1)करणी सेना
दीपा तिवारी भाभी
1)लेडीबर्ड
रंजना जोशी
1)आकाशवाणी टीम
अंजू नायक
1)बंजारा समाज
पिंकी राठौर
1)आदर्श एकता महिला मंडल
रीना जुनेजा
1)पंजाबी समाज से
सुभाष ज्वेलर, वर्मा ज्वेलर
1)सोनी समाज सराफा
बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक
कवि कोबिद व्याख्या राम चरित मानस
कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
बालबिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल।।
बन्दउँ मुनि पद कंज रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि हे कवि और विद्वतजन!आप जो रामचरित्ररूपी मानसरोवर के सुन्दर हँस हैं, मुझ अबोध बालक की विनती सुनकर और मेरी सुन्दर रुचि देखकर मुझ पर कृपा करें।मैं आदिकवि श्रीबाल्मीकि मुनि के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है और जो खर(राक्षस)सहित होने पर भी खर(कठोर)से विपरीत बड़ी कोमल और सुन्दर है तथा जो दूषण(राक्षस) सहित होने पर भी दूषण अर्थात दोषों से रहित है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---काव्य के सर्वाङ्गों को जानने वाले और निर्दोष व सर्वगुणों से विभूषित प्रभुश्री हरि का यशगान करने वाले तथा सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले ही वास्तव में कवि कहलाने के अधिकारी हैं।
काव्यांगों के साथ व्याकरण,भाषाओं के विद्वान, वेदशास्त्रों के भाष्यकार आदि को कोविद कहा जाता है।
श्रीरामचरितमानस को गो0जी ने मानसरोवर की संज्ञा दी है।जिस प्रकार मानसरोवर में क्षीरनीरविवेकी राजहंस रहते हैं और वे उसे छोड़ कर अन्यत्र कहीं नहीं जाते हैं उसी प्रकार इस रामचरितरूपी मानससर में सन्तजन डुबकी लगाते रहते हैं और वे किसी अन्य काव्य में विशेष रुचि नहीं रखते हैं।श्रद्धारहित और सत्संग रहित लोगों के लिए यह रामचरितमानस उसी प्रकार अगम व दुर्लभ है जिस प्रकार मानसरोवर झील में स्नान करना सामान्यजनों के लिए कठिन है।गो0जी कहते हैं--
जे श्रद्धा सम्बल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्ज बिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल झज्जर (हरियाणा )
जाना था मुझे....
दूर कहीं पहुंचना था मुझे
खुद को कहीं झोंकना था मुझे
सफ़र था बेइंतहा लम्बा
काँटों भरी पगडंडियाँ
एक -एक सदी सी सर्दियाँ
जंग लगे हालात
ना किसी का साथ
कहीं कुछ तो पीछे छूट गया है
मगर रात -दिन चलना था मुझे
कहीं पर ना रुकना था मुझे
जो दिल है एक सोच रखता है
मेरे भीतर कहीं चोट करता है.
सात आसमान छू लेने की अभिलाषा
आगे बढ़ते जाने की आशा
कुछ नहीं भूलना था मुझे
दूर कहीं पहुंचना था मुझे
उतार -चढ़ाव तो आएंगे "उड़ता ",
कामयाबी के समय में झोंकना था मुझे.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
झज्जर (हरियाणा )
📱9466865227
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल झज्जर, (हरियाणा )
मुक्त कविता....
यूं ही.... कभी-कभी
यूं ही कभी - कभी
उनसे मुलाक़ात याद आती है
उन्हें देखता हूँ जब भी
उनकी कही
हर बात याद आती है
जलती हुई आग को देखकर
कहीं कोई चिंगारी मुस्काती है
वह बीते लम्हों में,
अपने नाज़ -ए -नखरों से,
जाने बहके -बहके से
कदम लड़खड़ाती है
वह सौंदर्य सलोनी शामें
और लज़्जत भरे दिन
बड़े आराम से फरमाती है.
खो गए कहाँ
वो तिलिस्म ज़िन्दगी के "उड़ता "
नसों में सोयी जज़्बाती
याद आती है.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल झज्जर, (हरियाणा )
इश्तहार की तरह....
सुबह होते ही
मैं सजा लेता हूँ अपने आप को
अख़बार के इश्तहार की तरह
दुनियादारी में सबसे हँसके मिलता हूँ
जबकि कुछ लोग मुझे पसंद नहीं
बाज़ार के रंगों में रंग जाता हूँ
और खुद को कहीं खो देता हूँ
इश्तहार हूँ इसलिए
हर किसी की नज़र में हूँ.
चलो अच्छा है "उड़ता "
इस इश्तहार में सबके लिए कुछ छपा है.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
झज्जर, (हरियाणा )
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल झज्जर (हरियाणा )
बड़ा मोहल्ला...
