रीतु प्रज्ञा                           दरभंगा, बिहार

गीत  
फूल सजाकर इन अंगों में  ,
                          सजनी लगे सजीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
                          लगती बड़ी रसीली हो ।।


मीठी लगती तेरी बोली ,
  तू है सबकी हमजोली ।
    रसिक भाव की बनी स्वामिनी ,
      मन मति की निश्छल भोली ।।
.......संग सहेली झूमझूम कर,
          लगती छैल  ,छबीली हो ।
             रंग भरी पिचकारी लेकर,
               लगती बड़ी रसीली हो ।।


आयी है तू लेकर टोली ,
  मस्ती की होगी होली ।
    हर मनसूबे अब हों पूरे ,
      खा लें हम भांग नशीली ।।
       इठलाती सदा हंँसी देकर,
          लगती बड़ी  हठीली हो ।
           रंग भरी पिचकारी लेकर,
             लगती बड़ी रसीली हो।।


खुशियों से भर  दो तुम झोली ,
आँखों से मारो गोली ।
  तुम हो जाओ मेरे प्रियतम ,
   आज सजे सपने डोली ।।
     हाथ अपने सारंगी लेकर ,
       गाती बड़ी सुरीली हो ।
         रंग भरि पिचकारी लेकर,
           लगती बड़ी रसीली हो।।



                ------   रीतु प्रज्ञा
                          दरभंगा, बिहार


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"होली आयी है"*(ताटंक छंद गीत)
****************************
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत $$$, युगल पद तुकांतता।
****************************
*संजोकर है साथ रंग को,
अब की होली आयी है।
मादक वासंती खुशियों की,
झोली भर भर लायी है।।


*धरती झूमे,अंबर झूमे,
झूम उठी हर डाली है।
अमुआ लहके,महुआ महके,
शोभित किंशुक लाली है।।
द्विजगण गाते गीत फागुनी,
सृष्टि सकल हर्षायी है।
मादक वासंती.........।।


*जीवन की धुन अनुरागित हो,
निजपन भरी ठिठोली हो।
कटुतापन छल-छद्म नहीं हो,
प्रेम भरी हर बोली हो।।
मन मृदंग की धुन में थिरके,
प्रीति-रीति हरियायी है।
मादक वासंती...........।।


*तन मन सब का भीग गया है,
भीगत कुर्ता-चोली है।
महक उठी है मन-बस्ती में,
जीवन की रंगोली है।।
राग-द्वेष तज हृदय मिला लो,
'नायक' होली आयी है।
मादक वासंती...........।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली

