डा इन्दु झुनझुनवाला जैन

Women's day special,,  


हाँ  मै औरत हूँ ।


उस-सा अहंकार नही मुझमें,
आत्मसम्मान मन में बसाया है।
हाँ  मै औरत हूँ  ।


व्यवसायिक बुद्धि नहीं मुझमें ,
पर दिल मैंने भरपूर पाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


दौलत नही कमाई  बहुत मैंने ,
पर इज्जत मेरा सरमाया है ।
हाँ  मै औरत हूँ ।


हर गल्ती को मुस्कुराके सहा ,
किसी को कभी ना जतलाया है ,
हाँ  मै औरत हूँ  ।


भूख प्यास की परवाह ना की मैने  ,
बडे प्यार से सबको खिलाया  है ।
हाँ मै औरत हूँ 


मेरा परिवार पराया रहा जिसके लिए ,
उसके परिवार को अपनाया है ।
हाँ मै औरत हूँ ।


मुझे चहार दीवारी दे दी जिसने ,
उसको मैंने ही घर बनाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


हर सुख दुख में साथ दिया मैंने ,
पर  कुछ ना कभी जताया है ,
हाँ मै औरत हूँ ।


मेरे गम को ना पहचाना फिरभी ,
मैने भी हँस के उसे छिपाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


प्यार भरे लफ्ज़ को तरसा है मन ,
हर पल प्यार ही बरसाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


 भले ही मेरी कद्र करो ना करो ,
मेरा खुद पे खुद का सरमाया है ।
हाँ मै औरत हूँ ।


संवेदनशील हूँ, पर धैर्य बहुत है ,
हर कदम पर उत्साह बढाया है ।
हाँ  मै औरत हूँ ।


अब पिंजड़े का बन्द पक्षी नही ,
उडने को पंख फडफडाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


सपनों  की उँची उड़ान भरती हूँ ,
कदम ना कभी डगमगाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


"इन्दु" खिलता है आसमां पे अब ,
दो जहाँ देखो  जगमगाया है।
हाँ मै औरत हूँ ।


डा इन्दु झुनझुनवाला जैन


रवि रश्मि 'अनुभूति '

 


  उत्प्रेक्षा अलंकार से सज्जित दोहे 
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1 )
उजास चेहरे छाया , चमका ज्यों है भाल ।
धवल छा गयी चाँदनी , करती खूब धमाल ।


2 ) 
फूले फ़सल खड़ी रखो , छवि सुंदर सी धार । 
धानी ओढ़ी चुनरिया , दुल्हन ज्यों है नार ।।


3 )
टेसू खिलते दहकते , लगे लगी ज्यों आग ।
टेसू फूले कह रहे , आया है अब फाग ।।


4 )  
चमके धवल चंदनिया , ठंडक लायी साथ ।
हाथ हाथ में ले चले , मानो हो बारात ।।


5 ) 
विरहन तड़पे साजना , ज्यों तड़पे है मीन ।
तुम तो जाते ओ पिया , लिए सभी  सुख छीन ।


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

हर मौसम चेहरा... 


हर मौसम मुझे 
लगता है एक -एक चेहरों सा 
कि सभी का अलग मिज़ाज़ है 
कोई चेहरा खिलती धूप सा 
कोई चेहरा लाल फागुन सा 
किसी चेहरे पर नमक है 
कोई चेहरा ख़ुश्क हवा सा 
लेकिन हर मौसम कि अपनी एक महत्ता 
जैसे कि सभी चेहरों का 
अपना एक अलग एहसास. 
कोई महकता फूल अमराई सा 
कुछ बहता दूर पुरवाई सा 
कोई सख़्त बना मौसम. 
ये दुनिया भरी है चेहरों से 
लेकिन हर चेहरा नहीं भाता 
कोई एक होता है अपना सा. 
जिसे ताउम्र हम चाहते हैं. 
"उड़ता " पसंद करते हैं, 
उजले मौसम सा. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
     झज्जर (हरियाणा )


