भोजपुरी गजल- ठीक नईखे |
दिल लगाके दिल तोड़ल केहु के ठीक नईखे |
प्रीत लगाके मुंह मोड़ल केहु से ठीक नईखे |
कईली केतना प्यार तोहसे का काही हम |
छोड़ हमरा दिल दुशमन से जोडल ठीक नईखे |
राज क बात बा राज ही रहे दा अब |
बेवफा तू गाड़ल मुरदा उखाड़ल ठीक नईखे |
आँख से आँख मिला के देखा एक बार |
लहरात प्यार क गागर फोड़ल ठीक नईखे |
रख़ब तोहके अपने दिल मे करेजा नियन |
करेजा के कागज नियन फाड़ल ठीक नईखे |
तोहरे एक मुस्कान हजार जान कुर्बान बा |
कदरदान के मजधार मे छोडल ठीक नईखे |
रहा हरदम जवान जईसे गुलाब के बगान |
आशिक मेहरबान के निचोडल जान ठीक नईखे |
हमरी आँख के आँसू के मोल तू का जनबू |
यार टुटल घाव दिल के कूदेरल ठीक नईखे |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी बोकारो झारखंड
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"हाहाकार"
हाहाकार मचा है जग में,
मचा हुआ कोहराम सब जगह,
कैसे भागेगा कोरोना?
फैल रहा यह घोर भयंकर।
अफरातफरी मची हुई है,
आपाधापी मेँ ही जीवन,
कैसे मानव बचें सुरक्षित?
यक्ष प्रश्न यह आज बना है।
चौतरफा है तालाबन्दी,
सभी जगह मंदी ही मंदी,
करने को हादसा कोरोना,
चाल चल रहा मारक गन्दी।
ठप पड़ गयी है जनसंख्या,
अलग-थलग मानव की संख्या,
भयाक्रांत है सारी दुनिया,
क्या घट जायेगी जनसंख्या?
कोरोना की फौज भयानक,
दौड़ रही सर्वत्र अचानक,
चीन अनैतिक कर्मी गन्दा,
सदा प्रदूषित संस्कृति मानक।
कोरोना से लड़ो बहादुर,
साफ-स्वच्छ बनने को आतुर,
धैर्य न खोना मेरे मित्रों,
कुचलो दुष्ट-कोरोना-माहुर।
दूषित अपसंस्कृति को कुचलो,
भारतीय संस्कृति पर उछलो,
हाथ जोड़कर मिलो सभी से,
निर्मल पावन कृति पर मचलो।
कोरोना का सर्वनाश कर,
शुचि भावों से उसे मारकर,
निष्क्रिय कर दो कोरोना को,
उसके विषमय कृत्य जारकर।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
सुख-दुःख से ऊपर उठे यह सारा संसार।
श्री माता की कृपा से बने विश्व परिवार।।
बरसे कृपा सभी के ऊपर।सब बन जायें अतीव सुन्दर।।
माँ!करना मूल्यों की वर्षा।धरती बने स्वर्गमय सहसा।।
मरु प्रदेश को हरित बनाओ।बनी अन्नपूर्णा घर आओ।।
दुःख-दरिद्रता सब मिट जाये।जंगल में मंगल आ जाये।।
मानव मन में सात्विकता हो।निर्मलता नित नैतिकता हो।।
घर-आँगन में वैभव रेखा।दिखे सर्व-सर्वत्र सुलेखा।।
तुलसीदल का भोग लगे अब।निर्दल मन का योग जुटे अब।।
उठें सभी माया से ऊपर।बढ़ जाये विश्वास सभी पर।।
चलें हम सभी वंधन पारा।मिले हमें संन्यास सहारा।।
कुटी बनायें गंग नहायें।माँ चरणों में शीश नवायें।।
साफ बनें प्रिय सत्य बनें हम।माँ चरणों में मन हो हरदम।।
करो दया हे ज्ञानदायिनी।हंसवाहिनी महा स्वामिनी।।
वीणा-पुस्तक बनकर आओ।माँ महिमा के गीत सुनाओ।।
बनी माधुरी दिव्य धन दो विद्या का दान।
माँ कल्याणी शारदे!दो शिवता का ज्ञान।।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*'"दर्द"*
