संजय जैन (मुम्बई)

*मन करता है*
विधा: कविता


दिल के झरोको से,
प्यार झलकता है।
आपकी वाणी में,
अपनापन दिखता है।
तभी तो आपसे निगाहें,
मिलाने को मन करता है।
और तुम्हें दिल से, 
अपनाने का मन करता है।।


कौन कहता है कि तुम,
दिल नहीं लगा सकते।
और किसी को अपना, 
बन नही सकते।
क्योंकि दोस्तो ये, 
दिलका मामला है।
जिसे पत्थर दिल, 
निभा नहीं सकते।।


फूलों की तरह सुंदर हो,
दिल से भी सुंदर हो।
इसलिए कहता हूं की,
तुम खिलता हुआ गुलाब हो।
तभी तो दिल करता है, 
कि तुम्हें देखता ही रहूं।
और अपने दिल को,
थोड़ा शीतल कर सकूं।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
06/03/2020


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।।बरेली

*बचाने को रिश्ते जरूर ही बात*
*कीजिये।।।।।मुक्तक।।।।।।*


चाहे तो आप शिकायत के
के साथ ही बात  कीजिये।


रिश्तों में  बहुत जरूरी कि
आप कुछ  दर्द    पीजिये।।


आँखों से ओझल, दिल से
दूर ,समझो टूट गई डोर है।


उतर  जायें दिलों  में आप
बस ऐसे जज्बात दीजिये।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब   9897071046।।।
8218685464।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस।।।।।* *बरेली

*दुआयें साक्षात भगवान होती हैं।।।।*


*।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


दुआयें   साथ  तो  मुश्किलें  भी  
आसान     होती   हैं।


हवायों के बेरुख में  पाते मंजिलें 
जो अंजान   होती   हैं।।


बस दुआयें  लीजिए और दीजिए
एक  दूसरे  के लिए ।



ताकतें दुआयों की मानो  साक्षात
भगवान   होती   हैं।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस।।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।8218685464।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"तेरी दुनियाँ से"*
"तेरी दुनियाँ से अब,
साथी मेरा-
कोई नहीं वास्ता।
तुम मेरा अब तो साथी, 
रोको नहीं-
जीवन में रास्ता।
मेरी अपनी दुनियाँ,
खुश हूँ मैं साथी-
कस्मों से नहीं वास्ता।
भूल चुका हूँ मैं तो,
साथी बीते पल-
रोको न रास्ता।
सत्य पथ चल कर ही,
मिली हैं मंज़िल-
अब भटकाओं न रास्ता।
तेरी दुनियाँ से अब,
साथी मेरा-
कोई नहीं वास्ता।।"
ःःःः    सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्रेम विवश बंधन में बंध गये
देखो जगत बंधन काटन हार
कैसा सौभाग्य यशोदा मैया
करें अठखेली जग पालनहार


बालक्रीड़ा कर स्वयं खेल रहे
वो खिला रहे जग के नर नार
मायापति की माया को जाने
जाकी सृजना ये सकल संसार


हे जगदीश्वर मैं बालक हूं तेरों
तेरे मायाजाल से सदा दूर रहूँ
जैसे दीपक पर आशक्त पतंगा
चरणों में झुकने पै मजबूर रहूँ।


श्रीकृष्णाय नमो नमः 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹💐💐🌸


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌 मन मोरे वो राम समायो 😌


मन   मोरे   श्रीराम   समायो।
  मूरत उनकी अति मन भायो।
    जाहि  देखि  जन सब हर्षायो,
      मन   मोरे   वो  राम  समायो।


जटा - जूट जिनके सिर सोहे।
  कमल नयन सबके मन मोहे।
    कौशल्या  ने  जिनको  जायो।
      मन   मोरे  वो  राम   समायो।


संतन  के   जो   हैं   रखवारे।
  संत  जिन्हें   लगते  हैं  प्यारे।
    हैं अनंत  तुलसी  जिन  गायो,
      मन  मोरे  वो   राम   समायो।


जिनके  प्रिय  सारे  वनवासी।
  किया गमन वन बिना उदासी।
    शबरी  के  जिन  जूठन खायो,
      मन   मोरे   वो  राम   समायो।


दूष्टन   को    जिनने    संहारा।
  रावण  को  भी  जिनने  मारा।
    सखा धरम जिन खूब निभायो,
      मन   मोरे   वो  राम   समायो।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

...............तेरी दुनियां से................


