कविता:-
*"अर्चना"*
"अर्चना-उपासना-अराधना-साधना,
ये सभी है साथी,-
भक्ति के सोपान।
भक्ति पथ पर चल कर ही ,
मिलता है साथी -
जीवन में ज्ञान।
पूजा-पाठ और सत्संग से ही,
मिटता साथी-
जीवन में छाया अज्ञान।
प्रभु भजन से ही जीवन में,
मिटता अंहकार साथी-
होता अपनत्व का संज्ञान।
प्रकृति की करे रक्षा जो,
चले सत्यपथ करें सद्कर्म-
मिले सुख सारे मिटे अज्ञान।
अर्चना-उपासना-अराधना-साधना,
ये सभी हैं साथी-
भक्ति के सोपान।।
ःःःः सुनील कुमार गुप्ता
16-03-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
सत्यप्रकाश पाण्डेय
तुझे छोड़ कर दूजा भाता नहीं
और कोई रूप रंग सुहाता नहीं
निकलता जिव्हा से नाम तेरा
तुझे छोड़ दिल कुछ गाता नहीं
तुझसे स्वार्थ जैसा नाता नहीं
तुम्हें छोड़ मन कहीं जाता नहीं
तेरा सौंदर्य बसा है नयनों में
तुम्हारे शिवाय कोई समाता नहीं
तेरी सी धुन कोई बजाता नहीं
सुन सुन मन फूला समाता नहीं
ओ सत्य के आराध्य मुरलीधर
तेरे शिवाय मैं सिर झुकाता नहीं।
श्री कृष्णाय नमो नमः💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
राजेंद्र रायपुरी
😊हाय कोरोना,हाय कोरोना😊
हाय कोरोना, हाय कोरोना।
यारो हर दिन आप करो ना।
रोक-थाम की करो उपाय,
ताकि ये बढ़ने मत पाय।
हाथ किसी से नहीं मिलाओ।
सारी दुनिया को समझाओ।
हाथ जोड़कर करो नमस्ते।
तभी रहोगे यारो हॅ॑सते।
भीड़-भाड़ से दूर रहो ना।
काहे कहते हाय कोरोना।
सेनीटाइजर हाथ मलो ना।
करो नहीं तुम हाय कोरोना।
बार-बार तुम हाथ को धोओ।
मुॅ॑ह -नाक को ढाॅ॑क के सोओ।
नादानी तुम यार करो ना।
करो नहीं तुम हाय कोरोना।
टूर-टार पर यार न जाओ।
भोजन शाकाहारी खाओ।
भक्षण कोई मांस करो ना।
दूर रहेगा यार कोरोना।
डॉक्टर को भगवान ही जानो।
कहना उनका यारो मानो।
उनसे तुम तक़रार करो ना।
दूर रहेगा तभी करोना।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
कालिका प्रसाद सेमवाल
🌹🙏शुभ प्रभात🙏🌹
प्रभु नाम जपने से सब कष्ट हरते है
🙏🌹🙏🌹🙏
प्रभु नाम जपने से नवजीवन मिलता है ।
तन मन का मुरझाया , उपवन खिलता है।
अन्तर के कोने में इक दीपक जलता है।
प्रभु नाम जपने से सब कष्टों का हरण होना है।
🌷
संसार समुन्दर गहरा,हां हां गहरा,
कर्मो का हर ओर लगा है पहरा।
सब छोड़ जगत की माया, हां हां माया,
ले लो तुम प्रभु शरण की छाया
तन मन का मुरझाया उपवन खिलता है
🌷
प्रभु सुमरन से, संताप सभी टल जाएं।
तूफां में भी ,भव सागर से पार कर पाते है,
सब बंधन से मुक्त ,हो जाते है
तन मन का मुरझाया उपवन खिलता है।
🌷
जीवन यदि सफल बनाना है तो
प्रभु नाम जपना ही है
इस नाम से ही सब का बेड़ा पार होना है
प्रभु नाम जपने से ही जीवन सफल होना है।
🌹🌹🌹🌻🌻🌻🌷🌷🌷
कालिका प्रसाद सेमवाल
🌴🥀🔔🌸🌾🏵🚩🍂
मासूम मोडासवी
बदली हुई निगाह सब अरमां जला रही
सरपे हमारे देखीये कैसी बला रही
फुरकत ने जिंदगी को परीशां किया बहोत
मनकी अधुरी आज भी अरजे वफा रही
नाजुक सा दिल बेचारा गमसे दबा रहा
हसरत विसाले यार में टसवे बहा रही
