इन्दु झुनझुनवाला

महिला दिवस की शुभकामनाएं सभी दोस्तों को 😊💐💐💞💞💞


ये दुनिया सारी मुझमें है।


अगर सच में जानना चाहते हो मुझे ,
 किसी ढाँचे में डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
नीले-नीले आकाश-सी मैं,
उमड़ते-घुमडते बादल ,
चमकती बिजलियाँ कभी ,
बरसती नन्हीं-नन्हीं फुहारें भी।
किसी घरौंदे में कैद ना करो ,
चूक जाओगे ।


चमकते सूरज-सी रोशन मैं ,
दहकता आग का गोला , 
रौशन दोनों जहाँ जिससे,
इंदृधनुषी न्यारी-प्यारी किरणें भी।
दीपक ना समझ लेना खाली ,
चूक जाओगे ।


विशाल फैले समुंदर-सी मैं,
उठती तूफानी लहरें,
साहिल की तलाश में ,
शांत , फिर-फिर लौट जाती भी ।
बहता सोता ना मान लेना सिर्फ, 
चूक जाओगे ।


अगर सच में जानना चाहते हो मुझे ,
किसी ढाँचे में डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।


बहार हूँ मैं,पतझड़ भी मुझमें है।
जय  हूँ मैं, पराजय भी मुझसे है।
झूठ  हूँ मैं, सच भी मुझसे है।
दोस्तों की दोस्त,दुश्मनी भी मुझसे है ।
सीता  हूँ मैं , कैकयी भी मुझमें है ।
सावित्री  हूँ मैं, रंभा भी मुझमें है ।
माँ हूँ मैं, बेटी भी मुझमें है।
नारी हूँ मैं, 
नर भी मुझसे है।
पंच तत्व की दुनिया ये ,
ये दुनिया सारी मुझमें है ।
ये दुनिया सारी मुझसे है ।
अगर सच में जानना चाहते हो मुझे तो ,
किसी ढाँचे मे डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
इंदु
२९,०५,२०१७
अनुभूतियों के मोती (काव्य संग्रह )


डा0विद्यासागर मिश्र"सागर" लखनऊ उ0प्र0

आज का सृजन
भारतीय नारियो को कहते जो अबला है,
यह बात बन्धु मेरे समझ न आयी है।
वक्त पर रक्त को चढ़ाया मातृभूमि पर,
रण्भूमि आने मे भी नही शर्मायी है।
दांत खट्टे कर दिये रण्भूमि बैरियो के,
काटि काटि मुंड रण भूमि मे गिरायी है।
वीर पृसूता यहाँ की नारियाँ सदैव रही,
इसीलिए नारी यहाँ सबला कहायी है।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र"सागर"
लखनऊ उ0प्र0


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं


 


