बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म व्यख्याता

गोस्वामी जी द्वारा वेदों की वन्दना ओर श्री राम चरित मानस द्वारा साकार निराकार पर व्यख्यान


बन्दउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जस।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ जो संसाररूपी समुद्र को पार करने के लिए जहाज के समान हैं और जिन्हें प्रभुश्री रामजी का निर्मल यश वर्णन करते समय स्वप्न में भी खेद अथवा थकावट महसूस नहीं होती है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  वेद चार हैं--
1--ऋग्वेद।
2--सामवेद।
3--यजुर्वेद।
4--अथर्ववेद।
  वेदों में जिस निराकार  परमपिता परमात्मा की वन्दना की गयी है, वे ही साकार रूप से अवतार लेते हैं।इन्हीं अवतारों में प्रभुश्री रामजी का एक प्रमुख अवतार है।यथा,,,
एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानन्द परधामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कर नाना।।
  पुनः सगुण और निर्गुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।ऐसा मुनि,पुराण,पण्डित और वेद कहते हैं।जो निर्गुण, निराकार,अव्यक्त और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण कर लेता है।जैसे जल,बर्फ और वाष्प में कोई भेद नहीं है क्योंकि ये उसके तीन रूप ही हैं।प्रभुश्री रामचन्द्रजी पूर्ण सच्चिदानन्द ब्रह्म का ही सगुण अवतार हैं।वे ही व्यापक ब्रह्म,परमानन्दस्वरूप,
परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं इस बात को सारा संसार जानता है।जिस निराकार ब्रह्म का वेद और पण्डित वर्णन करते हैं, वही दशरथ के पुत्र,भक्तों के हितकारी,अयोध्या के स्वामी भगवान श्रीरामचन्द्रजी हैं।भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को प्रभुश्री रामजी के विषय में विस्तृत रूप से यही बात बतायी थी।यथा,,
राम सच्चिदानन्द दिनेसा।
नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।।
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना।
परमानन्द परेस पुराना।।
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।।
सब कर परम प्रकासक जोई।
राम अनादि अवधपति सोई।।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू।
मायाधीस ग्यान गुन धामू।।
जासु कृपा अस भ्रम मिटि जाई।
गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।।
आदि अंत कोउ जासु न पावा।
मति अनुमान निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा।
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी।
महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


प्रदीप कुमार "दीप" सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)

वेबसाइट पर प्रकाशन हेतु।


वादों ने भूगोल को' बदला, जुमलों ने इतिहास।
आजादी के बाद देश में, ऐसे हुआ विकास।


नयनों के सागर में उमड़े, जब भी कड़वे प्रश्न।
राजनीति ने तभी दिखाये, आसमान से स्वप्न।।


टूटा रोज भरोसा जन का, छला गया विश्वास।


वीर सैनिकों ने झेला नित, दुश्मन का भूचाल।
और किसानों के हिस्से में, आयी बस हड़ताल।।


लिखा भूख ने निर्धनता के, माथे पर मधुमास।


रोती रही रक्त के आंसू, उम्मीदों की दूब।
खादी ओढ़े खाकी बोली, वाह वाह जी खूब।


संविधान के साथ सड़क पर, नित्य हुआ परिहास।।



प्रदीप कुमार "दीप"
सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)
मो०-8755552615


प्रदीप कुमार  सुजातपुर सम्भल(उ०प्र०)

युगों-युगों से ही रहे, भेड़ भेड़िये मीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


जब से बगुले ने सुने, मीठे मछली बैन।
तब से पागल प्रेम में, दिखता है बेचैन।
पा लेगा वह एक दिन,मन में ले विश्वास।
नदी किनारे साधना, करता है दिन रैन।।


करो प्रार्थना प्यार में, बगुला जाये जीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


मरने को तालाब में, कूदा मेंढक आज।
देख रहा था दूर से , सांपों का सरताज।
आनन फानन में पहुंच, मेंढक लिया निकाल।
पर उपकारी जीव पर, सकल सृष्टि को नाज।


जियें दूसरों के लिए, यही हमारी रीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


अंधेरों से त्रस्त हो, आज मुट्ठियाँ भींच।
घर से दिनकर देव को, लाये उल्लू खींच।
संरक्षण में बाज के, छूते गगन कपोत।
वानर भालू आजकल, रहे चमन को सींच।।


गर्माहट देने लगा, पूस मास का शीत।
कौवे के अखबार में छपा, गिद्ध का गीत।।


प्रदीप कुमार 
सुजातपुर सम्भल(उ०प्र०)


संदीप सरस, बिसवां

🔵कवि तुम ऐसी रचना लिखना...