सदियों से रह रहे
यहीं इसी मकान में
एक छोटा सा
बड़ी इमारतों के बीच
शहर का कोई पाश इलाका
या फिर एक बड़ा मोहल्ला
यहाँ पाए सभी सम्बन्ध
जो छूट रहे हैं
भौतिकता की दौड़ में
धीरे -धीरे बिखर रहे हैं
कभी अपने रूठ रहे हैं
कुछ सपने झूठ रहे हैं
भूलते जा रहे
जीवन के सभी अनुबंध
सिमटते जा रहे हैं हम.
हम -तुम वहीं रहे
इसी मकान में "उड़ता "
ये मोहल्ला शायद और बड़ा हो गया.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल झज्जर (हरियाणा )
कुछ सवाल एैसे ही....
क्यों हर बार कोई सवाल,
ज़हन में क्रोंध जाता है.
और मैं सोचने पर मज़बूर हो जाता हूँ.
क्यों हम उम्मीद लगाते हैं,
इस भरी पूरी दुनियादारी से.
लोग जबकि धत्ता बताकर,
निकल जाते हैं करीब से.
सपनों की कुंद ज़ुबान,
जिसे केवल हम समझ पाते हैं.
क्यों दूसरों के लिए
बेमानी हो जाती है,
क्यों नहीं देख पाता कोई,
हमारी आँखों के भित्तिचित्र.
कुछ सवाल आँखों में
ला देते हैं सूनापन.
और महसूस हो जाता है,
अपना छोटा कद.
जो की मुकम्मल नहीं
इस भागती ज़िन्दगी में.
सवालों का पिटारा लिए "उड़ता ",
इधर से उधर भागते लोग.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
झज्जर (हरियाणा )
सत्यप्रकाश पाण्डेय
मेरे जीवन में रंग भरने वाले
माधव तुमको नमन मेरा
मेरे मन की अंतर्ज्योति तुम
बार बार प्रभु वन्दन तेरा
कृष्णा बना कृपा पात्र मैं तेरा
धरा लोक को मैंने पाया
भूल न जाऊँ तुमको मैं स्वामी
तुमसे अस्तित्व में आया
हे सर्वेश्वर हे मुरली मनोहर
मोह बंधन मुझे न बांधें
तेरा ही बल पाकर जगदीश्वर
सत्य ने सब रिश्ते साधे।
जय श्रीराधे कृष्ण🌸🌸🌸🌸🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली
*चुनौतियाँ ही जीवन है।।।।।*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*
मुश्किलों से घबरा कर जीना
कोई जीना नहीं है।
हर वक़्त ग़मों का घूँट पीना
जीने का करीना नहीं है।।
जिसने छोड़ दी उम्मीद मानो
जीते जी ही मर गया।
बिना संघर्ष के पाता सफलता
का कोई नगीना नहीं है।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।
एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली।
*तेरी कहानी हमेशा जिंदा रहे।*
*मुक्तक*
हमेशा जोशो जनून खून
में रवानी जिंदा रहे।
हर मुश्किल में भी तेरी
जिंदगानी जिंदा रहे।।
कम न हो तेरी आँखों की
चमक दुखों के साये में।
करो कुछ यूँ कि मर कर
भी तेरी कहानी जिंदा रहे।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो 9897071046
8218685464
एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*
*बहुत छोटी सी तेरी जिंदगानी है।*
*मुक्तक*
बचपन, जवानी, बुढ़ापा
फिर खत्म कहानी है।
मुट्ठी की रेत की तरह बस
यूँ ही बीत जानी है।।
देख ले यूँ ही जाया न हो
धरती पर तेरा जीवन।
याद रहे कि बहुत छोटी सी
तेरी जिंदगानी है।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो 9897071046
8218685464
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*" कौन- आया"*
"कौन -आया जीवन में,
इतनी खुशियाँ लेकर-
पहचान न पाया उसको।
साथी साथी था अपना,
संग चलने से उसे-
रोक न पाया उसको।
सोचता रहा जीवन में,
मिल कर न बिछुडे-
खो न दूँ जीवन मे उसको।
कौन -आया जीवन में,
हरता रहा मन का चैन-
क्यों-पहचान न पाया उसको?
