श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड

हिन्दी गजल- निभाते चले गए |
हम अपनी वफा निभाते चले गए |
वो मुझसे दूरिया बढ़ाते चले गए |
शामिल था उनकी खुशी ओ गम |
मेरे वक्त वो मुंह चिढ़ाते चले गए |
प्यार के सिवा कुछ नहीं दुनिया मे |
वो आग दुश्मनी क्यो बढ़ाते चले गए| 
तन्हा आना जाना मगर जरूरत सबकी |
नीसा रिश्तो ज़िंदगी मिटाते चले गए |
तन्हा रहना दोस्त जरूरी हंसी के लिए |
दिल अजीज दोस्तो दुखाते चले गए |
पसीना जरूरी दो वक्त रोटी के लिए |
चाह ज्यादा छवि खुद गिराते चले गए |  
कर लो चराग रोशन अंधेरों डर जाओगे |
उम्मीदों के दिये सारे बुझाते चले गए |
तुम देवता न शैतान अकेले रह लोगे |
हर रिश्ता जरूरी कीमत सुनाते चले गए | 
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


    डा.नीलम

*मेरा गाँव मेरी धरोहर*


पक्की सड़क से उतर
खेतों की मेड़ मेड़ चलकर
मिट्टी की पगडंडी पर
उतर आता है मेरा गाँव


है धरोहर आज भी वो
के उसमें हैं अभी कुछ
छोटी सी मुंडेर वाले
कच्चे-पक्के माटी के घर


कुछ है साँझे आँगन 
जहाँ  उतरती सीढ़ियां से
कमली,राजी,निम्मी,सीता
उतर आती हैं रूई लेकर


चलती चरखे की लूम
चला,गीतों में अपनी
अपनी गाथा कहतीं
या हंसी-ठिठोली करतीं


लगी नहीं शहरी हवा उसे अभी
ना ही पानी में हुई मिलावट है
तभी साँझे चूल्हे से उठती
रोटी की मीठी महक आज भी


कहीं मटर,धनिया,मूँली की
कहीं सरस सरसराती है
कभी धान उगलते खेत हैं
कहीं सोना उगलती भूमि है


अमराई की छाँव में
आज भी मांचे बिछते हैं
बच्चे,बड़े,भाई,बीबीयों को
मिलता वहाँ बुजुर्गों का आशीष है


नहरें निर्मल नीर लिए
बीच गाँव में बहती हैं
पावन पानी के कलकल में
बचपन चहक-चहक नहाता है


सबसे सुंदर,सबसे पावन
गुरु का है यहाँ द्वार है
सुबह-शाम जहाँ पीठ लगा
होती अरदास और अजान है


छोटा सा दवाखाना है
एक तरफ,दूजी ओर
शिक्षा का मंदिर भी है
जहाँ बिना भेदभाव के
मिलता ज्ञान है


कुछ मिट्टी के खण्डहर भी हैं
भूली-बिसरी यादों से
जिसकी माटी में बसी हुई हैं
खट्टी -मीठी यादें


मेरी यादों में आज भी
मेरा गाँव सजीव है
उसकी धड़कन में बहती है
मेरी कितनी यादें


आज भी मेरा गाँव मेरी धरोहर है
हर बार सहेजा हूँ उसको मैं
हर बार खयालों में है मेरे।


      डा.नीलम


उत्तम मेहता "उत्तम"

बह्र: २१२२ २१२२ २१२
काफ़िया: आना
रदीफ़: छोड़ दे


आग नफ़रत की लगाना छोड़ दे।
खुद को अब बिस्मिल बताना छोड़ दे।


हर तरफ़ फैली  सियासत है यहाँ
तू शराफ़त को  दिखाना छोड़ दे।


बेवफ़ा तो बावफ़ा होगा नहीं।
याद कर अब दिल जलाना छोड़ दे।


कर हक़ीक़त जो है उसका सामना 
ख़्वाब पलकों पर सजाना छोड़ दे।


बेकसी हो बेबसी या बेख़ुदी।
अब तो खुद को बरगलाना छोड़ दे।


देख दामन तू ज़रा अपना कभी।
आइना सबको दिखाना छोड़ दे।


जब पिया हो जाम उत्तम दर्द का।
 ख़्वाब में  फ़िर मुस्कुराना छोड़ दे।


©@उत्तम मेहता "उत्तम"
       ०६/२०


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कौंन है वो......................