नारी की महिमा


हे! जगतजननी नारी तुमको मम कोटि प्रणाम हैं।
तुम्हीं से  ही  पुष्पित  पल्लवित  सारे  आयाम  हैं।
इसी    संसार    में    तुम्हारे   उपकार   घनेरे   हैं।
तुमसे  जहाँ  की  शोभा  और  हर  साँझ सवेरे हैं।
हर हारे थकित मनुज को तुम इक हौसला दिलाती।
जो प्यास से हो व्याकुल उसे शीतल वारि  पिलाती।
तुम बिन ये  जीवन  सूना  हर  सुख फ़ीके लगते हैं।
साथ  आपका  हो तो हर  लब्ज  सलीक़े  लगते हैं।
बौने   शब्द  पड़  जाते   कीर्ति  तुम्हारी  कहने  में।
रण  में  भी  संबल  देती  हो   तलवारें   गहने  को।
जब जब जरूरत पड़ी साहस अदम्य दिखलाया हैं।
आँच देश पर न आये सबको सबक  सिखलाया हैं।
हम  ऋणी  आपके  हे  नारी  जीवन  भर  रहते  हैं।
इस सकल विश्व मे सबसे  उत्तम  तुमको  कहते  हैं।
तिमिर  में  चपला  बनती  मृगसिरा  में  पुरवाई  हो।
स्वर  कर्ण  प्रिय  लगते तुम पाणिग्रहण शहनाई हो।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"नारी"* (ताटंक छंद गीत)
"""""""""""'""""""""""""""""""""""""""""""""
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
"""'"''""""""""""""'"'''""""""""""""""""""""""""
*नारी अनुकृति परमेश्वर की, पूजन की अधिकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
नाते अनेक जग में उसके, जिन पर तन-मन वारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*नारी के बिन नर आधा है, नर भी रचना नारी की।
त्याग-तपस्या की प्रतिमा है, जय हो जन हितकारी की।।
प्रीति-दायिनी वह हर पल है, स्नेहिल है, सुखकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*सतत् सजगता से नारी की, जग निश्चिंत सदा मानो।
विडंबना फिर यह कैसी है? सहती वह विपदा जानो।।
मान सभी उसका भी रखना, नारी शुचि प्रणधारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*करें देव भी उपकार वहाँ, मान जहाँ पाती नारी।
अवलंब सदा है वह घर की, फिर क्यों न सुहाती नारी??
नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*नारी का उपहास न करना, उसका मान बढ़ाना है।
रोक भ्रूण की अब हत्या को, पुत्री-प्राण बचाना है।।
गढ़ती नव नित प्रतिमान सुता, सुत पर भी वह भारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*सृष्टि समाहित जिस नारी में, उसकी किस्मत फूटे क्यों?
थाम ऊँगली तुम्हें चलाया, उसकी लाठी छूटे क्यों??
अपना भी कर्तव्य निभाओ, कर्ज-मुक्ति की बारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि शांति है, ममता की फुलवारी है।।
"""""""""""""""""''"""""""""""""""""""""""'""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""""""""""""""""""""''""""""""""""""""""'"""


अर्चना कटारे            शहडोल म.प्र

*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सभी माँ,बहन,बेटी,, को बधाई....*    


*नारी तू कमजोर नहीं*
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
हे नारी तू नैनों के काजल की बस धार नहीं
हैं नारी तू  आँखों की अश्रु धार नहीं


हे नारी तू किसी बाग का टूटा फूल नहीं
नारी तू बस किसा काव्य का श्रंगार नहीं



हे नारी तू तलवारों की धार है
है पुरूषों की पलटवार है
तू ताकत है ,तू हिम्मत है, तू पौरुष , तू शान है


तू दुर्गा ,तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू गायत्री है
तू सृष्टि की जनक और पालन हार है


मत समझ अपने को अबला तू पुरुषों पर भारी है
मत समझ अपने को अबला तू आज की सबला नारी है


आया तुझ पर कोई संकट नारी पर 
तो झट से तलवार निकाली है


अपनी मर्यादा की रक्षा करने काली चंडी बननी है
मत समझो कमजोर अपने को
अभी भी हिम्मत बाकी है


हे नारी इस पुरूष समाज में 
 तुझे अपनी जगह बनानी है


बेचारी ,अबला ,लाचारी छोडो
अपने को पहचानो तुम


मिला लो कंधे से कंधा 
अपने को मत कम मानो तुम


हर क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर 
हर कार्यक्षेत्र सम्भालो तुम


संसार की सभी नारियों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मै समर्पित 🙏🏻🙏🏻🙏🏻


              अर्चना कटारे 
          शहडोल म.प्र.
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


हलधर -9897346173

(विश्व नारी दिवस पर महलों को समर्पित )


