कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड

मैं वृक्ष हूं
🌲🌲🌲
मेरी हमेशा कोशिश रहती है
कि , मैं वृक्ष सा बनूं।
क्यों कि
वृक्ष की छाया में
राह चलते राहगीर
पनाह पाते है।
वृक्ष देता है,
सबको शीतल छांव।


वृक्ष की मजबूती
आंधी और तूफान में
स्थिर रहने का देती है सन्देश।
वृक्ष के फल,
अमीर, गरीब, जातियों में नहीं करते हैं भेद,
और करते हैं पेट की ज्वाला को शांत।


वृक्ष देता है
मंगल करने की शिक्षा,
सहनशीलता है उसका आभूषण,
विशेषता है
जमीन को पकड़े रहनी की।
सर्दी, गर्मी, और बरसात में
निर्विकार खड़ा रहता है।
पर कितनी विडम्बना है
 एक दिन
उसका मालिक ही
उसका अस्तित्व मिटा देता है।


वृक्ष रहता है शांत,
तब मैं भी सोचता हूं
कि मैं भी वृक्ष बनूं,
उसी की तरह
विपरीत परिस्थिति में
कभी भी
नहीं खोऊँ धैर्य 
रहूँ हमेशा शांत
दूं सबको शीतल छाया
और प्रेम।
वृक्ष की महानता ने ही
उसे बना दिया है पूजनीय
ये है गुणों की खान,
हां मैं वृक्ष बनूं।
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड


संजय जैन (मुम्बई) 

*प्यार का सन्देश*
 विधा : गीत


रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।
क्या उसको संदेशा तुम दे पाओगे ।
जब वो आये यहां पर घूमने को , 
उसे पहले कोई लहर आ जायेगी।
जो तुम ने लिखा था संदेशा।
उसे लहर वहाकर ले जाएगी।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।।


अगर करते हो सही में मोहब्बत तुम।
तो पत्थर पर क्यों सन्देश लिखते नहीं।
जब भी वो आयेगे यहां पर,
संदेशा तुम्हारा पड़ लेंगे वो।
यदि होगी मोहब्बत तुमसे अगर।
नीचे अपना पैगाम लिख जाएंगे।।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।


एक दूसरे के संदेश पढ़कर तुम।
सच मानो मोहब्बत हो जाएगी।
इसलिए कहता हूं मैं आज तुमसे ।
पत्थरों में भी मोहब्बत होती है जनाब ।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।।


संजय जैन (मुम्बई) 
12/03/2020


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*मन के हारे हार,मन के जीते*
*जीत।मुक्तक।*


मन हार  गए   तो फिर कोई
जीत  पाता नहीं है।


बिना    संघर्ष के    सफलता
कोई लाता  नहीं है।।


मत इंतिज़ार करते  रहो कुछ
अच्छा     करने  को।


बस यही बात समझ लो कल
कभी   आता नहीं है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मोब  9897071046
         8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*वसुधेव कुटुम्बकम।*
*मुक्तक*


जब दर्द  किसी  का   दिल
में बसने लगता है।


ह्रदय हर संवेदना को  सुनने
तकने   लगता  है।।


तब यही दुनिया बनने लगती
है इक परिवार सी।


सारा जहाँ  अपना  सा   तब
लगने    लगता   है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*जो निभे वही दोस्ती है।*
*मुक्तक।*


दोस्ती की लकीर होती नहीं
बनानी   पड़ती   है।


प्यार महोब्बत के खाद पानी
से जमानी पड़ती है।।


डालनी  पड़ती  है  जान   हर
दोस्ती   के   अन्दर।


यूँ ही टिकती नहीं कोई  दोस्ती
निभानी    पड़ती है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"विपद्रव"*
"शांत जल में मारोगे पत्थर, 
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।
ऐसे ही साथी जीवन में,
स्वार्थ सिद्धि को-
होते रहते विपद्रव।
राजनीति में भी होती रहती हलचल,
सार्थक मुद्दो पर भी-
होती राजनीति होते विपद्रव।
शांत प्रदर्शनों में भी,
घुस आते अजनबी-
करते बदनाम होते विपद्रव।
दूर रहना असमाजिक तत्वों से,
तभी रहोगे सुरक्षित-
होगे नहीं विपद्रव।
देना होगा साथ सत्य का,
तभी रूकेगे-
उपद्रव-विपद्रव।
शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।।"     


सुनील कुमार गुप्ता       12-03-2020


राजेंद्र रायपुरी

दोहा छंद पर एक मुक्तक - - 


इक नेता का हो गया,
           आज नया अवतार।
बदले-बदले से दिखें,
             बदले बात विचार।
जाने  कैसी  यार  ये, 
              नेताओं की जात।
दल बदलें तो केकटस,
              लगे फूल का हार।


       ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आ राधे तेरा श्रृंगार करूँ
प्रदान करूँ जीवन की खुशियां
न्यौछावर सब संसार करूँ
तुम ही मुझ कान्हा की दुनियां