सदभावों की वो ज्योति जलाती,
खुद मिटकर वह संसार सजाती।
सहकर के सारे दुःख दुनियां के,
घर उपवन को हरपल महकाती।।
कौंन है वो .........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


नित आशाओं के दीप जलाती,
वो कल्पनाओं के महल बनाती।
हार न मानूँगी मैं जीवन पथ में,
हर उलझन से वह टकरा जाती।।
कौंन है वो.........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


मुसीबतों से वह जब घिर जाती,
आंसुओं में ही दुःख सह जाती।
उन्मुक्त सदा वो मंजिल पाने को,
रवि बनकर के वह राह दिखाती।।
कौंन है वो.........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


उठती गिरती वो लहरों की भाँती,
कभी प्रकटती वो कभी खो जाती।
मिटते उभरते वेदनाओं के स्वर,
पल पल आशा के दीप जलाती।।
कौंन है वो.........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


बन सरोज कीचड़ में खिल जाती,
सुरभि बनकर जग में घुल जाती।
खोलकर पंख हौसले के वह तो,
नित नित नवल इतिहास रचाती।।
कौंन है वो............
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


त्याग तपस्या की अदम्य विभूति,
है सृष्टि की अवर्चनीय खूबसूरती।
सतत प्रवाहिनी स्रोतस्विनी सी,
विधु के मनोयोग की सौम्य मूर्ती।।
कौंन है वो............
वो नारी है बस,निशदिन चलती।।



सत्यप्रकाश पाण्डेय


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

कुण्डलिया


कोरोना  के   कहर  से,   अखिल  विश्व  घबराय।
सब    इससे    कैसे    बचें,  सूझै    नही   उपाय।
सूझै   नही   उपाय,  बंद    सब   काम   धाम  हैं।
कैसे  मन  समझाय,  व्यथित  हर  सुबह  शाम हैं।
कहत 'अभय' समुझाय, हाथ मल मल कर धोना।
भीड़   भाड़   से   बचो,   रुकेगा   तब   कोरोना।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कवि✍️डा. राम कुमार झा " निकुंज " रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली


विधाः दोहा
शीर्षकः 👰तन्हाई😢


यौवन   सरित   उफ़ान  पर , मादकता भर नैन।
तन्हाई   के    दर्द  से , सजनी   दिल      बेचैन।।१।।


अश्क   नैन  से  हैं  भींगे ,  पीन   पयोधर गाल। 
रूठो   मत   इतना   सज़न , है चितवन बेहाल।।२।।


बाट    जोहती   श्रावणी , बीता अब   मधुमास। 
चित्त चकोरी आश में , बरस    बुझाओ  प्यास।।३।।


तन मन धन अर्पण किया , सजन तुम्हारे नाम। 
रनिवासर खोयी सनम , समझ तुझे  घनश्याम।।४।।


तड़प  रही रति विरहणी, बीता  अब  मधुमास।
कुटिल हृदय मोहे सजन, तोडा़  दिल  विश्वास।।५।।


सोची  थी    होगा  मिलन, आएँगे      मनमीत।
भूलूँगी    सब    वेदना    , गाऊँगी      मधुगीत।।६।। 


क्षमा करो   भूलो  सनम , लौटो  सजनी   पास।
सलिल हीन बस मीन सम,तड़पी  हूँ   हर श्वांस।।७।।


बार बार जलती अनल,सिद्ध करूँ   निज प्यार।
एकबार अभिलाष मन ,मिलूँ  सजन   दिलदार।।८।।


माँग सजाऊँ  सजन से , समा  प्रीत   गल बाँह।
कंठहार प्रिय  प्रियतमा , मानो प्रिय   मन  चाह।।९।।


