राजेंद्र रायपुरी

😊😊 यही तो चाहत है 😊😊


दो वक्त की रोटी,
   उमर हो न छोटी।
      यही तो चाहत है,
         मिले तो राहत है।


हो छोटा सा आशियाना।
      बेघर न कहे ज़माना।
            यही तो चाहत है, 
                 मिले तो राहत है।


तन पे हो लॅ॑गोटी,
   बड़ी हो या छोटी।
      यही तो चाहत है,
         मिले तो राहत है।


भूखे को देकर कुछ खाएॅ॑,
  इतना तो धन रोज़ कमाएॅ॑।
        यही तो चाहत है,
            मिले तो राहत है।


संतों की सेवा हो जाए,
   दें आशीष सदा वो जाएॅ॑।
      यही तो चाहत है,
          मिले तो राहत है।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


विवेक दुबे"निश्चल

एक अश्क़ समंदर सा ।
 छलका हालतों अंदर सा ।
 मचला पलकों की कोर में,
 उम्मीदों के मंजर सा । 
"विवेक दुबे"निश्चल"@...


श्याम कुँवर भारती [राजभर]   कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

भोजपुरी निर्गुण – माया मे लोभाई |
नईहर के छोड़ी आइलू ससुरा के  घर मे |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
झूठ साँच बोली पपवा बसवलु अपना मन मे |
सोन पिंजरवा छोड़ी सुगना उड़ी जईहे गगन ये राम |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
पियावा के छोड़ी नेहिया लगवलु देवर ये राम |
जनिहे जे भेदवा सजना निकली न मूहवा बचन ये राम |
 कईलु ना दान धरमवा जिनगी फसवलु भवर ये राम |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
जाई ससुरवा नरक मे डलिहे झर झर बहिहे नयन ये राम |
सास ससुरवा लतवा लगवलु ननद भसूरवा झाड़ू ये राम | 
सजना से कईलू दगाबाजी मटिया मिलवलु जनम ये राम |
मुंहवा भजन ना कईलू गईलू न गोड़वा तीरथ ये राम |
परान जब निकसीहे मुंह से थर थर काँपी  बदन ये राम | 
लोगवा कहे सुना भाई भारती गुरुजी से नेहिया लगावा ये राम |
सद्गुरु करीहे पार भवरिया मिलिहे परमगति जनम ये राम |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
 
  श्याम कुँवर भारती [राजभर]
  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷       भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
     भिलाई दुर्ग छग



🥀यश के दोहे🥀


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समझे अपने आप को, गुरुवर विज्ञ महान।
अपनी करनी भूल यश,करे छोट अपमान।।


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🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

एक छंद आपकी सेवा में...


उर की अपार  गहराई में  समायी  हैं  तू,
मेरी हर साँस की रवानी  बन  जाती  है।
दिल मे धड़कता हैं केवल  तुम्हारा  नाम,
रस भारी नेह की  कहानी  बन जाती हैं।
उपवन का खिला गुलाब  लगती हैं आप,
मन  लेने  देने  में  सयानी  बन जा ती हैं।
सुख-दुख,  वैर-प्रीत, हार-जीत  सहे साथ,
मन के विश्वास की  निशानी बन जाती हैं।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


डॉ प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद (उ.प्र.)

*कोरोना: बचाव ही इलाज*


रोग विदेशी भयावह, कोरोना जी नाम ।
मित्रों करें बचाव बस, वर्ना काम तमाम ।।


परिजन पुर जन स्वच्छ ,हों, खुद भी रहिए साफ ।
परजीवी कीटाणु हैं, नहीं करेंगे माफ।।


जूडी खांसी शूल सिर नजला  आंखें लाल ।
अवरोधन कुछ श्वास का, लक्षण भारी भाल ।


नहीं हाथ मुँह पर रहे, छींकें जा एकांत ।
नमन करें दूरी रखें, जागें मीत नितांत । ।


उष्ण भोज्य हल्का तरल, घर दी रोटी दाल।
गर चूके चौहान तो, करना पड़े मलाल।।


रोग ग्रसित या शंकर वत, ढ़ूँढ़े वैद्य सुषैन।
परिचर्या उत्तम दवा, माने तद  प्रति बैन।।



डॉ प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद (उ.प्र.)


