*"कृषक महान है"*
(मनहरण घनाक्षरी)
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विधान- ८ ८ ८ ७ वर्णों पर यति के साथ प्रतिपद ३१ वर्ण, पदांत lS, चार चरण तुकांतता।
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*जीता जो माटी के लिए, मरता माटी के लिए, माटी संग मिल जाए, माटी में ही जान है।
माटी में ही लिखे गीत, लेखनी 'हल' है मीत, धूप-वर्षा-ठंड-शीत, झेलता समान है।।
श्रम-धन-जन हरे, वृष्टि पर सृष्टि करे, जाता लग दाँव पर, मानसून मान है।
भोर में है जाग जाता, कृषि की प्रभाती गाता, फसल की हँसी संग, हँसता किसान है।।
*पीछे न हटने वाला, आगे-आगे जाने वाला, प्रगति पथ का राही, बल की जो खान है।
सृष्टि को सँवारे है जो, हरीतिमा लाये है जो, दानी उस जैसा नहीं, देता अन्नदान है।।
बडा़ बाहुबल वाला, भाग्य को लिखने वाला, स्वेद से जो करे स्नान, भू का भगवान है।
करे जो निज निर्भर, देश को है अर्थ पर, भारत का अन्नवीर, देश का किसान है।।
*हाय! प्रकृति-पुजारी, दुख-दर्द सहे भारी, नित-नित नव-नव, सहे अपमान है।
'याचक' से याचता है, मुँह कभी ताकता है, खेत न देखा जो कभी, मान भगवान है।।
अल्पवृष्टि का कहर, अतिवृष्टि का जहर, पीकर है अन्नदाता, देता कभी जान है।
दाम समुचित मिले, श्रम को सम्मान मिले, कर्णधार देश का है, "कृषक" महान है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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