संजय जैन बीना (मुम्बई)

*आंसू*
विधा: गीत


मेरे आंसुओ की कीमत,
कोई क्या समझेगा।
लगे है घाव जो दिल पर,
उन्हें कोई क्या समझेगा।
क्या कोई मेरे घावों पर,
मलहम आ कर लगाएगा।
मेरे दुखते हुए दिल को,
कोई तो धैर्य बंधायेगा।।


दिल की धड़कने मेरी,
बहुत तेज चल रही।
क्या उन्हें कोई,
आ कर शांत करेगा।
और मेरे दिल में, 
अपने जगह क्या बनापायेगा।
बिखर चुकी मेरी दुनियाँ,
को क्या कोई फिरसे बसाएगा।
अपने प्यारे शब्दो से,
मेरे दिलको बहलाएगा।।


मेरे आंसू मेरी कहानी,
कह रहे है लोगो।
की कितना कुछ सहा,
मेरे इस दिल ने लोगो।
अब और सहा नहीं जाता,
मेरे इस शरीर से।
अब में कब्र में पाव,
लटका कर बैठ गया हूँ।।


समर्पित कर दिया मैंने,
अपने आप का जीवन।
अब इच्छा है नही मेरे,
और संसार मे जीने की।
क्योंकि बहुत देख लिया मैंने, 
अपनी इस छोटी सी उम्र में।
अब प्रभु सेवा से बढ़कर 
कुछ भी नही मेरे जीवन में।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
15/03/2020


देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"

.............गम के कई रंग.............


गम के  कई रंग होते  हैं  जमाने में।
परेशानी भी संग होते हैं  जमाने में।


जब अपनों की नज़र बिगड़ जाती;
रफ़ाक़त  कम  होते  हैं  जमाने  में।


बारहाँ  ऐसे   इल्ज़ाम  जड़े   जाते;
अदावत  संग  होते   हैं  जमाने  में।


अच्छे कर्मों के  हिसाब नहीं रखते ;
बुरे अंज़ाम संग  होते हैं  जमाने में।


हर तरफ जब एहसानफरामोश हो;
ख़ुदा  ही  संग होते  हैं  जमाने  में ।


बुरी आदत से,बाज़ नही आनेवाले;
खुद से  ही  तंग होते  हैं जमाने  में।


ज़ुस्तज़ु हो जब मन में"आनंद"की ;
हमदर्द ही  संग  होते हैं  जमाने में।


-----देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"


 


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

एक मुक्तक


वज़न - 1222      1222       1222      1222


जहाँ से जब कभी जाओ निशानी छोड़कर जाना।
हमेशा  ही  जुबानी  हो  कहानी   छोड़कर  जाना।
जमाने  की  किसी शौहरत  का लालच नही आये।
जमी दरिया दिलों  की हो  रवानी  छोड़कर जाना।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


रीतु प्रज्ञा             करजापट्टी, दरभंगा, बिहार

कांपे मेरा हिया


मेरे पिया हैं  दूर प्रदेश,
फैला रहा कोरोना वायरस संपूर्ण देश।
थर-थर कांपे मेरा हिया,
लागे न कहीं मेरा जिया।
हो गयी है उनसे मेरी अनबन,
बजा न सकती मोबाइल घंटी टनटन,
जा रे कागा , कहना उनसे मेरी बात
किसी से मत मिलाए हाथ।
साबुन से धो बारम्बार हाथ रखें साफ,
भारतीय परंपरा का सर्वत्र
 करें जाप,
गुनगुने पानी का करें सेवन,
निषेधात्मक उपाय अपना रहे चेतन।
अपने सिर ले न अधिक कार्य भार,
मुझे है उनसे प्यार बेशुमार।
                 रीतु प्रज्ञा
            करजापट्टी, दरभंगा, बिहार


