भोजपुरी चइता लोक गीत 1-बितले फगुनवा ये सइया
बितले फगुनवा ये सइया ,
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
कईसे होइहे गेंहू के कटनिया मोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना-2 मोर परदेशी बालम
धईके आवा जल्दी रेलगड़िया |
चलल जाई खेतवा होते रे भोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना -2 मोर लेहुरा देवरवा |
चलावा ना दिन रात मोबइलिया |
करबा ना किसनिया खइबा का कौर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना -2 मोर छोटकी ननदिया |
घूमा जनी तू खाली खरीहनवा |
मिली करा तू कटनिया माना न बतिया मोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी बोकारो झारखंड ,
नूतन लाल साहू
मांगना
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही, बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में,जाकर देखना
मांगना,देश का करेक्टर है
कोई भीख,मांगता है
कोई चंदा,मांगता है
कोई औलाद,मांगता है
तो कोई बड़ी,सहजता से ही
माचिस ही,मांग लेता है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना,देश का करेक्टर है
वोट मांगने के लिए
दर दर, नाक रगड़ना पड़ता है
उपदेशों की पोथियां खोल दो
नोट मिल ही जाता है
कहते है,भीख मांगने वाले
कामचोर होता है
अखबार और आचार मांगने वाले
बेचारा होता है
मांगने वाले भी,अजीब अजीब
प्राणी होता है
बाप का पुंजी, फूक कर
उनके हाथ में,कटोरा होता है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना देश का करेक्टर है
फिल्मों में, जो झोपडी
की बात करता है
उनका आमदनी,लाखो में होता है
जुहू में बंगला,बनवाता है
बिन मांगे ही,मनमाफिक कमाता है
समाजवाद का झंडा
हमारे लिए,कफ़न हो गया है
सत्य वचन,कड़वा हो गया है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना देश का करेक्टर है
नूतन लाल साहू
भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.
*"मान देश का है- हिंदी"*
(कुकुभ छंद गीत)
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विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा पतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
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◆राष्ट्र-भाल पर अंकित सुंदर, श्यान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
इससे है उत्थान हमारा, दान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
◆गूढ़ भरे हैं भाव गहनतम, अपनी प्यारी भाषा है।
पूर्ण व्याकरण भी है इसका, इससे हमको आशा है।।
देवनागरी लिपि है इसकी, ज्ञान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी ।।
◆जोड़े बहु भू-भागों को यह, जग की भाषा है न्यारी।
स्निग्ध-सरस-शुचि-स्नेहिल-सलिला, सिंचित करती मन-क्यारी।।
प्रगति-पंथ पर सदा अग्रसर, मान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
◆साहित्य जगत विस्तारित है, भंडार-विपुल इसका है।
भाषाओं के नभ पर मानो, आदित्य-प्रबल चमका है।।
धवल-विमल यह संचारित है, भान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
◆भाषाओं से द्वेष नहीं है, आदर सबका करते हैं।
क्षुद्र मानसिकता का द्योतक, भाषा पर जो लड़ते हैं।।