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी

भोजपुरी देवी गीत-4-कहे भारती पुकार के 
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
आतंकियन मिटावा माई त्रिशूलवा के मार के |
देशवा दुशमनवा भारत अँखिया देखावेले |
जब देखा पीछे पिठवा बन्दुकिया चलावेले |
मरलु माई जईसे दइतवन मारा इनके संहार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
देशवा खुशहाली हरियाली अँखिया न सुहाला |
हंसत खेलत लोगवा देखी छतिया फटी जाला |
मारा माई मरलु जइसे दुरगवा गरदनिया उतार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
ऊंचा बा लीलार तोहरों अँखिया बा विशाल हो |
चंदरमा बा रूपवा माई काली केसिया कमाल हो |
दसभूजा शेरावाली चले तोहार शेरवा चिंघाड़ के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
तोहरी किरीपा जगवा तिरंगा झंडवा लहराला |
सबके पछाड़ भारत तीसरी शक्ति आज कहाला |
करे  लोगवा पूजनवा माई तोर रूपवा निहार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
छोडब न चरनिया माई भजनीया हम गाइब |
फेरा तू नजरिया माई हम नचनिया बन जाइब |  
भगावा देशद्रोहियन चलावा देशवा ललकार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी ,मोब 9955509286


हलधर

ग़ज़ल ( हिंदी) ( कोरोना)
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पड़ौसी चीन से फैला ये विष कण नाम कोरोना ।
मुझे जैविक लड़ाई का  दिखे  आयाम  कोरोना ।


इशारों में हमें यह दे रहा पैगाम कोरोना ।
नमस्ते ही करेगी देश में नाकाम कोरोना ।


हमारी जीत पक्की है रखेंगे सावधानी यदि ,
नहीं तो सिर मुड़ा देगा बड़ा हज्जाम कोरोना ।


जरूरी है सभी को हाथ धोना गर्म पानी से ,
नहीं तो जिंदगी का मौत में अंजाम कोरोना ।


नमाजें भी अभी कुछ रोज सजदा हों अकेले में ,
नहीं तो कौम को कर जायगा नीलाम कोरोना ।


पुजारी जी  अभी भगवान को आराम करने दो ,
अयोध्या और काशी में न हो कुहराम कोरोना ।


घरों में नित हवन की अब पुरानी आदतें डालो ,
कपूरी गंध से होता सदा गुमनाम कोरोना ।


बचो जितना बचा जाये मगर डरना नहीं यारो ,
हकीकत है शराबी से डरे गुलफाम कोरोना ।


हमारी  वेद  परिपाटी  दिखाये  राह  दुनियां  को ,
जहां लिखता ग़ज़ल"हलधर"करे क्या काम कोरोना ।।


हलधर-9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*माँ का अस्तित्व* (रोला छंद)      -------------------------------------------
विधान- ११ एवं १३ मात्रा पर यति के साथ प्रतिपद २४ मात्रा, चार चरण, युगल पद तुकांतता। 
................................................


*माँ है जग-आधार, इसी में विश्व समाये।
माँ के बिन उपकार, जनम कोई कब पाये ??
पीकर माँ का दूध, छाँव ममता की पाये ।
जग में है विख्यात, किसे  माता न सुहाये ??


*माँ तो है वरदान, हरे वह विपदा सारी।
सृष्टि-वृष्टि हर दृष्टि, मातु की प्यारी-न्यारी।।
ऋद्धि-सिद्धि हर तुष्टि, अतुल है अपार है माँ ।
विश्व-विशद-प्रतिरूप, स्वयं ही विहार है माँ ।।


*माँ तो सतत दयालु, काज हर करती पूरा ।
करती है माँ पूर्ण, पिता का प्यार अधूरा ।।
बुरी बला दे टाल, लगाती काला टीका।
पूजा की है थाल, ऋचा वेदों-सम नीका।।


*साँसों का सुरताल, हृदय में बन रहती है।
निज संतान-शरीर, रुधिर बनकर बहती है।।
जग-उपवन में फूल, बनी है सुगंध भी माँ ।
भाले निज परिवार, नेक है प्रबंध भी माँ ।।


*माँ का जो है त्याग, सोच लो मन में अपना।
क्यों लेते हो छीन? मातु का सुंदर सपना।।
जो है निज भगवान, मान दो माँ को आओ ।
जानो जग का तीर्थ, मातु-पद माथ-झुकाओ ।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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नूतन लाल साहू

