निशा"अतुल्य"

यादों की बारात
11/ 3 /2020


यादों की बारात चली
याद दिलाती खट्टी मीठी
वो आँगन मेरे बचपन का 
वो बचपन का मेरा झूला
पंछी बैठ करें जिस पर 
कलरव सुबह सवेरे का ।
मैं उदास जब हो जाती थी
बहलाते थे वो मन मेरा ।
चली यादों की बारात चली
ले सँग मुझे यौवन की ओर
कुछ उड़ती उमंगे मेरी थी
कुछ ख़्वाब सुनहरे हर पल के
कुछ उनको पूरे किए मैंने
फाड़ चटान निकला वो
जैसे कोई पौधा जीवन का
फूल उस पर था मुस्काया
वो उमंगे मेरी सा खिला रहा 
सँग भले ही कांटे थे 
यादों में हर पल जिंदा है
कुछ बीते पल मेरे जीवन के।
धीरे धीरे फिर बढ़ी आगे
अब उपवन एक सजाया मैंने
हर सुख दुःख मिल कर बाँट लिया
यादों का हर पल मुस्काया
अब चांदी चमकती हैं बालों में
हल्की सी थकन भी लगती है 
पर उल्हासित मन मेरा 
यादों को सजों कर हर पल के 
जीवन को महकाया मैंने ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

सुप्रभात:-


सूर्य की तरह  शाश्वत हो पृथ्वी  का इतिहास।
सागर की तरह निर्मल हो जीवन का विश्वास।


------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*होली के संकेत*
विधा: गीत


दिल में उठाने लगे तरंगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
मिलने को जी मचले,
तो समझ लेना होली आ गई।
मंगेतर की याद तड़पाये, 
तो समझ लेना होली आ गई।
चेहरे पर खिलने लगे रंग,
तो समझ लेना होली आ गई।
दिल की धड़कने बढ़ने लगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
आंखे यहां वहां देखने लगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
ठंडी ठंडी सांसे तेज होने लगे,
और सपनों में वो दिखाने लगे।
तो समझ लेना होली आ गई।
मनमीत की याद पलपल आये,
और रात भर नींद न आये,
तो समझ लेना होली आ गई।
उनके स्पर्श से बेचैन हो जाओ,
तो समझ लेना होली आ गई।
पिया से मिलने की तड़प जगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
देख राधाकृष्ण को रंगों में,
नाच उठे नवयुगल जोड़े।
तो समझ लेना होली आ गई।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
11/03/2020


 


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*अंतरात्मा की आवाज़ जरूर*
*सुनो।मुक्तक।*


खुद को  पहचानो  और  खुद
से  भी  प्यार  करो।


झाँको भीतर अपने और  खुद
से भी तकरार करो।।


जान लो कि  विलक्षण प्रतिभा 
के    धनी है आप।


न कहे अंतरात्मा तो उस काम
को भी इंकार करो।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो  9897071046
      8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।*


वक़्त की रेत 
समय की चिड़िया
चुगे ये खेत


जहाँ है चाह
गर  मन  में  ठानो
वहाँ है राह


सबका ख्वाब
हर  दिल  में  बसो
बनो नायाब


तेरी सादगी
बनेगी  ये  रुआब
है  लाजवाब


यह जो साँच
मरता न ये कभी
आये न आँच


ये ही हिसाब
नेकी नदी में डाल
प्रभु खिताब


जो हैं जलाते
वह भी झुलसते
न   बच  पाते


घृणा दीवार
गिरे   भरभरा   के
होली त्योहार


होली दीवाली
त्योहारों की रौनक
इनसे सारी


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


हलधर

आज के दोहे 
---------------
----------------
1-
मुल्लों की करतूत से ,खतरे में आवाम ।
दोष दूर होगा तभी , जागे जब इस्लाम ।।
2-
खुद की हत्या कर रहा , मुल्लों का इस्लाम ।
ए के छप्पन दे रही ,सरियत के पैगाम ।।
3-
अल्ला के इस्लाम में ,निराकार प्रभु भाव ।
मुल्लों ने इसमें भरे ,क्यों खूनी अलगाव ।।
4-
मस्जिद में विस्फोट कर , बना रहे शमशान ।
हाल सीरिया देख कर , रोने लगी कुरान ।।
5-
ईश्वर से संवाद की , राह एक बैराग्य ।
मानव होना भाग्य है ,कवि होना सौभाग्य ।।


