राजेंद्र रायपुरी

😌 जोड़ो हाथ,न हाथ मिलाओ😌


जोड़ो हाथ न हाथ मिलाओ।
  कोरोना   को   दूर   भगाओ।
    भैया  अपने  देश  की  भाषा,
      और संस्कृति  को  अपनाओ।


आमिष तुम आहार करो ना।
  मांस-वांस  से  पेट  भरो  ना।
    खाओ    शाकाहारी    खाना।
      यही   दवाई   यार  डरो   ना।


नकल न औरों की तुम करना।
  उसकी  लाठी  से  तुम  डरना।
    चाल  अगर   उल्टी  होगी   तो,
      बेमौत     ही    पड़ेगा    मरना।


जो    भी   अत्याचार   करेगा।
  निश्चित  ही   वो   यार   मरेगा।
    करनी  का  फल  यहाॅ॑ नहीं तो,
      बोलो    जाकर   कहाॅ॑   भरेगा।


सबसे   अच्छी   यही   दवाई।
  शाकाहारी     खाओ      भाई।
    हाथ   जोड़कर   बोलो  सबसे,
      दूर   रहो   मत    करो   ढिठाई।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग

🌹मेरे घर
************
मेरे आंगन
की बगिया में
गेंदा,गुलाब कई प्रजातियों के 
फूल है।
खाद-पानी से नहीं
मेरे प्यार से खिलते हैं
मुझे अक्सर हंसाते हैं
यही कारण है कि
मै हमेशा बगिया को
सुंदर बनाने की कोशिश 
करता रहता हूं।
ताकि मेरे
बगिया की खुशबू
चारों ओर फैले
और सभी के घरों में हो
प्यार स्नेह और आनंद का
वातावरण।
************************
   कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग


देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"

.......तशरीफ़ लाये हैं..........


तशरीफ़ लाये हैं इस जहां में;
चंद   रोज  बिताने  के लिए।
कर सकें जो भला  कर  लें ;
इस    जमाने     के    लिए।
क्या  पता  जब  हम हो रहे;
होंगे रुख़सत इस जहां   से।
कुछ  न  होगा   साथ    में ;
उपरबालेको बतानेके लिए।


-देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

पुष्प


पुष्प जैसा जीवन हो मेरा
स्वयं खिलूँ व जग मन हरषाऊँ
सुरभित रहूँ सदा में जग में
सुरभि से हरदिल को महकाऊं


कोई आकांक्षा नहीं है मेरी
कि पहनें हृदय पै हार बनाकर
देव प्रतिमा पर चढ़ाएं मुझे
इतराऊँ में भव गहना बनकर


बिखर जाए अस्तित्व भले 
बनूं न मैं जन पीड़ा का कारण
खुशी मिले मेरी खुशबू से
मुझे अपना हों दुःख निवारण


स्पर्श भी सुख दे मानव को
मेरे रुप व रंग से भी चैन मिले
कोमल कोमल पंखुड़ियों से
स्नेह और प्यार भरा सकूं मिले


नौचें खरौचे मधुमक्खियां भी
मेरे मधु व मकरन्द का पान करें
तितलियां मंडरा मंडरा कर
न मेरी शुचिता का गुणगान करें


भ्रमर पंक्तियां नाचें व गायें
रसिक हृदयों को देवें आनन्द
वैसे हो फूलों जैसा जीवन
जग में फैले कृतित्व मकरन्द।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनीता असीम

मुझे रास आने लगी जिंदगी।
मेरा दिल लुभाने लगी ज़िन्दगी।
***
इधर देखती औ उधर देखती।
नज़र क्यूँ चुराने लगी ज़िन्दगी।
***
जमाने में फैला करोना का डर।
खबर ये सुनाने लगी ज़िन्दगी।
***
बिमारी से कैसे बचे ये वतन।
शिफ़ा कुछ बताने लगी ज़िन्दगी।
***
करम जो खुदा का हुआ आपपर।
गगन पर बिठाने लगी ज़िन्दगी।
***
सुनीता असीम
12/3/2020


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल           झज्जर (हरियाणा )

होली... रंग प्यार का 


पिया से बोली प्रियतम 
सुनो, आज होली है 
मुझपर भी रंग खुमार का 
प्रेम वशीभूत अबरार का 
ना करना मौका तकरार का 
मेरा लगाव सरोबार का. 


