कविता -बापू कुछ ऐसा कर जाते
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मज़हब की उठती लहरों पै,ले अपनी नाव उतर जाते !
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।
सब शक्ति परक प्रतिमानों पर , होता प्रचण्ड भारत मेरा ,
दुनियाँ में धाक अलग होती , दिखता अखण्ड भारत मेरा ,
उत्पादन से उपभोग तलक, सब अर्थ तंत्र अंदर होता ,
इतिहास बदल जाता बापू, भूगोल बहुत सुंदर होता ,
तब चीन सरीखे मुल्कों के ,दावे निर्मूल बिखर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।1
आचार संहिता सम होती ,नहि मज़हब की रंजिस होती ,
मजहब आतंकी दानव की , तब भारत में बंदिश होती ,
भारत से तब टकराने की ,कोई नादानी नहिं करता ,
अमरीका जैसा देश हमारे ,सम्मुख तब पानी भरता,
तब पंख रूस ईरान देश के अपने आप कतर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।2
नहरू के सम्मुख लोह पुरुष ,खुद किया आपने था दुर्बल ,
भगवान मान पूजा होती , यदि करते ना यह काज निबल,
जिन्ना पटेल दोनों को ही ,संयुक्त प्रधान चुना होता ,
भारत माता का दुनियाँ में ,वैभव तब कई गुना होता ,
नहरू को समझाते बापू ,सारे मत भेद संवर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।3
खंडित भारत के खेमों ने, प्रधान पटेल को माना था ,
नहरू को गद्दी देने का , क्यों योग आपने ठाना था ,
जिन्ना को धन बटवारे का ,उदघोष आपका था बापू ,
इतिहास बताता "हलधर"को ,ये दोष आपका था बापू ,
नकली जिद को छोड़े होते ,धरना देते या मर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।4
हलधर -9897346173