सुरेंद्र सैनी बवानीवाल           झज्जर (हरियाणा )

होली... रंग प्यार का 


पिया से बोली प्रियतम 
सुनो, आज होली है 
मुझपर भी रंग खुमार का 
प्रेम वशीभूत अबरार का 
ना करना मौका तकरार का 
मेरा लगाव सरोबार का. 


मुझपर अपना चढ़ा दो रंग 
नहीं होता इंतज़ार का. 
एक रंग प्यार का 
एक रंग दुलार का 
एक रंग प्रेमाधार का 
भावनामयी अज़ार^ का          प्रेम भावना 
एहसासरत गुणागार^ का        बंधन 
मेरे इस धड़कते दिल में 
फैले से सभागार का 


एक रंग चढ़ा दो मुझपर 
उस मुस्कुराते अनार का 
सौन्दर्यमयी मीनार का 
मेरे आँगन में चनार का 
खिलते यौवन कचनार का. 


प्रियतम ने अपनी बाहें खोली 
पेड़ हो ज्यों गुलनार का 
कहने लगा "तुम जीवन हो मेरा 
मेरे प्रेम भरे अम्बार का". 
मेरा प्यार तो निश्छल है, 
ये मोहताज़ नहीं अबरार का. 
तुम्हें देख रूह खिलती है "उड़ता ", 
यही है रंग मेरे प्यार का. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
         झज्जर (हरियाणा )
   संपर्क - 9466865227


हलधर -9897346173

छन्न पकैया -बुरा न मानो होली है 
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                    1
छन्न पकैया हलधर भैया ,कोमल मन अनुरागी ।
सत्य अहिंसा के झांसे में , दिल्ली जली अभागी ।।
 सा रा रा रा रा -----------जोगिरा -सा रा रा रा 
                     2
छन्न पकैया हलधर भैया ,मैली होती गंगा ।
जल में जहर घुला है ऐसा ,होय न रोगी चंगा ।।
 सा रा रा रा रा -------------जोगिरा -सा रा रा रा
                        3
छन्न पकैया हलधर भैया ,बजा फौज का डंका ।
आतंकों के केम्प जलाये , जैसे रावण  लंका ।।
 सा रा रा रा रा ------------जोगिरा -सा रा रा रा
                       4
छन्न  पकैया हलधर भैया ,घाटी में है लाली ।
हठी तीन सौ सत्तर धारा , आये अब खुशहाली ।।
 सा रा रा रा रा ------------ जोगिरा सा रा रा रा
                        5
छन्न पकैया हलधर भैया ,चाटक नभ में टेरे ।
मेघों का आश्वासन झूठा ,बादल आंख तरेरे ।।
 सा रा रा रा रा ----------- जोगिरा -सा रा रा रा 


                      6
छन्न पकैया हलधर भैया , चूर कुट  सिब्बल मामा ।
अजहर साहब दिखता उसको, दिखे भ्रात ओसामा  ।।
 सा रा रा रा रा -----------जोगिरा -सा रा रा रा रा 
                         7
छन्न पकैया हलधर भैया , सी ए ए  हंगामा ।
धर्म आड़ करे सियासत ,पप्पू पहन पजामा ।।
 सा रा रा रा ----------------जोगिरा - सा रा रा रा
                           8
छन्न पकैया हलधर भैया , मोदी लिया लपेटा ।
ऐसा धोबीपाट मारता ,  बाप  बचे  ना बेटा ।।
सा रा रा रा ------- जोगीरा ---सा रा रा रा 
                         9
छन्न पकैया हलधर भैया ,मन की बात सुनाये ।
दुनियां का कद्दावर नेता , ट्रम्प देश में आये ।।
सा रा रा रा --------- जोगीरा सा रा रा रा रा 


                           10
छन्न पकैया हलधर भैया , खुशी देश में छाई ।
दशकों से तंबू में बैठे  , जीत गये  रघुराई  ।।
सा रा रा रा -------- जोगिरा --- सा रा रा रा रा 


                        11
छन्न पकैया हलधर भैया , कोरोना का भय है ।
कैसे गले मिलें होली में , सबको ये संसय है ।।
सा रा रा रा - ----- जोगिरा ---- सा रा रा रा 


                   हलधर -9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"रंग तेरे रंग लूँ"* (युगल गीत)
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*साँवरी तू पास आ, मोसे नहीं दूर जा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
साँवरिया बेणु बजा, नाचूँ मैं नाच नचा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।


*मैं तेरा कान्हा हूँ, तू है मेरी राधा।
लागे सूना तुम बिन, यह जीवन है आधा।।
आज रंग तन-मन लूँ, और मुझे दे न दगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।


