कैलाश दुबे

कोरोना ने कर दिया सबका बंटाढार ,


अब जीना हो गया अपना भी दुष्वार ,


अपना भी दुष्वार जहां देखो वहीं कैरोना ,


साथी सारे चले गए जो अपना भी करता होगा ,


अब तो यारो अपना जीवन है धिक्कार , 



कोरोना ने कर दिया सबका बंटाढार ,


अब जीना हो गया अपना भी दुष्वार ,


अपना भी दुष्वार जहां देखो वहीं कैरोना ,


साथी सारे चले गए जो अपना भी करता होगा ,


अब तो यारो अपना जीवन है धिक्कार , 



कैलाश दुबे


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"राजनीति की बल्ले-बल्ले"
""""""""""""""""""""""""""""""""""""
कुछ गिद्ध बैठे हुए हैं
लेकर माईक हाथो में
क्या होगा सियासत में
इसी बात को जानने में
उठाव - पटक हो रही है
बातों की खिंचा - तानी है
इधर - उधर ताक रहे हैं
शब्दों की जुबानी में
किसकी गिरेगी सरकार यहाँ
किसकी बनेगी सरकार यहाँ
बस इसी की परिचर्चा है
कौआ बेचारी शांत है
गिध्दों की काँव - काँव में
कुछ सियार चातुर बने हैं
अपनी जाल बिछाने में
इधर हो या उधर हो
अपनी बल्ले - बल्ले जमाने मे ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


कुमार कारनिक

*******
     कुमार कारनिक
  (छाल, रायगढ़, छग)
     *खेलें होली*
 (मनहरण घनाक्षरी)
^^^^^^^^^^^^^^^
डम - डम   बाजे  ढोल,
बरसे   रंगो   का  घोल,
आपस में  खेलें  होली,
     करें हँसी ठिठोली।
💫🎈
होली   आई   मतवारी,
भर   मारो   पिचकारी,
कान्हा संग खेलें होली,
   करें आँख मिचौली।
🎈💫
गोवर्धन        गिरधारी,
मै हूँ  तेरी  राधा प्यारी,
तू मेरा श्याम  सलोना,
 पिया से आज बोली।
💫🎈
हरे - नीले - पीले - रंग,
गोरी के  भीगें  है  अंग,
लगा   मुझे   प्रेम   रंग,
    आई आई रे होली।
🎈💫



                *******


प्रिया सिंह

मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 
रंग होली का जीवन में मैं भर दूँ 
और...... कर दूँ उजाले तेरी राहों में 
और खुद को कर दूँ हवाले तेरी बाहों में 
सर मैं कदमों में तेरे.........रखूंगी सदा
और जीवन में तेरे...........रहूंगी सदा


खुशियाँ किस्मत में तेरे मैं भर दूँ 
मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 


जब आँखों में सितारे ये चमका करें
मांग तेरी चूनर पर भी दमका करे
तब खुशियों का चादर बहुत हो बड़ा
उसमें इत्र का भी सागर बहुत हो बड़ा
मैं मन्नत भी तेरी.........करूँगी सदा
मै मोहब्बत भी तुमसे....करूंगी सदा


इश्क गालों से गालों पर तेरे मैं मल दूँ 
मन कलियों से तारों से.......मैं भर दूँ 


तेरे नर्म नूर से झूमें......सारा गगन
तेरी ख्वाइशों को चूमे ये सारा गगन
तेरे सजदे में सारा झुकेगा जहां
तेरे नज्मों को सारा सुनेगा जहां 
मैं परेशान तब भी करूंगी सदा
और अरमान तब भी रखूंगी सदा


तेरे नाम हर साँस........मैं कर दूँ 
मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 


जख्म सीने से बहने लगा देख लो
दिल चुप हो के सहने लगा देख लो
तुम दीवानगी का फ़ितूर दे दो मुझे 
इस शफ़क़त का एक तूर दे दो मुझे
तेरी इबादत में चर्चा करूंगी सदा
मै मंदिरो में भी पर्दा करूंगी सदा


तेरे होठों पर इबारत....मैं भर दूं
मन कलियों से तारों से मैं भर दूँ 


मेरे हालात को अब चुन लो जरा
पाक दिल है मेरा इसे सुन लो जरा
अब निशानी मोहब्बत की दे दो मुझे 
अब रहमत इजाजत की दे दो मुझे 
तेरी खामोशियों में रहूंगी सदा 
तुझसे तन्हाईयों में मिलूंगी सदा


