बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक मांनस मराल

राम चरित मानस महात्म्य


जे एहि कथहि सनेह समेता।
कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता।।
होइहहिं राम चरन अनुरागी।
कलिमल रहित सुमंगल भागी।।
सपनेहुँ साँचेहुँ मोहि पर जौं  हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो इस रामकथा को प्रेमसहित एवं सावधानी के साथ समझबूझ कर कहेंगे व सुनेंगे,वे कलियुग के पापों से रहित और सुन्दर मङ्गल कल्याण के अधिकारी होकर प्रभुश्री रामजी के चरणों के प्रेमी बन जायेंगे।
  यदि मुझ पर श्री शिवजी और माता पार्वतीजी की स्वप्न में भी सचमुच प्रसन्नता हो,तो मैंने इस भाषा कविता का जो प्रभाव कहा है वह सब सत्य हो।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  श्रीमद्गोस्वामी जी ने इस 
रामकथामृत का कथन,श्रवण व 
गान करने का महत्व और उसका फल कई स्थलों पर वर्णित किया है।यथा,,
रामचरन रति जो चह अथवा पद निर्बान।
भावसहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान।।
(उत्तरकाण्ड)
 सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।
(सुन्दरकाण्ड)
सुनु खगपति यह कथा पावनी।
त्रिबिध ताप भव भय दावनी।।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख सम्पति नाना बिधि पावहिं।।(उ0का0)
 प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में अनुराग होने से कलिमल का नाश हो जाता है।विनय पत्रिका में गो0जी कहते हैं---
रामचरन अनुराग नीर बिनु कलिमल नास न पावै।।
 इस ग्रँथ के अन्तिम छन्द में भी गो0जी इसी बात का उल्लेख करते हैं।यथा,,,
रघुबंसभूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम रामधाम सिधावहीं।।
सत पंच चौपाई मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंचजनित बिकार श्री रघुबर हरै।।
 जिस प्रकार इन पंक्तियों में प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में अनुराग रखने वालों के लिए फलश्रुति कही गई है वैसे ही गो0जी ने प्रभुश्री रामजी के चरणों से विमुख रहने वालों के लिए भी फलश्रुति कही है।यथा,,
जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए।
ते कायर कलिकाल बिगोए।।
तृषित निरखि रबि कर भव भारी।
फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"मन वह निर्मल"*
(गगनांगना छंद गीत)
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१६ + ९ = २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS, युगल पद तुकांतता।
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★मन वह निर्मल, खिल जाता जो, फूल समान है।
जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


★खिल जाए तो प्रीति समझ लो, सुख-आभास है।
मिल जाए तो मीत समझ लो, मंजिल पास है।।
जो न मिले तो, भूलो उसको, भूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।


★उदधि-अतल हो, प्रबल लहर हो, पथ अति दूर हो।
राह न सूझे, नैया जर्जर, तन थक चूर हो।।
बीच भँवर में, थामे कर जो, कूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।


★साथ रहे जो, संग चले जो, हितकर जान लो।
हरपल गूँजे, गीत सरिस जो, धुन मन मान लो।।
जो सहला दे, हिय हर्षा दे, झूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।


★चहका दे जो, चमन सही वह, सुख आधार है।
महका दे जो, सुमन सही वह, मनु मधु सार है।।
महके-चंदन, जान नहीं तो, धूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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हलधर

कोरोना से डरो ना 
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हाथ ना मिलाओ यार ,दूर हट जाओ यार ,
कोरोना की इस वार ,पड़ी मार देश में ।


करो नमस्ते या हाय ,करो चाहे बाय बाय ,
मास्क की है हाय हाय , इस पार देश में ।।


वार वार हाथ धोएं ,बिना बात नहीं रोएं ,
नहीं हम आपा खोएं , वार वार देश में ।


मजहबी वायरस ,खाये भाईचारा रस ,
सभी को रहा है डस, सुन यार देश में ।।


हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

आधुनिकता
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन, ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजो का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
पर,घी के लिए मक्खन
मक्खन के लिए दूध
दूध के लिए गाय जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजो का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है


 पर,अन्न के लिए बरसा
बरसा के लिए बादर
बादर के लिए सागर जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजों का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
 पर,रिश्ता के लिए राखी
राखी के लिए भाई
भाई के लिए,मया दुलार जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन,ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजों का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
पर,मांग के लिए सिंदुर
सिंदुर के लिए नारी
नारी के लिए,परिवार जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजों का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
नूतन लाल साहू


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नया गीत सादर निवेदित हैं...


मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों के चमन में।
नेह  का दीपक जलाता  इस  धरा से उस गगन में।
खुशबुओं  से   बाग़  महके   ये   हमारे  आरजू  हैं।
प्रीत  हो  अबला  पुरुष  में मेघ  बरसे उर तपन में।
मैं सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(1)


आस जाग्रत अब करें सब जिन्दगी की राह में हम।
मंजिलों से अब न भटके कोइ लोलुप  चाह में हम।
हो  प्रताड़ित  या  तिरष्कृत  हैं  यही  अरमान  मेरे।
पर  सदा  आते  रहेंगे  खूब  रोज   पनाह  में   हम।
प्राण  की  आहुति  रहेगी  रोज  जीवन के हवन में।
मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(2)


मृगसिरा की सब तपन के बाद ज्यों  आद्रा  सुहाए।
हो  बहुत  अच्छा  कभी जो आप मैं से हम कहाए।
प्रीत  के  गुलशन  मिटायें  तल्खियाँ जो दरम्यां हो।
प्यार  की  सुरसरि  नहाके  रूह  दरपन सी बनाए।
शीश  मेरा  अब  झुकेगा  आप  के ही हर नमन में।
मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(3)


रातरानी  की  महक  से  अब  रहें  रिश्तें सुगन्धित।
देख  के  उपवन  मनोरम  हिय हमारे हो अनन्दित।
आरजू  अब  भी  यही  हैं और भी कुछ पा सकेंगे।
बस  यही  चाहूँ  सदा  बहती  रहे  ये  वायु मन्दित।
आपके  आते  सदा  होती  बड़ी  रौनक  भवन में।
मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(4)


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड ,

भोजपुरी चइता लोक गीत 2- काला तिलवा ये रामा|
(श्रिंगार रस)
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
हथवा मे शोभेला सोना के कगनवा ये रामा |  
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
बरछी कटारी बा तोहरी नजरिया |
घायल करेलु सगरो बज़रिआ,तनी सोचा |
कारी बदरिया काली केसिया ये रामा |
मथवा पर चमकेला लाल बुंदवा ये रामा |
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
ये जान जुल्मी तोहरी ऊमीरिया |
दावे लागल मोर जीनिगिया ,तोहरे प्यार मे |
नागिन लचके तोहार चलिया ये रामा |
अँचरा के ऊड़ावे बैरी पवनवा ये रामा|
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
ये गोरी मीठ मिसरी तोहार बोलिया | 
कनवा मे झूमे खूब कनबलिया |
चान चमके तोहरे मूहवा ये रामा |
दंतवा मे दमके मोतिया के दनवा ये रामा |
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


 


हलधर

कविता -जागो रे 
--------------------
देश तोड़कर शासन करना ,जिनका कारोबार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।


अहंकार में झूल रही है ,पी पी खून देश का खादी ।
करतब इनके देख देख कर,राजघाट में रोते गाँधी ।
 यमुना जल भी  लाल हुआ रे ,शोणित के छूटे फब्बारे ,
आतंकों का ओढ दुशाला  , दानव पैर पसार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।1


गंगा सिसक सिसक रोती है ,यमुना अब मैला ढोती है ।
जागो जागो देश वासियों , दिल्ली अब आपा खोती है ।
धरा पूत अर्थी पर लेटा , सर हद पर उसका ही बेटा ,
संसद के संवाद देख कर ,संविधान धिक्कार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।2