जीना तडप तडप के मुकद्दर बना रहा
ये दोस्ताना सूरत जो हस्ती जला रही
मंजर नजर के सामने दिलकश सजे रहे
कल्बो नजर लुभाती ये बादे सबा रही
कोई तो बे रुखीकी हद्द होनी चाहीये
उनसे लगी उमिद की मासूम खता रही
मासूम मोडासवी
बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता मानस मर्मज्ञ
राम जी के चरणों से सच्चा प्रेम
बन्दउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि अब मैं अयोध्या के राजा श्री दशरथजी की वन्दना करता हूँ, जिनका प्रभुश्री रामजी के चरणों में सच्चा प्रेम था,जिन्होंने दीनदयाल प्रभु के बिछुड़ते ही अपने प्रिय शरीर का साधारण तिनके की तरह त्याग कर दिया।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
श्रीमद्गोस्वामीजी द्वारा सत्य प्रेम कहने का भाव यह है कि जब प्रभुश्री रामजी के वियोग में जीवन पर संकट आ जाय और मरण या मरणासन्न स्थिति हो जाय।दोहावली में सत्य प्रेम की व्याख्या करते हुए गो0जी कहते हैं--
मकर उरग दादुर कमठ जल जीवन जल गेह।
तुलसी एकइ मीन को है साँचिलो सनेह।।
अर्थात मकर,सर्प,मेढ़क,कछुआ आदि सभी का जल में ही घर है और सभी का जल ही जीवन है परन्तु सच्चा प्रेम तो जल से मछली का ही है जो जल के बिना जीवित ही नहीं रह सकती है।
रामवनगमन के समय अवधवासी भी अपने प्रेम को धिक्कारते हुये कहते हैं कि हमारा प्रेम तो झूठा है क्योंकि सच्चा प्रेम तो मछली का है जो जल से विलग होने पर अपने प्राण त्याग देती है।यथा,,,
निंदहिं आपु सराहहिं मीना।
धिग जीवन रघुबीर बिहीना।।
जौं पै प्रिय बियोगु बिधि दीन्हा।
तौ कस मरनु न माँगे दीन्हा।।
महराज दशरथजी व माता कौशल्याजी ने भी अपने पूर्व जन्म में मनु व शतरूपा के रूप में तप करके भगवान से यही वरदान मांगा था कि हमें आप जैसा पुत्र प्राप्त हो और हमारा जीवन आप पर वैसे ही आधारित रहे जैसे मणि के बिना सर्प व जल के बिना मछली का जीवन होता है अर्थात उनका मरण हो जाता है।यथा,,,
दानि सिरोमनि कृपानिधि सत्य कहउँ सतिभाउ।
चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ।।
देखि प्रीति सुनि बचन अमोले।
एवमस्तु करुणानिधि बोले।।
आपु सरिस खोजौं कहँ जाई।
नृप तव तनय होब मैं आई।।
जो कछु रुचि तुम्हरे मन मांही।
मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं।।
तब मनु व शतरूपा ने यह वर भी माँगा---
सुत बिषइक तव पद रति होऊ।
मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ।।
मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना।
मम जीवन तिमि तुम्हहिं अधीना।।
अस बरु माँगि चरन गहि रहेऊ।
एवमस्तु करुणानिधि कहेऊ।।
अब तुम्ह मम अनुसासन मानी।
बसहु जाइ सुरपति रजधानी।।
तँह करि भोग बिसाल तात गये कछु काल पुनि।
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
नूतन लाल साहू
महामारी रोग
कोरोना कोरोना
अब सब को है,रोना
हमने ही बिगाड़ा है,पर्यावरण
मौत तो,आना ही है
खाने के लिए चम्मच
पीने के लिए बार
अब खुशियां,देखते है लोग