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड

हिन्दी गजल- तेरा इंतजार तो है |
तू मुझे चाहे न चाहे दिल तेरा तलबगार तो है |
तूझे तलब मेरी हो न हो मुझे तेरा इंतजार तो है |
जब भी वक्त मिले आवाज दे देना तुम मुझे |
तू साथ चले न चले तेरी याद मेरी पतवार तो है |
लब कुछ कहे न कहे आंखे सच बया करती है |
मै खुश हूँ सच मे तुझे मुझसे बहुत प्यार तो है |
तू रहे जहा भी मेरी यादे चैन से रहने न देंगी |
ठुकराकर मेरी मोहब्बत तू मेरा गुनाहगार तो है |
क्या कहू तुझसे जो तूने वादे किए थे बहुत |
जमाना जाने न जाने तू मेरा राजदार तो है |
अपनी हुश्नों जवानी का गरुर है बहुत तुझको |
बागो भवरा की फूल को कभी दरकार तो है | 
अपने महबूब को मान खुदा सर आंखो भारती | 
कबुल नहीं मेरी मोहब्बत तू मेरा सरकार तो है | 
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


राहुल मौर्य 'संगम' गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश

शीर्षक - 'मेरे गीत'
विधा -गीत 


मेरे अधरों  पर  गीतों  का , अब  राग दिखायी देता है।
शब्द  से  भीगी  बारिश  में , संगीत  सुनायी  देता  है ।।


        विरह  वेदना  की  ज्वाला  में,
              अश्रु  से  डूबी  मधुशाला   में,
                     क्यूँ  उनसे मिलने की खातिर,
                            विश्वास   दिखायी   देता   है ।
             
मेरी धड़कन गीत बुन रही , वह  गीत दिखायी देता है।
शब्द  से  भीगी  बारिश  में , संगीत  सुनायी  देता  है ।।


          हाय ! नियति  के  इन पाशों से,
                मत   बाँधो   अपनी  साँसों   से,
                      क्यूँ अंत समय  जीवन  में अब,
                            मधुमास   दिखायी   देता    है । 


गीतों की महफिल के अंदर,हर गीत दिखायी देता है ।
शब्द  से  भीगी  बारिश  में , संगीत  सुनायी  देता  है ।।
 
          लहर  पीर  की  रह - रह उठती,
                कागज कश्ती झिलमिल करती,
                      क्यूँ   पार  उतर   जाने  में  तब,
                            संताप    दिखायी    देता     है ।


मेरे अधरों  पर  गीतों का , अब  राग  दिखायी देता है।
शब्द  से  भीगी  बारिश  में , संगीत  सुनायी  देता  है ।।


स्वरचित /मैलिक
राहुल मौर्य 'संगम'
गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश


सुबोध कुमार

वो मेरे दिल के फूल खिला जाती थी
वो जब भी मेरी गली में आ जाती थी


दिल खुद से ही ग़ज़ल कह जाता था
वह जब मुझे देख कर मुस्कुराती थी



जब भी तन्हा होता जाने क्या सोचता 
उसकी खुशबू  मुझे महका  जाती थी


उसकी झलक पाने छत पर बैठना मेरा
जाने वो कब कहां से वह आ जाती थी


उसको भी पता थी मेरे दिल की तड़प
याद मेरी भी उसको बहुत तड़पाती थी


गली से गुजरती क्या ढूंढती थी ऊपर
मुझे देखकर बाग  बाग हो  जाती थी


एक लड़की नाम मोहब्बत था उसका
वो  मेरी रातों  को दिन  कर जाती थी


क्या ढूंढ रखी थी जगह तन्हा सी उसने
देखो  मेरे दिल में  आराम फरमाती थी


मैं उसकी फिक्र में घुला  सा जाता था
वो मेरी लिए आंखों में रात बिताती थी


वह जन्नत की एक हूर सी थी मेरे लिए
हां वह थी मेरे सपनों  की शहजादी थी


           सुबोध कुमार


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"रिश्ते"* (दोहे) (भाग 1)
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
°रिश्ता रस है प्यार का, एक अमिट अहसास।
हियतर कोमल जान लो, समझौता है खास।।1।।


