भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"अबला बन सकती है सबला"*
(कुकुभ छंद गीत)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
"""""'"""""""""""""''""""""""""""""'"''""""""""
¶प्यार भरा बंधन है परिणय, कोई व्यापार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।
दहेज से धन मिल सकता है, पर मिलता प्यार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶बलि-बेदी पर और बेटियाँ, कब तक चढ़ती जायेंगी?
प्यार समझकर पीड़ा को ये, कब तक सहती जायेंगी??
पीड़ा तो पीड़ा ही होती, वह नेह दुलार नहीं है
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶अगणित भावों का है सागर, मन की गागर को भालो।
भावों के तीरों से इसको, और न जर्जर कर डालो।।
करे न कोई नारी जैसा, जग में उपकार कहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶उद्वेलित-मन कभी-तरंगें, बंधन सातों फेरों को।
प्लावन कर दें न कभी ये भी, तोड़ तपन के घेरों को।।
दुर्गा-रूप कभी ले सकती, नारी साकार कहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶ठोकर खाकर आगे नारी, चुप हो न करेगी देरी।
गूँज उठी है उसके भी अब, हाथ-क्रांति की रणभेरी।।
क्लेश-कष्ट हर हरने वाली, नारी भू-भार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶लक्ष्मी-दुर्गा-सरोजिनी भी, शक्ति-सरूपा थीं नारी।
अबला बन सकती है सबला, पड़ सकती नर पर भारी।।
भूले से अब कहे न कोई, उसका अधिकार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।
""'''""""""'''"""""""""'''''"""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""""''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

💀कैरोना आतंक😢
विपदा  है  चारों तरफ , कैरोना आतंक।
त्राहि त्राहि जग में मचा , राजा हो या रंक।।
रहें सहज परहेज से, स्वच्छ रहे इन्सान।
नमस्कार बस दूर से, अर्पण हो सम्मान।।
मास्क पहन निकलें सभी , बचें सर्दी जुकाम। 
करें स्वयं की सुरक्षा , करें गेह विश्राम।।
मांसाहारी  मत बने , तजें नशा का रोग।
पान करें ऊष्मित सलिल, करें सभी सहयोग।।
रखें ध्यान संतान का, स्वच्छ रखें परिवेश।
सदा चिकित्सक मंत्रणा, स्वयं स्वस्थ हो देश।। 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


नूतन लाल साहू

अंतर
पहले पूजा पाठ में
घी का दीपक जलाएं जाते थे
अब जलती हुई,मोमबत्ती बुझाकर
बर्थ डे, मनाये जाता है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
शादी में लड़की मंगनी का रस्म
बाप दादा निभाते थे
सात जन्मों का रिश्ता होता था
अब लड़की,पसंद कर लड़का ही
ब्याह रचाते है
अनेकों दुल्हन,दो चार साल बाद
फुर्र हो जाते है
हर गाव में,देखो कितने ही
परित्यकता बैठे है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
पहले बहू, डरती थी
सास कैसे मिलेगा
अब सास, डरती है
बहू कैसे मिलेगी
क्योंकि अब तिजौरी का चाबी
बहू के पास होता है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
पहले चार आने के साग में
पूरा परिवार खा ले
अब,चार रुपए का साग
अकेला खा जाता है
बरसात में पानी
ठंड में कड़ाके की ठंड और
ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ता था
अब समय, अनफिस्कड़ हो गया है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को कलेजा चाहिये
नूतन लाल साहू


 


संजय जैन बीना (मुम्बई

*भरोसा..*
विधा : गीत


 लूटकर सब कुछ मेरा,
और क्या लूटने आये हो।
दिल के खालीपन को,
क्या देखने आए हो।
दिल है ये मेरा,
कोई धर्मशाला नहीं।
जिसमे लोग आते,
और जाते रहते है।।


चोट हमने खाई है,
तुम्हें है क्या पता।
अपने बनकर मुझे,
अपनो ने ही डसा।
अब में किससे कहूँ,
मुझे मेरे ने ही डसा।
जिस पर था यकीन,
वही गैर निकला।।


अब तो इंसानों पर,
है नहीं भरोसा।
क्योकिं इंसान को,
इंसान ही खा रहा।
जब इंसानियत ही,
दिलों में जिंदा नही।
फिर क्यो इंसानों से,
हम उम्मीदे रखे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
14/03/2020


एस के कपूर* *श्री हंस बरेली

*चाहो तो छू सकते हो आसमान।।।।।*
*।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