कवि तुम ऐसी रचना लिखना जिसमें जीवन राग मुखर हो।


जीवन के पथरीले पथ को पौरुष का परिचय लिख देना।
बाधाएँ कितनी भी आएँ उनको बस संशय लिख देना।
जल ठहरा तो सड़ जाएगा बहते रहना ही जीवन है,
कलकल जीवनगान सुनाती नदिया का आशय लिख देना।


उठती गिरती और संभलती लहरों की भाषा तो बाँचो,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना,जीवन का संघर्ष प्रखर हो।


हँसते चेहरों के पीछे की छिपी वेदना भी पढ़ लेना।
और वेदना के अंकन का कोई फिर मानक गढ़ लेना।
कोई दीन-दुखी मिल जाए उसके कुम्हलाए अधरों पर, 
थोड़ी मुस्काने चिपकाकर धीरे से आगे बढ़ लेना।


सपने बाँझ हुए हैं जिनके, जीवन प्रश्न चिह्न जैसा है,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना, उनके प्रश्नों का उत्तर हो।


जब इतना हो जाए कवि तो, अंतर को आंदोलित करना। 
जीकर जीवन गान लिखा क्या, खुद को भी संबोधित करना। 
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा यह तो सदियों से सुनते थे,
निज शोधन की मर्यादा भी जीवन में संशोधित करना।


जितनी हो अनुभूति गहन उतनी अभिव्यक्ति प्रखर होती है,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना जो जीवन का जीवित स्वर हो।


संदीप सरस, बिसवां


प्रिया सिंह लखनऊ

कर गया वो किनारा समंदर हवाले कर के
छीन गया वो रोटी मुँह पर निवाले कर के


इस जख्मी दिल के सवालात खत्म हों कैसे
बेनज़ीर बैठे रहे ता उम्र मुँह पर ताले कर के


खुश्क पत्ते भी अब तो शजर को छोड़ देंगे 
हम पायेंगे भी क्या उनके मुँह काले कर के


सफर अंगारों से भरा बेशक होता तेरे साथ
अकेले कब तक चलेंगे ये पाँव छाले कर के


हम तो खुद ही मर चुके हैं अब तमन्ना क्या 
पाओगे कुछ भी नहीं पीठ पर भाले कर के


इश्क किया द़ाग भी लगे सम्भाला ना गया
अब दिखाओ करतब तुम भी आले कर के


बना कर बुत उसकी परस्तिश करता रहा
उम्र बीत गई यादों में उनके नाले कर के


खा गया दीमक मुझे वीरान बंजर बनाकर
मैं भी सोता रहा भर आखों में जाले कर के


खामियाज़ा ये के मशरूफ हूँ तनहाईयों में 
अब तो आजाओ सफर में उजाले कर के



Priya singh


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक श्रृंगारिक घनाक्षरी 


पिछले बरस तूने, जो होली  में भिगोई थी,
मेरी  वो  चुनर देखो, अभी भी ग़ुलाबी हैं।
घर  आँगन  महके, साथ  जब  भी होते हैं,
फूल  कली  बहारे  भी, लगती  शबाबी हैं।
बंद  अधरों  से  आप, सब  कुछ  कह देते,
हिय  प्रिय  लगते  हो,  नयना  शराबी   हैं।
आपके बिना दिल को, चैन नही मिलता हैं,
प्यार वफ़ा वाली बातें, हो गयी किताबी हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


 डा.नीलम अजमेर

*ढलती शाम*


सुरमई पंख पसारे
आई साँझ 
मुंडेर पर
आँगन में उतरे
हरियाली के
श्यामल साए 
मीठे सुर-सरगम से
कानों में रस
घुलने लगे
थे परींदे लौट रहे
अनुशासन की
पांत में
थी व्याकुलता 
मिलने की छौनों से
उनकी बेकल पाँख में
खुल गये कपाट
मंदिर ओ' मस्जिदों के
एक सुर में गूँज गए
गीता और कुरान
लौट के हाली
घर को आए
पीछे-पीछे 
धूल उड़ाते चौपाये
भी आए
चिमनियों का सिमट धुँआ
कहीं किसी गली के
चूल्हे से उठने लगा
नटखट बच्चों का रेला भी
धूम मचाने लगा
आई साँझ ढल गई
रात ने डेरा डाला।