हलधर


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड ,

भोजपुरी चइता लोक गीत 1-बितले फगुनवा ये सइया 
बितले फगुनवा ये सइया ,
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |  
कईसे होइहे गेंहू के कटनिया मोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना-2 मोर परदेशी बालम 
धईके आवा जल्दी रेलगड़िया |
चलल जाई खेतवा होते रे भोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना -2 मोर लेहुरा देवरवा |
चलावा ना दिन रात मोबइलिया |
करबा ना किसनिया खइबा का कौर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना -2 मोर छोटकी ननदिया |
घूमा जनी तू खाली खरीहनवा |
मिली करा तू कटनिया माना न बतिया मोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


नूतन लाल साहू

मांगना
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही, बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में,जाकर देखना
मांगना,देश का करेक्टर है
कोई भीख,मांगता है
कोई चंदा,मांगता है
कोई औलाद,मांगता है
तो कोई बड़ी,सहजता से ही
माचिस ही,मांग लेता है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना,देश का करेक्टर है
वोट मांगने के लिए
दर दर, नाक रगड़ना पड़ता है
उपदेशों की पोथियां खोल दो
नोट मिल ही जाता है
कहते है,भीख मांगने वाले
कामचोर होता है
अखबार और आचार मांगने वाले
बेचारा होता है
मांगने वाले भी,अजीब अजीब
प्राणी होता है
बाप का पुंजी, फूक कर
उनके हाथ में,कटोरा होता है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना देश का करेक्टर है
फिल्मों में, जो झोपडी 
की बात करता है
उनका आमदनी,लाखो में होता है
जुहू में बंगला,बनवाता है
बिन मांगे ही,मनमाफिक कमाता है
समाजवाद का झंडा
हमारे लिए,कफ़न हो गया है
सत्य वचन,कड़वा हो गया है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना देश का करेक्टर है
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.

*"मान देश का है- हिंदी"*
(कुकुभ छंद गीत)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा पतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
◆राष्ट्र-भाल पर अंकित सुंदर, श्यान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
इससे है उत्थान हमारा, दान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆गूढ़ भरे हैं भाव गहनतम, अपनी प्यारी भाषा है।
पूर्ण व्याकरण भी है इसका, इससे हमको आशा है।।
देवनागरी लिपि है इसकी, ज्ञान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी ।।


◆जोड़े बहु भू-भागों को यह, जग की भाषा है न्यारी।
स्निग्ध-सरस-शुचि-स्नेहिल-सलिला, सिंचित करती मन-क्यारी।।
प्रगति-पंथ पर सदा अग्रसर, मान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆साहित्य जगत विस्तारित है, भंडार-विपुल इसका है।
भाषाओं के नभ पर मानो, आदित्य-प्रबल चमका है।।
धवल-विमल यह संचारित है, भान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆भाषाओं से द्वेष नहीं है, आदर सबका करते हैं।
क्षुद्र मानसिकता का द्योतक, भाषा पर जो लड़ते हैं।।
सात सुरों में सुंदरतम यह, ध्यान देश का है-हिंदी।
आह्वान मुनुजता है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆हिद निवासी हिंदी बोलो, शाश्वत उन्नति इससे है।
गंगाजल सा पावन है यह, वाहित सस्कृति इससे है।।
समरसता का अलख जगाये, बान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆संप्रभुता का, अखंडता का, सुनीति है भाषा-हिंदी।
भाषा-काया प्राणतुल्य यह, प्रतीति है भाषा-हिंदी।
देश-प्रेम से पूरित "नायक", गान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
"""""""""""'"""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
""""""''''""""""""""""""""""""""""""""""""""


