डा.नीलम

*नारी का वजूद*


रिश्तो के बहिखाते में
एक पन्ना तो क्या
एक पंक्ति का भी
खाता, मेरे नाम का
न था
हर बार सहेजा
हर कीमत पर,
हर बार मगर 
रिश्तों का खाता
रीता ही रहा
बिटिया,बहना,
माँ,भाभी,दादी-नानी
सब बनकर
सब में बाँट स्नेह
सबको सबका दाय दिया
भर भर झोली
सबको प्यार दिया
हर रिश्ते का खाता
फिर भी खाली रहा
पत्नी,प्रेयसी,रुपसी
मेनका सब ही 
तो मैं बनकर आई
फिर भी नहीं
किसी को लुभा पाई
सदियों से चर्चे में
रही मैं चर्चा बनकर
मगर रिश्ते में ही ना
कभी रहपाई
बाबा ने जब भी
थी रिश्तों की तिजोरी
खोली
पाई-पाई जोड़ी जोभी
भाई-बेटे के 
नाम की पाई
बेटों ने भी 
विदेश-गमन के
नाम लगा दी
सारी कमाई
बूढ़े माँ-बाप का
आसरा बनकर भी
बेगारी तो रही मगर
कभी सहारा ना
कहलाई
बनी सदा औरत ही मैं तो ओढ़ी रिश्तों की चादर
रिश्तों में ही
ढूँढती हूँ आज भी
वजूद अपना।


    डा.नीलम


डॉ प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

*होली*


सौहार्द प्रेम सदभाव ह्रदय, दमके सिर चंदन शुभ रोली।
अघ दूषण परिहर त्रय ताप मिटैं,जीवन सरसै  बन रंगोली।।
रंग अबीर गुलाल चलै, परिहास हास आनंद घनो,
मनकाम्य शुभम् हरि मनस प्रखर,समृद्ध सुखद सबकी होली।।


*डॉ प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

सभी देशवासियों को रंगोत्सव की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं


होली  के  हर  रंग  से, हिय  रंगों  आप   खूब,
दिलों  में  यदि  भेद  हो, तो  निकाल  दीजिए।
अपने   पराये  सभी,  को  गले  लगाओ आज,
देश   की    परंपरा    को,   मशहूर   कीजिए।
जिन कार्यों से सभी को, मिलता हो सुख खूब,
अधरन   हँसी   खिले,   वो  जरूर   कीजिए।
आने  वाली  पीढ़ियाँ  भी,  गर्व  इस  पर  करें,
होली   का  पावन  खूब,  ये  दस्तूर   कीजिए।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


हलधर - 9897346173

आज का छंद-होली
------------------------


हाथ ना मिलाओ यार ,दूर हट जाओ यार ,


कोरोना की इस वार ,पड़ी मार होली में ।


चाइनीज फुलवारी ,रंग हो या पिचकारी ,


फैला  रहीं महामारी , इस पार होली में ।।


मांटी के गुलाल संग ,देश के लगाओ रंग ,


घर की पंजीरी छंग , पियें यार होली में ।


मजहबी वायरस , खाया भाई चारा रस ,


तीन  पेग हुए बस  , नहीं चार होली में ।।


हलधर - 9897346173


नूतन लाल साहू

होली
रंग डालेव,गुलाल डालेव
हर रंग मा,नहला डालेव
तन हे काला, मन हे काला
कइसे बनावव,गुलाबी वाला
होली में रंग,जमाना है
कविता में,भंग मिलाना है
होली हे,होली हे,होली हे
होली हे,होली हे,होली हे
कुछ पीते है अउ पिलाते हैं
जो नहीं पीता,उन्हें जलाते हैं
असली नशा तो,प्रभु भक्ति में है
कोई भी रूप में,प्रभु आ जाते है
भक्त प्रहलाद की बात करो
नरसिंग अवतार की याद करो
रंग डालो, गुलाल डालो
प्रेम रंग में रंग,जाना है
होली में रंग,जमाना है
कविता में भंग मिलाना है
होली है,होली है,होली है
होली है,होली है,होली है
देश प्रेम में बंध जाओ
हृदय स्पर्शी,रंग लगाओ
होली में,कोई सजते है
कोई हसते है,कोई रोते हैं
रंग डालेव,गुलाल डालेव
हर रंग मा,नहला डालेव
तन हे काला,मन हे काला
कइसे बनावव,गुलाबी वाला
होली में रंग,जमाना है
कविता में,भंग मिलाना है
होली है,होली है,होली है
होली है,होली है,होली है
नूतन लाल साहू