       डा.नीलम


सत्यप्रकाश पाण्डेय

पहन मुखौटा चेहरे पर खुद को छिपा रहे है
अंर्तमन से टूट चुके है फिर भी मुस्कुरा रहे है


भावनाएं आहत जलकर विचार हो गये राख
जीवन बोध भूल कर ईर्ष्या पाल खो रहे साख


विस्मृत हुए जिंदगी से न भावी जीवन लक्ष्य
खुद्दारी को दे तिलांजलि भोजन भक्ष्याभक्ष्य


सुख चेन अतीत सा हुआ शांति हुई बेगानी
एक दर्द पीछा न छोड़े दूजी खड़ी परेशानी


अंदर कुढ़न भरी जिंदगी करें दिखावा बाहर
मूर्छित हुई आत्मा फिर भी बन रहे है शायर


सच्चाई न अच्छाई ईमानदार बने जा रहे है
पहन मुखौटा चेहरे पर खुद को छिपा रहे है।



सत्यप्रकाश पाण्डेय


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

............होली (बसन्त) गीत...........


होली  का  त्यौहार , रंगों  के  बौछार ।
सबको मस्ती देने, आया सबके द्वार।।
बसन्त  की  बहार , मन   में   फुहार  ।
लाये सबके दिल में , बहार ही बहार।।


मन   भर  मिठाई  ,  पुए   का  आहार।
एक  दूजे  से मिलन,ले देकर उपहार।।
आम  का  अमोट , चटनी और अचार।
कोयल  के  तान ,  प्रकृति का श्रृंगार।।


प्रह्लाद की भक्ति , होलिका का संहार।
हिरण्यकश्यप   का  , टूटा  अहंकार ।।
तब से हुआ , इस  त्यौहार का विस्तार।
झुंडों में होली  गाने का,हुआ भरमार।।


सबसे हो दोस्ती,दुश्मनी का तिरस्कार।
यही  मूलमंत्र  ले , बड़ा  सा आकार ।।
भौरों  का गुंजार,"आनंद"का  इजहार।
दुनिया में हो,अपने देश का जयकार।।


-------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


 


रचना सक्सेना  प्रयागराज 

आज की नारी है सबला।


कोमल मन चितवन चंचल है, 
भरी ममता से हर अबला।
पलकों से वह नीर छिपाती, 
आज की नारी है सबला।


हर गुल महके गुलशन उसका, 
हरी भरी हरियाली हो। 
तूफानों को सह करके भी, 
प्रेम सुधा की प्याली हो।
आग में तपती वह कंचन है, 
मत कहना उसको अबला। 


आज की नारी है सबला।


ख्वाब बेलती रोटी में जो
माँ पत्नी तुम प्यारी हो
हाथों में रक्षा का बंधन
बहना जग से न्यारी हो
अदभुद अभिनय तेरा मंचन है
किरदार निभाती हर अबला 


आज की नारी है सबला।


रचना सक्सेना 
प्रयागराज 
5/3/2020 


स्नेहलता "स्नेह" सीतापुर,सरगुजा छ.ग.

दिनाँक-5/03/2020


22 22 22 22 22 2


ग़ज़ल
******
शिक्षा को हथियार बनाना हे नारी
आँसू को अंगार बनाना हे नारी


चूड़ी कंगन तो इस तन की शोभा है
 सपनों को श्रृंगार बनाना हे नारी


साधी चुप्पी तूने लाखों जुल्म सहे
लफ़्जों को तलवार बनाना हे नारी


सारे रिश्ते काँटों के जब ताज बने
जीवन खुद गुलज़ार बनाना हे नारी


तुझमें शक्ति देवी दुर्गा काली सी
कमज़ोरी क्या यार बनाना हे नारी


अपनी रक्षा करने के तुम गुर  सीखो
मत खुद को लाचार बनाना हे नारी


तेरी तुलना गंगा यमुना से होती 
सारा जग परिवार बनाना हे नारी


स्नेहलता "स्नेह"
सीतापुर,सरगुजा छ.ग.


