डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"प्रीति की बरसात "


प्रीति की बरसात हो
दिन हो या रात हो।


जिन्दगी भर मुलाकात हो
ताउम्र बात हो।


जिन्दगी सँवर जायेगी
उर-कमलिनी खिल जायेगी।


मन में स्नेह की लालिमा होगी
सुहानी हरीतिमा होगी।


दिल में ममत्व का उत्सव होगा
रंगीन हाईवे पर महोत्सव होगा।


मन झूमेगा
सम्मान और श्रद्धा को चूमेगा।


मासूमियत मिटेगी
घृणा पिटेगी।


प्रेमामृता का वरदान होगा
शुचिता का यशगान होगा।


प्रीति का आशीर्वाद होगा
अघ वर्वाद होगा।


प्रितिरस में बह जाओ
अपनेआप में खो जाओ।


गोकर्ण बनो
अपर्ण बनो।


शुभ संवाद करो
प्रपंच से डरो।


संयमित वातावरण हो
प्रीति का संवरण हो
आवरण हो
शुद्ध उच्चारण हो
सदाचरण हो।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"तेरी याद मेँ..."


आप की याद हमेशा आती रहेगी
ख्वाहिश जिन्दा रहेगी
याद अजर अमर है
बेघर है
इसीलिए तो कोई सुनता नहीं है
कुछ गुनता नहीं है
जिसकी कोई निश्चित जगह न हो
उसका भला कौन हो
असहाय और निराश को कौन याद करता है
वह मौन फरियाद करता है
आँखों में आँसू हैं
हृदय पीपासू है।
आदमी ऊपर देखता है
सुपर को देखता है
नीचे देखने का अभ्यास कहाँ?
नीचे का उपहास यहाँ।
आदमी मरघट है
निघर्घट है
वह सम्मान का आदी हो चुका है
स्वयं स्वार्थवादी हो चुका है।
उसे किसी भी निरीह की याद नहीं आती है
पूंजीवाद की याद आती है
नैतिकता और मानवता उसकी परिधि में नहीं हैं
सुन्दरता उसकी उर-उदधि मेँ नहीं है।
किसी की याद को शायद ही कोई महत्व देता हो
उसके दिल की आवाज की शायद ही कोई सुनता हो।
प्रीति सरस है
मधुरस है
मधुरिम है
अप्रतिम है
परन्तु वह मूक और मौन है
भला उसकी भूख को समझता कौन है?
हमें किसी की याद मेँ खो जाने दो
सदा-सदा के लिए सो जाने दो।
अगले जन्म में देखा जायेगा
अपना खुद का संदेश पढ़ा जायेगा।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मेरी पावन मधुशाला"


ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र से ऊपर उठा हुआ प्याला,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई से बढ़कर मेरी हाला,
निराकार ओंकार सरीखा मेरा सर्वविदित साकी,
ब्रह्ममंडलाकार सदृश है मेरी पावन मधुशाला।


अंत्योदय की बातें करता रहता है मेरा प्याला,
अंतिम मानव के आँसू से बनी हुई मेरी हाला,
अंतिम मानव के संरक्षण हेतु खड़ा मेरा साकी,
दलित-पीड़ितों की शरणालय मेरी पावन मधुशाला।


मानव का नित वन्दन करता जाता है मेरा प्याला,
मानवता को जीवित रखने हेतु बनी मेरी हाला,
प्राणि मात्र की सेवा  के व्रत  का संकल्प लिये साकी,
सेवा को ही धर्म बताती मेरी पावन मधुशाला।


जिसे प्रकृति से सहज प्रेम है वही एक उत्तम प्याला,
सुघर प्रकृति की सुन्दरता सी मधु मादक मेरी हाला,
सदा प्राकृतिक छटा सरीखा अति मनमोहक साकी है,
सकल  प्राकृतिक विभव संपदा सी सुन्दर है मधुशाला।


मन -मंदिर की शिव प्रतिमा सा भव्य चमकता है प्याला,
शिवभावों से भरी हुई है मेरी दिव्य सुरभि हाला,
बना पुजारी मनमंदिर का करत आरती साकी है,
 मन -मंदिर  के शुभ सरवर सी मेरी पावन मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"चाहत"


चाह मन में आप का ही ध्यान हो
आप से ही बात नित मनमान हो
आप की बाहें पकड़कर बोल दें
आप ही आराध्य हो भगवान हो।


दूर जाना मत कभी बस पास रह
प्रेमगंगा बन हृदय में वास कर
ख्वाहिशें पूरी कहाँ बिन आपके
आप ही स्वर-साधना की राह बन।


आप की नित वन्दना करते रहें
आपमें संवाद -लय गढ़ते रहें
आप मेरी श्वांस बनकर आइये
आपमें ही देवता दिखते रहें।