तेरी आभा से ही मैं चमकूँ
तेरी ज्योति से रहूँ आलोकित
कृष्ण प्रिया ही नहीं केवल
मेरा रोम रोम तुम से शोभित


यदि जगतपिता हैं कृष्णा
तो जगजननी बृषभानु सुता
करना जग कल्याण प्रिय
प्राणी मात्र के प्रति स्नेह युता।


श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आ राधे तेरा श्रृंगार करूँ
प्रदान करूँ जीवन की खुशियां
न्यौछावर सब संसार करूँ
तुम ही मुझ कान्हा की दुनियां


तेरी आभा से ही मैं चमकूँ
तेरी ज्योति से रहूँ आलोकित
कृष्ण प्रिया ही नहीं केवल
मेरा रोम रोम तुम से शोभित


यदि जगतपिता हैं कृष्णा
तो जगजननी बृषभानु सुता
करना जग कल्याण प्रिय
प्राणी मात्र के प्रति स्नेह युता।


श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


प्रीति मनोहर रूपसी परम दिव्य अहसास।
माँ अमृता शारदा का हो नित आभास।।


माँ का आशीर्वाद चाहिए।जीवन अब आवाद चाहिए।।
माँ बिन जीवन सदा अधूरा।माँ ही करतीं सबकुछ पूरा।।
जबजब विपदा आती रहती।प्रेम-सांत्वना देती रहतीं।।
भक्त हेतु माँ सदा समर्पित।प्रीति-दान हेतु संकल्पित।।
स्वयं निराश्रित आश्रयदायी।सहज स्नेह भाव सुखदायी।।
भजन करो बस केवल माँ का।बातें सुनना सिर्फ उन्हीं का।।
माँ केवल सर्वोत्तम सत्ता।बिन आज्ञा हिलता नहिं पत्ता।।
ज्ञान प्रेम भक्ति की गरिमा।गाते रहें तुम्हारी महिमा।।
बैठ हंस पर आ जाओ माँ।पुस्तक बनकर छा जाओ माँ।।
करो कृपा हे करुणा माता।हे सुखदाता मातृ शारदा।।


कृपाप्रदाता माँ करें हम सबका कल्याण।
यश-वरदानी बन हमें दें यश का वरदान।।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"आओ जीवन-पर्व मनायें"


जीवन में खुशियाँ छा जायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


जीने का यह श्रेष्ठ तरीका,
गम भी गमके लगे न फीका,
गम में भी हम खुशी मनायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


जीवन को आसान बनाना,
इसपर माला-फूल चढ़ाना,
इसको सुन्दर देव बनायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें। 


समतावादी मंत्र जाप कर,
  तन-मन-उर में नहीं पाप धर,
योगशास्त्र को पढ़ें-पढ़ाएं,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


मन-दिल में उत्साह भरा हो,
सबके प्रति समभाव भरा हो,
स्व अरु पर का भेद मिटायें,
आओ जीवब-पर्व मनायें।


सोचें सुन्दर बोलें उत्तम,
भाषा हो मधुरिम प्रियअनुपम,
शुभ शिवमय संवाद करायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


ममता जागे कटुता भागे,
बढ़े निकटता आगे -आगे,
मन-समाज में प्रीति जगायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


सद्भावों का देखें मेला,
हो आनंदक जीवन खेला,
मन-सरिता में पुष्प खिलायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


काम-क्रोध से खड़े दूर हों,
पर -उपकारी भाव पूर हों,
संवेदन का प्रणय करायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


लघुता में देखें प्रभुता को,
स्वयं समर्पित मानवता को,
खुद का हम उत्सर्ग रचायें,
आओ जीवब-पर्व मनायें।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


प्रीति परस्पर का सदा हे माँ दे वरदान।
एक भाव से हम करें मानव का सम्मान।।


सदा प्रीति रस मेघ बनी आ।माँ उर में आकर बस छा जा।।
करें सदा हम सेवा जग की।करें भलाई प्रति पल सबकी।।
बंध जायें हम मानवता से।सहज प्रेम हो नैतिकता से।।
मन की ग्रन्थि घुला दे माता।कुत्सित भाव सुला हे दाता।।
दिनोँ का उपकार करो माँ।फँसे हुए को पार करो माँ।।
सन्तप्तों को शीतल कर माँ।मीन-नीर को विलग न कर माँ।।
स्वर्ग बने भू-मण्डल सारा। बने आपसी प्रेम पियारा।।
वरदानी हे सर्वसाधिके।बनकर आओ प्रिये राधिके।।
कान्हा का संसार चाहिये।कृष्ण-राधिका प्यार चाहिये।।
सुन्दर संतानों को रच दे।वर वर दे मातृ शारदे।।
प्रेममयी हो सारी दुनिया।स्नेहिलता बन जाये मनिया।।
दिल से दिल के तार जोड़ दो।सबपर अपना प्यार छोड़ दो।।



सुन्दर मोहक भाव का हो सारा संसार।
रचें बसें सबमें सभी मिले सभी का प्यार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