क्रोध न किजै
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगति में जाइये
विद्या सम धन,न आन
तेरा निर्मल रूप,अनूप है
नहीं हाड़ मांस की,काया
नाम रूप मिथ्या जग सारा
तू है,सत्य जगत से न्यारा
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जाइये
विद्या सम धन न आन
निराकार निर्गुण अविनाशी
चेतन अमल सहज सुखरासी
अलख निरंजन सदा उदासी
तू ब्यापक,ब्रम्ह स्वरूप है
क्रोध हरै,सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जा इये
विद्या सम धन न आन
समझ जा मन,मीठा बोल तू
वाणी का बाण,बहुत बुरा होता है
वाणी से प्रीत,होय बहुत गहरी
शब्दों से ही,हो जाय जग बैरी
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जाइये
विद्या सम धन न आन
नूतन लाल साहू


 


बबली सिन्हा (गाज़ियाबाद)

मैं कहां कुछ लिख पाती हूँ
न कुछ देख पाती हूँ
न कुछ  समझ पाती हूँ


सच ही तो है
जिंदगी प्रेम में पड़ी है
फिर और कुछ कहां 
दुनिया, संसार.....


शायद इसलिए कहते प्रेम अंधा होता 
पर प्रेम का तात्पर्य 
मन और देह का केवल
आनन्दमय सुखद मिलन एहसास नहीं


बल्कि इसमें समाहित है 
फूलों का चमन और 
आंसुओं का खारा समंदर भी


एक आवरण है प्रेम
जो प्रकृति पद्दत है
जज्बातों का घना संसार 


जिसमें भावनाएं वस्त्र की तरह
देह के रोमकूपों में सिंचित होती
सम्वेदनाओं से भरी ऊर्जा
हमें सम्मोहित, आकर्षित करती 


हम खुद को रोक नहीं पाते 
उसके लिए जीते 
और कभी मर भी जाते 


पर प्रेम जिंदा रहता सदैव
ऐसा समझो !
एक जादुई घरती का सच है प्रेम।


बबली सिन्हा
(गाज़ियाबाद)


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जीवन"


जीवन कैसा है, इस पर विचार मत कीजिये,
जैसे चल रहा है, वैसे ही इसे चलने दीजिये ।


सोचेंगे तो परेशान  होते रहेंगे,
सुख और दुःख में जीते रहेंगे।


न सोचना ही निर्वात है,
सोचना आत्मघात है।


सोचकर हम प्रपंची बन जाते हैं,
न सोचकर हम आजाद पंछी हो कर उड़ जाते हैं।


जो सोचा, वह फँसा.,
न सोचनेवाला हँसा।


जिसमें लाभ हो वही कीजिये,
सोचकर खुद को वर्वाद मत कीजिये।


सोचना हो तो आजादी की सोचो,
मत आपाधापी की सोचो।


सोच में आत्मोद्धार हो,
सबकुछ सहज स्वीकार हो।


अच्छे-बुरे की सोच ही वंधन है,
एक अनावश्यक क्रंदन है।


निर्लिप्त और उदास बनो,
स्वतंत्रता की आस बनो।


वंधनों से मुक्ति चाहिये,
मोक्ष की सूक्ति चाहिये।


परिन्दा सा विचरण करो,
उसके आदर्श का अनुगमन करो।


सुख-दुःख में लालच है,
हर दशा में अपच है।


निर्द्वंद्वता के लिये जीवन की सोच छोड़ दो,
कछुए की तरह हर तरफ से मूँह मोड़ लो।


सफलता मिलेगी,
जिन्दगी खिलेगी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


कविता का सागर बनी उर में बहो अथाह।
वीणावादिनि मातृ का जन्म-जन्म तक चाह।।


करो कृपा नित मातृ शारदे।सुन्दर वाणी का प्रिय वर दे।।
विश्वविजयिनी ध्यानावस्थित।कण-कण में हो नित्य उपस्थित।।
ताकतवर तुम महा शक्ति हो।सन्तहृदय में महा भक्ति हो।।
सार एक तुम महा असीमा।तीव्र- गामिनी तुम जग धीमा।।
गगन अनन्त सदृश तुम आँगन।सतत अहर्निशं तुम शिव सावन।।
रम्य परम साधिका मनोरम।आनन्दी अति सात्विक अनुपम।।
ज्ञानी ज्ञानमयी गुणबोधक।विज्ञानी विज्ञान सुशोधक।।
महापालिका सृष्टि रचयिता।विविधरूपिणी शिवमय कविता।।
वीणा-पुस्तक ले घर आओ।मंगलकारी भजन सुनाओ।।
सत्संगति का शुभमय वर दो।हे माता प्रिय!अपना घर दो।।