हौंसला   सितारों    को भी 
करीब ले   आता है।


हिम्मत से आदमी चाँद पर
भी पहुँच जाता  है।।


साहस से  निर्जीव में  प्राण
आ सकते हैं दुबारा।


जो डूब जाता   तन मन  से
मंज़िल वही पाता है।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस बरेली

*।।मित्रता पूँजी सबसे बड़ी।।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


तमाम उम्र   ही   गुजर   जाती,
दोस्ती को  बनाने  में।


पर पलभर की  देर नहीं लगती,
उसको    गवांने    में।।


ताजिंदगी   लगा   दीजिये  आप,
निभाने  में  रिश्तों को।


सच्ची दोस्ती दौलत   सबसे बड़ी,
आज भी इस ज़माने में।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब।।  9897071046 ।।।।
8218685464 ।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली

*।यूँ जियो कि कोई भूले न आपको।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


किसी दिन तुम भी कोई बीता
सा इतिहास बन जायोगे।


भूतकाल की भीड़ में गुम बस
बेहिसाब    बन   जायोगे।।


यदि जियोगे  जीवन  सहयोग
और    सद्भावना     से ।


बन जायोगे   सबके  प्रिय तुम
और  खास बन जायोगे।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046  ।।।।।।।
8218685464   ।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"उपदेश"*
"देते रहे उपदेश वो तो साथी,
किया नहीं कोई काम-
करते रहे आराम।
मिल जाये सुख  सारे जग मे,
कभी भजा नहीं -
प्रभु का नाम।
बैठे -बैठे देते रहे उपदेश,
बना कर संतो का-
छद्म वेष धर कर नाम।
मुँह में राम बगल में छुरी,
करा नहीं जीवन में-
कोई भला काम।
राम नाम की महिमा का, 


करते रहे गुणगान-
पहचाना न किया कोई काम।
देते रहे उपदेश वो तो साथी,
किया नहीं कोई काम-
करते रहे आराम।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
    14-03-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

भाव के भूखे है प्रभु
भाव ही उन्हें स्वीकार है
भाव से अर्पण जो करो
तो भवसागर भी पार है


छोड़कर दुविधाएं सभी
भजो भाव से भगवान को
मिट जायेंगी बाधाएं
तुम पाओगे अंजाम को


प्राणी मात्र का आश्रय
वह जग का आधार है
उसके शिवाय कुछ भी
नहीं जगत में सार है


राग द्वेष तज मानव
तू करले ईश्वर से प्यार
शुद्ध होंगी भावनाएं
फिर धरा लगे परिवार।


🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


राजेंद्र रायपुरी

😊मन अति उछाह😊


चैत्र माह,
मन अति उछाह,
रामनवमी संग,नवरात्रि।
बहेगी,
भक्ति की बयार,
देश और प्रदेश।


गूॅ॑जेंगे,
माॅ॑ के जयकारे।
होगी आराधना,
शक्ति की, 
करने नाश,
दूष्टों का।


है मास,
ये ख़ास।
होगा,
नव-वर्ष का,
आरंभ,
इसी मास।
तभी तो है,
मन अति उछाह।


।। राजेंद्र रायपुरी।।


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

Corona virus effects on Weddings 😂


मोदीजी की तरह खादी में
कल हम गए एक शादी में !!!!!!!


चारों तरफ डेटॉल और फिनायल 
की खुशबू महक रही थी
सिर्फ करोना वाइरस की ही 
चर्चा चहक रही थी


रिश्तेदार मिल रहे थे ...
आपस में हँसते हँसते 
हाथ मिलाने की बजाय 
कर रहे थे ..सिर्फ नमस्ते


सब दूर दूर खड़े थे 
शादी वाले हॉल में 
मास्क ही ..मास्क रखे थे 
पहली पहली   स्टॉल में


इत्र वाले को मिला हुआ था
सैनेटाइजर छिड़कने का...टास्क
महिलाएं पहने हुए थी 
साड़ी से मैचिंग वाला...मास्क


दूल्हा दुल्हन जमे स्टेज पर
थोड़ा   दूर   दूर   बैठकर 
वरमाला भी पहनाई गई 
एक दूजे पर   .. फेंककर


हमने भी इवेंट को देखा 
स्क्रीन पे   थोड़ा दूर से 
मेकअप दुल्हन का भी 
किया गया था कपूर से 