"दर्द जीवन में सहते रहे,
अपनी अपनी-
कहते रहे।
बेगाने के दिये दर्द का तो,
हिसाब कर देते -
अपनो के दिया दर्द सहते रहे।
भूल जाते अपना -बेगाना,
साथी जो वो संग -
जीवन में चलते रहे।
माने न माने वो तो साथी,
दिल की बात-
सुख जीवन का हरते रहे।
अपने तो अपने है साथी,
कह कर संग -
जीवन में चलते रहे।
बेगानो की हिम्मत नहीं,
साथी अपना बन-
जीवन भर छलते रहे।
भूल जाते दर्द अपना साथी,
अपनो के दर्द में साथी ,
हम भी जीवन भर-
यहाँ रोते रहे।
हँसते रहे अपनो की खातिर,
दिल का छिपा दर्द-
जीवन में सहते रहे।।"
ःःः सुनील कुमार गुप्ता
15-03-2020
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर
पलक झपकते ही कैसे, फिर से आ गया है संडे।
झटपट झटपट अब देखो आ भी जाएगा मंडे।
झूमो नाचों, खुशी मनाओ,दिल खोल के भंगड़ा पाओ,
मीठी सी झपकी,जादू की झप्पी और अपनों संग हो फन डे।
तो अपने और अपने संग मनाइये संडे और राँधा पुआ बनाइये और मनाइए फन डे!
आपका आज का दिन बहुत सुखद, सकून वाला,आरामदायक हो इसी शुभकामनाओं के साथ💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹💃💃💃💃🙏🙏🙏🙏
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर 🙏💐😃
सत्यप्रकाश पाण्डेय
हे राधे गोरी खेलो होरी मुझ कृष्णा के संग
अपना लें हम जीवन में यह फागुन के रंग
मैं रंग जाऊँ तेरे रंग तुम मेरे रंग रंग जाओ
मिलकर जीवन मोद मनाएं मेरे संग गाओ
सदा खुशी के बादल छाएं बरसे प्यार दुलार
तुम अर्धांग मेरे जीवन के तुम ही मेरा संसार
गौर वर्ण की आभा से श्याम वर्ण हुओं पीत
सब जग राधे रंग रंगों फिर दूर ये कैसे मीत
हे बृषभानु सुता तुम मोय अपने रंग रंग लो
नन्द यशोदा के लाला को राधे अपना कर लो।
युगलरूपाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
🙏🌹सुप्रभात🌹🙏
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
नये नये संकल्प लें
नये स्वप्न हम रोज बुन चलें
नये लक्ष्य हो नयी भित्तियां
ध्येय पंथ पर बढ़ चले
मन को अपने स्वच्छ करें,
सभी स्वच्छ हो जाय
कलुष अगर मन में रहे तो
पूरा जीवन ही तमस हो जाय।
+++++++++++++++
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
नूतन लाल साहू
भक्त और भगवान
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
भक्त की हालत देखी
उसकी हालत पर रोया
उनके दुख के आगे
अपनी शान शौकत पर रोया
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
पाव के छाला देखे
दुःख के मारे, रोया
पाव धोने के खातिर
खुशी के मारे,रोया
वो आंसू थे भरपाई
रिश्ते निभाने के लिये
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
उसके आने पर रोया
उसके जाने पर रोया
हो के गदगद प्रभु
चावल के दाने दाने पर रोया
बनवाली हो के, वो रोया
भक्त सुदामा के लिये
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