अर्चना कटारे

करो ना सही तो कह रहा


बंद करो ये रोना धोना
सनातन परंपरा अपनाओ ना



माँसाहार करोना
देशी भोजन करोना


डिब्बा बंद खाद्य का बहिष्कार
 करोना
फास्ट फूड का त्याग करोना


बार हाथ साफ करोना
कहीं भी गंदगी करोना


तुलसी नीम का सेवन करोना
ग्लोय करेला जूस पियो ना


हैड सेक मत करोना
नमस्ते ही करोना


सर्दी कि इलाज जल्दी करोना
इसमे लापरवाही करोना


संक्रमित होने से बचोना
मुँह मे मास्क बाँधोना


धूप मे कपडे सुखाओ ना
धूप का सेवन करोना


भीढ भाड से बचोना
योग रोज करोना


हवन का धुआँ करोना
शुद्ध हिंदू बनोना


करोना को भगाओ ना
ये सभी आपनाओ ना


    अर्चना कटारे


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

कुण्डलिया


होली  भावति  खूब  हैं, सबके  ह्रदय  अपार।
रंग  -  बिरंगे  पर्व   की, जचती   खूब   बहार।
जचती   खूब   बहार,  नेह   के   रंग   लगाए।
अधरन  मृदु  मुस्काय,  दिलों  से  वैर  मिटाए।
कहत 'अभय' कविराय, बनें सबकी हमजोली।
हो    सबके   प्रति  स्नेह,  मनाये   ऐसे   होली।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक घनाक्षरी छंद 


कभी  जिन  खेत बड़ी, फसल लहराती थी,
जाने  कैसे  वही  आज,  बंजर  हो  गए हैं।
खुशी  मिलती अपार, जिनको थी  देखकर,
ग़मगीन  वो   भी  अब,  मंजर  हो  गए  हैं।
जो आशीर्वाद देते थे, आज उन हाथों में भी,
पीठ  घोपने  के  खूनी,  ख़ंजर  हो  गए  हैं।
जीण क्षीण काया रही, जिनकी हमेशा सुनो,
आज   वही   मद  मस्त, कुंजर  हो  गए  हैं।
 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


आलोक मित्तल

मुझे ज़िंदगी अब नयी चाहिए ।
मुझे आज हर इक खुशी चाहिए।


सभी से मिलाया मैंने हाथ है,
सभी से हमें दोस्ती चाहिए ।।


सभी से मिला करता हूँ प्यार से,
किसी की नहीं दुश्मनी चाहिए।


हुए यार का खूब दीदार बस,
हरिक खिड़की थोड़ी खुली चाहिए।


कमा लूँ अगर मैं जरा सा यहाँ,
हमें एक ही नौकरी चाहिए।


न हो दर्द ज्यादा दुआ हो यही,
जरा प्यार की ज़िन्दगी चाहिए।


** आलोक मित्तल **


सत्यप्रकाश पाण्डेय

यौवन सुमन अनौखा देखा
रूप सौंदर्य का मकरन्द भरा
अतुलनीय आनन उजास 
जैसे पतझड़ में हो चमन हरा


कली कली में लावण्यता
अवयव मानो सभी पल्लवित
अधरों पै मुस्कान मनोहर
था पूनम सा चेहरा मुखरित


कैसा अनुपम कुसुम सौम्य
जिस सुरभि का न पान किया
था अद्वितीय वो मधुर मधु
जिसका न किसी ने स्वाद लिया


भ्रमर भांति काले कुंतल
मानो मुखारविंद कर रहे पान
अवर्चनीय वह काला तिल
लगे अनुपमेयता की पहचान


चित्रित चारुता ललाट की
बांका चितवन मन को भाये
दिव्यलोक से आई परी सी
क्योंकर सत्य को तू ललचाये।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

...........भारत की नारी...........


दुनियाँ में विचित्र है, भारत की नारी।
पृथ्वी पर पवित्र है, भारत की नारी।।


घर,समाज,राष्ट्र,विश्व के  निर्माण में ;
बहुत ही सक्रिय है,भारत की नारी।।


सब के उन्नति-पथ प्रशस्त करते हुए;
बहुत ही झेलती है,भारत की नारी।।


बाधाओंऔर विपत्तियों मेंअडिग हो;
सशक्त दिखती है,भारत की  नारी।।


कर्म के सभी क्षेत्रों में,देश-विदेश में;
परचम लहराती है,भारत की नारी।।


कुछ नारियों के  कर्मों के  बदौलत ;
बदनामभी होती हैभारत की नारी।। 


जीवनसाथी के साथ सामंजस्य से ;
"आनंद"फैलाती हैभारत की नारी।।


-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171

ये जिन्दगी
***********
क्या बताऊँ  कैसी है ये जिन्दगी
क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
कभी तो फूल सी लगती है
ये जिन्दगी।