ग़ज़ल (हिंदी)
-----------------


नारी  नर  से  सदा बड़ी है ।
गाथा जिसकी भरी पड़ी है ।


जब भी मौका मिला उसे वो ,
हर मौके पर खूब लड़ी है ।


नर को रखा कोख में जिसने,
नारायण की एक कड़ी है ।


धरती पर आदम को लायी ,
गौरा शंकर साथ खड़ी है ।


घड़ा पांच रुपये में मिलता ,
लाख टके की मिले घड़ी है ।


तुलना करना काम मूर्ख का ,
शब्दों की बस कथा जड़ी है ।


भाव उभर जो भी मन आया,
हलधर" जोड़ी छंद  लड़ी है ।
      
  हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

महिला दिवस पर दो टूक
तू क्यों इतना सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
महिला पुरुष,दो पहिए है
एक ही,गाड़ी के
यही है, विधि का विधान
इसीलिए,मै कहता हूं
महिलाओं का भी कर सम्मान
कन्या पैदा हो गई
तो का हे को रोये
पुत्रो जैसा यह नहीं
तेरा नाम डूबो ये
सभी दुखो से मुक्ति का
निकला नहीं निचोड़
जिन मसलों का हल नहीं
उन्हें समय पर छोड़
तू क्यों इतना सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
स्वर्ग नरक एक कल्पना है
है असत्य ये धाम
यही भुगतना पड़ेगा
कर्मो का अंजाम
यह जीवन इक युद्ध है
कभी जीत कभी हार
जिसने छोड़ा मोरचा
उसको है धिक्कार
तू क्यों इतना,सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
नहीं हुआ,अगर काम तो
गम न कर इंसान
बदल नहीं सकता कोई
विधि का अटल विधान
कब क्या कर दे,यह समय
कौन सका है, जान
एक दिन,मिट्टी में मिल जायेगा
क्यों करता है,अभिमान
तू क्यों इतना सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
महिला पुरुष, दो पहिये है
एक ही, गाड़ी के
ये है,विधि का अटल विहान
महिलाओं का भी,तू कर सम्मान
नूतन लाल साहू


 


 


जसवीर हलधर -9897346173

मुक्तिका-चिंगारी मज़हब की 
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हद से ज्यादा ठीक नहीं है खातिरदारी मज़हब की ।
समझे नहि तो आग लगा  देगी चिंगारी मज़हब की ।


हथियारों का धंधा है यह नंबरदारी मज़हब  की ,
धरती को बंजर करती है झूठी यारी मज़हब की ।


मानवता से बड़ी नहीं है कोई सेवा इस जग  में ,
आदम को शैतान बनाती दावेदारी मज़हब की ।


यदि भगवान एक ही है तो नई दुकानें क्यों खोली ,
पत्थर को भगवान बताती पैरोकारी मज़हब की ।


हाल सीरिया का देखो सब सत्य समझ में आएगा ,
खाता पीता मुल्क निगल गयी ये बीमारी मज़हब की ।


भूख गरीबी से लड़ने को रस्ते  खोजे पुरखों ने ,
 अब तो खून उन्हीं का पीती चौकीदारी मज़हब की ।


 आयत पढ़वाई जाती हैं अब बंदूकों जे साये में ,
ऐ के छप्पन से बहती है ये मक्कारी मज़हब की ।


 देश धर्म से ऊपर "हलधर" सेवा कर्म हमारा है ,
राष्ट्र गान पर हावी दिखती ,मारामारी मज़हब की ।


                  हलधर -9897346173


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

राम चरित मानस में गो0तुलसी दास जी द्वारा की गई विभिन्न लोंगो की वन्दना


बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि।।
पुनि बन्दउँ सारद सुरसरिता।
जुगल पुनीत मनोहर चरिता।।
मज्जन पान पाप हर एका।
कहत सुनत एक हर अबिबेका।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  देवता,ब्राह्मण,पण्डित, ग्रह--इन सबके चरणों की वन्दना करके हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप प्रसन्न होकर मेरे सारे मनोरथों को पूर्ण करें।फिर मैं श्रीसरस्वतीजी और देवनदी श्रीगङ्गाजी की वन्दना करता हूँ।ये दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं।श्रीगङ्गाजी स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती हैं और श्रीसरस्वतीजी गुण और यश का कथन करने व सुनने से अज्ञान का नाश कर देती हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---उपरोक्त पंक्तियों में गो0जी अपने काव्य को सर्वसुलभ बनाने व जगत का कल्याण करने हेतु इन सभी की वन्दना करते हैं।इन सभी का कार्य भी जगत का कल्याण करना ही है।इनमें श्रीसरस्वतीजी व श्रीगङ्गाजी जलरूप से हमारे पापों को हरती हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"प्रीति की बरसात "