घर के बाहर
कोरोना कोरोना
अब सब को है, रोना
हमने ही बिगाड़ा है,पर्यावरण
मौत तो,आना ही है
जगह जगह, बम फूट रहा है
हिंसा घृणा का खेल चल रहा है
आतंकी हथियार बढ़ रहा है
पर्यावरण का विनाश हो रहा है
इसका जिम्मेदार,हम ही तो है
कोरोना कोरोना
अब सब को है,रोना
हमने ही बिगाड़ा है,पर्यावरण
मौत तो,आना ही है
होली खेलने से,डरता है
इसलिए खोली में रहता है
ऐसे ही डरो,पर्यावरण के दुश्मनों
तो क्यों होगा,आगे नुकसान
कोरोना कोरोना
अब सब को है,रोना
हमने ही बिगाड़ा है,पर्यावरण
मौत तो, आना ही है
नूतन लाल साहू
डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"मेरी पावन मधुशाला"
देख वांसुरी-ध्वनित-तरंगें अति विह्वल मेरा प्याला,
वंशी की आहट की मस्ती में पागल मेरी हाला,
पीनेवाले गोपी बनकर थिरक रहे अपने में ही खुद,
वृंदावन सी आज दीखती मेरी पावन मधुशाला।
कहता मैँ अपने मित्रों से देखें वे केवल प्याला,
यही सलाह देता हूँ उनको पीते रहें सिर्फ हाला,
यही निवेदन उनसे मेरा देखें मेरे साकी को,
मित्रों!छोड़ जगत की माया, आओ मेरी मधुशाला।
मन को यदि आराम चाहिये रहो देखते बस प्याला,
महा शून्य की यात्रा करने हेतु चलो पीने हाला,
सार्थक निष्कामी -अभिमानी बनने हेतु देख साकी,
अद्वितीय जीवन की संगिनि मेरी पावन मधुशाला।
सतत अहर्निश दिव्य साधना से मिलता शिव सा प्याला,
अति कोशिश मन से करने पर मिलती शक्ति सदृश हाला,
जन्म-जन्म के पुण्यार्जन का फल साकी कहलाता है,
जीवन के संग्राम-समर की युद्धभूमि है मधुशाला।
देना है यदि मात जगत को कर सुन्दर बन वर -प्याला,
सुनो गुनी बन धावक जैसा पीना शौर्य सदृश हाला,
नवाचार नित करते रहना शान्त भाव से साकी बन,
प्रगति विरोधी की अवरोधक मेरी पावन मधुशाला।
असमंजस में डाला करता है सबको मेरा प्याला,
बुद्धिप्रदात्री -ज्ञानदायिनी अति कौतूहल निज हाला,
अचरज करता यह जग सारा देख परमप्रिय साकी को,
बनी हुई आश्चर्य नित्य-नव मेरी पावन मधुशाला।
रचनाकार:
डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
डॉ०रामबली हरिहरपुरी
"अंधा"
स्वारथ में जो अंधा होय, समझो उसको असली अंधा.,
नहीं परोपकार का भाव, अपना मतलब सबसे ऊपर.,
करता अपने लाभ की बात, पहुंचाकर के हानि अन्य को.,
अपना उल्लू करता सीध, चाहे रोये भले दूसरा.,
कुकरम करता है दिन-रात, सत्कर्मी कहता खुद को ही.,
मन में नहीं है पश्चाताप, घोर निरंकुश अपयशभागी,.,
मन में रहती छोटी सोच, अंधकार में जीता स्वार्थी.,
घृणित कर्म सब धर्म समान, भोगी-रोगी-अंधा-कामी.,
देहवाद ही है पुरुषार्थ,सहज अलौकिक भाव नदारद.,
सदा धूर्तता की ही सोच, रखता मन में स्वार्थी-अंधा.,
करत लूटने का ही काम, चोरकट-लंपट-पतित भयंकर.,
मन में कभी न सुन्दर भाव, मन में मैली वृत्ति विचरती.,
जिसका पाये ले वह लूट, ताक-झाँक में रहता प्रति पल.,
मानवता से नहीं है प्यार, परम अपावन गन्दी हरकत.,
गन्दा नाला से ही स्नेह, कीड़ा जैसा जीवन अच्छा.,