राधा तू बड़ी भागनी
कौन तपस्या किन्हीं
तीन लोक के मालिक
है तेरे आधीन
भक्त के खातिर
भगवान ने रोया
जितना राधा रोयी रोयी
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
नूतन लाल साहू
राजेंद्र रायपुरी
😌 नई सदी का मानव बम 😌
नहीं तीर तलवार की,
आज ज़रूरत यार।
जिसको चाहो मार दो,
बिना तीर तलवार।
है कोरोना वायरस,
मानो तुम हथियार।
जिसको चाहो मार दो,
हाथ मिला दो बार।
मानव बम अब एक क्या,
ज़ग में कई हज़ार।
कैसी आज विडम्बना,
मन में करो विचार।
मचा हुआ हर देश में,
देखो हार हाहाकार।
सफल परीक्षण हो गया,
हम तो कहते यार।
नहीं बनेंगे तोप अब,
और नहीं मोर्टार।
अब कोरोना वायरस,
ही होगा हथियार।
झूठ नहीं है सच यही,
करो नहीं तक़रार।
दुश्मन को अब मिल गया,
बिना खर्च हथियार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।बरेली
*अभिमान।।काठ की हांड़ी समान।*
*।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*
मत डूबे रहोअभिमान में कि
सबकी बारी आती है।
नकली कलई अहम की तो
यूँ ही उतर जाती है।।
चूर चूर हो जाता है अहंकार
वक़्त की उल्टी मार से।
काठ की हांड़ी फिर आग
चढ़ नहीं पाती है ।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।
एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली
*बस प्रेम का काम मिले हमको*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*
जिस गली से भी गुजरें बस
मुस्कराता सलाम हो हमको।
किसी की मदद हम कर सकें
बस यही पैगाम हो हमको।।
दुआयों का लेन देन हो हमारा
बस दिल की गहराइयों से।
प्रभु से हो एक ही गुज़ारिश कि
बस यही काम हो हमको।।
*रचयिता ।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।
एस के कपूर श्री हंस* *श्री हंस।।।।बरेली
*प्यार का जहान।।।।।।।।।।।।।।।*
*मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
क्यों हम बांटते जा रहे इस,
सुन्दर से जहाँ को।
हमारी मंजिल कहीं और पर,
हम जा रहे कहाँ को।।
नफरत से मिलता नहीं कभी,
किसी को सुख चैन।
प्यार बसता हो जहाँ पर,
हम चले बस वहाँ को।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक श्री राम चरित मानस व्याख्या
सिय निंदक ओर माता कौशल्या की गूढ़ व्याख्या
सिय निंदक अघ ओघ नसाये।
लोक बिसोक बनाइ बसाये।।
बन्दउँ कौसल्या दिसि प्राची।
कीरति जासु सकल जग माची।।
प्रगटेउ जँह रघुपति ससि चारू।
बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।।
दसरथ राउ सहित सब रानी।
सुकृत सुमंगल मूरति मानी।।
करउँ प्रनाम करम मन बानी।
करहु कृपा सुत सेवक जानी।।
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता।
महिमा अवधि राम पितु माता।।
।श्रीरामचरितमानस।
