कविता:-
*"नारी-शक्ति"*
"असीम शक्ति से भरी है-नारी,
वो तो हर रूप में-
लगती हैं-प्यारी।
बिन नारी के तो जीवन अधूरा,
पग पग दिखती-
जीवन में लाचारी।
माँ की ममता और ममता का आँचल,
बिन नारी के-
माँ बिन जीवन की कहानी अधूरी।
अन्नपूर्णा बनकर हरती भूख प्यास,
देती स्वादिष्ट भोजन-
लगती वो तो प्यारी।
भूल जाते जीवन में पतझड़ की चुभन,
जब नारी बनती-
जीवन की सहचारी।
पत्नि बन देती वो तो,
सुख जीवन के सारे-
कितनी महान है-नारी।
रिश्तो की गरीमा भी,
नारी बिन-
जीवन की कहानी अधूरी।
बाँधे उम्मीद की डोर,
बिन नारी के-
होती नहीं पूरी।
असीम शक्ति से भरी है नारी,
वो तो हर रूप में-
लगती हैं-प्यारी।।"
ः सुनील कुमार गुप्त
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
रवि रश्मि ' अनुभूति '
9920796787****रवि रश्मि ' अनुभूति '
🙏🙏
नारी
÷÷÷÷÷÷
मनहरण घनाक्षरी छंद
8 , 8 , 8 , 7
नारी के कई रूप हैं,
नारी देवी स्वरूप है ,
जीवन की ही धूप है ,
समझ तो जाइये ।
नारी से ही संसार है ,
लेती न प्रतिकार है ,
सबकी ही बहार है ,
जान ज़रा लीजिये ।
उड़ी जाये डाली डाली ,
दुनिया भी है सँभाली ,
रहे न कभी भी खाली ,
हाथ तो बँटाइये ।
सीता सावित्री है वह ,
दुर्गा है व देवी वह ,
आँगन तुलसी वह ,
सत्कार कर जाइये ।
जीवन का है आधार ,
खुशियों का पारावार ,
अनुशासन तैयार ,
पूजा कर जाइये ।
दुखड़ा भी सुनती है ,
सपने भी बुनती है ,
गुण सारे गुनती है ,
साथ बैठ जाइये ।
बेटी तो आज्ञाकारी है ,
संस्कार भरी नारी है ,
साख भी तो भारी है ,
गुणों भरी पाइये ।
अनुसरण करना ,
पहचान तो बनना ,
परिस्थिति में तनना ,
दुख भूल जाइये ।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
(C) रवि रश्मि ' अनुभूति '
निशा"अतुल्य"
सेदोका छंद
8 /3 /2020
नारी ढूंढती नर
समाए तुम
अनाधिकृत रूप
से क्यों नर मुझमें
ढूँढू जग में
हो बावरी मैं तुम्हे
बेगानी हूँ सबसे ।
नर तुम हो
बोल बोल मैं थकी
नही दिखते कहीं
हो भी या नही
अंतर्मन टटोला
तुम तो थे मुझ में।
प्रेम फुहार
थिरकन है कैसी
अंग अंग बहका
हुई बेगानी
जग बेकार लगे
डूब कर तुझमें।
अधूरे हम
एक दूजे के बिन
मिलन नही हुआ
पूर्ण मन से
क्यों बता पाओगे क्या
नही लगता मुझे ।
जाग्रत हुई
नही चाह है कोई
पाने की अब तुम्हे
चहुँ ओर यूँ
समाहित मुझमें
स्वंय तुम मुझमें।
मैं जन्म देती
रख उदर तुम्हे
क्या करते हो तुम
सम्मान कभी
नारियों का दिल से
कैसी निर्मात्री हूँ मैं।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर:-
................1..................
नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,
विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो ,
जीवन के इस भूतल में।।
-----महादेवी वर्मा
..................2................
जवान हो या बुढ़िया ,
या नन्ही सी गुड़िया ।
कुछ भी हो औरत ,
जहर की है पुड़िया ।
--फ़िल्म"भाभी"का एक गीत
..................3..............