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून
गीत
12.3.2020



नवसृजन की ओर बढो
चलो उठो चलो उठो


रीत नई चलाएंगे 
सब मिल कर निभाएंगे
छोड़ो राग द्वेष को अब 
बढ़े चलो बढ़े चलो


नवसृजन की ओर बढ़ो
चलो उठो चलो उठो 


सर्वधर्म समभाव रखो
ईश्वर एक है ये जानो
मिल कर सब स्तुति करो 
अपने पथ पर अडिग रहो


नवसृजन की ओर बढ़ो
चलो उठो चलो उठो


देश का नव निर्माण करो
भ्रष्टाचार निज तजो चलो
होगी आभा नई नई
सुबह सुन्दर शाम नई


नवसृजन की ओर बढ़ो
बढ़े चलो बढ़े चलो


कर्तव्य निज निभाएंगे
स्वप्न सभी साकार करो
जीवन सुरम्य होगा तब
जब जीवन मे साथ चलो।


नवसृजन की ओर बढ़ो
बढ़े चलो बढ़े चलो 


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


ममता कानुनगो इंदौर

विधा-हायकू
*चाहत*
चाहत है तो,
जीवन के सपने,
पूर्ण है सब।
+++++++++++++
चाहत है तो,
अपने व पराए,
एक है सब।
+++++++++++++
चाहत है तो,
आसमान के तारे,
मुट्ठी में सब।
++++++++++++++
चाहत है तो,
समंदर के मोती,
बिखरे अंगना।
++++++++++++++
चाहत है तो,
रंगीन तितलियां,
आशा में अब।
++++++++++++++
चाहत है तो,
पराजय में जय,
चिर-अजेय।
++++++++++++++
चाहत है तो,
कंटक बने फूल,
सुखद शूल।
+++++++++++++++
ममता कानुनगो इंदौर


सुनीता असीम

मुहब्बत की राहों में छाले हुए हैं।
ये दिल मुश्किलों से संभाले हुए हैं।
***
न आए नजर प्यार मेरा सजन को।
कि हम तो यहां दिल निकाले हुए हैं।
***
किया इश्क मैंने न चोरी कोई की।
वो इल्जाम हमपे लगाए हुए हैं।
***
मुझे देखते हैं नज़र टेढ़ी करके।
मेरा अक्स कैसा बनाए हुए हैं।
***
बिगड़ती चली जा रही है हवा भी।
बिना ज्ञान वाले रिसाले हुए हैं।
***
सुनीता असीम
12/3/2020


कवियत्री  वैष्णवी पारसे

थाम कर मेरा हाथ ,प्रियतम भी था साथ, एक रोज बैठी थी मैं , नदी के किनार पे ।


प्रेम का मधुर गीत , गाते गाते झूम उठे, मन की मधुर धुन , बजी थी सितार पे ।


कोयल की कुहू कुहू, पपीहे की पिहु पिहु, प्रेम की प्रकृति थी, मौसम की बहार पे। 


हवाये भी छू रही थी , रह रह कर हमें , पुरवाई ताकती थी , प्रीत की पुकार पे।


    कवियत्री 
वैष्णवी पारसे


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड

मैं वृक्ष हूं
🌲🌲🌲
मेरी हमेशा कोशिश रहती है
कि , मैं वृक्ष सा बनूं।
क्यों कि
वृक्ष की छाया में
राह चलते राहगीर
पनाह पाते है।
वृक्ष देता है,
सबको शीतल छांव।


वृक्ष की मजबूती
आंधी और तूफान में
स्थिर रहने का देती है सन्देश।
वृक्ष के फल,
अमीर, गरीब, जातियों में नहीं करते हैं भेद,
और करते हैं पेट की ज्वाला को शांत।


वृक्ष देता है
मंगल करने की शिक्षा,
सहनशीलता है उसका आभूषण,
विशेषता है
जमीन को पकड़े रहनी की।
सर्दी, गर्मी, और बरसात में
निर्विकार खड़ा रहता है।
पर कितनी विडम्बना है
 एक दिन
उसका मालिक ही
उसका अस्तित्व मिटा देता है।


वृक्ष रहता है शांत,
तब मैं भी सोचता हूं
कि मैं भी वृक्ष बनूं,
उसी की तरह
विपरीत परिस्थिति में
कभी भी
नहीं खोऊँ धैर्य 
रहूँ हमेशा शांत
दूं सबको शीतल छाया
और प्रेम।
वृक्ष की महानता ने ही
उसे बना दिया है पूजनीय
ये है गुणों की खान,
हां मैं वृक्ष बनूं।
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड


संजय जैन (मुम्बई) 