*सपनों में तेरे ही, खोयी रहती हूँ मैं।
पिया-मिलन आस लगी, बाट जोहती हूँ मैं।।
तोसे शृंगार करूँ, लूँ मैं हर अंग जगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।


*रंगों-रंगा तेरे, यह मेरा मन गोरी।
तुझको ही बुला रही, बंशी मोरी भोरी।।
आकर तू आज मुझे, निजपन का रंग लगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।


*स्वप्न सजाया तेरा, अपने मन के आँगन।
फीके हैं रंग सभी, तेरे बिन सुन साजन।।
रंगों की आड़ आज, मुझको तू अंग लगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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कवि✍️डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज'' रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांकः ०९.०३.२०२०
वारः मंगलवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
🌹होली🌹
पिचकारी  भर    के   चली , राधे   गोपी   संग।
गिरधारी    भागे   फिरे , भरे      बालटी     रंग।।१।।
रिमझिम रिमझिम वारिशें , मनभावन मधुमास।
रंग   हाथ   ले    राधिका ,दौड़ी   कान्हा  पास।।२।।
रंगरसिया  माधव  सजन ,  रंग   देख  मुस्कात। 
पकड़ हाथ प्रिय राधिका, सजनी मन सकुचात।।३।।
कहाँ    भागते    हो   लला , डालूँगी   मैं    रंग।
होली   की    रंगों   भरी , गाओगे   पी      भंग।।४।।
घिरे   हुए   चहुँओर   से , नटखट    तू  गोपाल।
यशुमति  मुरलीधर लगा ,छिपकर गाल गुलाल।।५।।
रंग  भरी   पिचकारियाँ ,  होली   गोकुल  धाम।
ब्रजवासी  संग  राधिका , भींगे  तनु  घनश्याम।।६।।
घिरे  कृष्ण  चहुँओर  से, लखि  राधा  मुस्कान।
रंगों     की    रंगरेलियाँ , मधुशाला     मधुपान।।७।।
मोरमुकुट सरसिज नयन, रंजित  मन  गोविन्द।
भींगे   तन   रंगे   वसन , राधा  मुख  अरविन्द।।८।।
मन माधव मधुवन सुभग,विस्मृत मन सब राग।
मधुर   गान  झूमे    मिलें , सद्भावन    अनुराग।।९ ।।
शुभ मंगल दर्शन कठिन , राधा प्रिय  चितचोर।
नमन करें सादर  विनत , होली  में  कर   जोर।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज''
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”

•होली में• हैप्पी होली
अब होली का रंग चढ़ा लो, एक बार तुम होली में
रंगबिरंगा समां बना लो, एक बार तुम होली में
ऊंच-नीच और मजहबों का, सारे अब बैर मिटाकर
सबको ऐसे गले लगा लो,एक बार तुम होली में।
-कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”
सम्पर्क सूत्र-9415911010
KRS


नूतन लाल साहू

होली हे
कइसे जावव,कन्हैया के पास
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
राधा हावय,ललिता हावय
लता अउ,विशाखा हावय
सखा हावय,सहेली हावय
भीड़ हावय, अपार
कइसे लगाहु, मय गुलाल
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
कइसे जावव,कन्हैया के पास
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
वन वन ला खोजेव, मय
घर घर खोजेव
खोजत हव,गली खोर द्वार
कइसे लगाहू, मय गुलाल
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
कइसे लगाहू, मय गुलाल
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
कइसे जावव,कन्हैया के पास
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
राधा हावय,ललिता हावय
लता अउ,विशाखा हावय
सखा हावय,सहेली हावय
भीड़ हावय,अपार
कइसे लगाहू, मय गुलाल
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
कइसे जावव,कन्हैया के पास
उड़त हावय,रंग अउ गुलाल
नूतन लाल साहू


 


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर सम्पादक काव्यरंगोली

सूर्य का  शौर्य का उत्तरायण शुभ व्यव्हार खुशियों त्यौहार।।                  


गावों में किसान की  खुशहाली का इंतज़ार प्यार   !!               


वासंती वयार में रंगो की कभी फुहार कभी वरसात !!        


गोरी का  प्रियतम प्यार , विश्वाश का रंग हज़ार  !!                 


 राधा कान्हा की होली मस्ती की हस्ती यौवन की   ज्वाला  जवा जज्बे  का ज्वार !!              


कोइ गीला शिकवा शिकायत नहीं इंसान का  इंसानियत के रंगों का प्यार मोहब्बत !!                    


ना कोइ गोरा ना कोइ काला हर चेहरा खुशियों के  रंगो का चेहरा ख़ास !!                            