यार इस थार में समंदर मैं कर दूँ 
रंग होली का जीवन में मैं भर दूँ 
मन कलियों से तारों से मैं भर दूं


Priya singh


हलधर -9897346173

कविता -बापू कुछ ऐसा कर जाते 
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मज़हब की उठती लहरों पै,ले अपनी नाव उतर जाते !
बटवारा घर का रुक जाता  ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।


सब शक्ति परक प्रतिमानों पर , होता प्रचण्ड भारत मेरा ,
दुनियाँ में धाक अलग होती , दिखता अखण्ड भारत मेरा ,
उत्पादन से उपभोग तलक, सब अर्थ तंत्र अंदर होता ,
इतिहास बदल जाता बापू, भूगोल  बहुत  सुंदर होता ,
तब चीन सरीखे मुल्कों के ,दावे निर्मूल बिखर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।1


आचार संहिता सम होती ,नहि मज़हब की रंजिस होती ,
 मजहब आतंकी दानव की , तब  भारत में बंदिश होती ,
भारत से तब टकराने की ,कोई नादानी नहिं करता ,
अमरीका जैसा देश हमारे ,सम्मुख तब पानी भरता,
तब पंख रूस ईरान देश के अपने आप कतर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।2


नहरू के सम्मुख लोह पुरुष ,खुद किया आपने था दुर्बल ,
भगवान मान पूजा होती , यदि करते ना यह काज निबल,
जिन्ना पटेल दोनों को ही ,संयुक्त प्रधान चुना होता ,
भारत माता का दुनियाँ में ,वैभव तब कई गुना होता ,
नहरू को समझाते बापू ,सारे मत भेद संवर  जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।3


खंडित भारत के खेमों ने, प्रधान पटेल को माना था ,
नहरू को गद्दी देने का , क्यों योग आपने ठाना था ,
जिन्ना को धन बटवारे का ,उदघोष आपका था बापू ,
इतिहास बताता "हलधर"को ,ये दोष आपका था बापू ,
नकली जिद को छोड़े होते ,धरना देते या मर जाते ।
बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।4


                  हलधर -9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सोचकर बोली बोलो"*
(कुण्डलिया छंद)
****************************
■दहलाता दिल को कभी, छोटा कड़वा बोल।
कारण बनता बैर का, देता है विष घोल।।
देता है विष घोल, सोचकर बोली बोलो।
बात बने मत बाण, शहद वाणी में घोलो।।
कह नायक करजोरि, स्नेह मन को सहलाता।
करो न वह परिहास, हृदय को जो दहलाता।।


■बहलाता मन को सदा, प्यारा मीठा बोल।
आकुलता हिय की हरे, देता वह रस घोल।।
देता वह रस घोल, नेह का संचार करे।
पावन प्रेम प्रसार, सहज मन का ताप हरे।।
कह नायक करजोरि, भला जन वह कहलाता।
बोल मधुर मुख-बैन, हृदय को जो बहलाता।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


नूतन लाल साहू

हम नतमस्तक है
दीवाली गया,होली गया
आयेगा नवरात्रि की त्यौहार
पर्वो का क्रम,चलता ही रहेगा
ग्राहक पीला और दुकानदार
होता ही,रहेगा लाल
स्वाईन आया, कोरोना आया
आयेगा नया नया बुखार
ईमान को,भट्टी में झोककर
फायदे की ही,कर रहा है हर कोई बात
किस्मत में क्या बदा है,पता नहीं
फिर भी,सब है ईमानदार
ग्राहक पीला,होता रहेगा
दुकानदार होता ही,रहेगा लाल
किसी के,आंसुओ से
हर किसी को,क्या लेना देना
तिजोरी में,बंद है
लहलहाते खेत की,मुस्कान
रासायनिक खाद,दवाई के चलते
अन्न, पेट भरने का माध्यम है बना
अपनी ही,लाश ढो,रहा है
गरीब बच्चो का कंधा
ग्राहक पीला होता ही रहेगा
दुकानदार होता ही रहेगा लाल
मोबाईल के टावर में मित्रो
सरपट समाया जा रहा है
मानव का खुशनुमा जीवन
मजबूरी कहो या बेपरवाह कह लो
हम बढ़ा रहे है
पर्यावरण प्रदूषण
दीवाली गया,होली गया
आयेगा नवरात्रि की त्यौहार
पर्वो का क्रम,चलता ही रहेगा
ग्राहक पीला होता ही रहेगा
दुकानदार होता ही रहेगा लाल
ये है आम बात
छोटे दुकानदार मत होना नाराज
क्योंकि मेरा कथन
भगौड़ों के लिए है,खाश
विनाश की लीला को हम
आंख बंद कर देख रहे है,आज
ग्राहक पीला होता रहेगा
दुकानदार होता ही रहेगा,लाल
नूतन लाल साहू