*प्यार का सन्देश*
 विधा : गीत


रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।
क्या उसको संदेशा तुम दे पाओगे ।
जब वो आये यहां पर घूमने को , 
उसे पहले कोई लहर आ जायेगी।
जो तुम ने लिखा था संदेशा।
उसे लहर वहाकर ले जाएगी।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।।


अगर करते हो सही में मोहब्बत तुम।
तो पत्थर पर क्यों सन्देश लिखते नहीं।
जब भी वो आयेगे यहां पर,
संदेशा तुम्हारा पड़ लेंगे वो।
यदि होगी मोहब्बत तुमसे अगर।
नीचे अपना पैगाम लिख जाएंगे।।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।


एक दूसरे के संदेश पढ़कर तुम।
सच मानो मोहब्बत हो जाएगी।
इसलिए कहता हूं मैं आज तुमसे ।
पत्थरों में भी मोहब्बत होती है जनाब ।
रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।।


संजय जैन (मुम्बई) 
12/03/2020


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*मन के हारे हार,मन के जीते*
*जीत।मुक्तक।*


मन हार  गए   तो फिर कोई
जीत  पाता नहीं है।


बिना    संघर्ष के    सफलता
कोई लाता  नहीं है।।


मत इंतिज़ार करते  रहो कुछ
अच्छा     करने  को।


बस यही बात समझ लो कल
कभी   आता नहीं है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मोब  9897071046
         8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*वसुधेव कुटुम्बकम।*
*मुक्तक*


जब दर्द  किसी  का   दिल
में बसने लगता है।


ह्रदय हर संवेदना को  सुनने
तकने   लगता  है।।


तब यही दुनिया बनने लगती
है इक परिवार सी।


सारा जहाँ  अपना  सा   तब
लगने    लगता   है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*जो निभे वही दोस्ती है।*
*मुक्तक।*


दोस्ती की लकीर होती नहीं
बनानी   पड़ती   है।


प्यार महोब्बत के खाद पानी
से जमानी पड़ती है।।


डालनी  पड़ती  है  जान   हर
दोस्ती   के   अन्दर।


यूँ ही टिकती नहीं कोई  दोस्ती
निभानी    पड़ती है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"विपद्रव"*
"शांत जल में मारोगे पत्थर, 
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।
ऐसे ही साथी जीवन में,
स्वार्थ सिद्धि को-
होते रहते विपद्रव।
राजनीति में भी होती रहती हलचल,
सार्थक मुद्दो पर भी-
होती राजनीति होते विपद्रव।
शांत प्रदर्शनों में भी,
घुस आते अजनबी-
करते बदनाम होते विपद्रव।
दूर रहना असमाजिक तत्वों से,
तभी रहोगे सुरक्षित-
होगे नहीं विपद्रव।
देना होगा साथ सत्य का,
तभी रूकेगे-
उपद्रव-विपद्रव।
शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।।"     


सुनील कुमार गुप्ता       12-03-2020


राजेंद्र रायपुरी

दोहा छंद पर एक मुक्तक - - 


इक नेता का हो गया,
           आज नया अवतार।
बदले-बदले से दिखें,
             बदले बात विचार।
जाने  कैसी  यार  ये, 
              नेताओं की जात।
दल बदलें तो केकटस,
              लगे फूल का हार।


       ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आ राधे तेरा श्रृंगार करूँ
प्रदान करूँ जीवन की खुशियां
न्यौछावर सब संसार करूँ
तुम ही मुझ कान्हा की दुनियां


तेरी आभा से ही मैं चमकूँ
तेरी ज्योति से रहूँ आलोकित
कृष्ण प्रिया ही नहीं केवल
मेरा रोम रोम तुम से शोभित


यदि जगतपिता हैं कृष्णा
तो जगजननी बृषभानु सुता
करना जग कल्याण प्रिय
प्राणी मात्र के प्रति स्नेह युता।


श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आ राधे तेरा श्रृंगार करूँ
प्रदान करूँ जीवन की खुशियां
न्यौछावर सब संसार करूँ
तुम ही मुझ कान्हा की दुनियां


तेरी आभा से ही मैं चमकूँ
तेरी ज्योति से रहूँ आलोकित
कृष्ण प्रिया ही नहीं केवल
मेरा रोम रोम तुम से शोभित