नारी शक्ति महान ।
जाने सकल जहान।
अपनी चिंताभी करे,
सबका करे कल्याण।
--देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
संजय जैन,बीना (मुम्बई)
*नारी को सम्मान दो*
विधा : कविता
मान मिले सम्मान मिले,
नारी को उच्च स्थान मिले।
जितनी सेवा भक्ति वो करती।
उस से ज्यादा सम्मान मिले।
यही भावना हम भाते,
की उसको यथा स्थान मिले।।
कितना कुछ वो,
दिनरात करती है।
घर बाहर का भी
देखा करती है।
रिश्तेदारी आदि निभाती।
और फिर भी वो थकती नहीं।।
किये बिना आराम वो,
काम निरंतर करती है।
न कोई छुट्टी न ही वेतन, कभी नहीं वो लेती है।
फिरभी निस्वार्थ भाव से, ख्याल सब का रखती है।
ऐसी होती है महिलाएं,
जो प्यार सभी करती है।।
करती है जो कार्य वो, कोई दूजा न कर सकता।
सब की सुनती,
सबको सहती।
फिर भी विचलित,
वो होती नहीं।
लगी रहती दिन भर वो, अपने घर के कामो में।।
आओ सब संकल्प ले।
महिला दिवसके अवसर पर।
सदा ही देंगे उनको,
हम सब सम्मान अब।
क्योंकि वो है हम,
सबकी जो जननी है।
सहनशीलता की इस देवी को,
कुछ तो आज उपहार दे।
अपने मीठे वचनो और मुस्कान से।
क्यों न हम उसका सम्मान करे।।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी महिलाओ को समर्पित मेरी ये कविता।
सभा को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाये।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन,बीना (मुम्बई)
08/03/2020
विवेक दुबे"निश्चल"
*महिला दिवस*
तू ही गंगा तू ही यमुना ,
सीता सावित्री बन आती है ।
तू आती है चंडी बन ,
जग विप्पति जब आती है।
तू ही जननी बन ,
सृजन आधार सजाती है ।
सैगन्ध तेरे आँचल की ,
हर शपथ दिलाती है ।
*नारी* तू ही
*माँ* कहलाती है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
vivekdubeyji.blogspot.com
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी बोकारो झारखंड ,
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई |
स्त्री शक्ति को सादर नमन |
हिन्दी कविता- नारी की महिमा |
नारी की महिमा का मै बखान क्या करू |
आदि शक्ति मातृ शक्ति दास्तान क्या कहूँ |
नारी एक रूप अनेक जिसने माना जाना है |
देती छाया आँचल आश्रय कैसे प्रणाम ना करूँ |
कदम से कदम मिला चलती है संग पुरुष |
राष्ट्र निर्माण बनी भागीदार अनजान क्यो बनु |
जल जमी आकाश वर्चस्व अपना बना रही |
देन उसिकी हम भी खुद मेहरबान क्यो कहूँ |
विज्ञान विकाश राजनीति शिक्षा स्वास्थ्य सबमे |
माँ बहन पत्नी प्रेमिका वही एहसान क्यो न लूँ |
प्रेम त्याग तपस्या बलिदान की मूर्ति नारी |
बदलते परिवेश हुई अग्रसर पहचान क्यो न लूँ |
मान मर्यादा परिवार समाज सभ्यता नारी से |
करे जो शोषण दमन बलात घमासान क्यो न करूँ |
लड़ाई आजादी या आज की विकाशवादी चलन |
बिना नारी सम्मान अधूरा हिंदुस्तान क्यो न कहूँ |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
"कवि हूँ"
""""""""""""
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ
कभी धूप को छाँव लिखूं
कभी छाँव को धूप
हर शब्दो को खुद से तोड़ा हूँ
जैसे खुद में टूटा हूँ
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ
कभी गम में हँसता हूँ
तो कभी गम में रोता हूँ
हर हाल में जीना सीखा हूँ
कभी मझधार ......
तो कभी पतवार में खुद को पाता हूँ
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ
चलता हूँ... थकता हूँ
गिरता हूँ...सम्भलता हूँ
पाँव तले जमीं नही है.....