मर्मस्पर्शन बात का भण्डार हो
प्रितिदर्शन का सहज संसार हो
खोज लें हम आपको हरदम यहाँ
स्नेहवर्षण का अमित विस्तार हो।


चाहतें होतीं अधूरी सत्य है
चाह बिन हम भी अधूरे सत्य हैं
चाहतें ही जिन्दगी की नींव हैं
चाह ही संसार का कटु सत्य है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


निशा अतुल्य

सुप्रभात
महिला दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं महिलाओं को,
गर्व करिए कि आप महिला हैं ।
सृष्टि की निर्मात्री हैं जहाँ खड़ी होती हैं वहीं अपना घर बना लेती हैं ।ऐसी विलक्षण  प्रतिभा की धनी महिलाएं को नमन है ।
      अपनी शक्ति को पहचानिए जिन दानवों का संगहार देव खुद नही कर पाए उसके लिए देवी का प्रारदुर्भाव किया ।
       जय हो गर्व कीजिये आप महिला हैं ।
💃🏻💃🏻💃🏻🤰🏻🤱🏻💃🏻💃🏻💃🏻


राजेंद्र रायपुरी

😊आयो रे होरी अब आयो😊


मन उमंग सबके अति छायो।
  आयो  रे   होरी  अब  आयो।
      प्रेम- प्रीत  हर  मन  गहरायो।
        आयो   रे   होरी  अब आयो।


चाहत मन  नभ  में  उड़ जाएॅ॑।
  उनको  भी   हम   रंग   लगाएॅ॑।
    जिनने  हमको   खूब   सतायो।
      आयो  रे    होरी   अब   आयो।


सजनी   बैठी    राह    निहारे।
  कब   आएॅ॑गे   साजन    प्यारे।
    फागुन  ने  मन  आग   लगायो।
      आयो   रे   होरी   अब   आयो।


बगिया   में     भौरें    मॅ॑डराएं।
  प्रेम-प्रीत    के    गीत   सुनाएं।
    अमराई       सगरी      बौरायो।
      आयो   रे   होरी   अब   आयो।


ब्रज   में   कान्हा   खेलें   होरी।
  रंग     लगाएं      राधा     गोरी।
    ग्वाल-बाल  सखियाॅ॑ सब धायो।
      आयो   रे    होरी   अब   आयो।


प्रेम-प्रीत   की   राह    यही   है।
  गले   मिलें   सब  चाह  यही  है।
    कटुता  ने   रंग   खूब   दिखायो।
      आयो   रे    होरी   अब    आयो।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"कोरोना वायरस"*
"नित-दिन होता मानव भयभीत,
आ न जाये-
कोरोना जैसा-वायरस।
छीन न ले जीवन से सुख शांति,
घट रहा पल पल-
जीवन में विश्वास।
अभी तक बनी नहीं दवा,
कहते है-सभी-
सुरक्षा ही है आस।
अपनी सभ्यता पर करें आस,
तुलसी-गलोए पर-
रखे विश्वास।
इनका नित दिन करें प्रयोग,
होगे नहीं भयभीत-
सुरक्षित रहेगे आप।
अपनी सभ्यता में करें अभिवादन,
दूरी रख करे बात-
तभी सुरक्षित रहेगे आप।
नित-दिन होता मानव भयभीत,
आ न जाये-
कोरोना जैसा वायरस।।"
ः           सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आनन्द कन्द भगवन तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं
शब्द न है पास मेरे फिर कैसे गुण गाऊं मैं


तुम आराध्य नहीं केवल जीवन रखवारे है
तुम्हीं सबसे बड़ा धन तुम्ही सबसे प्यारे है


पहचान तुमसे मेरी प्रभु तुम्ही आधार हो मेरे
तेरे शिवाय न कोई तुम्ही घर परिवार हो मेरे


हे बरसाने बारी अनुग्रह सदा सत्य पर रखना
हे मोहन की प्यारी चरणों दूर न कभी करना।


युगलछवि को नमन🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*विषय,,,,,,,,,,,महिला दिवस,,,,,,,,,*


*शीर्षक,,,,,नारी, शक्ति भक्ति ममता का प्रतीक*
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
*रचयिता,,,,  एस के कपूर  "श्री हंस"*
*पता,,,,,, 06 , पुष्कर एनक्लेव*,
*टेलीफोन टावर के सामने*,
*स्टेडियम रोड, बरेली  243005*
*मोब ,,,,,,9897071046*
*,,,,,,,,8218685464*


*विधा,,,,,,,,,मुक्तक माला*


*1,,,,,,,,,*
माँ का आशीर्वाद जैसे कोई
खजाना होता है।


मंजिल की   जीत का   जैसे
पैमाना होता है।।


माँ   की   गोद   मानो  कोई
वरदान  है  जैसे।


चरणों   में  उसके  प्रभु   का
ठिकाना होता है।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