कभी  तो काँटों में गुलाब सी
मुस्कुराती है ये जिन्दगी
कभी दूर डूबते सूरज सी
लगती है यह जिन्दगी।


कभी सूरज की पहली किरण
सी लगती है यह जिन्दगी
कभी कल्पनाओं के सागर में
गोते लगाती है यह जिन्दगी।


कभी दूसरे का दर्द को देख कर
रो पड़ती है ये जिन्दगी
कभी मौत के भय से
बदहवास सी दौड़ती है ‌ये जिन्दगी।


कभी मंजिल के बहुत करीब
लगती है ये जिन्दगी
कभी एक -एक पर को
पीछे धकेलती है ये जिन्दगी।


क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
जैसे भी है
बहुत सुहावनी है ये जिन्दगी
ईश्वर का कृपा प्रसाद है ये जिन्दगी।।
*******************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171


निशा"अतुल्य"

राधे राधे 


काहे तूने की है चोरी 
6/ 2/ 2020


नटखट कान्हा करे शरारत 
मैया झूठा क्रोध दिखाये है
बांध दिया आँगना में तुमको
दाऊ मंद मंद मुस्काये है ।


काहे तूने माखन खायो
काहे मटकी फोड़ी है ।
झूठ मुठ मैया रोष दिखाये
कान्हा को धमकाये है ।


मैया सगरी झूठ बोलती
माखन मैं नही खायो है
जबरन मोरी बाहँ पकड़ के
मुख मेरा लिपटायो है ।


न जाने क्या बैर है मुझसे
मुझको बांध सतायो है।


मैया नैन नेह छलकाये
पकड़ हृदय लगायो है ।
कान्हा मेरो कितनो भोलो
सब मिल काहे सतायो है ।


आने दे तेरे बाबा को
सबको आज बताती हूँ
जो मेरे कान्हा को सताये
गोकुल से बाहर कराती हूँ ।


छोटो सो कान्हा है मेरो
गैया चराने जाये है 
साँझ सकारे लौट के आये
नित ही तो थक जाये है।


ग्वाल बाल सब खेलन लागे
गोपियाँ काहे सताती हैं 
मेरा कान्हा भोला भाला
झूठे बैर दिखाती हैं ।


कह मैया ने अंक भर लीना
कान्हा मंद मंद मुस्काये हैं।
देख के लीला कान्हा जी की
दाऊ भी भरमाये हैं ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


संजय जैन (मुम्बई)

*मन करता है*
विधा: कविता


दिल के झरोको से,
प्यार झलकता है।
आपकी वाणी में,
अपनापन दिखता है।
तभी तो आपसे निगाहें,
मिलाने को मन करता है।
और तुम्हें दिल से, 
अपनाने का मन करता है।।


कौन कहता है कि तुम,
दिल नहीं लगा सकते।
और किसी को अपना, 
बन नही सकते।
क्योंकि दोस्तो ये, 
दिलका मामला है।
जिसे पत्थर दिल, 
निभा नहीं सकते।।


फूलों की तरह सुंदर हो,
दिल से भी सुंदर हो।
इसलिए कहता हूं की,
तुम खिलता हुआ गुलाब हो।
तभी तो दिल करता है, 
कि तुम्हें देखता ही रहूं।
और अपने दिल को,
थोड़ा शीतल कर सकूं।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
06/03/2020


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।।बरेली

*बचाने को रिश्ते जरूर ही बात*
*कीजिये।।।।।मुक्तक।।।।।।*


चाहे तो आप शिकायत के
के साथ ही बात  कीजिये।


रिश्तों में  बहुत जरूरी कि
आप कुछ  दर्द    पीजिये।।


आँखों से ओझल, दिल से
दूर ,समझो टूट गई डोर है।


उतर  जायें दिलों  में आप
बस ऐसे जज्बात दीजिये।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब   9897071046।।।
8218685464।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस।।।।।* *बरेली