°रिश्ता तो अनुभूति है, बडा़ लहू से जान।
अपने हैं अनजान भी, अपने भी अनजान।।2।।


°रिश्तों की सीमा नहीं, ये हैं अतुल-अनंत।
निर्मल-सुखद प्रवाह ज्यों,महकत महक-वसंत।।3।।


°परिजन,पालक,पाल्यजन, रिश्ता जो भी होय।
मानवता से है बडा़, और न रिश्ता कोय।।4।।


°रिश्ता भान अमोल है, इससे मुख मत मोड़।
यह शुभ सुख अनुभूति है, इसे धरम से जोड़।।5।।


°रिश्ते बनते भाव से, करो न भाव अभाव।
भाव-भला भरपूर भर, रखना नीक स्वभाव।।6।।


°मन से कर निर्वाह जो, रखता रिश्ता टेक।
सच्चा रिश्तेदार वह, कर्म करे जो नेक।।7।।


°रिश्तों का मत मोल कर, होते ये अनमोल।
काल-कष्ट, सुख-संपदा, रिश्तों से मत तोल।।8।।


°कटुता का विष भूलकर, बैन मधुर है बोल।
रिश्ता सबसे जोड़ना, मन की गाँठें खोल।।9।।


°रिश्ते नेक बने रहें, कृपा करें भगवान।
'नायक' करता प्रार्थना, रिश्तों का हो मान।।10।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


हलधर

सरस्वती वंदना 
-----------------


हे  मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।
वाणी से जग को जीत सकूँ ,मेरे गीतों में लय भर दे ।।


शब्दों छंदों का भिक्षुक हूँ ,मैं मांग रहा कुछ और नहीं ।
जाने कब सांस उखड़ जाय ,जीवन की कोई ठौर नहीं ।
मेरी छोटी सी चाह यही ,धन दौलत की परवाह नहीं ,
इस शब्द सिंधु को पार करूँ ,उन्मुक्त कल्पना को पर दे ।।


कलियों के हार बनाये हैं , तुझको पहनाने को मैया ।
 फूलों से रस खिचवाये हैं ,तुझको नहलाने को मैया ।
खिड़की दरवाजे छंद कहें ,दीवारें गीत ग़ज़ल गायें ,
तुलसी की चौपाई गूँजें ,ऐसा मुझको सुरभित घर दे ।।


काया ये मांटी का पुतला ,मानव औ पशु में अंतर क्या ।
वाणी बिन पता नहीं चलता ,गाली या जंतर मंतर क्या ।
पूरी अब खोज करो मैया ,वाणी में ओज भरो मैया ,
गूजूं मैं दसों दिशाओं में ,मैया मुझको ऐसा वर दे ।।


दिनकर जैसा कुछ लिख पाऊँ ,मुझको वरदान यही देना ।
जन गण के ओज गीत गाऊँ ,मुझको अनुमान सही देना ।
तेरे चरणों में बिछ जाऊँ , धरती से नभ को खिंच जाऊँ ,
दुनियाँ में गीत अमर होवें , "हलधर" को ऐसे अक्षर दे ।।
हे मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।।।।


हलधर - 9897346173


प्रिया सिंह

चेहरा उसका फूलों से सजा गुलदस्ता तो नहीं है
ये अहल-ए-नजर का बनता वाबस्ता तो नहीं है


मैं करवट बदल बदल तारे गिनता रहता हूँ छत पर
कहीं मुझको देख ये मगरूर चाँद हँसता तो नहीं है


बस एक दीद के लिये जहद-ए-मुसलसल करते थे
वो मेरा हमनशी मुझे  पागल समझता तो नहीं है 


विसाल-ए-यार का ये मुसाफ़त नया नया सा है
पाक दामन में पलता पाकीज़ा राब्ता तो नहीं है 


ये तमाम सड़क शहर भर की फूलों से सजी होगी
ये चाहत का सुहाना सफर उतना सस्ता तो नहीं है 