अहसासों का अहसास मानो
बहुत   खास है माँ।


दूर होकर भी लगता  कि बस
आस  पास   है   माँ।।


बहुत खुश नसीब होते  हैं जो
पाते माँ का आशीर्वाद।


हारते  को  भी  जीता  दे  वह
अटूट  विश्वास है  माँ।।


*।।।।।।।।।।।3।।।*


अच्छा    व्यवहार     बेटीयों     से
निशानी  अच्छे   इंसान  की।


इनसे  घर की  बढ़ती  शोभा जैसे
उतरी परियाँ  आसमान की।।


बेटी  को भी दें  आप  बेटे   जैसा
घर  में  प्यार   और  सम्मान।


जान लीजिए    बेटियों  के  जरिये
ही आती रहमते भगवान की।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब।।।।9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


कालिका प्रसाद सेमवाल* *मानस सदन अपर बाजार* *रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*

*अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष*
**********************
*बेटिया वैदिक ऋचाएं होती हैं*
~~~~~~~~~~~~~~~~
*बेटियां हिमालय की चोटियां सी हैं,*
*बेटियां पतित पावनी गंगा सी हैं,*
*बेटियां प्रेरणा की मूरत होती हैं,*
*बेटियां समर्पण की सूरत होती है,*
*बेटियां प्रभात की किरण होती है,*
*बेटियां बासन्ती बयार होती है,*
*बेटियां जीवन की व्याख्या होती हैं,*
*बेटियां ईश्वर की  प्रार्थनाएं होती है,*
*बेटियां त्याग की खान होती है,*
*बेटियां कुल का गौरव होती है,*
*बेटियां संस्कृति की पोषक होती है,*
*बेटियां वैदिक ऋचाएं होती हैं,*
*बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी होती है,*
*बेटियां कुरान की आयतें होती हैं,*
*बेटियां गुनगुनी धूप सी होती हैं,*
*बेटियां वर्षा की फुहार सी होती हैं,*
*बेटियां गुलाब का फूल सा होती हैं,*
*बेटियां दक्षता का दीप होती हैं,*
*बेटियां जन्नत का नूर होती है,*
*बेटियां ईश्वर की विलक्षण रचना होती हैं,*
*आओ दे इनको संरक्षण,*
*करे इनका  अभिरक्षण।।*
~~~~~~~~~~~~
*कालिका प्रसाद सेमवाल*
*मानस सदन अपर बाजार*
*रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*
*पिनकोड 246171*


निधि मद्धेशिया कानपुर

स्त्री💐


हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


नतमस्तक समक्ष पिता के
फिर भी जिद पूरी कर लेती,
खुले मन से हारती हूँ
भाई के लिए बन दुर्गावती,
रहती माँ की सच्ची सखी,
हार जाती हूँ,  बेटी बनी,
सम्मान बचाने पति का 
हो जाती हूँ कभी सती,
संकट प्रिय के प्राणों पर हो
बन जाती हूँ सावित्री।
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


धारण किया गर्भ में
कौशल्या-यशोदा बनी और देवकी 
पुरुष तत्व बचाने ही 
कैकेयी-मन्थरा बनी,
पति, फिर आयी 
पुत्र के काम,
स्वीकार स्थान वाम,
युगों-युगों से समकक्ष पुरुष के
बन सत्यभामा गई युद्ध-भूमि
संग कृष्ण के,
अंगरक्षक तुम ही नहीं
अंगरक्षिका रही हर क्षण 
राधा बन बनी त्रिनेत्री। 
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


जीतने को किले
मुझको ही प्रथम किए,
कहलाई पंचाली,
हार की लाज बचाने जन्मी
पाँच पति वाली,
तुम्हारे छलावे से छली
तुम्हारे कलावे से बंधी,
पड़ोसी, रिश्ते और मित्र
पसंद नहीं जो जन
निभाती उनको मार कर मन,
सर्वश्रेष्ठ हूँ अभिनेत्री।
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


10:16
7/3/2020
निधि मद्धेशिया
कानपुर


 


डॉ.शैल चन्द्रा           रावण भाठा, नगरी

कविता-
         ' मेँ स्त्री हूँ '


मेँ स्त्री हूँ
नदी की तरह बहती हूँ
मुझे सागर नहीं बनना।
मेँ महीन रेत की कण 
जो करती नीड़ का निर्माण
मुझे चट्टान नहीं बनना।
मेँ हरी-भरी सुन्दर धरती
जो पालती पूरा विश्व
मुझे शून्य आसमान नहीं बनना।
 मेँ हूँ सीता ,द्रोपदी अहिल्या
जिनका किया तिरस्कार
ऐसे राम ,पांडव गौतम 
मुझे नहीं बनना।
मेँ वात्सल्य की कलश माँ हूँ,
 छलकाती हूँ स्नेह अमृत
मुझे पर्वत सा कठोर 
पिता नहीं बनना।
मेँ स्त्री हूँ
मेँ स्त्री ही रहना चाहती हूँ
मुझे पुरुष नहीं बनना।
          डॉ.शैल चन्द्रा
          रावण भाठा, नगरी