प्रीति की बरसात हो
दिन हो या रात हो।


जिन्दगी भर मुलाकात हो
ताउम्र बात हो।


जिन्दगी सँवर जायेगी
उर-कमलिनी खिल जायेगी।


मन में स्नेह की लालिमा होगी
सुहानी हरीतिमा होगी।


दिल में ममत्व का उत्सव होगा
रंगीन हाईवे पर महोत्सव होगा।


मन झूमेगा
सम्मान और श्रद्धा को चूमेगा।


मासूमियत मिटेगी
घृणा पिटेगी।


प्रेमामृता का वरदान होगा
शुचिता का यशगान होगा।


प्रीति का आशीर्वाद होगा
अघ वर्वाद होगा।


प्रितिरस में बह जाओ
अपनेआप में खो जाओ।


गोकर्ण बनो
अपर्ण बनो।


शुभ संवाद करो
प्रपंच से डरो।


संयमित वातावरण हो
प्रीति का संवरण हो
आवरण हो
शुद्ध उच्चारण हो
सदाचरण हो।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"तेरी याद मेँ..."


आप की याद हमेशा आती रहेगी
ख्वाहिश जिन्दा रहेगी
याद अजर अमर है
बेघर है
इसीलिए तो कोई सुनता नहीं है
कुछ गुनता नहीं है
जिसकी कोई निश्चित जगह न हो
उसका भला कौन हो
असहाय और निराश को कौन याद करता है
वह मौन फरियाद करता है
आँखों में आँसू हैं
हृदय पीपासू है।
आदमी ऊपर देखता है
सुपर को देखता है
नीचे देखने का अभ्यास कहाँ?
नीचे का उपहास यहाँ।
आदमी मरघट है
निघर्घट है
वह सम्मान का आदी हो चुका है
स्वयं स्वार्थवादी हो चुका है।
उसे किसी भी निरीह की याद नहीं आती है
पूंजीवाद की याद आती है
नैतिकता और मानवता उसकी परिधि में नहीं हैं
सुन्दरता उसकी उर-उदधि मेँ नहीं है।
किसी की याद को शायद ही कोई महत्व देता हो
उसके दिल की आवाज की शायद ही कोई सुनता हो।
प्रीति सरस है
मधुरस है
मधुरिम है
अप्रतिम है
परन्तु वह मूक और मौन है
भला उसकी भूख को समझता कौन है?
हमें किसी की याद मेँ खो जाने दो
सदा-सदा के लिए सो जाने दो।
अगले जन्म में देखा जायेगा
अपना खुद का संदेश पढ़ा जायेगा।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मेरी पावन मधुशाला"


ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र से ऊपर उठा हुआ प्याला,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई से बढ़कर मेरी हाला,
निराकार ओंकार सरीखा मेरा सर्वविदित साकी,
ब्रह्ममंडलाकार सदृश है मेरी पावन मधुशाला।


अंत्योदय की बातें करता रहता है मेरा प्याला,
अंतिम मानव के आँसू से बनी हुई मेरी हाला,
अंतिम मानव के संरक्षण हेतु खड़ा मेरा साकी,
दलित-पीड़ितों की शरणालय मेरी पावन मधुशाला।


मानव का नित वन्दन करता जाता है मेरा प्याला,
मानवता को जीवित रखने हेतु बनी मेरी हाला,
प्राणि मात्र की सेवा  के व्रत  का संकल्प लिये साकी,
सेवा को ही धर्म बताती मेरी पावन मधुशाला।


जिसे प्रकृति से सहज प्रेम है वही एक उत्तम प्याला,
सुघर प्रकृति की सुन्दरता सी मधु मादक मेरी हाला,
सदा प्राकृतिक छटा सरीखा अति मनमोहक साकी है,
सकल  प्राकृतिक विभव संपदा सी सुन्दर है मधुशाला।


मन -मंदिर की शिव प्रतिमा सा भव्य चमकता है प्याला,
शिवभावों से भरी हुई है मेरी दिव्य सुरभि हाला,
बना पुजारी मनमंदिर का करत आरती साकी है,
 मन -मंदिर  के शुभ सरवर सी मेरी पावन मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"चाहत"