फेरों में भी      उनके हाथ 
एक दूसरे को नहीं थमाए गए
और तो छोड़ो   उनके फेरे भी 
सौ मीटर दूर से कराए गये


इधर   हम थूकने गए 
अपने  पान की पीक
उधर दूल्हे को आ गई 
बड़ी जोर से   छींक


एक सन्नाटा सा छा गया 
उस पंडाल में चारों ओर
दुल्हन को गुस्सा आ गया और
चली गई नहाने   मंडप को छोड़


माफी लगा माँगने सबसे
तब दूल्हे का बाप 
रिश्तेदार एक दूजे की
शकल रहे थे ताक


छोड़कर खाना भूखे ही 
मेहमान घर को भागने लगे
मेहमान तो छोड़ो हलवाई भी
बोरिया बिस्तर बाँधने लगे


हम शादी में जाकर भी 
यारों रह गए भूखे सरीखे..
जैसी हमपर बीती वैसी
किसी पर भी ना बीते 


करोना देवी   मेरी तुमसे 
एक विनती है   हाथ जोड़कर
इस दुनिया से अब तुम जाओ 
जल्दी ही  मुँह  मोड़कर


लेकिन सबक जरूर  सिखाना 
तुम उनको   सीना तान कर
जो मँहगा सामान बेचकर, 
लूट रहे है लोगों को तेरे नाम पर। 
(रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)
🤣🤣🤣stay safe🤣🤣🤣


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

श्री राम चरित मानस में श्री रामजन्म भूमि अयोध्या का वर्णन


बन्दउँ अवधपुरी अति पावनि।
सरजू सरि कलि कलुष नसावन।।
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी।
ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि अब मैं अति पवित्र श्रीअयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्रीसरयू नदी की वन्दना करता हूँ।फिर मैं अवधपुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभुश्री रामजी की ममता कम नहीं है अर्थात बहुत अधिक है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  अयोध्या को अति पावन कहने का भाव यह है कि सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी कहा गया है।यथा,, 
अयोध्या मथुरा माया काशी काँची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती ज्ञेया सप्तपुरयश्च मोक्षदा।।
ये सातों पुरियां भगवान विष्णु के अंग में हैं।इनमें अयोध्यापुरी का स्थान मस्तक में है।
  तीर्थराज प्रयाग कहीं नहीं जाते परन्तु श्रीरामनवमी के दिन वे भी अयोध्या आते हैं।यथा,,,
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।।
  अयोध्या धाम की महिमा का वर्णन गो0जी ने उत्तरकाण्ड में प्रभुश्री रामजी के श्रीमुख से स्वयं कराया है।यथा,,,
सुनु कपीस अंगद लंकेसा।
पावन पुरी रुचिर यह देसा।।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि।
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा।
मम समीप नर पावहिं बासा।।
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी।
मम धामदा पुरी सुखरासी।।
  स्कन्दपुराण, रुद्रायमल,वशिष्ठसंहिता,
रामसुधा आदि कई ग्रन्थों व पुराणों में भी अयोध्याधाम के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन मिलता है।रुद्रायमल में श्लोक संख्या 61 से 64 तक भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को अयोध्यापुरी की महिमा का गान किया है।यथा,,,
  भगवान शिवजी कहते हैं कि हे पार्वती!मन लगाकर अयोध्या की महिमा सुनो।अ वासुदेव हैं, य ब्रह्मा है और उ रुद्ररूप है, ऐसा मुनीश्वर उसका ध्यान करते हैं।सब पातक और उपपातक मिलकर भी उससे युद्ध नहीं कर सकते, इसीलिए उसका नाम अयोध्या है।भगवान विष्णु की यह आद्यपुरी उनके सुदर्शन चक्र पर स्थित है।यह पृथ्वी का स्पर्श नहीं करती है।यहाँ बहने वाली सरयू नदी में स्नान करने से कलियुग के समस्त पापों का नाश हो जाता है।यहाँ के समस्त नर नारी भी बड़े पुण्यवान हैं क्योंकि वे सभी जगन्नाथ स्वरूप हैं।इसीलिए वे सभी प्रभुश्री रामजी को अतिशय प्रिय हैं।इसी कारण साकेतधाम गमन के समय प्रभुश्री रामजी उन सभी को अपने साथ ही ले गये थे।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक मांनस मराल