रहे शान्त यह सकल जग सबमें प्रिय संवाद।
कलुषित मन कोमल बने मिटे वाद-प्रतिवाद।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मेरी पावन मधुशाला"


सच्चाई की चाह जिसे हो वह कर में ले मेरा प्याला,
चुमचाट कर आनन्दित हो जसमें बहती मृदु हाला,
सच्चाई का अर्थ बताता फिरता मेरा साकी है,
सच्चाई से प्रेम जिसे हो आये मेरी मधुशाला।


प्रेम -मूल्य को दिल में रखकर घूम रहा मेरा प्याला,
बैठी रहती सात्विक भावों सी जिसमें मधुरिम हाला,
सदा प्रेम की शिक्षा देता कान्हा सा मेरा साकी,
प्रेमालय सी परम धाम है मेरी पावन मधुशाला।


बना भक्त पीनेवालों का कर की शोभा है प्याला,
भक्तिदायिनी मादकता का मंत्र बताती है हाला,
भक्तों का आकर्ष -केंद्र बन बुला रहा सबको साकी,
भक्तिभाव की जिसे चाह हो आये मेरी मधुशाला।


अमर ज्ञान के लिए बना है मेरा सहज ज्ञान प्याला,
भरी हुई है पूर्णरूप से जिसमें सुन्दर सोच सदृश हाला,
समझदार अति उत्तरदायी पीनेवालों का साकी,
विश्वभारती बनी हुई है मेरी पावन मधुशाला।


यदि तुझको वैराग्य चाहिये लो तुरन्त कर में प्याला,
वैरागिन का जीवन जीती प्रेममदिर सात्विक हाला,
वैरागी का देश बसाता मेरा अति विचित्र साकी,
निर्मोही निर्लिप्त उदासी एक रसामृत मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"पवित्र प्यार की पराकाष्ठा"


मन अगर पवित्र है तो स्नान हो गया,
उर में अगर प्यार है तो ध्यान हो गया,
सब के प्रति सद्भावना की नींव हो मजबूत,
सबको अगर चाह लो तो ज्ञान हो गया।


हो इरादा मदद का तो नेक हो तुम्हीं,
दिल में सबके बैठकर अनेक हो तुम्हीं,
 लिखा करो तकदीर सबकी प्रीति-स्याह से,
हो अगर ये भाव तो सुलेख तुम्हीं हो।


शुद्ध रखो मन को सदा  निर्विवाद बन,
दान कर दो मन को  अगर बन जाओ अमन,
वक्रता में क्या रखा है प्रीति -रीति सीख,
सरलता की राह पर करते रहो गमन।


प्यार है अपशव्द नहीं भाव यदि पवित्र है,
सत्व भावभंगिमा से विश्व सारा मित्र है,
तोड़ दो तुम बेड़ियों को वंधनों को,
शुद्ध पावन मधुर-आलय हृत महकता इत्र है।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

""मैँ कौन हूँ"'


मैँ मौन हूँ मैं मूक हूँ निः शव्द हूँ,
इतिहास हूँ भूगर्भ हूँ प्रारवद्ध हूँ,
मैँ नीति हूँ मैं रीति हूँ मैं प्रीति हूँ,
मैँ अर्थ हूँ  मैँ भाव हूँ मैं शव्द हूँ।


मैँ ज्ञान हूँ विज्ञान हूँ मैं ध्यान हूँ,
मैँ शान हूँ अभिमान हूँ अज्ञान हूँ,
मैँ तेज हूँ निस्तेज हूँ मैं मेज हूँ,
मैँ मान हूँ अपमान हूँ अधिमान हूँ।


मैँ गगन हूँ मैं मगन हूँ मैं सुमन हूँ,
मैँ पवन हूँ मैं गमन हूँ मैं चमन हूँ,
मैँ सर्व हूँ मैं पर्व हूँ मैं गर्व हूँ,
मैँ शमन हूँ मैँ दमन हूँ मैं हवन हूँ।


मैँ राम हूँ घनश्याम हूँ निष्काम हूँ,
मैँ शिवा हूँ शिवशंकरा शिवधाम हूँ,
मैँ उमा हूँ मैं रमा हूँ मैं प्रतिम हूँ,
मैँ शमा हूँ मैं क्षमा हूँ अप्रतिम हूँ,
मैँ मेघ हूँ मैं वारि हूँ मैं भूमि हूँ,
मैँ ब्रह्म हूँ मैं माय हूँ मैं महिम हूँ।