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली


विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः  भारत की स्वर्णिम धरा
भारत    की   स्वर्णिम   धरा , मानवता      शृङ्गार।
बुरी    नज़र     रखना   नहीं , सुनो     रे     गद्दार।।१।।


तजो    चाल    भष्मासुरी , पाओ     जीवन  दान।
शान्ति   सदय  माँ    भारती , महाशक्ति   तू  मान।।२।।


जन मन तन अर्पित वतन ,  नित   भारत जयनाद।
धीर   वीर   योद्धा    प्रखर , मत     फैला  उन्माद।।३।।


मातृभूमि   उन्नत   सबल , सदा    रहे    खुशहाल।
मातृ शक्ति   निर्भय    सबल , मददगार   बदहाल।।४।।


हो    किसान   उन्नत  वतन , हो जवान   जयगान।
शिक्षा   हो    सब  जन सुलभ , संविधान  सम्मान।।५।।


लोकतंत्र    विश्वास    हो, नित    ज़मीर  हो  साथ।
हर   सन्तति    माँ  भारती , बढ़े  प्रगति पथ  हाथ।।६।।


संकल्पित    विश्वास   मन , बढ़े  सजग    उत्थान।
मनुज     बने   नैतिक  प्रबल , विश्वासी   भगवान।।७।।


बने  सुयश  पथ  सारथी , जीवन   लघु  अनमोल।
अमर गीत     गाएँ   वतन , प्रीति  रंग  मन   घोल।।८।।


रोगमुक्त  जन  धन  वतन, द्वेष  विरत  जन  आम।
हों   सहिष्णु, पर   साहसी , विश्व  अमन    पैगाम।।९।।


रहे तिरंगा शान  जग ,  हरित  शौर्य   सच  शान्ति।
त्याग न्याय जन मन वतन , मिटे  वैर   मन भ्रान्ति।।१०।।


गंगा    यमुना   परम्परा , मधुरिम    स्वर्णिम   देश।
अविचल    हिमवत  भारती , दे    समरस   संदेश।।११।।


स्वच्छ प्रकृति खिलती धरा ,महके  वतन   निकुंज।
कूक सुखद मुस्कान मुख,कोकिल मिल अलिगुंज।।१२।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड

भोजपुरी होली 12- बड़ा डर लागे केरोनवा से |
रंगवा लगाइब न अबिरवा लगाइब |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
अबकी फगुनवा खेलब ना होली ये भौजी |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
गलवा ना छूअब ना अँचरा के रंगब |
ना हथवा मिलाईब फगुनवा से |
साली से खेलब ना सरहज से खेलब |
केकरा से खेलब हम होलिया ये भौजी |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
झारखंड मे खेलब ना बिहार मे खेलब |
दिल्ली मे खिल्ली उढ़ावे केरोनवा ये भौजी |
कान्हा रंग बरसावे बरसनवा मे |
सर्दी से बची की खांसी से बची |
बीमारी से बची की महामारी से बची ये भौजी |
केकेरो ना देहिया सटाइब जजनवा से |
घरवा ना खेलब बहरिया ना खेलब |
खेलब ना होलिया बहरिया ये भौजी |
रंगवा लगाइब खरीहनवा मे |
पुआ ना खाइब पकवनवा ना खाइब |
घोरी भंगिया मुहवा ना चढ़ाइब ये भौजी |
बड़ा डर लागे केरोनवा से |
ना हथवा मिलाईब फगुनवा से |


श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


भुवन बिष्ट                 रानीखेत जिला - अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

(आया रंगो का त्यौहार)
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।। 
खुशहाली आये जग में। 
अब आया रंगों का त्यौहार।। 
            रंग भरी पिचकारी से अब। 
            धोयें राग द्वेष का मैल।। 
            ऊँच नीच की हो न भावना। 
            उड़े अबीर लाल गुलाल।। 
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में। 
अब आया रंगों का त्यौहार।। 
             होली के रंग अबीर से।
             आओ बाँटें मन का प्यार।। 
             गुजिया मिठाई की मिठास से। 
             फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से। 
धोयें जग का अत्याचार।। 
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।। 
           खुशहाली आये जग में। 
           है आये रंगों का त्यौहार।। 
           बसंत बहार के रंगों से। 
           ओढ़े धरती है पीतांबरी।। 
ईष्या राग द्वेष को त्यागें। 
सीचें मानवता की क्यारी।। 
रूठे श्याम को भी मनायें। 
रंगों से खुशियाँ फैलायें।। 
            रंगों और पानी से सीखें। 
            झलक एकता की दिखलायें।। 
            मानवता का अब हो संचार। 
            बहे सुख समृद्धि की धार।। 
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।। 
खुशहाली आये जग में। 
अब आया रंगों का त्यौहार।। 
               .........भुवन बिष्ट 
               रानीखेत जिला - अल्मोड़ा (उत्तराखंड)


डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी लखनऊ

मुक्तक-1/2
प्रखर पुंज ये  दिव्य अनल से,यज्ञ सुहाता है ।
यजन धूम हो शुद्ध सात्विक,मन महकाता है ।
कुटिल एक ही चिंगारी कब,शोला बन जाये ,
मत भड़काओ अंतस में जो, राख  बनाता है ।


नेह  प्रेम  के  रिश्ते जो हैं,सदा  निभाता चल ।
आपस में मतभेद क्लेष हो,उसे मिटाता चल ।
चहुंँ ओर सजी वासंती ये, सरसे  फागुन  में,   
झूम उठी मादक अमराई,  मन तू गाता चल ।
                              डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी


दिनेश चंद्र प्रसाद "दिनेश" कलकत्ता

नारी दिवस 8मार्च के उपलक्ष्य पर
विषय- "नारी"
शीर्षक-"नारी तू महान है"
नारी तू महान है,
दोनों कुल की शान है ।
नारी तू नर की पहचान है,
नारी तू घर की वरदान है ।
तू चाहे तो घरती को जन्नत कर दे,
तू चाहे तो घर को स्वर्ग बना दे ।
तू चाहे तो दुनिया बदल सकती है,
तू चाहे तो नई सृष्टि रच सकती है ।
नारी तू सहन शक्ति की मूरत है,
नारी तू त्याग तपस्या की सूरत है ।
नारी तू समदर्शी हो,
नारी तू भविष्यदर्शी हो ।
कदम पड़ते जहाँ-जहाँ तेरे,
वो तीरथ हो जाते शाम सवेरे।
तुम गंगा हो तुम यमुना हो,
कृष्णा, कावेरी,ताप्ती,शिप्रा और नर्मदा हो।
दुनिया के लिए तुम जरूरी हो,
पर पुरुष बिन तुम सदा अधूरी हो।
"दीनेश"आज तेरी शत-शत वंदना गाये,
नारी की महिमा सारे जग को बताये ।
दिनेश चंद्र प्रसाद "दिनेश" कलकत्ता


अनन्तराम चौबे अनन्त            जबलपुर म प्र

         जल ही जीवन है


पेड़ पौधे इन्सान सभी का
जल से ही सबका जीवन है ।
पशु पक्षी हो या हो जानवर
जल के बिना नही जीवन है ।


जल के बिना प्यास नहीं बुझती
पानी बिन कोई फसल न ऊगती ।
पेड़ पौधे  हर जगह है ऊगते
जल के बिना न जीवित रहते ।


घर में जब कोई मेहमानआता है
पानी देकर ही स्वागत करते हैं ।
मेहमान को पानी मिले न पीने
जाने पर उन घर वालो को कोसते हैं ।


पानी की बूंद की कीमत समझो
चिड़ियाँ पानी बूंद बूंद पीती है 
एक एक बूंद पानी पीकर ही
वह अपनी प्यास बुझाती है ।


पानी की कीमत को समझो
वेबजह  रोड़ पर नहीं बहाओ ।
जिसको पानी नही मिलता है
कैसे वो  प्यास बुझाता है  ।


एक समय जब नल नही आते
घर में हाहाकार मच जाता है ।
पानी पीने जब नही मिलता है
पानी का मोल समझ आता है ।


जल से ही सबका जीवन है
जल की कीमत को पहचानों ।
जल के बिना न भोजन बनता है
जल से ही सबका जीवन चलता है ।


      अनन्तराम चौबे अनन्त
           जबलपुर म प्र
        9770499027
       


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


साफ-स्वच्छ निर्मल तन-मन जैसा चमक रहा मेरा प्याला,
अति सुरभित अति शुद्ध पावनी वाष्पीकृत सी है हाला,
सदा अपावन को पावन करनेवाला सा साकी है,
सहज पावनी देव-व्यवस्था जैसी मेरी मधुशाला।


अति प्रतिरोधी क्षमता से सम्पन्न सदृश मेरा प्याला,
  स्वस्थ प्रवल उर के आँगन में शुद्ध नीर सी है हाला,
अथक शक्तिशाली अभिकर्त्ता जैसा मेरा साकी है,
शक्तिवर्धिनी नित्य बलप्रदा जैसी मेरी पावन मधुशाला।