उसका बन्द आंखों से चुपचाप इबादत कर दूँ मैं तो
वो शख्स कार-ए-मोहब्बत का फरिश्ता तो नहीं है  


शब-ए-गम जब गुजरे तब गुजरे इश्क में बेशक 
ये कांच जैसा फर्श पर हमेशा बिखरता तो नहीं है 


हार पाकर गर बस जाएँ उनके जहन-ओ-दिल में 
ये तो जीत होगी मेरी यहाँ पर शिकस्ता तो नहीं है 


ये रंग-ए-जुनूँ ये शब-बे-दारी के करार पर गुजरना
वो इस बेक़रारी वाली बातों से दानिस्ता तो नहीं है 



Priya singh


निधि मद्धेशिया कानपुर

*शगुन*


मसोसती मन गरीबी, 
देख अमीरों के खाते।
थे रंगहीन, हुए रंगीन 
मन के अहाते। 
रास आए न फिर भी जग को
हँसी के संग आँसू छलछलाते।
आता है कई बार मन में
लिपट कर वृन्दावन रज से
कान्हा की गोपी कहाते।
गुलाल से तुम्हारे 
स्वयं को भिगाते।
दिया जो दर्द समझ *शगुन* 
लगाए सिर-माथे...💐


7:16
14/3/2020
निधि मद्धेशिया
कानपुर


गोविंद भारद्वाज, जयपुर

जल रही है धरा तप रहा है गगन
छद्ममय इस प्रगति से हुआ लाभ क्या?


पानी उतरा चला आज पाताल को,
दे रहे हम निमंत्रण स्वयं काल को,
नित सजाते रहे झूठ के आँकड़े,
हमको ऐसी कुमति से हुआ लाभ क्या?


काटकर वन उगाते रहे हम भवन,
पी रहे अब गरल करके दूषित पवन,
पेड़-पौधों को मारा, बसाए शहर,
इस हरितिमा की क्षति से, हुआ लाभ क्या?


नित्य नदियों में कचरा बहाते रहे,
हम भगीरथ के वंशज कहाते रहे,
पुण्य पुरखों के हमने सहेजे नहीं,
तप से ऐसी विरति से, हुआ लाभ क्या?


धरती माता है इसकी सुरक्षा करो,
पानी बरसेगा फिर जंगल से भरो,
वेद गाएँगे फिर से ऋचाएँ यहाँ,
थोथे नारों की वृति से हुआ लाभ क्या?


गोविंद भारद्वाज, जयपुर


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी  बोकारो झारखंड

भोजपुरी गजल- ठीक नईखे |
दिल लगाके दिल तोड़ल केहु के ठीक नईखे |
प्रीत लगाके मुंह मोड़ल केहु से ठीक नईखे |
कईली केतना प्यार तोहसे का काही हम |
छोड़ हमरा दिल दुशमन से जोडल ठीक नईखे |  
राज क बात बा राज ही रहे दा अब |
बेवफा तू गाड़ल मुरदा उखाड़ल ठीक नईखे |
आँख से आँख मिला के देखा एक बार |
लहरात प्यार क गागर फोड़ल ठीक नईखे |
रख़ब तोहके अपने दिल मे करेजा नियन |
करेजा के कागज नियन फाड़ल ठीक नईखे |
तोहरे एक मुस्कान हजार जान कुर्बान बा |
कदरदान के मजधार मे छोडल ठीक नईखे |
रहा हरदम जवान जईसे गुलाब के बगान |
आशिक मेहरबान के निचोडल जान ठीक नईखे |
हमरी आँख के आँसू के मोल तू का जनबू |
यार टुटल घाव दिल के कूदेरल ठीक नईखे |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी 
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"हाहाकार"


हाहाकार मचा है जग में,
मचा हुआ कोहराम सब जगह,
कैसे भागेगा कोरोना?
फैल रहा यह घोर भयंकर।


अफरातफरी मची हुई है,
आपाधापी मेँ ही जीवन,
कैसे मानव बचें सुरक्षित?
यक्ष प्रश्न यह आज बना है।


चौतरफा है तालाबन्दी,
सभी जगह मंदी ही मंदी,
करने को हादसा कोरोना,
चाल चल रहा मारक गन्दी।


ठप पड़ गयी है जनसंख्या,
अलग-थलग मानव की संख्या,
भयाक्रांत है सारी दुनिया,
क्या घट जायेगी जनसंख्या?