❤️होली की शुभकामना❤️
दिनांकः ०९.०३.२०२०
वारः सोमवार
विधाः गीत(कविता)
शीर्षकः होली आयी है
होली   आयी   है   आयी  है   होली    आयी   है,
सब   खुशियों     रंगों   की  थाल    सजायी    है। 
शान्ति प्रेम सौहार्द्र आपसी भेंट सजाकर लायी है,
अपनापन  मानवता  का  संदेश  सुनाने आयी है। 
होली आयी है ....
जाति पाति और ऊँच नीच का भेद मिटाने आयी है,
घृणा ,द्वेष छल कपट होलिका आग जलाने आयी है।
अंधापन कट्टर  धार्मिकता  सद्भाव जगाने  आयी  है,
सद्गुरू या भगवान कहो या गॉड ख़ुदा रंग लायी है।
होली आयी है ....
रहें सभी सुख  चैन  प्रेम से  अलख जगाने आयी हूँ,
होली हूँ हर सभी गमों को मुस्कान अधर पे लायी हूँ।
रोग शोक मद लालच सबको आग जलाने  आयी हूँ,
दीन धनी का भेद भुलाकर रंगोली  बन मैं  छायी हूँ।
होली आयी है ....
होली  हूँ  सब  भेद  भुलाकर  गले  मिलाने आयी  हूँ,
पीला लाल गुलाबी हरितिम सतरंग बनी  मैं आयी हूँ।
शान्ति वतन जन मन सुरभित प्रेम चमन बनआयी हूँ, 
सद्भावन समरस मनभावन रिपुदलन कराने आयी हूँ।
होली आयी है ....
हिंसा दंगा रोष विनाशक  मन घाव मिटाने  आयी हूँ ,
त्याग शील गुण कर्म  मधुरतम रंग लगाने आयी  हूँ।
शिक्षा दीक्षा सर्वसुलभ युवजन  प्रेरक बन छायी  हूँ,
राष्ट्र भक्ति एकत्व भाव मन प्रीति  रंग  बन आयी हूँ।। 
होली आयी है ....
दान मान सम्मान  सर्वजन समभाव  राष्ट्र में लायी हूँ,
होली हूँ नैतिक सम्पोषक प्रेम शान्ति रंग बरसायी हूँ।
सबल बने निर्भय नारी सब सम्मान जगाने  आयी हूँ,
रंगों की होली महापर्व वसुधैव कुटुम्ब भाव मैं लायी हूँ।
होली आयी है ....
आओ हम सब मिलें साथ में खेलें रंग रंगोली  होली,
गाएँ झूमें फाग राग हम मधुरिम  रास  रचाएँ  टोली।
गले मिलें सब भेद भुला हम दें बधाईयाँ  मृदु बोली,
लगे लाल गुलाल गाल पे  साजन सजनी हमजोली।
होली आयी है .... 
गुंजे चहुँदिशि गीत जोगीरा सर र र होली मन रंगरसिया,
झूमें मधुवन साथ गोपियाँ  बजाए राधाकृष्ण   मुरलिया।
भाँग पान मदमस्त प्रेम में झूमें सियराम  धाम अवधिया,
फूल वृष्टि काशी रंगीली सज मंगल विश्वनाथ मनवसिया।।
होली आयी है .... 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


डाॅ. बिपिन पाण्डेय

(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर) दोहा संग्रह स्वांतः सुखाय से 


बेटी घर की शान है, बेटी सृष्टि स्वरूप।
बेटी घर को दे रही,देखो रूप अनूप।।1।।


पूज  रहे  जो  देवियाँ,  बेटी  देते  मार।
नीच अधम वे हैं मनुज,उनको है धिक्कार ।।2।।


माँ पत्नी भाभी बहन, सब बेटी के रूप।
वही  ग्रीष्म में छाँव है, वही शीत की धूप।।3।।


नहीं  बेटियों  से  रहा, कोई  क्षेत्र  अछूत।
फिर क्यों रोते हैं अधम,जपें नाम बस पूत।।4।।


दुश्मन के सम्मुख खड़ी, होती सीना तान।
सेना में  भर्ती  हुई, बना  रही  पहचान ।।5।।


अंतरिक्ष में  बेटियाँ भरती  आज  उड़ान ।
बन कुल गौरव पा रहीं, देखो अब सम्मान ।।6।।


मना रहा महिला दिवस,आज सकल संसार।
सब महिलाओं को मिले,उनका हर अधिकार।।7


अधिकारों के बिन कभी,किसका हुआ विकास।
आजादी  से  सब  रहें ,फैले  जगत  उजास।।8


अपने हक के साथ सब,रहें कर्म में लीन।
पुरुष वर्ग समझे नहीं,महिलाओं को दीन।।9


सबके अपने कर्म हैं, सबका अपना ज्ञान।
निश्चित कर व्यवहार को,मत बनिए नादान।।10


करें नियंत्रित हम जिसे,वही जगत आधार।
आदि शक्ति के रूप में,पूज रहा संसार।।11


नारी के कारण सतत,चलती है यह सृष्टि।
भोग्यवस्तु समझें नहीं,बदलें अपनी दृष्टि।।12


जिससे पाई जिंदगी,जिससे सीखा ज्ञान।
अब करता है कौन उस,नारी का सम्मान।।13


डॉ सरोज गुप्ता सागर (म प्र)

होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*सत्ताकेंद्रों केअधिपतियों ने ,बड़े बड़े बोलों, औ कटु उद्गारों से । 
योगक्षेम विनष्ट कर , जन-मानस में अराजकता का लावा बिखरा दिया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*हिन्दू मुसलमान,जन-समाज को भ्रमित कर ,मानवता के अरमानों को पथभ्रष्ट कर दिया ।
बौरायेआम्र विपिन, सौरभ सने उपवन,कोयल की अलाप को अनसुना कर दिया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*जन-धन विभीषिका, खून खराबे के बीच, होली के रंग को बदरंग कर दिया।
किसी की दुकान जली, किसी का मकान जला,मां ने अपना लाल खोया ,प्रियतमा का सिंदूर छिन गया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*छायी है बहार ,चहुंओर बासन्तिक छटा ,क्रूर कारनामों ने मौसम के मिजाज को बदल दिया।
समाज और देश में, एकता की बात कैसे करें, पग-पग पर क्रूर कंस, कौरवों ने घेर लिया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
डॉ सरोज गुप्ता सागर (म प्र)


 


यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷       भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग



विषय🥀 होली🥀



🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂


नारी की कहीं मान नहीं,
गली द्वार लगी बोली है।
शर्म खोये हैं शैतानों,
कैसे कहूँ यश होली है।।


🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃


सरहद में सेना को देखो,
पीठ में चलती गोली है।
जब तक मरे नहीं आतंकी
कैसे कहूँ यश होली है।।


🦑🦑🦑🦑🦑🦑🦑🦑


काट रहें हैं पेड़-पौधे,
तरसी दुल्हन को डोली है।
लाश चीता को तरस रही,
कैसे कहूँ यश होली है।।


🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥


ब्यर्थ पानी बहा रहे हैं,
प्यासों की खाली झोली है।
संचय नीर के करें नहीं,
कैसे कहूँ यश होली है।।


💦💦💦💦💦💦💦💦


बैर घृणा है दुनिया में,
प्यार की कहाँ ठिठोली है।
है नफरत जात-पात ऊंच-नीच,
कैसे कहूँ यश होली है।।


😡😡😡😡😡😡😡😡


मांग में सिंदूर है नहीं,
नहीं माथ भरी रोरी है।
टांग दिख रहे फटे वस्त्र,
कैसे कहूँ यश होली है।।


💃💃💃💃💃💃💃💃


दारू गांजा नशा खातिर,
कतार में लगी ठोली है।
देकर दूध गाय मर रही,
कैसे कहूँ यश होली है।।


🐄🐄🐄🐄🐄🐄🐄🐄


गाड़ी फटाके खान धूआँ,
बनकर उड़ी रंगोली है।
साँस खरीद कर जीते लोग,
कैसे कहूँ यश होली है।।


💨💨💨💨💨💨💨💨



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़ छग)


*किसी से कम नहीं*
 (मनहरण घनाक्षरी)
 """""""""""""""""""""""""
वो किसी से कम नहीं,
करमों   में  कम  नहीं,
देखो  नित  जल  रही,
      मरती ही आई है।
👧🏻🔥
पत्नी-बेटी - मां-बहन,
करते    जुल्म   सहन,
कहां  हमारा  सम्मान,
     सहती ही आई हैं।
💫👸🏻
उठो  भारत  की नारी,
तुमसे   दुनियां   सारी,
बनों  झलकारी   बाई,
        कदम उठाई हैं।
🏋‍♀💐
अत्याचार मिटाने  को,
तलवार    उठाने   को,
काली    बनकर   हम,
     साहस दिखाई हैं।
🌸🇮🇳



                 *******


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"महिला दिवस"


नारी, तुम कौन हो?
क्यों मौन हो?


तुम आधार हो
अथवा निराधार हो?


तुम्हें किसने बनाया है?
किसने सजाया है?


तुम अनमोल हो
या कि मीठे बोल हो?


आदि हो या अन्त
अथवा अनादि और अनन्त?


तुम रूपसी हो
अथवा वेवशी हो?


तुम अमर सफर हो
अथवा लाचार बेघर हो?


तुम जीवनदात्री हो
या अंधयात्री हो?


तुम सर्वगुणसम्पन्ना हो
अथवा विशुद्ध विपन्ना हो?


तुम दिन हो या रात
अथवा दिन-रात?


तुम भोग्या हो
या परम सुयोग्या हो?


तुम निरापद हो
अथवा संदेहास्पद हो?