 


कैलाश दुबे

हर महिला से अपना नाता है ,


वह तो मानो भारत माता है ,


फिर कैसी ये तेरी माया है , 


अरे सम्मान हमें भी आता है ,


है तेरे रुप अनेक हे माता ,


हम नव राते में करते जगराता है ,



कैलाश दुबे


रीतु प्रज्ञा           दरभंगा, बिहार

होली आयी रे


होली आयी रे,आयी रे
होली आयी रे
तन,मन मस्ती छायी रे,छायी रे 
होली आयी रे।
भेदभाव सब भूलो रे
सब गाल रंग,गुलाल मलो रे
भर पिचकारी रंग डालो रे सखी,
रंगों के वर्षा में नहा लो रे सखी।
होली आयी रे,आयी रे
होली आयी रे
तन,मन मस्ती छायी रे,छायी रे
होली आयी रे
रंग डालो रे कन्हाई
मत पकड़ो रे कलाई
करो प्रेम रंगों के बौछार
भींगे चुनर,आयी है होली की बहार।
होली आयी रे,आयी रे
होली आयी रे
तन,मन मस्ती छायी रे, छायी रे
होली आयी रे।
सबको  आज करों हसीन
सूखे पत्तें  कर दों नवीन
चूड़ियाँ खनकाओ रे सखी
झूमझूम फगुआ गाओ रे सखी
होली आयी रे ,आयी रे 
होली आयी रेश्र
तन,मन मस्ती छायी रे, छायी रे
होली आयी रे।
               रीतु प्रज्ञा
          दरभंगा, बिहार


डॉ प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

विश्व महिला दिवस


मैं संकल्प सत्य कृत आराधक ,  सर्जन मूलक आधार स्वयं।
मैं महाकाल की शक्ति शिवा, परिणीता सुभग प्रसार स्वयं।।
मैं कहाँ पुरूष से होड़ करूँ, मेरा असितित्व विलक्षण शुचि,
मैं श्रद्धा वत्सल मूर्ति प्रखर, संस्कृति का शुभ आभार स्वयं।।


डॉ प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


प्रिया सिंह

औरत नहीं ये कीमती हीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है
इसे छेडो मत गलियारों में 
इसकी गिनती है उजियारों में 
ये एक वट की हरियाली शीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


ये जलती सीता की पीड़ा है
ये बैखौफ सी होती धीरा है
इसे छोड़ों मत अंधियारों में 
इसे जलने दो अगियारों में 
ये सरल स्वभाव गंभीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


ये समंदर पर बसा जजीरा है
ये बेटी देश की कशमीरा है
ये आती कहाँ है खाकसारो में 
इसकी गिनती है इज्जतदारों में 
ये वेद की एक इलाजी चीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


हौसलों की धधकती वीरा है
ये मसाला,मिर्च और जीरा है
कमी नहीं इसके व्यवहारों में 
अद्भुत है नारी संस्कारों में 
रिस्तो में फसी जंजीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 



ये बसा खुशहाल मंदीरा है
ये स्वेत प्रेम बानों रघुवीरा है
ये आती है बेशक होशियारों में 
जिल्लत शूमार है अधिकारों में 
ये साफ किरदार शकीरा है
ये चंचल शौख फकीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 
औरत नहीं ये किमती हीरा है



Priya singh


रीतु प्रज्ञा            दरभंगा, बिहार

शीर्षक:-नारी


नारी तू महान है,
तुझ से ही जहान है।
तू है शक्ति स्वरूपा,
तेरी ममतामयी रूप है अनूठा।
तू ही है पतित पावनी भारती,
करें तुझे ही भक्त नित्य आरती।
तुझसे  होती दिन के आलोक नवल,
तू ही है  धीर,वीर,गम्भीर,अचल
तू ही है पावन सरिता की धारा,
निश्चल प्यार लुटाती जीवन भर सारा।
तू ही लाती आलय नवीन किरण,
होने न देती किसी को कभी शिकन।
तू ही करती सबका निस्वार्थ सेवा,
इच्छा न हो पाने की थोड़ी भी मेवा।
नारी तू महान है,
तुझ से ही जहान है।
                 रीतु प्रज्ञा
           दरभंगा, बिहार


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

जोगीरा


निज पत्नी का भी करो, आज खूब सत्कार।
बाहर  सेवा  की  अगर, तो  फिर  होगी रार।


जोगीरा सारा रारा रा


घर  के  कामों  में सदा, खूब बटाओ हाथ।
आनाकानी की अगर, फिर पकड़ोगे माथ।


जोगीरा सारा रारा रा


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


शिवानंद चौबे  भदोही यूपी

महिला दिवस के पावन अवसर शुभकामनाओं के साथ समर्पित ये पंक्तियां।
........................................