अब कोई वास्ता नहीं, तेरी  दुनियां से।
निकलता रास्ता नहीं, तेरी दुनियां से।।


हम थे  तुम्हारे  प्यार के  मुरीद  पहले ;
अब कोई दास्तां नहीं, तेरी दुनियां से।।


किया इंतजार बहुत,कोई बंदगी मिले ;
पर कोई खांसता नहीं,तेरी दुनियां से।।


तेरी बेरुखी से हम तो परेशान हो गए ;
अब कोईआस्था नहीं,तेरी दुनियां से।।


कोई समझे  हमारी  दिली मजबूरियां;
कोई भी लालसा नहीं,तेरी दुनियां से।।


हम पाहमाल हो गए तेरी खिदमत में ;
उम्मीद दिखता नहीं , तेरी दुनियां से।।


अब तो आखरी पड़ाव पहुंचा"आनंद"
घटता फासला नहीं , तेरी दुनियां से।।


----- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कृषक महान है"*
(मनहरण घनाक्षरी)
****************************
विधान- ८ ८ ८ ७ वर्णों पर यति के साथ प्रतिपद ३१ वर्ण, पदांत lS, चार चरण तुकांतता।
****************************
*जीता जो माटी के लिए, मरता माटी के लिए, माटी संग मिल जाए, माटी में ही जान है।


माटी में ही लिखे गीत, लेखनी 'हल' है मीत, धूप-वर्षा-ठंड-शीत, झेलता समान है।।


श्रम-धन-जन हरे, वृष्टि पर सृष्टि करे, जाता लग दाँव पर, मानसून मान है।


भोर में है जाग जाता, कृषि की प्रभाती गाता, फसल की हँसी संग, हँसता किसान है।।



*पीछे न हटने वाला, आगे-आगे जाने वाला, प्रगति पथ का राही, बल की जो खान है।


सृष्टि को सँवारे है जो, हरीतिमा लाये है जो, दानी उस जैसा नहीं, देता अन्नदान है।।


बडा़ बाहुबल वाला, भाग्य को लिखने वाला, स्वेद से जो करे स्नान, भू का भगवान है।


करे जो निज निर्भर, देश को है अर्थ पर, भारत का अन्नवीर, देश का किसान है।।



*हाय! प्रकृति-पुजारी, दुख-दर्द सहे भारी, नित-नित नव-नव, सहे अपमान है।


'याचक' से याचता है, मुँह कभी ताकता है, खेत न देखा जो कभी, मान भगवान है।।


अल्पवृष्टि का कहर, अतिवृष्टि का जहर, पीकर है अन्नदाता, देता कभी जान है।


दाम समुचित मिले, श्रम को सम्मान मिले, कर्णधार देश का है, "कृषक" महान है।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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जसवीर हलधर देहरादून

गीतिका -होली में
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 कोरोना के भय में भटकी रीत सुहानी होली में।
दिल्ली के  दंगों ने  सटकी प्रीत रूहानी होली में।


केसर घाटी सुलग रही थी पिछले सत्तर सालों से ,
हटी तीन सौ सत्तर धारा नयी कहानी  होली में ।


मांथे का सिंदूर मिट गया जाने कितनी बहनों का ,
मजहब का उन्माद ले उडा नीति पुरानी होली में ।