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

होली की बधाईयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ समस्त साहित्यिक ,सामाजिक और पारिवारिक मित्रों ,बन्धुवान्धवों को ❤️🙏❤️
शीर्षकः बधाईयाँ सतरंग 
होली के सतरंग से, मिले  खुशी और चैन।
खिले चमन माँ भारती , प्यार भरे हो नैन।।१।।
वर्धापन   शुभकामना , दूँ  होली उपलक्ष्य।
सुखद प्रगति नित जिंदगी,हो नारी संरक्ष्य।।२।।
मिटे सकल संताप जग, समरस हो सम्बन्ध।
रंगों का त्यौहार हो, त्याग प्रीति अनुबन्ध।।३।।
रहें स्वस्थ सत्कीर्तिपथ , झूमें  खुशी उमंग।
होली की मनमीत दूँ , बधाईयाँ     सतरंग।।४।।
तजें  वतन गद्दारियाँ ,करें सबल निज देश।
होली हो समरस अमन,दें प्यार भरा संदेश।।५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


कवि✍️डॉ. निकुंज दिल्ली

💐🙏सुप्रभातम्🙏💐
स्वारथ  है   ऐसी   बला, व्यर्थ  प्रीति या  नीति।
सब अवसर की ताक में, कल का दुश्मन मीत।।१।।
मीत   टिका  विश्वास पर , कोमलतर आभास।
तनिक  ठेस अन्तःकरण , टूटे   प्रीत  मिठास ।।२।।
तन मन जीवन मीत को ,सुख दुख में हो साथ।
बने  प्रशंसक  परमुखी,  उपदेशक  धर   हाथ।।३।।
कवि✍️डॉ. निकुंज


कैलाश दुबे

पत्नी की निगाह मुझ टिकी थी ,


एकदम टकटकी लगी थी , 


सोच रही थी कहीं नजर तो नहीं लगी ,


सड़क पर कोई राधा तो नहीं खड़ी ,


मैं भी उसे देखकर हैरान हो गया ,


उसने जैसे ही मुझे देखा ही था ,


और मैंने उसे देखा पैरों तले जमीन खिसक गई ,


वैसे ही मेरी होली फीकी पड़ गई ,


कैलाश दुबे


डा.नीलम

*यादों की बारात*


थी सावे की आखरी रात
निकल पड़ी यादों की बारात
दूर कहीं बजी  शहनाई
जहाँ पहुँच थमनी थी बारात


संग ख्वाब थे महके हुए
चंद खयाल भी बहके हुए
रिमझिम रिमझिम बरस रही थी बूंदे
खोल कपाट निकल पड़ी यादों की बारात


बचपन चहक रहा था
नटखट गिल्ली-डण्डा,
कंचे,चोर-सिपाही खेलता
खट्टी कैरीओ'कटारे चाट रहा था


आया उमर का चौराहा सामने
जोश जवानी का उबल रहा था
कर्म का टोकरा सर पर लादे
इधर- उधर भाग रहा था


जीवन के दोराहे पर अटका
थोड़ा घर,थोड़ाबाहर भटका
पीठ झुकी बच्चों केबोझ से
भूल गया बचपन का खेला


यादों की बारात जबनिकली 
दूर कहीं बजी शहनाई थी
बीते बसंत और होली -दीवाली,ईद सभी की याद आई थी


यादों के फेरे में मेरे तेरी भी
याद चली आई थी
वो दरिया का था किनारा
वही कदंब की छांव थी
तू श्याम मेरा था,मैं श्यामा
तेरी परछाईं थी