मैँ प्रश्न हूँ मैं जश्न हूँ खुद उत्तरा,
 मैँ सहज हूँ अति क्लिष्ट हूँ अति सुंदरा,
मैँ वॄष्टि हूँ मैं सृष्टि हूँ मैं दृष्टि हूँ,
मैँ कौन हूँ खुद मौन हूँ मैं बेघरा।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती महिमामृतम"


यश वैभव लक्ष्मी शिवा सीता राधा धाम।
हे माता माँ शारदे!दे मन को विश्राम।।


सहज देव प्रिय देव-संपदा। हर ले माता सारी विपदा।।
सदाचारिणी दुनिया हो माँ।भक्तिदायिनी महिमा हो माँ।।
असहज जीवन सरल बनाओ।सुन्दर मन की बात बताओ।।
शव्द नहीं है भाव नहीं है।प्रेम ज्ञान समभाव नहीं है।।
मोहक शव्द भरो माँ भीतर।बनी मोहिनी आ माँ अंदर।।
बनी समत्व योगिनी आ जा।ममता समता बन उर छा जा।।
कृष्ण कन्हैया बनकर आओ।बनी राधिका प्रीति सिखाओ।।
सात्विकता का उपदेशक बन।हो जाये शीतल चन्दन-मन।।
ध्यान ज्ञान में तुम्हीं रहो माँ।हम गायें बस तेरी महिमा।।


सत्य धाम की वासिनि विद्या का वर देहु।
शरणागत हम भक्त को अपनी शरण में लेहु।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

आह, 
निकली थी एक, जडमति सी हो गई।
पिया, के संग सौतन, मै हार मति ,सी हो गई।
जिंदगी विरहन बेला मे, मै कैसे जी पाऊंगी।
बिना पिया के साथ लिए, अब रह.ना पाऊंगी।
सोच सोच घबराई मै, एक सती सी हो गई।
और जालिम दुनिया के आगे मै, हति सी हो गई।
कैसे समझाउ मनवा, चैन कैसे पाऊ।
इस.विरह अग्नि मे मै जल जल जाऊ।
उठे तो सिसकियो मे दिल, और मचलाए सिसकियो मे।
अब तो साजन मुझसे एक पल रहा ना जाए।
आ जिधर भी बैठा है तू, मत इस तरह से मार।
एक अच्छे उपवन के फूल को इस तरह ना तू बिखार।
जिंदगी तेरी ही अमानत यहां है थी।
मौत भी आयी नही यही.मै, सतासी सी हो गई।
आज बता सारे जग को मै तेरी का लगती हूँ।
जिसने तुझको चाहा इतना, वह चाहत क्या होती हूं।
या दिल तेरा दूजो के संग है। दूजो  मै व्यथित सी  हो गई हूँ।
साजन तेरे बिना, अब तो मै। हतास सी हो गई हूं।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

चलो आज पढे जिंदगी।
आज सभी लोग जिंदगी नही जी पा रहे है।
बहुत अच्छा विषय है जिंदगी,
नेक कर्मो की यह है बंदगी।
जो इसे समझ है गया।
.बडा सवाल हल कर गया।
सुंदर ताजी हवा मे सांस लो।
आकर शांति से विश्राम लो।
थोडी देर आंख बंदकरके।
प्रभू.का भी स्मरण कर लो।
उठो नहाओ, फिर है काम लो।
थोडी थोडी देर आराम हो
ग्यारह ,बारह इस तरह बीते।
तिनिक भी नही दिमाग गरम हो।
अब ना बेटा, और ना बेटी, 
किसी के बारे मे मत हो चिंतित।
एक लक्ष्य बनाकर चलने दो।
संस्कारो से उन्हे भरने दो।
अब माता पिता संग बैठो।
तनिक बाते भी उनसे कर लो।
सास बहु यदि साथ साथ है।
आपस मे ना उन्हे लडने दो।
भागम भाग की यदि है नौकरी।
दूर रखना कोई है छोकरी।
लव भी ना ज्यादा है.करना।
अपने काम से काम है रखना।
आओ अब यहां धन को ले ले।
इसके लिए नही जान है देना।
जितना मिला है, जैसा मिला है।
संतोष बस इसी.मे.है धरना।
व्यर्थ अंह के आगे देखो।
अपना नुकसान मत कर लेना।
आओ शाम को हंसते हुए तुम।
बीबी ,बच्चो के साथ है रहना।
अब कही तुम घुमकर आओ।
ना जा सको तो गरम खाना हे खाओ।
रात देर तक जगना नही है।
बच्चो के पाठ देख कर सो जाना।
ताकि समय पर जल्दी है उठना।
शांत भाव तुम हरदम रखना।
देखो तुम यहां पाने लगोगे।
स्वास्थ.,धन, परिवार हंसेगा।
सबके सब संगी ,साथी बनेगे।
और जीवन ये सफल होगा।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