मुझपर अपना चढ़ा दो रंग 
नहीं होता इंतज़ार का. 
एक रंग प्यार का 
एक रंग दुलार का 
एक रंग प्रेमाधार का 
भावनामयी अज़ार^ का          प्रेम भावना 
एहसासरत गुणागार^ का        बंधन 
मेरे इस धड़कते दिल में 
फैले से सभागार का 


एक रंग चढ़ा दो मुझपर 
उस मुस्कुराते अनार का 
सौन्दर्यमयी मीनार का 
मेरे आँगन में चनार का 
खिलते यौवन कचनार का. 


प्रियतम ने अपनी बाहें खोली 
पेड़ हो ज्यों गुलनार का 
कहने लगा "तुम जीवन हो मेरा 
मेरे प्रेम भरे अम्बार का". 
मेरा प्यार तो निश्छल है, 
ये मोहताज़ नहीं अबरार का. 
तुम्हें देख रूह खिलती है "उड़ता ", 
यही है रंग मेरे प्यार का. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
         झज्जर (हरियाणा )
   संपर्क - 9466865227


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

फलसफा गया...... 


एैसे ही निकलता गया, 
ये ज़िन्दगी का फलसफा. 
कुछ मिल गया, 
कुछ छूट गया. 
कोई दोस्त बना, 
कोई रूठ गया. 
सोचा कोई खास बना हमारा. 
रंग लाएगा एहसास हमारा. 
मगर कोई धागा टूट गया. 
कोई मेरी आँखों से दूर गया. 
मैं संभाल ना सका जन्नत अपनी, 
कोई दर से होके मज़बूर गया. 
छलकाया था जाम कुछ पल. 
जाने कैसे काफूर -ए -सुरूर गया. 
था एक बंद अनार, 
हल्की सी चोट से फूट गया. 
ये ज़िन्दगी का फलसफा "उड़ता ", 
क्यों होकर मगरूर गया. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
     झज्जर (हरियाणा 


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

नहीं बेसबब..... 


कुछ भी नहीं होता बेसबब. 
ये जानते हैं जन, सब. 
दुनिया निराली ही रही, 
बदलते रह गए ढब. 
हम तो चले शुरुआत से, 
कहाँ पहुँचे ना जाने अब. 
कितने फासले तय किए, 
मंज़िल पर पहुँचोगे कब. 
सितारों ने रास्ता दिखलाया, 
अटकलों से भरा रहा नभ. 
हज़ार मुश्किल आई अकसर, 
जब भी बढ़ाया एक पग. 
यूं ना सोचो बढ़ो आगे "उड़ता ", 
जहान मिलेगा जब बढ़ेंगे डग. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

कुछ बेखबर.... 


वक़्त ने चली अपनी चालें, 
मैं रहा बेखबर -बेखबर. 
मेरे  हिस्से  का आसमान, 
नहीं हुआ मयस्सर. 
हालात का हिसाब यों, 
होता रहा अकसर -अकसर. 
ख़ुश्क रेगिस्तान दिखा, 
जाती थी जहाँ तक नज़र. 
राहगीर का काम चलना है, 
रात भी नहीं अमर. 
खुद से ही क्यों लड़ता रहा, 
उम्र -ए -तमाम संवेदना -ए -सहर. 
प्यास तो अपनी बड़ी बहुत, 
कुछ नीर -ए -बूँद क्या करती असर. 
कागज़ पर उकेर दो, 
ले शब्दों का खंजर.
कुछ पलों में शांत हो जाओगे "उड़ता ", 
निकल जायेगा सब भीतर से ज्वर. 


✍सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
     झज्जर (हरियाणा )
📱9466865227


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना 
दिनांकः ११.०३.२०२०
वारः बुधवार
विधाः उन्मुक्त (कविता)
शीर्षकः 🕊️"गोरैया" 🐦


चीं चीं चीं चीं छोटी चिड़िया,
प्यारी प्यारी भोली भाली,
उड़ी गोरैया उन्मुक्त गगन में,
फुदक फुदक कर इधर उधर वह
बैठी उड़ती चुगती दाने,
छोटी छोटी चोंच में तिनके,
उठा ले जाती बना घोंसलें।
घर बाहर खिड़की दरवाज़े,
निडर बनी वह नित मतवाली,
रंगमहल बन सज़ा आसियां ,
अंडे देती , पाल पोषती ,
बस इतराती नन्हीं चिड़िया,
हमें चिढ़ाती चीं चीं करके ,
तिनकों से घर गंदा करके ,
साफ कराते हमसे निज घर,
हँसती चिड़िया चतुर गौरैया,
नित थकते,फिर भी हम हँसते,
भोली भाली बिन चिन्ता वह,
प्रकृति मनोहर उड़नपरी बन,
नव आशा की सोच जगाती,
नित उड़ान भर नये ध्येय नभ,
नव जीवन की अलख जगाती,
मन भावन सुन्दर यह चिड़िया, 
प्यास बुझाए जहँ मिले सुलभ जल,
साँझ भयो निज गेह गोरैया।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”