नारी वेद है नारी पुराण है 
माँ सृष्टि का आधार है,
गंगा सी पावन हैं परम 
नारी खुशियों की संसार है –
काशी है नारी काबा है नारी 
गीता है नारी कुरान है 
सर्वस्व न्यौछावर जो करे 
नारी वात्सल्य है वो प्यार है –
करुणा दया की भाव नारी
आंचल में ममता को लिए 
है स्वर्ग चरणों में जहां
नारी सर्व तीरथ बार  है –
नारी आयते है कुरान की 
नारी श्लोक गीता की यहाँ 
नारी बायबिल गुरु ग्रन्थ साहिब 
नारी सृष्टि सृजन का आधार है –
नारी धुप में एक छांव है 
नारी स्नेह उर की स्वभाव है 
नारी ज्ञान मान प्रदायिनी
नारी भाव की संसार है –
धरती है नारी आकाश नारी
अपनत्व का एहसास नारी
करते  नमन सादर हैं हम  
चरणों में शिवम् स्वीकार है  !
...................................
शिवानंद चौबे 
भदोही यूपी


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"नारी-शक्ति"*
"असीम शक्ति से भरी है-नारी,
वो तो हर रूप में-
लगती हैं-प्यारी।
बिन नारी के तो जीवन अधूरा,
पग पग दिखती-
जीवन में लाचारी।
माँ की ममता और ममता का आँचल,
बिन नारी के-
माँ बिन जीवन की कहानी अधूरी।
अन्नपूर्णा बनकर हरती भूख प्यास,
देती स्वादिष्ट भोजन-
लगती वो तो प्यारी।
भूल जाते जीवन में पतझड़ की चुभन,
जब नारी बनती-
जीवन की सहचारी।
पत्नि बन देती वो तो,
सुख जीवन के सारे-
कितनी महान है-नारी।
रिश्तो की गरीमा भी,
नारी बिन-
जीवन की कहानी अधूरी।
बाँधे उम्मीद की डोर,
बिन नारी के-
होती नहीं पूरी।
असीम शक्ति से भरी है नारी,
वो तो हर रूप में-
लगती हैं-प्यारी।।"
ः           सुनील कुमार गुप्त


रवि रश्मि ' अनुभूति '

9920796787****रवि रश्मि ' अनुभूति '


  🙏🙏


  नारी 
÷÷÷÷÷÷
मनहरण घनाक्षरी छंद 
8 , 8 , 8 , 7 


नारी के कई रूप हैं, 
      नारी देवी स्वरूप है , 
            जीवन की ही धूप है , 
                  समझ तो जाइये ।


नारी से ही संसार है , 
      लेती न प्रतिकार है , 
            सबकी ही बहार है , 
                  जान ज़रा लीजिये ।


उड़ी जाये डाली डाली , 
      दुनिया भी है सँभाली , 
            रहे न कभी भी खाली , 
                  हाथ तो बँटाइये ।


सीता सावित्री है वह , 
      दुर्गा है व देवी वह  , 
            आँगन तुलसी वह , 
                  सत्कार कर जाइये ।


जीवन का है आधार , 
      खुशियों का पारावार , 
            अनुशासन तैयार , 
                  पूजा कर जाइये । 


दुखड़ा भी सुनती है , 
      सपने भी बुनती है , 
            गुण सारे गुनती है , 
                  साथ बैठ जाइये ।


बेटी तो आज्ञाकारी है  , 
      संस्कार भरी नारी है , 
            साख भी तो भारी है , 
                  गुणों भरी पाइये ।


अनुसरण करना , 
      पहचान तो बनना , 
            परिस्थिति में तनना , 
                  दुख भूल जाइये । 
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&


(C) रवि रश्मि ' अनुभूति '


निशा"अतुल्य"

सेदोका छंद
8 /3 /2020
नारी ढूंढती नर 



समाए तुम
अनाधिकृत रूप
से क्यों नर मुझमें
ढूँढू जग में 
हो बावरी मैं तुम्हे 
बेगानी हूँ सबसे ।