आलोकित कर प्रीत से,विरह पीड .निशि चन्द।
कर निकुंज कुसमित फलित,प्रेम गंध मकरन्द।।१०।।


तन्हाई    साये     तले ,  जीऊँ   हूँ  दिन    रात।
अब न आये तुम सजन , मरकर     दूँ  सौगात।।११।।


कवि✍️डा. राम कुमार झा " निकुंज "
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर छत्तीसगढ़

"इश्क दिखाना नही आता"
""""""""""""""""""""""""""""""""''''""
वो कहती है...
हमे इश्क करना नही आता
अगर कही मैं रुठ जाऊँ 
तो उसे मनाना नही आता
मेरी पसंद - नापसन्द 
उसे कुछ नही पता
मेरी खमोशी की अल्फाज
वो समझ नही पाता
लाख सजलूँ-सवरलूँ
पर मेरी तारीफ में 
एक शब्द भी नही कहता
ये कैसा सितमगर बालम है 
जो मेरी भावना को समझ नही पाता
कैसे समझायें यारो उसे
उसकी हर अदा पे प्यार आता है
इश्क करना भी आता है
इश्क जताना भी आता है
बस फर्क इतना है 
हमे औरों की तरह दिखना नही आता ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर छत्तीसगढ़
9772727002
©®


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड

भोजपुरी चइता लोक गीत -3- बयार पुरवा ये रामा 
लगे लागल आम के टिकोरवा ये रामा |
चइत मासे |
बहे लागल बयार पुरवा ये रामा |
चइत मासे |
मसूरी मटर खूब गदराई गइली |
पीयर सरसो अब नियराई गइली|
मगन कोयल गाए गनवा ये रामा |
चइत मासे |
पाकल बाली गेहूँ खेतवा लहराये |
पागल पपीहवा पीहू पीहू गाये |
चुये टप टप महुआ रस मदनवा ये रामा |
चइत मासे |
अँखियाँ मे नसा चढ़ल गोड्वा न जमीन पड़े |
बहकल बदनवा सजनवा कहा कहे |
मदन सतावे गोरी नजरवा ये रामा |
चइत मासे |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


हलधर

मुक्तक -आजादी और चरखा 
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तलवारों पर गर्दन वारीं ,भालों से वक्ष अड़ाये थे ।


नाखूनों  से  पर्वत  काटे , लोहे के चने चवाये थे ।।


कुछ लोग मानते हैं ऐसा आजादी चरखे से आयी ,


फिर क्यों लाखों माँ बहनों ने अपने शृंगार चढ़ाये थे ।।


हलधर -9897346173


प्रदीप कुमार सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)

गीतिका का व्याकरण, तू गीत का विज्ञान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर, प्रेम का प्रतिमान तू है।।


भावनाओं का समंदर नेह का भंडार तू है ।
तू समर्पण का शिखर है प्रीति का अभिसार तू है।
स्वप्न मेरे चक्षुओं का धड़कनों की ताल लय तू।
सौम्यता तू चाँदनी की रूप का श्रंगार तू है।


आशिकों की आशिकी तू इश्क का उन्वान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर, प्रेम का प्रतिमान तू है।।


कवि की करुणा से जो उपजा था कभी वह छंद है तू।
मात्र क्षण भर का नहीं है शाश्वत आनंद है तू।
तितलियों को लग रही तू पंखुड़ी फूलों की नाजुक।
किंतु भौंरें जानते हैं फागुनी मकरंद है तू।


तू गुलाबों की महक है काम का दिनमान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर प्रेम का प्रतिमान तू है।।


सभ्यता तुझसे यशस्वी दिव्यता का मान तुझसे।
तू हया का रंग पावन सादगी की शान तुझसे।
सृष्टि की संकल्पना तू संस्कृति युगश्रेष्ठ की है।
इस धरा से उस गगन तक कौन है अनजान तुझसे।


असलियत से आज भी अपनी मगर अनजान तू है।
तू मुहब्बत की धरोहर प्रेम का प्रतिमान तू है।।