निशा"अतुल्य"

पी सँग खेलूँ होली
5 /3/ 2020


देखो सखी फाग है आया
मन का आँगन खिल गया मेरा
अंग अंग मुस्काया 
अब के होली पी सँग खेलूँ
मन ने ये फरमाया।
सर सर सर सर चले पवन जब
लगे शुभ सन्देशा आया
होल से वो चूमे मुख को 
सुनहरा ख़्वाब सजाया।
हर रंग मुझ को फीका लगे
जब घर साजन ना आया।
देख देख थके नैन मेरे 
मन मेरा अकुलाया
पीपल छाँव भी बैरन लागे
अंग अंग दहकाया।
बैठ राह में बाट निहारूँ
हाय पिया न आया
सौतन बन गई नौकरी उनकी
दूर सजन पहुँचाया।
आ पीछे से छू लिया उसने 
तन मन मेरा महकाया ।
पी के सँग खेलूंगी होली
लौट सजन घर आया 
सखी री लौट सजन घर आया।
अनमोल रत्न मन पाया मैंने
सखी प्रेम रतन धन पाया ।



स्वरचित
निशा"अतुल्य"


कुमार कारनिक (छाल, रायगढ़, छग)

*******
🌞सुबह🙏🏼सबेरे🌞
     """"""""""""""""""
  *भारत के लोग*
   मनहरण घनाक्षरी
    "''''''""""""""""""""'"
भारत   के  हम  लोग,
करें  नित  ध्यान योग,
आपस  में  मेल-जोल,
       यही मजबूती है।
🤝🏻🌸
अनेक है बोली भाषा,
कभी न  रहे  निराशा,
विविध है  जाति धर्म,
    हमारी संस्कृति है।
🌼🤝🏻
बड़ों  का   अभिनंदन,
मात-पिता  का  वंदन,
आदर    करते    सब,
   यही तो जागृति है।
🤝🏻🏵
भाव   भरते   मन  में,
जोश  जगाते  तन  में,
हिम्मत से होते  काम,
      हमारी प्रगति है।



*कुमार🙏🏼कारनिक*
 (छाल, रायगढ़, छग)
                 *******


नूतन लाल साहू

हकीकत
स्कूल में पढ़ेव,कालेज में पढ़ेव
देश में पढ़ेव,विदेश में पढ़े व
डिग्री के भरमार है
पढ़े लिखे ले का हो ही
मै दु पईसा में बेकार हव
तभो ले भावी भारत के होनहार हो
आराम करना,हराम हे
पाठशाला चारो धाम हे
सब दिन न होत, एक समान हे
जीवन भी है,दिन चार का
क्या बनूं और क्या न बनूं
ये बहुत बड़ा सवाल है
डिग्री के भरमार है
पढ़े लिखे ले का हो ही
मै दु पईसा में बेकार हव
तभॊ ले भावी भारत के होनहार हव
मां बाप के पईसा, जात हे
गुरुजी के होवत हे बदनामी
बेरोजगार मन के दिनोदिन
संख्या बढ़त हे, भारी 
नौकरी चाकरी, मिलत नई हे
क्या बनूं और क्या न बनू
ये बहुत बड़ा सवाल है
तभो ले भावी भारत के होनहार हव
स्कूल में पढ़ेव,कालेज में पढेव
डिग्री के भरमार हे
पढ़े लिखे ले का हो ही
मै दु पईसा में बेकार हव
नान चुन रोटी बर कइसन करत हे
कुकुर बिलई कस, कइसन लड़त हे
नान नान घर द्वार
लइका मन के हे भरमार
ये सो के साल में
पनिहा दुकाल हे
क्या बनूं और क्या न बनू
पापी पेट के सवाल हे
स्कूल पढ़ेव,कालेज पढ़ेव
देश में पढ़ेव,विदेश में पढ़ेव
डिग्री के भरमार हे
पढ़े लिखे ले का हो ही
मै दु पईसा,में बेकार हव
तभो ले भावी भारत के होनहार हव
नूतन लाल साहू


 


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सूर्यास्त जनम का"*
    (कुकुभ छंद गीत)
***************************
विधान- १६ +१४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
****************************
*रोज उदय रवि का प्राची में, अस्त प्रतीची होता है।
सूर्यास्त जनम का भी होता, मर्म समझ क्यों सोता है??


*जीवन तो एक गीत जानो, मरण राग को गाना है।
अनन्त यात्रा अस्ताचल की, कर्म भला कर जाना है।।
'मैं' तजकर 'हम' अपनाये जो, भावन भाव सँजोता है।।
सूर्यास्त जनम का भी होता, मर्म समझ क्यों रोता है??


*शैशव-बचपन-युवा-बुढ़ापा, सोपान चार चढ़ना है।
उदयाचल से अस्ताचल को, धीरे-धीरे बढ़ना है।।
जर्जर काया के होते तक, प्रति पल चलना होता है।
सूर्यास्त जनम का भी होता, मर्म समझ क्यों रोता है??