नहीं व्यथा जिसके जीवन में वह मेरा प्रसन्न प्याला,
हर्षोल्लासों से रचिता है मेरी हर्षरसा हाला,
पुष्प-कांट से ऊपर रहना सीखा है मेरा साकी,
महापर्व की दिनचर्या में नित्य जागती मधुशाला।


सरस रसामृत सदा निरखता रखता है पीनेवाला,
मद-मादकता प्रिय-प्रियता अरु दिव्य-दिव्यता  को हाला,
मादक रसमयता का दाता-दानी पावन साकी है,
बनी व्यवस्था मधुमयता की मेरी पावन मधुशाला।


घृणा-द्वेष का परित्याग कर तपा-तपाया है प्याला,
सबकी जिह्वा को आनन्दित करती रहती है हाला,
एक पैर पर उछल-कूद करता रहता मेरा साकी,
आकुल-व्याकुल-सानुकूल हो आना मेरी मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


ब्राह्मण संस्कृति के प्रतीक सा सदा चमकता है प्याला,
ब्राह्मी आसव जैसी औषधि जीवदायिनी सी हाला,
ब्रह्म सरीखा त्रय-लोकी सम दृश्यमान मेरा साकी,
ब्रह्मलोक से आच्छादित है मेरी पावन मधुशाला।


सत्व धर्म का पालक जैसा अति सात्विक निज का प्याला,
सात्विकता की मादकता से ओत-प्रोत मेरी हाला,
सत्युग धर्म कर्म से भूषित मेरा सतमय साकी है,
सात्विक शाकाहार सदन सी मेरी पावन मधुशाला।


सत्य पंथ के संकेतों को बता रहा मेरा प्याला,
सत्यपन्थ की अति दीवानी है मेरी सच्ची हाला,
सत्यपंथ के स्वयं पथिक सा घूम रहा मेरा साकी,
सच्चाई की निज बाहों में खेल रही है मधुशाला।


सुन्दर मोहक सुखद प्रथा का वाहक है मेरा प्याला,
उपयोगी कल्याणी भावों से निर्मित मेरी हाला,
अमर प्रथा का शास्त्र प्रणेता मेरा अनुपम साकी है,
दिव्य प्रथा की सहज प्रचारक मेरी पावन मधुशाला।


दिनकर बना खड़ा दिखता है मेरा ज्ञान सदृश प्याला,
अति प्रकाश की पुंज सरीखी है आलोकित मम हाला,
बन प्रकाशमान चमकीला थिरक रहा प्रिय साकी है,
बनी सौर -मण्डल -आभा सी चमक रही है मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"जल रहा है देश"


जल रहा है देश यह क्या हो रहा,
कौन विष की वेलरी को बो रहा?


दल विभाजित कर रहे हैं देश को,
फूँकने को हैं खड़े परिवेश को।


स्वार्थ के मैले वसन को पहन कर,
हिंस्र बन बदनाम करते वेश को।


भूख सत्ता की लगी है जोर से,
 चाहते सत्ता पलटना शोर से,
पागलों सा पलटते हर बात को,
घेरते घिर जा रहे चहुँओर से।


अर्थ अरु सम्मान की है भूख इनको सालती,
कामना की कोख इनको पालती,
बेशरम इंसान इनका नाम है,
 चाह इनको कुपित मन में ढालती।


कायरों का ही वेश है परिधान है,
अति हताशा बन गयी पहचान है,
जी रहे हैं जिन्दगी खुदगर्ज बन,
मर रहे हर पल पतित इंसान हैं।


राष्ट्र को ही तोड़कर सुख चाहते,
राष्ट्र का की कत्ल करना जानते,
राष्ट्र से इनका नहीं मतलब है कुछ,
राष्ट्र  को पीने का मकसद मानते।


मर गयी वैचारिकी सद्भावना,
हो रही अन्याय की ही वन्दना,
खुद रही नफरत की खाईं आज है,
हो रही इंसानियत की निन्दना।


एक केहरि को गिराने के लिये,
एक गौरव को झुकाने के लिये,
संगठित होते यहाँ गीदड़ सभी,
एक सुन्दर छवि मिटाने के लिये।


नीचता की सरहदों को पार कर,
सुन्दरम की भावना को मार कर,
चाह मन में खुद दिखें नित सुन्दरम,
देव का प्रतिकार कर ललकार कर।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती वंदना"