                      


ढोल मृदंग पखावज बाजे राग फाग बहार झूमे  नाचे गावें फागुन के दिन चार रे होली खेले मना ले !!                                       


रंग से बचे ना कोइ दोस्ती यारी का दस्तूर रिश्तों के दिल के रंगो का इज़हार झाल ले फागुन के दिन चार होली खेल मना ले !!         


 


 धरती  दुल्हन जैसी हर गली मोहल्ला   बिरज में  होली खेलत नंदलाल रे होली खेल मना ले !!        
 लाल ,हरा, पीला, नीला, काला रंगों का  चेहरा , अंगिया, चोली  रंग ही जीवन  होली का त्यौहार ,खुशियों के  रंगो का जीवन संसार !!                              



गले से गले मिलते दिल से दिल मिटता मलाल प्यार आशिर्बाद का  गुलशन का गुलाल है फागुन के दिन चार से होली खेल मनाले !!
 होली की शुभकामनाये


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

होली की हार्दिक शुभकामनाएं..
🌺💓🌺💓🌺💓🌺💓
बहारें सजाएँ सितारे नूरानी।
लगे ऋतु बसंती बहुत ही सुहानी।।
सभी मीत होते सहज ही दिवाने।
मगन प्रेम में हो सुनाए तराने।


भरी है अबीरों गुलालों  से झोली।
बजे गीत फगुआ रचै भंग टोली।
सभी एक रंँग हों न दे कोई धोखा।
लगाओ सदा रंग सबको अनोखा।।


लगी हों कतारें सभी द्वार आएँ।
गले से लगाकर सभी दुख भुलाएँ।
खुशी का समाँ है हँसी सब नजारे।
जमीं पर उतर आए सुंदर सितारे।


सजी प्यार से ज्यूँ नवल एक गोरी।
बँधा एक बंधन महज प्रेम डोरी।।
यहाँ रंग प्यारा सभी को चढ़ा है।
ये त्यौहार होली हमीं ने गढ़ा है।


यही खेल राधा मगन से कन्हाई।
इसे खेलने आज मीरा भी आई।
यही संस्कृति की सलोनी झलक है।
जिसे खेलने की सभी में ललक है।।


बढ़ा दम्भ जब भी जली होलिका ही।
जली खुद वही  तो कहे तूलिका भी।
बचालो धरा को सहज नेक जानो।
रहेगा सदा ही नियम एक मानो।


यहाँ एक धरती का साथी गगन है।
यही एक होली का मधुमय चलन है।। 
-- *मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*10.03.2020*


बलरामसिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

राम चरित मानस में महादेव शिव शंकर एवम मर्यादापुरुषोत्तम श्री भगवान राम के सम्बन्धो की सटीक व्याख्या


सेवक स्वामि सखा सिय पी के।
हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि भगवान शिवजी श्री सीताजी के पति प्रभुश्री रामचन्द्रजी के सेवक,स्वामी और सखा हैं तथा मुझ तुलसीदास के सब प्रकार से सदैव निश्छल हितकारी हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  गो0जी ने इस महाकाव्य में कई स्थलों पर भगवान शिवजी को प्रभुश्री रामजी का सेवक,स्वामी व सखा कहा है।
1--सेवक के रूप में--
 शिवजी स्वयं माँ सतीजी से कहते हैं--
सोइ मम इष्टदेव रघुबीरा।
सेवत जाहि सदा मुनि धीरा।।
##############
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।।
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी।
रघुबर सब उर अंतरजामी।।
2--स्वामी के रूप में--
तब मज्जन करि रघुकुलनाथा।
पूजि पार्थिव नायउ माथा।।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
3--सखा के रूप में--
संकर प्रिय मम द्रोही सिवद्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।।
संकर बिमुख भगति चह मोरी।
सो नारकी मूढ़ मति थोरी।।
 प्रभुश्री रामजी ने जब समुद्र पर सेतुबन्धन के समय शिवलिंग की स्थापना की तब,उसका नाम रामेश्वर रखा।रामेश्वर शब्द में सेवक,स्वामी और सखा तीनों का अर्थ हो सकता है।जैसे,,
 तत्पुरुष समास के आधार पर रामस्य ईश्वरः अर्थात राम के ईश्वर।
 बहुब्रीहि समास के आधार पर रामः ईश्वरो यस्यसौ रामेश्वरः अर्थात राम जिसके ईश्वर हैं।
 कर्मधारय समास के आधार पर रामाश्चासौ ईश्वरश्च अथवा यो रामः स ईश्वरः अर्थात जो राम है वही ईश्वर है।
 सुप्रसिद्ध मानसकार व सन्त श्री काष्ठजिव्हास्वामी जी के मतानुसार भक्तिपक्ष में प्रभु से सभी सम्बन्ध बन सकते हैं।इसी आधार पर गो0जी ने शिवजी को प्रभुश्री रामजी का सेवक,स्वामी व सखा कहा है।पुनः एकादश रुद्रावतार श्री हनुमानजी के रूप में वे प्रभुश्री रामजी के सेवक हैं।रामेश्वर के रूप में वे स्वामी हैं और सुग्रीव के रूप में वे सखा भी हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