*शरीर जाए मरे न आत्मा, नव चोला है धर लेती। 
अनन्त गहरे सागर में ले, लहर निहत्था कर देती।।
साथ समय के चलकर मानव, कुछ पाता कुछ खोता है।
सूर्यास्त जनम का भी होता, मर्म समझ क्यों सोता है??


*मरने में ही पुनर्जनम है, जीवन में फिर मरना है।
चहक चमन की और चमक को, हर पल उन्नत करना है।।
उदय-अस्त के दर्शन में जन, काटे वह जो बोता है।
सूर्यास्त जनम का भी होता, मर्म समझ क्यों रोता है??
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


श्याम कुँवर भारती (राजभर )  कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी

भोजपुरी होली -खेलब नहीं होली ये ननदी 
जबले चुकईहे नाही बदला देशवा 
हमरे सइया ये ननदी |
तबले  खेलब नाही होरी ,
येही ठइया ये ननदी |  
हमके गुमान सइया देशवा के जवान  |
जबले खेलिहे नाहीं खुनवा के होरी,
 तोहरो भइया ये ननदी |
तबले  खेलब नाही होरी|
बनाइके बन्दुकिया के रंग पिचकारी |
मारी दुशमनवा निकाली चितकारी |
आतंकियन के उखड़िहे जबले ,
सगरो बहिया ये ननदी |
तबले  खेलब नाही होरी |
बाड़े गबरू जवान ननदो मोर सइया |
देशवा के खातिर देले जान मोर सइया |
लागी गइल देशवा ,
हमरो नेहिया ये ननदी |
तबले  खेलब नाही होरी उनसे ,
येही ठइया ये ननदी |  
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
 कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286


संजय जैन (मुम्बई)

*लोग बदल रहे है*
विधा : कविता


मौसम क्या बदल रहा है,
इंसान भी बदल रहा है।
सच मानो तो देश भी,
अब बदल रहा है।
अब तो रिश्ते भी,
बिक रहे देश में।
खरीदने वाला चाहिये,
चाहे हो देशी या विदेशी।।


अमन चैन से रहने वाले,
अब भाईचारा भूल रहे है।
अपने ही समाज को, 
खुद ही खंडित कर रहे है।
और अनपढ़ होने का,
प्रमाण स्वंय दे रहे है।
और अपने आपको शिक्षित,
और बुध्दिमान समझ रहे है।।


शिक्षा का स्तर बहुत बड़ा है,
पर लोगो की सोच घटी है।
पहले सबकी बात करते थे,
अब मैं तक ही रह गये।
मानो भारत की सभ्यता, 
हम ही मिटा रहे है।
जिससे खून के रिश्ते भी, 
अब बिगड़ रहे है।
और अपास में लड़ रहे है।
जिससे स्नेह प्यार की, 
संस्कृति को भूल गये है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
05/03/2020


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐
शुभ प्रभात:-


ग़लतफ़हमी यदि मन  में घर कर जाय।
तो इसे दूर करने का जरूर करें उपाय।
रिश्ते को एकदम  टूटने न  दिया जाय।
तोड़ने में क्षण,जोड़ने में उम्र लग जाय।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।बरेली

*बस चार दिन ही रहना है।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


जीतलो  सब के दिलों  को
यही जीवन का कहना  है।


इक यही आपकी अनमोल
पूँजी   और     गहना   है।।


एक  ही मिला   जीवन जो
फिर   मिलेगा   ना  दुबारा।


इस  धरती  पर  गिन   कर 
बस  चार दिन     रहना है।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब।।  9897071046  ।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।

*कुछ बनो तो बेमिसाल बनो।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।*    


महक से  बस कर दिलों  में
तुम सबके कोई ख्वाब बनो।


बस बेहतरीन बेमिसाल  तुम
आदमी  कोई  नयाब    बनो।।


हर  किसी का  साथ सहयोग
ही   हो   बस   काम तुम्हारा।


हर   सवाल  का  जवाब  तुम
आदमी  कोई  लाजवाब बनो।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।। ।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली

*चाहो तो छू सकते हो आसमान।।*
*।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।*


हौंसला    सितारों  को  भी 
करीब ले  आता   है।


हिम्मत   से  आदमी   चाँद 
पर पहुँच   जाता   है।।


साहस से  निर्जीव में प्राण
आ   जाते  हैं   दुबारा।


जो करता काम मनआत्मा 
से मंज़िल वही पाता है।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