नर तुम हो 
बोल बोल मैं थकी
नही दिखते कहीं
हो भी या नही
अंतर्मन टटोला
तुम तो थे मुझ में।


प्रेम फुहार
थिरकन है कैसी
अंग अंग बहका 
हुई बेगानी
जग बेकार लगे
डूब कर तुझमें।


अधूरे हम
एक दूजे के बिन
मिलन नही हुआ
पूर्ण मन से 
क्यों बता पाओगे क्या 
नही लगता मुझे ।


जाग्रत हुई
नही चाह है कोई 
पाने की अब तुम्हे
चहुँ ओर यूँ
समाहित मुझमें
स्वंय तुम मुझमें।


मैं जन्म देती
रख उदर तुम्हे
क्या करते हो तुम 
सम्मान कभी
नारियों का दिल से
कैसी निर्मात्री हूँ मैं।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर:-
................1..................
नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,
विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो ,
जीवन के इस भूतल में।।
-----महादेवी वर्मा
..................2................
जवान हो या बुढ़िया ,
या नन्ही सी गुड़िया ।
कुछ भी हो  औरत ,
जहर की है पुड़िया ।
--फ़िल्म"भाभी"का एक गीत
..................3..............
नारी शक्ति महान ।
जाने सकल जहान।
अपनी चिंताभी करे,
सबका करे कल्याण।
--देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐


संजय जैन,बीना (मुम्बई)

*नारी को सम्मान दो*
विधा : कविता


मान मिले सम्मान मिले, 
नारी को उच्च स्थान मिले।
जितनी सेवा भक्ति वो करती।
उस से ज्यादा सम्मान मिले।
यही भावना हम भाते,
की उसको यथा स्थान मिले।।


कितना कुछ वो, 
दिनरात करती है।
घर बाहर का भी
देखा करती है।
 रिश्तेदारी आदि निभाती।
और फिर भी वो थकती नहीं।।


किये बिना आराम वो, 
काम निरंतर करती है।
न कोई छुट्टी न ही वेतन, कभी नहीं वो लेती है।
फिरभी निस्वार्थ भाव से, ख्याल सब का रखती है।
ऐसी होती है महिलाएं, 
जो प्यार सभी करती है।।


करती है जो कार्य वो, कोई दूजा न कर सकता।
सब की सुनती,
सबको सहती।
फिर भी विचलित,
वो होती नहीं।
लगी रहती दिन भर वो, अपने घर के कामो में।।


आओ सब संकल्प ले। 
महिला दिवसके अवसर पर।
सदा ही देंगे उनको, 
हम सब सम्मान अब।
क्योंकि वो है हम, 
सबकी जो जननी है।
सहनशीलता की इस देवी को,
कुछ तो आज उपहार दे।
अपने मीठे वचनो और मुस्कान से।
क्यों न हम उसका सम्मान करे।।


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी महिलाओ को समर्पित मेरी  ये कविता। 
सभा को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाये।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन,बीना (मुम्बई)
08/03/2020


विवेक दुबे"निश्चल"

*महिला दिवस*


तू ही गंगा तू ही यमुना ,
 सीता सावित्री बन आती है ।


 तू आती है चंडी बन ,
 जग विप्पति जब आती है।


 तू ही जननी बन ,
 सृजन आधार सजाती है ।


  सैगन्ध तेरे आँचल की ,
  हर शपथ दिलाती है ।


 *नारी* तू ही 
   *माँ* कहलाती है ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
vivekdubeyji.blogspot.com


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड ,

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई |
स्त्री शक्ति को सादर नमन | 
हिन्दी कविता- नारी की महिमा |
नारी की महिमा का मै बखान क्या करू |
आदि शक्ति मातृ शक्ति दास्तान क्या कहूँ |
नारी एक रूप अनेक जिसने माना जाना है |
देती छाया आँचल आश्रय कैसे प्रणाम ना करूँ |
कदम से  कदम मिला चलती है संग पुरुष |
राष्ट्र निर्माण बनी भागीदार अनजान क्यो बनु |
जल जमी आकाश वर्चस्व अपना बना रही |
देन उसिकी हम भी खुद मेहरबान क्यो कहूँ |
विज्ञान विकाश राजनीति शिक्षा स्वास्थ्य सबमे |
माँ बहन पत्नी प्रेमिका वही एहसान क्यो न लूँ |
प्रेम त्याग तपस्या बलिदान की मूर्ति नारी |
बदलते परिवेश हुई अग्रसर पहचान क्यो न लूँ |
मान मर्यादा परिवार समाज सभ्यता नारी से |
करे जो शोषण दमन बलात घमासान क्यो न करूँ |
लड़ाई आजादी या आज की विकाशवादी चलन |
बिना नारी सम्मान अधूरा हिंदुस्तान क्यो न कहूँ |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"कवि हूँ"
""""""""""""
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ
कभी धूप को छाँव लिखूं
कभी छाँव को धूप
हर शब्दो को खुद से तोड़ा हूँ
जैसे खुद में टूटा हूँ
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ


कभी गम में हँसता हूँ
तो कभी गम में रोता हूँ
हर हाल में जीना सीखा हूँ
कभी मझधार ......
तो कभी पतवार में खुद को पाता हूँ
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ


चलता हूँ... थकता हूँ
गिरता हूँ...सम्भलता हूँ
पाँव तले जमीं नही है.....
फिर भी जमीं बनाये जाता हूँ
कवि हूँ...
मैं कवि हूँ
बिना प्रकाश के रवि हूँ ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


कुमार कारनिक   (छाल, रायगढ़, छग)


      *नारी/महिला*
      ^^^^^^^^^^^^
     मनहरण घनाक्षरी
  (शिल्प-८,८,८,७=३१
    वर्ण,पदांत गुरु)
        """""''''""
भारत  की  तू   है   नारी,
प्रीत    रीत   तुझे  प्यारी,
मानती    दुनिया   सारी,
          ममता महान है।
🧕
साहस  की   है  मिसाल, 
देखे     सपने    विशाल,
नित     करती    कमाल,
      दुनिया की शान है।
🧕
झाँसी वाली रानी तू ही,
इंदिरा  प्रतिभा   तू   ही,
पीटी  उषा  दीपा तू  ही,
         तीजन महान है।
🧕
इसमें   न   कोई    शक,
जान  गयी  निज   हक,
धरती     गगन      तक,
        तुम्हारी उड़ान है।



🧕विश्व महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ🌸🧕
                        """"""""""


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांकः ०८.०३.२०२०
वारः रविवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः नमन नियंता नारियाँ 
वर्धापन   महिला   दिवस , महाशक्ति  को आज। 
करुणा    ममता    स्नेहिला , नवजीवन आगाज।।१।।
धीरा     वीरा    साहसी , प्रतिमानक        संघर्ष।
मातु   सुता  भगिनी   वधू , है   जीवन   निष्कर्ष।।२।।
भावुक   नाजुक   कोमला , मानक नित संकोच।
नवदुर्गा   जगतारिणी , सजग   रखे   शुभ सोच।।३।।
मनसा   वाचा   कर्मणा ,  परसुख  जीवन   दान।
ममतांचल   छाया   बनी , कौलिक नित सम्मान।।४।।
पढ़ी    लिखी  नारी   सबल , चढ़े  लक्ष्य सोपान।
आज    निर्भया   नारियाँ , सफला हर   अरमान।।५।।
सहज   सरल    मृदुभाषिणी, अश्रु नैन   आगार।
प्रिया    खुशी    मुस्कान वह , साजन मन उद्गार।।६।।
वामांगी       नारायणी , जननी     वह     संसार।
अन्तर्मन   सागर    समा , करुण   नेह   आगार।।७।।
युगधारा   जीवन   सरित , वक्ष  क्षीर  बन   नीर।
नित  संतति   को  सींचती , पाल पोष  हर पीड।।८।।
शान्ति प्रकृति,पर क्रान्ति भी,नित नारी बन धीर।
पर    रक्षण निज  अस्मिता , महाकाल  रणवीर।।९।।
गृहलक्ष्मी     रतिरागिनी , निर्मात्री         परिवार। 
शीला    धीरा   मानिनी , आराध्या        मनुहार।।१०।।
नमन   नियंता    नारियाँ , रिश्तों   का   आधार।
निखर    रही    हर   रूप में , बाहर घर परिवार।।११।।
बनी    रोशनी    जिंदगी , पति  हो या   सन्तान।
सुता   बहन   माता प्रिया , करें   सभी   सम्मान।।१२।।
सुर   नर   दानव   पूजिता, रम्या नित  सुखसार।
क्यों    दहेज    उत्पीड़ना , सहे   शक्ति   संसार।।१३।।
अद्भुत वह   बहुरूपिणी , स्वाभिमान  प्रतिमान।
विध्वंसक   दानव   पतित , दें   नारी    सम्मान।।१४।।
सज   सोलह   शृङ्गार  तनु , दे साजन  उपहार।
नारी   माँ   ममता  प्रिया , नीति  रीति  अवतार।।१४।।
कवि निकुंज शुभकामना,चलो प्रगति नित राह। 
शक्ति सबल निर्भय सफल,पाओ जीवन  चाह।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