जय श्री तिवारी खंडवा

होली
तर्ज़-मंदरिया में उड़े रे गुलाल
सब खेला लाल गुलाल, होली नित् आवे रे
प्रेम त्याग का रंग लगाओ
राग द्वेष को दूर भगाओ
हो जाओ खुशहाल, होली नित्---
क्रोध, जलन , ईर्ष्या को जलाओ
अपने मन को पवित्र बनाओ
हो जाओ धनवान, होली नित
मंदिर तीरथ क्यों जाते हो
तन को अपने क्यों थकाते हो
मन को मंदिर बनाओ, होली नित
प्यार का रंग पिचकारी में भर लो
सभी पर प्यार की वर्षा कर दो
रह जाए होली याद, होली नित आवे ये
जय श्री तिवारी खंडवा


सीमा शुक्ला अयोध्या

फागुन आया


धरती का नवल साज,
होता शुभ सकल काज।
कोयल वन गान करे,
तितली रसपान करे।
अलि कलिका चूम चूम, 
मन विभोर झूम झूम।


प्रणय गीत गाता है।
तब फागुन आता है।
*****
रंग उठा है तन मन, 
पुलकित है  अंतर्मन।
घुल जाये सप्तरंग,
भीग उठे अंग-अंग।
मिटता मन से  मलाल,
उड़ता घर घर गुलाल।


तन-मन हर्षाता है।
तब फागुन आता है।
****
फगुआ का राग उठे ,
विरहा की आग उठे।
मन मे जागी  उमंग,
नभ मे उड़ती पतंग।
हाथों मे हाथ मिले,
अपनो का साथ मिले।


मन ये मुस्काता है।
तब फागुन आता है।
****
मंद महक है बयार,
रंगो की है फुहार।
रंग भरें पिचकारी,
बाल करें किलकारी।
नयन भरे है सपने,
दूर बसे जो अपने।


मन उन्हे बुलाता है।
तब फागुन आता है।
****
बाजै ढोलक मृदंग,
प्रीति बैर एक  संग,
खिले सुमन है उपवन,
जग जैसे है मधुबन।
धरती का नीलगगन,
हो जाये आज मिलन।


स्वप्न मन  सजाता है।
तब फागुन आता है।


 
सीमा शुक्ला अयोध्या


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.............. बाल गीत................


आज के बच्चे , कल के कर्णधार।
आप पर ही है , इस देश का भार।


आपका पोषण,आपकाअधिकार।
आपकी शिक्षा के हम  जिम्मेदार।


आपसे ही  इस देश का उजियार।
आपसे ही हर तरह का चमत्कार।


आप से देश की प्रगति हर प्रकार।
आप निकालें देश से  हर दुराचार।


खुद रहें , देश रहे "आनंद" अपार।
नहीं तो  होगा  देश  का  बंटाधार।


-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अपने ही रंग में रंग दो,मेरे नटवर नन्द गोपाल।
हरा भरा रहे घर उपवन, जीवन हो खुशहाल।।


सदा रहे जीवन में लाली,रात कभी न आये काली।
जीवन पथ पर बढता रहूँ, चाल रहे मेरी मतवाली।।


भाव सदा मेरे रहें गुलाबी,कृपा मिले पीताम्बर धारी।
गौरवर्ण की अनुकम्पा से,सदा चरणों मे बलिहारी।।


श्याम पीत वर्ण में रंगकर,सत्य जीवन हुओ निहाल।
अपने ही रंग में रंग दो,मेरे नटवर नन्द गोपाल।।


ऐसा रंग चढ़े भक्ति कौ,जिसे कभी छुड़ा नहीं पाऊँ।
सोते जगते मेरे मोहन,मुख से राधे कृष्णा ही गाऊं।।


तेरे मुखमण्डल की आभा, रंगीन करें जग जीवन।
तेरे रंग में रंगे जो कृष्णा, उन्हें न चाहिए कोई धन।।


सदा तरंगित रहूँ स्वामी,मन में रहे न कोई मलाल।।
अपने ही रंग में रंग दो,मेरे नटवर नन्द गोपाल।।


होली की अनन्त शुभकामनाओं के साथ🌺🌺🌺🌺🌹🌹🌹🌹🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


रीतु प्रज्ञा                           दरभंगा, बिहार

गीत  
फूल सजाकर इन अंगों में  ,
                          सजनी लगे सजीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
                          लगती बड़ी रसीली हो ।।


