रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम"


जीवन की है संपदा प्रीति अमर बेजोड़।
 इस शुभकामी तत्व से हर मानव को जोड़।।


प्रीति रसामृत सरस स्वभाऊ।छोड़त सुन्दर सुखद प्रभाऊ।।
यह जीवन का मूल मंत्र है।दिल से दिल का स्नेह तंत्र है।।
इसमें ऊर्जा अमित अपारा।इससे बनता जग अति प्यारा।।
जिसके उर में प्रीति वृष्टि हो।वह पा लेता मधुर दृष्टि को।।
जहाँ प्रीति का याचन होता।मनोहारिणी वाचन होता।।
अदा विखेरत प्रीति सुन्दरम।प्रकृति जागती बनी मनोरम।।
शुद्ध प्रीति ही स्वर्ग समाना।वैभव मिलता बहु मनमाना।।
करो प्रीति का नित सम्माना।हाथ जोड़कर कर नित ध्याना।।
वितरित करते रहना नियमित।सत्पात्रों को देना निश्चित।।
यह संयम की सुन्दर भाषा।सुखमय जीवन की यह आशा।।
हो जाता जीवन आनंदित।प्रीति प्रियतमा हो जब वंदित।।
जीवों को बस प्रीति चाहिये।मादक अमृत गीति चाहिये।।
प्रीति रसामृत बरसाओ नित।लक्ष्य यही बस हो सबका हित।।
सुन्दर सावन की प्रतीति हो।मृदु भावों से सहज प्रीति हो।।
प्रीति-दिवाकर बनकर जीना।दे प्रकाश सबके उर रहना।।
नहीं दर्प की जगह बनाओ।सबके दिल में रच-बस जाओ।।


प्रीति करो संसार से सबके उर में पैठ।
करो चाकरी प्रीति की कोमल मन बिन ऐंठ।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"होली"* (दोहे)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
*महका चारों ओर है, मादकपन मधुमास।
रंग भरे अनुराग से, फागुन का उल्लास।।


*आयी होली मदभरी, रंगों का त्योहार।
सींचो स्नेहिल रंग से, बाँटो सबको प्यार।।


*द्वेष-घृणा को त्याग दो, हो मन-मंथन-मेल।
होली हिय हर्षित करे, रंगों का यह खेल।।


*होली खेलो प्रेम से, बहे नेह रस धार।
साथ रहो तज दंभ को, करना मत तकरार।।


*बैर भुला दो आपसी, बनकर मस्त मलंग।
भेद-खेद को त्यागकर, भरो प्रेम का रंग।।


*कुंठित मन को खोलकर, भाव करो उद्दीप्त।
होली के शुचि रंग से, हो जाए मन तृप्त।।


*ढोल-मजीरे-बाँसुरी, बजे नगाड़े-चंग।
हास-ठिठोली-मसखरी, रंग न हो बदरंग।।


*नाश नशे में मत करो, तज दो दारू-भंग।
प्रेमिलपन अनुराग है, होली का हर रंग।।


*भस्म करो हिय-होलिका, प्रेम-पले-प्रह्लाद।
भावन-भव-उत्थान है, होली का आह्लाद।।


*रंगों की बौछार है, उड़े अबीर-गुलाल।
होली की शुभकामना, हिय में हो न मलाल।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*नारी,,,,,शक्ति,त्याग,ममता का*
*प्रतिबिंब।।।।मुक्तक माला*


1,,,,
चार दीवारी के भीतर वह
एक संसार बसाती है।


बच्चों को संस्कार का हर
घूँट   पिलाती    है।।


नारी होती त्याग की मूरत
ईश्वर का प्रतिरूप।


एक वीरान मकां को जैसे
घर बार बनाती है।।


2,,,,,,,,,
माँ दही कटोरी   से  शगुन
सर पर आशीर्वाद है।


बिना  कहे  समझ ले  हाल
दिल की फरियाद है।।


रोटी का गर्म निवाला अमृत
का   प्याला हो जैसे।


धूप में    शीतल   छाया  हर
हिचकी  पर याद  है।।


3,,,,,,,,
उसे   स्वछंद  उन्मुक्त सारा
आसमाँ  चाहिए।


उठने बढ़ने को एक   खुला
मकां    चाहिए।।


नहीं चाहिए बेटियों को अब
पाँव   में   बेड़ियां।


नारी है सबला   उसे  अपना 
पूरा जहाँ चाहिए।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो 9897071046
     8218685464