माँ सरस्वती की कृपा बरसे नित्य अनन्त।
दिव्य भावमय बन बहें माताश्री जिमि सन्त।।


मायामुक्त सहज गरिमा हो।नित्यानन्द परम मगिमा हो।।
लिखने-पढ़ने की प्रेरक हो।क्रियाशील तुम उत्प्रेरक हो।।
कृपदायिनी वृष्टि नित्य कर।सुन्दर सात्विक सृष्टि रचा कर।।
बनो सदा खुशियों का सागर।हे दयालु माँ हे करुणाकर।।
भक्तहृदय की तुम शोभा हो।सकल संपदा की आभा हो।।
ज्ञान समझ चिन्तन पावन हो।विज्ञानी ध्यानी भावन हो।।
सत्यम शिवम सुन्दरम छवि हो।परम प्रकाशमान प्रिय रवि हो।।
गायन विद्या की दाता हो।शुभ गीतामय प्रिय माता हो।।
स्वच्छ दिव्य मन कर दो माता।हंसवाहिनी हे शिव ज्ञाता।।
बने मनुज तेरा ही सेवक। नैया पार करो हे खेवक।।


माँ सरस्वती शारदा का हो नित यशगान।
अद्वितीय माँ ज्ञानदा का ही हो नित ध्यान।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


    डा.नीलम अजमेर

*मैं नारी हूँ*


मैं शिवी,मैं रति,मैं दूर्गा
महाकाली हूँ
मैं वाणी-वाग्देवी,सृष्टा की
सहगामिनी हूँ


महामाया मैं,मैं सावित्री
मैं कल्याणी हूँ
मैं अन्नपूर्णा,मैं कात्यायनी
मैं भवानी हूँ


हाँ मैं नारी हूँ
असूरों की संहारिणी
देवाधिदेवों की जननी,
रक्षादायिनी हूँ मैं


मैं नीर,मैं अगन,मैं
मदमाती पवन हूँ
मैं धरित्री,मैं ही अनंत
शुन्याकाश हूँ


मैं श्रद्धा,मैं कामना,मैं ही
पीयूष हूँ
रचनाकार की अनुपम कृति मैं,मैं जग जननी हूँ


हाँ नारी हूँ मैं
पंचभूत तत्व-निरुपा
प्रकृति की अनुपम
उपमा हूँ मैं


मैं प्रीत की प्रतिरुपिणी
करुणा की प्रतिच्छाया मैं
हर्ष निनादिनी भी मैं हूँ
मैं ही कण-कण व्यापिनी हूँ


दिवस की उजियारी सविता
तारकभरी रजनी हूँ मैं
कलकल नाद करती सरिता
मादक मदभरी मदिरा हूँ


हाँ नारी हूँ मैं
सार तत्व रसधारिणी
मदमस्त ,मनमोहक
महक हूँ मैं


मनु की श्रद्धा मैं  हूँ 
मैं ही मनु-मानस इड़ा
सम्मोहिता स्वर्णमृग की सीता मैं,मैं ही सतीत्व की प्रतिका हूँ


मैं सृष्टि संचलिका
मैं सहगामिनी हूँ
मैं लास्या नर्तकी
मैं ही संहारिका हूँ


हाँ मैं नारी हूँ
जग से जीती
पर अपनों से
हारी हूँ मैं ।


      डा.नीलम


संजय जैन (मुंबई)

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरा विशेष लेख ।
शीर्षक *नारी जिद्द*