सीमा शुक्ला अयोध्या

आंखे
गम और खुशी का भेद जानती हैं ये आंखे ।
इस पार से उस पार झांकती हैं ये आंखे ।
जो दृश्य हो नयनाभिराम इस जहान में, 
उस दृश्य को अपलक हो ताकती हैं ये आंखे ।


चेहरे पे किसी के कभी रुक जाती हैं आँखे ।
होकर के शर्मसार भी झुक जाती हैं आँखे ।
हर शर्म हया छोड़ के होकर के वेनकाब, 
करने को सामना भी तो उठ जाती हैं आँखे ।


दिल की तड़प व दर्द बताती हैं ये आंखे ।
रातों को जागकर के सताती है ये आंखे ।
एक ही नजर में दिल का बुरा हाल बना दें, 
सीधे जिगर पे तीर चलाती है ये आंखे ।


ख्वामोशी में भी बात को करती हैं ये आंखे 
आँसू से ही वर्षात को करती हैं ये आंखे ।
चुपके से एक नजर में करके तिरछा इशारा, 
दिल के सभी जज्बात बंया करती हैं आँखे ।


जग होता अन्धकार जो न होती ये आंखे ।
होता न कुछ दीदार जो न होती ये आंखे ।
कोई न बदलता  यहां फिर चेहरे पे चेहरा, 
होता ये कैसे प्यार जो न होती ये आंखे ।
                                 सीमा शुक्ला अयोध्या


डाॅ विजय कुमार सिंघल* प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य

*प्राकृतिक चिकित्सा-46*


*हृदय रोगों की विभीषिका*


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार संसार में जितनी भी मौतें होती हैं, उनमें सबसे बड़ा कारण हृदय रोग और हृदयाघात हैं। कुल मौतों में इनसे होने वाली मौतों की संख्या लगभग 27 प्रतिशत है। 2016 में कुल मौतों की संख्या 5.69 करोड़ थी, जिनमें से 1.52 करोड़ केवल हृदय सम्बंधी रोगों के कारण अकाल मृत्यु के शिकार हुए। आज भी इस स्थिति में कोई विशेष अन्तर नहीं आया है। आजकल भी हृदय रोग बहुत फैल रहे हैं। पहले यह रोग प्रायः बड़ी उम्र वाले पुरुषों को ही हुआ करते थे, परंतु अब तो बच्चे-बूढ़े-जवान स्त्री-पुरुष सभी को हृदय रोग हो जाते हैं। 


हृदय रोग अपने आप में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है बल्कि अन्य कई रोगों का सम्मिलित परिणाम होता है। कुछ रोग जैसे रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह, मूत्र विकार, चिंताग्रस्त रहना आदि मिलकर हृदय पर बहुत बोझ डालते हैं। इससे हृदय धीरे-धीरे दुर्बल हो जाता है। इसलिए हृदय को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी रोगों से बचे रहना आवश्यक है। गलत जीवन शैली और भारी प्रदूषण ही इन सभी रोगों का और हृदय रोगों का भी प्रमुख कारण है। जब तक जीवन शैली में उचित परिवर्तन नहीं किया जाएगा, तब तक इन रोगों से छुटकारा पाना लगभग असम्भव है। इसी कारण केवल हृदय बदलने से या बाईपास सर्जरी करने से कुछ समय बाद फिर पहले जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।


हृदय रोगों के साथ बुरी बात यह है कि किसी को हृदयाघात होने से पहले इसके कोई लक्षण कहीं नजर नहीं आते। इस कारण लोग इससे बचाव का प्रबंध नहीं कर पाते। फिर भी कुछ उपाय हैं जिनके द्वारा हृदय दुर्बलता और उससे उत्पन्न होने वाले हृदयाघात से बचकर रहा जा सकता है।