अगर अभी हम नहिं सँभले तो ,देश  हमारा बँट जायेगा ।
भाई के हाथों भाई का , गला एक दिन कट जायेगा ।
लाल रंग के वस्त्र पहनकर ,डायन धूम रही बन ठन कर ,
एक पड़ौसी विषधर फिर से , सरहद पर फुंकार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है ।।3


चीन हमारा जानी दुश्मन ,समझो उसको कभी न भाई ।
कीमत बड़ी चुकानी होगी , गलती यदि हमने दुहराई ।
कुछ माओ को खास बताते ,लेनिन की तस्वीर सजाते ।
अपनो के ही हाथों "हलधर ",भारत घर में हार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।
हलधर --9897346173


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*बातो बातो में हुआ..*
विधा: गीत


कुछ हमने कहाँ,
कुछ उनने कहाँ।
बातो का सिलसिला,
यही से शुरू हुआ।
अब तो रोज बाते, 
हमदोनो करते है।
दिलकी लगी को,
दिलसे मिलते है।
और अपास में,
प्यार बहाते है।
अब हाल ये है,
की उन्हें देखे बिना ?
अब रह नही सकते,
इसलिए रोज मिलते है।
और डूब जाते है,
प्यार के सागर में।
जहां प्यार ही प्यार,
हमेशा बरसता है।
और पता नही चलता,
कि कब दिन ढल गया।
दिलमें फूल खिलते है,
एकदूजे के लिए मचलते है।
इसलिए मोहब्बत के दीप,
दिल में जलते है।
जिससे प्यारकी दुनियाँ, 
जगमगा उठती है।
और प्रेमी जोड़ो में,
राधाकृष्ण ही दिखता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
13/03/2020


निशा"अतुल्य"

कान्हा 
13.3.2020


मन मोहना रूप तेरा 
तेरी मुरली निराली है
मन मोह कर ये मेरा 
मुझे जीना सीखाती है।


धुन में मैं डूब गई
ये मुझको सताती है ।
खो जाऊं नैनो में
ये मुझको बुलाती है।


भोला सा मुख तेरा
श्याम रंग ये निराला है 
मोर पंख रख माथे पर
कान्हा रूप निराला है।


डाल कदम्ब की याद करे
धुन तुमको सुनानी है
गोपियां डोल रही 
राधा रानी बुलाती हैं।


कान्हा पार करो भव से
मेरी प्रीत पुरानी है 
ना छोडूंगी मैं तुमको
तुम्हे प्रीत निभानी है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


 


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*इसी जन्म में मिलता है करनी*
*का फल।मुक्तक।*


संसार के कण कण में समाया
प्रभु   का  नूर  है।


अंदर झांक   कर देखो कि  वो
नहीं तुझसे दूर है।।


ऊपर  वाला    रखता  है  तेरे 
पल पल  का हिसाब।


इसी जन्म में लौटाता तुझको
यही उसका दस्तूर है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।*


दोस्ती संबंध
चले यकीन से ही
ये अनुबंध


ये हो दस्तूर
दुनिया में जीने को
प्रेम जरूर


ये इकरार
निभाना जरूरी है
नहीं इंकार


नहीं बिखरो
संघर्ष से संवरो
तुम निखरो


एक दस्तूर
प्रेम हो भरपूर
बने दस्तूर


कीमती शय
यकीन की दौलत
टूटे न वह


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"चेहरा"*
"चेहरे पर चेहरा लगाये ,
घूम रहा -
संग साथी साथी।
मुश्किल है पहचान पाना,
कौन-अपना-
कौन-बेगाना साथी?
छोड़ चले संग साथी ,
फिर भी कहते -
उनको साथी।
चेहरे पर भोला पन उनके,
मन बसा शैतान-
पहचान न पायें साथी।
चेहरे पर चेहरा लगा कर,
स्वार्थ की धरती पर-
साथी बन छलता रहा साथी।
पढ़ सकते जो चेहरे की भाषा,
यूँही न ठगे जाते-
अपनो से साथी।
चेहरे पर चेहरे लगयें,
घूम रहा-
संग साथी साथी।।"
ः        सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जबसे तुमसे प्रीति हुई है,मैं तो भूल गया जग सारा।
मोह ममता से नाता तोड़, निशदिन स्मरण तुम्हारा।।