था मिलन हमारा अमर तो
अल्हड़ लहरों के सरगम में
शाख-पात ने हवाओं के
सुर में रिदम अपनी मिलाई थी


रुठ गई मौजे रवानी
बीत गई वो जवानी
यादें चौराहे पर अटकी
खुली आँख हकीकत की
बारात ना जाने कहाँ भटकी 


          डा.नीलम


ममता कानुनगो इंदौर

होली
तुम संग प्रीत  की होली,
रंगों से भीगी हमजोली,


महका गुलाल  लालम लाल,
मदन गोपाल नाचे ग्वाल बाल,


ढोलक की थाप, मृदंग ताल,
बाजत मुरलिया,स्वरताल,


ब्रजनारी भीगी कंचुकी सारी,
केसरिया रंग मारी पिचकारी,


चंदन वदन महका तनमन,
सुध-बुध बिसारी मनमोहन,


श्याम रंग रंगी मैं श्यामा,
फागुन में मन भीगा कान्हा,


मन उमंग चढ़ा प्रीति रंग,
फागुन में रंगाई कृष्ण संग,


मैं तेरी होली और तू मेरा,
रंग बासंती चहुंओर बिखेरा,


तन मन भीगा प्रेमरंग,
जनम मरण सब तुमसंग।।


ममता कानुनगो इंदौर


निशा"अतुल्य"

यादों की बारात
11/ 3 /2020


यादों की बारात चली
याद दिलाती खट्टी मीठी
वो आँगन मेरे बचपन का 
वो बचपन का मेरा झूला
पंछी बैठ करें जिस पर 
कलरव सुबह सवेरे का ।
मैं उदास जब हो जाती थी
बहलाते थे वो मन मेरा ।
चली यादों की बारात चली
ले सँग मुझे यौवन की ओर
कुछ उड़ती उमंगे मेरी थी
कुछ ख़्वाब सुनहरे हर पल के
कुछ उनको पूरे किए मैंने
फाड़ चटान निकला वो
जैसे कोई पौधा जीवन का
फूल उस पर था मुस्काया
वो उमंगे मेरी सा खिला रहा 
सँग भले ही कांटे थे 
यादों में हर पल जिंदा है
कुछ बीते पल मेरे जीवन के।
धीरे धीरे फिर बढ़ी आगे
अब उपवन एक सजाया मैंने
हर सुख दुःख मिल कर बाँट लिया
यादों का हर पल मुस्काया
अब चांदी चमकती हैं बालों में
हल्की सी थकन भी लगती है 
पर उल्हासित मन मेरा 
यादों को सजों कर हर पल के 
जीवन को महकाया मैंने ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

सुप्रभात:-


सूर्य की तरह  शाश्वत हो पृथ्वी  का इतिहास।
सागर की तरह निर्मल हो जीवन का विश्वास।


------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*होली के संकेत*
विधा: गीत


दिल में उठाने लगे तरंगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
मिलने को जी मचले,
तो समझ लेना होली आ गई।
मंगेतर की याद तड़पाये, 
तो समझ लेना होली आ गई।
चेहरे पर खिलने लगे रंग,
तो समझ लेना होली आ गई।
दिल की धड़कने बढ़ने लगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
आंखे यहां वहां देखने लगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
ठंडी ठंडी सांसे तेज होने लगे,
और सपनों में वो दिखाने लगे।
तो समझ लेना होली आ गई।
मनमीत की याद पलपल आये,
और रात भर नींद न आये,
तो समझ लेना होली आ गई।
उनके स्पर्श से बेचैन हो जाओ,
तो समझ लेना होली आ गई।
पिया से मिलने की तड़प जगे,
तो समझ लेना होली आ गई।
देख राधाकृष्ण को रंगों में,
नाच उठे नवयुगल जोड़े।
तो समझ लेना होली आ गई।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
11/03/2020


 


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*अंतरात्मा की आवाज़ जरूर*
*सुनो।मुक्तक।*


खुद को  पहचानो  और  खुद
से  भी  प्यार  करो।


झाँको भीतर अपने और  खुद
से भी तकरार करो।।


जान लो कि  विलक्षण प्रतिभा 
के    धनी है आप।


न कहे अंतरात्मा तो उस काम
को भी इंकार करो।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो  9897071046
      8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।*