स्वार्थवाद ही सच्चा धर्म, धर्म-कर्म सब मरे हुये हैं.,
अंधापन ही लगता नीक, स्वार्थी की यह जीवन-यात्रा।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली हरिहरपुरी ।
9838453801
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री प्रीति महिमामृतम"
प्रिया पुनीता प्रियतमा प्रीति परस्पर प्राण।
स्नेह सहज सरलामृता सरस सलिल सम्मान।।
नित बरसत अमृत रस वाणी।तृप्त होत जगती का प्राणी।।
सबके उर में अमृत धारा।पाता सुख सारा संसारा।।
शुष्क भूमि में बीज अंकुरण।होत विशाल वृक्ष शीतलपन।।
प्रमुदित तन मन जन अविकारी।अति उत्साह उमंग सुखारी।।
बसत हृदय में सात्विक चंदा।अति निर्मल अति सुन्दर वन्दा।।
वन्दनीय मृदु मोहक मनसिज।होत न मन विकारमय हरगिज।।
एकीकृत होता जग मधुवन।सर अंश सम्मत जग उपवन।।
सबके मन का बनत समुच्चय।सब बनने को आतुर अमिमय।।
सबमें प्रेम प्रवाह गनगमय।सब होते सुविचार सजनमय।।
कामवासना भस्मीभुता।सभी कृष्ण राम अवधूता।।
सब माया से मुक्त उदासी।बनकर जीते प्रितिनिवासी।।
रस प्रधान प्रीति जग यह हो।यही दिव्य रसधाम सुबह हो।।
प्रीति रसामृत सब चखें बढ़े सभी में चाह।
प्रीति गंग सागर बहे सबमें सहज अथाह।।
नमस्ते हरिहरपुर से ---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री सरस्वती महिमामृतम"
सत्यमेव जयते तुम्हीं सत्य तुम्हारा प्यार।
सच के बल पर कर रही सबका बेड़ा पार।।
सत्य स्वामिनी सत सत्यार्थी।सहज सरल शिव शुभ सत-प्रार्थी।।
सखी सखा संन्यास समुन्दर।श्रुति सुभाषिनी सद्गति सुन्दर।।
श्याम सलिल सरिता समभावी।सुखदा शुभदा शुभ्र स्वभावी।।
तारक साधक मंत्र महोत्सव।परम पवित्र पुष्प पुष्पोत्सव।।
ज्ञापक ज्ञापन ज्ञान ज्ञानिनी।सर्वा सर्व सद्गुणी सृजनी।।
पवन प्रात पातञ्जलि प्राणी।प्रभा प्रभाकर प्रातिभ वाणी।।
दिवस दसमुखी दशा दिशा दस।सत्यनिष्ठ सज्जन शिख सरबस।।
ज्ञान सकल अनमोल रतन हो।व्यापक बुद्धि विराट सुमन हो।।
भव बाधा हर ले हे माता।वीणा- पाणी भाग्यविधाता।।
सदा सघन मेधा बनी आ माँ घर में आज।
तेरे दम पर ही चले जग का नित्य स्वराज।।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
कुछ बुँदे.....
उमस भरी धरती पर,
कुछ बूंदों ने दस्तक दी.
छोड़ कर हवा का दामन,
माथे पर मस्तक दी.
सदियों से सूखी धरा,
उसने हल्के से दस्खत दी.
भागती रही ये ज़िन्दगी,
ना कभी फुर्सत थी.
हैं सभी के अपने सलीके,
क्यों किसी ने हस्तक दी.
बूंदो से बदला मौसम,
नए रंगों में बरकत दी.
जो बदला वो अच्छा है "उड़ता ",
पुरानी बातों से क्यों आहत की.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
होता क्यों है....
एक बात समझने की,
आम जीवन ओखा क्यों है.
संवेदना से जुड़े हम,
फिर इश्क़ में धोखा क्यों है.
कुछ कर गुजरने की तमन्ना,
हालात ने रोका क्यों है.
तक़दीर कहाँ मिटती है,
कर्म का लेखा -जोखा क्यों है.
दूर तलाक समुन्द्र -ए -नीर,
सिर्फ साँस की नौका क्यों है.
आत्मा के चित्र नहीं बनते,
तन संग अक्स होता क्यों है.