हे बृजेश और बृज की रानी,अनुपम छवि तुम्हारी।
मोर मुकुट माथे पर राजे,संग सोहें बृषभानु दुलारी।।


मेरी जीवन ज्योति है तुमसे,हे परमज्योति परमानन्द।
युगलरूप के दर्शन पाकर,मन प्रमुदित मिले आनन्द।।


हे जगतभूषण जगतात्मा,सदा सत्य पर रहे अनुग्रह।
सदा सानिध्य मिले नाथ, युगलछवि कौ सहूँ न विरह।।



युगलरूपाय नमो नमः🍁🙏🙏🙏🙏🙏🍁


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌 जोड़ो हाथ,न हाथ मिलाओ😌


जोड़ो हाथ न हाथ मिलाओ।
  कोरोना   को   दूर   भगाओ।
    भैया  अपने  देश  की  भाषा,
      और संस्कृति  को  अपनाओ।


आमिष तुम आहार करो ना।
  मांस-वांस  से  पेट  भरो  ना।
    खाओ    शाकाहारी    खाना।
      यही   दवाई   यार  डरो   ना।


नकल न औरों की तुम करना।
  उसकी  लाठी  से  तुम  डरना।
    चाल  अगर   उल्टी  होगी   तो,
      बेमौत     ही    पड़ेगा    मरना।


जो    भी   अत्याचार   करेगा।
  निश्चित  ही   वो   यार   मरेगा।
    करनी  का  फल  यहाॅ॑ नहीं तो,
      बोलो    जाकर   कहाॅ॑   भरेगा।


सबसे   अच्छी   यही   दवाई।
  शाकाहारी     खाओ      भाई।
    हाथ   जोड़कर   बोलो  सबसे,
      दूर   रहो   मत    करो   ढिठाई।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग

🌹मेरे घर
************
मेरे आंगन
की बगिया में
गेंदा,गुलाब कई प्रजातियों के 
फूल है।
खाद-पानी से नहीं
मेरे प्यार से खिलते हैं
मुझे अक्सर हंसाते हैं
यही कारण है कि
मै हमेशा बगिया को
सुंदर बनाने की कोशिश 
करता रहता हूं।
ताकि मेरे
बगिया की खुशबू
चारों ओर फैले
और सभी के घरों में हो
प्यार स्नेह और आनंद का
वातावरण।
************************
   कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग


देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"

.......तशरीफ़ लाये हैं..........


तशरीफ़ लाये हैं इस जहां में;
चंद   रोज  बिताने  के लिए।
कर सकें जो भला  कर  लें ;
इस    जमाने     के    लिए।
क्या  पता  जब  हम हो रहे;
होंगे रुख़सत इस जहां   से।
कुछ  न  होगा   साथ    में ;
उपरबालेको बतानेके लिए।


-देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

पुष्प


पुष्प जैसा जीवन हो मेरा
स्वयं खिलूँ व जग मन हरषाऊँ
सुरभित रहूँ सदा में जग में
सुरभि से हरदिल को महकाऊं


कोई आकांक्षा नहीं है मेरी
कि पहनें हृदय पै हार बनाकर
देव प्रतिमा पर चढ़ाएं मुझे
इतराऊँ में भव गहना बनकर


बिखर जाए अस्तित्व भले 
बनूं न मैं जन पीड़ा का कारण
खुशी मिले मेरी खुशबू से
मुझे अपना हों दुःख निवारण


स्पर्श भी सुख दे मानव को
मेरे रुप व रंग से भी चैन मिले
कोमल कोमल पंखुड़ियों से
स्नेह और प्यार भरा सकूं मिले


नौचें खरौचे मधुमक्खियां भी
मेरे मधु व मकरन्द का पान करें
तितलियां मंडरा मंडरा कर
न मेरी शुचिता का गुणगान करें


भ्रमर पंक्तियां नाचें व गायें
रसिक हृदयों को देवें आनन्द
वैसे हो फूलों जैसा जीवन
जग में फैले कृतित्व मकरन्द।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनीता असीम