प्रभुश्री रामजी ने अपनी पुरी अयोध्या में रहने वाले श्री सीताजी की निन्दा करने वाले धोबी और उसके समर्थकों के पापसमूह को नाश कर उनको शोकरहित बनाकर अपने लोक में बसा दिया।मैं कौशल्या रूपी पूर्व दिशा की वन्दना करता हूँ, जिनकी कीर्ति समस्त संसार में फैल रही है।जहाँ कौशल्यारूपी पूर्व दिशा से विश्व को सुख देने वाले और दुष्टरूपी कमलों के लिए पाले के समान प्रभुश्री रामचन्द्रजीरूपी सुन्दर चन्द्रमा प्रकट हुये।अब सभी रानियों सहित मैं राजा दशरथ को पुण्य और सुन्दर कल्याण की मूर्ति मानकर मन वचन और कर्म से प्रणाम करता हूँ।अपने पुत्र का सेवक जानकर वे मुझ पर कृपा करें, जिनको रचकर श्रीब्रह्माजी ने बड़ाई पायी तथा जो श्रीरामजी के माता पिता होने के कारण महिमा की सीमा हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
सिय निन्दक का तात्पर्य उस धोबी से है जिसने माता सीताजी की यह कहकर निन्दा की थी कि जिन्हें लंकेश्वर रावण अपहरण कर लंका ले गया था उन्हें रामजी ने अपनी महारानी बनाकर अयोध्या में रहने दिया।उसने अपनी पत्नी को सीताजी का उदाहरण देकर यह कहा था कि मैं रामजी जैसा नहीं हूँ जो पत्नी के दूसरे के घर रहने के बाद भी अपने घर में रख लिया।
इन पंक्तियों में गो0जी ने माता कौशल्या को पूरब दिशा कहा क्योंकि पूर्ण चन्द्रमा पूर्व दिशा में ही उदित होता है और भगवान श्रीरामजी को चन्द्रमा कहा।चन्द्रमा का प्रकाश शीतल और सुखद माना जाता है।यहाँ कमल को खल कहने का भाव यह है कि कमल की जिस जल से उत्पत्ति होती है, उसी से वह विमुख रहता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"अच्छा नेता"
साफ-स्वच्छ जिसकी छवि होय, राजनीति में कदम रखे वह.,
पारदर्शिता का हो भाव, करे समर्थन सदा न्याय का.
सच्चाई ही जिसका धर्म, वह नेता बनने लायक है.,
नहीं अनर्गल वार्तालाप, नपा-तुला हर बात कहे वह.,
सुने-गुने सबकी हर बात,दे निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ होकर.,
पक्षपात से कोसों दूर,दे निर्णय निष्पक्ष अनवरत.,
जिससे हो सबका कल्याण, उसी कर्म पर ध्यान रखे वह.,
सुने समस्या हो गंभीर, समाधान के लिये चल पड़े.,
मीठी भाषा मीठे बोल, से ही बात करे वह सबसे.,
दिल-दिमाग का इस्तेमाल, करता रहे कार्य सुन्दर में.,
सदा असुन्दर से हो दूर, सबके हित की करे चिंतना.,
मानवता में हो विश्वास, मानव सेवा हेतु समर्पित.,
हो निर्भीक निडर चालाक, बुद्धिमान अनुभवी कुशल हो.,
कहे बहादुर सा हर बात, अधिकारी से नहीं डरे वह.,
सदा संतुलित हो सब बात, बहुत संयमित जीवनशैली.,
रहे समय का नित पावन्द, समय-मूल्य को दिल से समझे.,
सदा साधना में हो लीन, बन जाये अति सुन्दर ढाँचा.,
दलितों का संवेदनशील, बनकर नित उद्धार करे वह.,
पूर्वाग्रह से होकर मुक्त, न्यायोचित व्यवहार करे वह.,
प्रिय कर्मों के प्रति सम्मान, दे कर्मों को शुभ परिभाषा.,
जिसमें ऐसे गुण मौजूद,समझो उसको अच्छा नेता।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
कला कलावति कालिका कलिमलहरण कवित्त।