मीठी लगती तेरी बोली ,
  तू है सबकी हमजोली ।
    रसिक भाव की बनी स्वामिनी ,
      मन मति की निश्छल भोली ।।
.......संग सहेली झूमझूम कर,
          लगती छैल  ,छबीली हो ।
             रंग भरी पिचकारी लेकर,
               लगती बड़ी रसीली हो ।।


आयी है तू लेकर टोली ,
  मस्ती की होगी होली ।
    हर मनसूबे अब हों पूरे ,
      खा लें हम भांग नशीली ।।
       इठलाती सदा हंँसी देकर,
          लगती बड़ी  हठीली हो ।
           रंग भरी पिचकारी लेकर,
             लगती बड़ी रसीली हो।।


खुशियों से भर  दो तुम झोली ,
आँखों से मारो गोली ।
  तुम हो जाओ मेरे प्रियतम ,
   आज सजे सपने डोली ।।
     हाथ अपने सारंगी लेकर ,
       गाती बड़ी सुरीली हो ।
         रंग भरि पिचकारी लेकर,
           लगती बड़ी रसीली हो।।



                ------   रीतु प्रज्ञा
                          दरभंगा, बिहार


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"होली आयी है"*(ताटंक छंद गीत)
****************************
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत $$$, युगल पद तुकांतता।
****************************
*संजोकर है साथ रंग को,
अब की होली आयी है।
मादक वासंती खुशियों की,
झोली भर भर लायी है।।


*धरती झूमे,अंबर झूमे,
झूम उठी हर डाली है।
अमुआ लहके,महुआ महके,
शोभित किंशुक लाली है।।
द्विजगण गाते गीत फागुनी,
सृष्टि सकल हर्षायी है।
मादक वासंती.........।।


*जीवन की धुन अनुरागित हो,
निजपन भरी ठिठोली हो।
कटुतापन छल-छद्म नहीं हो,
प्रेम भरी हर बोली हो।।
मन मृदंग की धुन में थिरके,
प्रीति-रीति हरियायी है।
मादक वासंती...........।।


*तन मन सब का भीग गया है,
भीगत कुर्ता-चोली है।
महक उठी है मन-बस्ती में,
जीवन की रंगोली है।।
राग-द्वेष तज हृदय मिला लो,
'नायक' होली आयी है।
मादक वासंती...........।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली

❤️होली की शुभकामना❤️
दिनांकः ०९.०३.२०२०
वारः सोमवार
विधाः गीत(कविता)
शीर्षकः होली आयी है
होली   आयी   है   आयी  है   होली    आयी   है,
सब   खुशियों     रंगों   की  थाल    सजायी    है। 
शान्ति प्रेम सौहार्द्र आपसी भेंट सजाकर लायी है,
अपनापन  मानवता  का  संदेश  सुनाने आयी है। 
होली आयी है ....
जाति पाति और ऊँच नीच का भेद मिटाने आयी है,
घृणा ,द्वेष छल कपट होलिका आग जलाने आयी है।
अंधापन कट्टर  धार्मिकता  सद्भाव जगाने  आयी  है,
सद्गुरू या भगवान कहो या गॉड ख़ुदा रंग लायी है।
होली आयी है ....
रहें सभी सुख  चैन  प्रेम से  अलख जगाने आयी हूँ,
होली हूँ हर सभी गमों को मुस्कान अधर पे लायी हूँ।
रोग शोक मद लालच सबको आग जलाने  आयी हूँ,
दीन धनी का भेद भुलाकर रंगोली  बन मैं  छायी हूँ।
होली आयी है ....
होली  हूँ  सब  भेद  भुलाकर  गले  मिलाने आयी  हूँ,
पीला लाल गुलाबी हरितिम सतरंग बनी  मैं आयी हूँ।
शान्ति वतन जन मन सुरभित प्रेम चमन बनआयी हूँ, 
सद्भावन समरस मनभावन रिपुदलन कराने आयी हूँ।
होली आयी है ....
हिंसा दंगा रोष विनाशक  मन घाव मिटाने  आयी हूँ ,
त्याग शील गुण कर्म  मधुरतम रंग लगाने आयी  हूँ।
शिक्षा दीक्षा सर्वसुलभ युवजन  प्रेरक बन छायी  हूँ,
राष्ट्र भक्ति एकत्व भाव मन प्रीति  रंग  बन आयी हूँ।। 
होली आयी है ....
दान मान सम्मान  सर्वजन समभाव  राष्ट्र में लायी हूँ,
होली हूँ नैतिक सम्पोषक प्रेम शान्ति रंग बरसायी हूँ।
सबल बने निर्भय नारी सब सम्मान जगाने  आयी हूँ,
रंगों की होली महापर्व वसुधैव कुटुम्ब भाव मैं लायी हूँ।
होली आयी है ....
आओ हम सब मिलें साथ में खेलें रंग रंगोली  होली,
गाएँ झूमें फाग राग हम मधुरिम  रास  रचाएँ  टोली।
गले मिलें सब भेद भुला हम दें बधाईयाँ  मृदु बोली,
लगे लाल गुलाल गाल पे  साजन सजनी हमजोली।
होली आयी है .... 
गुंजे चहुँदिशि गीत जोगीरा सर र र होली मन रंगरसिया,
झूमें मधुवन साथ गोपियाँ  बजाए राधाकृष्ण   मुरलिया।
भाँग पान मदमस्त प्रेम में झूमें सियराम  धाम अवधिया,
फूल वृष्टि काशी रंगीली सज मंगल विश्वनाथ मनवसिया।।
होली आयी है .... 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