सात सुरों में सुंदरतम यह, ध्यान देश का है-हिंदी।
आह्वान मुनुजता है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
◆हिद निवासी हिंदी बोलो, शाश्वत उन्नति इससे है।
गंगाजल सा पावन है यह, वाहित सस्कृति इससे है।।
समरसता का अलख जगाये, बान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
◆संप्रभुता का, अखंडता का, सुनीति है भाषा-हिंदी।
भाषा-काया प्राणतुल्य यह, प्रतीति है भाषा-हिंदी।
देश-प्रेम से पूरित "नायक", गान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
"""""""""""'"""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
""""""''''""""""""""""""""""""""""""""""""""
निशा"अतुल्य"
निशा"अतुल्य"
देहरादून
गीत
12.3.2020
नवसृजन की ओर बढो
चलो उठो चलो उठो
रीत नई चलाएंगे
सब मिल कर निभाएंगे
छोड़ो राग द्वेष को अब
बढ़े चलो बढ़े चलो
नवसृजन की ओर बढ़ो
चलो उठो चलो उठो
सर्वधर्म समभाव रखो
ईश्वर एक है ये जानो
मिल कर सब स्तुति करो
अपने पथ पर अडिग रहो
नवसृजन की ओर बढ़ो
चलो उठो चलो उठो
देश का नव निर्माण करो
भ्रष्टाचार निज तजो चलो
होगी आभा नई नई
सुबह सुन्दर शाम नई
नवसृजन की ओर बढ़ो
बढ़े चलो बढ़े चलो
कर्तव्य निज निभाएंगे
स्वप्न सभी साकार करो
जीवन सुरम्य होगा तब
जब जीवन मे साथ चलो।
नवसृजन की ओर बढ़ो
बढ़े चलो बढ़े चलो
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
ममता कानुनगो इंदौर
विधा-हायकू
*चाहत*
चाहत है तो,
जीवन के सपने,
पूर्ण है सब।
+++++++++++++
चाहत है तो,
अपने व पराए,
एक है सब।
+++++++++++++
चाहत है तो,
आसमान के तारे,
मुट्ठी में सब।
++++++++++++++
चाहत है तो,
समंदर के मोती,
बिखरे अंगना।
++++++++++++++
चाहत है तो,
रंगीन तितलियां,
आशा में अब।
++++++++++++++
चाहत है तो,
पराजय में जय,
चिर-अजेय।
++++++++++++++
चाहत है तो,
कंटक बने फूल,
सुखद शूल।
+++++++++++++++
ममता कानुनगो इंदौर
सुनीता असीम
मुहब्बत की राहों में छाले हुए हैं।
ये दिल मुश्किलों से संभाले हुए हैं।
***
न आए नजर प्यार मेरा सजन को।
कि हम तो यहां दिल निकाले हुए हैं।
***
किया इश्क मैंने न चोरी कोई की।
वो इल्जाम हमपे लगाए हुए हैं।
***
मुझे देखते हैं नज़र टेढ़ी करके।
मेरा अक्स कैसा बनाए हुए हैं।
***
बिगड़ती चली जा रही है हवा भी।
बिना ज्ञान वाले रिसाले हुए हैं।
***
सुनीता असीम
12/3/2020
कवियत्री वैष्णवी पारसे
थाम कर मेरा हाथ ,प्रियतम भी था साथ, एक रोज बैठी थी मैं , नदी के किनार पे ।
प्रेम का मधुर गीत , गाते गाते झूम उठे, मन की मधुर धुन , बजी थी सितार पे ।
कोयल की कुहू कुहू, पपीहे की पिहु पिहु, प्रेम की प्रकृति थी, मौसम की बहार पे।
हवाये भी छू रही थी , रह रह कर हमें , पुरवाई ताकती थी , प्रीत की पुकार पे।
कवियत्री
वैष्णवी पारसे
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
मैं वृक्ष हूं
🌲🌲🌲
मेरी हमेशा कोशिश रहती है
कि , मैं वृक्ष सा बनूं।
क्यों कि
वृक्ष की छाया में
राह चलते राहगीर
पनाह पाते है।
वृक्ष देता है,
सबको शीतल छांव।
वृक्ष की मजबूती
आंधी और तूफान में
स्थिर रहने का देती है सन्देश।
वृक्ष के फल,
अमीर, गरीब, जातियों में नहीं करते हैं भेद,