•आ जाता मैं•
आज ऐसे क्या लिखूँ,तेरी बद आदतों पर मैं।
बातों को वैसे भी,कभी भूलता नहीं हूँ मैं।
अगर दिल और दिमाग,आज ना लगाते रिश्ते में
तो कुछ वक़्त ही सही,तेरे पास आ जाता मैं।
-कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”
सम्पर्क सूत्र-9415911010
KRS


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दोहे
श्रवण पठन लेखन सदा , आलोचन    साहित्य।
गीति रीति कविकामिनी ,लेखन   मम औचित्य।।१।।
सेवन नित साहित्य का , हूँ हिन्दी  फनकार।
अन्वेषक  मधुरिम  कुसुम , भ्रमर    बना गुंजार।।२।।
कवि मानक नियमावली , सहमत नित  सम्मान।
रीति प्रीति रसगुण सहित , काव्य ध्येय श्रीमान।।३।।
निज लेखन   साहित्य  में , करूँ  शब्द   शृङ्गार।
हिन्दी हो सुरभित वतन, सुखद  शान्ति उपहार।।४।।
कलमकार   हिन्दी वतन , गद्य   पद्य अभिधान।
रीति शिल्प    रसगुणमयी , परलेखन   सम्मान।।५।।
आवश्यक   नियमावली , अनुशासित   आचार।
पठन श्रवण लेखन सहज,कवि लेखक आधार।।६।।
सर्वप्रथम   पाठक समझ , बाद बना  कविकार।
आलोचक  गद्दार का ,श्रावक  कवि    फनकार।।७।।
कवि लेखन दर्पण सदा , प्रेरक   नित  समाज।
रचता   हूँ  कवितावली , नयी   क्रान्ति  आगाज।।८।।
सदाचार    कवि भंगिमा , भारत  माँ    जयगान।
मानवता   बस  ध्येय  कवि , नवजीवन रसपान।।९।।
कवि निकुंज  जीवन  सफल, लेखन  पाए मान।
ओत प्रोत   भक्ति वतन , ध्येय  अमन   उत्थान।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


कैलाश दुबे

कोरोना ने कर दिया सबका बंटाढार ,


अब जीना हो गया अपना भी दुष्वार ,


अपना भी दुष्वार जहां देखो वहीं कैरोना ,


साथी सारे चले गए जो अपना भी करता होगा ,


अब तो यारो अपना जीवन है धिक्कार , 



कोरोना ने कर दिया सबका बंटाढार ,


अब जीना हो गया अपना भी दुष्वार ,


अपना भी दुष्वार जहां देखो वहीं कैरोना ,


साथी सारे चले गए जो अपना भी करता होगा ,


अब तो यारो अपना जीवन है धिक्कार , 



कैलाश दुबे


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"राजनीति की बल्ले-बल्ले"
""""""""""""""""""""""""""""""""""""
कुछ गिद्ध बैठे हुए हैं
लेकर माईक हाथो में
क्या होगा सियासत में
इसी बात को जानने में
उठाव - पटक हो रही है
बातों की खिंचा - तानी है
इधर - उधर ताक रहे हैं
शब्दों की जुबानी में
किसकी गिरेगी सरकार यहाँ
किसकी बनेगी सरकार यहाँ
बस इसी की परिचर्चा है
कौआ बेचारी शांत है
गिध्दों की काँव - काँव में
कुछ सियार चातुर बने हैं
अपनी जाल बिछाने में
इधर हो या उधर हो
अपनी बल्ले - बल्ले जमाने मे ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


कुमार कारनिक

*******
     कुमार कारनिक
  (छाल, रायगढ़, छग)
     *खेलें होली*
 (मनहरण घनाक्षरी)
^^^^^^^^^^^^^^^
डम - डम   बाजे  ढोल,
बरसे   रंगो   का  घोल,
आपस में  खेलें  होली,
     करें हँसी ठिठोली।
💫🎈
होली   आई   मतवारी,
भर   मारो   पिचकारी,
कान्हा संग खेलें होली,
   करें आँख मिचौली।
🎈💫
गोवर्धन        गिरधारी,
मै हूँ  तेरी  राधा प्यारी,
तू मेरा श्याम  सलोना,
 पिया से आज बोली।
💫🎈
हरे - नीले - पीले - रंग,
गोरी के  भीगें  है  अंग,
लगा   मुझे   प्रेम   रंग,
    आई आई रे होली।
🎈💫