संजय जैन, बीना (मुंबई ) 

 


*होली का त्यौहार*
विधा : कविता 


आओ हम सब,
मिलकर मनाएं होली।
अपनों को स्नेहप्यार का,  
 रंग लगाये हम।
चारो ओर होली का रंग, 
 और अपने संग है।
तो क्यों न एकदूजे को, 
रंग लगाए हम।
आओ मिलकर मनाये,
रंगो की होली हम।।


राधा का रंग और 
कान्हा की पिचकारी।
प्यार के रंग से , 
रंग दो ये दुनियाँ सारी।
ये रंग न जाने कोई, 
जात न कोई बोली।
आओ मिला कर मनाये, 
 रंगो की होली हम।।


रंगों की बरसात है, 
हाथों में गुलाल है।
दिलो में राधा कृष्ण, 
जैसा ही प्यार है।
चारो तरफ मस्त, 
रंगो की फुहार है।
हर कोई कहा रहा,
ये रंगो का त्यौहार है।।


बड़ा ही विचित्र ये, 
रंगो का त्यौहार है।
जो लोगो के दिलों में, 
रंग बिरंगी यादे भरता है।
देवर को भाभी से, 
जीजा को साले से।
बड़े ही स्नेह प्यार से, 
रंगो की होली खिलता है।
और अपना प्यार,
रंगो से बरसता है।।


होली मिलने मिलाने का,  
 प्यारा त्यौहार है।
शिकवे शिकायते, 
भूलाने का त्यौहार है।
और दिलों को दिलों से, 
मिलाने का त्यौहार है।
सच मानो और जानो, 
यही होली का त्यौहार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन, बीना (मुंबई ) 
09/03/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"सपने हो साकार"*
"सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।
बस सोचती रही जीवन में,
कैसे-सपने हो -
साथी यहाँ साकार।
रात-दिन लगी रही ,
घर के कामो में-
टूटा नहीं विश्वास।
जब भी मिलता समय,
ढूँढे मन जीवन मे-
कैसे-सपने हो साकार?
किताबें ही दें सकती साथी,
मेरे जीवन को-
नव आकार।
पढ़ना नहीं छोडूगी साथी,
जब तक मिलेगी न मज़िल-
हो न सपने साकार।
सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
         सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे मेरे जगदीश सदा ही हृदयतल में तुम्हें बिठाऊँ
बन कमोद मेरे कृष्णचन्द्र तुम्हें देख देख मुस्काऊँ


हे बृजराज तुम्हारे चरणों की रज सिर पर धारूँ
बृषभानु सुता के चरणों मैं अपना जीवन वारूँ


युगलछवि की दर्शन अभिलाषा नित हृदय बनी रहे
तुम मिलें तो जग को भूलूँ पल पल मन में भाव रहें


नित्य अचिन्तन अनन्त अनादि अखण्ड अभेद मुरारी
करो कृपा हे दीनदयालु है सत्य तो शरण तुम्हारी।


श्रीराधे गोविन्दाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

🤣🤣 रंग भंग सब हो गया 🤣🤣


दूर रहो हमसे पिया,
                         डारो मत तुम रंग।
"कोरोना"  लगता  हमें, 
                           ले आए हो संग।


पहले चेहरा ढाॅ॑प लूॅ॑,
                      मलना तभी गुलाल। 
चीनी रंग गुलाल ये,
                      बन जाए मत काल।


बहियाॅ॑ में तुम मत भरो,
                      और न पकड़ो हाथ। 
डायन लेकर आ गए,
                      तुम" कोरोना" साथ।


रंग भंग सब हो गया,
                       मनवा हुआ उदास। 
लायी  थी  मुर्गे  बड़े, 
                       होली ख़ातिर खास।