कई विद्वानों ने बताया है कि हृदय रोगों के तीन प्रमुख कारण होते हैं- हरी (Hurry), वरी (Worry) और करी (Curry)। यहाँ ‘हरी’ का अर्थ है- हमेशा भागदौड़ और हड़बड़ी में रहना। अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने या सरल शब्दों में अधिक पैसा कमाने के लिए आदमी बहुत भागदौड़ करता है और इस बात का ध्यान नहीं रखता कि इससे उससे स्वास्थ्य का कैसा सर्वनाश हो रहा है। 


‘वरी’ का अर्थ है- हमेशा चिन्ताग्रस्त रहना। व्यक्ति अनगिनत चिन्ताओं को पाल लेता है, ऐसे लक्ष्य तय कर लेता है जिनको पाना सामान्य तौर पर सरल नहीं है। जब तक वे लक्ष्य प्राप्त नहीं होते तब तक वह बहुत चिन्तित बना रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि लक्ष्य प्राप्त होने तक उसका शरीर अनेक रोगों का घर बन जाता है और स्वास्थ्य में इतनी गिरावट आ जाती है कि उसे पुनः ठीक करना असम्भव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य हो जाता है। 


‘करी’ का अर्थ है- स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का सेवन करना। यह एक कठोर सत्य है कि बाजारू फास्टफूड और माँसाहारी व्यंजन खाने में भले ही स्वादिष्ट लगते हों, परन्तु अन्ततः ये स्वास्थ्य के लिए घातक ही सिद्ध होते हैं। लेकिन आधुनिक जीवनशैली और बाजार की प्रवृत्तियों के कारण मनुष्य इनके जाल में फँसता है और अपने स्वास्थ्य का सर्वनाश कर लेता है। 


इन तीनों में से प्रत्येक कारण अकेला ही मनुष्य के स्वास्थ्य और जीवन के लिए बहुत हानिकारक है और जब ये तीनों एक साथ मिल जाते हैं तो इनकी भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है। इनके कारण ही मनुष्य का शरीर अनेक रोगों का स्थायी निवास बन जाता है और उनके साथ-साथ हृदय भी दुर्बल होता जाता है। अतः हृदय रोगों से मुक्ति पाने का सही उपाय इन तीनों कारणों को दूर करना ही है। 


ऊपर बताये गये रोगों के उपचार के बारे में इस लेखमाला में विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। यदि किसी को इनमें से कोई रोग है तो उसका उचित प्राकृतिक उपचार करना चाहिए। संक्षेप में इतना ही समझ लीजिए कि यदि आप हृदय रोगों से बचना चाहते हैं तो आपको खूब पानी पीना चाहिए, अधिक से अधिक पैदल चलना चाहिए, पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम करना चाहिए, गहरी सांसें लेनी चाहिए, सात्विक वस्तुएँ उचित मात्रा में खानी चाहिए तथा सबसे बढ़कर हमेशा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। जीवन शैली में परिवर्तन किये बिना हृदय रोगों से मुक्ति पाना असम्भव है। अगली कड़ी में हम हृदय रोगों से बचने और उनसे मुक्ति पाने के उपायों की विस्तृत चर्चा करेंगे।


*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
चैत्र कृ 6, सं 2076 वि (15 मार्च, 2020)


सीमा शुक्ला अयोध्या।

जिन्दगी के सफर मे हमेशा, देखते नित नयी हम कहानी।
है लवो पर कभी कुछ शिकायत,है कभी जिन्दगी ये सुहानी।
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जो न मिलता है चाहत मे उसकी, जो मिला है न उसकी कदर है,
इस तरह खोने पाने की धुन मे,खो चुके है बहुत ये जवानी
*****
प्रेम सच्चा वही है चिरंतन,साथ दे जो निलय से प्रलय मे,
चार पल की मुलाकात को क्या,हम कहे है मुहब्बत रूहानी।
****
हम गये जो कहीं बीच महफिल,मिल गया साथ अपनो के ये  दिल,
चंद पल की मुलाकात मे हम,छोड आते है अपनी निशानी।
****
जन्म इंसान लेता है घर मे,कर्म से नाम होता है जग मे,
सूर तुलसी कबीरा जगत मे,कर्म से बन गये गूढ ज्ञानी।
****
दर्द मे भी सदा हंसते रहना,हर मुसीबत को हिम्मत से सहना,
होके मायूस चुप बैठ 'सीमा',तुम गंवाना न यू जिन्दगानी ।
 सीमा शुक्ला अयोध्या।