 काव्य भाव की मधुर निराली दिव्य छटा सी है हाला,
करता है मधुपान निरन्तर मधु- सेवी पीनेवाला,
कविता का प्याला दिखलाता बड़े प्रेम से साकी है,
बनी हुई है काव्य मंडली जैसी मेरी मधुशाला।


भावों में  ही बह जाने को सदा समर्पित है प्याला,
मधुरिम भावों की मादकता से नहलाती है हाला,
मधुराकृति में मजेदार मह महा महकता मधु साकी,
महानायिका मधुभावों की अद्य बनी है मधुशाला।


प्यास निरन्तर बुझ सी गयी है वह संतृप्त योग-प्याला,
जग की प्यास बुझाने आयी है मेरी हाला,
सकल विश्व की भूख-प्यास को सदा मिटाता साकी है,
सहज तृप्ति की चाह जिसे हो आये मेरी मधुशाला।


है अनन्त का यात्री बनकर निकल पड़ा मेरा प्याला,
है अनन्त की शैर कराती यान सदृश हृद-मधु हाला, 
है अनन्त के अंतरिक्ष पर खड़ा देखता जग साकी,
अंतरिक्ष के महा शून्य की महा-मंडली मधुशाला।


सबसे ऊँचा विश्व शिखर पर खड़ा सभ्य सम प्रिय प्याला,
वैश्विकता की मधु-मानवता हेतु रचित वैश्विक हाला,
सबसे ऊपर विश्व-ध्वजा ले फहराता मधुमय साकी,
सहज अलौकिक वैश्विकता की जग -जननी है मधुशाला।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9738453801


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नए फागुनी गीत का मुखड़ा


होरी  खेलों  हमारे  संग, देखो  फागुन  आऔ  हैं।
मुखड़े   पर लगाओ ये रंग, देखो फागुन आऔ हैं।
डारि के रंग चुनर भिगो दी, चोली भिगो दई मोरी।
पकड़ि कलाई पास बुलावै, वो खूब करै बरजोरी।
खूब  मन मे भरे हैं उमंग, मनोज  सब पे छाऔ हैं।
होरी  खेलों  हमारे  संग,  देखो  फागुन  आऔ हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


रीतु प्रज्ञा करजापट्टी, दरभंगा, बिहार

प्रतियोगिता हेतु
होली पर आलेख
रंगोत्सव मनाए सावधानी से


होली उल्लास, उमंग,मस्ती का त्योहार है।सब जन पर प्रेम के रंग का नशा छाया रहता है।सभी होली में रंग,गुलाल लगा खुशियों से सराबोर रहते हैं।इस खुशी के क्षण को सावधानी से मनाने की जरूरत है।थोड़ी सावधानी अपनाने से होली की मस्ती में चार चाँद लग जाएंगें। नहीं तो अनहोनी होने पर जीवन भर पछताना पड़ता है।होली की खुशी में सराबोर होकर निम्न बातों पर ध्यान दें:-


(1)होली खेलने से पहले पूरे शरीर पर तेल लगा लें।इससे रंग आसानी से साफ हो जाता है।
(2) हमेशा हर्बल युक्त उत्तम रंगों का इस्तेमाल करें।चेहरा ठीक रहता है।
(3) घर में ही फूल,पत्तों इत्यादि से रंग बना लें।इसे दूसरों के लगाने से चेहरा नुकसान होने से बचेगा।आपसी प्रकृति प्रेम भी बढेगा।
(4) किसी भी व्यक्ति को रंग,गुलाल सावधानी पूर्वक लगाएं।आँख,नाक,कान ,मुँह को बचाते हुए लगाए।
(5)सूखा रंग का प्रयोग अधिक करें।पानी की बचत पर ध्यान दें।
(6) किसी को भी जबरदस्ती रंग नहीं लगाए।सामने वालों की अनुमति से ही लगाएं।उसके रंग नहीं लगाने के कोई कारण हो सकते हैं।दूसरे व्यक्ति की भावना को समझने की कोशिश करें।
(7)कोई भी नशीली पदार्थों नहीं खाएं और नहीं दूसरों को खिलाएं।अगर भांग का शर्बत पी लेते हैं तो किसी को तंग नहीं करें।भोजन करके आराम से सो जाए।
(8)स्त्रियों एवं लड़कियों के अस्तित्व का ध्यान रखकर उनके साथ होली खेलें।उनके उत्तेजक अंगों को छूने एवं रंग लगाने से परहेज करें।
(9)पुरानी रंजिश को ध्यान में रखकर कभी भी किसी को रंग,गुलाल में रासायनिक पदार्थ मिलाकर नहीं लगाएं।इससे दोनों व्यक्ति की सदा हानि ही होती रही है।
(10) होली में मटका फोड़ने तथा अन्य किसी बात पर रंग लगाने के बहाने मारपीट नहीं करें।सभी गिले शिकवे भूलकर आपस में सभी मिलकर होली मनाए और प्रेम रंग चहुँओर बरसाए।
           रीतु प्रज्ञा
करजापट्टी, दरभंगा, बिहार


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु

बसंत की पावन पर्व होली की आप सभी को बहुत बहुत बधाई। उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं। 