                *******


प्रिया सिंह

मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 
रंग होली का जीवन में मैं भर दूँ 
और...... कर दूँ उजाले तेरी राहों में 
और खुद को कर दूँ हवाले तेरी बाहों में 
सर मैं कदमों में तेरे.........रखूंगी सदा
और जीवन में तेरे...........रहूंगी सदा


खुशियाँ किस्मत में तेरे मैं भर दूँ 
मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 


जब आँखों में सितारे ये चमका करें
मांग तेरी चूनर पर भी दमका करे
तब खुशियों का चादर बहुत हो बड़ा
उसमें इत्र का भी सागर बहुत हो बड़ा
मैं मन्नत भी तेरी.........करूँगी सदा
मै मोहब्बत भी तुमसे....करूंगी सदा


इश्क गालों से गालों पर तेरे मैं मल दूँ 
मन कलियों से तारों से.......मैं भर दूँ 


तेरे नर्म नूर से झूमें......सारा गगन
तेरी ख्वाइशों को चूमे ये सारा गगन
तेरे सजदे में सारा झुकेगा जहां
तेरे नज्मों को सारा सुनेगा जहां 
मैं परेशान तब भी करूंगी सदा
और अरमान तब भी रखूंगी सदा


तेरे नाम हर साँस........मैं कर दूँ 
मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 


जख्म सीने से बहने लगा देख लो
दिल चुप हो के सहने लगा देख लो
तुम दीवानगी का फ़ितूर दे दो मुझे 
इस शफ़क़त का एक तूर दे दो मुझे
तेरी इबादत में चर्चा करूंगी सदा
मै मंदिरो में भी पर्दा करूंगी सदा


तेरे होठों पर इबारत....मैं भर दूं
मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 


मेरे हालात को अब चुन लो जरा
पाक दिल है मेरा इसे सुन लो जरा
अब निशानी मोहब्बत की दे दो मुझे 
अब रहमत इजाजत की दे दो मुझे 
तेरी खामोशियों में रहूंगी सदा 
तुझसे तन्हाईयों में मिलूंगी सदा


यार इस थार में समंदर मैं कर दूँ 
रंग होली का जीवन में मैं भर दूँ 
मन कलियों से तारों से मैं भर दूं


Priya singh


हलधर -9897346173

कविता -बापू कुछ ऐसा कर जाते 
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मज़हब की उठती लहरों पै,ले अपनी नाव उतर जाते !
बटवारा घर का रुक जाता  ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।


सब शक्ति परक प्रतिमानों पर , होता प्रचण्ड भारत मेरा ,
दुनियाँ में धाक अलग होती , दिखता अखण्ड भारत मेरा ,
उत्पादन से उपभोग तलक, सब अर्थ तंत्र अंदर होता ,
इतिहास बदल जाता बापू, भूगोल  बहुत  सुंदर होता ,
तब चीन सरीखे मुल्कों के ,दावे निर्मूल बिखर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।1


आचार संहिता सम होती ,नहि मज़हब की रंजिस होती ,
 मजहब आतंकी दानव की , तब  भारत में बंदिश होती ,
भारत से तब टकराने की ,कोई नादानी नहिं करता ,
अमरीका जैसा देश हमारे ,सम्मुख तब पानी भरता,
तब पंख रूस ईरान देश के अपने आप कतर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।2


नहरू के सम्मुख लोह पुरुष ,खुद किया आपने था दुर्बल ,
भगवान मान पूजा होती , यदि करते ना यह काज निबल,
जिन्ना पटेल दोनों को ही ,संयुक्त प्रधान चुना होता ,
भारत माता का दुनियाँ में ,वैभव तब कई गुना होता ,
नहरू को समझाते बापू ,सारे मत भेद संवर  जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।3


खंडित भारत के खेमों ने, प्रधान पटेल को माना था ,
नहरू को गद्दी देने का , क्यों योग आपने ठाना था ,
जिन्ना को धन बटवारे का ,उदघोष आपका था बापू ,
इतिहास बताता "हलधर"को ,ये दोष आपका था बापू ,
नकली जिद को छोड़े होते ,धरना देते या मर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।4