चाह मन में आप का ही ध्यान हो
आप से ही बात नित मनमान हो
आप की बाहें पकड़कर बोल दें
आप ही आराध्य हो भगवान हो।


दूर जाना मत कभी बस पास रह
प्रेमगंगा बन हृदय में वास कर
ख्वाहिशें पूरी कहाँ बिन आपके
आप ही स्वर-साधना की राह बन।


आप की नित वन्दना करते रहें
आपमें संवाद -लय गढ़ते रहें
आप मेरी श्वांस बनकर आइये
आपमें ही देवता दिखते रहें।


मर्मस्पर्शन बात का भण्डार हो
प्रितिदर्शन का सहज संसार हो
खोज लें हम आपको हरदम यहाँ
स्नेहवर्षण का अमित विस्तार हो।


चाहतें होतीं अधूरी सत्य है
चाह बिन हम भी अधूरे सत्य हैं
चाहतें ही जिन्दगी की नींव हैं
चाह ही संसार का कटु सत्य है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


निशा अतुल्य

सुप्रभात
महिला दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं महिलाओं को,
गर्व करिए कि आप महिला हैं ।
सृष्टि की निर्मात्री हैं जहाँ खड़ी होती हैं वहीं अपना घर बना लेती हैं ।ऐसी विलक्षण  प्रतिभा की धनी महिलाएं को नमन है ।
      अपनी शक्ति को पहचानिए जिन दानवों का संगहार देव खुद नही कर पाए उसके लिए देवी का प्रारदुर्भाव किया ।
       जय हो गर्व कीजिये आप महिला हैं ।
💃🏻💃🏻💃🏻🤰🏻🤱🏻💃🏻💃🏻💃🏻


राजेंद्र रायपुरी

😊आयो रे होरी अब आयो😊


मन उमंग सबके अति छायो।
  आयो  रे   होरी  अब  आयो।
      प्रेम- प्रीत  हर  मन  गहरायो।
        आयो   रे   होरी  अब आयो।


चाहत मन  नभ  में  उड़ जाएॅ॑।
  उनको  भी   हम   रंग   लगाएॅ॑।
    जिनने  हमको   खूब   सतायो।
      आयो  रे    होरी   अब   आयो।


सजनी   बैठी    राह    निहारे।
  कब   आएॅ॑गे   साजन    प्यारे।
    फागुन  ने  मन  आग   लगायो।
      आयो   रे   होरी   अब   आयो।


बगिया   में     भौरें    मॅ॑डराएं।
  प्रेम-प्रीत    के    गीत   सुनाएं।
    अमराई       सगरी      बौरायो।
      आयो   रे   होरी   अब   आयो।


ब्रज   में   कान्हा   खेलें   होरी।
  रंग     लगाएं      राधा     गोरी।
    ग्वाल-बाल  सखियाॅ॑ सब धायो।
      आयो   रे    होरी   अब   आयो।


प्रेम-प्रीत   की   राह    यही   है।
  गले   मिलें   सब  चाह  यही  है।
    कटुता  ने   रंग   खूब   दिखायो।
      आयो   रे    होरी   अब    आयो।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"कोरोना वायरस"*
"नित-दिन होता मानव भयभीत,
आ न जाये-
कोरोना जैसा-वायरस।
छीन न ले जीवन से सुख शांति,
घट रहा पल पल-
जीवन में विश्वास।
अभी तक बनी नहीं दवा,
कहते है-सभी-
सुरक्षा ही है आस।
अपनी सभ्यता पर करें आस,
तुलसी-गलोए पर-
रखे विश्वास।
इनका नित दिन करें प्रयोग,
होगे नहीं भयभीत-
सुरक्षित रहेगे आप।
अपनी सभ्यता में करें अभिवादन,
दूरी रख करे बात-
तभी सुरक्षित रहेगे आप।
नित-दिन होता मानव भयभीत,
आ न जाये-
कोरोना जैसा वायरस।।"
ः           सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आनन्द कन्द भगवन तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं
शब्द न है पास मेरे फिर कैसे गुण गाऊं मैं