तुम सकल संपदा हो
या आंशिक /पूर्ण विपदा हो?


तुम खुशी या गम हो
अथवा आगम और निर्गम हो?


तुम धर्म अर्थ काम और मोक्ष हो
अथवा निर्जीव परोक्ष हो?


तुम शान्त रस हो
अथवा अशान्त अपयश हो?


निर्गुण निराकार हो
या सगुण विकर हो?


तुम सहज सरल निश्छल प्रीति हो
अथवा  असहज क्लिष्ट छल-नीति हो?


तुम औदार्य हो
अथवा कौठार्य हो ?


तुम सद्गति हो
अथवा दुर्गति हो?


तुम सत्यम शिवम सुन्दरम की परिभाषा हो
या कठोर निराशा हो?


तुम पुरुषजनित हो
अथवा स्वरचित-मातृरचित हो?


नारी!तुम सर्व हो
सृष्टि का महान पर्व हो।


तुम माया और दाया हो
नैतिकता की दैवी काया हो।


तुम अविनाशी अनन्त हो
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की स्त्रीवाचक कंत हो।


तुम परमेश्वर और परमेश्वरी हो
उमा माहेश्वरी हो।


अर्धनारीश्वर हो
सचमुच में शिवशंकर हो।


तुम पुरुष की शिक्षा हो
वैराग्य की दीक्षा हो।


तुमें कोटिशः प्रणाम करता हूँ
सम्पूर्ण नारी के स्वाभिमान का सम्मान करता हूँ।


महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


 


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


 एक रंग में रंगा हुआ है आदि काल से प्रिय प्याला,
एक भाव मादकता सुरभित मधु-रंगी मेरी हाला,
एक आचरण प्रेम आचरण दिव्य रंग है साकी का,
एक रंग बहु-रंग समाहित स्वेत-सत्व-शिव मधुशाला।


बड़े-बड़े विद्वान धरा पर किन्तु न समझे हैं प्याला,
गूढ़ रहस्यों के ज्ञाता भी जान न पाये मृदु हाला,
वेद-पुराणों के मनीषियों की मेधा में नहिं साकी,
सर्वज्ञानसम्पन्न स्वयं में शिव-स्वरचित मधु मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


प्रेम पदारथ एक तुम महा धनिक शिव खान।
सकल भुवन की नायिका ज्ञान मान भगवान।।


प्रेम -पीयूषी ज्ञान-अम्बरा।भक्तिभावनी शुभ्र यश-धरा।।
मंत्र सुमंत्र सुयन्त्र सुजानी।महा जननि जानकी भवानी।।
पथिक शिरोमणि अथ-इति-मुक्ता।
ज्ञान गगन सिद्धान्त प्रवक्ता।।
चिन्तन -परा पारलौकिकमय।महामण्डलाकार सर्वमय।।
दिव्या महा विद्य शुभ विदुषी। पद्माकरणी मोह-रूपसी।।
ध्यान धरम धात्री ध्याता धन।चंद्रवदनि  चतुरा-चित-चन्दन।।
सकलवाहिनी हंस विशेषी।ज्ञान धुरंधर विज्ञ अशेषी।।
प्रीति भक्ति नीति दे माता।वीणापाणी ग्रँथविधाता।।


करो कृपा हे माँ सदा एक तुम्हारी आस।
अपने बालक को रखो माँश्री अपने पास।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


कलुषित-दूषित क्रिया विरोधी आज बना मेरा प्याला,
गंदे भावों के विरुद्ध युद्धरत आज दीखती है हाला,
नियम विरोधी गतिविधियों से लड़ता जंग सबल साकी,
बनी सुरक्षा कवच मचलती मेरी पावन मधुशाला।


ईश्वरीय सत्ता में आस्था रखता है मेरा प्याला,
सदा अधर्मी घोर कुकर्मी हेतु विषधरी है हाला,
अरिमर्दन करता प्रति पल है देव शक्ति सम मम साकी,
परम सुन्दरी स्वच्छ व्यवस्था की हिमायती मधुशाला।