                  हलधर -9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सोचकर बोली बोलो"*
(कुण्डलिया छंद)
****************************
■दहलाता दिल को कभी, छोटा कड़वा बोल।
कारण बनता बैर का, देता है विष घोल।।
देता है विष घोल, सोचकर बोली बोलो।
बात बने मत बाण, शहद वाणी में घोलो।।
कह नायक करजोरि, स्नेह मन को सहलाता।
करो न वह परिहास, हृदय को जो दहलाता।।


■बहलाता मन को सदा, प्यारा मीठा बोल।
आकुलता हिय की हरे, देता वह रस घोल।।
देता वह रस घोल, नेह का संचार करे।
पावन प्रेम प्रसार, सहज मन का ताप हरे।।
कह नायक करजोरि, भला जन वह कहलाता।
बोल मधुर मुख-बैन, हृदय को जो बहलाता।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


नूतन लाल साहू

हम नतमस्तक है
दीवाली गया,होली गया
आयेगा नवरात्रि की त्यौहार
पर्वो का क्रम,चलता ही रहेगा
ग्राहक पीला और दुकानदार
होता ही,रहेगा लाल
स्वाईन आया, कोरोना आया
आयेगा नया नया बुखार
ईमान को,भट्टी में झोककर
फायदे की ही,कर रहा है हर कोई बात
किस्मत में क्या बदा है,पता नहीं
फिर भी,सब है ईमानदार
ग्राहक पीला,होता रहेगा
दुकानदार होता ही,रहेगा लाल
किसी के,आंसुओ से
हर किसी को,क्या लेना देना
तिजोरी में,बंद है
लहलहाते खेत की,मुस्कान
रासायनिक खाद,दवाई के चलते
अन्न, पेट भरने का माध्यम है बना
अपनी ही,लाश ढो,रहा है
गरीब बच्चो का कंधा
ग्राहक पीला होता ही रहेगा
दुकानदार होता ही रहेगा लाल
मोबाईल के टावर में मित्रो
सरपट समाया जा रहा है
मानव का खुशनुमा जीवन
मजबूरी कहो या बेपरवाह कह लो
हम बढ़ा रहे है
पर्यावरण प्रदूषण
दीवाली गया,होली गया
आयेगा नवरात्रि की त्यौहार
पर्वो का क्रम,चलता ही रहेगा
ग्राहक पीला होता ही रहेगा
दुकानदार होता ही रहेगा लाल
ये है आम बात
छोटे दुकानदार मत होना नाराज
क्योंकि मेरा कथन
भगौड़ों के लिए है,खाश
विनाश की लीला को हम
आंख बंद कर देख रहे है,आज
ग्राहक पीला होता रहेगा
दुकानदार होता ही रहेगा,लाल
नूतन लाल साहू


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

होली की बधाईयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ समस्त साहित्यिक ,सामाजिक और पारिवारिक मित्रों ,बन्धुवान्धवों को ❤️🙏❤️
शीर्षकः बधाईयाँ सतरंग 
होली के सतरंग से, मिले  खुशी और चैन।
खिले चमन माँ भारती , प्यार भरे हो नैन।।१।।
वर्धापन   शुभकामना , दूँ  होली उपलक्ष्य।
सुखद प्रगति नित जिंदगी,हो नारी संरक्ष्य।।२।।
मिटे सकल संताप जग, समरस हो सम्बन्ध।
रंगों का त्यौहार हो, त्याग प्रीति अनुबन्ध।।३।।
रहें स्वस्थ सत्कीर्तिपथ , झूमें  खुशी उमंग।
होली की मनमीत दूँ , बधाईयाँ     सतरंग।।४।।
तजें  वतन गद्दारियाँ ,करें सबल निज देश।
होली हो समरस अमन,दें प्यार भरा संदेश।।५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


कवि✍️डॉ. निकुंज दिल्ली

💐🙏सुप्रभातम्🙏💐
स्वारथ  है   ऐसी   बला, व्यर्थ  प्रीति या  नीति।
सब अवसर की ताक में, कल का दुश्मन मीत।।१।।
मीत   टिका  विश्वास पर , कोमलतर आभास।
तनिक  ठेस अन्तःकरण , टूटे   प्रीत  मिठास ।।२।।
तन मन जीवन मीत को ,सुख दुख में हो साथ।
बने  प्रशंसक  परमुखी,  उपदेशक  धर   हाथ।।३।।
कवि✍️डॉ. निकुंज