मन में छाई कटुता हर ले,
दे सुख ही जीवन में-
कौन -आया पहचान ले उसको?"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
राजेंद्र रायपुरी
पीयूष पर्व छंद पर एक रचना - -
हे विधाता हाय तूने क्या किया।
खून से आॅ॑चल धरा का भर दिया।
पूछती माॅ॑ भारती तुझसे यही।
किस जनम का आज है बदला लिया।
फिर न ऐसे दिन दिखाना हे प्रभो।
लाश ऐसे मत बिछाना हे प्रभो।
काॅ॑पती है रूह मंज़र देखकर,
जल गया सब का ठिकाना हे प्रभो।
दोष जिनका था नहीं मारे गए।
पूत मां के देख ले प्यारे गए।
द्वेष की आॅ॑धी चली ऐसी यहाॅ॑,
राम या रहमान हों सारे गए।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
नूतन लाल साहू
होली
भक्त प्रहलाद की बात को छोड़
नरसिंग अवतार की याद को छोड़
चाहे भिगो लो,सारे कपड़े
चाहे भिगो लो,किसी का अंग
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग है कम
कोई बजावे,झांझ मंजीरा
कोई बजावे, नगाड़ा
कवि खेले कविता के होली
भक्ति के रंग में रंग जाना है
रंग गुलाल पिचकारी से
होली खेलना तो, एक बहाना है
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग हे कम
अब ये त्योहार,पीने का बहाना है
दरुहा के ऊपर,दारू चढ़ा होता है
हर रंग में,भंग मिला होता है
सिधवा होली खेलने से डरता है
इसलिए खोली में ही रहता है
चाहे कोई रंग डाले,चाहे कोई भंग डाले
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग हे कम
मै तो कहता हूं कि कलिया बन जाओ
फूल बन तुम मुस्कुराओ
मधुर मधुर,मस्त मस्त
होली गीत,तुम सुनाओ
जैसे नाचे थे,श्याम संग भानु दुलारी
फगुआ की फाग,बन जाओ तुम
भक्त प्रहलाद की बात को छोड़
नरसिंग अवतार की याद को छोड़
चाहे भिगो लो सारे कपड़े
चाहे भिगो लो किसी का अंग
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग हे कम
नूतन लाल साहू
मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
दर्द उसे होगा अधिक,जिसके मन में प्यार।
दर्द जगे अनुभूति से, जब मिल जाए हार।
रिश्ते सारे झूठ से, करना यह महसूस,
सच्चा रिश्ता बस वही, जिसमें प्यार अपार।।
रिश्ते सजते नेह से, सहज ह्रदय आभास।
दर्द मीत का जान ले,वह ही होता खास।
करे प्रीत की रीत में, बातें सब स्वीकार,
प्रीत वही जो मीत का, दर्द करे अहसास।।
दूजे- अपने एक से, ऐसा हो जब भाव।
दर्द सभी महसूस यूँ, ज्यूँ निज का ही घाव।
देश बने समृद्ध वो, जिसका यह इतिहास,
मधु जीवन की कल्पना,सबसे रहे लगाव।।
*©मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*04.03.2020*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹
भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग
*"जो तू चाहे तो"* (ताटंक छंद गीत)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
विधान- १६+१४=३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
""""""""""""""""""""'""""'""""""'"''"'"""""""
●क्यों न भला मानव बन सकता, बनना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
क्यों न स्वर्ण कुंदन बन सकता, तपना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
●जग के नभ में पतंग डोले, ऊपर उड़ती ही जाए।
पल-पल यह जीवन मर्मों का, भेद खोलती ही जाए।।
क्यों न साधना सध सकती है, सधना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
●आचंभित क्यों होता है तू, अपनी हर करनी से ही।
प्रारब्ध बनाता मानव है, करनी की भरनी से ही।।
क्यों न कभी खुशियाँ ला सकता, लाना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
●अगस्त बन सिंधु सोख लेगा, अगर सोखना चाहेगा।
उमंग साहस युत कोई क्यों, भला रोकना चाहेगा??
क्यों न कभी किस्मत गढ़ सकता, गढ़ना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
●संकल्प-शिला पर पग अपना, दृढ़ हो जब रख लेगा तू।
साहस-संबल-समीकरण से, सपना निज पा लेगा तू।।
क्यों न कभी मंजिल पा सकता, पाना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
●'नहीं' नहीं है शब्द मनुज के, सुन शब्द-कोश में कोई।
स्तब्ध करे करनी मानव की, धुन साथ होश में कोई।।
क्यों न कभी 'नायक' बन सकता, बनना जो तू चाहे तो।
क्यों न कर्म भावन कर सकता, करना जो तू चाहे तो।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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जसवीर हलधर -9897346173
ग़ज़ल (हिंदी )
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दीप की लौ है अधूरी तम उसे भरमा रहा है ।
सूर्य के हस्ताक्षरों पर धुंध कुहरा छा रहा है ।
हर सुबह तेजाब डूबी रक्त रंजित शाम देखो ,
बागबां देखो चमन से अधखिले गुल खा रहा है।
मज़हबी आलेख अंकित है यहां सब चैनलों में ,
सुर्ख है अखबार सारे कौन लिखकर ला रहा है ।
देवता मूर्छित हुए अब मूक है सब प्रर्थनाएँ ,
शोकपत्रों पर विजय के गीत कोई गा रहा है ।
किस समय में जी रहे हम कौन है इसका रचियता ,
कौन अक्षत थाल, रोली ,पुष्प ,को ठुकरा रहा है ।
लोग अंधे हो रहे हैं मजहबी चश्मा पहनकर ,
मस्जिदों में कौन है जो कौम को भटका रहा है ।
अब यहां गांधी नहीं जो शांति का पैगाम लाये ,
कौन है जो देश को इस नाम से फुसला रहा है ।
नागरिक समता हमारे राष्ट्र का आधार है तो ,
कौन इसकी राह में रोड़े यहाँ अटका रहा है ।।
नागरिक कानून को जो तूल इतनी दे रहा है ,
घाव पर मरहम उसे "हलधर"नहीं क्यों भा रहा है ।
हलधर -9897346173
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