प्रिय अम्बा माँ शारदे सबकी कृती-निमित्त।।
कवि बनने की शिक्षा दो माँ।तारक मंत्र सीखा दो हे माँ।।
बनी कालिका असुर भगाओ।दिल में दैवी भाव जगाओ।।
लिखें-पढ़ें हम तेरा वन्दन।करें सदा तेरा अभिनन्दन।।
काम करें अनवरत आपका।ज्ञान मंत्र दो सहज जाप का।।
चक्षु खुले अज्ञान मिटे सब।तुझपर पर ही नित ध्यान रहे अब।।
कलाविहीन रहे नहिं कोई।लिखे अमर साहित्य हर कोई ।।
बन संगीत सदा घर में रह।हृदय पटल पर गीत बनी बह।।
संस्कृत में शिव श्लोक लिखें हम।शिवमय बनकर सदा दिखें हम।।
भागे बहुत दूर मन -शंका।जलती रहे रावणी-लंका।।
सुन्दर मानव हमें बना माँ।गीता का अभ्यास करा माँ।।
हंसारूढ चली आ घर में।दिव्य भाव बन बैठ उदर में।।
यही सांत्वना हमें चाहिये।करुणामृत रस बनी आइये।।
सुन्दर प्रतिमा आपकी दिखे निरन्तर नित्य।
कल्याणी माँ शारदा एक मात्र अति स्तुत्य।।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"मेरी पावन मधुशाला"
रसमय जिसकी बोली-भाषा वह कैसा होगा प्याला,
रसमयता से ओतप्रोत जो वह किसी होगी हाला,
रसप्रधान का जो निर्माता वह कैसा होगा साकी,
मादक सहज सरस वर्षा करती प्रति क्षण मधुशाला।
नहीं विरोधी जिसका जग में वह कैसा होगा प्याला,
साध्वी जैसी गुण प्रधान जो वह किसी होगी हाला,
सबका साथी सब सहयोगी सा मेरा व्यापक साकी,
वैश्विक सद्भावों की गंगा सी निर्मल है मधुशाला।
ज्ञान-अर्थ के सहज संतुलन का हिमायती है प्याला,
सदा संतुलन से बहती है सुखदायी वैभव हाला,
दिव्य संतुलित जीवन जीने का उपदेशक साकी है,
श्वेत-लाल रंगीन व्यवस्था मेरी पावन मधुशाला।
जीवन साथी बनकर चलने को तैयार खड़ा पयला,
प्रीति सुधामृत सी बलखाती है मनोरमा सी हाला,
हिस्सेदार परम प्रिय अनुपम जिम्मेदार सदृश साकी,
सद्गृहस्थ आश्रम के चारोंधाम सरीखी मधुशाला।
नयी-नयी सी प्रीति नवेली सी सुगंधमय है हाला,
है विनम्र अतिशय उत्साहित दीवाना पीनेवाला,
साकी के भी क्या कहने हैं बना प्रेम साकार धवल,
प्रेमामृता पय पान करने को अति भावुक मधुशाला।
नहीं क्लिष्टता की गुंजाइश छोड़ा करता है प्याला,
सरल पयोनिधि प्रिया अमृता दिव्य पवित्रा मधु हाला,
अति साधारण असाधारण भाव शिरोमणि है साकी,
नारायणि सी सत्व समत्वा सभ्य सुभाषित मधुशाला।
रचनाकार,:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
" कहना मेरा मान लो प्यारे"
है मन में यदि नहीं मलाल, कहना मेरा मान लो प्यारे.,
करते रहना नित संवाद, कहना मेरा मान लो प्यारे.,
हो आपस में प्रेमालाप, कहना मेरा मान लो प्यारे.,
दो दिन का है केवल खेल, उड़ जाना है बना परिन्दा.,
होगी नहीं कभी भी बात, प्राण पखेरू भग जायेगा.,
प्रति पल जाने को तैयार, कुछ भी नहीं भरोसा इसका.,
यही तथ्य है अंतिम सत्य, कहना मेरा मान लो प्यारे.,
जब जायेगा चोला छूट,तरसोगे मिलने की खातिर.,
महा शून्य में इसकी दृष्टि, लगी हुई है नित्य निरन्तर.,