अश्रुओं से लिखी एक नज़्म "उड़ता ",
तू बात पर पलकें भिगोता क्यों है.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु बाढ़ - पटना
नज़राना
सदाक़त की बातें भी होती रहेंगी
मुहब्बत की बातें करो धीरे - धीरे।
सियासत की बातें, ना करना कभी भी
हिफाज़त की बातें, करो धीरे धीरे।
हिदायत की बातें, बताना सभी को
सलामत की बातें, करो धीरे - धीरे।
कयामत की बातें, ना करना कभी भी
इबादत की बातें, करो धीरे - धीरे।
शोहरत की बातें, तो होती सदा है
सोहबत की बातें, करो धीरे - धीरे।
शहादत की बातें, स्वाभिमान रखता
महारत की बातें, करो धीरे - धीरे।
नज़ाकत की बातें, लगे सबको प्यारी
शरारत की बातें, करो धीरे - धीरे।
अमानत की बातें, तो अपनी जगह है
शराफ़त की बातें, करो धीरे - धीरे।
बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु
बाढ़ - पटना
9661065930
सुनीता असीम
चोट दिल पे ज़रा लगी सी है।
दर्द में आज कुछ कमी सी है।
***
याद उनकी चमक चमक उठती।
धूल दरपन पे कुछ ज़मी सी है।
***
ढल गया सूर्य आज जल्दी से।
साँझ भी क्यूँ रुकी रुकी सी है।
***
है हवा में यूँ फैलती सरगम।
ब्रज में बजती बांसुरी सी है।
***
खुद को महसूस कर रही तन्हा।
मुझको उनकी लगी कमी सी है।
***
सिर्फ आँखें ही कर रही बातें।
ये जुबाँ मुँह में बस थमी सी है।
***
मामला प्यार का बढ़ा जबसे।
की हवा ने भी दिल्लगी सी है।
***
सुनीता असीम
14/3/2020
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*'"दर्द"*
"दर्द जीवन में सहते रहे,
अपनी अपनी-
कहते रहे।
बेगाने के दिये दर्द का तो,
हिसाब कर देते -
अपनो के दिया दर्द सहते रहे।
भूल जाते अपना -बेगाना,
साथी जो वो संग -
जीवन में चलते रहे।
माने न माने वो तो साथी,
दिल की बात-
सुख जीवन का हरते रहे।
अपने तो अपने है साथी,
कह कर संग -
जीवन में चलते रहे।
बेगानो की हिम्मत नहीं,
साथी अपना बन-
जीवन भर छलते रहे।
भूल जाते दर्द अपना साथी,
अपनो के दर्द में साथी ,
हम भी जीवन भर-
यहाँ रोते रहे।
हँसते रहे अपनो की खातिर,
दिल का छिपा दर्द-
जीवन में सहते रहे।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
14-03-2020
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
जीवन में दुत्कार बहुत है
*******************
द्वार तुम्हारे आया हूँ प्रिय,
जीवन में दुत्कार बहुत है।
जीवन का मधु हर्ष बनो तुम,
जीवन का नव वर्ष बनो तुम,
तुम कलियों सी खिल खिल जाओ,
चंदा किरणों -सी मुसकाओं,
रखना याद मुझे तुम रागिन,
अंतिम यह फरियाद सुहागिन।
कैसे अपना दिल बहलाऊँ
इस दिल पर भार बहुत है।
देखो यह नटखट पन छोड़ो,
मुझसे प्रेयसी, तुम मुँह मत मोड़ों,
आओ गृह की ओर चलें हम,
जग बन्धन को तोड़ चले हम,
तुमको पाकर धन्य बनूंगा,
प्यार -प्रीति में नित्य सुनूँगा।
तेरे हित में मुझको अब मरना है,
जीवन में अंगार बहुत है।
संध्या की यह मधुमय बेला,
रह जाता हूँ यहाँ अकेला,
सूरज की किरणों का मेला,
रचता है जीवन से खेला,
अपना तन-मन भार बनाकर,
चल पड़ता गृह, हार मनाकर।
कल समझौता होगा प्रिय,
जीवन में मनुहार बहुत है।
दुनिया कल यदि बोल सकेगी,
प्यार हमारा तोल सकेगी,
स्वत्व नहीं है उसको इतना,
कर ले बर्बरता हो जितना,
उसको क्या अधिकार यहां है,
कि रच दे विरह कि प्यार जहां है।
प्यार नयन की भाषा
यह इजहार बहुत है।
नव प्रभात की नूतन लाली,
रंग जाती है धरती थाली,
भौंरों के जब झुण्ड मनोहर,
गुंजित करते कुसुम -सरोवर ,
मथनी उर को मेरी हारें,
हाय, न क्यों तुम मुझे दुलारे।
कैसे तुमको राग सुनाऊं,
जीवन-तार बहुत है।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
निशा"अतुल्य"
निशा"अतुल्य"
देहरादून
14.3.2020
*वो बीते पल*
सुनो क्या याद है
आज भी तुम्हें
वो चाय की दुकान
जिसके बाहर खड़े
करते थे तुम इंतजार