और करते हैं पेट की ज्वाला को शांत।
वृक्ष देता है
मंगल करने की शिक्षा,
सहनशीलता है उसका आभूषण,
विशेषता है
जमीन को पकड़े रहनी की।
सर्दी, गर्मी, और बरसात में
निर्विकार खड़ा रहता है।
पर कितनी विडम्बना है
एक दिन
उसका मालिक ही
उसका अस्तित्व मिटा देता है।
वृक्ष रहता है शांत,
तब मैं भी सोचता हूं
कि मैं भी वृक्ष बनूं,
उसी की तरह
विपरीत परिस्थिति में
कभी भी
नहीं खोऊँ धैर्य
रहूँ हमेशा शांत
दूं सबको शीतल छाया
और प्रेम।
वृक्ष की महानता ने ही
उसे बना दिया है पूजनीय
ये है गुणों की खान,
हां मैं वृक्ष बनूं।
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
संजय जैन (मुम्बई)
*प्यार का सन्देश*
विधा : गीत
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।
क्या उसको संदेशा तुम दे पाओगे ।
जब वो आये यहां पर घूमने को ,
उसे पहले कोई लहर आ जायेगी।
जो तुम ने लिखा था संदेशा।
उसे लहर वहाकर ले जाएगी।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।।
अगर करते हो सही में मोहब्बत तुम।
तो पत्थर पर क्यों सन्देश लिखते नहीं।
जब भी वो आयेगे यहां पर,
संदेशा तुम्हारा पड़ लेंगे वो।
यदि होगी मोहब्बत तुमसे अगर।
नीचे अपना पैगाम लिख जाएंगे।।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।
एक दूसरे के संदेश पढ़कर तुम।
सच मानो मोहब्बत हो जाएगी।
इसलिए कहता हूं मैं आज तुमसे ।
पत्थरों में भी मोहब्बत होती है जनाब ।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।।
संजय जैन (मुम्बई)
12/03/2020
एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*
*मन के हारे हार,मन के जीते*
*जीत।मुक्तक।*
मन हार गए तो फिर कोई
जीत पाता नहीं है।
बिना संघर्ष के सफलता
कोई लाता नहीं है।।
मत इंतिज़ार करते रहो कुछ
अच्छा करने को।
बस यही बात समझ लो कल
कभी आता नहीं है।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मोब 9897071046
8218685464
एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*
*वसुधेव कुटुम्बकम।*
*मुक्तक*
जब दर्द किसी का दिल
में बसने लगता है।
ह्रदय हर संवेदना को सुनने
तकने लगता है।।
तब यही दुनिया बनने लगती
है इक परिवार सी।
सारा जहाँ अपना सा तब
लगने लगता है।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो 9897071046
8218685464
एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*
*जो निभे वही दोस्ती है।*
*मुक्तक।*
दोस्ती की लकीर होती नहीं
बनानी पड़ती है।
प्यार महोब्बत के खाद पानी
से जमानी पड़ती है।।
डालनी पड़ती है जान हर
दोस्ती के अन्दर।
यूँ ही टिकती नहीं कोई दोस्ती
निभानी पड़ती है।।
*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो 9897071046
8218685464
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"विपद्रव"*
"शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।
ऐसे ही साथी जीवन में,
स्वार्थ सिद्धि को-
होते रहते विपद्रव।
राजनीति में भी होती रहती हलचल,
सार्थक मुद्दो पर भी-
होती राजनीति होते विपद्रव।
शांत प्रदर्शनों में भी,
घुस आते अजनबी-
करते बदनाम होते विपद्रव।
दूर रहना असमाजिक तत्वों से,
तभी रहोगे सुरक्षित-
होगे नहीं विपद्रव।