देश प्रेम का फ़ाग नही है कुर्सी का है राग यहां ,
 नेताओं ने अपनी अपनी चादर तानी होली में ।


ये हलचल ये कोलाहल क्यों सी ए ए पर मची हुई ,
इसको अपनाने में  है क्यों आनाकानी  होली में ।


दुश्मन की धरती पर जाकर हमने बीन बजाई थी ,
नाग सैंकड़ों  बिल में मारे पाकिस्तानी होली में ।


बोतल में तेजाब भरा है रंगों में बारूद घुला ,
पुलिस पिट रही चौराहों क्या नादानी होली में ।


रंग गुलाल लगा कर भाई मुखड़ा दर्पण में देखो ,
सबका चेहरा दिखे तिरंगा हिंदुस्तानी  होली में ।।


राम लला पे हुआ फैसला" हलधर "सबने अपनाया ,
हमने दुनिया को सौंपी है नयी निशानी होली में ।


हलधर --9897346173


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
परमानन्द


भ्रम को त्यागो जानकर, भ्रम  देता  अज्ञान।
कर्म क्षेत्र में आ करो, सत्य ज्ञान का मान।
यह जानो भ्रम से सदा, बिगड़ेगा हर काज,
सत्य परम आनन्द है, मानव लो यह जान।


मन आए आनन्द तब, सफल सुखद हो काज।
घर बाहर सारे करें,सफल मनुज पर नाज।
सत्य राह पर चल बने, स्वयं सहज पहचान,
परमानन्द मिले तभी, करे ह्रदय पर राज।।


मूल रूप से सत्य से,सार्थक बने भूगोल।
मिथ्या सारा भ्रम बने, जीवन पथ बेमोल।
भ्रम त्यागो सत पथ चलो, मंजिल होगी पास,
 मिले परम आनन्द मधु,सत्य सदा ही बोल।।
*©मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*🌹🌹सुप्रभातम्*🌹🌹
*06.03.2020*


नूतन लाल साहू

शादी
शादी एक समझौता है
पत्नी इकलौती,पति इकलौता है
समझौता यानी,एग्रीमेंट
शादी की बिंदी लगने के बाद
हो जाता है,रिश्ता परमानेंट
सिंदुर और मंगल सूत्र के नियम
हमारे पूर्वज,पुरुषों ने बनाया है
रिश्तों को याद दिलाते रहने में
जीवन भर ये खास होता है
सास होती है, स, आस
उम्मीदे,रखती है बहुत खास
सोच है,संग की सास
जंजाल जैसे और
दुर रहे तो, मां जैसे होती है
पर सोच को बदलो
वो भगवान का रूप होती है
शादी एक समझौता है
पत्नी इकलौती,पति इकलौता है
समझौता यानी,एग्रीमेंट
शादी की बिंदी,लगने के बाद
हो जाता है,रिश्ता परमानेंट
सूर्य ग्रहण,चन्द्र ग्रहण
होता है,कुयोग से
पर पानी ग्रहण,होता है संयोग से
सूर्य ग्रहण,चन्द्र ग्रहण
संपन्न होता है, एक फेरे में
पाणिग्रहण होता है, सात फेरे में
सूर्य ग्रहण,चन्द्र ग्रहण हो जाता है
थोड़ी देर में,ख़तम
पाणिग्रहण,चल सकता है
सात जनम
शादी एक पवित्र बंधन है
जिसमे आत्मा का आत्मा से
होता है,पवित्र मिलन
शादी एक समझौता है
पत्नी इकलौती,पति इकलौता है
समझौता यानी एग्रीमेंट
शादी की बिंदी,लगने के बाद
हो जाता है,रिश्ता परमानेंट
नूतन लाल साहू


 


 