*दुआयें साक्षात भगवान होती हैं।।।।*


*।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


दुआयें   साथ  तो  मुश्किलें  भी  
आसान     होती   हैं।


हवायों के बेरुख में  पाते मंजिलें 
जो अंजान   होती   हैं।।


बस दुआयें  लीजिए और दीजिए
एक  दूसरे  के लिए ।



ताकतें दुआयों की मानो  साक्षात
भगवान   होती   हैं।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस।।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।8218685464।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"तेरी दुनियाँ से"*
"तेरी दुनियाँ से अब,
साथी मेरा-
कोई नहीं वास्ता।
तुम मेरा अब तो साथी, 
रोको नहीं-
जीवन में रास्ता।
मेरी अपनी दुनियाँ,
खुश हूँ मैं साथी-
कस्मों से नहीं वास्ता।
भूल चुका हूँ मैं तो,
साथी बीते पल-
रोको न रास्ता।
सत्य पथ चल कर ही,
मिली हैं मंज़िल-
अब भटकाओं न रास्ता।
तेरी दुनियाँ से अब,
साथी मेरा-
कोई नहीं वास्ता।।"
ःःःः    सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्रेम विवश बंधन में बंध गये
देखो जगत बंधन काटन हार
कैसा सौभाग्य यशोदा मैया
करें अठखेली जग पालनहार


बालक्रीड़ा कर स्वयं खेल रहे
वो खिला रहे जग के नर नार
मायापति की माया को जाने
जाकी सृजना ये सकल संसार


हे जगदीश्वर मैं बालक हूं तेरों
तेरे मायाजाल से सदा दूर रहूँ
जैसे दीपक पर आशक्त पतंगा
चरणों में झुकने पै मजबूर रहूँ।


श्रीकृष्णाय नमो नमः 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹💐💐🌸


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌 मन मोरे वो राम समायो 😌


मन   मोरे   श्रीराम   समायो।
  मूरत उनकी अति मन भायो।
    जाहि  देखि  जन सब हर्षायो,
      मन   मोरे   वो  राम  समायो।


जटा - जूट जिनके सिर सोहे।
  कमल नयन सबके मन मोहे।
    कौशल्या  ने  जिनको  जायो।
      मन   मोरे  वो  राम   समायो।


संतन  के   जो   हैं   रखवारे।
  संत  जिन्हें   लगते  हैं  प्यारे।
    हैं अनंत  तुलसी  जिन  गायो,
      मन  मोरे  वो   राम   समायो।


जिनके  प्रिय  सारे  वनवासी।
  किया गमन वन बिना उदासी।
    शबरी  के  जिन  जूठन खायो,
      मन   मोरे   वो  राम   समायो।


दूष्टन   को    जिनने    संहारा।
  रावण  को  भी  जिनने  मारा।
    सखा धरम जिन खूब निभायो,
      मन   मोरे   वो  राम   समायो।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

...............तेरी दुनियां से................


अब कोई वास्ता नहीं, तेरी  दुनियां से।
निकलता रास्ता नहीं, तेरी दुनियां से।।


हम थे  तुम्हारे  प्यार के  मुरीद  पहले ;
अब कोई दास्तां नहीं, तेरी दुनियां से।।


किया इंतजार बहुत,कोई बंदगी मिले ;
पर कोई खांसता नहीं,तेरी दुनियां से।।


तेरी बेरुखी से हम तो परेशान हो गए ;
अब कोईआस्था नहीं,तेरी दुनियां से।।


कोई समझे  हमारी  दिली मजबूरियां;
कोई भी लालसा नहीं,तेरी दुनियां से।।


हम पाहमाल हो गए तेरी खिदमत में ;
उम्मीद दिखता नहीं , तेरी दुनियां से।।


अब तो आखरी पड़ाव पहुंचा"आनंद"
घटता फासला नहीं , तेरी दुनियां से।।


----- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कृषक महान है"*
(मनहरण घनाक्षरी)
****************************
विधान- ८ ८ ८ ७ वर्णों पर यति के साथ प्रतिपद ३१ वर्ण, पदांत lS, चार चरण तुकांतता।
****************************
*जीता जो माटी के लिए, मरता माटी के लिए, माटी संग मिल जाए, माटी में ही जान है।