डाॅ. बिपिन पाण्डेय

(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर) दोहा संग्रह स्वांतः सुखाय से 


बेटी घर की शान है, बेटी सृष्टि स्वरूप।
बेटी घर को दे रही,देखो रूप अनूप।।1।।


पूज  रहे  जो  देवियाँ,  बेटी  देते  मार।
नीच अधम वे हैं मनुज,उनको है धिक्कार ।।2।।


माँ पत्नी भाभी बहन, सब बेटी के रूप।
वही  ग्रीष्म में छाँव है, वही शीत की धूप।।3।।


नहीं  बेटियों  से  रहा, कोई  क्षेत्र  अछूत।
फिर क्यों रोते हैं अधम,जपें नाम बस पूत।।4।।


दुश्मन के सम्मुख खड़ी, होती सीना तान।
सेना में  भर्ती  हुई, बना  रही  पहचान ।।5।।


अंतरिक्ष में  बेटियाँ भरती  आज  उड़ान ।
बन कुल गौरव पा रहीं, देखो अब सम्मान ।।6।।


मना रहा महिला दिवस,आज सकल संसार।
सब महिलाओं को मिले,उनका हर अधिकार।।7


अधिकारों के बिन कभी,किसका हुआ विकास।
आजादी  से  सब  रहें ,फैले  जगत  उजास।।8


अपने हक के साथ सब,रहें कर्म में लीन।
पुरुष वर्ग समझे नहीं,महिलाओं को दीन।।9


सबके अपने कर्म हैं, सबका अपना ज्ञान।
निश्चित कर व्यवहार को,मत बनिए नादान।।10


करें नियंत्रित हम जिसे,वही जगत आधार।
आदि शक्ति के रूप में,पूज रहा संसार।।11


नारी के कारण सतत,चलती है यह सृष्टि।
भोग्यवस्तु समझें नहीं,बदलें अपनी दृष्टि।।12


जिससे पाई जिंदगी,जिससे सीखा ज्ञान।
अब करता है कौन उस,नारी का सम्मान।।13


डॉ सरोज गुप्ता सागर (म प्र)

होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*सत्ताकेंद्रों केअधिपतियों ने ,बड़े बड़े बोलों, औ कटु उद्गारों से । 
योगक्षेम विनष्ट कर , जन-मानस में अराजकता का लावा बिखरा दिया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*हिन्दू मुसलमान,जन-समाज को भ्रमित कर ,मानवता के अरमानों को पथभ्रष्ट कर दिया ।
बौरायेआम्र विपिन, सौरभ सने उपवन,कोयल की अलाप को अनसुना कर दिया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*जन-धन विभीषिका, खून खराबे के बीच, होली के रंग को बदरंग कर दिया।
किसी की दुकान जली, किसी का मकान जला,मां ने अपना लाल खोया ,प्रियतमा का सिंदूर छिन गया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
*छायी है बहार ,चहुंओर बासन्तिक छटा ,क्रूर कारनामों ने मौसम के मिजाज को बदल दिया।
समाज और देश में, एकता की बात कैसे करें, पग-पग पर क्रूर कंस, कौरवों ने घेर लिया।
होली की हिलोर, हिलग गयी हृदय में। दिल्ली के दंगल ने दिल दहला दिया।
डॉ सरोज गुप्ता सागर (म प्र)


 


यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷       भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग



विषय🥀 होली🥀



🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂


नारी की कहीं मान नहीं,
गली द्वार लगी बोली है।
शर्म खोये हैं शैतानों,
कैसे कहूँ यश होली है।।


🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃


सरहद में सेना को देखो,
पीठ में चलती गोली है।
जब तक मरे नहीं आतंकी
कैसे कहूँ यश होली है।।