कवि✍️डॉ. निकुंज

💐🙏सुप्रभातम्🙏💐
ममतांचल नित स्वर्ग सम, नेहामृत आगार। 
अम्बर से ऊँचा पिता,  जीवन का आधार।।
है त्रिदेव से श्रेष्ठतर , हरे   तिमिर  संसार।
मातु पिता बन मीत गुरु , महिमा अपरम्पार।।
साधु समागम कठिनतर, दर्शन पुण्य प्रदेय। 
नमन करूँ माता पिता, चित्त साधु गुरु  ध्येय।। 
कवि✍️डॉ. निकुंज


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म व्यख्याता

गोस्वामी जी द्वारा वेदों की वन्दना ओर श्री राम चरित मानस द्वारा साकार निराकार पर व्यख्यान


बन्दउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जस।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ जो संसाररूपी समुद्र को पार करने के लिए जहाज के समान हैं और जिन्हें प्रभुश्री रामजी का निर्मल यश वर्णन करते समय स्वप्न में भी खेद अथवा थकावट महसूस नहीं होती है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  वेद चार हैं--
1--ऋग्वेद।
2--सामवेद।
3--यजुर्वेद।
4--अथर्ववेद।
  वेदों में जिस निराकार  परमपिता परमात्मा की वन्दना की गयी है, वे ही साकार रूप से अवतार लेते हैं।इन्हीं अवतारों में प्रभुश्री रामजी का एक प्रमुख अवतार है।यथा,,,
एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानन्द परधामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कर नाना।।
  पुनः सगुण और निर्गुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।ऐसा मुनि,पुराण,पण्डित और वेद कहते हैं।जो निर्गुण, निराकार,अव्यक्त और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण कर लेता है।जैसे जल,बर्फ और वाष्प में कोई भेद नहीं है क्योंकि ये उसके तीन रूप ही हैं।प्रभुश्री रामचन्द्रजी पूर्ण सच्चिदानन्द ब्रह्म का ही सगुण अवतार हैं।वे ही व्यापक ब्रह्म,परमानन्दस्वरूप,
परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं इस बात को सारा संसार जानता है।जिस निराकार ब्रह्म का वेद और पण्डित वर्णन करते हैं, वही दशरथ के पुत्र,भक्तों के हितकारी,अयोध्या के स्वामी भगवान श्रीरामचन्द्रजी हैं।भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को प्रभुश्री रामजी के विषय में विस्तृत रूप से यही बात बतायी थी।यथा,,
राम सच्चिदानन्द दिनेसा।
नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।।
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना।
परमानन्द परेस पुराना।।
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।।
सब कर परम प्रकासक जोई।
राम अनादि अवधपति सोई।।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू।
मायाधीस ग्यान गुन धामू।।
जासु कृपा अस भ्रम मिटि जाई।
गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।।
आदि अंत कोउ जासु न पावा।
मति अनुमान निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा।
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी।
महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


प्रदीप कुमार "दीप" सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)

वेबसाइट पर प्रकाशन हेतु।


वादों ने भूगोल को' बदला, जुमलों ने इतिहास।
आजादी के बाद देश में, ऐसे हुआ विकास।


नयनों के सागर में उमड़े, जब भी कड़वे प्रश्न।
राजनीति ने तभी दिखाये, आसमान से स्वप्न।।


टूटा रोज भरोसा जन का, छला गया विश्वास।


वीर सैनिकों ने झेला नित, दुश्मन का भूचाल।
और किसानों के हिस्से में, आयी बस हड़ताल।।


लिखा भूख ने निर्धनता के, माथे पर मधुमास।


रोती रही रक्त के आंसू, उम्मीदों की दूब।
खादी ओढ़े खाकी बोली, वाह वाह जी खूब।


संविधान के साथ सड़क पर, नित्य हुआ परिहास।।



प्रदीप कुमार "दीप"
सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)
मो०-8755552615


प्रदीप कुमार  सुजातपुर सम्भल(उ०प्र०)

युगों-युगों से ही रहे, भेड़ भेड़िये मीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