यदि जगतपिता हैं कृष्णा
तो जगजननी बृषभानु सुता
करना जग कल्याण प्रिय
प्राणी मात्र के प्रति स्नेह युता।


श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


प्रीति मनोहर रूपसी परम दिव्य अहसास।
माँ अमृता शारदा का हो नित आभास।।


माँ का आशीर्वाद चाहिए।जीवन अब आवाद चाहिए।।
माँ बिन जीवन सदा अधूरा।माँ ही करतीं सबकुछ पूरा।।
जबजब विपदा आती रहती।प्रेम-सांत्वना देती रहतीं।।
भक्त हेतु माँ सदा समर्पित।प्रीति-दान हेतु संकल्पित।।
स्वयं निराश्रित आश्रयदायी।सहज स्नेह भाव सुखदायी।।
भजन करो बस केवल माँ का।बातें सुनना सिर्फ उन्हीं का।।
माँ केवल सर्वोत्तम सत्ता।बिन आज्ञा हिलता नहिं पत्ता।।
ज्ञान प्रेम भक्ति की गरिमा।गाते रहें तुम्हारी महिमा।।
बैठ हंस पर आ जाओ माँ।पुस्तक बनकर छा जाओ माँ।।
करो कृपा हे करुणा माता।हे सुखदाता मातृ शारदा।।


कृपाप्रदाता माँ करें हम सबका कल्याण।
यश-वरदानी बन हमें दें यश का वरदान।।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"आओ जीवन-पर्व मनायें"


जीवन में खुशियाँ छा जायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


जीने का यह श्रेष्ठ तरीका,
गम भी गमके लगे न फीका,
गम में भी हम खुशी मनायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


जीवन को आसान बनाना,
इसपर माला-फूल चढ़ाना,
इसको सुन्दर देव बनायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें। 


समतावादी मंत्र जाप कर,
  तन-मन-उर में नहीं पाप धर,
योगशास्त्र को पढ़ें-पढ़ाएं,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


मन-दिल में उत्साह भरा हो,
सबके प्रति समभाव भरा हो,
स्व अरु पर का भेद मिटायें,
आओ जीवब-पर्व मनायें।


सोचें सुन्दर बोलें उत्तम,
भाषा हो मधुरिम प्रियअनुपम,
शुभ शिवमय संवाद करायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


ममता जागे कटुता भागे,
बढ़े निकटता आगे -आगे,
मन-समाज में प्रीति जगायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


सद्भावों का देखें मेला,
हो आनंदक जीवन खेला,
मन-सरिता में पुष्प खिलायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


काम-क्रोध से खड़े दूर हों,
पर -उपकारी भाव पूर हों,
संवेदन का प्रणय करायें,
आओ जीवन-पर्व मनायें।


लघुता में देखें प्रभुता को,
स्वयं समर्पित मानवता को,
खुद का हम उत्सर्ग रचायें,
आओ जीवब-पर्व मनायें।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


प्रीति परस्पर का सदा हे माँ दे वरदान।
एक भाव से हम करें मानव का सम्मान।।


सदा प्रीति रस मेघ बनी आ।माँ उर में आकर बस छा जा।।
करें सदा हम सेवा जग की।करें भलाई प्रति पल सबकी।।
बंध जायें हम मानवता से।सहज प्रेम हो नैतिकता से।।
मन की ग्रन्थि घुला दे माता।कुत्सित भाव सुला हे दाता।।
दिनोँ का उपकार करो माँ।फँसे हुए को पार करो माँ।।
सन्तप्तों को शीतल कर माँ।मीन-नीर को विलग न कर माँ।।
स्वर्ग बने भू-मण्डल सारा। बने आपसी प्रेम पियारा।।
वरदानी हे सर्वसाधिके।बनकर आओ प्रिये राधिके।।
कान्हा का संसार चाहिये।कृष्ण-राधिका प्यार चाहिये।।
सुन्दर संतानों को रच दे।वर वर दे मातृ शारदे।।
प्रेममयी हो सारी दुनिया।स्नेहिलता बन जाये मनिया।।
दिल से दिल के तार जोड़ दो।सबपर अपना प्यार छोड़ दो।।



सुन्दर मोहक भाव का हो सारा संसार।
रचें बसें सबमें सभी मिले सभी का प्यार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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