होरी 


खेलत फाग उमंग लिए मन
झूमत तन ठहरी - ठहरी 
गाल  गुलाबी  रंग  दिए तब
डोलत सब गौंआ नगरी।


ब्रज की नगरी धूम  मचो है
मन  मोहन  खेलै  होरी
राधा  भागी  दौडी  - दौड़ी
श्यामा  करै  बलजोरी।


मन का बैरी, द्वेष मिटो सब
मिलतो सब भाई - भाई
झूमत नाचत गावत सब मिल
खुशियाँ  देतो  है  लाई।


नव वसन तन डारी लियो सब
ले गुलाल की सब झोरी
घर - घर  में  जातो  मिलने को
बचो  कहाँ  कोई  कोरी।


जात - पात कौ सीमा मिटतौ
रहतो     है     भाईचारो
प्रेम  सदा  दिखतौ है मन  में
लगतो  आँखों को तारो।


पुआ - पूरी  खूब  खातो सब
घर - घर में सब जाके
रंग, भंग  की  चढ़ जातो तब 
होरी की गीत सुनाके।


स्वरचित - बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्यख़्याता

रामचरित मानस द्वारा सर्व सिद्ध कलयुगी शाबर मंत्र प्रयोग की विवेचना


कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा।
साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।।
अनमिल आखर अरथ न जापू।
प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जिन भगवान शिवजी व माँ पार्वतीजी ने कलियुग को देखकर, संसार के हित के लिए साबर मन्त्रसमूह की रचना की,जिनमें मन्त्रों के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ होता है और न जप,तथापि भगवान शिवजी के प्रताप से जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  कलि बिलोकि अर्थात कलियुग के प्रभाव को देखकर कहने का तात्पर्य यह है कि कलियुग में पूर्ण विधि विधान से योग,यज्ञ,जप,तप,व्रत,पूजा,ज्ञान, वैराग्य आदि सम्भव ही नहीं हैं।केवल भगवद्भक्ति ही इस कलिकाल से मुक्त रखने का एकमात्र उपाय है।गो0जी ने श्रीरामचरितमानस के अन्त में यही बात कही है।यथा,,,
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलम्बन एकू।।
एहि कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।
सन्तत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।
 विनय पत्रिका में भी गो0जी का उद्घोष है,,,
राम राम जपु जियँ सदा सानुराग रे।
कलि न बिराग जोग जाग तप त्याग रे।
एक ही साधन सब रिद्धि सिद्धि साधि रे।
ग्रसे कलि रोग जोग संजम समाधि रे।।
  भगवान शिवजी विरचित साबर मन्त्र सतयुग, त्रेता व द्वापरयुग में नहीं था।कलियुग में भगवान शिवजी माँ पार्वती जी के साथ भीलरूप से प्रकट हुये और भील भाषा में सिद्ध साबर मन्त्र की रचना की जिसका उपयोग सर्पादि विषों को उतारने के लिए व अन्य कार्यों के लिए किया जाता है।इन मन्त्रों में अक्षरों के मिलान से कोई अर्थ नहीं निकलता है परन्तु भगवान शिवजी की कृपा से तान्त्रिक लोग उनका उपयोग करते हैं।प्रायः भील जाति के तान्त्रिक इन मन्त्रों का उपयोग विषैले जन्तुओं जैसे सर्प,बिच्छू,बर्र,ततैया भौंरा आदि के काटने पर तथा शरीर में गलसुआ, फोड़ा फुंसी, पित्ती,दाँत दर्द,अंगुली पकने पर उन्हें ठीक करने के लिए करते हैं।इन मन्त्रों के अक्षरों में कोई मेल नहीं होता है और सुनने में अजीब से लगते हैं और जपने का भी कोई विशेष नियम नहीं है फिर भी दृढ़विश्वास के आधार पर रोगी को लाभ हो जाता है।इसे ही भगवान शिवजी के प्रताप का प्रभाव कहा जाता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सेवा मेँ आनन्द- दृष्टि हो"


सेवा में आनन्द खोजिए,
 प्रेम समर्पण ज्ञान खोजिए,
सेवक बनना सर्वोत्तम है,
मधुर-मिलन-मुस्कान खोजिए।


सेवा में आनन्द-दृष्टि हो,
सहज प्रेम की सदा वृष्टि हो,
सुख की चाहत में हो सेवा ,
सहजानन्दी  सकल सृष्टि हो।


बन जाओ रविदास सन्त सम,
करते जा कबीर सा उद्यम,
छोटा नहीं जगत में सेवक,
निष्कामी सेवक सर्वोत्तम।


सदा समर्पण भाव निराला,
पी भावुकता का मधु-प्याला,
शोषण करना त्याग निरंकुश,
 बन जा सबके उर की माला।


सेवा-व्रत ही हो संकल्पित,
जीवन हो सेवा-अभिकल्पित,
सेवा सबसे बड़ा धर्म है,
सेवा पावन क्रिया प्रकल्पित।