और देख मुझे
हल्के से मुस्कुराते
मेरे पहुंचने से पहले
दो चाय के गिलास थाम हाथ में
थोड़ा आगे बढ़ आते ।
आज फिर गुजरी उस मुकाम से
वो ही चाय की दुकान
कुछ सूनी सी
एक छवि लगी
तभी ख़्याल आया
तुम्हारा चले जाना
बिन बताये मुझे ।
दे कर लंबा इंतजार
जो सालता है मुझे
आज उठा कलम
बैठ गई लिखने एक पाती
कुछ उमड़ते भावों की तुम्हे ।
और डाल दी उसे
बिन लिखे पते पर
कह डाकघर में
पहुँचा देना
अनजान पते पे कहीं।
शायद चेहरा याद हो
डाक बाबू को तुम्हारा
अक़्सर देखते थे
वो ले हाथों में हाथ
घूमते चाय पीते
तुम्हे व मुझे ।
बस इसी उम्मीद पर
डाला एक ख़त
अपने इंतजार का
तुम्हें
जिसे रख लिया
डाक बाबू ने
देख सूने नयन मेरे ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
प्रिया सिंह
ये बारिश नहीं.....उजाड़ का मेरे इम्तिहान है
इस परिस्थिति में मरता देश का मेरे किसान है
मिट्टी धूल कंकड़ पत्थर सब को हटा दिया
उसकी ये हरी फसल ही तो मेरे अरमान हैं
आंधी,पानी,आग सब डराती है बे-वक्त
लेकिन ये खेत ही तो उसकी और मेरी जान है
बेटियाँ शादी बराती सब कैसे कर दें बोलो
जब अपना खेत अपना घर मेरे अंजान है
लोन कैसे चुका दे सब हारने के बाद अब
अब धीरे-धीरे बिखरता मेरे स्वाभिमान हैं
इज्ज्त दौलत अब सब मिट्टी में मिल गया
अब एक एक ईटों से बिकते मेरे मकान हैं
मेहनत मशक्कत ये पैरों के दरार भी ना कहेंगे
बहुत घायल बहुत जख्मी मन का मेरे विमान है
फसल के साथ-साथ हौसला भी हार रहा मैं
कितने बड़े यहाँ वास्तव में मेरे भगवान हैं
मैं मर ना जाऊँ सरकार तो बोलो क्या करूँ
रेगिस्तान बन कर रह गये ये मेरे बागवान है
बहुत मौज से हो शहर के खिड़कियों में तुम
अब तुम सब को ये जीवन भी मेरे दान हैं
Priya singh
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
"श्री प्रीति महिमामृतम"
प्रीति अमृता है जहाँ वहीं स्वर्ग सोपान।
बसा हुआ है प्रीति में सुन्दर सिद्ध सुजान।।
प्रितिमयी दुनिया बन जाये।देव गंग में नित्य नहाये।।
बेहद मानव मन चंगा हो।दिल में बैठी शिव गंगा हों।।
कपट वृत्ति सब जल-गल जायें।साफ-स्वच्छ हर मन हो जाये।।
शंकाओं का भंजन होगा।असुरों का नित मर्दन होगा।।
सघन वृक्ष की छाया होगी।प्रकृति प्रदत्त शिव काया होगी।।
चढ़ जाये उल्लास हृदय में।वृद्धि सतत उत्साह प्रणय में।।
प्रीति -भाष की संस्कृति होगी।सुन्दरता की आकृति होगी।।
बढ़-चढ़कर प्रिय बातें होंगी।मधुर मधुरिमा रातें होंगी।।
स्वर्ग बनेगा यह जग सारा।सबकुछ उत्तम अति प्रिय न्यारा।।
सभी प्रितिमय नित बनें करें प्रीति रसपान।
सुन्दर मानव सा सजें खिलें भरें मुस्कान।।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
संजय जैन बीना (मुम्बई)
*आंसू*
विधा: गीत
मेरे आंसुओ की कीमत,
कोई क्या समझेगा।
लगे है घाव जो दिल पर,
उन्हें कोई क्या समझेगा।
क्या कोई मेरे घावों पर,
मलहम आ कर लगाएगा।
मेरे दुखते हुए दिल को,
कोई तो धैर्य बंधायेगा।।
दिल की धड़कने मेरी,
बहुत तेज चल रही।
क्या उन्हें कोई,
आ कर शांत करेगा।
और मेरे दिल में,
अपने जगह क्या बनापायेगा।
बिखर चुकी मेरी दुनियाँ,
को क्या कोई फिरसे बसाएगा।
अपने प्यारे शब्दो से,
मेरे दिलको बहलाएगा।।
मेरे आंसू मेरी कहानी,
कह रहे है लोगो।
की कितना कुछ सहा,
मेरे इस दिल ने लोगो।
अब और सहा नहीं जाता,
मेरे इस शरीर से।
अब में कब्र में पाव,
लटका कर बैठ गया हूँ।।
समर्पित कर दिया मैंने,
अपने आप का जीवन।
अब इच्छा है नही मेरे,
और संसार मे जीने की।
क्योंकि बहुत देख लिया मैंने,
अपनी इस छोटी सी उम्र में।
अब प्रभु सेवा से बढ़कर
कुछ भी नही मेरे जीवन में।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
15/03/2020
देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"
.............गम के कई रंग.............