अब इनका में क्या करूॅ॑,
                       समझ न आए यार। 
एक  नहीं  मुर्गे  बड़े,  
                        लायी  थी  मैं चार।


                ।। राजेंद्र रायपुरी।।


अखण्ड प्रकाश

करोना ? कुछ करो ना,
मुस्काओ पर लड़ोना। 
होली है यज्ञ उत्सव,
पिल जाओ अब डरो ना।।


घर घर जलाओ होली,
भर लो खुशी से झोली।
देखो  गले  लगालो ,
लेकिन गले पड़ो ना।।


रंग से न हो ठिठोली,
फूलों से खेलो होली।
ये पवित्रता की संस्कृति,
बकने दो तुम बको ना।।


जो करेगा (चीन) भरेगा,
जो लड़ेगा (पाक) मरेगा।
प्रहलाद  के  हो  वंशज,
सच्चाई   से   डरोना ।।


जो भी दिखाए आंखें,
उसकी निकाल लो ना।
हो प्रेम का  पियासा।
उसको सम्हाल लो ना।।


कहते प्रकाश हंस कर,
मन में जी कुछ धरो ना।
कोई   मांग   खाली,
होली है    जी भरो ना।।


करोना करोना करोना करो ना.....
डरोना डरोना डरोना डरो ना......


कालिका प्रसाद सेमवाल

🙏🌹नव संकल्प🌹🙏
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
जीवन में कुछ करना है तो
नये नये संकल्प लेने होंगे,
नयी-नयी आशायें
नव स्वप्न हम रोज बुन चलें
नयी -नयी धारायें।
केवल अपने लिए नहीं है।
अपना यह जीवन
देश, राष्ट्र की सेवा में हो
अर्पित यह तन-मन।
जूठन की ढेर में
चावल के दाने को ढूंढती
नन्हीं-नन्हीं उंगलियां।
सूखती अंतड़ियों के लिए भी
जीवन में कुछ करना  होगा,
संवेदनशील होना ही होगा।
जीवन अतीत के क्षण की थाती है
भावी के सपनों की दीपक बाती है,
सबके प्रति प्रेम, दयाभाव ही जीवन है।
*******************************
🏵🔔कालिका प्रसाद सेमवाल
*****************************


आलोक मित्तल

खुद मगर वो मुस्कुराते है बहुत 
*************************
प्यार से उनको सताते है बहुत,
दिल उन्ही से हम लगाते है बहुत ।।


वो कमाई खा गए जनता की सब
और कहते है कमाते है बहुत ।। 


वो किसी से सच कभी कहते नही 
झूठा सबको वो बताते है बहुत ।।


है दिखाने को नही कुछ पास में
शान अपनी भी दिखाते है बहुत ।।


औरतों का ही जमाना है यहाँ
फिर भी इक दिन को मनाते है बहुत।।


ज़िन्दगी कर दी उन्ही के नाम अब
साथ उनसे  वो निभाते है बहुत।।


है हया आँखों में दिल में प्यार है
खुद मगर वो मुस्कुराते है बहुत ।।


** आलोक मित्तल **


संजय जैन (बीना) मुम्बई

*चित्रण*
विधा : कविता


जिन्हें हम ढूढ़ रहे,
रात के अंधेरों में।
वो तो बसते है,
हमारे दिल के अंदर।
कैसे लोग समझ, 
नही पाते उन्हें।
जबकि वो होते है,
सदैव हमारे अंदर।।


मन की लगी आग को,
कैसे तन से बुझाओगे।
कुछ उनके कहे बिना,
कैसे समझ पाओगे।
यदि दिलसे उनके हो,
तो उनको समझ जाओगे।
और उनसे मिलने को,
उनके पास जाओगे।।


जिंदगी का चित्रण,
कैसे में व्या करू।
चित्र खुद कहता है,
कहानी जीवन की।
न समझे यदि चित्रको
तो बेकार है चित्रकारी।
और जो समझते है, 
वो ही प्यार करते है।
और जिंदगी के अंधेरों को,
रोशन से भर देते है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (बीना) मुम्बई
08/03/2020