राम चरित मानस महात्म्य


जे एहि कथहि सनेह समेता।
कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता।।
होइहहिं राम चरन अनुरागी।
कलिमल रहित सुमंगल भागी।।
सपनेहुँ साँचेहुँ मोहि पर जौं  हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो इस रामकथा को प्रेमसहित एवं सावधानी के साथ समझबूझ कर कहेंगे व सुनेंगे,वे कलियुग के पापों से रहित और सुन्दर मङ्गल कल्याण के अधिकारी होकर प्रभुश्री रामजी के चरणों के प्रेमी बन जायेंगे।
  यदि मुझ पर श्री शिवजी और माता पार्वतीजी की स्वप्न में भी सचमुच प्रसन्नता हो,तो मैंने इस भाषा कविता का जो प्रभाव कहा है वह सब सत्य हो।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  श्रीमद्गोस्वामी जी ने इस 
रामकथामृत का कथन,श्रवण व 
गान करने का महत्व और उसका फल कई स्थलों पर वर्णित किया है।यथा,,
रामचरन रति जो चह अथवा पद निर्बान।
भावसहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान।।
(उत्तरकाण्ड)
 सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।
(सुन्दरकाण्ड)
सुनु खगपति यह कथा पावनी।
त्रिबिध ताप भव भय दावनी।।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख सम्पति नाना बिधि पावहिं।।(उ0का0)
 प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में अनुराग होने से कलिमल का नाश हो जाता है।विनय पत्रिका में गो0जी कहते हैं---
रामचरन अनुराग नीर बिनु कलिमल नास न पावै।।
 इस ग्रँथ के अन्तिम छन्द में भी गो0जी इसी बात का उल्लेख करते हैं।यथा,,,
रघुबंसभूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम रामधाम सिधावहीं।।
सत पंच चौपाई मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंचजनित बिकार श्री रघुबर हरै।।
 जिस प्रकार इन पंक्तियों में प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में अनुराग रखने वालों के लिए फलश्रुति कही गई है वैसे ही गो0जी ने प्रभुश्री रामजी के चरणों से विमुख रहने वालों के लिए भी फलश्रुति कही है।यथा,,
जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए।
ते कायर कलिकाल बिगोए।।
तृषित निरखि रबि कर भव भारी।
फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"मन वह निर्मल"*
(गगनांगना छंद गीत)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
१६ + ९ = २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS, युगल पद तुकांतता।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
★मन वह निर्मल, खिल जाता जो, फूल समान है।
जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


★खिल जाए तो प्रीति समझ लो, सुख-आभास है।
मिल जाए तो मीत समझ लो, मंजिल पास है।।
जो न मिले तो, भूलो उसको, भूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।


★उदधि-अतल हो, प्रबल लहर हो, पथ अति दूर हो।
राह न सूझे, नैया जर्जर, तन थक चूर हो।।
बीच भँवर में, थामे कर जो, कूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।


★साथ रहे जो, संग चले जो, हितकर जान लो।
हरपल गूँजे, गीत सरिस जो, धुन मन मान लो।।
जो सहला दे, हिय हर्षा दे, झूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।


★चहका दे जो, चमन सही वह, सुख आधार है।
महका दे जो, सुमन सही वह, मनु मधु सार है।।
महके-चंदन, जान नहीं तो, धूल समान है।
जो न खिले तो, जानो उसको, शूल समान है।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


हलधर

कोरोना से डरो ना 
------------------------


हाथ ना मिलाओ यार ,दूर हट जाओ यार ,
कोरोना की इस वार ,पड़ी मार देश में ।


करो नमस्ते या हाय ,करो चाहे बाय बाय ,
मास्क की है हाय हाय , इस पार देश में ।।


वार वार हाथ धोएं ,बिना बात नहीं रोएं ,
नहीं हम आपा खोएं , वार वार देश में ।


मजहबी वायरस ,खाये भाईचारा रस ,
सभी को रहा है डस, सुन यार देश में ।।


हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

आधुनिकता
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन, ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजो का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
पर,घी के लिए मक्खन
मक्खन के लिए दूध
दूध के लिए गाय जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजो का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है


 पर,अन्न के लिए बरसा
बरसा के लिए बादर
बादर के लिए सागर जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजों का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
 पर,रिश्ता के लिए राखी
राखी के लिए भाई
भाई के लिए,मया दुलार जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन,ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजों का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
पर,मांग के लिए सिंदुर
सिंदुर के लिए नारी
नारी के लिए,परिवार जरूरी है
आधुनिकता का जमाना है
लोग फौरन ताड़ लेता है
अच्छे अच्छे रंग बाजों का
कार्टून बनाकर,हुलिया बिगाड़ देता है
नूतन लाल साहू


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नया गीत सादर निवेदित हैं...


मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों के चमन में।
नेह  का दीपक जलाता  इस  धरा से उस गगन में।
खुशबुओं  से   बाग़  महके   ये   हमारे  आरजू  हैं।
प्रीत  हो  अबला  पुरुष  में मेघ  बरसे उर तपन में।
मैं सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(1)


आस जाग्रत अब करें सब जिन्दगी की राह में हम।
मंजिलों से अब न भटके कोइ लोलुप  चाह में हम।
हो  प्रताड़ित  या  तिरष्कृत  हैं  यही  अरमान  मेरे।
पर  सदा  आते  रहेंगे  खूब  रोज   पनाह  में   हम।
प्राण  की  आहुति  रहेगी  रोज  जीवन के हवन में।
मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(2)


मृगसिरा की सब तपन के बाद ज्यों  आद्रा  सुहाए।
हो  बहुत  अच्छा  कभी जो आप मैं से हम कहाए।
प्रीत  के  गुलशन  मिटायें  तल्खियाँ जो दरम्यां हो।
प्यार  की  सुरसरि  नहाके  रूह  दरपन सी बनाए।
शीश  मेरा  अब  झुकेगा  आप  के ही हर नमन में।
मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(3)


रातरानी  की  महक  से  अब  रहें  रिश्तें सुगन्धित।
देख  के  उपवन  मनोरम  हिय हमारे हो अनन्दित।
आरजू  अब  भी  यही  हैं और भी कुछ पा सकेंगे।
बस  यही  चाहूँ  सदा  बहती  रहे  ये  वायु मन्दित।
आपके  आते  सदा  होती  बड़ी  रौनक  भवन में।
मैं  सुमन  को  रोपता  हूँ  नागफनियों  के चमन में।(4)


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड ,

भोजपुरी चइता लोक गीत 2- काला तिलवा ये रामा|
(श्रिंगार रस)
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
हथवा मे शोभेला सोना के कगनवा ये रामा |  
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
बरछी कटारी बा तोहरी नजरिया |
घायल करेलु सगरो बज़रिआ,तनी सोचा |
कारी बदरिया काली केसिया ये रामा |
मथवा पर चमकेला लाल बुंदवा ये रामा |
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
ये जान जुल्मी तोहरी ऊमीरिया |
दावे लागल मोर जीनिगिया ,तोहरे प्यार मे |
नागिन लचके तोहार चलिया ये रामा |
अँचरा के ऊड़ावे बैरी पवनवा ये रामा|
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
ये गोरी मीठ मिसरी तोहार बोलिया | 
कनवा मे झूमे खूब कनबलिया |
चान चमके तोहरे मूहवा ये रामा |
दंतवा मे दमके मोतिया के दनवा ये रामा |
गोरी-2 गलिया मे काला -2 तिलवा ये रामा|
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


 


हलधर

कविता -जागो रे 
--------------------
देश तोड़कर शासन करना ,जिनका कारोबार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।


अहंकार में झूल रही है ,पी पी खून देश का खादी ।
करतब इनके देख देख कर,राजघाट में रोते गाँधी ।
 यमुना जल भी  लाल हुआ रे ,शोणित के छूटे फब्बारे ,
आतंकों का ओढ दुशाला  , दानव पैर पसार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।1


गंगा सिसक सिसक रोती है ,यमुना अब मैला ढोती है ।
जागो जागो देश वासियों , दिल्ली अब आपा खोती है ।
धरा पूत अर्थी पर लेटा , सर हद पर उसका ही बेटा ,
संसद के संवाद देख कर ,संविधान धिक्कार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।2


अगर अभी हम नहिं सँभले तो ,देश  हमारा बँट जायेगा ।
भाई के हाथों भाई का , गला एक दिन कट जायेगा ।
लाल रंग के वस्त्र पहनकर ,डायन धूम रही बन ठन कर ,
एक पड़ौसी विषधर फिर से , सरहद पर फुंकार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है ।।3