सदा पुण्य के धाम में विचरण करता है मेरा प्याला,
धार्मिकता के लिये समर्पित है मेरी हार्दिक हाला,
धर्म मार्ग का सत्य प्रणेता मेरा धार्मिक साकी है,
सदधर्मी शिव-सत्कर्मी के धाम सदृश है मधुशाला।


शुभ कर्मों से प्रेम जिसे हो  उसके कर में हो प्याला,
सुन्दर भाव जिसे अति प्रिय हो वही चखे मेरी हाला,
पावनता की सदा दुहाई जो दे वह मेरा साकी,
परम पवित्र विचार-धाम सी मेरी पावन मधुशाला।


ईशप्रेम का अति अनुरागी है मेरा कंचन प्याला,
ईश्वरीय आस्था की पोषक है मेरी सच्ची हाला,
ईश्वरीय लीलाओं का संवाहक मेरा साकी है,
ईश-व्यवस्था धर्म-व्यवस्था नीति-व्यवस्था मधुशाला।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम"


धर्मपरायण रत्न शिव प्रीति परस्पर नित्य।
अमित भावना स्नेहमय मधुर मिलन नव स्तुत्य।।


धर्म एक नित प्रीति बढ़े अब।मिलकर जुलकर एक रहें सब।।
सब हितकर प्रिय वाणी बोलें।एक दूसरे को सब ढो लें।।
प्रेम रत्न का खुले खजाना।हों आनन्दित सब मनमाना।।
द्वेष परस्पर दूर भगाओ।ममतावादी गीत सुनाओ।।
समता का ही मंत्र जाप हो।पृथ्वी पर मत कभी पाप हो।।
करें सभी सबकी सेवकाई।मानव सेवा धर्म दवाई।।
सभी करें सबका नित आदर।दिल में बहे प्रीति का सागर।।
दोस्ती बढ़े मिटें सब दुश्मन।सारी जगती में हों सज्जन।।
हो मानव की नित्य आरती।सजें मनुज जैसे बाराती।।
चेहरे पर मुस्कान विखेरो।हंसमुखी मनिया को फेरो।।
सत्युग  का आनन्द लीजिये।मानव को आनन्द दीजिये।।
निर्मल मन से बात करो अब।रस बन सबका उदर भरो अब।।
नित्य पान कर प्रेम रसामृत।गाते चलना प्रिय महिमामृत।।


सबका साथी बन गहो सब मानव की बांह।
जीवनभर रख हृदय मेँ दिव्य प्रीति की चाह।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम"


जीवन की है संपदा प्रीति अमर बेजोड़।
 इस शुभकामी तत्व से हर मानव को जोड़।।


प्रीति रसामृत सरस स्वभाऊ।छोड़त सुन्दर सुखद प्रभाऊ।।
यह जीवन का मूल मंत्र है।दिल से दिल का स्नेह तंत्र है।।
इसमें ऊर्जा अमित अपारा।इससे बनता जग अति प्यारा।।
जिसके उर में प्रीति वृष्टि हो।वह पा लेता मधुर दृष्टि को।।
जहाँ प्रीति का याचन होता।मनोहारिणी वाचन होता।।
अदा विखेरत प्रीति सुन्दरम।प्रकृति जागती बनी मनोरम।।
शुद्ध प्रीति ही स्वर्ग समाना।वैभव मिलता बहु मनमाना।।
करो प्रीति का नित सम्माना।हाथ जोड़कर कर नित ध्याना।।
वितरित करते रहना नियमित।सत्पात्रों को देना निश्चित।।
यह संयम की सुन्दर भाषा।सुखमय जीवन की यह आशा।।
हो जाता जीवन आनंदित।प्रीति प्रियतमा हो जब वंदित।।
जीवों को बस प्रीति चाहिये।मादक अमृत गीति चाहिये।।
प्रीति रसामृत बरसाओ नित।लक्ष्य यही बस हो सबका हित।।
सुन्दर सावन की प्रतीति हो।मृदु भावों से सहज प्रीति हो।।
प्रीति-दिवाकर बनकर जीना।दे प्रकाश सबके उर रहना।।
नहीं दर्प की जगह बनाओ।सबके दिल में रच-बस जाओ।।