सेवा में अमरत्व छिपा है,
सेवा में व्यक्तित्व छिपा है,
सेवा से ही मिलता जीवन,
सेवा में सर्वस्व छिपा है।


सेवा तत्व दिव्य अविनाशी,
सेवामय हैं शिव-कैलाशी,
सेवक बनना सीखो मित्रों,
सेवा अतमपुरी निवासी ।


सेवा गूढ़ रहस्य जीवन का,
सेवा पुष्प गुलाब चमन  का,
सेवा को ही मिशन मान लो,
सेवा ज्योतिपुंज उर-मन का।


नमस्ते हरिहरपुर से--डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


आशु कवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल ओमनगर सुलतानपुर यूपी,

होली के हुड़दंग हास रस के संग


बुरा ना मानो होली है 



केवल पांच सवैया छंद


    आंनद लें



गाम न गोरी सजी नवयौवन जाए अंटी निज।की अमराई ।।


नीरखत बाग ऊ बेला चमेली औ गेंदन साथ हु टेसू दिखाई।।


भा ख त चंचल।नजर झुकाय वही इक या र मिला देख लाई ।।


सोचत गोरी भ ई मद थोरी औ मस्त मलंग जू प्रेमी डि ठ आ ई।।1।।


अंग्रेजन आयो हिन्द महें बोका दुकान जलेबी दिखाई।।
मांगी जो हाथ मा लेत प्लेट ऊ सोचत क उ नी विधा  रच जाई ।।


जोड़ आऊ मोड़ दे खा त नहीं केही भांति इसे हलवाई बनाई।।


भा ख त चंचल मा न त ऊ जानो सत य हु हा थ विमान उ ठ आ ई।।2 ।।।


दू जी दुकान अंटयो दूसरे दिन वसुधा न जेस इक मिठाई दिखाईं।।
पूछत ऊ हलवाई ब ताओ य हि कै नाम हमें तू तुरन्त ब ताई।।
नाम को जान त सोचत ऊ ना कहीं रोज ना जामुन दे खाई।।


मा न त ऊ अरु भा ख त चंचल वानर रीछ औ राम दुहाई ।।3 ।।


राहुल अंटे जब यूपी म्हें व ई जा य मिले डिंपल भाऊ जाई।।
ना हौ चाहत  हूं गठबन्धन ना मोहि चाह विजय कर भाई।।
हाले दिला हौ बयान करूं अरु याचत एक मनोरथ आ ई।।


कुआरा रहा ना क बो प्यार किया बस खो झ हु सुंदर ना यि का जाई।।4।।


मागत जौ न रहा इस तीफा वही आजू घिरा घनघोर घटा ई।।


हरिचन्द्र रहा जौ न काल टलूक आजू मिश्रा कपिल इल्जाम लगाई ।।


भा ख त चंचल आजू ई संजय कुर्सी की मोह बढ़ी अस भाई।।


मिश्रा कै कुर्सी ग ई यही क़ार न माग् त हु कह घोर बु राई।।5 ।।


आशु कवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
ओमनगर सुलतानपुर यूपी,
8853521398 ।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मेरी पावन मधुशाला"


 अपनेपन का भाव लिये मन एक आत्मवादी प्याला,
आत्मवादिनी बुद्धिप्रदात्रीहै मेरी बौद्धिक हाला,
आत्मवाद के शंखनाद सा ले कर- ध्वज फिरता साकी,
आत्मवाद के सिंहासन सी मेरी पावन मधुशाला।।


बना आत्मा स्वयं आत्मवत सर्व भूत के प्रति प्याला,
आत्मज्ञानिनी भावों में ही बहती रहती है हाला,
आत्मज्ञानसम्पन्न विज्ञ सा मेरा नित आतम साकी,
आत्मालाय की बनी निवासिनि मेरी पावन मधुशाला।


साधारण इंसान नहीं है अति विशिष्ट मेरा प्याला,
साधारण सा जल मत समझो अति पवित्र मेरी हाला,
कभी न सोता नित्य जागरण करता शिवसमता-साकी,
परम विशिष्ट पवित्र रसालय सदा अमृता मधुशाला।


नित्य स्नान कर मधुशाला के मंदिर में रहता प्याला,
बड़े प्रेम से तैयारी कर मह-मह महकत है हाला,
साकी अपने दिव्य भाव में तिलक लगाए मस्तक पर,
हाथ पकड़ पीनेवालों को  पहुंचा देता मधुशाला।


दिव्य चमकते प्यालों पर सम्मोहित हो जाता प्याला,
अधरों पर रखते रोमांचित हो उठता पीनेवाला,
साकी का अंदाज बयां करना लगता है कठिन बहुत,
 शानदार अतिशय प्रभावमय सहज सुशोभित मधुशाला।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