मुझे रास आने लगी जिंदगी।
मेरा दिल लुभाने लगी ज़िन्दगी।
***
इधर देखती औ उधर देखती।
नज़र क्यूँ चुराने लगी ज़िन्दगी।
***
जमाने में फैला करोना का डर।
खबर ये सुनाने लगी ज़िन्दगी।
***
बिमारी से कैसे बचे ये वतन।
शिफ़ा कुछ बताने लगी ज़िन्दगी।
***
करम जो खुदा का हुआ आपपर।
गगन पर बिठाने लगी ज़िन्दगी।
***
सुनीता असीम
12/3/2020


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल           झज्जर (हरियाणा )

होली... रंग प्यार का 


पिया से बोली प्रियतम 
सुनो, आज होली है 
मुझपर भी रंग खुमार का 
प्रेम वशीभूत अबरार का 
ना करना मौका तकरार का 
मेरा लगाव सरोबार का. 


मुझपर अपना चढ़ा दो रंग 
नहीं होता इंतज़ार का. 
एक रंग प्यार का 
एक रंग दुलार का 
एक रंग प्रेमाधार का 
भावनामयी अज़ार^ का          प्रेम भावना 
एहसासरत गुणागार^ का        बंधन 
मेरे इस धड़कते दिल में 
फैले से सभागार का 


एक रंग चढ़ा दो मुझपर 
उस मुस्कुराते अनार का 
सौन्दर्यमयी मीनार का 
मेरे आँगन में चनार का 
खिलते यौवन कचनार का. 


प्रियतम ने अपनी बाहें खोली 
पेड़ हो ज्यों गुलनार का 
कहने लगा "तुम जीवन हो मेरा 
मेरे प्रेम भरे अम्बार का". 
मेरा प्यार तो निश्छल है, 
ये मोहताज़ नहीं अबरार का. 
तुम्हें देख रूह खिलती है "उड़ता ", 
यही है रंग मेरे प्यार का. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
         झज्जर (हरियाणा )
   संपर्क - 9466865227


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

फलसफा गया...... 


एैसे ही निकलता गया, 
ये ज़िन्दगी का फलसफा. 
कुछ मिल गया, 
कुछ छूट गया. 
कोई दोस्त बना, 
कोई रूठ गया. 
सोचा कोई खास बना हमारा. 
रंग लाएगा एहसास हमारा. 
मगर कोई धागा टूट गया. 
कोई मेरी आँखों से दूर गया. 
मैं संभाल ना सका जन्नत अपनी, 
कोई दर से होके मज़बूर गया. 
छलकाया था जाम कुछ पल. 
जाने कैसे काफूर -ए -सुरूर गया. 
था एक बंद अनार, 
हल्की सी चोट से फूट गया. 
ये ज़िन्दगी का फलसफा "उड़ता ", 
क्यों होकर मगरूर गया. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
     झज्जर (हरियाणा 


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

नहीं बेसबब..... 


कुछ भी नहीं होता बेसबब. 
ये जानते हैं जन, सब. 
दुनिया निराली ही रही, 
बदलते रह गए ढब. 
हम तो चले शुरुआत से, 
कहाँ पहुँचे ना जाने अब. 
कितने फासले तय किए, 
मंज़िल पर पहुँचोगे कब. 
सितारों ने रास्ता दिखलाया, 
अटकलों से भरा रहा नभ. 
हज़ार मुश्किल आई अकसर, 
जब भी बढ़ाया एक पग. 
यूं ना सोचो बढ़ो आगे "उड़ता ", 
जहान मिलेगा जब बढ़ेंगे डग. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल       झज्जर (हरियाणा )

कुछ बेखबर.... 