देना होगा साथ सत्य का,
तभी रूकेगे-
उपद्रव-विपद्रव।
शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।।"
सुनील कुमार गुप्ता 12-03-2020
राजेंद्र रायपुरी
दोहा छंद पर एक मुक्तक - -
इक नेता का हो गया,
आज नया अवतार।
बदले-बदले से दिखें,
बदले बात विचार।
जाने कैसी यार ये,
नेताओं की जात।
दल बदलें तो केकटस,
लगे फूल का हार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
आ राधे तेरा श्रृंगार करूँ
प्रदान करूँ जीवन की खुशियां
न्यौछावर सब संसार करूँ
तुम ही मुझ कान्हा की दुनियां
तेरी आभा से ही मैं चमकूँ
तेरी ज्योति से रहूँ आलोकित
कृष्ण प्रिया ही नहीं केवल
मेरा रोम रोम तुम से शोभित
यदि जगतपिता हैं कृष्णा
तो जगजननी बृषभानु सुता
करना जग कल्याण प्रिय
प्राणी मात्र के प्रति स्नेह युता।
श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
सत्यप्रकाश पाण्डेय
आ राधे तेरा श्रृंगार करूँ
प्रदान करूँ जीवन की खुशियां
न्यौछावर सब संसार करूँ
तुम ही मुझ कान्हा की दुनियां
तेरी आभा से ही मैं चमकूँ
तेरी ज्योति से रहूँ आलोकित
कृष्ण प्रिया ही नहीं केवल
मेरा रोम रोम तुम से शोभित
यदि जगतपिता हैं कृष्णा
तो जगजननी बृषभानु सुता
करना जग कल्याण प्रिय
प्राणी मात्र के प्रति स्नेह युता।
श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
प्रीति मनोहर रूपसी परम दिव्य अहसास।
माँ अमृता शारदा का हो नित आभास।।
माँ का आशीर्वाद चाहिए।जीवन अब आवाद चाहिए।।
माँ बिन जीवन सदा अधूरा।माँ ही करतीं सबकुछ पूरा।।
जबजब विपदा आती रहती।प्रेम-सांत्वना देती रहतीं।।
भक्त हेतु माँ सदा समर्पित।प्रीति-दान हेतु संकल्पित।।
स्वयं निराश्रित आश्रयदायी।सहज स्नेह भाव सुखदायी।।
भजन करो बस केवल माँ का।बातें सुनना सिर्फ उन्हीं का।।
माँ केवल सर्वोत्तम सत्ता।बिन आज्ञा हिलता नहिं पत्ता।।
ज्ञान प्रेम भक्ति की गरिमा।गाते रहें तुम्हारी महिमा।।
बैठ हंस पर आ जाओ माँ।पुस्तक बनकर छा जाओ माँ।।
करो कृपा हे करुणा माता।हे सुखदाता मातृ शारदा।।
कृपाप्रदाता माँ करें हम सबका कल्याण।
यश-वरदानी बन हमें दें यश का वरदान।।
नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"आओ जीवन-पर्व मनायें"
जीवन में खुशियाँ छा जायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
जीने का यह श्रेष्ठ तरीका,
गम भी गमके लगे न फीका,
गम में भी हम खुशी मनायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
जीवन को आसान बनाना,
इसपर माला-फूल चढ़ाना,
इसको सुन्दर देव बनायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
समतावादी मंत्र जाप कर,
तन-मन-उर में नहीं पाप धर,
योगशास्त्र को पढ़ें-पढ़ाएं,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
मन-दिल में उत्साह भरा हो,
सबके प्रति समभाव भरा हो,
स्व अरु पर का भेद मिटायें,
आओ जीवब-पर्व मनायें।
सोचें सुन्दर बोलें उत्तम,
भाषा हो मधुरिम प्रियअनुपम,
शुभ शिवमय संवाद करायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
ममता जागे कटुता भागे,
बढ़े निकटता आगे -आगे,
मन-समाज में प्रीति जगायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
सद्भावों का देखें मेला,