🦑🦑🦑🦑🦑🦑🦑🦑


काट रहें हैं पेड़-पौधे,
तरसी दुल्हन को डोली है।
लाश चीता को तरस रही,
कैसे कहूँ यश होली है।।


🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥


ब्यर्थ पानी बहा रहे हैं,
प्यासों की खाली झोली है।
संचय नीर के करें नहीं,
कैसे कहूँ यश होली है।।


💦💦💦💦💦💦💦💦


बैर घृणा है दुनिया में,
प्यार की कहाँ ठिठोली है।
है नफरत जात-पात ऊंच-नीच,
कैसे कहूँ यश होली है।।


😡😡😡😡😡😡😡😡


मांग में सिंदूर है नहीं,
नहीं माथ भरी रोरी है।
टांग दिख रहे फटे वस्त्र,
कैसे कहूँ यश होली है।।


💃💃💃💃💃💃💃💃


दारू गांजा नशा खातिर,
कतार में लगी ठोली है।
देकर दूध गाय मर रही,
कैसे कहूँ यश होली है।।


🐄🐄🐄🐄🐄🐄🐄🐄


गाड़ी फटाके खान धूआँ,
बनकर उड़ी रंगोली है।
साँस खरीद कर जीते लोग,
कैसे कहूँ यश होली है।।


💨💨💨💨💨💨💨💨



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़ छग)


*किसी से कम नहीं*
 (मनहरण घनाक्षरी)
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वो किसी से कम नहीं,
करमों   में  कम  नहीं,
देखो  नित  जल  रही,
      मरती ही आई है।
👧🏻🔥
पत्नी-बेटी - मां-बहन,
करते    जुल्म   सहन,
कहां  हमारा  सम्मान,
     सहती ही आई हैं।
💫👸🏻
उठो  भारत  की नारी,
तुमसे   दुनियां   सारी,
बनों  झलकारी   बाई,
        कदम उठाई हैं।
🏋‍♀💐
अत्याचार मिटाने  को,
तलवार    उठाने   को,
काली    बनकर   हम,
     साहस दिखाई हैं।
🌸🇮🇳



                 *******


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"महिला दिवस"


नारी, तुम कौन हो?
क्यों मौन हो?


तुम आधार हो
अथवा निराधार हो?


तुम्हें किसने बनाया है?
किसने सजाया है?


तुम अनमोल हो
या कि मीठे बोल हो?


आदि हो या अन्त
अथवा अनादि और अनन्त?


तुम रूपसी हो
अथवा वेवशी हो?


तुम अमर सफर हो
अथवा लाचार बेघर हो?


तुम जीवनदात्री हो
या अंधयात्री हो?


तुम सर्वगुणसम्पन्ना हो
अथवा विशुद्ध विपन्ना हो?


तुम दिन हो या रात
अथवा दिन-रात?


तुम भोग्या हो
या परम सुयोग्या हो?


तुम निरापद हो
अथवा संदेहास्पद हो?


तुम सकल संपदा हो
या आंशिक /पूर्ण विपदा हो?


तुम खुशी या गम हो
अथवा आगम और निर्गम हो?


तुम धर्म अर्थ काम और मोक्ष हो
अथवा निर्जीव परोक्ष हो?


तुम शान्त रस हो
अथवा अशान्त अपयश हो?


निर्गुण निराकार हो
या सगुण विकर हो?


तुम सहज सरल निश्छल प्रीति हो
अथवा  असहज क्लिष्ट छल-नीति हो?


तुम औदार्य हो
अथवा कौठार्य हो ?


तुम सद्गति हो
अथवा दुर्गति हो?


तुम सत्यम शिवम सुन्दरम की परिभाषा हो
या कठोर निराशा हो?


तुम पुरुषजनित हो
अथवा स्वरचित-मातृरचित हो?


नारी!तुम सर्व हो
सृष्टि का महान पर्व हो।


तुम माया और दाया हो
नैतिकता की दैवी काया हो।


तुम अविनाशी अनन्त हो
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की स्त्रीवाचक कंत हो।


तुम परमेश्वर और परमेश्वरी हो
उमा माहेश्वरी हो।


अर्धनारीश्वर हो
सचमुच में शिवशंकर हो।


तुम पुरुष की शिक्षा हो
वैराग्य की दीक्षा हो।


तुमें कोटिशः प्रणाम करता हूँ
सम्पूर्ण नारी के स्वाभिमान का सम्मान करता हूँ।


महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


 


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


 एक रंग में रंगा हुआ है आदि काल से प्रिय प्याला,
एक भाव मादकता सुरभित मधु-रंगी मेरी हाला,
एक आचरण प्रेम आचरण दिव्य रंग है साकी का,
एक रंग बहु-रंग समाहित स्वेत-सत्व-शिव मधुशाला।