तुम आराध्य नहीं केवल जीवन रखवारे है
तुम्हीं सबसे बड़ा धन तुम्ही सबसे प्यारे है


पहचान तुमसे मेरी प्रभु तुम्ही आधार हो मेरे
तेरे शिवाय न कोई तुम्ही घर परिवार हो मेरे


हे बरसाने बारी अनुग्रह सदा सत्य पर रखना
हे मोहन की प्यारी चरणों दूर न कभी करना।


युगलछवि को नमन🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*विषय,,,,,,,,,,,महिला दिवस,,,,,,,,,*


*शीर्षक,,,,,नारी, शक्ति भक्ति ममता का प्रतीक*
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
*रचयिता,,,,  एस के कपूर  "श्री हंस"*
*पता,,,,,, 06 , पुष्कर एनक्लेव*,
*टेलीफोन टावर के सामने*,
*स्टेडियम रोड, बरेली  243005*
*मोब ,,,,,,9897071046*
*,,,,,,,,8218685464*


*विधा,,,,,,,,,मुक्तक माला*


*1,,,,,,,,,*
माँ का आशीर्वाद जैसे कोई
खजाना होता है।


मंजिल की   जीत का   जैसे
पैमाना होता है।।


माँ   की   गोद   मानो  कोई
वरदान  है  जैसे।


चरणों   में  उसके  प्रभु   का
ठिकाना होता है।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


अहसासों का अहसास मानो
बहुत   खास है माँ।


दूर होकर भी लगता  कि बस
आस  पास   है   माँ।।


बहुत खुश नसीब होते  हैं जो
पाते माँ का आशीर्वाद।


हारते  को  भी  जीता  दे  वह
अटूट  विश्वास है  माँ।।


*।।।।।।।।।।।3।।।*


अच्छा    व्यवहार     बेटीयों     से
निशानी  अच्छे   इंसान  की।


इनसे  घर की  बढ़ती  शोभा जैसे
उतरी परियाँ  आसमान की।।


बेटी  को भी दें  आप  बेटे   जैसा
घर  में  प्यार   और  सम्मान।


जान लीजिए    बेटियों  के  जरिये
ही आती रहमते भगवान की।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब।।।।9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


कालिका प्रसाद सेमवाल* *मानस सदन अपर बाजार* *रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*

*अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष*
**********************
*बेटिया वैदिक ऋचाएं होती हैं*
~~~~~~~~~~~~~~~~
*बेटियां हिमालय की चोटियां सी हैं,*
*बेटियां पतित पावनी गंगा सी हैं,*
*बेटियां प्रेरणा की मूरत होती हैं,*
*बेटियां समर्पण की सूरत होती है,*
*बेटियां प्रभात की किरण होती है,*
*बेटियां बासन्ती बयार होती है,*
*बेटियां जीवन की व्याख्या होती हैं,*
*बेटियां ईश्वर की  प्रार्थनाएं होती है,*
*बेटियां त्याग की खान होती है,*
*बेटियां कुल का गौरव होती है,*
*बेटियां संस्कृति की पोषक होती है,*
*बेटियां वैदिक ऋचाएं होती हैं,*
*बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी होती है,*
*बेटियां कुरान की आयतें होती हैं,*
*बेटियां गुनगुनी धूप सी होती हैं,*
*बेटियां वर्षा की फुहार सी होती हैं,*
*बेटियां गुलाब का फूल सा होती हैं,*
*बेटियां दक्षता का दीप होती हैं,*
*बेटियां जन्नत का नूर होती है,*
*बेटियां ईश्वर की विलक्षण रचना होती हैं,*
*आओ दे इनको संरक्षण,*
*करे इनका  अभिरक्षण।।*
~~~~~~~~~~~~
*कालिका प्रसाद सेमवाल*
*मानस सदन अपर बाजार*
*रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*
*पिनकोड 246171*