फिर भी जमीं बनाये जाता हूँ
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ ।।
गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®
कुमार कारनिक (छाल, रायगढ़, छग)
*नारी/महिला*
^^^^^^^^^^^^
मनहरण घनाक्षरी
(शिल्प-८,८,८,७=३१
वर्ण,पदांत गुरु)
"""""''''""
भारत की तू है नारी,
प्रीत रीत तुझे प्यारी,
मानती दुनिया सारी,
ममता महान है।
🧕
साहस की है मिसाल,
देखे सपने विशाल,
नित करती कमाल,
दुनिया की शान है।
🧕
झाँसी वाली रानी तू ही,
इंदिरा प्रतिभा तू ही,
पीटी उषा दीपा तू ही,
तीजन महान है।
🧕
इसमें न कोई शक,
जान गयी निज हक,
धरती गगन तक,
तुम्हारी उड़ान है।
🧕विश्व महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ🌸🧕
""""""""""
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली
दिनांकः ०८.०३.२०२०
वारः रविवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः नमन नियंता नारियाँ
वर्धापन महिला दिवस , महाशक्ति को आज।
करुणा ममता स्नेहिला , नवजीवन आगाज।।१।।
धीरा वीरा साहसी , प्रतिमानक संघर्ष।
मातु सुता भगिनी वधू , है जीवन निष्कर्ष।।२।।
भावुक नाजुक कोमला , मानक नित संकोच।
नवदुर्गा जगतारिणी , सजग रखे शुभ सोच।।३।।
मनसा वाचा कर्मणा , परसुख जीवन दान।
ममतांचल छाया बनी , कौलिक नित सम्मान।।४।।
पढ़ी लिखी नारी सबल , चढ़े लक्ष्य सोपान।
आज निर्भया नारियाँ , सफला हर अरमान।।५।।
सहज सरल मृदुभाषिणी, अश्रु नैन आगार।
प्रिया खुशी मुस्कान वह , साजन मन उद्गार।।६।।
वामांगी नारायणी , जननी वह संसार।
अन्तर्मन सागर समा , करुण नेह आगार।।७।।
युगधारा जीवन सरित , वक्ष क्षीर बन नीर।
नित संतति को सींचती , पाल पोष हर पीड।।८।।
शान्ति प्रकृति,पर क्रान्ति भी,नित नारी बन धीर।
पर रक्षण निज अस्मिता , महाकाल रणवीर।।९।।
गृहलक्ष्मी रतिरागिनी , निर्मात्री परिवार।
शीला धीरा मानिनी , आराध्या मनुहार।।१०।।
नमन नियंता नारियाँ , रिश्तों का आधार।
निखर रही हर रूप में , बाहर घर परिवार।।११।।
बनी रोशनी जिंदगी , पति हो या सन्तान।
सुता बहन माता प्रिया , करें सभी सम्मान।।१२।।
सुर नर दानव पूजिता, रम्या नित सुखसार।
क्यों दहेज उत्पीड़ना , सहे शक्ति संसार।।१३।।
अद्भुत वह बहुरूपिणी , स्वाभिमान प्रतिमान।
विध्वंसक दानव पतित , दें नारी सम्मान।।१४।।
सज सोलह शृङ्गार तनु , दे साजन उपहार।
नारी माँ ममता प्रिया , नीति रीति अवतार।।१४।।
कवि निकुंज शुभकामना,चलो प्रगति नित राह।
शक्ति सबल निर्भय सफल,पाओ जीवन चाह।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
यशवंत"यश"सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
विषय🥀 महिला दिवस 🥀
विधा मनहरण घनाक्षरी छंद
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नारी को पढ़ाओ अब,नारी को बढ़ाओ अब।
सुकन्या बढ़ेंगी जब,देश बढ़ जाएगा।।
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नित नये नाम कर,धरा आसमान पर।
भ्रुण कन्या बचेगी तो,जग बढ़ जाएगा।।
🧜♂️🧜♂️🧜♂️🧜♂️🧜♂️🧜♂️🧜♂️🧜♂️
घट-घट घटना तो,घट रही सरपट,
नारी नाश करोगे तो,नर बढ़ जाएगा।।
👨👨👦👦👨👨👦👦👨👨👦👦👨👨👦👦👨👨👦👦👨👨👦👦👨👨👦👦👨👨👦👦
कर नारी पूजा तुम, छोड़ काम दूजा तुम।
हर घर फूल खिले,बाग बढ़ जाएगा।।
🥀🌺🌺🌻🌻🌸🌸🥀
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
इन्दु झुनझुनवाला
महिला दिवस की शुभकामनाएं सभी दोस्तों को 😊💐💐💞💞💞
ये दुनिया सारी मुझमें है।
अगर सच में जानना चाहते हो मुझे ,
किसी ढाँचे में डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
नीले-नीले आकाश-सी मैं,
उमड़ते-घुमडते बादल ,