चीन हमारा जानी दुश्मन ,समझो उसको कभी न भाई ।
कीमत बड़ी चुकानी होगी , गलती यदि हमने दुहराई ।
कुछ माओ को खास बताते ,लेनिन की तस्वीर सजाते ।
अपनो के ही हाथों "हलधर ",भारत घर में हार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।
हलधर --9897346173


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*बातो बातो में हुआ..*
विधा: गीत


कुछ हमने कहाँ,
कुछ उनने कहाँ।
बातो का सिलसिला,
यही से शुरू हुआ।
अब तो रोज बाते, 
हमदोनो करते है।
दिलकी लगी को,
दिलसे मिलते है।
और अपास में,
प्यार बहाते है।
अब हाल ये है,
की उन्हें देखे बिना ?
अब रह नही सकते,
इसलिए रोज मिलते है।
और डूब जाते है,
प्यार के सागर में।
जहां प्यार ही प्यार,
हमेशा बरसता है।
और पता नही चलता,
कि कब दिन ढल गया।
दिलमें फूल खिलते है,
एकदूजे के लिए मचलते है।
इसलिए मोहब्बत के दीप,
दिल में जलते है।
जिससे प्यारकी दुनियाँ, 
जगमगा उठती है।
और प्रेमी जोड़ो में,
राधाकृष्ण ही दिखता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
13/03/2020


निशा"अतुल्य"

कान्हा 
13.3.2020


मन मोहना रूप तेरा 
तेरी मुरली निराली है
मन मोह कर ये मेरा 
मुझे जीना सीखाती है।


धुन में मैं डूब गई
ये मुझको सताती है ।
खो जाऊं नैनो में
ये मुझको बुलाती है।


भोला सा मुख तेरा
श्याम रंग ये निराला है 
मोर पंख रख माथे पर
कान्हा रूप निराला है।


डाल कदम्ब की याद करे
धुन तुमको सुनानी है
गोपियां डोल रही 
राधा रानी बुलाती हैं।


कान्हा पार करो भव से
मेरी प्रीत पुरानी है 
ना छोडूंगी मैं तुमको
तुम्हे प्रीत निभानी है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


 


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*इसी जन्म में मिलता है करनी*
*का फल।मुक्तक।*


संसार के कण कण में समाया
प्रभु   का  नूर  है।


अंदर झांक   कर देखो कि  वो
नहीं तुझसे दूर है।।


ऊपर  वाला    रखता  है  तेरे 
पल पल  का हिसाब।


इसी जन्म में लौटाता तुझको
यही उसका दस्तूर है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मो   9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।*


दोस्ती संबंध
चले यकीन से ही
ये अनुबंध


ये हो दस्तूर
दुनिया में जीने को
प्रेम जरूर


ये इकरार
निभाना जरूरी है
नहीं इंकार


नहीं बिखरो
संघर्ष से संवरो
तुम निखरो


एक दस्तूर
प्रेम हो भरपूर
बने दस्तूर


कीमती शय
यकीन की दौलत
टूटे न वह


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"चेहरा"*
"चेहरे पर चेहरा लगाये ,
घूम रहा -
संग साथी साथी।
मुश्किल है पहचान पाना,
कौन-अपना-
कौन-बेगाना साथी?
छोड़ चले संग साथी ,
फिर भी कहते -
उनको साथी।
चेहरे पर भोला पन उनके,
मन बसा शैतान-
पहचान न पायें साथी।
चेहरे पर चेहरा लगा कर,
स्वार्थ की धरती पर-
साथी बन छलता रहा साथी।
पढ़ सकते जो चेहरे की भाषा,
यूँही न ठगे जाते-
अपनो से साथी।
चेहरे पर चेहरे लगयें,
घूम रहा-
संग साथी साथी।।"
ः        सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जबसे तुमसे प्रीति हुई है,मैं तो भूल गया जग सारा।
मोह ममता से नाता तोड़, निशदिन स्मरण तुम्हारा।।


हे बृजेश और बृज की रानी,अनुपम छवि तुम्हारी।
मोर मुकुट माथे पर राजे,संग सोहें बृषभानु दुलारी।।


मेरी जीवन ज्योति है तुमसे,हे परमज्योति परमानन्द।
युगलरूप के दर्शन पाकर,मन प्रमुदित मिले आनन्द।।


हे जगतभूषण जगतात्मा,सदा सत्य पर रहे अनुग्रह।
सदा सानिध्य मिले नाथ, युगलछवि कौ सहूँ न विरह।।



युगलरूपाय नमो नमः🍁🙏🙏🙏🙏🙏🍁


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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