चाहो तो मिल लो क्षण मात्र, क्षणभंगुर यह अघ की काया.,
देख आत्मा को साक्षात, पिंजड़े में वन्द पड़ा है.,
तुझसे मिलने को बेताब, कहना मेरा मान लो प्यारे.,
नहिं मानोगे मेरी बात, पछताओगे आजीवन तुम.,
सोच -समझकर सुनो पुकार,दिल दरिया में प्रेम अंश यदि.,
नहीं मानना मेरी बात,दिल दरिया यदि सुख चुकी है.,
फिर भी आ सकते हो पास, बना अनमना दिलपत्थर हो.,
शव बन लेटा है यह देह, देही की ही करो विदाई.,
भले नेत्र में हो नहीं वारि, फिर भी कहना मान लो प्यारे.,
हठधर्मी बनना अन्याय,कहना मेरा मान लो प्यारे।
(आल्हा शैली में प्रस्तुत रचना)
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
माँ का ही अस्तित्व है जग को मिथ्या जान।
अखिल निखिल ब्रह्माण्ड में केवल माँ भगवान।।
माँ ही रहती है सत्ता में।कण-कण में पत्ता-पत्ता में।।
सकल सृष्टि है मात्र तुम्हीं से।तेजपुंजमय सिर्फ तुम्हीं से।।
तू ही सबकी शोकहारिणी।भयविनाशिनी सदाचारिणी।।
हितवादी सम्बन्ध तुम्हीं हो।विद्यामय अनुबन्ध तुम्हीं हो।।
है विवेक का हंस प्रतीका।ज्ञान सिन्धु है ग्रन्थ अनेका।।
वीणा की झंकार तुम्हीं हो।सम्पूर्णा-ओंकार तुम्हीं हो।।
श्वेत -वसन सात्विक श्रद्धास्पद।हरती रहती हो भय-आपद ।।
कारण-कार्य जनक-जानकी।बातें प्रति पल सत्य ज्ञान की।।
करुणामयी नित्य अविकारी।हरो क्लेश सब हे महतारी।।
शान्त मेघदूत बन बरसो।प्रेम-ज्ञान-भक्ति नित परसो।।
साथ तुम्हारा मात्र चाहिये।तुझसा दीनानाथ चाहिये।।
प्रेम पंथ हम नित गहें रहें तुम्हारे संग।
हे माता प्रिय शारदे!कर पावन सब अंग।।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"मेरी पावन मधुशाला "
जिसके भीतर प्रेम अनन्ता वह मेरा पावन प्याला,
प्रीति रसासव सी अद्भुत स्वादिष्ट मधुर मेरी हाला,
प्रेम पंथ के दिग्सूचक सा प्रेम दीवाना भी साकी,
प्रेम सिन्धु के उर में स्थापित मेरी पावन मधुशाला।
प्रेमपात्र बन सदा मचलता मेरा अति मोहक प्याला,
प्रेम रसामृत बन जिह्वा से मिलने को आतुर हाला,
प्रेम रत्न अनमोल खजाना का मालिक मेरा साकी,
विश्व प्रेम के विद्यालय सी मेरी पावन मधुशाला।
निज में प्रेम छिपाये बैठा है मेरा प्यारा प्याला,
निज भावों में मधुर समेटे आह्लादित मेरी हाला,
निजता के पावन प्रिय अमृत का वरदाता है साकी,
निज मन मुकुर सुघर मधुदर्शिनि मेरी पावन मधुशाला।
प्रेम विरोधी गतिविधियों के है विरुद्ध मेरा प्याला,
प्रेम वंचितों की औषधि सी सभ्य चंचला सी हाला,
प्रेमचिकित्सक जैसा बनकर देखत रोगी को साकी,
प्रेम-चिकित्सा के आलय सी मेरी पावन मधुशाला।
प्रेमसिन्धु के नौ रत्नों में मणि जैसा मेरा प्याला,
कामधेनु सी बनी हुई है मेरी प्यारी सी हाला,
रत्नाकर सा चमक रहा है मेरा प्रेमजड़ित साकी,
रत्नदेश के मादक मंथन से निकली है मधुशाला।
प्रेम-मदिर मधुशाला का कितना मादक होगा प्याला,
प्रेमपेय मधुरामृत आसव से भी मधुतर है हाला,