चमकती बिजलियाँ कभी ,
बरसती नन्हीं-नन्हीं फुहारें भी।
किसी घरौंदे में कैद ना करो ,
चूक जाओगे ।
चमकते सूरज-सी रोशन मैं ,
दहकता आग का गोला ,
रौशन दोनों जहाँ जिससे,
इंदृधनुषी न्यारी-प्यारी किरणें भी।
दीपक ना समझ लेना खाली ,
चूक जाओगे ।
विशाल फैले समुंदर-सी मैं,
उठती तूफानी लहरें,
साहिल की तलाश में ,
शांत , फिर-फिर लौट जाती भी ।
बहता सोता ना मान लेना सिर्फ,
चूक जाओगे ।
अगर सच में जानना चाहते हो मुझे ,
किसी ढाँचे में डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
बहार हूँ मैं,पतझड़ भी मुझमें है।
जय हूँ मैं, पराजय भी मुझसे है।
झूठ हूँ मैं, सच भी मुझसे है।
दोस्तों की दोस्त,दुश्मनी भी मुझसे है ।
सीता हूँ मैं , कैकयी भी मुझमें है ।
सावित्री हूँ मैं, रंभा भी मुझमें है ।
माँ हूँ मैं, बेटी भी मुझमें है।
नारी हूँ मैं,
नर भी मुझसे है।
पंच तत्व की दुनिया ये ,
ये दुनिया सारी मुझमें है ।
ये दुनिया सारी मुझसे है ।
अगर सच में जानना चाहते हो मुझे तो ,
किसी ढाँचे मे डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
इंदु
२९,०५,२०१७
अनुभूतियों के मोती (काव्य संग्रह )
डा0विद्यासागर मिश्र"सागर" लखनऊ उ0प्र0
आज का सृजन
भारतीय नारियो को कहते जो अबला है,
यह बात बन्धु मेरे समझ न आयी है।
वक्त पर रक्त को चढ़ाया मातृभूमि पर,
रण्भूमि आने मे भी नही शर्मायी है।
दांत खट्टे कर दिये रण्भूमि बैरियो के,
काटि काटि मुंड रण भूमि मे गिरायी है।
वीर पृसूता यहाँ की नारियाँ सदैव रही,
इसीलिए नारी यहाँ सबला कहायी है।।
रचनाकार
डा0विद्यासागर मिश्र"सागर"
लखनऊ उ0प्र0
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
नारी की महिमा
हे! जगतजननी नारी तुमको मम कोटि प्रणाम हैं।
तुम्हीं से ही पुष्पित पल्लवित सारे आयाम हैं।
इसी संसार में तुम्हारे उपकार घनेरे हैं।
तुमसे जहाँ की शोभा और हर साँझ सवेरे हैं।
हर हारे थकित मनुज को तुम इक हौसला दिलाती।
जो प्यास से हो व्याकुल उसे शीतल वारि पिलाती।
तुम बिन ये जीवन सूना हर सुख फ़ीके लगते हैं।
साथ आपका हो तो हर लब्ज सलीक़े लगते हैं।
बौने शब्द पड़ जाते कीर्ति तुम्हारी कहने में।
रण में भी संबल देती हो तलवारें गहने को।
जब जब जरूरत पड़ी साहस अदम्य दिखलाया हैं।
आँच देश पर न आये सबको सबक सिखलाया हैं।
हम ऋणी आपके हे नारी जीवन भर रहते हैं।
इस सकल विश्व मे सबसे उत्तम तुमको कहते हैं।
तिमिर में चपला बनती मृगसिरा में पुरवाई हो।
स्वर कर्ण प्रिय लगते तुम पाणिग्रहण शहनाई हो।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
*"नारी"* (ताटंक छंद गीत)
"""""""""""'""""""""""""""""""""""""""""""""
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
"""'"''""""""""""""'"'''""""""""""""""""""""""""
*नारी अनुकृति परमेश्वर की, पूजन की अधिकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
नाते अनेक जग में उसके, जिन पर तन-मन वारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*नारी के बिन नर आधा है, नर भी रचना नारी की।
त्याग-तपस्या की प्रतिमा है, जय हो जन हितकारी की।।
प्रीति-दायिनी वह हर पल है, स्नेहिल है, सुखकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*सतत् सजगता से नारी की, जग निश्चिंत सदा मानो।
विडंबना फिर यह कैसी है? सहती वह विपदा जानो।।
मान सभी उसका भी रखना, नारी शुचि प्रणधारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*करें देव भी उपकार वहाँ, मान जहाँ पाती नारी।
अवलंब सदा है वह घर की, फिर क्यों न सुहाती नारी??
नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*नारी का उपहास न करना, उसका मान बढ़ाना है।
रोक भ्रूण की अब हत्या को, पुत्री-प्राण बचाना है।।
गढ़ती नव नित प्रतिमान सुता, सुत पर भी वह भारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*सृष्टि समाहित जिस नारी में, उसकी किस्मत फूटे क्यों?
थाम ऊँगली तुम्हें चलाया, उसकी लाठी छूटे क्यों??
अपना भी कर्तव्य निभाओ, कर्ज-मुक्ति की बारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि शांति है, ममता की फुलवारी है।।
"""""""""""""""""''"""""""""""""""""""""""'""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""""""""""""""""""""''""""""""""""""""""'"""
अर्चना कटारे शहडोल म.प्र
*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सभी माँ,बहन,बेटी,, को बधाई....*
*नारी तू कमजोर नहीं*
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
हे नारी तू नैनों के काजल की बस धार नहीं
हैं नारी तू आँखों की अश्रु धार नहीं
हे नारी तू किसी बाग का टूटा फूल नहीं
नारी तू बस किसा काव्य का श्रंगार नहीं
हे नारी तू तलवारों की धार है
है पुरूषों की पलटवार है
तू ताकत है ,तू हिम्मत है, तू पौरुष , तू शान है
तू दुर्गा ,तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू गायत्री है
तू सृष्टि की जनक और पालन हार है
मत समझ अपने को अबला तू पुरुषों पर भारी है
मत समझ अपने को अबला तू आज की सबला नारी है
आया तुझ पर कोई संकट नारी पर
तो झट से तलवार निकाली है
अपनी मर्यादा की रक्षा करने काली चंडी बननी है
मत समझो कमजोर अपने को
अभी भी हिम्मत बाकी है
हे नारी इस पुरूष समाज में
तुझे अपनी जगह बनानी है
बेचारी ,अबला ,लाचारी छोडो
अपने को पहचानो तुम
मिला लो कंधे से कंधा
अपने को मत कम मानो तुम
हर क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर
हर कार्यक्षेत्र सम्भालो तुम
संसार की सभी नारियों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मै समर्पित 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
अर्चना कटारे
शहडोल म.प्र.
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
हलधर -9897346173
(विश्व नारी दिवस पर महलों को समर्पित )
ग़ज़ल (हिंदी)
-----------------
नारी नर से सदा बड़ी है ।
गाथा जिसकी भरी पड़ी है ।
जब भी मौका मिला उसे वो ,
हर मौके पर खूब लड़ी है ।
नर को रखा कोख में जिसने,
नारायण की एक कड़ी है ।
धरती पर आदम को लायी ,
गौरा शंकर साथ खड़ी है ।
घड़ा पांच रुपये में मिलता ,
लाख टके की मिले घड़ी है ।
तुलना करना काम मूर्ख का ,
शब्दों की बस कथा जड़ी है ।
भाव उभर जो भी मन आया,
हलधर" जोड़ी छंद लड़ी है ।
हलधर -9897346173
नूतन लाल साहू
महिला दिवस पर दो टूक
तू क्यों इतना सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
महिला पुरुष,दो पहिए है
एक ही,गाड़ी के
यही है, विधि का विधान
इसीलिए,मै कहता हूं
महिलाओं का भी कर सम्मान
कन्या पैदा हो गई
तो का हे को रोये
पुत्रो जैसा यह नहीं
तेरा नाम डूबो ये
सभी दुखो से मुक्ति का
निकला नहीं निचोड़
जिन मसलों का हल नहीं
उन्हें समय पर छोड़
तू क्यों इतना सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
स्वर्ग नरक एक कल्पना है
है असत्य ये धाम
यही भुगतना पड़ेगा
कर्मो का अंजाम
यह जीवन इक युद्ध है
कभी जीत कभी हार
जिसने छोड़ा मोरचा
उसको है धिक्कार
तू क्यों इतना,सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
नहीं हुआ,अगर काम तो
गम न कर इंसान
बदल नहीं सकता कोई
विधि का अटल विधान
कब क्या कर दे,यह समय
कौन सका है, जान