कोरोना की फौज भयानक,
दौड़ रही सर्वत्र अचानक,
चीन अनैतिक कर्मी गन्दा,
सदा प्रदूषित संस्कृति मानक।


कोरोना से लड़ो बहादुर,
साफ-स्वच्छ बनने को आतुर,
धैर्य न खोना मेरे मित्रों,
कुचलो दुष्ट-कोरोना-माहुर।


दूषित अपसंस्कृति को कुचलो,
भारतीय संस्कृति पर उछलो,
हाथ जोड़कर मिलो सभी से,
निर्मल पावन कृति पर मचलो।


कोरोना का सर्वनाश कर,
शुचि भावों से उसे मारकर,
निष्क्रिय कर दो कोरोना को,
उसके विषमय कृत्य जारकर।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


सुख-दुःख से ऊपर उठे यह सारा संसार।
श्री माता की कृपा से बने विश्व परिवार।।


बरसे कृपा सभी के ऊपर।सब बन जायें अतीव सुन्दर।।
माँ!करना मूल्यों की वर्षा।धरती बने स्वर्गमय सहसा।।
मरु प्रदेश को हरित बनाओ।बनी अन्नपूर्णा घर आओ।।
दुःख-दरिद्रता सब मिट जाये।जंगल में मंगल आ जाये।।
मानव मन में सात्विकता हो।निर्मलता नित नैतिकता हो।।
घर-आँगन में वैभव रेखा।दिखे सर्व-सर्वत्र सुलेखा।।
तुलसीदल का भोग लगे अब।निर्दल मन का योग जुटे अब।।
उठें सभी माया से ऊपर।बढ़ जाये विश्वास सभी पर।।
चलें हम सभी वंधन पारा।मिले हमें संन्यास सहारा।।
कुटी बनायें गंग नहायें।माँ चरणों में शीश नवायें।।
साफ बनें प्रिय सत्य बनें हम।माँ चरणों में मन हो हरदम।।
करो दया हे ज्ञानदायिनी।हंसवाहिनी महा स्वामिनी।।
वीणा-पुस्तक बनकर आओ।माँ महिमा के गीत सुनाओ।।


बनी माधुरी दिव्य धन दो विद्या का दान।
माँ कल्याणी शारदे!दो शिवता का ज्ञान।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *'"दर्द"*
"दर्द जीवन में सहते रहे,
अपनी अपनी-
कहते रहे।
बेगाने के दिये दर्द का तो,
हिसाब कर देते -
अपनो के दिया दर्द सहते रहे।
भूल जाते अपना -बेगाना,
साथी जो वो संग -
जीवन में चलते रहे।
माने न माने वो तो साथी,
दिल की बात-
सुख जीवन का हरते रहे।
अपने तो अपने है साथी,
कह कर संग -
जीवन में चलते रहे।
बेगानो की हिम्मत नहीं,
साथी अपना बन-
जीवन भर छलते रहे।
भूल जाते दर्द अपना साथी,
अपनो के दर्द में साथी ,
हम भी जीवन भर-
यहाँ रोते रहे।
हँसते रहे अपनो की खातिर,
दिल का छिपा दर्द-
जीवन में सहते रहे।।"
ःःः           सुनील कुमार गुप्ता
          15-03-2020


नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर

पलक झपकते ही कैसे, फिर से आ गया है संडे।
झटपट  झटपट अब देखो आ भी जाएगा मंडे।
झूमो नाचों, खुशी मनाओ,दिल खोल के भंगड़ा पाओ,
मीठी सी झपकी,जादू की झप्पी और अपनों संग हो फन डे।


तो अपने और अपने संग मनाइये संडे और राँधा पुआ बनाइये और मनाइए फन डे!