सकल विश्व के सकल चराचर को देता नित साकी है,
इच्छा हो यदि पीने को मधु आओ मेरी मधुशाला।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"इधर-उधर"
कोई नहीं है इधर-उधर
है भी तो इधर-उधर।
जहाँ देखता हूँ सब बेखबर
लगता जैसे सब बेघर।
कोई तो अपना हो
भले ही सपना हो।
हम तो सब स्वीकार करते हैं
सबका इंतजार करते हैं।
कोई तो हो
अच्छा या बुरा हो।
बुरे से भी मिलो
कमलवत खिलो।
बात हो या न हो
मन में खटास न हो ।
कोई कैसा भी हो
आप अच्छा बने रहो ।
आदमी रहते हुए भी नहीं है
जो कुछ है सब सही है।
सृजन बेजोड़ है
भले ही मुठभेड़ है।
जो न बोले उससे भी बोलो
ग्रन्थि को खोलो।
आत्मोद्धार करो
सबका सत्कार करो।
स्वयं निर्मल बनो
निर्दल बनो।
गुटवंदी सम्बंधों की दुश्मन है
मन में परायापन है।
विरोध से बचो
सुन्दर संसार रचो।
अधूरी कविता लिख रहा हूँ
मनुष्यता को नमन कर रहा हूँ।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
ब्रह्मतेजमय ज्ञानमय ममतामयी महान।
मातृ शारदे का करो सतत प्रीतिमय ध्यान।।
ब्रह्मनायिका ब्रह्मवादिनी।बनी लेखनी हंसवाहिनी।।
सदा पुस्तकाकार शरीरा।वीणा वादिनि मह-गंभीरा।।
भक्तों की रसना की शोभा।सरस अनन्त अमित नित आभा।।
महा व्योम बन तुम दिखती हो।पावन ग्रन्थों को लिखती हो।।
पारस बन कंचन रचती हो।ज्ञान अथाह सिन्धु सम सी हो।।
सर्व पर्व त्यौहार सकल हो।दयासिन्धु सम नेत्र सजल हो।।
दिव्य दीन-हित दिशा दशा हो।हरितक्रांतिमय मृदु वर्षा हो।।
खुश होती माँ जिसके ऊपर।करती उसको सबसे ऊपर।।
न्यायाधीश सर्वहितकारी।हृदयस्थिता सर्व पियारी।।
परमानन्ददायिका ज्ञाना।जग कल्याण हेतु विज्ञाना।।
सुन्दर नैतिक मनुज बनाओ।मानवतामय तरल पिलाओ।।
सदा तुम्हें ही याद करें हम।तुमसे सब फरियाद करें हम।।
दो सुन्दर वरदान माँ तव चरणों से प्यार।
बसो हृदय में अनवरत दो अपना घर-द्वार।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"मेरी पावन मधुशाला"
अंतस की ही सकल संपदा सदा देखता है प्याला,
व्यापक उर की प्रिया दिव्यता के वाष्पों की है हाला,
तीन लोक से न्यारे अन्तःपुर का दिग्दर्शक साकी,
पावन अन्तर्जग सी पावन मेरी पावन मधुशाला।
पारसनाथ विश्वनाथ की नगरी का मेरा प्याला,
बम बम बम बम सदा टेरती है मेरी पावन हाला,
शिव शिव शिव शिव कहते कहते शिव जिमि बन जाता साकी,
शिवशंकर की पावन नगरी शिवकाशी सी मधुशाला।
काशी के पावन मनभावन सा प्रिय पावन है प्याला,
काशी की मधुमय शिवता से बनी हुई मेरी हाला,
कालेश्वर श्री महादेव सा दयासिन्धु मेरा साकी,
रामेश्वर श्री महा धाम सी मेरी पावन मधुशाला।
काशी पंचक्रोश के यात्री सा चलता मेरा प्याला,
हर हर महादेव का नारा रोज लगाती है हाला,
सह-यात्री बन रामचन्द्र जी चलते दिखते साकी सा,
पँचक्रोशियों की टोली सी मेरी पावन मधुशाला।
काशीवासी रमते रहते बोला करते शिव -प्याला,
शिवमय मधुमय भंग जमाये बोल रहे हाला-हाला,