एक दिन,मिट्टी में मिल जायेगा
क्यों करता है,अभिमान
तू क्यों इतना सोचता है
विधि के विधान को
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
महिला पुरुष, दो पहिये है
एक ही, गाड़ी के
ये है,विधि का अटल विहान
महिलाओं का भी,तू कर सम्मान
नूतन लाल साहू
जसवीर हलधर -9897346173
मुक्तिका-चिंगारी मज़हब की
------------------------------------
हद से ज्यादा ठीक नहीं है खातिरदारी मज़हब की ।
समझे नहि तो आग लगा देगी चिंगारी मज़हब की ।
हथियारों का धंधा है यह नंबरदारी मज़हब की ,
धरती को बंजर करती है झूठी यारी मज़हब की ।
मानवता से बड़ी नहीं है कोई सेवा इस जग में ,
आदम को शैतान बनाती दावेदारी मज़हब की ।
यदि भगवान एक ही है तो नई दुकानें क्यों खोली ,
पत्थर को भगवान बताती पैरोकारी मज़हब की ।
हाल सीरिया का देखो सब सत्य समझ में आएगा ,
खाता पीता मुल्क निगल गयी ये बीमारी मज़हब की ।
भूख गरीबी से लड़ने को रस्ते खोजे पुरखों ने ,
अब तो खून उन्हीं का पीती चौकीदारी मज़हब की ।
आयत पढ़वाई जाती हैं अब बंदूकों जे साये में ,
ऐ के छप्पन से बहती है ये मक्कारी मज़हब की ।
देश धर्म से ऊपर "हलधर" सेवा कर्म हमारा है ,
राष्ट्र गान पर हावी दिखती ,मारामारी मज़हब की ।
हलधर -9897346173
बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक
राम चरित मानस में गो0तुलसी दास जी द्वारा की गई विभिन्न लोंगो की वन्दना
बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि।।
पुनि बन्दउँ सारद सुरसरिता।
जुगल पुनीत मनोहर चरिता।।
मज्जन पान पाप हर एका।
कहत सुनत एक हर अबिबेका।।
।श्रीरामचरितमानस।
देवता,ब्राह्मण,पण्डित, ग्रह--इन सबके चरणों की वन्दना करके हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप प्रसन्न होकर मेरे सारे मनोरथों को पूर्ण करें।फिर मैं श्रीसरस्वतीजी और देवनदी श्रीगङ्गाजी की वन्दना करता हूँ।ये दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं।श्रीगङ्गाजी स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती हैं और श्रीसरस्वतीजी गुण और यश का कथन करने व सुनने से अज्ञान का नाश कर देती हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---उपरोक्त पंक्तियों में गो0जी अपने काव्य को सर्वसुलभ बनाने व जगत का कल्याण करने हेतु इन सभी की वन्दना करते हैं।इन सभी का कार्य भी जगत का कल्याण करना ही है।इनमें श्रीसरस्वतीजी व श्रीगङ्गाजी जलरूप से हमारे पापों को हरती हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"प्रीति की बरसात "
प्रीति की बरसात हो
दिन हो या रात हो।
जिन्दगी भर मुलाकात हो
ताउम्र बात हो।
जिन्दगी सँवर जायेगी
उर-कमलिनी खिल जायेगी।
मन में स्नेह की लालिमा होगी
सुहानी हरीतिमा होगी।
दिल में ममत्व का उत्सव होगा
रंगीन हाईवे पर महोत्सव होगा।
मन झूमेगा
सम्मान और श्रद्धा को चूमेगा।
मासूमियत मिटेगी
घृणा पिटेगी।
प्रेमामृता का वरदान होगा
शुचिता का यशगान होगा।
प्रीति का आशीर्वाद होगा
अघ वर्वाद होगा।
प्रितिरस में बह जाओ
अपनेआप में खो जाओ।
गोकर्ण बनो
अपर्ण बनो।
शुभ संवाद करो
प्रपंच से डरो।
संयमित वातावरण हो
प्रीति का संवरण हो
आवरण हो
शुद्ध उच्चारण हो
सदाचरण हो।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
"तेरी याद मेँ..."
आप की याद हमेशा आती रहेगी
ख्वाहिश जिन्दा रहेगी
याद अजर अमर है
बेघर है
इसीलिए तो कोई सुनता नहीं है
कुछ गुनता नहीं है
जिसकी कोई निश्चित जगह न हो
उसका भला कौन हो
असहाय और निराश को कौन याद करता है
वह मौन फरियाद करता है
आँखों में आँसू हैं
हृदय पीपासू है।
आदमी ऊपर देखता है
सुपर को देखता है
नीचे देखने का अभ्यास कहाँ?