प्रीति करो संसार से सबके उर में पैठ।
करो चाकरी प्रीति की कोमल मन बिन ऐंठ।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"होली"* (दोहे)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
*महका चारों ओर है, मादकपन मधुमास।
रंग भरे अनुराग से, फागुन का उल्लास।।


*आयी होली मदभरी, रंगों का त्योहार।
सींचो स्नेहिल रंग से, बाँटो सबको प्यार।।


*द्वेष-घृणा को त्याग दो, हो मन-मंथन-मेल।
होली हिय हर्षित करे, रंगों का यह खेल।।


*होली खेलो प्रेम से, बहे नेह रस धार।
साथ रहो तज दंभ को, करना मत तकरार।।


*बैर भुला दो आपसी, बनकर मस्त मलंग।
भेद-खेद को त्यागकर, भरो प्रेम का रंग।।


*कुंठित मन को खोलकर, भाव करो उद्दीप्त।
होली के शुचि रंग से, हो जाए मन तृप्त।।


*ढोल-मजीरे-बाँसुरी, बजे नगाड़े-चंग।
हास-ठिठोली-मसखरी, रंग न हो बदरंग।।


*नाश नशे में मत करो, तज दो दारू-भंग।
प्रेमिलपन अनुराग है, होली का हर रंग।।


*भस्म करो हिय-होलिका, प्रेम-पले-प्रह्लाद।
भावन-भव-उत्थान है, होली का आह्लाद।।


*रंगों की बौछार है, उड़े अबीर-गुलाल।
होली की शुभकामना, हिय में हो न मलाल।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*नारी,,,,,शक्ति,त्याग,ममता का*
*प्रतिबिंब।।।।मुक्तक माला*


1,,,,
चार दीवारी के भीतर वह
एक संसार बसाती है।


बच्चों को संस्कार का हर
घूँट   पिलाती    है।।


नारी होती त्याग की मूरत
ईश्वर का प्रतिरूप।


एक वीरान मकां को जैसे
घर बार बनाती है।।


2,,,,,,,,,
माँ दही कटोरी   से  शगुन
सर पर आशीर्वाद है।


बिना  कहे  समझ ले  हाल
दिल की फरियाद है।।


रोटी का गर्म निवाला अमृत
का   प्याला हो जैसे।


धूप में    शीतल   छाया  हर
हिचकी  पर याद  है।।


3,,,,,,,,
उसे   स्वछंद  उन्मुक्त सारा
आसमाँ  चाहिए।


उठने बढ़ने को एक   खुला
मकां    चाहिए।।


नहीं चाहिए बेटियों को अब
पाँव   में   बेड़ियां।


नारी है सबला   उसे  अपना 
पूरा जहाँ चाहिए।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो 9897071046
     8218685464


संजय जैन, बीना (मुंबई ) 

 


*होली का त्यौहार*
विधा : कविता 


आओ हम सब,
मिलकर मनाएं होली।
अपनों को स्नेहप्यार का,  
 रंग लगाये हम।
चारो ओर होली का रंग, 
 और अपने संग है।
तो क्यों न एकदूजे को, 
रंग लगाए हम।
आओ मिलकर मनाये,
रंगो की होली हम।।


राधा का रंग और 
कान्हा की पिचकारी।
प्यार के रंग से , 
रंग दो ये दुनियाँ सारी।
ये रंग न जाने कोई, 
जात न कोई बोली।
आओ मिला कर मनाये, 
 रंगो की होली हम।।


रंगों की बरसात है, 
हाथों में गुलाल है।
दिलो में राधा कृष्ण, 
जैसा ही प्यार है।
चारो तरफ मस्त, 
रंगो की फुहार है।
हर कोई कहा रहा,
ये रंगो का त्यौहार है।।


बड़ा ही विचित्र ये, 
रंगो का त्यौहार है।
जो लोगो के दिलों में, 
रंग बिरंगी यादे भरता है।
देवर को भाभी से, 
जीजा को साले से।
बड़े ही स्नेह प्यार से, 
रंगो की होली खिलता है।
और अपना प्यार,
रंगो से बरसता है।।