निधि मद्धेशिया कानपुर

स्त्री💐


हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


नतमस्तक समक्ष पिता के
फिर भी जिद पूरी कर लेती,
खुले मन से हारती हूँ
भाई के लिए बन दुर्गावती,
रहती माँ की सच्ची सखी,
हार जाती हूँ,  बेटी बनी,
सम्मान बचाने पति का 
हो जाती हूँ कभी सती,
संकट प्रिय के प्राणों पर हो
बन जाती हूँ सावित्री।
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


धारण किया गर्भ में
कौशल्या-यशोदा बनी और देवकी 
पुरुष तत्व बचाने ही 
कैकेयी-मन्थरा बनी,
पति, फिर आयी 
पुत्र के काम,
स्वीकार स्थान वाम,
युगों-युगों से समकक्ष पुरुष के
बन सत्यभामा गई युद्ध-भूमि
संग कृष्ण के,
अंगरक्षक तुम ही नहीं
अंगरक्षिका रही हर क्षण 
राधा बन बनी त्रिनेत्री। 
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


जीतने को किले
मुझको ही प्रथम किए,
कहलाई पंचाली,
हार की लाज बचाने जन्मी
पाँच पति वाली,
तुम्हारे छलावे से छली
तुम्हारे कलावे से बंधी,
पड़ोसी, रिश्ते और मित्र
पसंद नहीं जो जन
निभाती उनको मार कर मन,
सर्वश्रेष्ठ हूँ अभिनेत्री।
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


10:16
7/3/2020
निधि मद्धेशिया
कानपुर


 


डॉ.शैल चन्द्रा           रावण भाठा, नगरी

कविता-
         ' मेँ स्त्री हूँ '


मेँ स्त्री हूँ
नदी की तरह बहती हूँ
मुझे सागर नहीं बनना।
मेँ महीन रेत की कण 
जो करती नीड़ का निर्माण
मुझे चट्टान नहीं बनना।
मेँ हरी-भरी सुन्दर धरती
जो पालती पूरा विश्व
मुझे शून्य आसमान नहीं बनना।
 मेँ हूँ सीता ,द्रोपदी अहिल्या
जिनका किया तिरस्कार
ऐसे राम ,पांडव गौतम 
मुझे नहीं बनना।
मेँ वात्सल्य की कलश माँ हूँ,
 छलकाती हूँ स्नेह अमृत
मुझे पर्वत सा कठोर 
पिता नहीं बनना।
मेँ स्त्री हूँ
मेँ स्त्री ही रहना चाहती हूँ
मुझे पुरुष नहीं बनना।
          डॉ.शैल चन्द्रा
          रावण भाठा, नगरी


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली


विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः  भारत की स्वर्णिम धरा
भारत    की   स्वर्णिम   धरा , मानवता      शृङ्गार।
बुरी    नज़र     रखना   नहीं , सुनो     रे     गद्दार।।१।।


तजो    चाल    भष्मासुरी , पाओ     जीवन  दान।
शान्ति   सदय  माँ    भारती , महाशक्ति   तू  मान।।२।।


जन मन तन अर्पित वतन ,  नित   भारत जयनाद।
धीर   वीर   योद्धा    प्रखर , मत     फैला  उन्माद।।३।।


मातृभूमि   उन्नत   सबल , सदा    रहे    खुशहाल।
मातृ शक्ति   निर्भय    सबल , मददगार   बदहाल।।४।।


हो    किसान   उन्नत  वतन , हो जवान   जयगान।
शिक्षा   हो    सब  जन सुलभ , संविधान  सम्मान।।५।।


लोकतंत्र    विश्वास    हो, नित    ज़मीर  हो  साथ।
हर   सन्तति    माँ  भारती , बढ़े  प्रगति पथ  हाथ।।६।।


संकल्पित    विश्वास   मन , बढ़े  सजग    उत्थान।
मनुज     बने   नैतिक  प्रबल , विश्वासी   भगवान।।७।।


बने  सुयश  पथ  सारथी , जीवन   लघु  अनमोल।
अमर गीत     गाएँ   वतन , प्रीति  रंग  मन   घोल।।८।।