अति मायामय देहमय मायातीत विदेह।
सबमें रमती मां तुम्हीं सचमुच निःसन्देह।।


अथक परिश्रमी तिहुँपुरवासिनि।नित्य साधिका ज्ञानगामिनी।।
मायातीत महामन मान्या।त्रिगुण स्वरूपा ध्यान अगम्या।।
ब्रह्म ब्रह्ममय वर ब्राह्मण हो।सकल लोकमय शुभ दर्पण हो।।
कृपा कृपालु करुण करुणाकर।कर्त्ता कर्म क्रिया कृति करगर।।
 दिव्य दानमय दान दिवाकर।दिवस दिशा -दस द्रव्य दिव्यधर।।
शान्त प्रशान्त सुशान्त सुशासन । शिव सम सुधी शिवा सुख सावन।।
दानव -दलन-दमन दैत्यारी।अतिशय अर्थकरी महतारी।।
बैठ हंस पर गीता गाओ।मां सरस्वती !शरद बहाओ।।
तेरा आशीर्वाद चाहिये।माँ ममतामय प्यार चाहिये।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम"


प्रीति -रसामृत सिद्ध अति सगुण हृदय-उद्गार।
इसके सेवन मात्र से मन होता उजियार।।


चलो प्रीति के संग-संग नित।देखो सबका अपना भी हित।।
प्रीति तरंगों में बह जाओ।मल-मलकर मन को नहलाओ।।
करना है रसपान प्रीति का।करना है गुण गान प्रीति का।।
सिर्फ प्रीति का साथ चाहिये।प्रेम-वृक्ष की छाँह चाहिये।।
जहाँ प्रीति है वहीं ईश हैं। परमेश्वर जगदीश वहीं हैं।।
मोहित होना हर मानव पर।करना कृपा सभी मानव पर।।
बन सहयोगी साथ निभाना।सबको पुष्प-माल पहनाना।।मत बनना तुम कभी विरोधी।बनते जा दुर्गुण-प्रतिरोधी।।
सन्त-हृदय जैसा बन जाना।प्रीति परस्पर गीत सुनाना।।
सबके हित की बातें करना।सबके दिल में बैठे रहना।।
दुश्मन को भी मित्र समझना।प्यारे!बनकर इत्र महकना।।
नहीं किसी को दुःख पहुंचाना।सत-प्रिय बातें करते जाना।।
सहलाओ नित सबके उर को।निर्मल रखना अन्तःपुर को।।
मनसा वाचा और कर्मणा।सबके प्रति हो हृदय-अर्पणा।।


सबसे शुभ संवाद हो भीतर से अनुराग।
स्नेह-प्रेम-ममता सहज में  ही हो सहभाग ।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।

"मधुर मिलन"


प्रेम सुधा रस जहां बरसता,
समझो उसको मधुर मिलन।


जहां टपकता स्नेह नेत्र से,
जानो उसको मधुर मिलन।


मीठी-मीठी जहां बात हो,
उसे समझ लो मधुर मिलन।


दिल से दिल जब मिल जाये तो,
समझो उसको मधुर मिलन।


जहां त्याग की ही हों बातें,
इसे जान लो मधुर मिलन।


पैसा नहीं प्रेम ही सबकुछ,
इसे जान लो मधुर मिलन।


मिलने पर यदि मन प्रसन्न हो,
समझो इसको मधुर मिलन।


मिलने पर संतुष्टि मिले यदि,
मान लो इसको मधुर मिलन।


बातें हों अरु बातें ही हों,
समझो इसको मधुर मिलन।


जी न भरे हो संग हमेशा,
जानो इसको मधुर मिलन।


रहे मिलन की सदा तमन्ना,
यह असली है मधुर मिलन।


मिलते रहें प्रेम से प्रति दिन,
समझो उसको मधुर मिलन।


ऊब न जाएं कभी बात से,
समझो उसको मधुर मिलन।


अपनेपन का हो यदि अनुभव,
समझो उसको मधुर मिलन।


मन में हो यदि हर्षोल्लास,
जानो उसको मधुर मिलन।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हुओं कृष्णमय मेरों जीवन
मोय कृष्ण की याद सतावै
नाते रिश्ते छोड़ के मनुवा
अब तौ कृष्णा कृष्णा गावै


रोम रोम में बसौ है साँवरों
मैं एक पल भूल न पाऊँ
गोविन्द सुं ये मिली जिंदगी
मैं गोविंद के ही गुण गाऊं


रंगों श्याममय मेरों चोला
वा श्याम से विलग रहूँ ना
जर्रा जर्रा ही श्याम पुकारे
अब मुख से कछु कहूँ ना


मेरे माधव हे मेरे गिरिधर
स्वामिन तेरों रंग हटें ना
प्रेम रंग में मोय डुबोकर
प्रभु चरणों से दूर करो ना।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


आशुकवि नीरज अवस्थी

होली एवम बसंत


 बसंत   एवम्  होली   


 होली जलती दिलो में भस्म हो गया प्यार।
मेल मिलन की है बहुत ही ज्यादा दरकार।।
दूरी इतनी बढ़ गई ,जैसे धरती चंद।
इसी लिए फीकी लगी अग्नि होलिका मंद।
अग्नि होलिका मंद, तो,कैसे जले विषाद।
खाने में पकवान है,नही मिल रहा स्वाद।
द्वेष भावना का शमन करिए कृपा निधान।
मंगलमय होली रहे यह दीजै बरदान।