होली मिलने मिलाने का,  
 प्यारा त्यौहार है।
शिकवे शिकायते, 
भूलाने का त्यौहार है।
और दिलों को दिलों से, 
मिलाने का त्यौहार है।
सच मानो और जानो, 
यही होली का त्यौहार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन, बीना (मुंबई ) 
09/03/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"सपने हो साकार"*
"सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।
बस सोचती रही जीवन में,
कैसे-सपने हो -
साथी यहाँ साकार।
रात-दिन लगी रही ,
घर के कामो में-
टूटा नहीं विश्वास।
जब भी मिलता समय,
ढूँढे मन जीवन मे-
कैसे-सपने हो साकार?
किताबें ही दें सकती साथी,
मेरे जीवन को-
नव आकार।
पढ़ना नहीं छोडूगी साथी,
जब तक मिलेगी न मज़िल-
हो न सपने साकार।
सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
         सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे मेरे जगदीश सदा ही हृदयतल में तुम्हें बिठाऊँ
बन कमोद मेरे कृष्णचन्द्र तुम्हें देख देख मुस्काऊँ


हे बृजराज तुम्हारे चरणों की रज सिर पर धारूँ
बृषभानु सुता के चरणों मैं अपना जीवन वारूँ


युगलछवि की दर्शन अभिलाषा नित हृदय बनी रहे
तुम मिलें तो जग को भूलूँ पल पल मन में भाव रहें


नित्य अचिन्तन अनन्त अनादि अखण्ड अभेद मुरारी
करो कृपा हे दीनदयालु है सत्य तो शरण तुम्हारी।


श्रीराधे गोविन्दाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

🤣🤣 रंग भंग सब हो गया 🤣🤣


दूर रहो हमसे पिया,
                         डारो मत तुम रंग।
"कोरोना"  लगता  हमें, 
                           ले आए हो संग।


पहले चेहरा ढाॅ॑प लूॅ॑,
                      मलना तभी गुलाल। 
चीनी रंग गुलाल ये,
                      बन जाए मत काल।


बहियाॅ॑ में तुम मत भरो,
                      और न पकड़ो हाथ। 
डायन लेकर आ गए,
                      तुम" कोरोना" साथ।


रंग भंग सब हो गया,
                       मनवा हुआ उदास। 
लायी  थी  मुर्गे  बड़े, 
                       होली ख़ातिर खास।


अब इनका में क्या करूॅ॑,
                       समझ न आए यार। 
एक  नहीं  मुर्गे  बड़े,  
                        लायी  थी  मैं चार।


                ।। राजेंद्र रायपुरी।।


अखण्ड प्रकाश

करोना ? कुछ करो ना,
मुस्काओ पर लड़ोना। 
होली है यज्ञ उत्सव,
पिल जाओ अब डरो ना।।


घर घर जलाओ होली,
भर लो खुशी से झोली।
देखो  गले  लगालो ,
लेकिन गले पड़ो ना।।


रंग से न हो ठिठोली,
फूलों से खेलो होली।
ये पवित्रता की संस्कृति,
बकने दो तुम बको ना।।


जो करेगा (चीन) भरेगा,
जो लड़ेगा (पाक) मरेगा।
प्रहलाद  के  हो  वंशज,
सच्चाई   से   डरोना ।।


जो भी दिखाए आंखें,
उसकी निकाल लो ना।
हो प्रेम का  पियासा।
उसको सम्हाल लो ना।।


कहते प्रकाश हंस कर,
मन में जी कुछ धरो ना।
कोई   मांग   खाली,
होली है    जी भरो ना।।


करोना करोना करोना करो ना.....
डरोना डरोना डरोना डरो ना......