चेतन प्रभु सा ढोल बजाता मस्त फकीरा सम साकी,
मस्तानी शिवकाशी महिमा गाया करती मधुशाला ।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी बोकारो झारखंड
हिन्दी कविता – आज की युवा पीढ़ी |
आज की युवा पीढ़ी अपने संस्कार क्यो भूल गई |
माता पिता का प्यार गुरुजनों सम्मान भूल गई |
नेट मोबाइल का जमाना हुआ तो क्या हुआ |
जो सामने फिक्र नहीं माँ बीमार तो क्या हुआ |
नित करते परिवार अपमान एहसान क्यो भूल गई |
पिता की डांट सहना नहीं माँ की बात सुनना नहीं |
छोटों को प्यार बड़ो आदर नहीं दायरे मे रहना नहीं |
बनेंगे वे भी पिता और माँ ये वरदान क्यो भूल गई |
पढ़ाई मे खर्चा बहुत है परीक्षा लिखना परचा बहुत है |
किताब मे मन नहीं मोबाइल दोस्तो चरचा बहुत है |
संभालना उनको ही बागडोर हिंदुस्तान क्यो भूल गई |
खाने की फिक्र नहीं नसा की जिक्र करते है सभी |
गुटखा तंबाकू सिगरेट पान युवाओ फैसन है अभी |
नसा शराब कभी करती नहीं कल्याण क्यो भूल गई |
माँ बहन बेटी नारी इज्जत कोई करता नहीं |
कानून कायदा है कोई चीज कोई डरता नहीं |
नारी बलात्कार अत्याचार करता शैतान क्यो भूल गई |
लाज हया और शर्म का पर्दा अब उतार चले है |
फेसबुक व्हात्सप नेट पर युवा करने प्यार चले है |
संभहल जाओ युवाओ संस्कार है पहचान क्यो भूल गई |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
श्याम कुँवर भारती (राजभर) गीतकार /कवि /लेखक ढोरी ,बोकारो ,झारखंड
चंद शेर
• जितना चाहा तुझको क्या मेरा हो गया तू |
कितना यकीन दिलाया क्या मेरा हो गया तू |
• दिल मे जो नाम उसे जुबां पर लाते क्यो नही |
करके इकरार उससे गले मिल जाते क्यो नहीं |
• पुछते हो तुम्हें मै दिलाऊँ यकीन कैसे |
लेके मेरा नाम तू बन गया हसीन कैसे |
• प्यार भी इंकार भी और तकरार भी |
कहते क्यो नहीं तुम्हें इश्क हमी से है |
• तुम मुझसे दूरिया बनाए बैठे हो |
दिल मे क्या गम है छुपाए बैठे हो |
• दिखाते हो हुश्ने आफ़ताब जलवा जमाने को |
इक हमी से परदादारी किया करते हो तुम |
• तुम समझते हो तुम्हारी खामोशी समझ न पाएंगे |
मेरी मोहब्बत का बोझ दिल पर न लिया करो तुम |
• अब दिल ही दिल बात कर लेंगे हम |
इस तरह तेरे दिल घर कर लेंगे हम |
श्याम कुँवर भारती (राजभर)
गीतकार /कवि /लेखक
ढोरी ,बोकारो ,झारखंड
मोब -9955509286
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
एक चित्रात्मक घनाक्षरी
करती विनोद सदा, सखियों के साथ में तू,
जब भी निकलती हैं, उर में समाती है।
कोमल चरण जब, धरती हैं धरती पे,
चाल मतवाली देख, हिरनी लजाती हैं।
करती हैं जब बात, हँसते हैं सब गात,
अधरों से खूब मृदु, मुस्कान मुस्काती हैं।
आती है समीप कभी, दिल के करीब कभी,
पलकें झुकाके नैनों, से ही इठलाती हैं।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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