जब से बगुले ने सुने, मीठे मछली बैन।
तब से पागल प्रेम में, दिखता है बेचैन।
पा लेगा वह एक दिन,मन में ले विश्वास।
नदी किनारे साधना, करता है दिन रैन।।


करो प्रार्थना प्यार में, बगुला जाये जीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


मरने को तालाब में, कूदा मेंढक आज।
देख रहा था दूर से , सांपों का सरताज।
आनन फानन में पहुंच, मेंढक लिया निकाल।
पर उपकारी जीव पर, सकल सृष्टि को नाज।


जियें दूसरों के लिए, यही हमारी रीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


अंधेरों से त्रस्त हो, आज मुट्ठियाँ भींच।
घर से दिनकर देव को, लाये उल्लू खींच।
संरक्षण में बाज के, छूते गगन कपोत।
वानर भालू आजकल, रहे चमन को सींच।।


गर्माहट देने लगा, पूस मास का शीत।
कौवे के अखबार में छपा, गिद्ध का गीत।।


प्रदीप कुमार 
सुजातपुर सम्भल(उ०प्र०)


संदीप सरस, बिसवां

🔵कवि तुम ऐसी रचना लिखना...


कवि तुम ऐसी रचना लिखना जिसमें जीवन राग मुखर हो।


जीवन के पथरीले पथ को पौरुष का परिचय लिख देना।
बाधाएँ कितनी भी आएँ उनको बस संशय लिख देना।
जल ठहरा तो सड़ जाएगा बहते रहना ही जीवन है,
कलकल जीवनगान सुनाती नदिया का आशय लिख देना।


उठती गिरती और संभलती लहरों की भाषा तो बाँचो,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना,जीवन का संघर्ष प्रखर हो।


हँसते चेहरों के पीछे की छिपी वेदना भी पढ़ लेना।
और वेदना के अंकन का कोई फिर मानक गढ़ लेना।
कोई दीन-दुखी मिल जाए उसके कुम्हलाए अधरों पर, 
थोड़ी मुस्काने चिपकाकर धीरे से आगे बढ़ लेना।


सपने बाँझ हुए हैं जिनके, जीवन प्रश्न चिह्न जैसा है,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना, उनके प्रश्नों का उत्तर हो।


जब इतना हो जाए कवि तो, अंतर को आंदोलित करना। 
जीकर जीवन गान लिखा क्या, खुद को भी संबोधित करना। 
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा यह तो सदियों से सुनते थे,
निज शोधन की मर्यादा भी जीवन में संशोधित करना।


जितनी हो अनुभूति गहन उतनी अभिव्यक्ति प्रखर होती है,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना जो जीवन का जीवित स्वर हो।