माटी में ही लिखे गीत, लेखनी 'हल' है मीत, धूप-वर्षा-ठंड-शीत, झेलता समान है।।


श्रम-धन-जन हरे, वृष्टि पर सृष्टि करे, जाता लग दाँव पर, मानसून मान है।


भोर में है जाग जाता, कृषि की प्रभाती गाता, फसल की हँसी संग, हँसता किसान है।।



*पीछे न हटने वाला, आगे-आगे जाने वाला, प्रगति पथ का राही, बल की जो खान है।


सृष्टि को सँवारे है जो, हरीतिमा लाये है जो, दानी उस जैसा नहीं, देता अन्नदान है।।


बडा़ बाहुबल वाला, भाग्य को लिखने वाला, स्वेद से जो करे स्नान, भू का भगवान है।


करे जो निज निर्भर, देश को है अर्थ पर, भारत का अन्नवीर, देश का किसान है।।



*हाय! प्रकृति-पुजारी, दुख-दर्द सहे भारी, नित-नित नव-नव, सहे अपमान है।


'याचक' से याचता है, मुँह कभी ताकता है, खेत न देखा जो कभी, मान भगवान है।।


अल्पवृष्टि का कहर, अतिवृष्टि का जहर, पीकर है अन्नदाता, देता कभी जान है।


दाम समुचित मिले, श्रम को सम्मान मिले, कर्णधार देश का है, "कृषक" महान है।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


जसवीर हलधर देहरादून

गीतिका -होली में
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 कोरोना के भय में भटकी रीत सुहानी होली में।
दिल्ली के  दंगों ने  सटकी प्रीत रूहानी होली में।


केसर घाटी सुलग रही थी पिछले सत्तर सालों से ,
हटी तीन सौ सत्तर धारा नयी कहानी  होली में ।


मांथे का सिंदूर मिट गया जाने कितनी बहनों का ,
मजहब का उन्माद ले उडा नीति पुरानी होली में ।


देश प्रेम का फ़ाग नही है कुर्सी का है राग यहां ,
 नेताओं ने अपनी अपनी चादर तानी होली में ।


ये हलचल ये कोलाहल क्यों सी ए ए पर मची हुई ,
इसको अपनाने में  है क्यों आनाकानी  होली में ।


दुश्मन की धरती पर जाकर हमने बीन बजाई थी ,
नाग सैंकड़ों  बिल में मारे पाकिस्तानी होली में ।


बोतल में तेजाब भरा है रंगों में बारूद घुला ,
पुलिस पिट रही चौराहों क्या नादानी होली में ।


रंग गुलाल लगा कर भाई मुखड़ा दर्पण में देखो ,
सबका चेहरा दिखे तिरंगा हिंदुस्तानी  होली में ।।


राम लला पे हुआ फैसला" हलधर "सबने अपनाया ,
हमने दुनिया को सौंपी है नयी निशानी होली में ।


हलधर --9897346173


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
परमानन्द


भ्रम को त्यागो जानकर, भ्रम  देता  अज्ञान।
कर्म क्षेत्र में आ करो, सत्य ज्ञान का मान।
यह जानो भ्रम से सदा, बिगड़ेगा हर काज,
सत्य परम आनन्द है, मानव लो यह जान।


मन आए आनन्द तब, सफल सुखद हो काज।
घर बाहर सारे करें,सफल मनुज पर नाज।
सत्य राह पर चल बने, स्वयं सहज पहचान,
परमानन्द मिले तभी, करे ह्रदय पर राज।।


मूल रूप से सत्य से,सार्थक बने भूगोल।
मिथ्या सारा भ्रम बने, जीवन पथ बेमोल।
भ्रम त्यागो सत पथ चलो, मंजिल होगी पास,
 मिले परम आनन्द मधु,सत्य सदा ही बोल।।
*©मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*🌹🌹सुप्रभातम्*🌹🌹
*06.03.2020*


नूतन लाल साहू

शादी
शादी एक समझौता है
पत्नी इकलौती,पति इकलौता है
समझौता यानी,एग्रीमेंट
शादी की बिंदी लगने के बाद
हो जाता है,रिश्ता परमानेंट
सिंदुर और मंगल सूत्र के नियम
हमारे पूर्वज,पुरुषों ने बनाया है
रिश्तों को याद दिलाते रहने में
जीवन भर ये खास होता है
सास होती है, स, आस
उम्मीदे,रखती है बहुत खास
सोच है,संग की सास
जंजाल जैसे और
दुर रहे तो, मां जैसे होती है
पर सोच को बदलो
वो भगवान का रूप होती है
शादी एक समझौता है
पत्नी इकलौती,पति इकलौता है
समझौता यानी,एग्रीमेंट
शादी की बिंदी,लगने के बाद
हो जाता है,रिश्ता परमानेंट
सूर्य ग्रहण,चन्द्र ग्रहण
होता है,कुयोग से
पर पानी ग्रहण,होता है संयोग से
सूर्य ग्रहण,चन्द्र ग्रहण
संपन्न होता है, एक फेरे में
पाणिग्रहण होता है, सात फेरे में
सूर्य ग्रहण,चन्द्र ग्रहण हो जाता है
थोड़ी देर में,ख़तम
पाणिग्रहण,चल सकता है
सात जनम
शादी एक पवित्र बंधन है
जिसमे आत्मा का आत्मा से
होता है,पवित्र मिलन
शादी एक समझौता है
पत्नी इकलौती,पति इकलौता है
समझौता यानी एग्रीमेंट
शादी की बिंदी,लगने के बाद
हो जाता है,रिश्ता परमानेंट
नूतन लाल साहू