आशुकवि नीरज अवस्थी


अटल विश्वास हो भगवान पर तो काल भी टलता।
लगाया नेह था प्रह्लाद ने फिर किस तरह जलता।
वो फ़ायरफ़्रूफ़ लेडी जल गई भगवान की माया,
कभी उसकी इजाजत के बिना पत्ता नही हिलता।।


बहुत कविताये है लेकिन यह मुक्तक सबसे अलग है ईश्वर पर भरोसा रखते हुए अटूट श्रद्धा रखिये उससे ऊपर कोई नही।होली की अशेष बधाइयां


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..     
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950


मुक्तक ...
मुझे पग पग मिला धोखा, सहारा किस को समझूँ मै.
डुबाया हाथ से किश्ती, किनारा किस को समझूँ मै.
जो मेरे अपने थे, वो काम जब, आये नहीं मेरे..
तो तुम तो गैर हो, तुमको दुलारा कैसे समझूँ मै.
                                                                                                                               बसंत में---------                                                                                                नीबू के फूल महके,है ,देखो बसंत में.
अमराई बौर की, है जी देखो बसंत में.
नव कोपले पेड़ो  में, है निकली  बसंत में .
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.
मधुमक्खियों के छत्ते शहद से भरे हुए,
उनके बेचारे बच्चे भूख से मरे हुए.
कंजड़ के हाथ अमृत देखो बसंत में.
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में. 
सरसों की पीली पीली चुनरिया उतर गई.
गेहू की बाली खेत में झूमी ठहर गई.
गन्ना लगाये देखो ठहाके बसंत में..
पतझड़ सा मेरा जीवन ,देखो  बसंत में. 
लव मुस्कुरा रहे है दर्दे दिल बसंत में,
मिलाता नहीं है कोई रहम दिल बसंत में,
बस अंत लग रहा हमें नीरज बसंत में,.
पतझड़ सा मेरा जीवन देखो  बसंत में. 
.....................................आप सभी का सादर आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


होली पर आप सभी को चंद पंक्तियाँ अग्रिम समर्पित करता हूँ..----------------------------  


       होली पर कविता
भारत की नारियां सभी हो राधिका के तुल्य,
मानंव हो जैसे वासुदेव कृष्ण श्याम से।।
कष्ट कट जाये दुःख दूर रहे जिंदगी से,
प्यार से मनाये होली दूर रहे जाम से।।
रंग रंग से रंगो कुरंग से बचो सदा,
लुटाते रहो प्रीती का गुलाल सुबह शाम में।
देश की अखण्डता व् एकता सलामती हो,
नीरज की एक ही प्रतिज्ञा प्रण प्राण से।
💐💐💐💐💐💐💐💐


२०२० होली पर आप सभी को चंद पंक्तियाँ अग्रिम समर्पित करता हूँ..-----


इस होली में वह मिल जाये, जो बचपन मे खेली थी।
रीति प्रीति की मिलन बिछड़ना प्रीती एक पहेली थी।
बीस साल से खोज रहा हूँ कितनी हेली मेली थी।
दिल्ली में मिल गयी अचानक अब तक नई नवेली थी।।
आशुकवि नीरज अवस्थी


दिलों में प्रेम की गंगा बहाने आ रही होली.
सभी शिकवे गिलों को दूर करने आ रही होली.
धरा से दूर होती जा रही सर्दी कड़ाके की ,
सभी के उर मे अति स्नेह को उपजा रही होली..


अगर अपना कोई रूठे,तो झट उसको मना लेना.
बिगड़  जाए कोई  रिश्ता तो झट ,उसको बना लेना.                                                                          नयन में नीर नीरज के,अमित अविरल असीमित है.
अगर मिल जाउ होली मे , गले मुझको लगा लेना          


किसी को याद कर लेना, किसी को याद आ जाना ,
बड़ा रंगीन है मौसम हमारे पास आ जाना. 
सभी  बागों मे अमराई है, मौसम खुशनुमा यारों,
कसम तुमको है प्रीती तुम मेरे ख्वाबों में आ जाना.
                                               
   
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों 
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..                            
तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. [5]    
                    
तेरे चेहरे को रंगदार बना सकता हूँ,। तुझको मे अपना राजदार बना सकता हूँ ।
दुनियाँ  की भीड़ में तुम खो गये,अकेले हम , 
जो मिले गम उसे मे यार बना सकता हूँ,, [6]     


गोरे गालों को न बदरंग  करो,
प्रीति के रंग को न भंग करो.
ये तो शालीन पर्व मिलने का ,
भूल कर इसमे ना हुड़दंग करो.[7] 


दुश्मनों को गले लगाते हैं,
प्रीति के गीत गुनगुनाते है,
नेह  रुपी गुलाल हाँथो से,
प्रीति के रंग हम लगाते हैं.. [8]     