प्रदीप कुमार
सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)


मासूम मोडासवी

आये हैं  तलब  लेकर लोटेंगे सीफर लेकर
कैसाये नसीब अपना आया है बशर लेकर


ऐक  आगसी जलती हुइ सीने में सदा पाई
बरसे  हैं  सदा  बादल  माथे पे शरर लेकर


चाहत की तमन्ना ने खींचा हमें उस जानिब
छोटाबडा साया जहां चलताहे कमर लेकर


शीरीं सी  जबां  अपनी रखते हैं जहां वाले
हर सीमत नजर आया हर हाथ सीफर लेकर


मौकेतो बहोत आये ख्वाबों को सजाने के
जीना भी नहीं आया बंदो को हुनर लेकर 


मासूम  जमाने  के  अजब  तेवर  नये देखे
जीते  हैं सभी देखो बदले की नजर लेकर


                             मासूम मोडासवी


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल            713/16, झज्जर (हरियाणा )

क्या ठीक है.... 


महबूब को हाल -ए -दिल सुनाना ठीक है. 
अपने दिल की आरज़ू बताना ठीक है. 


वैसे तो उसकी खातिर हाज़िर है जान, 
लेकिन उसे प्यार में, सताना ठीक है. 


राह चलते -चलते आँखे चार हो गयी, 
यूं उसका मुझे देख लज़ाना ठीक है. 


बिन मिले उससे, दिल मेरा लगता नहीं, 
क्यों अंदर ख़्वाहिश को दबाना ठीक है. 


मेरे सामने आकर खामोश हो जाना, 
और मेरे बाद, बातें बनाना ठीक है. 


नज़र को बचाकर रुमाल नीचे गिरा दिया, 
अदा से उनका,  झुककर उठाना ठीक है. 


एहसास का बंधन तुमसे जुड़ गया "उड़ता ", 
तेरा तहज़ीब से रिश्ता निभाना ठीक है. 



मौलिक रचना 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
          713/16, झज्जर (हरियाणा )
          संपर्क -9466865227
          udtasonu2003@gmail.com


कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)


   *कोरोना वायरस*
   मनहरण घनाक्षरी
  ^^^^^^^^^^^^^^^
चीनी   वायरस  आया,
पूरे  विश्व   को  डराया,
नाम कोरोना   कहाया,
       सतर्क हो जाईये।
❄🔅
आज  के  हो  भगवान,
बन     गये     बलवान,
मचा   दिये    कोहराम,
          दूर कर जाइये।
🔅❄
सर्दी  खासी  बहें नाक,
सांसों  में हो  व्यवधान,
कोरोना   का  पहचान,
        नहीं डर जाइये।
❄🔅
माँस कभी नहीं खाना,
डॉक्टर को है दिखाना,
हाथ   धोना  बारम्बार,
     आज से मिटाईये।


                *******


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"अबला बन सकती है सबला"*
(कुकुभ छंद गीत)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
"""""'"""""""""""""''""""""""""""""'"''""""""""
¶प्यार भरा बंधन है परिणय, कोई व्यापार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।
दहेज से धन मिल सकता है, पर मिलता प्यार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶बलि-बेदी पर और बेटियाँ, कब तक चढ़ती जायेंगी?
प्यार समझकर पीड़ा को ये, कब तक सहती जायेंगी??
पीड़ा तो पीड़ा ही होती, वह नेह दुलार नहीं है
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶अगणित भावों का है सागर, मन की गागर को भालो।
भावों के तीरों से इसको, और न जर्जर कर डालो।।
करे न कोई नारी जैसा, जग में उपकार कहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶उद्वेलित-मन कभी-तरंगें, बंधन सातों फेरों को।
प्लावन कर दें न कभी ये भी, तोड़ तपन के घेरों को।।
दुर्गा-रूप कभी ले सकती, नारी साकार कहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶ठोकर खाकर आगे नारी, चुप हो न करेगी देरी।
गूँज उठी है उसके भी अब, हाथ-क्रांति की रणभेरी।।
क्लेश-कष्ट हर हरने वाली, नारी भू-भार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।