संदीप सरस, बिसवां


प्रिया सिंह लखनऊ

कर गया वो किनारा समंदर हवाले कर के
छीन गया वो रोटी मुँह पर निवाले कर के


इस जख्मी दिल के सवालात खत्म हों कैसे
बेनज़ीर बैठे रहे ता उम्र मुँह पर ताले कर के


खुश्क पत्ते भी अब तो शजर को छोड़ देंगे 
हम पायेंगे भी क्या उनके मुँह काले कर के


सफर अंगारों से भरा बेशक होता तेरे साथ
अकेले कब तक चलेंगे ये पाँव छाले कर के


हम तो खुद ही मर चुके हैं अब तमन्ना क्या 
पाओगे कुछ भी नहीं पीठ पर भाले कर के


इश्क किया द़ाग भी लगे सम्भाला ना गया
अब दिखाओ करतब तुम भी आले कर के


बना कर बुत उसकी परस्तिश करता रहा
उम्र बीत गई यादों में उनके नाले कर के


खा गया दीमक मुझे वीरान बंजर बनाकर
मैं भी सोता रहा भर आखों में जाले कर के


खामियाज़ा ये के मशरूफ हूँ तनहाईयों में 
अब तो आजाओ सफर में उजाले कर के



Priya singh


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक श्रृंगारिक घनाक्षरी 


पिछले बरस तूने, जो होली  में भिगोई थी,
मेरी  वो  चुनर देखो, अभी भी ग़ुलाबी हैं।
घर  आँगन  महके, साथ  जब  भी होते हैं,
फूल  कली  बहारे  भी, लगती  शबाबी हैं।
बंद  अधरों  से  आप, सब  कुछ  कह देते,
हिय  प्रिय  लगते  हो,  नयना  शराबी   हैं।
आपके बिना दिल को, चैन नही मिलता हैं,
प्यार वफ़ा वाली बातें, हो गयी किताबी हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


 डा.नीलम अजमेर

*ढलती शाम*


सुरमई पंख पसारे
आई साँझ 
मुंडेर पर
आँगन में उतरे
हरियाली के
श्यामल साए 
मीठे सुर-सरगम से
कानों में रस
घुलने लगे
थे परींदे लौट रहे
अनुशासन की
पांत में
थी व्याकुलता 
मिलने की छौनों से
उनकी बेकल पाँख में
खुल गये कपाट
मंदिर ओ' मस्जिदों के
एक सुर में गूँज गए
गीता और कुरान
लौट के हाली
घर को आए
पीछे-पीछे 
धूल उड़ाते चौपाये
भी आए
चिमनियों का सिमट धुँआ
कहीं किसी गली के
चूल्हे से उठने लगा
नटखट बच्चों का रेला भी
धूम मचाने लगा
आई साँझ ढल गई
रात ने डेरा डाला।


       डा.नीलम


सत्यप्रकाश पाण्डेय

पहन मुखौटा चेहरे पर खुद को छिपा रहे है
अंर्तमन से टूट चुके है फिर भी मुस्कुरा रहे है


भावनाएं आहत जलकर विचार हो गये राख
जीवन बोध भूल कर ईर्ष्या पाल खो रहे साख


विस्मृत हुए जिंदगी से न भावी जीवन लक्ष्य
खुद्दारी को दे तिलांजलि भोजन भक्ष्याभक्ष्य


सुख चेन अतीत सा हुआ शांति हुई बेगानी
एक दर्द पीछा न छोड़े दूजी खड़ी परेशानी


अंदर कुढ़न भरी जिंदगी करें दिखावा बाहर
मूर्छित हुई आत्मा फिर भी बन रहे है शायर


सच्चाई न अच्छाई ईमानदार बने जा रहे है
पहन मुखौटा चेहरे पर खुद को छिपा रहे है।



सत्यप्रकाश पाण्डेय


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

............होली (बसन्त) गीत...........


होली  का  त्यौहार , रंगों  के  बौछार ।
सबको मस्ती देने, आया सबके द्वार।।
बसन्त  की  बहार , मन   में   फुहार  ।
लाये सबके दिल में , बहार ही बहार।।


मन   भर  मिठाई  ,  पुए   का  आहार।
एक  दूजे  से मिलन,ले देकर उपहार।।
आम  का  अमोट , चटनी और अचार।
कोयल  के  तान ,  प्रकृति का श्रृंगार।।


प्रह्लाद की भक्ति , होलिका का संहार।
हिरण्यकश्यप   का  , टूटा  अहंकार ।।
तब से हुआ , इस  त्यौहार का विस्तार।
झुंडों में होली  गाने का,हुआ भरमार।।


सबसे हो दोस्ती,दुश्मनी का तिरस्कार।
यही  मूलमंत्र  ले , बड़ा  सा आकार ।।
भौरों  का गुंजार,"आनंद"का  इजहार।
दुनिया में हो,अपने देश का जयकार।।


-------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


 


रचना सक्सेना  प्रयागराज 

आज की नारी है सबला।


कोमल मन चितवन चंचल है, 
भरी ममता से हर अबला।
पलकों से वह नीर छिपाती, 
आज की नारी है सबला।