वक़्त की रेत 
समय की चिड़िया
चुगे ये खेत


जहाँ है चाह
गर  मन  में  ठानो
वहाँ है राह


सबका ख्वाब
हर  दिल  में  बसो
बनो नायाब


तेरी सादगी
बनेगी  ये  रुआब
है  लाजवाब


यह जो साँच
मरता न ये कभी
आये न आँच


ये ही हिसाब
नेकी नदी में डाल
प्रभु खिताब


जो हैं जलाते
वह भी झुलसते
न   बच  पाते


घृणा दीवार
गिरे   भरभरा   के
होली त्योहार


होली दीवाली
त्योहारों की रौनक
इनसे सारी


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


हलधर

आज के दोहे 
---------------
----------------
1-
मुल्लों की करतूत से ,खतरे में आवाम ।
दोष दूर होगा तभी , जागे जब इस्लाम ।।
2-
खुद की हत्या कर रहा , मुल्लों का इस्लाम ।
ए के छप्पन दे रही ,सरियत के पैगाम ।।
3-
अल्ला के इस्लाम में ,निराकार प्रभु भाव ।
मुल्लों ने इसमें भरे ,क्यों खूनी अलगाव ।।
4-
मस्जिद में विस्फोट कर , बना रहे शमशान ।
हाल सीरिया देख कर , रोने लगी कुरान ।।
5-
ईश्वर से संवाद की , राह एक बैराग्य ।
मानव होना भाग्य है ,कवि होना सौभाग्य ।।


हलधर


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड ,

भोजपुरी चइता लोक गीत 1-बितले फगुनवा ये सइया 
बितले फगुनवा ये सइया ,
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |  
कईसे होइहे गेंहू के कटनिया मोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना-2 मोर परदेशी बालम 
धईके आवा जल्दी रेलगड़िया |
चलल जाई खेतवा होते रे भोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना -2 मोर लेहुरा देवरवा |
चलावा ना दिन रात मोबइलिया |
करबा ना किसनिया खइबा का कौर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
सुना -2 मोर छोटकी ननदिया |
घूमा जनी तू खाली खरीहनवा |
मिली करा तू कटनिया माना न बतिया मोर |
गऊआ लागल कटनिया के ज़ोर |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


नूतन लाल साहू

मांगना
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही, बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में,जाकर देखना
मांगना,देश का करेक्टर है
कोई भीख,मांगता है
कोई चंदा,मांगता है
कोई औलाद,मांगता है
तो कोई बड़ी,सहजता से ही
माचिस ही,मांग लेता है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना,देश का करेक्टर है
वोट मांगने के लिए
दर दर, नाक रगड़ना पड़ता है
उपदेशों की पोथियां खोल दो
नोट मिल ही जाता है
कहते है,भीख मांगने वाले
कामचोर होता है
अखबार और आचार मांगने वाले
बेचारा होता है
मांगने वाले भी,अजीब अजीब
प्राणी होता है
बाप का पुंजी, फूक कर
उनके हाथ में,कटोरा होता है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना देश का करेक्टर है
फिल्मों में, जो झोपडी 
की बात करता है
उनका आमदनी,लाखो में होता है
जुहू में बंगला,बनवाता है
बिन मांगे ही,मनमाफिक कमाता है
समाजवाद का झंडा
हमारे लिए,कफ़न हो गया है
सत्य वचन,कड़वा हो गया है
जो जितनी सफाई से मांगे
उतना ही बड़ा ऐक्टर है
कई राज्यो में जाकर देखना
मांगना देश का करेक्टर है
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.

*"मान देश का है- हिंदी"*
(कुकुभ छंद गीत)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा पतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
◆राष्ट्र-भाल पर अंकित सुंदर, श्यान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
इससे है उत्थान हमारा, दान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆गूढ़ भरे हैं भाव गहनतम, अपनी प्यारी भाषा है।
पूर्ण व्याकरण भी है इसका, इससे हमको आशा है।।
देवनागरी लिपि है इसकी, ज्ञान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी ।।