कवि संदीप कुमार विश्नोई

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बहुत बहुत बधाई


जय माँ शारदे
नमन मंच


विषय नारी


विधाता छंद


 कभी जननी कभी तनुजा कभी पत्नी कहाती है , 
लुटाकर सब तुम्हारे पर वही आँसू बहाती है। 
छुपाकर कष्ट वो खुद के तुम्हें हरपल हँसाती है ,
वही राजा बनाती है वही ईश्वर बनाती है। 


कवि संदीप कुमार विश्नोई


    डा.नीलम

*नारी का वजूद*


रिश्तो के बहिखाते में
एक पन्ना तो क्या
एक पंक्ति का भी
खाता, मेरे नाम का
न था
हर बार सहेजा
हर कीमत पर,
हर बार मगर 
रिश्तों का खाता
रीता ही रहा
बिटिया,बहना,
माँ,भाभी,दादी-नानी
सब बनकर
सब में बाँट स्नेह
सबको सबका दाय दिया
भर भर झोली
सबको प्यार दिया
हर रिश्ते का खाता
फिर भी खाली रहा
पत्नी,प्रेयसी,रुपसी
मेनका सब ही 
तो मैं बनकर आई
फिर भी नहीं
किसी को लुभा पाई
सदियों से चर्चे में
रही मैं चर्चा बनकर
मगर रिश्ते में ही ना
कभी रहपाई
बाबा ने जब भी
थी रिश्तों की तिजोरी
खोली
पाई-पाई जोड़ी जोभी
भाई-बेटे के 
नाम की पाई
बेटों ने भी 
विदेश-गमन के
नाम लगा दी
सारी कमाई
बूढ़े माँ-बाप का
आसरा बनकर भी
बेगारी तो रही मगर
कभी सहारा ना
कहलाई
बनी सदा औरत ही मैं तो ओढ़ी रिश्तों की चादर
रिश्तों में ही
ढूँढती हूँ आज भी
वजूद अपना।


    डा.नीलम


डॉ प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

*होली*


सौहार्द प्रेम सदभाव ह्रदय, दमके सिर चंदन शुभ रोली।
अघ दूषण परिहर त्रय ताप मिटैं,जीवन सरसै  बन रंगोली।।
रंग अबीर गुलाल चलै, परिहास हास आनंद घनो,
मनकाम्य शुभम् हरि मनस प्रखर,समृद्ध सुखद सबकी होली।।


*डॉ प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

सभी देशवासियों को रंगोत्सव की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं


होली  के  हर  रंग  से, हिय  रंगों  आप   खूब,
दिलों  में  यदि  भेद  हो, तो  निकाल  दीजिए।
अपने   पराये  सभी,  को  गले  लगाओ आज,
देश   की    परंपरा    को,   मशहूर   कीजिए।
जिन कार्यों से सभी को, मिलता हो सुख खूब,
अधरन   हँसी   खिले,   वो  जरूर   कीजिए।
आने  वाली  पीढ़ियाँ  भी,  गर्व  इस  पर  करें,
होली   का  पावन  खूब,  ये  दस्तूर   कीजिए।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