 


 


कवि✍️डॉ. निकुंज

💐🙏सुप्रभातम्🙏💐
ममतांचल नित स्वर्ग सम, नेहामृत आगार। 
अम्बर से ऊँचा पिता,  जीवन का आधार।।
है त्रिदेव से श्रेष्ठतर , हरे   तिमिर  संसार।
मातु पिता बन मीत गुरु , महिमा अपरम्पार।।
साधु समागम कठिनतर, दर्शन पुण्य प्रदेय। 
नमन करूँ माता पिता, चित्त साधु गुरु  ध्येय।। 
कवि✍️डॉ. निकुंज


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म व्यख्याता

गोस्वामी जी द्वारा वेदों की वन्दना ओर श्री राम चरित मानस द्वारा साकार निराकार पर व्यख्यान


बन्दउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जस।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ जो संसाररूपी समुद्र को पार करने के लिए जहाज के समान हैं और जिन्हें प्रभुश्री रामजी का निर्मल यश वर्णन करते समय स्वप्न में भी खेद अथवा थकावट महसूस नहीं होती है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  वेद चार हैं--
1--ऋग्वेद।
2--सामवेद।
3--यजुर्वेद।
4--अथर्ववेद।
  वेदों में जिस निराकार  परमपिता परमात्मा की वन्दना की गयी है, वे ही साकार रूप से अवतार लेते हैं।इन्हीं अवतारों में प्रभुश्री रामजी का एक प्रमुख अवतार है।यथा,,,
एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानन्द परधामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कर नाना।।
  पुनः सगुण और निर्गुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।ऐसा मुनि,पुराण,पण्डित और वेद कहते हैं।जो निर्गुण, निराकार,अव्यक्त और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण कर लेता है।जैसे जल,बर्फ और वाष्प में कोई भेद नहीं है क्योंकि ये उसके तीन रूप ही हैं।प्रभुश्री रामचन्द्रजी पूर्ण सच्चिदानन्द ब्रह्म का ही सगुण अवतार हैं।वे ही व्यापक ब्रह्म,परमानन्दस्वरूप,
परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं इस बात को सारा संसार जानता है।जिस निराकार ब्रह्म का वेद और पण्डित वर्णन करते हैं, वही दशरथ के पुत्र,भक्तों के हितकारी,अयोध्या के स्वामी भगवान श्रीरामचन्द्रजी हैं।भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को प्रभुश्री रामजी के विषय में विस्तृत रूप से यही बात बतायी थी।यथा,,
राम सच्चिदानन्द दिनेसा।
नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।।
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना।
परमानन्द परेस पुराना।।
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।।
सब कर परम प्रकासक जोई।
राम अनादि अवधपति सोई।।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू।
मायाधीस ग्यान गुन धामू।।
जासु कृपा अस भ्रम मिटि जाई।
गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।।
आदि अंत कोउ जासु न पावा।
मति अनुमान निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा।
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी।
महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


प्रदीप कुमार "दीप" सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)

वेबसाइट पर प्रकाशन हेतु।


वादों ने भूगोल को' बदला, जुमलों ने इतिहास।
आजादी के बाद देश में, ऐसे हुआ विकास।


नयनों के सागर में उमड़े, जब भी कड़वे प्रश्न।
राजनीति ने तभी दिखाये, आसमान से स्वप्न।।


टूटा रोज भरोसा जन का, छला गया विश्वास।


वीर सैनिकों ने झेला नित, दुश्मन का भूचाल।
और किसानों के हिस्से में, आयी बस हड़ताल।।


लिखा भूख ने निर्धनता के, माथे पर मधुमास।


रोती रही रक्त के आंसू, उम्मीदों की दूब।
खादी ओढ़े खाकी बोली, वाह वाह जी खूब।


संविधान के साथ सड़क पर, नित्य हुआ परिहास।।



प्रदीप कुमार "दीप"
सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)
मो०-8755552615


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