साथियो आज एक ऐसा विषय को लेकर आपके सामने आया हूँ। जिस पर हर इंसान एक दम से वोना हो जाता है। उसे अच्छे बुरे का ज्ञान होते हुए भी  वह असहाय सा दिखता है। और ये विषय है नारी की जिद्द ? बड़े बड़े विद्धमान लोग भी इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिये देने से कतराते है। क्योकि उन्हें भी नहीं पता की क्या कुछ हो सकता है, इस विषय के सन्दर्भ ? 
परन्तु इसका सही उत्तर हमारे मां बाप और घर के बड़े बूढ़े बड़ी ही सरलता से इस समस्या को सुलझा देते है। तभी तो एकल परिवार की प्रथा हमारे हिंदुस्तान में कायम रही। परन्तु समय के साथ लोग पढ़ लिखकर आधुनिकता की आंधी में तो बाहते  चले गए। परन्तु व्यवहारिक और सामाजिक ज्ञान को छोड़ते गए, क्योकि ये सब बाते हमारे वर्त्तमान पाठ्यक्रमों में नहीं है। ये सब तो अनुभव और समाज में रहते हुए अनपढ़ लोग भी बहुत ही अच्छे तरीके से सुलझा लेते है। परन्तु आज की पीढ़ी ये सब नहीं सुलझा पाती।और वो पत्नी की हर जिद्द को बिना सोचे समझे पूरी करते रहते है। तो क्या हम ऐसे लोगो को शिक्षित कहेंगे या उन लोगो को जिन्होंने बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटी से कोई भी डिग्रियां नहीं ली .......? परन्तु हर समस्या का समाधान उन लोगो के पास होता था।
एक  परिवार की ये छोटी सी घटना आप को बताना चाहा रहा हूँ। एक अनपढ़ माँ ने अपने बेटे को उसके बाप का साया सिर पर न होते हुए भी तमाम कष्टों को सहते हुए, पढ़ा लिखाया और इस काबिल उसे बनाया की लोग उसे बहुत ही इज्जत और आदर की नजरो से देखने लगे।बेटे ने भी अपनी माँ को देखते हुए मेहनत लगन से उच्च शिक्षा ग्रहण करके अपनी माँ को समाज और अपने गांव में सम्मान दिलाया। परन्तु इस हँसे परिवार में जब उथल पुथल जब मच गई जब बेटे ने अपनी पसंद की एक उच्च शिक्षित लड़की से शादी का प्रस्ताव मां के सामने रखा, और मां ने अपनी स्वीकृति दे दी और दोनों की शादी हो गई। बेटा अपनी मां को बहुत पूजता था, और हर बात उनसे शेयर करता था, की आज आफिस में क्या कुछ हुआ और मां भी कभी उसे सत्य और असत्य की परिभाषा समझा देती थी ताकि वो कभी गलत दिशा में न भटके। अब जब घर में एक नया सदस्य शामिल हुआ तो उसे भी इस मंत्रिणा में मां ने शामिल होने के लिए बहु को भी कहाँ। परन्तु उच्च शिक्षित बहु को ये सब पसंद नहीं आता था, और वो अपने दूसरे मनोरंजन साधनो में अपने आप को व्यस्त रखती थी। परन्तु मां बेटा अपनी आदत के अनुसार ही रोज चर्चा करते रहे। ये बात बहु को अब चुभने लगी, क्योकि वो इस में शामिल नहीं होती थी। एक दिन घर में खाना खाते समय पत्नी ने एक सवाल पति से किया की मानो की एक नदी में और माँ डूब रहे  है, तो तुम किस को पहले बचाओगे ? पति ने इस प्रश्न को हंसी में टाल दिया। परन्तु नारी की जिद्द तो जिद्द होती है न। इस प्रश्न का उसने उत्तर न देने के कारण हँसता खिल खिलाता परिवार में कलह होने लगी। बेटा इस प्रश्न का उत्तर क्या दे ? मां अनपढ़ होते हुए भी बहुत समझदार थी। जबकि उसे तैरना नहीं आता था, परन्तु घर की कलह को मिटने के लिए माँ ने तैराकी ६० साल की उम्र में सीखना शुरू किया और १५ दिनों में सिख गई। बेटा को अब समझ आ गया की मां ने ऐसा क्यों किया ?
पत्नी अपनी जिद्द पर अड़ी हुई थी और बार बार उत्तर देने को कहती अपने पति को। एक दिन पति ने उत्तर दिया तो आप सब सुनकर अचंभित रह जाओगे। बेटे कहा देखो प्रिये जब इस तरह की परस्थिति आएगी तो मां तो तैरकर नदी से निकल जाएगी और मुझे और तुम्हे तैरना नहीं है आता तो तुम्हारा हाल क्या होगा ये तुम ......समझ सकती हो। ये बात सुनकर बहु की जो हालत हुई, उसके बाद उसने कभी भी अपने परिवार में कोई भी ऐसा काम नहीं किया और रोज की बातचीत में अपने को भी शामिल करके अपनी आधुनिकता वाली आदत को बदलकर एक सभ्य और अच्छी पत्नी और बहु का फर्ज अदा किया। दोस्तों इसलिए हमारे ऊपर हमारे बड़े बूढ़ो का हाथ, यदि सर पर रहेगा तो कभी भी परिवार टूट नहीं सकते है। और न ही कभी बिखर सकते है। कहते है न बंद मुट्ठी लाख की और यदि खुल गई तो खाक की। इसलिए हम माँ बाप से अनुरोध करते है की अपने बच्चो में शिक्षा के साथ संस्कार और व्यवाहरिक ज्ञान भी दे। ताकि वो अपने जीवन में कभी भी गलत दिशा में न भटकेंगे।
 *अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं  को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।*
करता हूँ नारी को 
दिल से प्रणाम।
कितना करती है
निस्वार्थ भाव से।
परिवार की सेवा
और उसका संचालन।
न कोई पैसा 
और न कोई छुट्टी।
फिर भी लगी रहती
तन मन धन से सदा।।



जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
07/03/2020


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली

*दुआयें प्रभु का मिला वरदान*
*हों जैसे।।।।।मुक्तक।।।।।।।*


दुआयें   लेकर   चलो   कि
बहुत  काम  देती   हैं।


मिट जाती  हस्ती फिर  भी
दुआयें तमाम देती हैं।।


दुआयें तो   मानो  प्रभु  का
मिला वरदान हों जैसे।


जब  लग  जाये  ठोकर  तो
दुआयें  थाम  देती  हैं।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


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