*"मन वह निर्मल"*
(गगनांगना छंद गीत)
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१६ + ९ = २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS, युगल पद तुकांतता।
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★मन वह निर्मल, खिल जाता जो, फूल समान है।
जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।
★खिल जाए तो प्रीति समझ लो, सुख-आभास है।
मिल जाए तो मीत समझ लो, मंजिल पास है।।
जो न मिले तो, भूलो उसको, भूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।
★उदधि-अतल हो, प्रबल लहर हो, पथ अति दूर हो।
राह न सूझे, नैया जर्जर, तन थक चूर हो।।
बीच भँवर में, थामे कर जो, कूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।
★साथ रहे जो, संग चले जो, हितकर जान लो।
हरपल गूँजे, गीत सरिस जो, धुन मन मान लो।।
जो सहला दे, हिय हर्षा दे, झूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।
★चहका दे जो, चमन सही वह, सुख आधार है।
महका दे जो, सुमन सही वह, मनु मधु सार है।।
महके-चंदन, जान नहीं तो, धूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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