¶लक्ष्मी-दुर्गा-सरोजिनी भी, शक्ति-सरूपा थीं नारी।
अबला बन सकती है सबला, पड़ सकती नर पर भारी।।
भूले से अब कहे न कोई, उसका अधिकार नहीं है।
नारी जैसा उत्तम कोई, जग में उपहार नहीं है।।
""'''""""""'''"""""""""'''''"""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""""''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

💀कैरोना आतंक😢
विपदा  है  चारों तरफ , कैरोना आतंक।
त्राहि त्राहि जग में मचा , राजा हो या रंक।।
रहें सहज परहेज से, स्वच्छ रहे इन्सान।
नमस्कार बस दूर से, अर्पण हो सम्मान।।
मास्क पहन निकलें सभी , बचें सर्दी जुकाम। 
करें स्वयं की सुरक्षा , करें गेह विश्राम।।
मांसाहारी  मत बने , तजें नशा का रोग।
पान करें ऊष्मित सलिल, करें सभी सहयोग।।
रखें ध्यान संतान का, स्वच्छ रखें परिवेश।
सदा चिकित्सक मंत्रणा, स्वयं स्वस्थ हो देश।। 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


नूतन लाल साहू

अंतर
पहले पूजा पाठ में
घी का दीपक जलाएं जाते थे
अब जलती हुई,मोमबत्ती बुझाकर
बर्थ डे, मनाये जाता है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
शादी में लड़की मंगनी का रस्म
बाप दादा निभाते थे
सात जन्मों का रिश्ता होता था
अब लड़की,पसंद कर लड़का ही
ब्याह रचाते है
अनेकों दुल्हन,दो चार साल बाद
फुर्र हो जाते है
हर गाव में,देखो कितने ही
परित्यकता बैठे है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
पहले बहू, डरती थी
सास कैसे मिलेगा
अब सास, डरती है
बहू कैसे मिलेगी
क्योंकि अब तिजौरी का चाबी
बहू के पास होता है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
पहले चार आने के साग में
पूरा परिवार खा ले
अब,चार रुपए का साग
अकेला खा जाता है
बरसात में पानी
ठंड में कड़ाके की ठंड और
ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ता था
अब समय, अनफिस्कड़ हो गया है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को कलेजा चाहिये
नूतन लाल साहू


 


संजय जैन बीना (मुम्बई

*भरोसा..*
विधा : गीत


 लूटकर सब कुछ मेरा,
और क्या लूटने आये हो।
दिल के खालीपन को,
क्या देखने आए हो।
दिल है ये मेरा,
कोई धर्मशाला नहीं।
जिसमे लोग आते,
और जाते रहते है।।


चोट हमने खाई है,
तुम्हें है क्या पता।
अपने बनकर मुझे,
अपनो ने ही डसा।
अब में किससे कहूँ,
मुझे मेरे ने ही डसा।
जिस पर था यकीन,
वही गैर निकला।।


अब तो इंसानों पर,
है नहीं भरोसा।
क्योकिं इंसान को,
इंसान ही खा रहा।
जब इंसानियत ही,
दिलों में जिंदा नही।
फिर क्यो इंसानों से,
हम उम्मीदे रखे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
14/03/2020


एस के कपूर* *श्री हंस बरेली

*चाहो तो छू सकते हो आसमान।।।।।*
*।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


हौंसला   सितारों    को भी 
करीब ले   आता है।


हिम्मत से आदमी चाँद पर
भी पहुँच जाता  है।।


साहस से  निर्जीव में  प्राण
आ सकते हैं दुबारा।


जो डूब जाता   तन मन  से
मंज़िल वही पाता है।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस बरेली

*।।मित्रता पूँजी सबसे बड़ी।।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


तमाम उम्र   ही   गुजर   जाती,
दोस्ती को  बनाने  में।


पर पलभर की  देर नहीं लगती,
उसको    गवांने    में।।


ताजिंदगी   लगा   दीजिये  आप,
निभाने  में  रिश्तों को।


सच्ची दोस्ती दौलत   सबसे बड़ी,
आज भी इस ज़माने में।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब।।  9897071046 ।।।।
8218685464 ।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली

*।यूँ जियो कि कोई भूले न आपको।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


किसी दिन तुम भी कोई बीता
सा इतिहास बन जायोगे।


भूतकाल की भीड़ में गुम बस
बेहिसाब    बन   जायोगे।।


यदि जियोगे  जीवन  सहयोग
और    सद्भावना     से ।


बन जायोगे   सबके  प्रिय तुम
और  खास बन जायोगे।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046  ।।।।।।।
8218685464   ।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"उपदेश"*
"देते रहे उपदेश वो तो साथी,
किया नहीं कोई काम-
करते रहे आराम।
मिल जाये सुख  सारे जग मे,
कभी भजा नहीं -
प्रभु का नाम।
बैठे -बैठे देते रहे उपदेश,
बना कर संतो का-
छद्म वेष धर कर नाम।
मुँह में राम बगल में छुरी,
करा नहीं जीवन में-
कोई भला काम।
राम नाम की महिमा का, 


करते रहे गुणगान-
पहचाना न किया कोई काम।
देते रहे उपदेश वो तो साथी,
किया नहीं कोई काम-
करते रहे आराम।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
    14-03-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

भाव के भूखे है प्रभु
भाव ही उन्हें स्वीकार है
भाव से अर्पण जो करो
तो भवसागर भी पार है


छोड़कर दुविधाएं सभी
भजो भाव से भगवान को
मिट जायेंगी बाधाएं
तुम पाओगे अंजाम को


प्राणी मात्र का आश्रय
वह जग का आधार है
उसके शिवाय कुछ भी
नहीं जगत में सार है


राग द्वेष तज मानव
तू करले ईश्वर से प्यार
शुद्ध होंगी भावनाएं
फिर धरा लगे परिवार।


🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


राजेंद्र रायपुरी

😊मन अति उछाह😊


चैत्र माह,
मन अति उछाह,
रामनवमी संग,नवरात्रि।
बहेगी,
भक्ति की बयार,
देश और प्रदेश।


गूॅ॑जेंगे,
माॅ॑ के जयकारे।
होगी आराधना,
शक्ति की, 
करने नाश,
दूष्टों का।


है मास,
ये ख़ास।
होगा,
नव-वर्ष का,
आरंभ,
इसी मास।
तभी तो है,
मन अति उछाह।


।। राजेंद्र रायपुरी।।


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

Corona virus effects on Weddings 😂


मोदीजी की तरह खादी में
कल हम गए एक शादी में !!!!!!!


चारों तरफ डेटॉल और फिनायल 
की खुशबू महक रही थी
सिर्फ करोना वाइरस की ही 
चर्चा चहक रही थी


रिश्तेदार मिल रहे थे ...
आपस में हँसते हँसते 
हाथ मिलाने की बजाय 
कर रहे थे ..सिर्फ नमस्ते


सब दूर दूर खड़े थे 
शादी वाले हॉल में 
मास्क ही ..मास्क रखे थे 
पहली पहली   स्टॉल में


इत्र वाले को मिला हुआ था
सैनेटाइजर छिड़कने का...टास्क
महिलाएं पहने हुए थी 
साड़ी से मैचिंग वाला...मास्क


दूल्हा दुल्हन जमे स्टेज पर
थोड़ा   दूर   दूर   बैठकर 
वरमाला भी पहनाई गई 
एक दूजे पर   .. फेंककर


हमने भी इवेंट को देखा 
स्क्रीन पे   थोड़ा दूर से 
मेकअप दुल्हन का भी 
किया गया था कपूर से 


फेरों में भी      उनके हाथ 
एक दूसरे को नहीं थमाए गए
और तो छोड़ो   उनके फेरे भी 
सौ मीटर दूर से कराए गये