रोगमुक्त  जन  धन  वतन, द्वेष  विरत  जन  आम।
हों   सहिष्णु, पर   साहसी , विश्व  अमन    पैगाम।।९।।


रहे तिरंगा शान  जग ,  हरित  शौर्य   सच  शान्ति।
त्याग न्याय जन मन वतन , मिटे  वैर   मन भ्रान्ति।।१०।।


गंगा    यमुना   परम्परा , मधुरिम    स्वर्णिम   देश।
अविचल    हिमवत  भारती , दे    समरस   संदेश।।११।।


स्वच्छ प्रकृति खिलती धरा ,महके  वतन   निकुंज।
कूक सुखद मुस्कान मुख,कोकिल मिल अलिगुंज।।१२।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड

भोजपुरी होली 12- बड़ा डर लागे केरोनवा से |
रंगवा लगाइब न अबिरवा लगाइब |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
अबकी फगुनवा खेलब ना होली ये भौजी |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
गलवा ना छूअब ना अँचरा के रंगब |
ना हथवा मिलाईब फगुनवा से |
साली से खेलब ना सरहज से खेलब |
केकरा से खेलब हम होलिया ये भौजी |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
झारखंड मे खेलब ना बिहार मे खेलब |
दिल्ली मे खिल्ली उढ़ावे केरोनवा ये भौजी |
कान्हा रंग बरसावे बरसनवा मे |
सर्दी से बची की खांसी से बची |
बीमारी से बची की महामारी से बची ये भौजी |
केकेरो ना देहिया सटाइब जजनवा से |
घरवा ना खेलब बहरिया ना खेलब |
खेलब ना होलिया बहरिया ये भौजी |
रंगवा लगाइब खरीहनवा मे |
पुआ ना खाइब पकवनवा ना खाइब |
घोरी भंगिया मुहवा ना चढ़ाइब ये भौजी |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
ना हथवा मिलाईब फगुनवा से |


श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


भुवन बिष्ट                 रानीखेत जिला - अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

(आया रंगो का त्यौहार)
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।। 
खुशहाली आये जग में। 
अब आया रंगों का त्यौहार।। 
            रंग भरी पिचकारी से अब। 
            धोयें राग द्वेष का मैल।। 
            ऊँच नीच की हो न भावना। 
            उड़े अबीर लाल गुलाल।। 
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में। 
अब आया रंगों का त्यौहार।। 
             होली के रंग अबीर से।
             आओ बाँटें मन का प्यार।। 
             गुजिया मिठाई की मिठास से। 
             फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से। 
धोयें जग का अत्याचार।। 
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।। 
           खुशहाली आये जग में। 
           है आये रंगों का त्यौहार।। 
           बसंत बहार के रंगों से। 
           ओढ़े धरती है पीतांबरी।। 
ईष्या राग द्वेष को त्यागें। 
सीचें मानवता की क्यारी।। 
रूठे श्याम को भी मनायें। 
रंगों से खुशियाँ फैलायें।। 
            रंगों और पानी से सीखें। 
            झलक एकता की दिखलायें।। 
            मानवता का अब हो संचार। 
            बहे सुख समृद्धि की धार।। 
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।। 
खुशहाली आये जग में। 
अब आया रंगों का त्यौहार।। 
               .........भुवन बिष्ट 
               रानीखेत जिला - अल्मोड़ा (उत्तराखंड)


डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी लखनऊ

मुक्तक-1/2
प्रखर पुंज ये  दिव्य अनल से,यज्ञ सुहाता है ।
यजन धूम हो शुद्ध सात्विक,मन महकाता है ।
कुटिल एक ही चिंगारी कब,शोला बन जाये ,
मत भड़काओ अंतस में जो, राख  बनाता है ।


नेह  प्रेम  के  रिश्ते जो हैं,सदा  निभाता चल ।
आपस में मतभेद क्लेष हो,उसे मिटाता चल ।
चहुंँ ओर सजी वासंती ये, सरसे  फागुन  में,   
झूम उठी मादक अमराई,  मन तू गाता चल ।
                              डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी


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