हर गुल महके गुलशन उसका, 
हरी भरी हरियाली हो। 
तूफानों को सह करके भी, 
प्रेम सुधा की प्याली हो।
आग में तपती वह कंचन है, 
मत कहना उसको अबला। 


आज की नारी है सबला।


ख्वाब बेलती रोटी में जो
माँ पत्नी तुम प्यारी हो
हाथों में रक्षा का बंधन
बहना जग से न्यारी हो
अदभुद अभिनय तेरा मंचन है
किरदार निभाती हर अबला 


आज की नारी है सबला।


रचना सक्सेना 
प्रयागराज 
5/3/2020 


स्नेहलता "स्नेह" सीतापुर,सरगुजा छ.ग.

दिनाँक-5/03/2020


22 22 22 22 22 2


ग़ज़ल
******
शिक्षा को हथियार बनाना हे नारी
आँसू को अंगार बनाना हे नारी


चूड़ी कंगन तो इस तन की शोभा है
 सपनों को श्रृंगार बनाना हे नारी


साधी चुप्पी तूने लाखों जुल्म सहे
लफ़्जों को तलवार बनाना हे नारी


सारे रिश्ते काँटों के जब ताज बने
जीवन खुद गुलज़ार बनाना हे नारी


तुझमें शक्ति देवी दुर्गा काली सी
कमज़ोरी क्या यार बनाना हे नारी


अपनी रक्षा करने के तुम गुर  सीखो
मत खुद को लाचार बनाना हे नारी


तेरी तुलना गंगा यमुना से होती 
सारा जग परिवार बनाना हे नारी


स्नेहलता "स्नेह"
सीतापुर,सरगुजा छ.ग.


निशा"अतुल्य"

पी सँग खेलूँ होली
5 /3/ 2020


देखो सखी फाग है आया
मन का आँगन खिल गया मेरा
अंग अंग मुस्काया 
अब के होली पी सँग खेलूँ
मन ने ये फरमाया।
सर सर सर सर चले पवन जब
लगे शुभ सन्देशा आया
होल से वो चूमे मुख को 
सुनहरा ख़्वाब सजाया।
हर रंग मुझ को फीका लगे
जब घर साजन ना आया।
देख देख थके नैन मेरे 
मन मेरा अकुलाया
पीपल छाँव भी बैरन लागे
अंग अंग दहकाया।
बैठ राह में बाट निहारूँ
हाय पिया न आया
सौतन बन गई नौकरी उनकी
दूर सजन पहुँचाया।
आ पीछे से छू लिया उसने 
तन मन मेरा महकाया ।
पी के सँग खेलूंगी होली
लौट सजन घर आया 
सखी री लौट सजन घर आया।
अनमोल रत्न मन पाया मैंने
सखी प्रेम रतन धन पाया ।



स्वरचित
निशा"अतुल्य"


कुमार कारनिक (छाल, रायगढ़, छग)

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🌞सुबह🙏🏼सबेरे🌞
     """"""""""""""""""
  *भारत के लोग*
   मनहरण घनाक्षरी
    "''''''""""""""""""""'"
भारत   के  हम  लोग,
करें  नित  ध्यान योग,
आपस  में  मेल-जोल,
       यही मजबूती है।
🤝🏻🌸
अनेक है बोली भाषा,
कभी न  रहे  निराशा,
विविध है  जाति धर्म,
    हमारी संस्कृति है।
🌼🤝🏻
बड़ों  का   अभिनंदन,
मात-पिता  का  वंदन,
आदर    करते    सब,
   यही तो जागृति है।
🤝🏻🏵
भाव   भरते   मन  में,
जोश  जगाते  तन  में,
हिम्मत से होते  काम,
      हमारी प्रगति है।



*कुमार🙏🏼कारनिक*
 (छाल, रायगढ़, छग)
                 *******


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