यशवंत"यश"सूर्यवंशी   भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग



विषय🥀 महिला दिवस 🥀



विधा मनहरण घनाक्षरी छंद


 


🧚‍♀️🧚‍♀️🧚‍♀️🧚‍♀️🧚‍♀️🧚‍♀️🧚‍♀️🧚‍♀️


नारी को पढ़ाओ अब,नारी को बढ़ाओ अब।
सुकन्या बढ़ेंगी जब,देश बढ़ जाएगा।।


🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️


नित नये नाम कर,धरा आसमान पर।
भ्रुण कन्या बचेगी तो,जग बढ़ जाएगा।।


🧜‍♂️🧜‍♂️🧜‍♂️🧜‍♂️🧜‍♂️🧜‍♂️🧜‍♂️🧜‍♂️


घट-घट घटना तो,घट रही सरपट,
नारी नाश करोगे तो,नर बढ़ जाएगा।।


👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👦‍👦


कर नारी पूजा तुम, छोड़ काम दूजा तुम।
हर घर फूल खिले,बाग बढ़ जाएगा।।



🥀🌺🌺🌻🌻🌸🌸🥀



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


इन्दु झुनझुनवाला

महिला दिवस की शुभकामनाएं सभी दोस्तों को 😊💐💐💞💞💞


ये दुनिया सारी मुझमें है।


अगर सच में जानना चाहते हो मुझे ,
 किसी ढाँचे में डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
नीले-नीले आकाश-सी मैं,
उमड़ते-घुमडते बादल ,
चमकती बिजलियाँ कभी ,
बरसती नन्हीं-नन्हीं फुहारें भी।
किसी घरौंदे में कैद ना करो ,
चूक जाओगे ।


चमकते सूरज-सी रोशन मैं ,
दहकता आग का गोला , 
रौशन दोनों जहाँ जिससे,
इंदृधनुषी न्यारी-प्यारी किरणें भी।
दीपक ना समझ लेना खाली ,
चूक जाओगे ।


विशाल फैले समुंदर-सी मैं,
उठती तूफानी लहरें,
साहिल की तलाश में ,
शांत , फिर-फिर लौट जाती भी ।
बहता सोता ना मान लेना सिर्फ, 
चूक जाओगे ।


अगर सच में जानना चाहते हो मुझे ,
किसी ढाँचे में डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।


बहार हूँ मैं,पतझड़ भी मुझमें है।
जय  हूँ मैं, पराजय भी मुझसे है।
झूठ  हूँ मैं, सच भी मुझसे है।
दोस्तों की दोस्त,दुश्मनी भी मुझसे है ।
सीता  हूँ मैं , कैकयी भी मुझमें है ।
सावित्री  हूँ मैं, रंभा भी मुझमें है ।
माँ हूँ मैं, बेटी भी मुझमें है।
नारी हूँ मैं, 
नर भी मुझसे है।
पंच तत्व की दुनिया ये ,
ये दुनिया सारी मुझमें है ।
ये दुनिया सारी मुझसे है ।
अगर सच में जानना चाहते हो मुझे तो ,
किसी ढाँचे मे डालकर मत देखो ,
चूक जाओगे ।
इंदु
२९,०५,२०१७
अनुभूतियों के मोती (काव्य संग्रह )


डा0विद्यासागर मिश्र"सागर" लखनऊ उ0प्र0

आज का सृजन
भारतीय नारियो को कहते जो अबला है,
यह बात बन्धु मेरे समझ न आयी है।
वक्त पर रक्त को चढ़ाया मातृभूमि पर,
रण्भूमि आने मे भी नही शर्मायी है।
दांत खट्टे कर दिये रण्भूमि बैरियो के,
काटि काटि मुंड रण भूमि मे गिरायी है।
वीर पृसूता यहाँ की नारियाँ सदैव रही,
इसीलिए नारी यहाँ सबला कहायी है।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र"सागर"
लखनऊ उ0प्र0


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