हलधर - 9897346173

आज का छंद-होली
------------------------


हाथ ना मिलाओ यार ,दूर हट जाओ यार ,


कोरोना की इस वार ,पड़ी मार होली में ।


चाइनीज फुलवारी ,रंग हो या पिचकारी ,


फैला  रहीं महामारी , इस पार होली में ।।


मांटी के गुलाल संग ,देश के लगाओ रंग ,


घर की पंजीरी छंग , पियें यार होली में ।


मजहबी वायरस , खाया भाई चारा रस ,


तीन  पेग हुए बस  , नहीं चार होली में ।।


हलधर - 9897346173


नूतन लाल साहू

होली
रंग डालेव,गुलाल डालेव
हर रंग मा,नहला डालेव
तन हे काला, मन हे काला
कइसे बनावव,गुलाबी वाला
होली में रंग,जमाना है
कविता में,भंग मिलाना है
होली हे,होली हे,होली हे
होली हे,होली हे,होली हे
कुछ पीते है अउ पिलाते हैं
जो नहीं पीता,उन्हें जलाते हैं
असली नशा तो,प्रभु भक्ति में है
कोई भी रूप में,प्रभु आ जाते है
भक्त प्रहलाद की बात करो
नरसिंग अवतार की याद करो
रंग डालो, गुलाल डालो
प्रेम रंग में रंग,जाना है
होली में रंग,जमाना है
कविता में भंग मिलाना है
होली है,होली है,होली है
होली है,होली है,होली है
देश प्रेम में बंध जाओ
हृदय स्पर्शी,रंग लगाओ
होली में,कोई सजते है
कोई हसते है,कोई रोते हैं
रंग डालेव,गुलाल डालेव
हर रंग मा,नहला डालेव
तन हे काला,मन हे काला
कइसे बनावव,गुलाबी वाला
होली में रंग,जमाना है
कविता में,भंग मिलाना है
होली है,होली है,होली है
होली है,होली है,होली है
नूतन लाल साहू


 


कैलाश दुबे

हर महिला से अपना नाता है ,


वह तो मानो भारत माता है ,


फिर कैसी ये तेरी माया है , 


अरे सम्मान हमें भी आता है ,


है तेरे रुप अनेक हे माता ,


हम नव राते में करते जगराता है ,



कैलाश दुबे


रीतु प्रज्ञा           दरभंगा, बिहार

होली आयी रे


होली आयी रे,आयी रे
होली आयी रे
तन,मन मस्ती छायी रे,छायी रे 
होली आयी रे।
भेदभाव सब भूलो रे
सब गाल रंग,गुलाल मलो रे
भर पिचकारी रंग डालो रे सखी,
रंगों के वर्षा में नहा लो रे सखी।
होली आयी रे,आयी रे
होली आयी रे
तन,मन मस्ती छायी रे,छायी रे
होली आयी रे
रंग डालो रे कन्हाई
मत पकड़ो रे कलाई
करो प्रेम रंगों के बौछार
भींगे चुनर,आयी है होली की बहार।
होली आयी रे,आयी रे
होली आयी रे
तन,मन मस्ती छायी रे, छायी रे
होली आयी रे।
सबको  आज करों हसीन
सूखे पत्तें  कर दों नवीन
चूड़ियाँ खनकाओ रे सखी
झूमझूम फगुआ गाओ रे सखी
होली आयी रे ,आयी रे 
होली आयी रेश्र
तन,मन मस्ती छायी रे, छायी रे
होली आयी रे।
               रीतु प्रज्ञा
          दरभंगा, बिहार


डॉ प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

विश्व महिला दिवस


मैं संकल्प सत्य कृत आराधक ,  सर्जन मूलक आधार स्वयं।
मैं महाकाल की शक्ति शिवा, परिणीता सुभग प्रसार स्वयं।।
मैं कहाँ पुरूष से होड़ करूँ, मेरा असितित्व विलक्षण शुचि,
मैं श्रद्धा वत्सल मूर्ति प्रखर, संस्कृति का शुभ आभार स्वयं।।


डॉ प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


प्रिया सिंह

औरत नहीं ये कीमती हीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है
इसे छेडो मत गलियारों में 
इसकी गिनती है उजियारों में 
ये एक वट की हरियाली शीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


ये जलती सीता की पीड़ा है
ये बैखौफ सी होती धीरा है
इसे छोड़ों मत अंधियारों में 
इसे जलने दो अगियारों में 
ये सरल स्वभाव गंभीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


ये समंदर पर बसा जजीरा है
ये बेटी देश की कशमीरा है
ये आती कहाँ है खाकसारो में 
इसकी गिनती है इज्जतदारों में 
ये वेद की एक इलाजी चीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


हौसलों की धधकती वीरा है
ये मसाला,मिर्च और जीरा है
कमी नहीं इसके व्यवहारों में 
अद्भुत है नारी संस्कारों में 
रिस्तो में फसी जंजीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 