हो आनंदक जीवन खेला,
मन-सरिता में पुष्प खिलायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
काम-क्रोध से खड़े दूर हों,
पर -उपकारी भाव पूर हों,
संवेदन का प्रणय करायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।
लघुता में देखें प्रभुता को,
स्वयं समर्पित मानवता को,
खुद का हम उत्सर्ग रचायें,
आओ जीवब-पर्व मनायें।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
प्रीति परस्पर का सदा हे माँ दे वरदान।
एक भाव से हम करें मानव का सम्मान।।
सदा प्रीति रस मेघ बनी आ।माँ उर में आकर बस छा जा।।
करें सदा हम सेवा जग की।करें भलाई प्रति पल सबकी।।
बंध जायें हम मानवता से।सहज प्रेम हो नैतिकता से।।
मन की ग्रन्थि घुला दे माता।कुत्सित भाव सुला हे दाता।।
दिनोँ का उपकार करो माँ।फँसे हुए को पार करो माँ।।
सन्तप्तों को शीतल कर माँ।मीन-नीर को विलग न कर माँ।।
स्वर्ग बने भू-मण्डल सारा। बने आपसी प्रेम पियारा।।
वरदानी हे सर्वसाधिके।बनकर आओ प्रिये राधिके।।
कान्हा का संसार चाहिये।कृष्ण-राधिका प्यार चाहिये।।
सुन्दर संतानों को रच दे।वर वर दे मातृ शारदे।।
प्रेममयी हो सारी दुनिया।स्नेहिलता बन जाये मनिया।।
दिल से दिल के तार जोड़ दो।सबपर अपना प्यार छोड़ दो।।
सुन्दर मोहक भाव का हो सारा संसार।
रचें बसें सबमें सभी मिले सभी का प्यार।।
नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"मेरी पावन मधुशाला"
काव्य भाव की मधुर निराली दिव्य छटा सी है हाला,
करता है मधुपान निरन्तर मधु- सेवी पीनेवाला,
कविता का प्याला दिखलाता बड़े प्रेम से साकी है,
बनी हुई है काव्य मंडली जैसी मेरी मधुशाला।
भावों में ही बह जाने को सदा समर्पित है प्याला,
मधुरिम भावों की मादकता से नहलाती है हाला,
मधुराकृति में मजेदार मह महा महकता मधु साकी,
महानायिका मधुभावों की अद्य बनी है मधुशाला।
प्यास निरन्तर बुझ सी गयी है वह संतृप्त योग-प्याला,
जग की प्यास बुझाने आयी है मेरी हाला,
सकल विश्व की भूख-प्यास को सदा मिटाता साकी है,
सहज तृप्ति की चाह जिसे हो आये मेरी मधुशाला।
है अनन्त का यात्री बनकर निकल पड़ा मेरा प्याला,
है अनन्त की शैर कराती यान सदृश हृद-मधु हाला,
है अनन्त के अंतरिक्ष पर खड़ा देखता जग साकी,
अंतरिक्ष के महा शून्य की महा-मंडली मधुशाला।
सबसे ऊँचा विश्व शिखर पर खड़ा सभ्य सम प्रिय प्याला,
वैश्विकता की मधु-मानवता हेतु रचित वैश्विक हाला,
सबसे ऊपर विश्व-ध्वजा ले फहराता मधुमय साकी,
सहज अलौकिक वैश्विकता की जग -जननी है मधुशाला।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9738453801
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
एक नए फागुनी गीत का मुखड़ा
होरी खेलों हमारे संग, देखो फागुन आऔ हैं।
मुखड़े पर लगाओ ये रंग, देखो फागुन आऔ हैं।
डारि के रंग चुनर भिगो दी, चोली भिगो दई मोरी।
पकड़ि कलाई पास बुलावै, वो खूब करै बरजोरी।
खूब मन मे भरे हैं उमंग, मनोज सब पे छाऔ हैं।
होरी खेलों हमारे संग, देखो फागुन आऔ हैं।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
रीतु प्रज्ञा करजापट्टी, दरभंगा, बिहार
प्रतियोगिता हेतु
होली पर आलेख
रंगोत्सव मनाए सावधानी से