गम के कई रंग होते हैं जमाने में।
परेशानी भी संग होते हैं जमाने में।
जब अपनों की नज़र बिगड़ जाती;
रफ़ाक़त कम होते हैं जमाने में।
बारहाँ ऐसे इल्ज़ाम जड़े जाते;
अदावत संग होते हैं जमाने में।
अच्छे कर्मों के हिसाब नहीं रखते ;
बुरे अंज़ाम संग होते हैं जमाने में।
हर तरफ जब एहसानफरामोश हो;
ख़ुदा ही संग होते हैं जमाने में ।
बुरी आदत से,बाज़ नही आनेवाले;
खुद से ही तंग होते हैं जमाने में।
ज़ुस्तज़ु हो जब मन में"आनंद"की ;
हमदर्द ही संग होते हैं जमाने में।
-----देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"
अवनीश त्रिवेदी"अभय"
एक मुक्तक
वज़न - 1222 1222 1222 1222
जहाँ से जब कभी जाओ निशानी छोड़कर जाना।
हमेशा ही जुबानी हो कहानी छोड़कर जाना।
जमाने की किसी शौहरत का लालच नही आये।
जमी दरिया दिलों की हो रवानी छोड़कर जाना।
अवनीश त्रिवेदी"अभय"
रीतु प्रज्ञा करजापट्टी, दरभंगा, बिहार
कांपे मेरा हिया
मेरे पिया हैं दूर प्रदेश,
फैला रहा कोरोना वायरस संपूर्ण देश।
थर-थर कांपे मेरा हिया,
लागे न कहीं मेरा जिया।
हो गयी है उनसे मेरी अनबन,
बजा न सकती मोबाइल घंटी टनटन,
जा रे कागा , कहना उनसे मेरी बात
किसी से मत मिलाए हाथ।
साबुन से धो बारम्बार हाथ रखें साफ,
भारतीय परंपरा का सर्वत्र
करें जाप,
गुनगुने पानी का करें सेवन,
निषेधात्मक उपाय अपना रहे चेतन।
अपने सिर ले न अधिक कार्य भार,
मुझे है उनसे प्यार बेशुमार।
रीतु प्रज्ञा
करजापट्टी, दरभंगा, बिहार
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी बोकारो झारखंड
हिन्दी गजल- तेरा इंतजार तो है |
तू मुझे चाहे न चाहे दिल तेरा तलबगार तो है |
तूझे तलब मेरी हो न हो मुझे तेरा इंतजार तो है |
जब भी वक्त मिले आवाज दे देना तुम मुझे |
तू साथ चले न चले तेरी याद मेरी पतवार तो है |
लब कुछ कहे न कहे आंखे सच बया करती है |
मै खुश हूँ सच मे तुझे मुझसे बहुत प्यार तो है |
तू रहे जहा भी मेरी यादे चैन से रहने न देंगी |
ठुकराकर मेरी मोहब्बत तू मेरा गुनाहगार तो है |
क्या कहू तुझसे जो तूने वादे किए थे बहुत |
जमाना जाने न जाने तू मेरा राजदार तो है |
अपनी हुश्नों जवानी का गरुर है बहुत तुझको |
बागो भवरा की फूल को कभी दरकार तो है |
अपने महबूब को मान खुदा सर आंखो भारती |
कबुल नहीं मेरी मोहब्बत तू मेरा सरकार तो है |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
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