कालिका प्रसाद सेमवाल

🙏🌹नव संकल्प🌹🙏
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
जीवन में कुछ करना है तो
नये नये संकल्प लेने होंगे,
नयी-नयी आशायें
नव स्वप्न हम रोज बुन चलें
नयी -नयी धारायें।
केवल अपने लिए नहीं है।
अपना यह जीवन
देश, राष्ट्र की सेवा में हो
अर्पित यह तन-मन।
जूठन की ढेर में
चावल के दाने को ढूंढती
नन्हीं-नन्हीं उंगलियां।
सूखती अंतड़ियों के लिए भी
जीवन में कुछ करना  होगा,
संवेदनशील होना ही होगा।
जीवन अतीत के क्षण की थाती है
भावी के सपनों की दीपक बाती है,
सबके प्रति प्रेम, दयाभाव ही जीवन है।
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🏵🔔कालिका प्रसाद सेमवाल
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आलोक मित्तल

खुद मगर वो मुस्कुराते है बहुत 
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प्यार से उनको सताते है बहुत,
दिल उन्ही से हम लगाते है बहुत ।।


वो कमाई खा गए जनता की सब
और कहते है कमाते है बहुत ।। 


वो किसी से सच कभी कहते नही 
झूठा सबको वो बताते है बहुत ।।


है दिखाने को नही कुछ पास में
शान अपनी भी दिखाते है बहुत ।।


औरतों का ही जमाना है यहाँ
फिर भी इक दिन को मनाते है बहुत।।


ज़िन्दगी कर दी उन्ही के नाम अब
साथ उनसे  वो निभाते है बहुत।।


है हया आँखों में दिल में प्यार है
खुद मगर वो मुस्कुराते है बहुत ।।


** आलोक मित्तल **


संजय जैन (बीना) मुम्बई

*चित्रण*
विधा : कविता


जिन्हें हम ढूढ़ रहे,
रात के अंधेरों में।
वो तो बसते है,
हमारे दिल के अंदर।
कैसे लोग समझ, 
नही पाते उन्हें।
जबकि वो होते है,
सदैव हमारे अंदर।।


मन की लगी आग को,
कैसे तन से बुझाओगे।
कुछ उनके कहे बिना,
कैसे समझ पाओगे।
यदि दिलसे उनके हो,
तो उनको समझ जाओगे।
और उनसे मिलने को,
उनके पास जाओगे।।


जिंदगी का चित्रण,
कैसे में व्या करू।
चित्र खुद कहता है,
कहानी जीवन की।
न समझे यदि चित्रको
तो बेकार है चित्रकारी।
और जो समझते है, 
वो ही प्यार करते है।
और जिंदगी के अंधेरों को,
रोशन से भर देते है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (बीना) मुम्बई
08/03/2020


कवि संदीप कुमार विश्नोई

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बहुत बहुत बधाई


जय माँ शारदे
नमन मंच


विषय नारी


विधाता छंद


 कभी जननी कभी तनुजा कभी पत्नी कहाती है , 
लुटाकर सब तुम्हारे पर वही आँसू बहाती है। 
छुपाकर कष्ट वो खुद के तुम्हें हरपल हँसाती है ,
वही राजा बनाती है वही ईश्वर बनाती है। 


कवि संदीप कुमार विश्नोई


    डा.नीलम

*नारी का वजूद*


रिश्तो के बहिखाते में
एक पन्ना तो क्या
एक पंक्ति का भी
खाता, मेरे नाम का
न था
हर बार सहेजा
हर कीमत पर,
हर बार मगर 
रिश्तों का खाता
रीता ही रहा
बिटिया,बहना,
माँ,भाभी,दादी-नानी
सब बनकर
सब में बाँट स्नेह
सबको सबका दाय दिया
भर भर झोली
सबको प्यार दिया
हर रिश्ते का खाता
फिर भी खाली रहा
पत्नी,प्रेयसी,रुपसी
मेनका सब ही 
तो मैं बनकर आई
फिर भी नहीं
किसी को लुभा पाई
सदियों से चर्चे में
रही मैं चर्चा बनकर
मगर रिश्ते में ही ना
कभी रहपाई
बाबा ने जब भी
थी रिश्तों की तिजोरी
खोली
पाई-पाई जोड़ी जोभी
भाई-बेटे के 
नाम की पाई
बेटों ने भी 
विदेश-गमन के
नाम लगा दी
सारी कमाई
बूढ़े माँ-बाप का
आसरा बनकर भी
बेगारी तो रही मगर
कभी सहारा ना
कहलाई
बनी सदा औरत ही मैं तो ओढ़ी रिश्तों की चादर
रिश्तों में ही
ढूँढती हूँ आज भी
वजूद अपना।


    डा.नीलम


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