वक़्त ने चली अपनी चालें, 
मैं रहा बेखबर -बेखबर. 
मेरे  हिस्से  का आसमान, 
नहीं हुआ मयस्सर. 
हालात का हिसाब यों, 
होता रहा अकसर -अकसर. 
ख़ुश्क रेगिस्तान दिखा, 
जाती थी जहाँ तक नज़र. 
राहगीर का काम चलना है, 
रात भी नहीं अमर. 
खुद से ही क्यों लड़ता रहा, 
उम्र -ए -तमाम संवेदना -ए -सहर. 
प्यास तो अपनी बड़ी बहुत, 
कुछ नीर -ए -बूँद क्या करती असर. 
कागज़ पर उकेर दो, 
ले शब्दों का खंजर.
कुछ पलों में शांत हो जाओगे "उड़ता ", 
निकल जायेगा सब भीतर से ज्वर. 


✍सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
     झज्जर (हरियाणा )
📱9466865227


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना 
दिनांकः ११.०३.२०२०
वारः बुधवार
विधाः उन्मुक्त (कविता)
शीर्षकः 🕊️"गोरैया" 🐦


चीं चीं चीं चीं छोटी चिड़िया,
प्यारी प्यारी भोली भाली,
उड़ी गोरैया उन्मुक्त गगन में,
फुदक फुदक कर इधर उधर वह
बैठी उड़ती चुगती दाने,
छोटी छोटी चोंच में तिनके,
उठा ले जाती बना घोंसलें।
घर बाहर खिड़की दरवाज़े,
निडर बनी वह नित मतवाली,
रंगमहल बन सज़ा आसियां ,
अंडे देती , पाल पोषती ,
बस इतराती नन्हीं चिड़िया,
हमें चिढ़ाती चीं चीं करके ,
तिनकों से घर गंदा करके ,
साफ कराते हमसे निज घर,
हँसती चिड़िया चतुर गौरैया,
नित थकते,फिर भी हम हँसते,
भोली भाली बिन चिन्ता वह,
प्रकृति मनोहर उड़नपरी बन,
नव आशा की सोच जगाती,
नित उड़ान भर नये ध्येय नभ,
नव जीवन की अलख जगाती,
मन भावन सुन्दर यह चिड़िया, 
प्यास बुझाए जहँ मिले सुलभ जल,
साँझ भयो निज गेह गोरैया।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”

•आ जाता मैं•
आज ऐसे क्या लिखूँ,तेरी बद आदतों पर मैं।
बातों को वैसे भी,कभी भूलता नहीं हूँ मैं।
अगर दिल और दिमाग,आज ना लगाते रिश्ते में
तो कुछ वक़्त ही सही,तेरे पास आ जाता मैं।
-कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”
सम्पर्क सूत्र-9415911010
KRS


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दोहे
श्रवण पठन लेखन सदा , आलोचन    साहित्य।
गीति रीति कविकामिनी ,लेखन   मम औचित्य।।१।।
सेवन नित साहित्य का , हूँ हिन्दी  फनकार।
अन्वेषक  मधुरिम  कुसुम , भ्रमर    बना गुंजार।।२।।
कवि मानक नियमावली , सहमत नित  सम्मान।
रीति प्रीति रसगुण सहित , काव्य ध्येय श्रीमान।।३।।
निज लेखन   साहित्य  में , करूँ  शब्द   शृङ्गार।
हिन्दी हो सुरभित वतन, सुखद  शान्ति उपहार।।४।।
कलमकार   हिन्दी वतन , गद्य   पद्य अभिधान।
रीति शिल्प    रसगुणमयी , परलेखन   सम्मान।।५।।
आवश्यक   नियमावली , अनुशासित   आचार।
पठन श्रवण लेखन सहज,कवि लेखक आधार।।६।।
सर्वप्रथम   पाठक समझ , बाद बना  कविकार।
आलोचक  गद्दार का ,श्रावक  कवि    फनकार।।७।।
कवि लेखन दर्पण सदा , प्रेरक   नित  समाज।
रचता   हूँ  कवितावली , नयी   क्रान्ति  आगाज।।८।।
सदाचार    कवि भंगिमा , भारत  माँ    जयगान।
मानवता   बस  ध्येय  कवि , नवजीवन रसपान।।९।।
कवि निकुंज  जीवन  सफल, लेखन  पाए मान।
ओत प्रोत   भक्ति वतन , ध्येय  अमन   उत्थान।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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