"श्री प्रीति महिमामृतम"
जीवन की है संपदा प्रीति अमर बेजोड़।
इस शुभकामी तत्व से हर मानव को जोड़।।
प्रीति रसामृत सरस स्वभाऊ।छोड़त सुन्दर सुखद प्रभाऊ।।
यह जीवन का मूल मंत्र है।दिल से दिल का स्नेह तंत्र है।।
इसमें ऊर्जा अमित अपारा।इससे बनता जग अति प्यारा।।
जिसके उर में प्रीति वृष्टि हो।वह पा लेता मधुर दृष्टि को।।
जहाँ प्रीति का याचन होता।मनोहारिणी वाचन होता।।
अदा विखेरत प्रीति सुन्दरम।प्रकृति जागती बनी मनोरम।।
शुद्ध प्रीति ही स्वर्ग समाना।वैभव मिलता बहु मनमाना।।
करो प्रीति का नित सम्माना।हाथ जोड़कर कर नित ध्याना।।
वितरित करते रहना नियमित।सत्पात्रों को देना निश्चित।।
यह संयम की सुन्दर भाषा।सुखमय जीवन की यह आशा।।
हो जाता जीवन आनंदित।प्रीति प्रियतमा हो जब वंदित।।
जीवों को बस प्रीति चाहिये।मादक अमृत गीति चाहिये।।
प्रीति रसामृत बरसाओ नित।लक्ष्य यही बस हो सबका हित।।
सुन्दर सावन की प्रतीति हो।मृदु भावों से सहज प्रीति हो।।
प्रीति-दिवाकर बनकर जीना।दे प्रकाश सबके उर रहना।।
नहीं दर्प की जगह बनाओ।सबके दिल में रच-बस जाओ।।
प्रीति करो संसार से सबके उर में पैठ।
करो चाकरी प्रीति की कोमल मन बिन ऐंठ।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801