नीचे का उपहास यहाँ।
आदमी मरघट है
निघर्घट है
वह सम्मान का आदी हो चुका है
स्वयं स्वार्थवादी हो चुका है।
उसे किसी भी निरीह की याद नहीं आती है
पूंजीवाद की याद आती है
नैतिकता और मानवता उसकी परिधि में नहीं हैं
सुन्दरता उसकी उर-उदधि मेँ नहीं है।
किसी की याद को शायद ही कोई महत्व देता हो
उसके दिल की आवाज की शायद ही कोई सुनता हो।
प्रीति सरस है
मधुरस है
मधुरिम है
अप्रतिम है
परन्तु वह मूक और मौन है
भला उसकी भूख को समझता कौन है?
हमें किसी की याद मेँ खो जाने दो
सदा-सदा के लिए सो जाने दो।
अगले जन्म में देखा जायेगा
अपना खुद का संदेश पढ़ा जायेगा।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
"मेरी पावन मधुशाला"
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र से ऊपर उठा हुआ प्याला,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई से बढ़कर मेरी हाला,
निराकार ओंकार सरीखा मेरा सर्वविदित साकी,
ब्रह्ममंडलाकार सदृश है मेरी पावन मधुशाला।
अंत्योदय की बातें करता रहता है मेरा प्याला,
अंतिम मानव के आँसू से बनी हुई मेरी हाला,
अंतिम मानव के संरक्षण हेतु खड़ा मेरा साकी,
दलित-पीड़ितों की शरणालय मेरी पावन मधुशाला।
मानव का नित वन्दन करता जाता है मेरा प्याला,
मानवता को जीवित रखने हेतु बनी मेरी हाला,
प्राणि मात्र की सेवा के व्रत का संकल्प लिये साकी,
सेवा को ही धर्म बताती मेरी पावन मधुशाला।
जिसे प्रकृति से सहज प्रेम है वही एक उत्तम प्याला,
सुघर प्रकृति की सुन्दरता सी मधु मादक मेरी हाला,
सदा प्राकृतिक छटा सरीखा अति मनमोहक साकी है,
सकल प्राकृतिक विभव संपदा सी सुन्दर है मधुशाला।
मन -मंदिर की शिव प्रतिमा सा भव्य चमकता है प्याला,
शिवभावों से भरी हुई है मेरी दिव्य सुरभि हाला,
बना पुजारी मनमंदिर का करत आरती साकी है,
मन -मंदिर के शुभ सरवर सी मेरी पावन मधुशाला।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"चाहत"
चाह मन में आप का ही ध्यान हो
आप से ही बात नित मनमान हो
आप की बाहें पकड़कर बोल दें
आप ही आराध्य हो भगवान हो।
दूर जाना मत कभी बस पास रह
प्रेमगंगा बन हृदय में वास कर
ख्वाहिशें पूरी कहाँ बिन आपके
आप ही स्वर-साधना की राह बन।
आप की नित वन्दना करते रहें
आपमें संवाद -लय गढ़ते रहें
आप मेरी श्वांस बनकर आइये
आपमें ही देवता दिखते रहें।
मर्मस्पर्शन बात का भण्डार हो
प्रितिदर्शन का सहज संसार हो
खोज लें हम आपको हरदम यहाँ
स्नेहवर्षण का अमित विस्तार हो।
चाहतें होतीं अधूरी सत्य है
चाह बिन हम भी अधूरे सत्य हैं
चाहतें ही जिन्दगी की नींव हैं
चाह ही संसार का कटु सत्य है।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
निशा अतुल्य
सुप्रभात
महिला दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं महिलाओं को,
गर्व करिए कि आप महिला हैं ।
सृष्टि की निर्मात्री हैं जहाँ खड़ी होती हैं वहीं अपना घर बना लेती हैं ।ऐसी विलक्षण प्रतिभा की धनी महिलाएं को नमन है ।
अपनी शक्ति को पहचानिए जिन दानवों का संगहार देव खुद नही कर पाए उसके लिए देवी का प्रारदुर्भाव किया ।
जय हो गर्व कीजिये आप महिला हैं ।
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