दुख शोक परेशानी सारी,होलिका अगिन में जल जाए..                                  
सब बैर भाव बदरंग त्याग सब जन मन माफिक फल पाए.
घर घर मे प्यार अपार रहे,जन जन में भाईचारा हो.
दुश्मन भी आकर गले मिले ऐसा ब्यवहार हमारा हो .-


(9)


जिस जिस भाई बहनों ने होली की बधाई संदेश भेजे उनको मेरी चन्द पंक्तियां समर्पित है--💐💐


             आभार गीत


जिसने भी हमको भेजी होली की मित्र बधाई।
मेरे दर्द भरे मन में खुशियों की हवा चलाई।
उनके लिये प्रार्थना है वह बहने हो या भाई।
इसी वर्ष उनकी शादी हो बजे खूब शहनाई।।


जिनका है परिवार बस गया उनके होये बच्चे।
बिल्कुल मेरे तेरे जैसे सारे जग से अच्छे।
मैं भावुकता में बहता हूँ तुम मेरी परछाईं।
दुआ हमारी घर में सबके प्रतिदिन बटे मिठाई।


हर दिन होली के जैसा हो रात बने दीवाली।
जीवन के हर एक कोने में दिखे सिर्फ खुशहाली।
सुख समरद्धि विजय की धुन है कानो से टकराई।
सबका मैं आभारी हूँ जिस ने भी दिया बधाई।।


किसी को याद कर लेना, किसी को याद आ जाना , बड़ा रंगीन है मौसम हमारे पास आ जाना.                                                                          सभी  बागों मे अमराई है, मौसम खुशनुमा यारों,कसम तुमको है प्रीती तुम मेरे ख्वाबों में आ जाना. [1]    
                                        
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों 
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..                             तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. [5]    
                    
तेरे चेहरे को रंगदार बना सकता हूँ,। तुझको मे अपना राजदार बना सकता हूँ ।
दुनियाँ  की भीड़ में तुम खो गये,अकेले हम , 
जो मिले गम उसे मे यार बना सकता हूँ,, [6]     


गोरे गालों को न बदरंग  करो,
प्रीति के रंग को न भंग करो.                                                                   ये तो शालीन पर्व मिलने का ,
भूल कर इसमे ना हुड़दंग करो.[7]    
                                                  दुश्मनों को गले लगाते हैं, प्रीति के गीत गुनगुनाते है,                                                                            नेह  रुपी गुलाल हाँथो से,प्रीति के रंग हम लगाते हैं.. [8]     


 बसंत   एवम्  होली     
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..     
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950


होली 2020 सभी को कल्याणकारी ओर प्रसन्नता दायक हो-
*प्रतिदिन प्रतिपल नवसंवत का,
तुमको मंगलकारी हो ।*
*घर आंगन द्वारे खेतों तक ,
*खुशियों की फुलवारी हो ।*
*मीत प्रीति की रीत यही है ,*
*अमित अगाध नेह बांटो,*
*दो हजार बीस की होली,*
*सबको ही सुख कारी हो।*


*वात्सल्य देवर भाभी का,*
*युगो युगो तक बना रहे।*
*लता सहारा हरदम पाए ,*
*तना हमेशा तना रहे ।*
*जीजा साली के रिश्तो की ,*
*मर्यादा गुमराह न हो,*
*हर रिश्तो में जन जन का,*
*विश्वास अलौकिक बना रहे।।*


आशुकवि नीरज अवस्थी
प्रबन्ध सम्पादक काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका
संस्थापक अध्यक्ष
श्याम सौभाग्य फाउंडेशन
पंजी ngo
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950


कमर तोड़ महंगाई मे, त्योहार मनाना मुश्किल है.
दुशमन बाँह गले मे डाले जान बचाना मुश्किल है,
खोया पहुचा आसमान,पकवान बनाना मुश्किल है.
दारू तौ है महँगी, अबकी भाँग पिलाना मुश्किल है;[२]
नेता अइहै द्वारे-द्वारे चाय पिलाना मुश्किल है.
गन्ना भी अनपेड बिका कपड़ा बनवाना मुश्किल है;[३]
विरह वेदना अगनित पीड़ा मिलन प्रीति का मुश्किल है.
होली का त्योहार प्रीति की रीति निभाना मुश्किल है;[४]


आप सब का अपना ही ---आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


जिसने भी हमको भेजी होली की मित्र बधाई।
मेरे दर्द भरे मन में खुशियों की हवा चलाई।
उनके लिये प्रार्थना है वह बहने हो या भाई।
इसी वर्ष उनकी शादी हो बजे खूब शहनाई।।


जिनका है परिवार बस गया उनके होये बच्चे।
बिल्कुल मेरे तेरे जैसे सारे जग से अच्छे।
मैं भावुकता में बहता हूँ तुम मेरी परछाईं।
दुआ हमारी घर में सबके प्रतिदिन बटे मिठाई।


हर दिन होली के जैसा हो रात बने दीवाली।
जीवन के हर एक कोने में दिखे सिर्फ खुशहाली।
सुख समरद्धि विजय की धुन है कानो से टकराई।
सबका मैं आभारी हूँ जिस ने भी दिया बधाई।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...