आपका आज का दिन बहुत सुखद, सकून वाला,आरामदायक  हो इसी शुभकामनाओं के साथ💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹💃💃💃💃🙏🙏🙏🙏
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर 🙏💐😃


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे राधे गोरी खेलो होरी मुझ कृष्णा के संग
अपना लें हम जीवन में यह फागुन के रंग


मैं रंग जाऊँ तेरे रंग तुम मेरे रंग रंग जाओ
मिलकर जीवन मोद मनाएं मेरे संग गाओ


सदा खुशी के बादल छाएं बरसे प्यार दुलार
तुम अर्धांग मेरे जीवन के तुम ही मेरा संसार


गौर वर्ण की आभा से श्याम वर्ण हुओं पीत
सब जग राधे रंग रंगों फिर दूर ये कैसे मीत


हे बृषभानु सुता तुम मोय अपने रंग रंग लो
नन्द यशोदा के लाला को राधे अपना कर लो।


युगलरूपाय नमो नमः🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

🙏🌹सुप्रभात🌹🙏
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
नये नये संकल्प लें
नये स्वप्न हम रोज बुन चलें
नये लक्ष्य हो नयी भित्तियां
ध्येय पंथ पर बढ़ चले
मन को अपने स्वच्छ करें,
सभी स्वच्छ हो जाय
कलुष अगर मन में रहे तो
पूरा जीवन ही तमस हो जाय।
+++++++++++++++
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

भक्त और भगवान
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
भक्त की हालत देखी
उसकी हालत पर रोया
उनके दुख के आगे
अपनी शान शौकत पर रोया
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त  सुदामा के लिये
पाव के छाला देखे
दुःख के मारे, रोया
पाव धोने के खातिर
खुशी के मारे,रोया
वो आंसू थे भरपाई
रिश्ते निभाने के लिये
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
उसके आने पर रोया
उसके जाने पर रोया
हो के गदगद प्रभु
चावल के दाने दाने पर रोया
बनवाली हो के, वो रोया
भक्त सुदामा के लिये
जितना राधा रोयी रोयी
अपने कान्हा के लिये
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
राधा तू बड़ी भागनी
कौन तपस्या किन्हीं
तीन लोक के मालिक
है तेरे आधीन
भक्त के खातिर
भगवान ने रोया
जितना राधा रोयी रोयी
कन्हैया उतना रोया रोया
भक्त सुदामा के लिये
नूतन लाल साहू


 


राजेंद्र रायपुरी

😌 नई सदी का मानव बम  😌


नहीं तीर तलवार की, 
                   आज ज़रूरत यार।  
जिसको चाहो मार दो, 
                    बिना तीर तलवार।


है कोरोना वायरस, 
                   मानो तुम हथियार।
जिसको चाहो मार दो, 
                    हाथ मिला दो बार।


मानव बम अब एक क्या,
                    ज़ग में कई हज़ार।
कैसी आज विडम्बना, 
                   मन में करो विचार।


मचा हुआ हर देश में, 
                  देखो हार हाहाकार।
सफल परीक्षण हो गया, 
                    हम तो कहते यार।


नहीं बनेंगे तोप अब, 
                    और  नहीं  मोर्टार।
अब कोरोना वायरस,
                     ही होगा हथियार।


झूठ नहीं है सच यही, 
                     करो नहीं तक़रार।
दुश्मन को अब मिल गया,
                  बिना खर्च हथियार।


           ‌‌।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।बरेली

*अभिमान।।काठ की हांड़ी समान।*
*।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


मत डूबे रहोअभिमान में कि
सबकी बारी आती है।


नकली  कलई अहम की  तो
यूँ  ही  उतर जाती  है।।


चूर चूर हो  जाता है अहंकार
वक़्त की उल्टी मार से।


काठ  की  हांड़ी   फिर  आग
चढ़    नहीं   पाती  है  ।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली

*बस प्रेम का काम मिले हमको*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


जिस  गली से  भी गुजरें  बस
मुस्कराता  सलाम हो  हमको।


किसी की मदद हम कर सकें
बस  यही  पैगाम  हो  हमको।।


दुआयों का लेन देन हो  हमारा
बस  दिल  की   गहराइयों  से।


प्रभु से हो एक ही गुज़ारिश कि
बस  यही  काम   हो    हमको।।


*रचयिता ।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *श्री हंस।।।।बरेली

*प्यार का जहान।।।।।।।।।।।।।।।*
*मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


क्यों हम बांटते जा  रहे  इस,
सुन्दर   से  जहाँ  को।


हमारी मंजिल कहीं और पर,
हम   जा रहे कहाँ को।।


नफरत से  मिलता नहीं कभी,
किसी को   सुख  चैन।


प्यार  बसता   हो   जहाँ   पर,
हम चले बस वहाँ  को।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।*


मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक श्री राम चरित मानस व्याख्या

सिय निंदक ओर माता कौशल्या की गूढ़ व्याख्या


सिय निंदक अघ ओघ नसाये।
लोक बिसोक बनाइ बसाये।।
बन्दउँ कौसल्या दिसि प्राची।
कीरति जासु सकल जग माची।।
प्रगटेउ जँह रघुपति ससि चारू।
बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।।
दसरथ राउ सहित सब रानी।
सुकृत सुमंगल मूरति मानी।।
करउँ प्रनाम करम मन बानी।
करहु कृपा सुत सेवक जानी।।
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता।
महिमा अवधि राम पितु माता।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  प्रभुश्री रामजी ने अपनी पुरी अयोध्या में रहने वाले श्री सीताजी की निन्दा करने वाले धोबी और उसके समर्थकों के पापसमूह को नाश कर उनको शोकरहित बनाकर अपने लोक में बसा दिया।मैं कौशल्या रूपी पूर्व दिशा की वन्दना करता हूँ, जिनकी कीर्ति समस्त संसार में फैल रही है।जहाँ कौशल्यारूपी पूर्व दिशा से विश्व को सुख देने वाले और दुष्टरूपी कमलों के लिए पाले के समान प्रभुश्री रामचन्द्रजीरूपी सुन्दर चन्द्रमा प्रकट हुये।अब सभी रानियों सहित मैं राजा दशरथ को पुण्य और सुन्दर कल्याण की मूर्ति मानकर मन वचन और कर्म से प्रणाम करता हूँ।अपने पुत्र का सेवक जानकर वे मुझ पर कृपा करें, जिनको रचकर श्रीब्रह्माजी ने बड़ाई पायी तथा जो श्रीरामजी के माता पिता होने के कारण महिमा की सीमा हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सिय निन्दक का तात्पर्य उस धोबी से है जिसने माता सीताजी की यह कहकर निन्दा की थी कि जिन्हें लंकेश्वर रावण अपहरण कर लंका ले गया था उन्हें रामजी ने अपनी महारानी बनाकर अयोध्या में रहने दिया।उसने अपनी पत्नी को सीताजी का उदाहरण देकर यह कहा था कि मैं रामजी जैसा नहीं हूँ जो पत्नी के दूसरे के घर रहने के बाद भी अपने घर में रख लिया।
 इन पंक्तियों में गो0जी ने माता कौशल्या को पूरब दिशा कहा क्योंकि पूर्ण चन्द्रमा पूर्व दिशा में ही उदित होता है और भगवान श्रीरामजी को चन्द्रमा कहा।चन्द्रमा का प्रकाश शीतल और सुखद माना जाता है।यहाँ कमल को खल कहने का भाव यह है कि कमल की जिस जल से उत्पत्ति होती है, उसी से वह विमुख रहता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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