बड़े-बड़े विद्वान धरा पर किन्तु न समझे हैं प्याला,
गूढ़ रहस्यों के ज्ञाता भी जान न पाये मृदु हाला,
वेद-पुराणों के मनीषियों की मेधा में नहिं साकी,
सर्वज्ञानसम्पन्न स्वयं में शिव-स्वरचित मधु मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


प्रेम पदारथ एक तुम महा धनिक शिव खान।
सकल भुवन की नायिका ज्ञान मान भगवान।।


प्रेम -पीयूषी ज्ञान-अम्बरा।भक्तिभावनी शुभ्र यश-धरा।।
मंत्र सुमंत्र सुयन्त्र सुजानी।महा जननि जानकी भवानी।।
पथिक शिरोमणि अथ-इति-मुक्ता।
ज्ञान गगन सिद्धान्त प्रवक्ता।।
चिन्तन -परा पारलौकिकमय।महामण्डलाकार सर्वमय।।
दिव्या महा विद्य शुभ विदुषी। पद्माकरणी मोह-रूपसी।।
ध्यान धरम धात्री ध्याता धन।चंद्रवदनि  चतुरा-चित-चन्दन।।
सकलवाहिनी हंस विशेषी।ज्ञान धुरंधर विज्ञ अशेषी।।
प्रीति भक्ति नीति दे माता।वीणापाणी ग्रँथविधाता।।


करो कृपा हे माँ सदा एक तुम्हारी आस।
अपने बालक को रखो माँश्री अपने पास।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


कलुषित-दूषित क्रिया विरोधी आज बना मेरा प्याला,
गंदे भावों के विरुद्ध युद्धरत आज दीखती है हाला,
नियम विरोधी गतिविधियों से लड़ता जंग सबल साकी,
बनी सुरक्षा कवच मचलती मेरी पावन मधुशाला।


ईश्वरीय सत्ता में आस्था रखता है मेरा प्याला,
सदा अधर्मी घोर कुकर्मी हेतु विषधरी है हाला,
अरिमर्दन करता प्रति पल है देव शक्ति सम मम साकी,
परम सुन्दरी स्वच्छ व्यवस्था की हिमायती मधुशाला।


सदा पुण्य के धाम में विचरण करता है मेरा प्याला,
धार्मिकता के लिये समर्पित है मेरी हार्दिक हाला,
धर्म मार्ग का सत्य प्रणेता मेरा धार्मिक साकी है,
सदधर्मी शिव-सत्कर्मी के धाम सदृश है मधुशाला।


शुभ कर्मों से प्रेम जिसे हो  उसके कर में हो प्याला,
सुन्दर भाव जिसे अति प्रिय हो वही चखे मेरी हाला,
पावनता की सदा दुहाई जो दे वह मेरा साकी,
परम पवित्र विचार-धाम सी मेरी पावन मधुशाला।


ईशप्रेम का अति अनुरागी है मेरा कंचन प्याला,
ईश्वरीय आस्था की पोषक है मेरी सच्ची हाला,
ईश्वरीय लीलाओं का संवाहक मेरा साकी है,
ईश-व्यवस्था धर्म-व्यवस्था नीति-व्यवस्था मधुशाला।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम"


धर्मपरायण रत्न शिव प्रीति परस्पर नित्य।
अमित भावना स्नेहमय मधुर मिलन नव स्तुत्य।।


धर्म एक नित प्रीति बढ़े अब।मिलकर जुलकर एक रहें सब।।
सब हितकर प्रिय वाणी बोलें।एक दूसरे को सब ढो लें।।
प्रेम रत्न का खुले खजाना।हों आनन्दित सब मनमाना।।
द्वेष परस्पर दूर भगाओ।ममतावादी गीत सुनाओ।।
समता का ही मंत्र जाप हो।पृथ्वी पर मत कभी पाप हो।।
करें सभी सबकी सेवकाई।मानव सेवा धर्म दवाई।।
सभी करें सबका नित आदर।दिल में बहे प्रीति का सागर।।
दोस्ती बढ़े मिटें सब दुश्मन।सारी जगती में हों सज्जन।।
हो मानव की नित्य आरती।सजें मनुज जैसे बाराती।।
चेहरे पर मुस्कान विखेरो।हंसमुखी मनिया को फेरो।।
सत्युग  का आनन्द लीजिये।मानव को आनन्द दीजिये।।
निर्मल मन से बात करो अब।रस बन सबका उदर भरो अब।।
नित्य पान कर प्रेम रसामृत।गाते चलना प्रिय महिमामृत।।


सबका साथी बन गहो सब मानव की बांह।
जीवनभर रख हृदय मेँ दिव्य प्रीति की चाह।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


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