इधर   हम थूकने गए 
अपने  पान की पीक
उधर दूल्हे को आ गई 
बड़ी जोर से   छींक


एक सन्नाटा सा छा गया 
उस पंडाल में चारों ओर
दुल्हन को गुस्सा आ गया और
चली गई नहाने   मंडप को छोड़


माफी लगा माँगने सबसे
तब दूल्हे का बाप 
रिश्तेदार एक दूजे की
शकल रहे थे ताक


छोड़कर खाना भूखे ही 
मेहमान घर को भागने लगे
मेहमान तो छोड़ो हलवाई भी
बोरिया बिस्तर बाँधने लगे


हम शादी में जाकर भी 
यारों रह गए भूखे सरीखे..
जैसी हमपर बीती वैसी
किसी पर भी ना बीते 


करोना देवी   मेरी तुमसे 
एक विनती है   हाथ जोड़कर
इस दुनिया से अब तुम जाओ 
जल्दी ही  मुँह  मोड़कर


लेकिन सबक जरूर  सिखाना 
तुम उनको   सीना तान कर
जो मँहगा सामान बेचकर, 
लूट रहे है लोगों को तेरे नाम पर। 
(रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)
🤣🤣🤣stay safe🤣🤣🤣


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

श्री राम चरित मानस में श्री रामजन्म भूमि अयोध्या का वर्णन


बन्दउँ अवधपुरी अति पावनि।
सरजू सरि कलि कलुष नसावन।।
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी।
ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि अब मैं अति पवित्र श्रीअयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्रीसरयू नदी की वन्दना करता हूँ।फिर मैं अवधपुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभुश्री रामजी की ममता कम नहीं है अर्थात बहुत अधिक है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  अयोध्या को अति पावन कहने का भाव यह है कि सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी कहा गया है।यथा,, 
अयोध्या मथुरा माया काशी काँची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती ज्ञेया सप्तपुरयश्च मोक्षदा।।
ये सातों पुरियां भगवान विष्णु के अंग में हैं।इनमें अयोध्यापुरी का स्थान मस्तक में है।
  तीर्थराज प्रयाग कहीं नहीं जाते परन्तु श्रीरामनवमी के दिन वे भी अयोध्या आते हैं।यथा,,,
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।।
  अयोध्या धाम की महिमा का वर्णन गो0जी ने उत्तरकाण्ड में प्रभुश्री रामजी के श्रीमुख से स्वयं कराया है।यथा,,,
सुनु कपीस अंगद लंकेसा।
पावन पुरी रुचिर यह देसा।।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि।
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा।
मम समीप नर पावहिं बासा।।
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी।
मम धामदा पुरी सुखरासी।।
  स्कन्दपुराण, रुद्रायमल,वशिष्ठसंहिता,
रामसुधा आदि कई ग्रन्थों व पुराणों में भी अयोध्याधाम के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन मिलता है।रुद्रायमल में श्लोक संख्या 61 से 64 तक भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को अयोध्यापुरी की महिमा का गान किया है।यथा,,,
  भगवान शिवजी कहते हैं कि हे पार्वती!मन लगाकर अयोध्या की महिमा सुनो।अ वासुदेव हैं, य ब्रह्मा है और उ रुद्ररूप है, ऐसा मुनीश्वर उसका ध्यान करते हैं।सब पातक और उपपातक मिलकर भी उससे युद्ध नहीं कर सकते, इसीलिए उसका नाम अयोध्या है।भगवान विष्णु की यह आद्यपुरी उनके सुदर्शन चक्र पर स्थित है।यह पृथ्वी का स्पर्श नहीं करती है।यहाँ बहने वाली सरयू नदी में स्नान करने से कलियुग के समस्त पापों का नाश हो जाता है।यहाँ के समस्त नर नारी भी बड़े पुण्यवान हैं क्योंकि वे सभी जगन्नाथ स्वरूप हैं।इसीलिए वे सभी प्रभुश्री रामजी को अतिशय प्रिय हैं।इसी कारण साकेतधाम गमन के समय प्रभुश्री रामजी उन सभी को अपने साथ ही ले गये थे।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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