जयश्रीतिवारी खंडवा

कोरोना
कोरोना ,कोरोना ,कोरोना
तेरे नाम क्या रोना?
कितना भी तू कहर ढाले
लोगों को नहीं सुधार पाएगा
मेरे देश के लोग इतनी आसानी से नहीं सुधर पाएंगे
मृत्यु सामने खड़ी हो तो भी
अपने कर्मों से बाज नहीं आएंगे
इंसान चाहे तो पल में अपने आप को सुधार ले
नहीं तो कितने भी जन्म ले ले
उन्हे सुधार पाना मुश्किल है
क्योंकि, इंसान के अंदर ही सुधरने की प्रवृत्ति होना चाहिए
वरना स्वाइन फ्लू, सुनामी, कोरो ना, कितने भी बड़े-बड़े दिग्गज आ जाएं
मेरे देश के लोगों को सुधार ना पाए
कोरोना तुम कुछ ऐसा कर जाओ
मेरे देश के लोगों के मन में त्याग ,पीड़ा, ममता ,उदारता भर जाओ
ताकि और कुछ नहीं हम ईश्वर को जाकर जवाब दे सके
हमारे अंदर की विचारों को बदल सकें
और इसी जन्म में ही लोगों के साथ किए गए बुरे बर्ताव का प्रायश्चित कर सकें
जयश्रीतिवारी खंडवा


 


स्नेहलता'नीर

गीत
*****
मापनी-16/16
रँग गयी श्याम के रंग नीर,
जीवन में जैसे होली है।
भावों में भक्ति भावना की,
मिसरी जी भर कर घोली है।
1
अभिशापित था जीवन कल तक,
आँसू नयनों से झरते थे।
छलनाओं  के कारोबारी,
दिन -रात निडर हो छलते थे 


घनश्याम कृपा से घर मेरे,
ख़ुशियों की उतरी डोली है।
रँग गयी श्याम के रंग नीर,
जीवन में जैसे होली है।
2
बंसी के स्वर अब मधुर- मधुर,
कानों में मधुरस घोल रहे।
झाँझर के नूपुर हुए मगन,
कंगन भी खन- खन बोल रहे।


केशव की चरण धूलि मेरे,
 माथे का चंदन -रोली है।
रँग गयी श्याम के रंग नीर,
जीवन में जैसे होली है।
3
मन के आँगन की फुलवारी,
मुस्काई साँस सुवासित  है ।
 सानिध्य तुम्हारा पाने को ,
गोपालप्रिया संकल्पित है।


मष्तिष्क पटल पर बनी अमिट,
मनभावन भाव-रँगोली है।
रँग गयी श्याम के रंग नीर,
जीवन में जैसे होली है।



स्नेहलता'नीर'


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड पिनकोड 246171

जीवन ही अब भार मुझे
*******************
मेरा अपना इस जग में ,
आज़ अगर प्रिय होता कोई।


मैंने प्यार किया जीवन में,
जीवन ही अब भार मुझे।
रख दूं पैर कहां अब संगिनी,
मिल जाए आधार मुझे।
दुनिया की इस दुनियादारी,
करती है लाचार मुझे।
भाव भरे उर से चल पड़ता,
मिलता क्या उपहार मुझे।
स्वप्न किसी के आज उजाडूं,
इसका क्या अधिकार मुझे।
मरना -जीना जीवन है,
फिर छलता क्यों संसार मुझे।


विरह विकल जब होता मन,
सेज सजाकर होता कोई।


विकल, बेबसी, लाचारी है,
बाँध रहा दुख भार मुझे।
किस ओर चलूं ले नैया,
अब सारा जग मंजधार मुझे।
अपना कोई आज हितैषी,
देता अब पुचकार मुझे।
सहला देता मस्तक फिर यह,
सजा चिता अंगार मुझे।
सारा जीवन बीत रहा यों,
करते ही मनुहार मुझे।
पागल नहीं अबोध अरे,
फिर सहना क्या दुत्कार मुझे।


व्यथा विकल भर जाता मन,
पास खड़ा तब रोता कोई।


फूलों से नफ़रत सी लगती,
कांटों से है प्यार मुझे।
देख चुका हूं शीतलता को,
प्रिय लगता है अंगार मुझे।
दुख के शैल उमड़ते आयें,
सुख की क्या परवाह मुझे।
भीषण हाहाकार मचे जो,
आ न सकेगी आह मुझे।
नहीं हितैषी कोई जग में,
यही मिली है हार मुझे।
ढूँढ चुका हूँ जी का कोना,
किन्तु मिला क्या प्यार मुझे।


पग के छाले दर्द उभरते,
आँसू से भर धोता कोई।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


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