होली उल्लास, उमंग,मस्ती का त्योहार है।सब जन पर प्रेम के रंग का नशा छाया रहता है।सभी होली में रंग,गुलाल लगा खुशियों से सराबोर रहते हैं।इस खुशी के क्षण को सावधानी से मनाने की जरूरत है।थोड़ी सावधानी अपनाने से होली की मस्ती में चार चाँद लग जाएंगें। नहीं तो अनहोनी होने पर जीवन भर पछताना पड़ता है।होली की खुशी में सराबोर होकर निम्न बातों पर ध्यान दें:-
(1)होली खेलने से पहले पूरे शरीर पर तेल लगा लें।इससे रंग आसानी से साफ हो जाता है।
(2) हमेशा हर्बल युक्त उत्तम रंगों का इस्तेमाल करें।चेहरा ठीक रहता है।
(3) घर में ही फूल,पत्तों इत्यादि से रंग बना लें।इसे दूसरों के लगाने से चेहरा नुकसान होने से बचेगा।आपसी प्रकृति प्रेम भी बढेगा।
(4) किसी भी व्यक्ति को रंग,गुलाल सावधानी पूर्वक लगाएं।आँख,नाक,कान ,मुँह को बचाते हुए लगाए।
(5)सूखा रंग का प्रयोग अधिक करें।पानी की बचत पर ध्यान दें।
(6) किसी को भी जबरदस्ती रंग नहीं लगाए।सामने वालों की अनुमति से ही लगाएं।उसके रंग नहीं लगाने के कोई कारण हो सकते हैं।दूसरे व्यक्ति की भावना को समझने की कोशिश करें।
(7)कोई भी नशीली पदार्थों नहीं खाएं और नहीं दूसरों को खिलाएं।अगर भांग का शर्बत पी लेते हैं तो किसी को तंग नहीं करें।भोजन करके आराम से सो जाए।
(8)स्त्रियों एवं लड़कियों के अस्तित्व का ध्यान रखकर उनके साथ होली खेलें।उनके उत्तेजक अंगों को छूने एवं रंग लगाने से परहेज करें।
(9)पुरानी रंजिश को ध्यान में रखकर कभी भी किसी को रंग,गुलाल में रासायनिक पदार्थ मिलाकर नहीं लगाएं।इससे दोनों व्यक्ति की सदा हानि ही होती रही है।
(10) होली में मटका फोड़ने तथा अन्य किसी बात पर रंग लगाने के बहाने मारपीट नहीं करें।सभी गिले शिकवे भूलकर आपस में सभी मिलकर होली मनाए और प्रेम रंग चहुँओर बरसाए।
रीतु प्रज्ञा
करजापट्टी, दरभंगा, बिहार
बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु
बसंत की पावन पर्व होली की आप सभी को बहुत बहुत बधाई। उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
होरी
खेलत फाग उमंग लिए मन
झूमत तन ठहरी - ठहरी
गाल गुलाबी रंग दिए तब
डोलत सब गौंआ नगरी।
ब्रज की नगरी धूम मचो है
मन मोहन खेलै होरी
राधा भागी दौडी - दौड़ी
श्यामा करै बलजोरी।
मन का बैरी, द्वेष मिटो सब
मिलतो सब भाई - भाई
झूमत नाचत गावत सब मिल
खुशियाँ देतो है लाई।
नव वसन तन डारी लियो सब
ले गुलाल की सब झोरी
घर - घर में जातो मिलने को
बचो कहाँ कोई कोरी।
जात - पात कौ सीमा मिटतौ
रहतो है भाईचारो
प्रेम सदा दिखतौ है मन में
लगतो आँखों को तारो।
पुआ - पूरी खूब खातो सब
घर - घर में सब जाके
रंग, भंग की चढ़ जातो तब
होरी की गीत सुनाके।
स्वरचित - बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु
बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्यख़्याता
रामचरित मानस द्वारा सर्व सिद्ध कलयुगी शाबर मंत्र प्रयोग की विवेचना
कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा।
साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।।
अनमिल आखर अरथ न जापू।
प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।।
।श्रीरामचरितमानस।