ये बसा खुशहाल मंदीरा है
ये स्वेत प्रेम बानों रघुवीरा है
ये आती है बेशक होशियारों में 
जिल्लत शूमार है अधिकारों में 
ये साफ किरदार शकीरा है
ये चंचल शौख फकीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 
औरत नहीं ये किमती हीरा है



Priya singh


रीतु प्रज्ञा            दरभंगा, बिहार

शीर्षक:-नारी


नारी तू महान है,
तुझ से ही जहान है।
तू है शक्ति स्वरूपा,
तेरी ममतामयी रूप है अनूठा।
तू ही है पतित पावनी भारती,
करें तुझे ही भक्त नित्य आरती।
तुझसे  होती दिन के आलोक नवल,
तू ही है  धीर,वीर,गम्भीर,अचल
तू ही है पावन सरिता की धारा,
निश्चल प्यार लुटाती जीवन भर सारा।
तू ही लाती आलय नवीन किरण,
होने न देती किसी को कभी शिकन।
तू ही करती सबका निस्वार्थ सेवा,
इच्छा न हो पाने की थोड़ी भी मेवा।
नारी तू महान है,
तुझ से ही जहान है।
                 रीतु प्रज्ञा
           दरभंगा, बिहार


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

जोगीरा


निज पत्नी का भी करो, आज खूब सत्कार।
बाहर  सेवा  की  अगर, तो  फिर  होगी रार।


जोगीरा सारा रारा रा


घर  के  कामों  में सदा, खूब बटाओ हाथ।
आनाकानी की अगर, फिर पकड़ोगे माथ।


जोगीरा सारा रारा रा


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


शिवानंद चौबे  भदोही यूपी

महिला दिवस के पावन अवसर शुभकामनाओं के साथ समर्पित ये पंक्तियां।
........................................


नारी वेद है नारी पुराण है 
माँ सृष्टि का आधार है,
गंगा सी पावन हैं परम 
नारी खुशियों की संसार है –
काशी है नारी काबा है नारी 
गीता है नारी कुरान है 
सर्वस्व न्यौछावर जो करे 
नारी वात्सल्य है वो प्यार है –
करुणा दया की भाव नारी
आंचल में ममता को लिए 
है स्वर्ग चरणों में जहां
नारी सर्व तीरथ बार  है –
नारी आयते है कुरान की 
नारी श्लोक गीता की यहाँ 
नारी बायबिल गुरु ग्रन्थ साहिब 
नारी सृष्टि सृजन का आधार है –
नारी धुप में एक छांव है 
नारी स्नेह उर की स्वभाव है 
नारी ज्ञान मान प्रदायिनी
नारी भाव की संसार है –
धरती है नारी आकाश नारी
अपनत्व का एहसास नारी
करते  नमन सादर हैं हम  
चरणों में शिवम् स्वीकार है  !
...................................
शिवानंद चौबे 
भदोही यूपी


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"नारी-शक्ति"*
"असीम शक्ति से भरी है-नारी,
वो तो हर रूप में-
लगती हैं-प्यारी।
बिन नारी के तो जीवन अधूरा,
पग पग दिखती-
जीवन में लाचारी।
माँ की ममता और ममता का आँचल,
बिन नारी के-
माँ बिन जीवन की कहानी अधूरी।
अन्नपूर्णा बनकर हरती भूख प्यास,
देती स्वादिष्ट भोजन-
लगती वो तो प्यारी।
भूल जाते जीवन में पतझड़ की चुभन,
जब नारी बनती-
जीवन की सहचारी।
पत्नि बन देती वो तो,
सुख जीवन के सारे-
कितनी महान है-नारी।
रिश्तो की गरीमा भी,
नारी बिन-
जीवन की कहानी अधूरी।
बाँधे उम्मीद की डोर,
बिन नारी के-
होती नहीं पूरी।
असीम शक्ति से भरी है नारी,
वो तो हर रूप में-
लगती हैं-प्यारी।।"
ः           सुनील कुमार गुप्त


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