कैलाश दुबे

पत्नी की निगाह मुझ टिकी थी ,


एकदम टकटकी लगी थी , 


सोच रही थी कहीं नजर तो नहीं लगी ,


सड़क पर कोई राधा तो नहीं खड़ी ,


मैं भी उसे देखकर हैरान हो गया ,


उसने जैसे ही मुझे देखा ही था ,


और मैंने उसे देखा पैरों तले जमीन खिसक गई ,


वैसे ही मेरी होली फीकी पड़ गई ,


कैलाश दुबे


डा.नीलम

*यादों की बारात*


थी सावे की आखरी रात
निकल पड़ी यादों की बारात
दूर कहीं बजी  शहनाई
जहाँ पहुँच थमनी थी बारात


संग ख्वाब थे महके हुए
चंद खयाल भी बहके हुए
रिमझिम रिमझिम बरस रही थी बूंदे
खोल कपाट निकल पड़ी यादों की बारात


बचपन चहक रहा था
नटखट गिल्ली-डण्डा,
कंचे,चोर-सिपाही खेलता
खट्टी कैरीओ'कटारे चाट रहा था


आया उमर का चौराहा सामने
जोश जवानी का उबल रहा था
कर्म का टोकरा सर पर लादे
इधर- उधर भाग रहा था


जीवन के दोराहे पर अटका
थोड़ा घर,थोड़ाबाहर भटका
पीठ झुकी बच्चों केबोझ से
भूल गया बचपन का खेला


यादों की बारात जबनिकली 
दूर कहीं बजी शहनाई थी
बीते बसंत और होली -दीवाली,ईद सभी की याद आई थी


यादों के फेरे में मेरे तेरी भी
याद चली आई थी
वो दरिया का था किनारा
वही कदंब की छांव थी
तू श्याम मेरा था,मैं श्यामा
तेरी परछाईं थी


था मिलन हमारा अमर तो
अल्हड़ लहरों के सरगम में
शाख-पात ने हवाओं के
सुर में रिदम अपनी मिलाई थी


रुठ गई मौजे रवानी
बीत गई वो जवानी
यादें चौराहे पर अटकी
खुली आँख हकीकत की
बारात ना जाने कहाँ भटकी 


          डा.नीलम


ममता कानुनगो इंदौर

होली
तुम संग प्रीत  की होली,
रंगों से भीगी हमजोली,


महका गुलाल  लालम लाल,
मदन गोपाल नाचे ग्वाल बाल,


ढोलक की थाप, मृदंग ताल,
बाजत मुरलिया,स्वरताल,


ब्रजनारी भीगी कंचुकी सारी,
केसरिया रंग मारी पिचकारी,


चंदन वदन महका तनमन,
सुध-बुध बिसारी मनमोहन,


श्याम रंग रंगी मैं श्यामा,
फागुन में मन भीगा कान्हा,


मन उमंग चढ़ा प्रीति रंग,
फागुन में रंगाई कृष्ण संग,


मैं तेरी होली और तू मेरा,
रंग बासंती चहुंओर बिखेरा,


तन मन भीगा प्रेमरंग,
जनम मरण सब तुमसंग।।


ममता कानुनगो इंदौर


निशा"अतुल्य"

यादों की बारात
11/ 3 /2020


यादों की बारात चली
याद दिलाती खट्टी मीठी
वो आँगन मेरे बचपन का 
वो बचपन का मेरा झूला
पंछी बैठ करें जिस पर 
कलरव सुबह सवेरे का ।
मैं उदास जब हो जाती थी
बहलाते थे वो मन मेरा ।
चली यादों की बारात चली
ले सँग मुझे यौवन की ओर
कुछ उड़ती उमंगे मेरी थी
कुछ ख़्वाब सुनहरे हर पल के
कुछ उनको पूरे किए मैंने
फाड़ चटान निकला वो
जैसे कोई पौधा जीवन का
फूल उस पर था मुस्काया
वो उमंगे मेरी सा खिला रहा 
सँग भले ही कांटे थे 
यादों में हर पल जिंदा है
कुछ बीते पल मेरे जीवन के।
धीरे धीरे फिर बढ़ी आगे
अब उपवन एक सजाया मैंने
हर सुख दुःख मिल कर बाँट लिया
यादों का हर पल मुस्काया
अब चांदी चमकती हैं बालों में
हल्की सी थकन भी लगती है 
पर उल्हासित मन मेरा 
यादों को सजों कर हर पल के 
जीवन को महकाया मैंने ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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