◆जोड़े बहु भू-भागों को यह, जग की भाषा है न्यारी।
स्निग्ध-सरस-शुचि-स्नेहिल-सलिला, सिंचित करती मन-क्यारी।।
प्रगति-पंथ पर सदा अग्रसर, मान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆साहित्य जगत विस्तारित है, भंडार-विपुल इसका है।
भाषाओं के नभ पर मानो, आदित्य-प्रबल चमका है।।
धवल-विमल यह संचारित है, भान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆भाषाओं से द्वेष नहीं है, आदर सबका करते हैं।
क्षुद्र मानसिकता का द्योतक, भाषा पर जो लड़ते हैं।।
सात सुरों में सुंदरतम यह, ध्यान देश का है-हिंदी।
आह्वान मुनुजता है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆हिद निवासी हिंदी बोलो, शाश्वत उन्नति इससे है।
गंगाजल सा पावन है यह, वाहित सस्कृति इससे है।।
समरसता का अलख जगाये, बान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।


◆संप्रभुता का, अखंडता का, सुनीति है भाषा-हिंदी।
भाषा-काया प्राणतुल्य यह, प्रतीति है भाषा-हिंदी।
देश-प्रेम से पूरित "नायक", गान देश का है-हिंदी।
आह्वान मनुजता का है यह, व्यान देश का है-हिंदी।।
"""""""""""'"""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
""""""''''""""""""""""""""""""""""""""""""""


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून
गीत
12.3.2020



नवसृजन की ओर बढो
चलो उठो चलो उठो


रीत नई चलाएंगे 
सब मिल कर निभाएंगे
छोड़ो राग द्वेष को अब 
बढ़े चलो बढ़े चलो


नवसृजन की ओर बढ़ो
चलो उठो चलो उठो 


सर्वधर्म समभाव रखो
ईश्वर एक है ये जानो
मिल कर सब स्तुति करो 
अपने पथ पर अडिग रहो


नवसृजन की ओर बढ़ो
चलो उठो चलो उठो


देश का नव निर्माण करो
भ्रष्टाचार निज तजो चलो
होगी आभा नई नई
सुबह सुन्दर शाम नई


नवसृजन की ओर बढ़ो
बढ़े चलो बढ़े चलो


कर्तव्य निज निभाएंगे
स्वप्न सभी साकार करो
जीवन सुरम्य होगा तब
जब जीवन मे साथ चलो।


नवसृजन की ओर बढ़ो
बढ़े चलो बढ़े चलो 


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


ममता कानुनगो इंदौर

विधा-हायकू
*चाहत*
चाहत है तो,
जीवन के सपने,
पूर्ण है सब।
+++++++++++++
चाहत है तो,
अपने व पराए,
एक है सब।
+++++++++++++
चाहत है तो,
आसमान के तारे,
मुट्ठी में सब।
++++++++++++++
चाहत है तो,
समंदर के मोती,
बिखरे अंगना।
++++++++++++++
चाहत है तो,
रंगीन तितलियां,
आशा में अब।
++++++++++++++
चाहत है तो,
पराजय में जय,
चिर-अजेय।
++++++++++++++
चाहत है तो,
कंटक बने फूल,
सुखद शूल।
+++++++++++++++
ममता कानुनगो इंदौर


सुनीता असीम

मुहब्बत की राहों में छाले हुए हैं।
ये दिल मुश्किलों से संभाले हुए हैं।
***
न आए नजर प्यार मेरा सजन को।
कि हम तो यहां दिल निकाले हुए हैं।
***
किया इश्क मैंने न चोरी कोई की।
वो इल्जाम हमपे लगाए हुए हैं।
***
मुझे देखते हैं नज़र टेढ़ी करके।
मेरा अक्स कैसा बनाए हुए हैं।
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बिगड़ती चली जा रही है हवा भी।
बिना ज्ञान वाले रिसाले हुए हैं।
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सुनीता असीम
12/3/2020


कवियत्री  वैष्णवी पारसे

थाम कर मेरा हाथ ,प्रियतम भी था साथ, एक रोज बैठी थी मैं , नदी के किनार पे ।


प्रेम का मधुर गीत , गाते गाते झूम उठे, मन की मधुर धुन , बजी थी सितार पे ।


कोयल की कुहू कुहू, पपीहे की पिहु पिहु, प्रेम की प्रकृति थी, मौसम की बहार पे। 


हवाये भी छू रही थी , रह रह कर हमें , पुरवाई ताकती थी , प्रीत की पुकार पे।


    कवियत्री 
वैष्णवी पारसे


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