जिन भगवान शिवजी व माँ पार्वतीजी ने कलियुग को देखकर, संसार के हित के लिए साबर मन्त्रसमूह की रचना की,जिनमें मन्त्रों के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ होता है और न जप,तथापि भगवान शिवजी के प्रताप से जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
कलि बिलोकि अर्थात कलियुग के प्रभाव को देखकर कहने का तात्पर्य यह है कि कलियुग में पूर्ण विधि विधान से योग,यज्ञ,जप,तप,व्रत,पूजा,ज्ञान, वैराग्य आदि सम्भव ही नहीं हैं।केवल भगवद्भक्ति ही इस कलिकाल से मुक्त रखने का एकमात्र उपाय है।गो0जी ने श्रीरामचरितमानस के अन्त में यही बात कही है।यथा,,,
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलम्बन एकू।।
एहि कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।
सन्तत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।
विनय पत्रिका में भी गो0जी का उद्घोष है,,,
राम राम जपु जियँ सदा सानुराग रे।
कलि न बिराग जोग जाग तप त्याग रे।
एक ही साधन सब रिद्धि सिद्धि साधि रे।
ग्रसे कलि रोग जोग संजम समाधि रे।।
भगवान शिवजी विरचित साबर मन्त्र सतयुग, त्रेता व द्वापरयुग में नहीं था।कलियुग में भगवान शिवजी माँ पार्वती जी के साथ भीलरूप से प्रकट हुये और भील भाषा में सिद्ध साबर मन्त्र की रचना की जिसका उपयोग सर्पादि विषों को उतारने के लिए व अन्य कार्यों के लिए किया जाता है।इन मन्त्रों में अक्षरों के मिलान से कोई अर्थ नहीं निकलता है परन्तु भगवान शिवजी की कृपा से तान्त्रिक लोग उनका उपयोग करते हैं।प्रायः भील जाति के तान्त्रिक इन मन्त्रों का उपयोग विषैले जन्तुओं जैसे सर्प,बिच्छू,बर्र,ततैया भौंरा आदि के काटने पर तथा शरीर में गलसुआ, फोड़ा फुंसी, पित्ती,दाँत दर्द,अंगुली पकने पर उन्हें ठीक करने के लिए करते हैं।इन मन्त्रों के अक्षरों में कोई मेल नहीं होता है और सुनने में अजीब से लगते हैं और जपने का भी कोई विशेष नियम नहीं है फिर भी दृढ़विश्वास के आधार पर रोगी को लाभ हो जाता है।इसे ही भगवान शिवजी के प्रताप का प्रभाव कहा जाता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"सेवा मेँ आनन्द- दृष्टि हो"
सेवा में आनन्द खोजिए,
प्रेम समर्पण ज्ञान खोजिए,
सेवक बनना सर्वोत्तम है,
मधुर-मिलन-मुस्कान खोजिए।
सेवा में आनन्द-दृष्टि हो,
सहज प्रेम की सदा वृष्टि हो,
सुख की चाहत में हो सेवा ,
सहजानन्दी सकल सृष्टि हो।
बन जाओ रविदास सन्त सम,
करते जा कबीर सा उद्यम,
छोटा नहीं जगत में सेवक,
निष्कामी सेवक सर्वोत्तम।
सदा समर्पण भाव निराला,
पी भावुकता का मधु-प्याला,
शोषण करना त्याग निरंकुश,
बन जा सबके उर की माला।
सेवा-व्रत ही हो संकल्पित,
जीवन हो सेवा-अभिकल्पित,
सेवा सबसे बड़ा धर्म है,
सेवा पावन क्रिया प्रकल्पित।
सेवा में अमरत्व छिपा है,
सेवा में व्यक्तित्व छिपा है,
सेवा से ही मिलता जीवन,
सेवा में सर्वस्व छिपा है।
सेवा तत्व दिव्य अविनाशी,
सेवामय हैं शिव-कैलाशी,
सेवक बनना सीखो मित्रों,
सेवा अतमपुरी निवासी ।
सेवा गूढ़ रहस्य जीवन का,
सेवा पुष्प गुलाब चमन का,
सेवा को ही मिशन मान लो,
सेवा ज्योतिपुंज उर-मन का।
नमस्ते हरिहरपुर से--डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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