चित्र चिंतन:-
     *"पूनम की चाँदनी"*
"पूनम की चाँदनी में साथी,
नहाया धरती -अंबर -
महका रहा उपवन सारा।
ब्रज भूमि के कण कण में,
बसे कृष्ण-
फिर भी राह देखे राधा।
राधा रानी कृष्ण दीवानी,
अँजुली भर फूलों से-
कर रही प्रेम तपस्या।
पूनम का चाँद भी इतरा रहा,
ब्रज भूमि पर चाँद-
अमृत बरसा रहा।
राधा रानी के हर साँस में
बसे कृष्ण ,
हवा का हर झोखा- अहसास करा रहा।
पूनम की चाँदनी में साथी,
नहाया धरती -अंबर-
महका रहा उपवन सारा।।"
       सुनील कुमार गुप्ता


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "

.....................नखरेवाली साली...........................


बिल्कुल     है    नखरेवाली   ,   मेरी    अपनी    साली ।
फिर भी  लगती  है अच्छी , उनकी  हर  अदा  निराली।।
उनकी  शोख अदाएं  बरबस , मोह   लेती  है  मन  मेरा।
उनकी  खिलखिलाहट  पर , झूम  उठता  उपवन  मेरा।।


जब वह  मुस्कुराती , दौड़  जाती  है कपोलों पर  लाली।
चमचमाती है बिंदिया ,हिलने लगती है कानों की बाली।।
वह  खुश  हो  ऐसे  बलखाती , ज्यों  फूलों  की  डाली  ।
गुलाब  की  पंखुड़ियों  सी आ जाती  है होठों पे लाली।।


मेरी साली  सौंदर्य  की  प्रतिमा और  है स्नेह की प्रतीक।
पारिवारिक खुशीऔर गम में,होती सहृदयता से शरीक।।
शौक  उसे  चित्रकारी  की , उतारती  है दिल  में  तस्वीर।
न   जाने   सँवारेगी  वह , किस   दीवाने  की   तक़दीर।।


लेकिन  शायद  उनपर  सवार  है , आशिक़ी  का  शुरुर।
करती  है  हमेशा , अपने   दिवाने  पर   बेइंतहा   गुरुर।।
फिर  भी  कभी-कभी  वह , नजर आती  काफी  उदास।
रहती  है  बिल्कुल  तन्हा , बैठती  नहीं  किसी के पास।।


उनकी   नहीं    बर्दास्त  मुझे  ,  न  ही  उनकी  खामोशी।
मिले  उम्र कैद  की  सज़ा उसे , जो  हो  इसका  दोषी ।।
भगवान  शीघ्र  अचल  सुहाग दे,चमके सिंदूर की लाली।
रँगे  उनके  हर  दिन होली , जगमगाए हर रात दिवाली।।


---------------------------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "


राजेंद्र रायपुरी।

एक ग़ज़ल,
            आपकी नज़र - -


अब तिरंगे का है सिर ऊॅ॑चा हुआ।    🇮🇳       🇮🇳       🇮🇳       🇮🇳


मारते  ताने  सभी  तो  क्या  हुआ। 
वो तो दिखता यार बस हॅ॑सता हुआ।


हर  तरह  की  झेलता  बदनामियाॅ॑, 
पर न दिखता ग़म में वो डूबा हुआ।


और चिंता कुछ  नहीं उसको सुनो, 
सोचता  है  हिंद क्यों पिछड़ा हुआ।


चाह उसकी  बस सुरक्षित  देश हो,
ध्येय वो अपने  दिखे  बढ़ता हुआ।


बैर उसको  तो  किसी  से  है  नहीं,
क्यों कहें तलवार बन लटका हुआ।


देश   को  उसने  दिलाया  मान  है,
अब तिरंगे का है  सिर ऊॅ॑चा हुआ।


चुभ रहा काॅ॑॑टा क्यूॅ॑ बन हर आॅ॑ख में,
देश  ख़ातिर  जो  कि है  पैदा हुआ।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अपने करुणा रस से सिंचित कर दो मेरे श्याम
करो अकिंचन की झोली खुशियों से अभिराम


अवर्चनीय अदभुत जोड़ी से रिश्ता रहे हमारा
श्याम गौर वर्ण से कभी टूटे नहीं सम्बन्ध प्यारा


गौ रक्षक जग प्रतिपालक राधा हिय के स्पंदन
मेरे मन मन्दिर से भगवन सदा जुड़ा रहे बंधन


हे सत्य जीवन के मोद सदा अनुग्रह रखना
कुंजबिहारी मुझको एक पल दूर न करना।


श्रीकृष्णाय नमो नमः💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


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